Wednesday 29 July 2020

साइबर क्राइम: अदालती चाबुक से बिलिबलाया भास्कर



हाई कोर्ट के आदेश की कॉपी

दैनिक भास्केर रूपी ऊंट अंतत: कानून-कायदे के विशालकाय पर्वत के नीचे आ ही गया है। इस अखबार के कर्ता-धर्ता, जो खुद को पुलिस, प्रशासन, आला हुकमरानों आदि को अपनी जेबी वस्तु समझते थे, अब कानून की गहरी मार से बेचैन हो गए हैं। सूझ नहीं रहा है िक कानूनी कोड़े से खुद को कैसे बचाएं। हां, ठीक समझे आप, मामला सुधीर श्रीवास्तव का ही है। वो सुधीर श्रीवास्तव, जिनका फर्जी इस्तीफा दैनिक भास्क।र चंडीगढ़ एडीशन के एचआर एंड एडिमन विभाग के हेड मनोज मेहता और उनके मातहतों ने, श्रीवास्तव के ई-मेल से, श्रीवास्तव की अनुपस्थिति में डाल दिया था, अब पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के लीगल हंटर की मार से बिलिबला रहे हैं। हाई कोर्ट ने चंडीगढ़ के वरिष्ठ पुिलस अधीक्षक को आदेश दिया है कि श्रीवास्तव के साथ जो भी हुआ है उसकी तफसील से जांच करके आगामी 21 अगस्त को एिफडेविट के साथ उसके ( हाई कोर्ट ) समक्ष रिपोर्ट पेश करें। इस बाबत समन मनोज मेहता को भी तामील करवाया गया है। 

मेहता साहब बिलख रहे हैं, तड़प रहे हैं, पर उनका खैर मकदम पूछने वाला कोई नहीं दिख रहा- मिल रहा। चंडीगढ़ की साइबर पुलिस ने मेहता को तलब कर लिया है। 

28 जुलाई 2020 के अपने आदेश में हाई कोर्ट ने जो कहा है उसका जरूरी अंश इस प्रकार है :--- 

CRM M-19383 of 2020
    Notice of motion for 21.08.2020
    Senior Superintendent of Police, UT, Chandigarh will file an affidavit regarding the status of investigation in FIR No. 0196, dated 28.09.2019 under Section 66 (C) and 66 (D) of the Information Technology Act, 2000, registered at Police Station West Sector 11, Chandigarh (P-7), by next date of hearing.

दैनिक भास्कर चंडीगढ़ एडीशन के एचआर डिपार्टमेंट के सबसे दानिशमंद- संजीदे- कर्मठ- कुशल कर्मचारी सुधीर श्रीवास्तैव का कसूर महज इतना रहा है कि उन्होंंने अपनी पगार मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुातियों के हिसाब से करवाने के लिए आवाज उठा दी। पहले तो उन्होंंने अपने हाकिमों के समक्ष अपना वेतन बढ़ाने की डिमांड रखी। जब उनकी मांग अनसुनी हो गई तो उन्होंने वर्किंग जर्नलिस्टन एवं नॉन जर्नलिस्टउ एक्टक के दफा 17 का सहारा लेते हुए लेबर कमिश्नर और लेबर कोर्ट का रुख कर लिया। मैनेजमेंट, खासकर एचआर के मुखिया मनोज मेहता को जब पता चला तो उसने अपने मातहतों की मदद से सुधीर की गैर मौजूदगी में उनका (सुधीर का)  ऑफि‍शियल ई-मेल खोलकर उनका इस्तीफा भास्क(र के आला अधिकारियों को भेज दिया। दरअसल सुधीर के सिस्टधम और ऑफि‍शियल मेल का पासवर्ड एक ही है जिसकी जानकारी उनके साथ काम करने वाले सभी लोगों को थी। 

यह साइबर क्राइम 20 जून 2019 को शाम साढ़े 8 बजे सुधीर के आफि‍स का काम समाप्त करके घर जाने के बाद किया गया। अगले दिन 21 जून को सुधीर जब ड़यूटी के लिए भास्कलर पहुंचे तो सिक्यो‍रिटी गार्ड ने उन्हेंल गेट पर यह कह कर रोक लिया कि आपको अंदर जाने की मनाही है। बाद में मनोज मेहता और एक अन्य मैनेजर हरीश कुमार बाहर गेस्ट  रूम में आकर मातमपुर्सी के अंदाज में सुधीर से मिले। दोनों कहने लगे, ‘अरे, तुमने तो इस्तीसफा दे दिया है।‘ इतना सुनते ही सुधीर का माथा ठनका और कहा, ‘मैंने इस्तीलफा कहां दिया है‘, अच्छाे तो तुम लोगों ने मेरा मेल खोलकर इस्तीलफा डाल दिया। ठीक है, कोई बात नहीं। दुखी सुधीर घर चले गए और बाद में पुलिस केस कर दिया। 

इस साइबर क्राइम केस से बचने के लिए मनोज मेहता और उसके संगी साथियों ने अखबारी दबंगई का भरपूर इस्तेमाल किया। उसके इस आपराधिक कार्य में चंडीगढ़ भास्कर के संपादकीय मठाधीशों ने भरपूर साथ दिया। नतीजतन चंडीगढ़ की साइबर पुलिस मामले की जांच करने, सबूत जैसे फुटेज आदि हासिल करने की बजाय आखि‍रकार निष्क्रिय, शांत हो गई। अपने साथ हुई इस ज्यादती, इस अपराध की शिकायत सुधीर ने दैनिक भास्कर के मालिकों सुधीर अग्रवाल, गिरीश अग्रवाल और पवन अग्रवाल सबसे की, लेकिन किसी ने भी इसका संज्ञान नहीं लिया। उल्टे डीबी कॉर्प के एक वाइस प्रेसीडेंट रवि‍ गुप्ता ने उस फुटेज को ही मुख्यालय भोपाल मंगा लिया जिसमें मनोज मेहता और उसके मातहतों के कारनामों के सबूत कैद थे। 

इंसाफ के लिए सुधीर श्रीवास्तव ने पुलिस के छोटे से लेकर बड़े, सभी अधिकारियों के दरवाजे खटखटाये। जब राहत देने, इंसाफ दिलाने की बजाय सारे पुलिसियों ने मुंह फेर लिया तो सुधीर ने अदालत की चौखट पर दस्तक दे दी। अदालत के आदेश के बाद वही पुलिसये हिरण गति‍  से अपनी कार्रवाई में मशगूल हो गए हैं।

-भूपेंद्र प्रतिबद्ध, चंडीगढ़ 


Tuesday 28 July 2020

कभी ख़बर नवीस भी बन जाता है ख़बर...




एक सड़कों में पैदल घूमने वाले एक पत्रकार मृत्यु हो गई। राजेन्द्र सिंह नेगी नामक यह पत्रकार बिजली-पानी-सड़क से जुड़े मुद्दों पर सरकार से सवाल पूछता रहता और rti के मार्फत जानकारी मांगता रहता था। कल भी ऐसे ही किसी मामले में उसकी सुनवाई भी थी (उसकी सोशल मीडिया पर कल की पोस्ट के आधार पर) क्या हुआ होगा! पता नहीं?

जानकर बताते हैं कि कई सालों से वह इसी तरह के सामाजिक मुद्दों पर अकेला ही लड़ रहा था। जिसके लिए उसने देवभूमि-जन-सेवा-ग्रुप नामक संस्था की स्थापना भी की थी। मगर परिवर्तन संसार का नियम है कि तर्ज पर बहुत कुछ बदल गया। जिन लोगों को लंबी लड़ाई का साथी मान कर संस्था से जोड़ा था उनमें से कुछ समय के साथ बदल गए और कुछ बड़े जिन पर भरोसा कर ग्रुप बनाया वो भी लोकसभा-राज्यसभा की बातें कर के ही किनारे हो लिए।

आजकल चल रहे पत्रकारों के संगठनों में से शायद ही वह किसी का सदस्य रहा होगा, इसलिए किसी शोकसभा या मरणोपरांत कोई आर्थिक सहायता की उम्मीद करना बेकार है। आज एक सामूहिक प्रयास की बात भाई जयदीप सकलानी (Aap KA Saklani) के निर्देशन में करने की बात तय हुई है जिसके लिए परसों (गुरुवार) को प्रेस क्लब के प्रांगण में प्रातः 11 बजे एक सभा का आयोजन तय किया गया है। जो लोग इस अभियान से जुड़ना चाहते है उनका हार्दिक स्वागत है।

नेगी जी की कलम से निकला एक वाकया ...

जो दे उसका भी भला, जो ना दे उसका भी भला
लम्बे समय राजधानी की सड़कों पर इधर उधर चलते फिरते नज़र आने वाले नेत्रहीन तोमर जी के बारे में जानने की इच्छा हुई।
विनय नगर से. 3,
ग्वालियर निवासी नरेश तोमर जी जन्मांध हैं और 1998 से लगातार देहरादून आते जाते रहते हैं। भिखारी से हैं, पर हाथ फैलाकर किसी से कभी कुछ नहीं मांगते।
{खूबियां}
-तोमर जी ब्रेल लिपि से 10 वीं पास हैं।
-1983 में हार्मोनियम, बांसुरी और कैसीनो बजाने में निपुण हुवे।
-जिस कार्यक्रम में कला को देख सुनकर दो ढाई हजार तक मिल जायें, जाते हैं। पर कार्यक्रम की सूचना समय से मिलनी चाहिए।
-नोट, सिक्कों को छूकर, बखूबी पहचान लेते हैं।
-सही पता लिखा हो तो, आराम से कहीं भी पहुंच जाते हैं।
{मनपसन्द खाना खाने के शौक़ीन}
-6-7 सादे पराठों संग, तेल मसालों में बनी हुई आलू मेथी की सब्जी।
-आलू मटर गोभी की रसीली सब्जी, पराठे या रोटी संग।
-पुलाव-आलू मटर गोभी व अन्य सब्जी मिलाकर।
-खाने के साथ पीने का पानी।
-हफ्ते में दो बार अरहर की दाल और चावल।
-खाने के साथ अचार, तली/भुनी मिर्च, प्याज वगैरा।
-कभी कहीं भण्डारे में कड़ी चावल बनी हो और पीने के पानी के साथ बैठने का इंतजाम हो, तो ही जाते हैं।
-मंगलवार को जीपी ओ कैंटीन में इसलिए जाते हैं, क्योंकि उस दिन वहां कड़ी चावल और सूखी सब्जी बनती है।
{दिली, इच्छा}
-खाना मिले ना मिले, पर सोने को मिल जाये। सोने का ठिकाना हो तो ढंग के कपड़े भी पहनू और उन्हें धो सकूँ।
-एकादशी से पहले पहले अपने घर पहुँचूँ, तो मनपसन्द का खाना खाऊँ।
-एकादशी से पहले दिन तक चावल बिलकुल नहीं खाते। इसी का उद्द्यपन करवाने को चांदी की ग्यारस बनवाने के रूपये इकट्ठे कर रहे।
-एक लखानी की चप्पल 4 नं की ₹170 वाली लेनी है। जो ₹110 में मिल जायेगी।
-इंदिरा मार्किट में ₹50 की पैंट पसन्द आयी है, जो लेनी है। एक बार धोकर, काम आ जायेगी।
{ठिकाने}
-लाखी टी-स्टाल, राजपुर रोड ,निकट न्यू एम्पायर सिनेमा।
-कांवली रोड, खुड़बुड़ा में गुप्ता जी बर्तन वालों का खाने का ढाबा।
-ब्लाइंड स्कूल राजपुर।
-राजपुर रोड से पलटन बाजार, सड़क में।
{खुन्दक}
-देहरादून की सड़कों में जगह जगह गड्ढे, टूटी फूटी सड़कें।
-इंद्रा अम्मा भोजनालय में गढ़वाली भोजन, हम बाहरियों को क्यों पसन्द आयेगा???
-जी पी ओ में भी रोज रोज एक जैसा खाना पसन्द नहीं।
-भण्डारे में हर जगह एक ही चीज बनती है और पीने के पानी और बैठने का इंतजाम नहीं होता, इसलिए नहीं जाता।
-विक्रम बस चालक सड़क में खड़ा देख, नहीं बिठाते।
बल्कि सामने से और तेज गाड़ी भगा ले जाते हैं।
-ट्रैफिक पुलिस भी चौक चौराहे पार कराने में मदद नहीं करती। कभी कभार ही कोई दिलदार पुलिस वाला मिल जाता है।
-यहां के लोग भी अजीब हैं, अंधे को रास्ता भी नहीं दिखाते।
-रैन बसेरे में रोज ₹5 और सोमवार को ₹10 मांगते हैं।
{तारीफ}
-देहरादून से अच्छा तो ग्वालियर है, जहां ट्रैफिक वाले भी सहारा देते हैं।
-जिस गली से निकलो, जान पहचान वाले बुलाकर मनपसन्द खाना खिलाते हैं।
-जबलपुर में नर्मदा नदी के किनारे, बहुत अच्छा लगता है।
{नेकदिल इंसान, नौ लाखी सिंह चौहान}
शहर की कई चाय की दुकानें वर्षों पुरानी हैं, जहां चाय की चुस्कियां लेते हुवे किसी न किसी बात पर चर्चा करते पत्रकार बन्धु, राजनितिक व अन्य नजर आ जाते हैं। ऐसा ही है, राजपुर रोड स्थित लाखी टी-स्टाल। बात तोमर जी की हो रही है, इसलिए...
तोमर जी को टी-स्टाल की ओर आता देख, लाखी का दिल खुश हो जाता है और दौड़ के सड़क से उन्हें सहारा देकर लाने स्वयं चल देते हैं या अपने बेटे अनमोल को भेजते हैं। फिर तोमर जी को आराम से कुर्सी में बिठाकर चाय खाना पानी वगैरा देकर, खातिरदारी में लग जाते हैं। कभी कभी खुन्दक में तोमर जी बुरा भला भी कह जाते हैं, पर लाखी बिलकुल बुरा नहीं मानते। लाखी मानते हैं कि नर सेवा, नारायण सेवा के बराबर होती है।

[Jansamvad Janta Ki Baat की फेसबुक वॉल से साभार]

Friday 24 July 2020

अमर उजाला में कोरोना का कहर, लखनऊ समेत कई यूनिट चपेट में


अमर उजाला में कोरोना कहर ढाने लगा है। एक एक कर कई यूनिटें इसकी चपेट में आ चुकी हैं। अमर उजाला लखनऊ में तीन मीडियाकर्मी कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। अमर उजाला गोरखपुर में कई मीडियाकर्मियों के कोरोना पॉजिटिव आने के बाद आफिस को सेनेटाइज करने के उद्देश्य से सील कर दिया गया है।

उधर, अमर उजाला नोएडा में एक डीएनई की कोविड19 रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। उनके पिता भी पॉजिटिव हैं। मेरठ में उन्होंने टेस्ट कराया है।

झांसी में कार्यकारी संपादक के साथ दो सीनियर साथी भी कोरोना की गिरफ्त में आ चुके हैं।

लखनऊ में दो सब एडिटर एवं न्यूज़ एडिटर भी कोरोना की गिरफ्त में हैं। एक अन्य को भी कोरोना पॉजिटिव बताया गया है। आफिस में कार्यरत सभी लोगों का टेस्ट कराने का निर्णय लिया गया है। यहां 6 लोगों के संक्रमित होने की आशंका जताई जा रही है। इसीलिए एहतियातन शेष पत्रकार साथी जांच कराने में जुटे हुए हैं।

गोरखपुर में तीस लोगों के टेस्ट करवाये गए, जिसमें एक पत्रकार, एक आईटी विभाग का, एक मार्केटिंग का और  चतुर्थ श्रेणी एक कर्मचारी समेत कई कोरोना की गिरफ्त में पाए गए हैं। आफिस को सील कर सेनेटाइज किए जाने की सूचना है। गोरखपुर एडिशन की जिम्मेदारी लखनऊ ऑफिस पर डाल दी गई है। इस कारण अमर उजाला लखनऊ के पत्रकारों पर काम दबाव बढ़ गया है।

अमर उजाला के प्रबंध निदेशक राजुल माहेश्वरी ने अपने प्रबंधकों को संकट की इस घड़ी में सभी कर्मचारियों को हरसंभव मदद पहुंचाने के निर्देश दिए हैं.

अमर उजाला के फतेहपुर ब्यूरो कार्यालय में तीन साथी कोरोना की चपेट में हैं।

चण्डीगढ़ यूनिट से खबर है कि वाईस प्रेसिडेंट मार्केटिंग (गवर्मेंट सेगमेंट) को भी कोरोना हो चुका है। अन्य साथियों के टेस्ट रिजल्ट का इंतजार है।

[साभार: bhadas4media.com]

दैनिक भास्कर ग्वालियर में 6 पत्रकार कोरोना पॉजिटिव


दैनिक भास्कर ग्वालियर के संपादकीय विभाग के 6 पत्रकार कोरोना पॉजिटिव निकले हैं। इनमें एक पूर्व प्रधानमंत्री के भतीजे का पुत्र भी शामिल है। 

पूरे शहर के कोरोना पॉजिटिव के नाम छापने वाला अखबार अपने स्टाफ के नाम छापने से बच रहा है। इस कारण इनके संपर्क में आए लोगों को खतरा बना हुआ है।

[साभार: bhadas4media.com]

दैनिक जागरण गोरखपुर के कई कर्मचारी कोरोना संक्रमित


गोरखपुर। दैनिक जागरण गोरखपुर में संपादकीय मार्केटिंग और एकाउंट के कई कर्मचारी कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। इन सबकी जांच एंटीजन किट कराई गई थी।

सबसे पहले एक डिजायनर की रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी फिर भी प्रबंधन ने कामकाज बंद नहीं कराया। इसी का नतीजा रहा कि मार्केटिंग के दो, एकाउंट की एक, संपादकीय के दो लोग भी संक्रमित हो गए।

यही नहीं दैनिक जागरण प्रबंधन ने प्रशासनिक कार्रवाई से बचने के लिए झूठ भी बोला है। एक ने दैनिक जागरण का पता लिखवाया था तो प्रबंधन ने नाराजगी जता दी। इसके बाद दैनिक जागरण के किसी भी कर्मचारी के नाम के आगे संस्‍थान का नाम नहीं लिखा गया। सबके घर का पता लिखवाकर जांच कराई गई ताकि प्रशासनिक कार्रवाई से बचा जा सके।

सूत्रों के मुताबिक दो कर्मचारियों ने पंजीकरण के समय दैनिक जागरण लिखवाया था लेकिन एक रिपोर्टर ने संस्‍थान का नाम कटवाकर उनके घर का पता लिखवा दिया। इससे प्रबंधन की संवेदनहीनता समझी जा सकती है।

एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित।

[साभार: bhadas4media.com]

दैनिक जागरण, पटना में फटा कोरोना बम!


दैनिक जागरण के पटना कार्यालय में बुधवार को कोरोना वायरस बम फटा। इस अखबार के कार्यालय में बुधवार को कर्मचारियों की जांच के लिए मेडिकल टीम को बुलाया गया था। यह व्यवस्था जीएम एसएम पाठक के मौखिक निर्देश पर संपादकीय टीम के सहयोग से की गई थी। अखबार के कई कर्मचारी पिछले कुछ हफ्तों से बीमार चल रहे हैं। कुछ कर्मचारियों ने पहले ही अपनी जांच निजी स्तर पर कराई थी और कम से कम तीन लोग पोजिटिव मिले थे।

बुधवार को जांच के लिए पहुंची मेडिकल टीम के सामने अखबार के सौ से अधिक कर्मचारी जांच कराने पहुंच गए। मेडिकल टीम ने इतने लोगों की जांच एक साथ करने से इंकार कर दिया। पहले दिन के लिए 60 लोगों को रजिस्ट्रेशन किया गया और बाकी लोगों को अगले दिन बुलाया गया। रजिस्ट्रेशन खत्म होने के बाद जांच की प्रक्रिया शुरू हुई जिसमें दो तिहाई कर्मचारी पॉजिटिव मिलने लगे। इससे अखबार में और हड़कंप मच गया जीएम के माथे पर पसीना आ गया। तुरंत जांच बंद कराने की तैयारी होने लगी लेकिन बीमार कर्मचारी जांच कराने के लिए पड़े रहे।

स्थिति बिगड़ते देखकर आखिर मैं मुख्य महाप्रबंधक आनंद त्रिपाठी वहां आए और लगभग 20 कर्मचारी की जांच के बाद जांच बंद करवा दी। सभी कर्मचारियों को वहां से खदेड़ दिया। इधर मेडिकल टीम पहले से खोली जा चुकी कीट के बर्बाद होने को लेकर परेशान हो गई और एफआईआर कराने की बात कहने लगी।
यह देख कर बाद में जीएम फिर सक्रिय हुए और संपादकीय के वैसे कर्मचारियों की जांच कराई जो पहले से बीमार है। लेकिन 60 की बजाय महज 30 – 35 लोगों की ही जांच होने दी गई। जांच में अखबार के करीब 20 कर्मचारी पॉजिटिव संपादकीय प्रभारी, आउटपुट हेड और इंजीनियर शामिल है। संक्रमित होने वालों में ज्यादातर डेस्क के लोग हैं।


अखबार प्रबंधन ने बाकी कर्मचारियों को फिलहाल टेस्ट कराने से मना कर दिया है। दूसरी तरफ जितने कर्मचारी एक साथ पॉजिटिव होने के बाद भी अखबार से दफ्तर में कामकाज लगातार और बिना किसी सुरक्षा के हो रहा है। इससे कर्मचारियों में डर का माहौल है। संक्रमित मिले तीनचार कर्मचारियों में लक्षण गंभीर हैं। प्रसार और प्रिंटिंग के कर्मचारी जांच के दौरान भगाए जाने से अलग ही नाराज हैं। दैनिक जागरण के भागलपुर कार्यालय में पहले से ही कई संक्रमित मिल चुके हैं।

[साभार: bhadas4media.com]

Wednesday 22 July 2020

अमर उजाला के गोरखपुर ऑफिस में भी घुसा कोरोना, हड़कंप



अमर उजाला, गोरखपुर के पत्रकार ज्ञान प्रकाश गिरि कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। अखबार प्रबंधन ने इसे छिपा कर चुपचाप गीडा स्थित दफ्तर सेनेटाइज करा दिया। अन्य कर्मचारियों को बताया तक नहीं। 28 लोगों को उसी दफ्तर में बैठा कर काम कराया गया, जहां उनके कोरोना पॉजिटिव साथी ने एक दिन पहले काम किया था।

इसी बीच सेवा विस्तार पाए एनई कौशल किशोर ने फरमान सुनाया कि कल सबकी कोरोना जांच होगी। इसके बाद लोगों को सुबह हुई और ज्ञान प्रकाश अचानक गायब मिले तो उनसे फोन से बात की। उन्होंने ही अपने संक्रमित होने की जानकारी दी। इस पर घबराए अधीनस्थों से कहा गया कि, “जिसकी लंका लगनी थी लग गई, तुम लोग चुपचाप काम करो।

ज्ञात हो कि दफ्तर खुला है, जबकि ऐसी स्थिति में गोरखपुर के कमिश्नर, डीएम और कई तहसील कार्यालय कम से कम तीन दिन सील कर दिए गए थे। वहीं अमर उजाला ने ऐसा नहीं किया। फिलहाल कर्मचारियों के होश फाख्ता हैं। आज सबकी निपाल क्लब में जांच चल रही है।

सवाल यह है कि फर्श वगैरह तो सेनेटाइज कर देंगे लेकिन सेंट्रल एसी वाले कार्यालय की हवा को अमर उजाला प्रबंधन भला कैसे सेनेटाइज कर सकता है। बता दें कि गोरखपुर कमिश्नर के पीए संजय शर्मा की बीती रात कोरोना से मौत हो गई इसके बाद स्थानीय प्रशासन में हड़कंप की स्थिति है। वहीं अमर उजाला प्रबंधन अपने कर्मचारियों की लंका लगानेमें मगन है।

उधर एक अन्य सूचना के मुताबिक अमर उजाला के आईटी विभाग के संदीप मिश्रा और सफाई कर्मचारी रईस भी गीडा दफ्तर में काम करते हैं और ये दोनों भी कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं।

[साभार: bhadas4media.com]

दैनिक जागरण और हिंदुस्तान के रिपोर्टरों में तलवारें खिंची, दोनों कप्तान के दर पर पहुंचे



जनता को ईमानदारी और अनुशासन की सीख देने वाले पत्रकार अब खुद ही अराजकता की हदें पार कर रहे हैं। इसी तरह की खबर मेरठ से आ रही है। हुआ यूं कि मेरठ में एक फ़ैक्टरी मालिक ने अपने नौकर पर चोरी करने का आरोप लगा दिया और उसका उत्पीड़न करते हुए बंधक बना लिया।

बंधक बनाए जाने की सूचना पर पुलिस मौक़े पर पहुंच गई। मीडिया में भी ये ख़बर फैली। बताया जाता है कि दैनिक जागरण के क्राइम रिपोर्टर सुशील कुमार भी फ़ैक्टरी पहुंच गए।

सोशल मीडिया पर प्रसारित खबरों के मुताबिक़ सुशील फ़ैक्टरी मालिक की हिमायत में लग गए और पुलिसकर्मियों से उलझ गए। इसी दौरान वहां दैनिक हिंदुस्तान के फ़ोटोग्राफ़र विक्रांत आ गए। वो इस पूरे वाक़ये को कैमरे में कैद करने लगे तो सुशील ने विक्रांत को कवरेज करने से रोका। दोनों के बीच जमकर कहासुनी हुई। वहाँ मौजूद लोगों ने बात रफ़ा दफ़ा करा दी।

बताया जाता है कि वहां सुशील ने विक्रांत को देख लेने की धमकी दी। ये वाकया सोशल मीडिया पर सचित्र वायरल हुआ। इसके बाद सुशील कुमार एसएसपी के यहां गए और विक्रांत के ख़िलाफ़ बदनाम करने की तहरीर दी। एसएसपी पर कार्यवाही का दबाव बनाया गया।

इसके बाद मेरठ के मीडिया जगत में हलचल मच गई। हिंदुस्तान प्रबंधन भी हक्का बक्का रह गया। वो भी हरकत में आ गए और पलटवार करते हुए एसएसपी के यहां उन्होंने भी तहरीर दे दी। उन्होंने कवरेज से रोकने व धमकी देने का आरोप लगाया है। दो अखबार वालों के इस प्रकरण में एसएसपी भी धर्म संकट में आ गए हैं। उन्होंने दोनों तहरीर पर जांच बैठा दी है। मेरठ के प्रबुद्ध वर्ग में मीडिया वालों की आपसी लड़ाई की खूब चर्चा है।


ग़ौरतलब है कि सुशील दो साल पहले भी एक महिला से सम्बन्धों को लेकर विवादित हो गए थे। वो मामला भी थाने तक पहुंचा था। बाद में जागरण प्रबंधन ने उनका तबादला मुरादाबाद कर दिया था। सुशील फिर से दैनिक जागरण मेरठ लौट आए और अब एक नए किस्म के विवाद के केंद्र बन गए हैं।

[साभार: bhadas4media.com]


क्या गाजियाबाद में भी गाड़ी पलटेगी, एनकाउंटर होगा?



- एक अच्छा और सच्चा पत्रकार होने का अर्थ भगत सिंह यानी शहीद होना है, जो आज गुनाह है
- अलविदा विक्रम, ये दुनिया तुम जैसो की नहीं, यहां तो लोग पल-पल मर कर जीते हैं कायर कहीं के

गाजियाबाद के पत्रकार विक्रम जोशी को अपराधियों के खिलाफ भांजी के पक्ष में खड़े होने पर सजाए मौत मिली है। उसकी दो बेटियों के सामने अपराधियों ने उसकी सिर पर गोली मारकर हत्या कर दी। नौ अपराधी पकड़े जा चुके हैं लेकिन न उनकी गाड़ी पलटेगी और न वो भागते हुए पुलिस पर फायर करेंगे और न उनका एनकांउटर होगा। क्योंकि विक्रम महज एक आम आदमी था और लोकतंत्र में भीड़ के बीच में एक व्यक्ति का कोई महत्व नहीं। कुव्यवस्था का शिकार। विक्रम की हत्या पर दो दिन मीडिया में खूब बबाल होगा और फिर सब विक्रम जोशी को भूल जाएंगे।

विक्रम के परिवार के लिए अंतहीन संघर्ष की शुरूआत हो चुकी है। परिवार छोटे बच्चे अब बेसहारा हो गए। विपदा पता नहीं कितनी लंबी चलेगी। दरअसल आज एक अच्छा और सच्चा पत्रकार होना ही गुनाह हो गया है। कलम पर कदम-कदम पर पहरे हैं। माफिया और अपराधियों को अपराधी कहना गुनाह हो गया है। अपराधी और आरोपित धनबल, बाहुबल से पत्रकार को चुप रहने पर विवश कर देते हैं। अपराधियों पर उंगली उठाने का अर्थ है कि थाने और कोर्ट कचहरी के चक्कर काटो, हमले झेलने को तैयार रहो। मानसिक रूप से परेशान हो जाओ। परिवार के ताने झेलो, रिश्तेदार कहें, बड़ा भगत सिंह बनता है। अपने बच्चे देखो, छोटे-छोटे हैं। एक तुम ही रह गए हो इस सड़ी-गली व्यवस्था को बदलने को? तब अपराध बोध सा होने लगता है कि क्या गलत को गलत कहना गुनाह है? ये क्या गुनाह कर डाला कि खुद कठघरे में हो? कौन साथी है? कौन साथ देता है? अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह में फंसने का अर्थ वो ही समझ सकते हैं जो विक्रम जैसी परिस्थिति से गुजर चुके हैं, डर पर जीत हासिल करते हैं। क्या अपराधियों और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ आवाज उठाना भगत सिंह कहलाना है?

यदि पत्रकार आवाज नहीं उठाएगा तो फिर कौन उठाएगा? अपराधियों के खिलाफ विक्रम जोशी ने साहस दिखाया और सर्वोच्च बलिदान दे दिया। पर जनता का क्या? जनता तो मूक तमाशा देखती है। लोकतंत्र में जनता सब कुछ है और जब जनता ही कायर हो जाए, अन्याय के खिलाफ लड़ने वालों के बगल में खड़ी होने की बजाए चुप्पी साध लें और शहीदे आजम भगत सिंह के सर्वोच्च बलिदान को एक लुच्चा और टुच्चा सा कमेंट बना दिया जाएं कि बड़े भगत सिंह बनते हो। तो फिर समाज और देश को गर्त में ही जाना है। अलविदा विक्रम, तुम योद्धा थे और तुम्हारा भगत सिंह होने का अर्थ मुझे गौरवान्वित कर रहा है, कि ऐसे कायर समाज और सड़ी-गली व्यवस्था के खिलाफ तुमने आवाज उठाने का साहस तो किया। वरना आज तो लोग पल-पल मर कर जी रहे हैं।
विनम्र श्रद्धांजलि।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

Sunday 19 July 2020

मिडडे अखबार से 47 मीडियाकर्मी निकाले गए




मिडडे अखबार ने 47 कर्मियों की लिस्ट लेबर डिपार्टमेंट को दी

इन सभी की होनी है छंटनी, कोरोना और लॉकडाउन के चलते घटती आय को बताया प्रमुख कारण150e 
[साभार: bhadas4media.com]

MAJITHIA: DA point Nov 2011 to June 2020


DA = DA point/167


Nov 2011 to Dec 2011 - 
17 point

 

Jan 2012 to June 2012 - 25 point

 

July 2012 to Dec 2012 - 33 point

 

Jan 2013 to June 2013 - 42 point

 

July 2013 to Dec 2013 - 54 point

 

Jan 2014 to June 2014 - 65 point

 

July 2014 to Dec 2014 - 73 point

 

Jan 2015 to June 2015 - 80 point

 

July 2015 to Dec 2015 - 87 point

 

Jan 2016 to June 2016 - 94 point

 

July 2016 to Dec 2016 – 102 point

 

Jan 2017 to June 2017 - 107 point

 

July 2017 to Dec 2017 – 110 point

 

Jan 2018 to June 2018 - 114 point

 

July 2018 to Dec 2018 – 120 point

 

Jan 2019 to June 2019 – 128 point

 

July 2019 to Dec 2019 –  139 point

 

Jan 2020 to June 2020 – 150 point



Calculation of DA…

DA = Basic Pay + Variable Pay x DA point/167

 

For other help contact...

 

Vinod Kohli ji  – 09815551892

President, Chandigarh-Punjab Union of Journalists (CPUJ)

Indian Journalists Union

kohlichd@gmail.com

 

Ashok Arora ji (Chandigarh) - 09417006028, 09914342345

Indian Journalists Union

arora_1957@yahoo.co.in

 

Ravinder Aggarwal ji (HP) - 9816103265

ravi76agg@gmail.com

 

(patrakarkiawaaz@gmail.com)

 

 

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