Wednesday 28 March 2018

पत्रकारिता के पत्तलखोर दलालों की खुली पोल

कोबरापोस्ट का ख़ुलासा, पैसे के एवज़ में ख़बरें छापने को राज़ी दिखे देश के कई मीडिया हाउस



अपनी खोजी पत्रकारिता के लिए पहचाने जाने वाले कोबरापोस्ट के हालिया खुलासे ने देश के मीडिया जगत की पोल खोल कर रख दी है. ख़ुफ़िया कैमरे की मदद से किए गए कोबरापोस्ट के ‘‘ऑपरेशन 136’’ में देश के कई नामचीन मीडिया संस्थान सत्ताधारी दल के लिए चुनावी हवा तैयार करने को राज़ी होते नज़र आ रहे हैं.
कोबरापोस्ट ने ‘ऑपरेशन 136’ का अभी पहला भाग जारी किया है जिसमें कुल 16 मीडिया संस्थानों के नाम सामने आए हैं. इनमें दैनिक जागरण, पंजाब केसरी, अमर उजाला, इंडिया टीवी, सब नेटवर्क, डीएनए (डेली न्यूज एंड एनालिसिस) और यूएनआई जैसे बड़े नाम शामिल हैं. इनके अलावा स्कूप व्हूप, रेडिफ डॉट कॉम, 9एक्स टशन, समाचार प्लस, एचएनएन लाइव 24×7, स्वतंत्र भारत, इंडिया वॉच, आज हिंदी डेली, साधना प्राइम न्यूज को भी सौदेबाजी में लिप्त पाया गया है. इन सभी मीडिया संस्थानों से जुड़े बड़े पदों पर काबिज लोगों की बातचीत के अंश खुफिया ऑपरेशन में दिखाए गए हैं.

कोबरापोस्ट ने ‘ऑपरेशन 136’ के नाम से किए गए स्टिंग ऑपरेशन के माध्यम से मीडिया जगत के उस स्याह पक्ष का पर्दाफाश किया है जहां कहा जाता है कि पैसों के लिए देश का मीडिया अपनी आवाज और कलम का भी सौदा कर सकता है. कुछ संस्थानों के मालिकों और कर्मचारियों ने बताया कि वे स्वयं संघ से जुड़े रहे हैं और हिंदुत्ववादी विचारधारा से प्रभावित हैं लिहाजा उन्हें इस अभियान पर काम करने में खुशी होगी.

देशभर में आंदोलन करने वाले किसानों को माओवादियों द्वारा उकसाए हुए बताकर सरकार की नीतियों का महिमामंडन करने के लिए भी ये सहमत हो गए. तो वहीं, न्यायपालिका के फैसलों पर प्रश्नचिन्ह लगाकर लोगों के सामने पेश करने में भी इनको कोई गुरेज़ नहीं था. साथ ही, विपक्ष और विपक्षी दलों के बड़े नेताओं का दुष्प्रचार करके चरित्र हनन करने और उनके खिलाफ झूठी अफवाहें फैलाकर उनकी छवि को धूमिल करके सत्तारूढ़ दल के पक्ष में माहौल बनाने की सौदेबाजी का भी खुलासा हुआ है. यहां तक की सत्ताधारी पार्टी के लिए इन लोगों ने पत्रकारिता की प्रतिष्ठा को दांव पर रखते हुए नागरिक स्वतंत्रता और अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ने वालों के खिलाफ खबरें बनाने पर भी अपनी रजामंदी जाहिर की.

कोबरापोस्ट के लिए पूरी तहकीकात पत्रकार पुष्प शर्मा ने श्रीमद् भगवत् गीता प्रचार समिति, उज्जैन का प्रचारक बनकर और खुद का नाम आचार्य छत्रपाल अटल बताकर की. इस दौरान देश के करीब तीन दर्जन बड़े मीडिया संस्थानों के वरिष्ठ और जिम्मेदार अधिकारियों से उन्होंने मुलाकात की और एक खास तरह का मीडिया कैंपेन चलवाने के लिए 6 से 50 करोड़ रुपये तक का अपना बजट बताया।

(साभार: द वायर)


खबर का लिंक - http://thewirehindi.com/38449/cobra-post-operation-136-alleges-paid-news-agenda-by-indian-media/

(इसे कोई अखबार और चैनल आपको नहीं बताएगा। इसलिए अपने लोगों और आम जन को खबरदार करने के लिए यह खबर ज्यादा से ज्यादा शेयर करें)

Tuesday 27 March 2018

मजीठिया: श्रम मंत्री गंगवार से की पीड़ित पत्रकारों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट की मांग


आज पत्रकारों के एक प्रतिनिधिमंडल ने मजीठिया वेजबोर्ड और पत्रकारों की नौकरी को लेकर आ रही दिक्कतों के बारे में केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार से उनके कार्यालय श्रम शक्ति भवन, नई दिल्ली में मिलकर उन्हें अवगत कराया कि देशभर में 20 हजार से अधिक मीडिया कर्मियों को मजीठिया लागू करने और इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने की मांग करने पर नौकरी से निकाल दिया गया है और उन्हें पिछले तीन साल में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा है. इस संबंध में मंत्री जी को दिए एक ज्ञापन में मीडिया कर्मियों के हो रहे उत्पीड़न को खत्म करने के लिए तत्काल कड़े कदम उठाए जाने की मांग की गई है. मंत्री जी से चर्चा के दौरान मीडिया कर्मियों की नौकरी, मजीठिया वेज बोर्ड और अखबार मालिकानों के श्रमिक विरोधी रवैये पर विचार विमर्श हुआ।
बातचीत की शुरुआत हुई इस बात के साथ कि मंत्री जी जल्द ही सभी राज्यों लेबर कमिशनरों के साथ मजीठिया को लेकर बैठक करें जिसमे पत्रकारों की भी भागीदारी हो। लेबर कमिशनरों के जरिए मालिकानों को नोटिस भिजवाया जाए और शपथ पत्र के साथ जवाब लिया जाये कि उनके संस्थान में मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वर्कर को वेतन दे रहे हैं या नहीं। अगर दे रहे हैं तो वेतन पर्ची संलग्न करें।अगर वेज बोर्ड से कम वेतन दे रहे हैं, तो ऐसा क्यों?
दूसरी बात यह हुई कि अगर अख़बार मालिकान वेज बोर्ड के अनुसार वर्कर को वेतन नहीं दे रहे हैं, तो उन पर लगने वाली जुर्माने की राशि बढ़ाई जाए और साथ में सजा अनिवार्य हो।
तीसरी बात यह हुई कि मजीठिया के केस के निपटारे के लिए राज्यों में एक फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनाया जाये, जिसमे प्रति दिन केस की सुनवाई हो और 3 माह में केस निपटाने की मियाद तय की जाए। अभी हालत यह है कि डी एल सी केस को रोक कर बैठ जाते हैं, फिर लेबर कोर्ट का रवैया भी ऐसा ही होता है। इस स्थिति में वर्करो को समय से कुछ नहीं मिलेगा।
चौथी बात यह हुई कि पत्रकार जब साल और दो साल के कॉन्ट्रैक्ट में बंधकर काम करेंगे, तो उन्हें रिन्यूअल का डर हमेशा सताता रहेगा, ऐसी स्थिति में कोई पत्रकार ईमानदारी से काम नहीं कर सकेगा। वह हमेशा वही करेगा, जो मालिक कहेगा। सच्ची पत्रकारिता उससे नहीं हो पाएगी, इसलिये मीडिया हाउसेज से कॉन्ट्रैक्ट की प्रथा खत्म हो।
पांचवीं बात यह हुई कि जब मजीठिया आयोग पर काम हो रहा था, उसके बाद दो वेतन आयोग आ गए और वे कहीं कहीं लागू भी हो गए, पर हमारा वेतन आयोग अभी भी लागू नहीं हुआ। मांगने पर नौकरी अलग से चली जाती है।बावजूद इसके पत्रकारों के लिए नए वेतन आयोग का गठन हो, क्योंकि बहुत जगह सातवां वेतन आयोग का फायदा लोगों को मिल रहा है।नए वेज बोर्ड में पिछली खामियों को पूरी तरह दूर किया जाये और उसे स्पष्ट किया जाये।
छठी बात यह हुयी कि वेज बोर्ड में पहले सिर्फ प्रिंट मीडिया के लोग ही हक़दार होते थे। ऐसा इसलिए कि जब wja बना था तब इलेक्ट्रानिक मीडिया में रेडियो और दूरदर्शन आता था और ये सरकारी थे। अब गैर सरकारी चैनल, रेडियो तथा इंटरनेट आ गए हैं, तो अब इन्हें भी उसमें शामिल किया जाये।
अंत में पेंशन की बात हुई कि हमें नौकरी तक पैसे कटवाने के बाद भी 13 सौ रुपये मिलते हैं, जो सही नहीं है।
मंत्री जी और उनके सचिव ने एक बात कही क़ि हमने इनसे जुड़ी कुछ चीजें अपनी साइट पर डाली है। आप सब उसे देखें और हमें सुझाव दें। हम इनके साथ ही उस पर भी काम करेंगे और आप सब फिर आइए, मुद्दे दीजिये। हम हर संभव काम करेंगे।

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Saturday 24 March 2018

SC ने HT ग्रुप की मालकिन शोभना भरतिया पर सवा लाख रुपये का हर्जाना ठोका

दैनिक हिन्दुस्तान फर्जी संस्करण और 200 करोड़ का सरकारी विज्ञापन घोटाला

सुनवाई की अगली तारीख 16 अप्रैल



श्रीकृष्ण प्रसाद [अधिवक्ता]। सुप्रीम कोर्ट ने 16 मार्च 2018 को एक ऐतिहासिक आदेश में मेसर्स हिन्दुस्तान मीडिया वेन्चर्ज लिमिटेड की चेयरपर्सन व पूर्व कांग्रेस सांसद शोभना भरतिया को सवा लाख रुपये की हर्जाना राशि के भुगतान का आदेश दिया है। मेसर्स हिन्दुस्तान मीडिया वेन्चर्ज लिमिटेड कंपनी देशभर में हिंदी समाचार दैनिक हिन्दुस्तान का प्रकाशन करती है ।

हर्जाना-राशि से एक लाख रुपये नई दिल्ली के अरूणा   आसिफ अली मार्ग, 1811, स्थित वार विडोज एसोसिएशन (शहीदों की विधवाओं की संस्था) और पच्चीस हजार रुपये रेस्पोन्डेन्ट नं. 2 मन्टू शर्मा को भुगतान करने का आदेश पीटिशनर शोभना भरतिया को कोर्ट ने दिया।

सुप्रीम कोर्ट के माननीय जज जे चेलामेश्वर और माननीय जज संजय किशन कौल की पीठ ने 16 मार्च को दोनों पक्षों को सुनने के बाद यह आदेश सुनाया और सुनवाई की अगली तारीख 18 अप्रैल निर्धारित की।

सुप्रीम कोर्ट ने 16 मार्च को पारित अपने आदेश में लिखा है कि ‘कोर्ट अनुभव करता है कि स्पेशललीव पीटिशन (क्रिमिनल) 1603/2013 , जो अब क्रिमिनल अपील नं. 1216/2017 है, में पीटिशनर  को अपने वरीय अधिवक्ता की अनुपस्थिति में बहस के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए थीं, इसलिए कोर्ट रेस्पोन्डेन्ट नं. 2 मन्टू शर्मा की क्षतिपूर्ति के लिए पीटिशनर शोभना भरतिया को सवा लाख रुपये की हर्जाना राशि के भुगतान का आदेश दिया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में आगे लिखा है कि ‘गत 18 जनवरी 2018 को भी न्यायालय में बहस इसलिए स्थगित कर दी गई थीं, क्योंकि पीटिशनर शोभना भरतिया के विद्वान वरीय अधिवक्ता न्यायालय में अनुपस्थित थे। रेस्पोन्डेन्ट नं. 02 के विद्वान वरीय अधिवक्ता (श्रीकृष्ण प्रसाद) ने न्यायालय से प्रार्थना की थीं कि मुकदमे का निबटारा त्वरित होना चाहिए। न्याय का तकाजा था कि कोर्ट ने पीटिशनर शोभना भरतिया और रेस्पोन्डेन्ट नं. 01 बिहार सरकार को न्यायालय में अपना-अपना पक्ष रखने के लिए 14 मार्च 2018 की अगली सुनवाई तिथि निर्धारित की थीं ।

रेस्पोन्डेन्ट नं. 2 मन्टू शर्मा की ओर से बहस में हिस्सा ले रहे वरीय अधिवक्ता श्रीकृष्ण प्रसाद ने न्यायालय से बहस में हिस्सा न लेने के लिए पीटिशनर शोभना भरतिया पर बड़ा हर्जाना लगाने और उनका और बिहार सरकार  का पक्ष सुन लेने की प्रार्थना की। अधिवक्ता श्रीकृष्ण प्रसाद ने कोर्ट को सूचित किया कि पीटिशनर इस मुकदमे में सुनवाई से कतरा रही है और रेस्पोन्डेन्ट नं. 02 मन्टू शर्मा के अधिवक्ता नई दिल्ली से लगभग दो हजार किलोमीटर दूर बिहार के मुंगेर जिला मुख्यालय से हर तिथि पर सुप्रीम कोर्ट में विगत पांच वर्षों से कोर्ट की कार्रवाई में हिस्सा लेते आ रहे हैं और सुनवाई लगातार टलती जा रही है ।

जिन विद्वान अधिवक्ताओं ने 16 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में बहस में हिस्सा लियाः  सुप्रीम कोर्ट में 16 मार्च को बहस के दौरान पीटिशनर शोभना भरतिया की ओर से विद्वान वरीय अधिवक्ता मुकुल रोहतगी, रंजीत कुमार, सिद्धार्थ लुथरा, आरएन करंजावाला, संदीप कपूर, देवमल्य बनर्जी, विवेक सूरी, एएस अमन, वीर इन्दरपाल सिंह संधु, मनीष शर्मा, अविरल कपूर, करण सेठ, आई खालिद, माणिक करंजावाला, कार्तिक भटनागर, रेस्पोन्डेन्ट नं. 1 बिहार सरकार की ओर से विद्वान अधिवक्ता ईसी विद्यासागर और मनीष कुमार और रेस्पोन्डेन्ट नं. 2 मन्टू शर्मा की ओर से विद्वान वरीय अधिवक्ता श्रीकृष्ण प्रसाद (मुंगेर, बिहार)। शकील अहमद, प्रत्युष प्रातीक, उत्कर्ष पांडेय और राजकिशोर चौधरी (एओआर) ने भाग लिया।

सुप्रीम कोर्ट ने शोभना भरतिया और बिहार सरकार को बहस में अपना पक्ष रखने का अंतिम मौका दिया। इस बीच बिहार सरकार ने अचानक दैनिक हिन्दुस्तान के कथित अवैध मुंगेर संस्करण सहित अन्य जिला बार संस्करणों  में सरकारी विज्ञापनों के प्रकाशन पर रोक लगाई दी।

अठारह जनवरी (2018) को बहस की निर्धारित तिथि पर पीटिशनर शोभना भरतिया और बिहार सरकार के विद्वान अधिवक्ताओं की अनुपस्थिति को सुप्रीम कोर्ट ने काफी गंभीरता से लिया है और कोर्ट ने अपनी गहरी नाराजगी प्रकट की है। सुप्रीम कोर्ट ने 18 जनवरी  को पारित अपने आदेश में अपनी नाराजगी प्रकट करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया है।

Friday 23 March 2018

पत्रकारों के कमजोर होने से कमजोर होगा लोकतंत्र: सरकार

नई दिल्ली, 23 मार्च। सरकार ने आज स्वीकार किया कि मीडिया संस्थानों में पत्रकार एवं गैर पत्रकार कर्मचारियों को अनुबंध पर नौकरी और मजीठिया वेतनबोर्ड के क्रियान्वयन न होने का मामला वाकई में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को कमजोर कर रहा है तथा इसके समाधान के लिए विशेष प्रयास की जरूरत है।

केन्द्रीय श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष गंगवार ने यहां एक कार्यक्रम में नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट और दिल्ली जर्नलिस्ट एसाेसिएशन के नवनिर्वाचित पदाधिकारियों को सम्मानित किया। कार्यक्रम में जल संसाधन एवं संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल एवं सांसद धर्मेन्द्र कश्यप भी मौजूद थे।

कार्यक्रम में देश के जाने-माने पत्रकारों ने मंत्रियाें को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के कामकाज की दशाअों की जानकारी दी। वयोवृद्ध पत्रकार एवं एनयूजे आई के संस्थापक सदस्य राजेन्द्र प्रभु, के एन गुप्ता, विजय क्रांति ने कहा कि ठेके पर नौकरी के चलन ने पत्रकारों एवं पत्रकारिता को कमजोर कर दिया है। पत्रकारों को सामाजिक सुरक्षा नहीं है और उनका जीवन अनिश्चितता से भरा है। सरकार को इन विसंगतियों को दूर करने के लिए कुछ करना चाहिए। महिला पत्रकारों ने भी अपनी दिक्कतों से उन्हें अवगत कराया।

इस असवर पर गंगवार ने मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को सुचारु रूप से लागू करने, पत्रकारों की समस्याओं को दूर करने और उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार करने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें मीडिया संस्थानों में पत्रकारों को अनुबंध पर नियुक्त करने, मजीठिया वेतन बोर्ड को लागू करने से जुड़ी दिक्कतों और पत्रकारों की अन्य समस्याओं से अवगत कराया जाता रहा है। वह पत्रकारों की दिक्कतों काे दूर करने को लेकर काफी संजीदा है और इस बारे में चर्चा करने के लिए हमेशा उपलब्ध हैं। उन्होंने अगले सप्ताह पत्रकार संगठनों के पदाधिकारियों को वार्ता के लिए अपने कार्यालय में आमंत्रित भी किया।

केन्द्रीय श्रम मंत्री ने कहा कि वह असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की समस्याओं को लेकर बहुत गंभीर हैं। देश में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले 40 करोड़ लोगों को राहत एवं सुरक्षा देने के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार श्रम कानूनों को तर्कसंगत बनानेे के लिए प्रतिबद्ध है और वह 40 कानूनों को मिला कर चार कानून बनाने वाली है जिनमें श्रमजीवी पत्रकारों से जुड़े मामलों का विशेष ध्यान रखा जाएगा।

मेघवाल ने माना कि यदि पत्रकार स्वतंत्र, सुरक्षित एवं निर्भीक नहीं रहेंगे तो लोकतंत्र भी सुरक्षित नहीं रहेगा। उन्होंने स्वीकार किया कि संसद की विभिन्न समितियों की बैठक में ठेके पर नौकरियों एवं मजीठिया वेतन बोर्ड का मामला आता रहा है लेकिन पहले यह उतना गंभीर नहीं लगा लेेकिन आज उन्हें इसकी गंभीरता का अहसास हुआ है। वह मानते हैं कि निश्चित रूप से पत्रकार समाज की सूरत में बदलाव आना चाहिए और सरकार इसके लिए गंभीरता से विचार करेगी।

गंगवार और मेघवाल ने इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र प्रभु, अच्युतानंद मिश्र और अन्य पत्रकारों को सम्मानित किया। इनमें प्रभु, गुप्ता, हेमंत विश्नोई, रवीन्द्र अग्रवाल, यूनीवार्ता के विशेष संवाददाता एवं यूनाइटेड न्यूज आफ इंडिया वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष राजकुमार मिश्रा, एनयूजे आई के अध्यक्ष अशोक मलिक, महासचिव मनोज वर्मा, कोषाध्यक्ष राकेश आर्य, पाँच्यजन्य के संपादक हितेश शंकर, दिल्ली पत्रकार संघ के अध्यक्ष मनोहर सिंह, महासचिव प्रमोद कुमार आदि शामिल थे।

(साभार: वार्ता)


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मजीठिया: श्रम विभाग ने माना, एचटी मीडिया ने वेजबोर्ड के आदेश को लागू नहीं किया


मोहाली से खबर है कि श्रम विभाग ने एक पत्र जारी कर सूचित किया है कि एचटी मीडिया ने मीडियाकर्मियों की तनख्वाह रिवाइज करने के सरकार और कोर्ट के आदेश को लागू नहीं किया है।
मोहाली स्थित एचटी मीडिया में कार्यरत आईटी एक्जीक्यूटिव हरमनदीप सिंह ने मजीठिया वेजबोर्ड को लेकर एक केस किया हुआ है. इसी केस की सुनवाई के तहत जारी एक पत्र में एचटी मीडिया के कानून और कोर्ट विरोधी रवैये को उजागर किया गया है।
साथ ही यह भी बताया गया है कि हरमनदीप का केस अब इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल कम लेबर कोर्ट में स्थानांतरित किया जाता है जहां कई बिंदुओं पर सुनवाई होगी।

(साभार: भड़ास)

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Tuesday 20 March 2018

MAJITHIA: DA point Nov 2011 to June 2018

DA = DA point/167
Nov 2011 to Dec 2011 - 17 point
Jan 2012 to June 2012 - 25 point
July 2012 to Dec 2012 - 33 point
Jan 2013 to June 2013 42 point
July 2013 to Dec 2013 - 54 point
Jan 2014 to June 2014 - 65 point
July 2014 to Dec 2014 - 73 point
Jan 2015 to June 2015 - 80 point
July 2015 to Dec 2015 - 87 point
Jan 2016 to June 2016 - 94 point
July 2016 to Dec 2016 – 102 point
Jan 2017 to June 2017 - 107 point
July 2017 to Dec 2017 110 point
Jan 2018 to June 2018114 point


Calculation of DA…
DA = Basic Pay + Variable Pay x DA point/167

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Vinod Kohli ji  – 09815551892
President, Chandigarh-Punjab Union of Journalists (CPUJ)
Indian Journalists Union

Ashok Arora ji (Chandigarh) - 09417006028, 09914342345
Indian Journalists Union
arora_1957@yahoo.co.in

Ravinder Aggarwal ji (HP) - 9816103265
ravi76agg@gmail.com



(patrakarkiawaaz@gmail.com)


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Wednesday 14 March 2018

मजीठिया: जानिए जून 2018 तक का डीए

साथियों, इस बार जनवरी 2018 से लेकर जून 2018 तक का डीए 114 प्‍वाइंट है। जो साथी एरियर की रिकवरी का दावा पेश करने की तैयारी कर रहे हैं उनकी मदद के लिए हम नवंबर 2011 से दिसम्बर 2017 तक का डीए बता रहे हैं।

इसके अलावा जिन साथियों ने डीएलसी में दावा पेश किया था और अभी भी उसी कंपनी में कार्यरत हैं और उनके केस लेबर कोर्ट रेफर हो गए हैं ये उनके लिए आज तक की रिकवरी को अपडेट करने के लिए भी काम आएगा।

उदाहरण- रवि ने जनवरी 2017 में डीएलसी में रिकवरी लगाई थी। उसने मजीठिया के अनुसार अं‍तरिम राहत समेत दिसंबर 2016 तक क्‍लेम लगाया था। डीएलसी ने फरवरी 2018 में उसके केस को लेबर कोर्ट रेफर किया। रवि अभी भी उसी कंपनी में कार्यरत है इसलिए उसने मार्च 2018 में रेफरेंस के आधार पर लेबर कोर्ट में केस दायर करने से पहले अपने दावे में 14 महीने यानि जनवरी 2107 से फरवरी 2018 तक का मजीठिया के अनुसार वेतन के अंतर की एरियर राशि को भी जोड़ा है।

(नोट- कुछ साथियों को लगता है कि एक बार आपने जो डीएलसी में क्‍लेम लगा दिया तो उसमें आप सुधार नहीं कर सकते। यह धारणा बिल्‍कुल गलत है। आप इसमें कभी भी सुधार कर सकते हैं और इसके लिए क्‍या करना होता है आपका वकील अच्‍छी तरह से जानता है।)


यह डीए सभी ग्रेडों के समाचार-पत्रों, मैग्‍जीनों और न्‍यूज एजेंसियों में किसी भी शहर में कार्यरत सभी कर्मचारियों पर एक समान ही लागू होगा और यह हर छह महीने बाद (जनवरी से जून और जुलाई से दिसंबर) बदल जाता है।


मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के अनुसार इसका सही बेस प्‍वाइंट 167 है। आप कतई भी 185 या 189 के आधार पर इसकी गणना न करें, यह आपके लिए नुकसानदायक होगा।

(देखें मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिश का पेज नंबर अंग्रेजी में 20 और हिंदी में 18)


DA = DA point/167

नवंबर 2011 से दिसंबर 2011 - 17 point

जनवरी 2012 से जून 2012 - 25 point

जुलाई 2012 से दिसंबर 2012 - 33 point

जनवरी 2013 से जून 2013 - 42 point

जुलाई 2013 से दिसंबर 2013 - 54 point

जनवरी 2014 से जून 2014 - 65 point

जुलाई 2014 से दिसंबर 2014 - 73 point

जनवरी 2015 से जून 2015 - 80 point

जुलाई 2015 से दिसंबर 2015 - 87 point

जनवरी 2016 से जून 2016 - 94 point

जुलाई 2016 से दिसंबर 2016 - 102 point

जनवरी 2017 से जून 2017 - 107 point

जुलाई 2017 से दिसंबर 2017 - 110 point

जनवरी 2018 से जून 2018 - 114 point


डीए की गणना इस तरह होगी-

DA = Basic Pay + Variable Pay x DA point/167


नोट- आप अपना एरियर किसी एकाउंटेंट से भी बनवा सकते हैं। एरियर का क्‍लेम करते हुए एरियर चार्ट पर किसी भी सीए की मोहर की जरुरत नहीं होती। बस इतना ध्‍यान रखें जो आपका एरियर बना रहा है वह मजीठिया की सिफारिशों को ढंग से समझ लें। नहीं तो आपकी गणना में कोई भी गलती आपकी एरियर राशि में मोटा नुकसान पहुंचा सकती है। इसके लिए आप समाचार पत्रों से रिटायर्ड एकाउंटेंटों की मदद भी ले सकते हैं। या आप अपने यहां की पत्रकारों की यूनियनों से मदद ले सकते हैं।

  

मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशें अंग्रेजी में डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न Path का प्रयोग करें-   https://goo.gl/vtzDMO


मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशें हिंदी (सभी पेज) में डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न Path का प्रयोग करें-https://goo.gl/8fOiVD


श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम 1955 (हिंदी-अंग्रेजीमें डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न Path का प्रयोग करें-https://goo.gl/wdKXsB

 

पढ़े- हमें क्यों चाहिए मजीठिया भाग-10: (ग्रेड  और बी’) खुद निकालें अपना एरियर और नया वेतनमान http://goo.gl/wWczMH



पढ़े- हमें क्यों चाहिए मजीठिया भाग-17: (ग्रेड सी और डी’) खुद निकालें अपना एरियर और नया वेतनमान  http://goo.gl/3GubWn






यदि इसके बाद भी आपको कोई दिक्‍कत आ रही हो तो आप बेहिचक इनसे संपर्क कर सकते हैं।


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Ravinder Aggarwal ji (HP) - 9816103265
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यदि हमसे कहीं तथ्यों या गणना में गलती रह गई हो तो सूचित अवश्य करें।(patrakarkiawaaz@gmail.com)



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Thursday 8 March 2018

मजीठिया: छग हाईकोर्ट ने श्रम सचिव को दिया 45 दिन में केस को रेफरेन्स करने का आदेश

मजीठिया क्लेम करने वाले 24 कर्मचारियों को विगत 24 सितंबर 2017 से निलंबित किये जाने के मामले में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट , बिलासपुर का शानदार आदेश आया है।
05 मार्च को जारी आदेश में श्रम सचिव, राज्य के श्रमायुक्त , सहायक श्रमायुक्त को प्रेस प्रबंधन के खिलाफ , कर्मचारियो के पक्ष में रिफरेंस की कार्यवाही 45 दिन के अंदर करने कहा गया है।
साथी टी कामेश्वर राव और 23 साथियों के रिट याचिका पर माननीय उच्च न्यायालय ने मजीठिया क्लेम करने वाले कर्मचारियों को प्रताड़ित करने के मामले को देखते हुए प्रबंधन के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति दिए जाने की भी अनुशंसा की हैं।
जैसा कि पूर्व जानकारी है ही कि राज्य शासन से रिफरेंस किये हुए मजीठिया क्लेम के 56 मामले माननीय श्रम न्यायालय रायपुर में चल ही रहे हैं नईदुनिया जागरण प्रबंधन ने क्लेम करने वाले साथियों को पहले पानीपत और जम्मूकश्मीर तबादला करके डराने की कोशिश की, फिर मिथ्या आरोप लगा कर 24 कर्मचारियो  को  पहले 16 सितंबर से प्रेस में आने से रोका फिर 24 सितंबर से निलंबित कर दिया । इस मामले में अनावश्यक रूप से सहायक श्रमायुक्त कार्यालय में काउंसिलिंग की कार्यवाही को आगे बढ़ाया जा रहा था तथा श्रम सचिव द्वारा भी श्रम न्यायालय हेतु रिफरेंस नही किया जा रहा था।

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Wednesday 7 March 2018

मजीठिया: सुनिए किस तरह वेजबोर्ड के अनुसार वेतन मांगने पर भास्कर का बिजनेस हेड दे रहा ड्राइवर को धमकी

वकीलों के खिलाफ भी किया आपात्तिजनक भाषा का इस्तेमाल

महाराष्ट्र के औरंगाबाद में  डीबी कॉर्प के अखबार दिव्य मराठी में  ड्राईवर पद पर कार्यरत  विजय भीमराव वानखड़े को कम्पनी के बिजनेस हेड भूपेंद्र सिंह शेखावत द्वारा केबिन में बुलाकर लॉलीपॉप दिया गया कि तुम मजीठिया वेजबोर्ड का केस वापस ले लो और इस दौरान इस ड्राइवर को एक तरह से धमकी भी दी गई। इस दौरान केबिन में उप व्यवस्थापक मीर अनवर अली भी मौजूद थे। इन दोनों अधिकारियों ने विजय वानखड़े से कुल 45 मिनट तक बातचीत की। इस दौरान भूपेंद्र सिंह शेखावत ने साफ कहा कि केस करने से किसी का भला नही होता। कोर्ट की तारीख पर हाजिरी लगाते-लगाते जूते घिस जाते हैं। यह केस तुम्हारे पक्ष में नही हो सकता। यही नहीं ये भी धमकी दी गई कि भविष्य में तुम्हारे साथ कोई दुर्घटना हुई तो कंपनी एक पैसा नही देगी। विजय को यह धमकी 22 जनवरी 2018 को दी गई और साफ कहा गया कि यह पैसा हराम का है और वकील दोनो तरफ से सेटिंग करते हैं। इस दौरान ये भी कहा गया कि कहो तो तुम्हारे घरवालों से बात कर लें। और तुम्हारे घरवालों से मिलने खुद मीर अनवर तुम्हारे घर जाएंगे। इस अधिकारी ने वकीलो पर भी आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया और कहा तुमसे कंपनी ने  रिजाइन मांगा तुमने नहीं दिया। हम तुम्हे दूसरी कंपनी में ज्वाइन कराते। तुम्हारे साथियों के साथ हमने ऐसा ही किया। उन्हें रिजाइन दिलवाकर नई कंपनी में ज्वाइन करवा दिया। आप भी सुनिए किस तरह विजय वानखड़े को धमकी देते हुए वकीलों के खिलाफ आपत्तिजनक  भाषा का इस्तेमाल कर रहा है ये डीबी कॉर्प का बिजनेस हेड। जबकि विजय वानखड़े का मुकदमा लेबर कोर्ट में चल रहा है।




शशिकांत सिंह
पत्रकार और आर टी आई एक्टिविस्ट
9322411335


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मजीठिया: पत्रकारों को वेजबोर्ड से वंचित रखने के लिए राजस्थान पत्रिका ने एक और चाल चली

मजीठिया वेजबोर्ड से पत्रकारों को वंचित रखने के लिए राजस्थान पत्रिका प्राइवेट लिमिटेड ने एक और चाल चली है। पत्रिका ने डिजिटल डिवीजन के नाम से नई कंपनी बनाकर पहली किस्त के रूप में 526 कर्मचारियों को उसमें डाल दिया है। बकायदा इन कर्मचारियों के पीएफ अकाउंट तक बदल दिए गए हैं।
पत्रिका ने कर्मचारियों के साथ तगड़ा फर्जीवाड़ा किया है, क्योंकि कर्मचारियों की कंपनी तभी बदली जा सकती है, जब कर्मचारी पहली कंपनी से इस्तीफा दे और दूसरी कंपनी में उनकी नियुक्ति दिखाई जाए। ऐसा हुए बिना ही पत्रिका ने पीएफ डिपार्टमेंट के साथ मिलीभगत कर ये पूरा खेल रचा है। नई कंपनी में डाले गए सभी कर्मचारियों का नया पीएफ खाता खुलवाया गया है। इसमें यह भी बताया है कि इन कर्मचारियों ने पुरानी यानी राजस्थान पत्रिका प्रा. लि. कंपनी छोड़ दी है।
साफ है कि पत्रिका इन कर्मचारियों को किसी भी हालत में कभी भी मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के तहत वेतन नहीं देना चाहता। उसी कवादय के तहत यह फर्जीवाड़ा किया गया है। यह तो शुरुआत है। धीरे-धीरे एक-एक कर्मचारी डिजिटल या अन्य डिवीजन में डाला जाएगा। इस पोस्ट के साथ डिजिटल डिवीजन में डाले कर्मचारियों की सूची संलग्न है, अपना-अपना नाम खोज लें।







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Monday 5 March 2018

बड़ी खबर: प्रेसकर्मी की विधवा को मिला हक, फ्री प्रेस (कम्पेक्ट प्रिंटर) को मिली मात

फ्री प्रेस में कार्यरत एक कर्मचारी की पिछले दिनों कार्य के दौरान सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। दुर्घटना के बाद संबंधित थाने में रिपोर्ट दर्ज की गई, लेकिन प्रेस मालिकों का मामला होने से रिपोर्ट में कार्य के दौरान मौत होने का उल्लेख नहीं किया।  इसके बाद फ्री प्रेस प्रबंधन ने अपना हाथ बचाने के लिए संबंधित कर्मचारी की पत्नी को दो लाख रुपए देने का लालच देकर उसके सारे दस्तावेज ले लिए और उसे सारे अधिकारों से वंचित कर दिया।
दोस्तों मामला सुभाष इंगले का है,जो सिक्यूरिटी गार्ड के रूप में पहले दूसरी कंपनी में कार्यरत था उसकी काबिलियत के भरोसे फ्री प्रेस प्रबंधन ने अपने यहां नौकरी पर रख लिया। उसे नाम तो दिया सिक्यूरिटी गार्ड का, लेकिन उससे मार्केट के अनेक कार्य करवाए जाते थे, जैसे बिल उगाना, चैक लाना, चैक लगाना, विज्ञापन एजेंसियों से विज्ञापन लाना आदि कई कार्य करवाए जाते थे। इसी दौरान उसे किसी कार्य से भेजा और सड़क दुर्घटना में उसकी मौत हो गई। मौत के बाद पुलिस रिपोर्ट में कहीं सुभाष इंगले को फ्री प्रेस का कर्मचारी का उल्लेख नहीं किया और न नौकरी के दौरान मृत्यु लिखी गई। इतना होने के बाद फ्री प्रेस में बैठे मालिक के एक खास जो भी खुद कर्मचारी है, ने सुभाष इंगले की विधवा सुनंदा इंगले को पैसों का लालच देकर सारे दस्तावेज ले लिए और बाद में पैसे भी नहीं दिए।  विधवा परेशान होकर इधर-उधर भटकी रहती और लोगों के यहां बर्तन और कपड़े धोकर अपना जीवन-यापन कर रही थी। बाद में फ्री प्रेस के विरुद्ध मजीठिया का केस लगाने वाले राजेश प्रजापत के बाद उक्त विधवा का फोन आया तो उन्होंने तुरंत हमसे सम्पर्क किया और हम पूरी कहानी सुनकर वकीलों से राय- ली। वकीलों का कहना था कि उक्त महिला के पास कोई दस्तावेज नहीं है, ऐसे में कानूनी लड़ाई हार सकते हैं, इसके बाद कुछ वरिष्ठों से चर्चा की तो मामला दस्तावेजों को रिकार्ड में लाने के सामने आया है और अपने अभियान की शुरुआत की।
सबसे पहले यह निर्णय लिया गया कि उक्त मामला दुर्घटना का है, इसलिए जनसुनवाई में आवेदन लगाने की बात हुई। इसके लिए हमने वकील से सम्पर्क किया तो एक इसी प्रेस से प्रताड़ित वकील हमें मिला और उन्होंने बिना पैसे लिए एक आवेदन तैयार कर सीधे जनसुनवाई में लगाने के लिए दिया, जिसमें पीएफ का पैसा भी उल्लेख किया गया। कलेक्टर ने सीधे आवेदन पर कार्रवाई के लिए भविष्यनिधि आयुक्त को भेजा है। यहा दो माह तक कार्रवाई चलती रही। अंतः में महिला के बयान हुए तो हमें भविष्यनिधि में सुनवाई कर रहे अधिकारियों से बयान से दूर रहने की हिदायत दी।  विधवा सुनंदा इंगले के जब बयान लिए गए तो उन्होंने सुभाष इंगले के पेंशनर होने की बात कह दी। जिस पर भविष्यनिधि आयुक्त प्रेस के दवाब में उक्त प्रकरण खारिज करने के फिराक में थे, लेकिन आरटीआई व्दारा मिली जानकारी के आधार पर जब भविष्यनिधि आयुक्त को बताया गया कि कार्य करने वाला व्यक्ति कोई भी हो, अगर वह कार्य कर रहा है तो उसकी पीएफ काटा जाना चाहिए। इसी आधार पर भविष्यनिधि आयुक्त ने 2012 से लेकर 15 अगस्त 2017 तक का पैसा फ्री प्रेस (काम्पेक्ट प्रिंटर को जमा कराने) के निर्देश दिए।  एक दो दिन में सुनंदा इंगले को भविष्यनिधि आयुक्त उक्त रकम सौंपेंगे।
इसकी खबर एक अखबार ने 2 मार्च को ही प्रकाशित कर दी, जबकि उक्त राशि का चेक न तो सुनंदा जैन को मिला था, न ही फ्री प्रेस की ओर से कोई उपस्थित था। इस संबंध में भविष्यनिधि आयुक्त से बात की तो उन्होंने 3 मार्च को 3.80 लाख का इंश्यूरेंस और पांच लाख 10 हजार रुपए के क्लेम कागज सौंपे। इसके बाद आईसीआईसीआई बैंक में विधवा सुनंदा इंगले के खाते में फ्री फ्रेस प्रबंधन व्दारा जमा कराए गए भविष्यनिधि व दंड की राशि का चेक 3 लाख रुपए 3 मार्च को जमा कराया गया।
दोस्तों पूरे मामले में हमारा उद्देश्य सुभाष इंगले की पत्नी को मजीठिया दिलाने का था, लेकिन हमारे पास दस्तावेज नहीं होने से मामला अटक रहा था। इसिलए हमने जनसुनवाई से कार्रवाई शुरू की। अब सुनंदा इंगले का रिकार्ड भविष्यनिधि कार्यालय में 2011 से 15 अगस्त 2017 तक दर्ज हो गया है।  अब कानूनविदो से चर्चा कर मजीठिया की कार्रवाई की जाएगी। लेकिन इस संबंध में भविष्यनिधि आयुक्त की ओर से असहयोग की बात कही जा रही है, वे हमें दस्तावेज देने से इनकार कर रहे हैं। अगर कोई पत्रकार साथी हमें सहयोग करें और भविष्यनिधि से 2011 से 16 अगस्त 2017 तक के पीएफ के दस्तावेज दिलाने में मदद करें तो निश्चित रूप सके 5 से 7 लाख रुपए की मदद उक्त विधवा को और की जा सकती है। वैसे क्लेम के दस्तावेज भी हमारी मजीठिया के दौरान मदद करेंगे।  इस पूरे मामले में फ्री प्रेस के राजेश प्रतापत की भूमिका को हम प्रणाम करते हैं, क्योंकि उन्होंने सुनंदा इंगले को साथ ले जाकर जनसुनवाई में आवेदन लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। दोस्तों आज एक विधवा के चेहरे पर पैसे मिलने की खुशी देखकर हमारी आंखें नमः हो गई और विधवा का आशीर्वाद पाकर हम धन्य हो गए।  अगर इसके बाद भी हम हक की लड़ाई नहीं लड़े तो हमारे जीवन के क्या मायने हैं यह सोचे। हम पत्रकार है या कुछ ओर...।
(मजीठिया क्रांतिकारी ग्रुप से)


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