Tuesday 27 March 2018

मजीठिया: श्रम मंत्री गंगवार से की पीड़ित पत्रकारों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट की मांग


आज पत्रकारों के एक प्रतिनिधिमंडल ने मजीठिया वेजबोर्ड और पत्रकारों की नौकरी को लेकर आ रही दिक्कतों के बारे में केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार से उनके कार्यालय श्रम शक्ति भवन, नई दिल्ली में मिलकर उन्हें अवगत कराया कि देशभर में 20 हजार से अधिक मीडिया कर्मियों को मजीठिया लागू करने और इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने की मांग करने पर नौकरी से निकाल दिया गया है और उन्हें पिछले तीन साल में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा है. इस संबंध में मंत्री जी को दिए एक ज्ञापन में मीडिया कर्मियों के हो रहे उत्पीड़न को खत्म करने के लिए तत्काल कड़े कदम उठाए जाने की मांग की गई है. मंत्री जी से चर्चा के दौरान मीडिया कर्मियों की नौकरी, मजीठिया वेज बोर्ड और अखबार मालिकानों के श्रमिक विरोधी रवैये पर विचार विमर्श हुआ।
बातचीत की शुरुआत हुई इस बात के साथ कि मंत्री जी जल्द ही सभी राज्यों लेबर कमिशनरों के साथ मजीठिया को लेकर बैठक करें जिसमे पत्रकारों की भी भागीदारी हो। लेबर कमिशनरों के जरिए मालिकानों को नोटिस भिजवाया जाए और शपथ पत्र के साथ जवाब लिया जाये कि उनके संस्थान में मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वर्कर को वेतन दे रहे हैं या नहीं। अगर दे रहे हैं तो वेतन पर्ची संलग्न करें।अगर वेज बोर्ड से कम वेतन दे रहे हैं, तो ऐसा क्यों?
दूसरी बात यह हुई कि अगर अख़बार मालिकान वेज बोर्ड के अनुसार वर्कर को वेतन नहीं दे रहे हैं, तो उन पर लगने वाली जुर्माने की राशि बढ़ाई जाए और साथ में सजा अनिवार्य हो।
तीसरी बात यह हुई कि मजीठिया के केस के निपटारे के लिए राज्यों में एक फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनाया जाये, जिसमे प्रति दिन केस की सुनवाई हो और 3 माह में केस निपटाने की मियाद तय की जाए। अभी हालत यह है कि डी एल सी केस को रोक कर बैठ जाते हैं, फिर लेबर कोर्ट का रवैया भी ऐसा ही होता है। इस स्थिति में वर्करो को समय से कुछ नहीं मिलेगा।
चौथी बात यह हुई कि पत्रकार जब साल और दो साल के कॉन्ट्रैक्ट में बंधकर काम करेंगे, तो उन्हें रिन्यूअल का डर हमेशा सताता रहेगा, ऐसी स्थिति में कोई पत्रकार ईमानदारी से काम नहीं कर सकेगा। वह हमेशा वही करेगा, जो मालिक कहेगा। सच्ची पत्रकारिता उससे नहीं हो पाएगी, इसलिये मीडिया हाउसेज से कॉन्ट्रैक्ट की प्रथा खत्म हो।
पांचवीं बात यह हुई कि जब मजीठिया आयोग पर काम हो रहा था, उसके बाद दो वेतन आयोग आ गए और वे कहीं कहीं लागू भी हो गए, पर हमारा वेतन आयोग अभी भी लागू नहीं हुआ। मांगने पर नौकरी अलग से चली जाती है।बावजूद इसके पत्रकारों के लिए नए वेतन आयोग का गठन हो, क्योंकि बहुत जगह सातवां वेतन आयोग का फायदा लोगों को मिल रहा है।नए वेज बोर्ड में पिछली खामियों को पूरी तरह दूर किया जाये और उसे स्पष्ट किया जाये।
छठी बात यह हुयी कि वेज बोर्ड में पहले सिर्फ प्रिंट मीडिया के लोग ही हक़दार होते थे। ऐसा इसलिए कि जब wja बना था तब इलेक्ट्रानिक मीडिया में रेडियो और दूरदर्शन आता था और ये सरकारी थे। अब गैर सरकारी चैनल, रेडियो तथा इंटरनेट आ गए हैं, तो अब इन्हें भी उसमें शामिल किया जाये।
अंत में पेंशन की बात हुई कि हमें नौकरी तक पैसे कटवाने के बाद भी 13 सौ रुपये मिलते हैं, जो सही नहीं है।
मंत्री जी और उनके सचिव ने एक बात कही क़ि हमने इनसे जुड़ी कुछ चीजें अपनी साइट पर डाली है। आप सब उसे देखें और हमें सुझाव दें। हम इनके साथ ही उस पर भी काम करेंगे और आप सब फिर आइए, मुद्दे दीजिये। हम हर संभव काम करेंगे।

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