Friday 20 November 2020

‘‘जनरूचिकारी नहीं जनहित वाली हो पत्रकारिता’’


बाबूराव विष्णु पराड़कर की जयंती पर ‘‘आज की पत्रकारिता’’ गोष्ठी का आयोजन

वाराणसी, 20 नवम्बर। बाबूराव विष्णु पराड़कर जी की जयंती पर आज पराड़कर स्मृति भवन में ‘‘आज की पत्रकारिता’’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में वक्ताओं ने पत्रकारिता के गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त करते हुये कहा कि पत्रकारों को जनरूचिकारी नहीं बल्कि जनहितकारी समाचारों पर जोर देना चाहिए। 

संगोष्ठी के मुख्यअतिथि व जयप्रकाश नारायण विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो॰ हरिकेश सिंह ने कहा कि आज की पत्रकारिता संकट के दौर से गुजर रही है। एक समय था जब पत्रकारिता एक साधना थी। लेकिन खबरों को सबसे पहले परोसने की होड़ में यह साधना भंग हो रही है। नतीजा है कि सत्यता की परख किये बगैर खबरें लाॅंच कर दी जाती है। जिससे मीडिया की विश्वसनियता घटती जा रही है। प्रो॰ सिंह ने कहा कि पराड़कर जयंती पर सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम बाबूराव विष्णु पराड़कर की प्रतिमा से अपनी प्रतिभा और उनके चित्र से अपना चित्त सवारें। 

संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जन सम्प्रेषण विभाग के प्रो॰ अनुराग दवे ने कहा कि जो लोग यह कहते हैं कि पराड़कर जी के दौर और आज के दौर में बहुत अंतर है, तो इससे मैं सहमत नहीं हूं। पराड़कर जी के दौर में भी चुनौतियां थीं और आज भी हैं। उस दौर में भी सत्ता की खामी को उजागर करना पत्रकारों का धर्म था और आज भी है। यह हमें सोचना होगा कि क्या आज के पत्रकार इस धर्म को वास्तव में निभा पा रहे हैं या नहीं। उन्होंने कहा कि लोग मिशन और प्रोफेशन की बात करते हैं। यह सच है कि आज की पत्रकारिता मिशन नहीं प्रोफेशन हो चुकी है। आज के पत्रकार इस प्रोफेशन को आजीविका के लिए तो अपनाते हैं लेकिन वह अपने दायित्वों को भूल जाते हैं। पराड़कर जी को आज लोग इस लिए भी याद करते हैं कि तमाम संकटों के बावजूद वे अपने पत्रकारिता धर्म और दायित्वों से विमुख नहीं हुए।

महामना मदन मोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान (काशी विद्यापीठ) के निदेशक प्रो॰ ओम प्रकाश सिंह ने आज के दौर की पत्रकारिता पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि मीडिया ने मनुष्य के अति करीब जाकर देखना कम कर दिया है। यही आज के दौर की पत्रकारिता की सबसे बड़ी चुनौति है। हमें यह भी देखना होगा की पराड़कर जी के दौर में किस तरह के लोग पत्रकारिता में थे और आज के दौर में कैसे-कैसे लोग पत्रकारिता में आ चुके हैं। इस कमी का तो खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा। जरूरत यह है कि पत्रकार सामाजिक सरोकारों से जुड़ी पत्रकारिता करे, यही संकट का समाधान है। संगोष्ठी में काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष श्री केडीएन राय, वरिष्ठ पत्रकार सुरेश प्रताप समेत अन्य लोगों ने भी विचार व्यक्त किये। संगोष्ठी संचालन प्रदीप कुमार ने व धन्यवाद ज्ञापित काशी पत्रकार संघ के अध्यक्ष श्री राजनाथ तिवारी ने किया। प्रारम्भ में अतिथियों का स्वागत संघ के महामंत्री मनोज श्रीवास्तव ने किया। अंत में अतिथियों को स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। संगोष्ठी में संघ के पूर्व अध्यक्ष सुभाषचन्द्र सिंह, पूर्व महामंत्री डा॰ अत्रि भारद्वाज, वाराणसी प्रेस क्लब के मंत्री पंकज त्रिपाठी, कोषाध्यक्ष शंकर चतुर्वेदी, राजेन्द्र यादव, आनन्द मौर्य, डा॰ नागेन्द्र पाठक, वरिष्ठ पत्रकार गोपेश पाण्डेय, आर संजय, जयनारायण, उमेश गुप्ता,  डा॰ जितेन्द्रनाथ मिश्र, प्रो॰ विश्वासचन्द्र श्रीवास्तव समेत काफी संख्या में लोग उपस्थित रहे।


मनोज श्रीवास्तव

महामंत्री

देश के 269,556 अखबारों के टाइटल निरस्त, 804 के विज्ञापन बंद


नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने 269,556 अखबारों के टाईटल निरस्त कर दिए हैं। साथ ही 804 अखबारों को डीएवीपी की सूची से बाहर कर दिया गया है। इतना ही नहीं पूर्व में गड़बड़ियां करके जिन अपात्र अखबारों और मैग्जीनों ने सरकारी विज्ञापन डकारे थे, उनकी जांच के निर्देश भी जारी कर दिए गए हैं। जांच के बाद रिकवरी और कानूनी कार्रवाई अमल में लाई जा सकती है। इस फैसले के चलते कुक्‍करमुत्‍ते की तरह फैल कर सरकारी विज्ञापनों को फर्जी तरीके से डकारने वाले अखबार माफिया में हड़कंप मच गया है। वहीं ऐसे अखबारों ने चैन की सांस ली है, जो इनके चलते विज्ञापनों की भारी भरकम राशि से महरुम हो गए थे।  


प्राप्‍त जानकारी के अनुसार मोदी सरकार के आदेशों के बाद समाचार पत्रों के पंजीयक के कार्यालय(आरएनआई) और विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय(डीएवीपी) इस संबंध में कड़ी कार्रवाई करने को सक्रिय हो गए हैं। इसके तहत समाचार पत्र के संचालन में नियमों के उल्लंघन पर आरएनआई समाचार पत्र के टाईटल पर रोक लगा रहा है, तो वहीं गड़बड़ियां मिलने पर डीएवीपी विज्ञापन देने पर प्रतिबंध लगा रहा है।


आरएनआई समाचार पत्रों के टाइटल की समीक्षा कर रहा है और विसंगतियां मिलने पर प्रथम चरण में प्रिवेंशन ऑफ प्रापर यूज एक्ट 1950 के तहत देश के 269,556 समाचार पत्रों के टाइटल निरस्त कर दिए गए हैं। इसमें सबसे ज्यादा महाराष्ट्र के 59703 अखबार-मैग्जीन के टाइटल निरस्‍त किए गए हैं। इसके बाद उत्‍तर प्रदेश का आंकड़ा है, यहां के 36822 अखबार-मैग्जीन के टाइटल निरस्‍त किए गए हैं। वहीं बिहार के 4796, उत्तराखंड के 1860, गुजरात के 11970, हरियाणा के 5613, हिमाचल प्रदेश के 1055, छत्तीसगढ़ के 2249, झारखंड के 478, कर्नाटक के 23931, केरल के 15754, गोआ के 655, मध्य प्रदेश के 21371, मणिपुर के 790, मेघालय के 173, मिजोरम के 872, नागालैंड के 49, उड़ीसा के 7649, पंजाब के 7457, चंडीगढ़ के 1560, राजस्थान के 12591, सिक्किम के 108, तमिलनाडु के 16001, त्रिपुरा के 230, पश्चिम बंगाल के 16579, अरुणाचल प्रदेश के 52, असम के 1854,  लक्षद्वीप के 6, दिल्ली के 3170 और पुडुचेरी के 523 टाइटिल निरस्त किए गए हैं।

Monday 16 November 2020

महाराष्ट्र में वाचमैनों को लोकल ट्रेन में जाने की इजाजत लेकिन मीडियाकर्मियों को नहीं


file photo source: social media

महाराष्ट्र में मीडियाकर्मियों को लोकल ट्रेन में जाने की इजाजत नहीं है। लोकल ट्रेन में सिर्फ उन्हीं पत्रकारों को यात्रा की इजाजत है जो मंत्रालय से मान्यता प्राप्त हैं। अब जाहिर सी बात है कि मान्यता ज्यादात्तर उन्ही पत्रकारों को मिलता है जो पोलिटिकल बिट कवर करते हैं। जिनकी संख्या नाम मात्र है। मगर महाराष्ट्र में उन पत्रकारों और मीडियाकर्मियों की संख्या ज्यादा है जो क्राइम बीट, इंटरटेनमेंट बीट और सोशल तथा अन्य बीट को कवर करते हैं। इन्हें लोकल ट्रेन में यात्रा की इजाजत नहीं है। यहां तक कि जो रेलवे बीट को कवर करते हैं खुद उन्हें भी लोकल ट्रेन में जाने की इजाजत नहीं है। 

न्यूज़ पेपर प्रिंटिंग, इलेक्ट्रॉनिक टीवी और वेब न्यूज़ के मीडियाकर्मियों और इनसे जुड़े ज्यादात्तर पत्रकारों को लोकल ट्रेन में यात्रा की इजाजत नहीं है। लोकल ट्रेन में वाचमैनों को यूनिफार्म पहनकर यात्रा की इजाजत है। वाचमैनों को लोकल में यात्रा के लिए आईकार्ड दिखाकर सीजन टिकट या नार्मल टिकट भी आसानी से मिल जा रहा है लेकिन बिना मान्यता प्राप्त पत्रकारों को लोकल का टिकट देने की जगह काउंटर पर बैठने वालों से जलालत झेलनी पड़ रही है। वाचमैनों के अलावा बैंकों के कर्मचारी और बैंकों के बाहर खड़े होकर क्रेडिट कार्ड बेचने वालों को भी लोकल में जाने की इजाजत है। सरकारी कर्मचारी, स्कूल कर्मचारी, मनपा कर्मचारी, अस्पताल कर्मचारी सबको लोकल ट्रेन में जाने की इजाजत है और इन्हें आवश्यक सेवा में माना जाता है लेकिन महाराष्ट्र के मीडियाकर्मियों को आवश्यक सेवा में शामिल नहीं माना जा रहा है। 

अचरज की बात यह है कि महाराष्ट्र में दर्जनों पत्रकार संगठन हैं लेकिन ज्यादात्तर इस मामले पर चुप हैं। एक दो संगठन ने इस मुद्दे पर लेटरबाजी और ट्वीट भी राज्य सरकार और रेलमंत्री को किया लेकिन न राज्य सरकार उनकी सुन रही है न रेल मंत्रालय। रेलवे के ज्यादात्तर पीआरओ की हालत है कि रेलवे के किसी बड़े अधिकारी की बीबी किसी कार्यक्रम का फीता काटेंगी तो वो खबर भेज देंगे लेकिन सभी मीडियाकर्मियों को लोकल ट्रेन में जाने की इजाजत कब मिलेगी इसपर वे कहते हैं राज्य सरकार को यह तय करना है कि सभी मीडियाकर्मियों को लोकल में कब से यात्रा की अनुमति मिलेगी। लोकल में यात्रा की अनुमति न मिलने से अधिकांश मीडियाकर्मी बेचारे सैकड़ो रुपये और 5 से 6 घंटे बर्बाद कर कार्यालय जाने को मजबूर होते हैं। राज्य सरकार और रेल मंत्रालय से निवेदन है कि इस ओर जल्द ध्यान दें।


शशिकांत सिंह

वॉइस प्रेसिडेंट

न्यूज़ पेपर एम्प्लॉयज यूनियन ऑफ इंडिया

9322411335

Thursday 5 November 2020

पंचतत्व में विलीन हुए कर्मचारियों के मसीहा, मीडियाकर्मियों में शोक की लहर


नई दिल्ली, 5 नवंबर। कर्मचारियों के मसीहा हरीश शर्मा आज पंचतत्व में विलीन हो गए। लगभग 80 वर्षीय हरीश शर्मा का कल घर पर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। उनके निधन से मजीठिया का केस लड़ रहे मीडियाकर्मियों में शोक की लहर है। 

आज सुबह उनका अंतिम संस्कार कड़कड़डूमा अदालत के पास स्थित ज्वाला नगर के श्मशान घाट पर किया गया। बेटे के कनाड़ा से नहीं पहुंच पाने के कारण उनकी चित्ता को नजदीक रिश्तेदार ने अग्नि दी। 

हरीश शर्मा कर्मचारियों के बहुत बडे़ शुभचिंतक थे। वे उस बात का खुलकर विरोध करते थे, जो कर्मचारियों के खिलाफ होती थीं। उन्होंने बैंक से सेवानिवृत्त होने के बाद अपने पेशे को पूरी तरह से कर्मचारियों को समर्पित कर दिया था। मजीठिया आंदोलन में शामिल पत्रकार पहली बार उनसे 2016 में मिले और उनके कायल हो गए। उसके बाद हरीश शर्मा ने वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट का अध्ययन करने के बाद उसकी बारिकियों से मीडियाकर्मियों को अवगत करवाना शुरू किया। हरीश शर्मा की इस कर्मठता और ईमानदारी से उनके पास देखते ही देखते लगभग 250 मीडियाकर्मियों के मामले आ गए। उनका इस नश्वर संसार से जाना कर्मचारियों विशेषतौर मीडियाकर्मियों के लिए बहुत बड़ा सदमा है।


Wednesday 4 November 2020

नहीं रहे कर्मचारियों के मसीहा एडवोकेट हरीश शर्मा



नई दिल्ली, 4 नवंबर। कर्मचारियों के मसीहा हरीश शर्मा का आज दिल का दौरा पड़ने से यहां निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार कल सुबह किया जाएगा। 

हरीश शर्मा को आज दिल का दौरा पड़़ने के बाद अस्पताल ले जाया गया। वहां पर डाक्टरों ने उन्हें म़ृत घोषित कर दिया। हरीश शर्मा के बेटा और बेटी इस समय विदेश में होने के कारण उनके अंतिम संस्कार के वक्त मौजूद नहीं रह पाएंगे। उनकी बड़ी बेटी का पहले ही निधन हो चुका है, जो कि उनके दिल के काफी करीब थी। 

हरीश शर्मा बैंक में नौकरी करते थे। तब से वे कर्मचारी यूनियन से जुड़े रहे और प्रबंधन की हर गलत नीति का पुरजोर विरोध करते रहे। इस दौरान उन्होंने वकालत की और इस पेशे से जुड़ गए। कई सरकारी कर्मचारियों के मामलों में वे वकील रहे। उन्होंने अपनी काबलियत से अपना एक ही अलग मुकाम मनाया। जिस केस को वे हाथ में लेते थे उसका वह गहनता से अध्ययन कर उसकी तैयारी करते थे। वर्ष 2016 में उनके पास मजीठिया के मामले आने शुरू हुए और उन्होंने पूरी शिद्दत से उनपर काम किया। वे जल्द ही मजीठिया मामलों के पूरे जानकार बन गए और उनके पास दिल्ली से लेकर मुंबई तक के मजीठिया केस आने लगे। वे मजीठिया केस से जुड़े हर बारीक से बारीक पहलुओं को खोज कर कर्मचारियो को जानकारी दिया करते थे। उनका निधन मजीठिया केस लड़ रहे साथियों के लिए अपूरणीय क्षति है। भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।

-राजेश निरंजन

Tuesday 3 November 2020

सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस देश की सभी अदालतों के लिए बाध्यकारी

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (29.10.2010) को विशेष अनुमति याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि इस देश की सभी अदालतें शीर्ष अदालत के फैसले से बंधी हुई हैं।

न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन के नेतृत्व वाली पीठ भूमि अधिग्रहण मामले में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर एसएलपी (SLP) पर विचार कर रही थी।

पीठ के समक्ष यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता को यह लगता है कि कार्यकारी अदालत ने गुरप्रीत सिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2006) 8 एससीसी 457 में दिए गए उच्चतम न्यायालय के फैसले का पालन नहीं किया। 

इस संदर्भ में पीठ ने कहा, "हम यह स्पष्ट करते हैं कि यह आशंका पूरी तरह से बिना किसी आधार के है और इस देश के सभी न्यायालय, जिनमें कार्यकारी न्यायालय भी शामिल हैं, सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से बंधे हैं।"

इस प्रकार, पीठ ने विशेष अनुमति याचिका का निपटारा किया।

गुरप्रीत सिंह मामले में संविधान पीठ ने कहा था कि दावेदार सोलटियम और अतिरिक्त बाजार मूल्य पर ब्याज पाने का हकदार होगा यदि संदर्भ न्यायालय या अपीलीय अदालत का अवॉर्ड विशेष रूप से सोलाटियम और अतिरिक्त बाजार मूल्य पर ब्याज के प्रश्न का उल्लेख नहीं करता है या जहां दावे को या तो स्पष्ट रूप से या निहित रूप से अस्वीकार नहीं किया गया था। 

याचिकाकर्ता आशंका इसलिए थी व्यक्त की गई थी क्योंकि निर्णय के पैराग्राफ 27 में उच्च न्यायालय ने कहा था कि सरकार द्वारा दायर रिट याचिका अनुमति देने योग्य है, हालांकि इसे केवल आंशिक रूप से अनुमति दी गई थी।

न्यायमूर्ति नरीमन के नेतृत्व वाली पीठ ने हाल ही में एक अन्य आदेश में इसी तरह की टिप्पणी की थी।

उन्होंने कहा था कि "हमें देश भर के मजिस्ट्रेटों को याद दिलाना चाहिए कि भारत के संविधान के तहत हमारी पिरामिड संरचना में सर्वोच्च न्यायालय शीर्ष पर है और फिर उच्च न्यायालय, हालांकि प्रशासनिक रूप से अधीनस्थ नहीं हैं, निश्चित रूप से न्यायिक रूप से अधीनस्थ हैं।"

संविधान का अनुच्छेद 141 कहता है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित कानून भारत के क्षेत्र के भीतर सभी अदालतों के लिए बाध्यकारी होगा।


नए श्रम कानूनों पर रायशुमारी शुरू, आपत्तियां और सुझाव 30 दिन के भीतर दें


photo source: social media

नई दिल्ली। केंद्र सराकर ने नए श्रम कानूनों पर रायशुमारी का काम शुरू कर दिया है। श्रम मंत्रालय ने औद्योगिक संबंध संहिता 2020 के ड्राफ्ट नियम जारी करते हुए इससे जुड़े कानूनों पर आपत्तियां और सुझाव 30 दिन के भीतर मांगे है। सरकार का लक्ष्य है कि अगले साल मार्च तक देश भर में नए श्रम कानून लागू कर दिए जाएं। ड्राफ्ट नियम में प्रावधान किया गया है कि यदि नियोक्ता अपने ऐसे कर्मचारी की छंटनी करना चाहता है, जो एक साल तक निरंतर सेवा दे चुका है तो उसे इसके बारे में केंद्र सरकार और संबंधित केंद्रीय उप मुख्य श्रमायुक्त को ई-मेल या फिर पंजीकृत या स्पीडपोस्ट से इसका नोटिस देना होगा।


छंटनी किए गए कामगार को देना होगा मौका

वहीं यह भी प्रावधान किया गया है कि अगर किसी औद्योगिक प्रतिष्ठान में कोई वैकेंसी होती है और उसे भरने के प्रस्ताव से पहले एक साल के भीतर छंटनी किए गए कामगार मौजूद हों तो उन्हें ई-मेल या पोस्ट के जरिए कम से कम 10 दिन पहले जानकारी देते हुए नौकरी के लिए वरीयता देनी होगी। साथ ही सरकार ने नए नियमों में ऐसी व्यवस्था का भी प्रावधान रखा है कि छंटनी का शिकार हुए कर्मचारी के स्किल डेलवपमेंट की भी व्यवस्था हो सके। नियोक्ताओं के लिए ये जरूरी होगा कि वो छंटनी किए गए कर्मचारी के 15 दिन के वेतन के बराबर की राशि केंद्र सरकार के बताए गए खाते में ट्रांसफर करेगा। उस रकम को सरकार कर्मचारी के खाते में ट्रांसफर करेगी जिसका उपयोग कर्मचारी पुनर्कौशल के लिए कर सकेगा।


छंटनी की संख्या की पूरी जानकारी सरकार के साथ साझा करनी होगी

यह भी निर्देश दिए गए हैं कि कंपनियों को छंटनी की संख्या की पूरी जानकारी सरकार के साथ साझा करनी होगी। ताकि इस व्यवस्था में पारदर्शिता बनी रह सके। यही नहीं कंपनियों को इन सभी चीजों की जानकारी की एक एक प्रति श्रम ब्यूरो के महानिदेशक के साथ भी साझा करनी होंगी ताकि देश में नौकरियों के आंकड़ों की जानकारी इकट्ठा रखी जा सके। 30 दिनों के बाद मिले सुझावों के अनुसार जरूरी बदलावों के बाद इसे कानूनी रूप देने का काम शुरू कर दिया जाएगा। साथ ही वेज कोड को लेकर नोटिफिकेशन ड्राफ्ट 15 दिनों के भीतर जारी कर दिया जाएगा।


(source: livehindustan.com)

एक कर्मचारी को ट्रेनी का दर्जा देकर, उसे ग्रेच्युटी एक्ट के लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता हैः केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि एक नियोक्‍ता, एक कर्मचारी को ट्रेनी का दर्जा देकर, जबकि उससे नियमित कर्मचारी जैसे काम लेते हुए, उसे ग्रेच्युटी एक्ट के लाभ से वंचित नहीं कर सकता है। 

जस्टिस एएम बदर ने कहा कि एक ट्रेनी को ग्रेच्युटी एक्ट के तहत 'कर्मचारी' शब्द की परिभाषा से बाहर नहीं किया गया है, बल्‍कि केवल एक 'अप्रेंटिस' को बाहर रखा गया है। 

अदालत ने आईआरईएल (इंडिया) लिमिटेड/ नियोक्ता की रिट याचिका रद्द करते हुए उक्त टिप्पणियां की हैं। याचिका के पेमेंट ऑफ ग्रेच्युटी एक्ट, 1972 के तहत नियंत्रण प्राध‌िकारी द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती गई दी थी।

यह दलील दी गई थी कि ट्रेनी या शिक्षार्थी वास्तव में अप्रेंटिस है और इसलिए, ग्रेच्युटी एक्ट की धारा 2 (ई) के तहत परिभाषित एक कर्मचारी नहीं है। मामला यह था कि एक कर्मचारी के पास दो साल की शुरुआती अवधि के लिए, जब उसे ट्रेनी के रूप में नियुक्त किया जाता है, जो अप्रेंटिस की नियुक्ति के बराबर है, ग्रेच्युटी प्राप्त करने का अधिकार नहीं है। 

नियोक्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया था, जिसमें कहा गया था कि ग्रेच्युटी एक्ट के तहत किसी भी वैधानिक प्रावधान के अभाव में, जिसे सेवा में लागू किया जा सकता है, एक ट्रेनी ग्रेच्युटी का हकदार नहीं हो सकता है।

ज‌स्टिस बदर ने इस दृष्टिकोण से असहमति जताई और कहा कि एक ट्रेनी को ग्रेच्युटी एक्ट के तहत 'कर्मचारी' शब्द की परिभाषा से बाहर नहीं रखा गया है, बल्‍कि एक 'अप्रेंटिस' को बाहर रखा गया है। 

अदालत ने कहा, "ट्रेनी तथाकथित प्रशिक्षण की अव‌ध‌ि में विभिन्न प्रकार के कर्तव्यों का निर्वहन करता है और जिसे विशेष रूप से नामित व्यापार में प्रतिनियुक्त नहीं किया गया हैं, उसे अप्रेंटिस या शिक्षार्थी नहीं कहा जा सकता है। कल्याणकारी कानून के लाभकारी प्रावधानों की व्याख्या करते हुए पद का नामकरण अधिक परिणामदायक नहीं होता है।

ग्रेच्युटी एक्ट निस्संदेह एक कल्याणकारी कानून है, जो केवल अप्रेंटिस को प्रशिक्षण अवधि में ग्रेच्युटी प्राप्त करने के लाभ से रोक देता है। हालांकि, एक कर्मचारी को ट्रेनी के रूप में नामित करना, उससे नियमित काम लेना और फिर उसे ग्रेच्युटी एक्ट के लाभ से इस बहाने से वंचित करना कि एसा कर्मचारी ट्रेनी है, निश्‍चित रूप से कल्याणकारी कानून के उद्देश्य को पराजित करेगा।" 

अदालत ने उड़ीसा हाईकोर्ट द्वारा अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक, उड़ीसा खनन निगम लिमिटेड बनाम नियंत्रण प्राधिकरण, ग्रेच्युटी एक्ट भुगतान के संबंध में व्यक्त किए गए दृष्टिकोण से भी सहमति व्यक्त की कि रोजगार के अनुबंध के तहत नियोजित एक ट्रेनी अप्रेंटिस एक्ट के तहत अप्रेंटिस नहीं है, जब तक कि वह अप्रेंटिसशिप के अनुबंध के अनुसरण में एक विशेष ट्रेड में अप्रेंटिस ट्रेनिंग से गुजर रहा हो।

अदालत ने कहा कि कर्मचारी इस प्रकार 16.07.1991 से 15.07.1993 तक की अवधि के लिए ग्रेच्युटी का हकदार था, जैसा कि उन्होंने साबित किया है कि, उक्त अवधि के दौरान, वह किसी भी प्रशिक्षण से हीं गुजर नहीं रहे थे और इस तरह से एक अप्रेंटिस नहीं थे ताकि उन्हें पेमेंट ऑफ ग्रेच्युटी एक्ट, 1972 के लाभकारी कानून से बाहर किया जा सके। 

केस: आआरईएल (इं‌डिया) ‌लिमिटेड बनाम पीएन राघव पनिक्कर [WP (C) .No.2254 of 2020]

कोरम: जस्टिस एएम बदर

प्रतिनिधित्व: एडवोकेट एम गोपीकृष्‍णन नांबियर, एडवोकेट सीएसअजीत प्रकाश


(source: https://hindi.livelaw.in/)

मजीठिया: राष्ट्रीय सहारा बनारस के मीडियाकर्मी को मिली जीत


वाराणसी में मजीठिया वेज बोर्ड मामले की लड़ाई लड़ रहे काशी पत्रकार संघ व समाचारपत्र कर्मचारी यूनियन को आज एक और सफलता हासिल हुई। मजीठिया मामले में राष्ट्रीय सहारा के खिलाफ बनारस में विनोद शर्मा ने केस जीत लिया है। वाराणसी श्रम न्यायालय ने विनोद शर्मा के पक्ष में फैसला सुनाते हुए राष्ट्रीय सहारा प्रबंधन को आदेश दिया है कि वह विनोद शर्मा को मजीठिया वेतन आयोग की संस्तुतियो के अनुरूप बकाये का भुगतान करे।

राष्ट्रीय सहारा हिन्दी दैनिक में विनोद शर्मा उप सम्पादक पद पर स्थायी रूप से कार्य कर रहे थे। मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के अनुरूप वेतन भुगतान की उनके लगातार मांग करने पर अखबार प्रबंधन टालमटोल करता रहा। बाद में सहारा प्रबंधन ने विनोद शर्मा की सेवा अवैधानिक रूप से समाप्त कर दी।

इस बीच मजीठिया मामले की लड़ाई लड़ रहे काशी पत्रकार संघ ने समाचारपत्र कर्मचारी यूनियन के सहयोग से स्थानीय श्रम न्यायालय में वाद दाखिल किया। वरिष्ठ अधिवक्ता अजय मुखर्जी व उनके सहयोगी आशीष टण्डन की मजबूत पैरवी का नतीजा रहा कि श्रम न्यायालय ने फैसला विनोद शर्मा के पक्ष में सुनाया।

श्रम न्यायालय के पीठासीन अधिकारी अमेरिका सिंह ने अपने फैसले में विनोद शर्मा के बकाये का भुगतान मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के अनुसार करने का आदेश दिया है। साथ ही यह भी कहा है कि सेवायोजक के ऐसा न करने पर अभिनिर्णय की तिथी से श्रमिक सम्पूर्ण वेतन पर सात प्रतिशत वार्षिक व्याज पाने का अधिकारी होगा।

काशी पत्रकार संघ अध्यक्ष राजनाथ तिवारी, महामंत्री मनोज श्रीवास्तव, पूर्व अध्यक्ष प्रदीप कुमार, संजय अस्थाना, विकास पाठक, योगेश गुप्त के साथ ही समाचारपत्र कर्मचारी यूनियन के मंत्री अजय मुखर्जी ने इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा है कि इसके लिए पूरी कार्यसमिति बधाई के पात्र है, जिसकी एकजुटता और संघर्ष का परिणाम है कि लगातार सार्थक नतीजे आ रहे है।


शशिकांत सिंह

पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी

9322411335

वेजबोर्ड न देने वाले मालिकों को पत्रकार ने कोर्ट में घसीटा, सम्मन जारी




नई दिल्ली। खुद की तिजोरी भरने वाले मीडिया मालिकों को अपने अधीन काम करने वाले कर्मियों का तनिक खयाल नहीं रहता। ये सरकारी नियमों के तहत मिलने वाले वेतन व अन्य देय को भी देने में कतराते हैं। ऐसे ही एक मामले में एक पत्रकार ने अपने मालिकों को कोर्ट में तलब कराया है। कोर्ट ने सम्मन जारी करते हुए सबको तलब किया है।

मामला श्रमजीवी पत्रकार चन्द्र प्रकाश पाण्डेय का है। ये 1 जनवरी 2006 से लेकर 30 जून 2016 तक एनएनएस ऑनलाईन प्राइवेट लिमिटेड नामक मीडिया कंपनी में न्यूज कोआर्डीनेटर के पद पर कार्यरत रहे।

पत्रकार चन्द्र प्रकाश पाण्डेय ने मजीठिया वेतनमान न मिलने की शिकायत श्रम विभाग में की। उनका आरोप है कि जबसे वे एनएनएस ऑनलाईन प्रा लि में न्यूज कोआर्डीनेटर के पद पर कार्य कर रहे हैं, तबसे उनको कंपनी ने मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार कोई लाभ नहीं दिया।

श्रमजीवी पत्रकार चन्द्र प्रकाश पाण्डेय की शिकायत पर श्रम अधिकारी ए के बिरूली एवं इंस्पेक्टर मनीश कुमार ठाकुर ने एनएनएस आनलाइन मीडिया प्रबंधन को शोकॉज नोटिस जारी कर दिया। इस शोकाज नोटिस में मीडिया प्रबंधन का पक्ष मांगा गया। साथ ही जरूरी दस्तावेज के साथ उपस्थित होने का निर्देश दिया गया।

प्रबंधन ठेंगा दिखाते हुए किसी सुनवाई पर उपस्थित नहीं हुआ। न ही कोई प्रत्युत्तर दिया। इस तरह एनएनएस आनलाइन मीडिया प्रबंधन ने श्रम विभाग, इसके अधिकारियों और दिल्ली सरकार की अवहेलना की।

श्रम इंस्पेक्टर मनीष कुमार ठाकुर ने जवाब न देने वाले मीडिया प्रबंधन के खिलाफ कोर्ट में आपराधिक शिकायत प्रस्तुत की। न्यायालय ने दस्तावेजों को देखने के बाद आरोपी नंबर एक राजेश गुप्ता (डायरेक्टर एवं मालिक) एवं पांच अन्य आरोपियों के खिलाफ सम्मन जारी किया है।

(source: bhadas4media.com)