Saturday 24 November 2018

अनूप गैरोला एक सशक्त व सहृदय पत्रकार



धाद ने किया गैरोला को याद, दी भावभीनी श्रद्धांजलि
मेरे भड़कने और लड़ने की प्रवृत्ति पर मुझे सीख देते थे गैरोला जी
अपनी माटी और थाती के लिए समर्पित थे अनूप

वरिष्ठ पत्रकार अनूप गैरोला से मेरा परिचय लगभग आठ साल पुराना है। वो राष्टीय सहारा में चीफ सब एडिटर थे और मैं दिल्ली से इसी पोस्ट पर तैनात होकर आया था। मैं पहली बार डेस्क पर काम कर रहा था, इससे पूर्व मैं रिपोर्टिंग में था। ऐसे में पेजीनेशन की समस्या तो थी ही साथ ही सहारा फांट की भी दिक्कत थी। अनूप गैरोला जी ने मुझे बहुत सहयोग किया और मुझे यह कहने में संकोच नहीं हो रहा है कि मैं उनसे पेजीनेशन सीखा। वो गजब का पेज लेआउट बनवाते थे। जहां उन्हें लगता था कि आपरेटर सही पेज नहीं बना रहा तो वो उसके कंधे पर हाथ रख उसके माउस पर हाथ के उपर हाथ रख पेजीनेशन करवाते थे।
आपरेटर के साथ कोई भी चीफ सब इस तरह का सहृदय व्यवहार करे, यह मैंने पहली बार देखा और महसूस किया। साल-दर-साल मैंने अनूप गैरोला जी के साथ काम किया, लेकिन उनको कभी किसी पर भड़कते नहीं देखा, जबकि मैं सहारा में चपरासी से लेकर संपादक तक लड़ने-भिड़ने के लिए बदनाम हो चुका था। अनूप मुझे कई बार समझाते भी थे और मेरी गलती भी गिनाते थे। उनसे मुझे बहुत सीखने को मिलता। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में मैं चुनाव का प्रभारी था। बाकी सब मेरे समकक्ष साथी और डीएनई तक जल-भुन रहे थे, लेकिन अनूप ने मेरा पूरा साथ दिया। हम सुबह दस बजे से लेकर रात दो बजे तक काम करते थे। कई बार अनूप गैरोला से मतभेद भी हुए लेकिन मनभेद नहीं हुआ। हाल में जब मैं उनसे मिला तो अपनी बेटी को चश्मा दिलाने के लिए नवज्योति आई सेंटर पर आए थे। मैं कार में था, उन्होंने दूर से मुझे देखा तो मेरी ओर खुद ही चले आए। इसके बाद मुलाकात सीएमआई अस्पताल में ही हुई। कुछ दिनों बाद उनका भांजा अंकित मिला तो उसका कहना था कि हालत सुधर रहे हैं और उन्हें जल्द डिस्चार्ज कर दिया जाएगा। इस बीच रक्तप्रवाह रुकने पर डाक्टरों ने उनके पांव का पंजा भी काट दिया था। वो घर लौट आए लेकिन भावुक व संवेदनशील होने से संभवत उन्हें सदमा लगा और वो इस दुनिया से चले गए, लेकिन उनकी यादें और उनकी सीख मेरे लिए एक सबक रहेंगी। मुझे यह दुख भरी खबर दूरदर्शन में मेरी साथी नेहा बिष्ट ने दी तो विश्वास ही नहीं हुआ। तब मैं पौड़ी अपने गांव गया था, मैंने नीलकंठ भट्ट से बात की तो इसकी पुष्टि हुई। मुझे एक बड़ा आघात लगा। ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि उन्हें अपने चरणों में स्थान दें और उनके परिवार को इस असीम दुख को सहने की शक्ति प्रदान करें।

सामाजिक व सांस्कृतिक धरोहर की प्रतीक धाद संस्था ने भी उनको उज्ज्वल रेस्तरां में शोकसभा कर श्रद्धांजलि दी। संस्था के संस्थापक लोकेश नवानी ने कहा कि अनूप गैरोला एक अच्छे और जनपक्षीय पत्रकारिता के लिए जाने जाते थे। पत्रकारिता जगत ही नहीं सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों के लिए भी यह अपूरणीय क्षति है। धाद के विजय जुयाल जी ने कहा कि अनूप पहाड़ के लिए चिंतित थे और सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्यों को लेकर उन्हें बहुत अच्छी समझ थी। उनके आकास्मिक निधन से धाद संस्था को भी धक्का लगा है और हम उनको भावभीनी श्रद्धांजलि देते हैं। उनके परिवार के साथ दुख की इस घड़ी में हम साथ हैं।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]

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