Thursday 29 December 2016

मजीठिया मांगने के बाद हुआ है ट्रांसफर तो मीडियाकर्मी इस मेल पर सूचित करें

मजीठिया मांगने के बाद हुआ है ट्रांसफर तो मीडियाकर्मी इस मेल पर सूचित करें
देश भर के मीडियाकर्मियों के लिए एक और अच्छी खबर आई है। जिन मीडिया कर्मियों ने जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड के तहत माननीय सुप्रीमकोर्ट में या देश के किसी भी कामगार न्यायालय अथवा कामगार आयुक्त कार्यालय में अपना क्लेम, मुकदमा या लिखित सूचना दिया है और लिखित सूचना देने, क्लेम लगाने या मुकदमा करने के बाद अखबार मालिकों ने उनका ट्रांसफर, टर्मिनेशन या सस्पेंशन किया है तो ऐसे सभी मीडियाकर्मी अपना नाम, पोस्ट, अखबार का नाम, अखबार की कंपनी का नॉम, क्लेम करने की तिथि या मुकदमा करने की तिथि, कहां से कहां ट्रांसफर किया गया और किस तारीख को ट्रांसफर या टर्मिनेशन या सस्पेंशन किया गया का पूरा विवरण जल्द से जल्द दें.

इस मुद्दे को माननीय सुप्रीमकोर्ट के संज्ञान में लाया जाएगा. मीडियाकर्मियों को ये पता होगा कि गलत तरीके से किये गये एक ट्रांसफर के मामले में माननीय सुप्रीमकोर्ट ने प्रभात खबर के बिहार के आरा के ब्यूरोचीफ मिथलेश को स्टे दे दिया है. अगर आपके किसी परिचित का मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार वेतन और एरियर मांगने पर ट्रांसफर टर्मिनेशन हुआ है तो उनको भी इस बात की जानकारी दें. आप पूरा विवरण shashikantsingh2@gmail.com और ssaini1970@gmail.com पर भेज दें.
कोई दिक्कत हो तो 9672868980 या 9322411335 पर काल कर सकते हैं.


शशिकांत सिंह
पत्रकार और आर टी आई एक्टिविस्ट, मुंबई
9322411335





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Saturday 24 December 2016

मजीठिया: प्रभात खबर के आरा ब्यूरो चीफ के तबादले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगायी रोक


         
देश भर के मीडियाकर्मियों में खुशी की लहर एडवोकेट उमेश शर्मा ने भी सुप्रीमकोर्ट के इस कदम का किया स्वागत

जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले की लड़ाई लड़ रहे देश भर के मीडियाकर्मियों के पक्ष में माननीय सुप्रीमकोर्ट ने एक और बड़ा कदम उठाया है। प्रबंधन के खिलाफ जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड की सुप्रीमकोर्ट में लड़ाई लड़ रहे प्रभातखबर के झारखंड के रांचि के व्यूरोचीफ मिथिलेश कुमार का प्रबंधन ने तबादला कर दिया तो मिथिलेश कुमार ने सीधे सुप्रीमकोर्ट में अपने एडवोकेट दिनेश तिवारी के जरिये गुहार लगा दी। इस मामले में मजीठिया वेज बोर्ड की सुनवाई कर रहे सुप्रीमकोर्ट के विद्वान न्यायाधीश रंजन गोगोई और नागेश्वर राव की खंड पीठ ने मिथिलेश कुमार के पक्ष में कदम उठाते हुये उनके ट्रांसफर पर रोक लगा दिया। आपको बतादें कि रंजन गोगोई जी ही जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड के अवमानना मामने की सुनवाई कर रहे हैं।   अवमानना मामले की भी स्टेआर्डर में चर्चा  है। इस स्टे के बाद से ना सिर्फ प्रभातखबर बल्की सभी अखबारों के पत्रकारों के चेहरे खिल गये हैं। प्रभात खबर के आरा ब्यूरो चीफ मिथिलेश कुमार का तबादला प्रभात खबर के चीफ ह्यूमन रिसोर्स आफिसर्स श्री अंजय शर्मा द्वारा चाईबासा कर दिया गया था। मिथिलेश कुमार ने तबादले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने उनके तबादले पर स्थगन आदेश जारी करते हुए नयी जिम्मेदारी सौंपने पर रोक लगा दी। साथ ही मिथिलेश कुमार के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर रिट पीटिशन को अन्य कर्मचारियों के मामले के साथ शामिल करते हुए निर्धारित 10 जनवरी 2017 को सुनवाई की जाएगी। उधर इस मामले में देश भर के पत्रकारों के पक्ष में जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड की सुप्रीमकोर्ट में लड़ाई लड़ रहे एडवोकेट उमेश शर्मा ने अपनी पहली प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा है कि इस फैसले से देश भर के उन सभी मीडियाकर्मियो को फायदा होगा जिनको मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ मांगने और क्लेम करने के कारण प्रबंधन अपना निशाना बनाकर ट्रांसफर कर रहा है। उमेश शर्मा ने कहा है कि वे इस मामले का फैक्ट क्या है अभी वे देख रहे हैं। लेकिन वाकई ये सुप्रीमकोर्ट का बहुत बढिया कदम है और इससे अखबार मालिक अपनी मनमानी बंद करेंगे। 


शशिकांत सिंह
पत्रकार और आर टी आई एक्टिविस्ट
9322411335





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Wednesday 21 December 2016

मजीठिया: नोएडा डीएलसी में रिकवरी लगाने वाले साथी लापरवाही बरत अपना ही कर रहे नुकसान

नोएडा डीएलसी में रिकवरी लगाने वाले बहुत से साथी लापरवाही बरत कर अपना ही नुकसान कर रहे हैं। इनमें से कई साथियों को बार-बार सूचित किए जाने पर भी वे अपनी डेट पर नहीं पहुंचते और जिससे उनकी लगातार अनुपस्थिति दर्ज हो रही है और प्रबंधन की उपस्थिति। यदि वे इसी तरह अनुपस्थिति रहे तो नुकसान उनका ही होगा। इनमें से कई कर्मियों की रिकवरी का रिज्वाइंडर दो डेट पहले ही प्रबंधन ने दाखिल कर दिया है और वह डीएलसी में उनकी ही फाइल में लगा हुआ है। कम से कम वे उसे लेकर उसका जवाब तो दे दें। जिससे कार्रवाई आगे चल सके।

इनमें से दो महिला सहकर्मियों ने सितंबर की शुरुआत में ही क्‍लेम लगा दिया था, परंतु उनकी फाइल कहां है या उसका डायरी नंबर क्‍या है उसका कहीं कुछ पता नहीं। तीन महीने बीतने के बाद भी इन दोनों सहयोगियों ने डीएलसी में झांका तक नहीं। जबकि इन्‍हीं की एक सहयोगी ने इनके साथ ही उसी डेट में क्‍लेम लगाया था, उसकी तो कई डेट भी लग चुकी हैं। इनके अलावा कई साथियों ने रिकवरी की कॉपी प्रबंधन को नहीं दी है। प्रबंधन हर डेट पर कॉपी मांगता है, जो कि उनको मिलती ही नहीं, क्‍योंकि हमारे साथी ही अनुपस्थिति रहते हैं। 

सहायक श्रम आयुक्‍त एनके शुक्‍ल के यहां जागरण व अन्‍य समाचार पत्रों के जिन कर्मियों की डेट 14 दिसंबर थी अब 23 दिसंबर को दोपहर 12 बजे से हो गई है। ऐसा बताया जा रहा है शुक्‍ल के यहां अब मजीठिया से जुड़े सभी साथियों के केस एक साथ एक ही डेट और समय (दोपहर 12 बजे) पर चलेंगे।

वहीं, दूसरे सहायक श्रम आयुक्‍त हरीशचंद्र (शायद यही नाम है) के यहां जिन साथियों की डेट 15 दिसंबर थी, अब 4 जनवरी 2017 हो गई है।

नोएडा डीएलसी में कुछ साथियों को अपनी रिकवरी का डायरी नंबर और सुनवाई की डेट पता करने के लिए भी काफी जद़दोजहद करनी पड़ी थी। आप समझ सकते हैं इसका कहीं न कहीं फायदा प्रबंधन को ही मिलता है, इसीलिए लापरवाही न बरते और अपने केस को खुद कमजोर न करें। जिन्‍होंने रिकवरी की कॉपी प्रबंधन को नहीं दी है वे अपनी सुनवाई की डेट में उसको लेकर आएं।

(एक पत्रकार साथी से प्राप्‍त तथ्‍यों पर आधारित)





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Wednesday 30 November 2016

मजीठिया: कोई इंदौर के कई अखबारों से गायब हुए एचआर विभाग



इंदौर के अखबार मालिकों में मजीठिया का डर इतना खौफ पैदा कर रहा है कि उन्होंने अपने प्रेस परिसर से एचआर विभाग ही गायब कर दिए हैं। इतना नहीं कई अखबारों में न तो कर्मचारियों को नियुक्ति पत्र दिया गया और न सैलेरी स्लीप दी जाती है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा संध्या दैनिक कहलाने वाले अग्निबाण्ड से पिछले 3-4 माह से अपने यहां के एचआर विभाग ही बंद कर दिया है। एचआर विभाग में जितने भी कम्प्यूटर से उन्हें हटा दिया गया है और अन्य किसी स्थान पर स्थानांतरित कर दिया है। इतना ही नहीं एचआर विभाग में काम करने वालों को भी अन्य स्थान पर अपनी नौकरी बजाने जाना पड़ रहा है। सूत्र तो यह तक बताते हैं कि कई इस संध्या दैनिक में मात्र रजिस्टर में हस्ताक्षर करवाएं जा रहे हैं और वह रजिस्टर छुपाकर रखा जाता है। इसके अलावा इस अखबार के बारे में यह तक कहा जा रहा है कि यहां भविष्यनिधि और एसआईसीई में एक भी कर्मचारी कवरेज नहीं है। मजीठिया के इस दौर में जहां पत्रकार भाचावत, माणिसाना और मजीठिया की लड़ाई लड़ने लगे हैं, वहां कई पत्रकारों तो भविष्यनिधि और एसआईसीई में कवरेज न होना सीधे-सीधे श्रम कानून की धज्जियां उठाने जैसा है, लेकिन जब शोषित स्वयं कर्मचारी होना चाहता है तो आला अधिकारी भी क्या करें। क्योंकि जब स्वयं को बुद्धिजीवी कहने वाला पत्रकार ही का नींद में सो रहा है क्या किससे हम उम्मीद कर सकते हैं। इस अखबार में किसी  भी कई कर्मचारी के पास नियुक्त पत्र नहीं  है। 

इधर दबंग दुनिया से भी गायब एचआर

इधर मजीठिया और ब्लैक कमाई में धराए दबंग दुनिया से भी एचआर विभाग के सारे कम्प्यूटर हटा दिए गए हैं। सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि  इस अखबार मालिक और एक अन्य अखबार मालिक की चोर-डकेत लड़ाई के बाद अखबार प्रबंधन ने अपने यहां के पुराने सारे दस्तावेज आग के हवाले कर दिए हैं।  वैसे दोनों अखबार मालिकों ने चोर-चोर मोसेरे भाई फिर क्यों करें हम आपस में लड़ाई की कहावत को चरितार्थ करते हुए समझौता कर लिया है। वैसे दबंग के चेयरमैन के बारे में यह कहा जाता है कि वे पहले पंगा लेते हैं और जब सामने वाला भारी पड़ जाता है तो दुम दबाकर उसके सामने घुटने टेक देते हैं। ऐसा ही प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल के साथ लड़ाई में उन्होंने किया था।

इधर सूत्र यह भी बताते हैं कि दबंग प्रबंधन ने इंदौर ही नई भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर सहित अपने 13 स्थानों से निकलने वाले एडिशनों से भी सारे दस्तावेजों को हटाकर आग के हवाले करने के साथ सारे कम्प्यूटर की हार्ड डिस्क निकाल दी। इंदौर में तो कर्मचारियों के लगाई गई पंच मशीन को तक निकालकर फेंक दिया है। सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि एक दो-दिन में इनकम टैक्स का छापा अखबारों के दफ्तरों में पड़ सकता है और इसी दौरान श्रमायुक्त भी दबिश देकर एक पंथ दो काज करेंगे। वैसे सूत्र बताते हैं कि यहां भी अधिकांश कर्मचारियों के पास नियुक्ति पत्र नहीं है।

हैलों से भी गायब हुआ रजिस्टर

इधर एक संध्या दैनिक अखबार और मासिक पत्रिका संध्या दैनिक से रजिस्टर गायब हो गया है। यहां भी एक भी कर्मचारी न तो भविष्यनिधि में कवरेज और न ही ईएसआईसी में। 

6 पीएम में कैसा छापा

संध्या दैनिक 6 पीएम में भविष्यनिधि आयुक्त व्दारा छापा मारा गया था, लेकिन सूत्र बताते हैं कि मालिक ने उन्हें नीचे से हकाल दिया। भविष्यनिधि के कर्मचारी जाते हैं यहां से कर्मचारियों को यह कहकर बाहर कर दिया गया है कि हम भविष्यनिधि नहीं दे सकते हैं।  पिछले पांच वर्ष से प्रकाशित इस अखबार में एक भी कर्मचारी को नियुक्त पत्र नहीं दिया और न ही सैलेरी स्लिप दी जाती है।

प्रभात किरण के हाल 

इधर अपने आपको नम्बर दो कहने वाला सांध्य दैनिक में भी  वर्षों से कार्यरत कई कर्मचारियों को भविष्यनिधि और ईएसआईसी में कवरेज नहीं किया गया है। इस अखबार में भी किसी भी कर्मचारी के पास नियुक्ति पत्र नहीं है और न ही सेलेरी स्लिप मिलती है। ऐसे में मजीठिया की लड़ाई लड़ने वाले क्रांतिकारियों के लिए यह लड़ाई और मुश्किल हो सकती है।

जागरण में काम का बोझ से कर्मचारी हो रहे बीमार

इधर सूत्र बताते हैं कि नई दुनिया को जब से जागरण ग्रुप ने खरीदी है कर्मचारियों का टेंशन काम के बोझ तले बढ़ गया है। पिछले दिनों ग्राफिक्स डिजाइनर पांचाल का निधन हो गया, इसके बाद प्रथम पृष्ठ के चीफ दिनेश जोशी ने दम तोड़ दिया। सूत्र बताते हैं कि अभी भी अधिकांश कर्मचारियों का काम के बोझ तले बीपी बढ़ रहा है और हर माह कोई न कोई बीमार हो रहा है।






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कोई भी मर्जी से कम वेतन नही चाहता: सुप्रीम कोर्ट

पंजाब सरकार के अस्थाई कर्मचारियों ने नियमित कर्मियों के समान वेतन पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। जिसे पंजाब हाईकोर्ट ने पहले खारिज कर दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एेतिहासिक फैसला दे ये कहा कि कोई भी अपनी मर्जी से कम वेतन पर काम नही करना चाहेगा। वह एेसा केवल अपने परिवार को भोजन और आश्रय मुहैया कराने के लिए करता है। इसके लिए वह अपने आत्मसम्मान गरिमा और स्वाभिमान की कीमत चुकाता है।

बचने का कोई रास्ता नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा है कि आथिॅक सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार -1966 के अंतरराष्टृीय समझौते के सैक्शन -7 का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इससे बचने का कोई रास्ता नही है। यह प्रत्येक नागरिक का अधिकार है।

अखबार मालिकों पर चले 420 का मुकद्दमा: यदि हम सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त फैसले को देखे तो जिस प्रकार दैनिक जागरण सहित अन्य सभी अखबारों ने वर्किग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 13 व 16 की धज्जियां उड़ाते हुए कर्मचारियों के लिए गए हस्ताक्षर को 20 जे में दिखाते रहे चाहे कर्मचारी का वेतन मजीठिया वेज बोर्ड से कम ही क्यो न हो। अखबार मालिक अदालत का समय बर्बाद करते चले आ रहे हैं व कानून का मखौल उड़ाते आ रहे हैं। इन पर 420 का केस चलना चाहिए क्योकि इतने बड़े अखबार को जर्नलिस्ट एक्ट की जानकारी न हो एेसा संभव नही।
(Oct 2016 SC order)





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मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे पत्रकार के लिए 21 लाख 46 हजार रुपये रिकवरी आदेश जारी

मध्य प्रदेश के लेबर डिपार्टमेंट ने मान है लिया कि मजीठिया वेजबोर्ड में अनुशंसित वेतनमान से जिस कर्मचारी को कम वेतन मिल रहा है, उसके संबंध में 20-जे का कोई मतलब नहीं है। एमपी में पहली रिकवरी जारी करते हुए प्राधिकृत श्रमउपायुक्त ने अपने आदेश में इसकी स्पष्ट व्याख्या की है और प्रबंधन का तर्क खारिज कर दिया है। श्रमउपायुक्त ने पत्रकार साथी के लिए संबंधित जिला कलक्टर को राशि 21,46,948/- (इक्कीस लाख छियालीस हजार नौ सौ पेतालिस) रुपए का वसूली प्रमाण पत्र जारी किया है। श्रम उपायुक्त ने अपने आदेश में ये लिखा है:-

उपरोक्त क्लॉज 20-जे से स्पष्ट है कि मजीठिया वेजबोर्ड की अनुशंसाएं कम वेतन पर सहमति कराने की नहीं है। चूंकि श्री (कर्मचारी का नाम) को जो वेतन दिया जा रहा था वह मजीठिया वेजबोर्ड की अनुशंसाओं से बहुत कम था। ऐसी स्थिति में प्रबंधन का 20-जे की अंडरटेकिंग दिए जाने से आवेदक पर अनुशंसाएं लागू नहीं होना बताया जाना कतई उचित नहीं है। उक्त अंडटेकिंग पर कोई दिनांक भी अंकित नहीं है कि कब दिया गया है। श्रमजीवी पत्रकार और अन्य समाचार पत्र कर्मचारी (सेवा शर्तें) और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1955 की धारा 13 में स्पष्ट है कि किसी कर्मचारी को वेजबोर्ड द्वारा निर्धारित वेतनमान से कम किसी हाल में नहीं दिया जा सकता तथा धारा 16 स्पष्ट करती है कि यदि वेजबोर्ड में निर्धारित न्यूनतम वेतन से ज्यादा वेतन प्राप्त करता है तो वह ज्यादा वेतन को प्राप्त करने के अधिकार की रक्षा करती है।



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Justice Bhachawat, a well-wisher of newspaper employees, passes away

In the death of Justice (Rtd.) U.N. Bhachawat yesterday morning, the newspaper employees have lost their true well-wisher. It was he who laid the foundation stone of the wage structures, allowances of the newspaper employees and the classification of the newspapers. Before Justice Bhachawat all other wage boards- Divatia, Shinde and Palekar- had run into rough weathers because of the objections and legal impediments created by the proprietors, led by notorious blackmailer Ram Nath Goenka. Recommendations of the first wage board were struck down by the constitution bench in the Indian Express case. Thereafter the Shinde wage committee was formed through an ordinance but, that too, could not do justice to employees. The Palekar wage board was constituted in 1975 but it could not function due to non-cooperation of the employers. Later on, it was converted into one man Tribunal. Therefore, the wage board under the chairmanship of Justice Bhachawat was the first of its kind, which prepared the ground for all other subsequent wage boards.
Justice Bhachawat died at the ripe age of 93. He was active all through his life. I was often used to go to him at his Jang Pura office of New Delhi to consult about the wage board matters and also about some other cases. After his retirement from the Madhya Pradesh High Court he started practicing in the Supreme Court. He had the robust knowledge of the civil laws. There are more than one hundred retired judges of various High Courts, who are regular practitioners in the Supreme Court but only a few of them have been able to retain the verve and enthusiasm of a lawyer and Justice Bhachawat was certainly one of them. He started his career from the District court of Mandsaur but gained his popularity as one of the top lawyers of election law in the entire state. He was very close to politicians like Dwarka Prasad Mishra, Shankar Dayal Sharma, Shyama Charan Shukla, Arjun Singh, Motilal Vora, Sundar Lal Patwa, Sitaram Jhalani and Birendra Kumar Saklecha etc,. A devout Jain, Justice Bhachawat never ate anything after sunset but he was very eclectic in his conduct. He could never think of doing any injustice or harm to anybody. He used to donate profusely to many charitable organisations. Recently he donated a large sum of money to the Government hospital in Mandsaur for installation of a dialysis machine.

The most remarkable work that had done for the newspaper employees was the introduction of the concept of classification of the newspapers based on ‘gross revenue’ from all sources including the rents received by them. He abolished the discrimination of newspaper of newspaper employees at two centres based on ‘functional integrality’, although it was not fully upheld by the Supreme Court in the Indian Express case of 1994; yet it certainly paved the way for ‘stepping up’ of the new publication centres of chain newspapers.

His wife, Smt. Vimla Devi, predeceased him few years ago, and thereafter he became very lonely. His son retired as the medical superintendent of a prestigious hospital of New Delhi. His grandson Alok Bhachawat has been able to build up a very good legal practice in the Supreme Court and other High Courts.

His death is personal loss to me and I pay my respectful homage to Justice Bhachawat and on behalf of the 'Indian Federation of Working Journalists' (IFWJ). I believe that a Kaivalya gyani like him will certainly attain Moksha (salvation).


Parmanand Pandey
Secretary General-IFWJ 



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मजीठिया: इंडियन एक्सप्रेस, फ्री प्रेस, मुंबई मराठी पत्रकार संघ और प्रेस क्लब को मिली है सरकारी जमीन

आरटीआई से हुआ खुलासा

अपने कर्मचारियों के लिये भले ही अखबार मालिकों को मजिठिया वेज बोर्ड के अनुसार देने के लिये वेतन का पैसा ना हो मगर सरकार से सस्ते दर पर  जमीन पाने में कहीं भी ये अखबार मालिक कम नहीं हैं। यही नहीं जस्टिस मजिठिया वेज बोर्ड मामले में जिन पत्रकार संगठनों को खुलकर सामने आना चाहिये उनके पदाधिकारी भी चुप हैं क्योंकि पत्रकार संगठनों को और प्रेस क्लब को भी सरकार की तरफ से सस्ते दर पर जमीन दी गयी है। यह खुलासा किया है मुंबई के निर्भीक पत्रकार और आर टी आई एक्सपर्ट शशिकांत सिंह ने। शशिकांत सिंह ने आर टी आई के जरिये पहले यह पता लगाने का प्रयास किया कि महाराष्ट सरकार ने किस किस अखबार प्रबंधन कंपनियों को सरकारी दर पर जमीन दी है तो पता चला कि सभी दस्तावेज मंत्रालय में कुछ साल पहले लगी आग में जल गया है। इसलिये सूचना नहीं दी जा सकती है। उसके बाद शशिकांत सिंह ने जिलाधिकारी और जिलादंडाधिकारी,  मुंबई शहर जिला से आरटी आई डालकर यह जानकारी मांगी कि किन किन अखबारों को सरकारी जमीन सस्ते दर पर दी गयी है। इसमें पहले चरण में चार नाम सामने आये हैं जिसमें पहला नाम है इंडियन एक्सप्रेसे न्यूज पेपर्स बांबे लिमिटेड मुंबई और दुसरा नाम सामने आया है फ्री प्रेस जनरल इस्टेट प्राईवेट लिमिटेड मुंबई,  इनके अलावा मुंबई मराठी पत्रकार संघ और प्रेस क्लब मुंबई को भी सरकारी जमीन दी गयी है। यह जानकारी जिलाधिकारी और जिलादंडाधिकारी, मुंबई शहर जिला के जनमाहिती अधिकारी ने देते हुये लिखा है कि उनके पास जिस समय जमीन आवंटित की गयी उस समय की इन चार संस्थाओं की कर्मचारियों की सूचि नहीं है।

यानि सरकारी रिकार्ड बता रहा है कि इंडियन एक्सप्रेस और फ्री प्रेस ने सस्ते दर पर सरकार से जमीन ली है। शशिकांत सिंह ने स्पष्ट कहा है कि करोड़ो रुपये की ये जमीन निश्चित ही सरकार से कुछ हजार या लाख रुपये में ली गयी होगी । और वे इन जमीनों का आवंटन  रद्द कराने के लिये एड़ी चोटी का जोर लगा देंगे। इसके लिये भले उन्हे सुप्रीमकोर्ट तक एक बार फिर जाना रहेगा वे जायेंगे। मगर पत्रकारों  के लिये मजिठिया वेज बोर्ड की सिफारिश लागू ना करने वाले इन अखबार मालिकों और मुंबई मराठी पत्रकार संघ तथा प्रेस क्लब को सच्चाई सामने लायेंगे। साथ ही वे मुंबई के कई और अखबार मालिकों द्वारा हथियाये गये सरकारी दर पर सस्ती जमीन का पुरा कच्चा चिटठा एक एक कर लोगो के सामने लायेंगे।

आपको बता दें कि इंडियन एक्सप्रेस ने पिछले दिनों रामनाथ गोयनका पत्रकारिता पुरस्कार वितरित किया था जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मुख्य अतिथि थे।   



[शशिकांत सिंह]
पत्रकार और आर टी आई एक्सपर्ट
9322411335



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