Thursday 9 February 2017

मुकेश अंबानी को मिंट हिंदुस्तान टाइम्स बेचेंगी शोभना भरतिया!

हिंदुस्तान टाइम्स से एक बड़ी खबर आ रही है कि इसकी मालकिन शोभना भरतिया और रिलायंस कंपनी के मालिक मुकेश अंबानी के बीच एक बड़ी डील हुयी है, जिसके तहत मुकेश अंबानी अखबार मिंट और फ्लैग शिप हिंदुस्तान टाइम्स को खरीद रहे है। इन दोनों अखबारों के मुम्बई के कर्मचारी अब रिलायंस के कर्मचारी होंगे और मुंबई के सीएनबीसी न्यूज़ 18 के कार्यालय में बैठेंगे।


सीएनबीसी न्यूज़ 18 पर रिलायंस का कब्जा है। आपको बता दूँ कि हिंदुस्तान टाइम्स और हिंदुस्तान के सैकड़ो कर्मचारियों ने जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार वेतन और एरियर की मांग को लेकर क्लेम भी लगा रखा है। कई मामलो में शोभना भरतिया को पार्टी भी बनाया गया है। बाजार में चर्चा है कि इस बड़ी डील में हिंदुस्तान टाइम्स को लेकर भी मुकेश अंबानी और शोभना भरतिया के बीच बातचीत हुई है। लेकिन अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हुई है ।  



शशिकांत सिंह
पत्रकार और आर टी आई एक्सपर्ट 9322411335


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मजीठिया: मीडियाकर्मियों के वकीलों की टीम रणनीति बनाने में हुई व्यस्त

जिन साथियों ने अब तक नहीं लगाया क्लेम वे भी सामने आये

जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में अखबार मॉलिकों को सुप्रीमकोर्ट की अवमानना का दोषी साबित कराकर उन्हें सजा दिलाने की रणनीति में मीडियाकर्मियों के जाने माने वकीलों की टीम वकील प्रशांत भूषण, सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंसाल्विस,उमेश शर्मा, परमानंद पांडे और दूसरे सभी वकील जी जान से लग गए है।मजीठिया वेज बोर्ड मामले की सुनवाई 23 फरवरी को माननीय सुप्रीमकोर्ट में होने जारही है। इस मामले को लेकर मीडियाकर्मियों के सभी वकील रणनीति बनाने में जुट गए हैं। इस मामले की सुनवाई माननीय न्यायाधीश रंजन गोगोई जी कर रहे हैं। 23 फरवरी को सुप्रीमकोर्ट की डेट को लेकर अखबार मॉलिकों के खेमे में भी अफरातफरी है। देश भर के मीडियाकर्मियों को अपने सभी वकीलों पर जमकर भरोसा है। मीडियाकर्मियों के सभी वकील भी पूरी तरह आत्मविस्वास से लबरेज हैं।

उधर अखबार मॉलिकों ने एक नयी रणनीति बनाई है जिसके तहत वे अपने उन कर्मचारियों को जिन्होंने क्लेम नहीं लगाया है उन कर्मचारी का रिजाइन लेकर नयी कंपनी में ज्वाइन कराकर धोखे से उन्हें कांट्रेक्ट पर रख रहे हैं और अगर ये कर्मचारी विरोध करते हैं तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखा रहे हैं। ऐसा होने पर वो कर्मचारी स्टे पाने के लायक भी नहीं बच पा रहे हैं। इसलिए सभी लोगो को कहा जा रहा है जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड के तहत कामगार आयुक्त कार्यालय में क्लेम लगाइये। अगर आपने क्लेम लगाया है और मालिक आपका ट्रांसफर करते हैं तो आपको स्टे का एक ग्राउंड बनता है। अगर आपने क्लेम नहीं लगाया और आपका ट्रांसफर होता है या आपको कंपनी नौकरी से निकालती है तो आपको स्टे लेने में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ेगा। फिलहाल अब सबकी नजर 23 फरवरी को माननीय सुप्रीमकोर्ट के फैसले पर होगा।  



शशिकांत सिंह
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Wednesday 8 February 2017

मजीठिया वेजबोर्ड मामले की सुनवाई 23 को, अखबारकर्मी खुश


देश भर के अखबारों के मालिकों के खिलाफ मजीठिया वेजबोर्ड लागू करने के माननीय सुप्रीम कोर्ट में आदेश न मानने पर चल रहे अवमानना मामले की सुनवाई एक बार फिर से शुरू होने जा रही है। पिछले दिनों कोर्ट में सुनवाई की तिथियों में हुए फेरबदल के चलते 17 जनवरी को होने वाले सुनवाई टाल दी गई थी। तब से मजीठिया वेजबोर्ड की लड़ाई लड़ रहे पत्रकार और गैरपत्रकार कर्मचारी सुनवाई की तिथि का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। आज सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट में सिविल कंटेप्ट पेटिशन नंबर 411/2014 व इससे संबंद्ध दर्जनों अवमानना याचिकाओं के स्टेट्स को अपडेट किया गया है। इसमें आगामी सुनवाई की संभावित तिथि 23 फरवरी 2017 दर्शाई गई है। इससे माना जा रहा है कि आगामी 23 फरवरी को मामला लिस्टेट हो जाएगा और सुनवाई फिर से निर्णयक दौर में पहुंच जाएगी।


ज्ञात रहे कि कार्पोरेट व मीडिया जगत से जुड़ी सहारा जैसी बड़ी कंपनी के मालिक को जेल की हवा खिलाने के साथ ही निवेशकों व कर्मियों की बकाया राशि दिलवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय खंडपीठ में शामिल जस्टिस रंजन गोगोई की दो सदस्यीय खंडपीठ ही मजीठिया वेजबोर्ड के मामले की सुनवाई कर रही है। जिस तरह से सहारा की एमबी वैली को जब्त करने को लेकर जस्टिस रंजन गोगोई ने कड़ा रुख अपनाया है, उससे मजीठिया वेजबोर्ड की लड़ाई लड़ रहे प्रिंट मीडिया के कर्मचारियों को भी उनके वेतनमान की बकाया राशि व नया वेतनमान मिलने के अलावा उन पर किए गए जुल्मों का न्याय जल्द मिलने की आस बंधी है। वहीं अखबार मालिकों की हर बार बड़े-बड़े वकीलों के जरिये मामले को लटकाए रखने की रणनीति भी फेल होती दिख रही है।


यह मामला अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है। जस्टिस गोगोई कई बार कड़ा रुख भी दिखा चुके हैं। अब उन्होंने इस मामले से जुड़े कानूनी पहलुओं पर सुनवाई शुरू की है, ताकि लंबे खिंचते इस मामले को जल्द निपटाया जा सके। पिछली बार की सुनवाई में अखबार मालिकों का पक्ष सुन लिया गया है और इस बार याचिकाकर्ताओं का पक्ष सुनने के बाद बड़ा फैसला आने की उम्मीद है। हालांकि मामला पेचिदा होने के कारण निर्णय आने में कुछ समय भी लग सकता है, मगर अदालत के रूख से यह बात तो स्पष्ट दिख रही है कि अखबार कर्मियों को न्याय जरूर मिलेगा।


-रविंद्र अग्रवाल, धर्मशाला (हिप्र)
9816103265
ravi76agg@gmail.com



मजीठिया: रजिस्ट्री का आश्वासन जल्द सूचीबद्ध होगा मामला

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Monday 6 February 2017

मजीठिया मांगने वाली नयी दुनिया की दिव्या सेंगर का ट्रांसफर सिविल कोर्ट ने रोका










माननीय सुप्रीमकोर्ट के निर्देश पर जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार अपना वेतन और एरियर मांगने वाली इंदौर के नयी दुनिया अखबार में एक्ज्क्युटिव विपणन पद पर कार्यरत दिव्या सेंगर का नयी दुनिया प्रबंधन ने इंदौर से 1200 किलोमीटर दूर छत्तीसगढ़ के रायपुर में ट्रांसफर कर दिया था। दिव्या सेंगर ने इस मामले में अदालत की शरण ली। जिसके बाद सप्तम व्यवहार न्यायाधीश ने इस ट्रांसफर को गलत मानते हुए इस पर मामले के निराकरण होने तक रोक लगा दी है। इस रोक के बाद दैनिक जागरण समूह के अखबार नयी दुनिया को गहरा झटका लगा है।

बताते हैं कि नयी दुनिया अखबार में एक्ज्क्युटिव विपणन पद पर कार्यरत दिव्या सेंगर ने 30 दिसंबर 2016 को श्रम आयुक्त के पास जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन और एरियर दिलाने के लिए क्लेम लगाया था। जिसके बाद नयी दुनिया प्रबंधन को श्रम आयुक्त कार्यालय ने 3 जनवरी 2017 को नोटिस भेजा।  इस क्लेम की जानकारी जब अखबार प्रबंधन को हुई तो हड़कंप मच गया और प्रबंधन ने आनन फानन में दिव्या सेंगर का ट्रांसफर 14 जनवरी को छत्तीसगढ़ के रायपुर में कर दिया तथा 18 जनवरी को रिलिवंग आर्डर भी थमा दिया।

दिव्या इस मामले को लेकर अदालत गईं और अपने ट्रांसफर को पूरी तरह गलत बताया। मामले की सुनवाई करते हुए इंदौर के सप्तम व्यवहार न्यायाधीश अमर सिंह सिसोदिया ने इसे काफी गंभीरता से समझा और साफ तौर पर आदेश दिया कि अगर चुनौतीपूर्ण आदेश 14-01-2017 को स्‍थगित नहीं किया जाता है तो वाद प्रस्तुत करना निष्‍फल हो जाएगा।

प्रथम दृष्टया संपूर्ण दस्तावेज वादिनी के पक्ष में है। इस मामले में अखबार प्रबंधन का कहना था कि वादिनी की नियुक्ति के समय नियुक्ति पत्र में दी गई शर्तों के आधार पर उपलब्ध मानवश्रम नियोजन को देखते हुए रायपुर में दो कर्मचारियों की सेवा त्याग के बाद वहां की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए स्थानांतरण किया गया। इस बावत शर्तें नियुक्ति पत्र में निहित है। तथा वादिनी ने नियुक्ति पत्र में स्वेच्छा से हस्ताक्षर भी किया है।

विद्वान न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा है कि यह स्थानांतरण विद्वेशपूर्ण और दुर्भावनापूर्ण प्रतीत होता है। प्रकरण के अंतिम निस्तारण तक इस पर रोक लगाई जाती है।  



शशिकांत सिंह
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मीडिया कर्मियों की छंटनी को नोटबंदी से जोड़ा जाना कहां तक उचित है?

आदरणीय पत्रकार साथियों,

इन दिनों प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया घरानों ने कर्मचारियों को निकालने की जो नीति अपना रखी है, उसे नोटबंदी से जोड़ा जाना कहां तक उचित है? जनाब, अखबार सिर्फ एक ही बहाना ढूंढ रहे हैं कि मजीठिया वेजबोर्ड में कवर होने वाले कर्मचारियों की संख्या घटाकर अपनी जेब कैसे सुरक्षित रखी जाए।

मजीठिया आंदोलन की शुरुआत से अब तक वैसे भी कई पत्रकारों को बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है। अखबार आज भी एक कर्मचारी से कम से कम तीन कर्मचारियों जितना काम ले रहा है।

अब अगर कर्मचारियों की छंटनी का ठीकरा नोटबंदी पर फोड़ा जाए तो यह मानना पड़ेगा कि अखबार काले धन से ही चलते थे, तो यह संभव नहीं है, क्योंकि दो साल पहले तक हम भी उसका हिस्सा थे और मीडिया में कुछ भटकी हुई मछलियां हो सकती हैं, सारी की सारी नहीं। दो साल में वैसे ही अखबारों ने कई कर्मचारियों को निकाला है, इससे उनका बोझ घटा ही है। ऐसे में अब क्या मुसीबत आन पड़ी जो नोटबंदी का बहाना बनाया जा रहा है।

नोटबंदी की अवधि के दौरान जरूर कुछ विज्ञापन कम हुए थे, लेकिन अब अखबारों में फिर से विज्ञापनों की भरमार नजर आ रही है। यहां तक कि जो तथाकथित शारीरिक सौष्ठव वाले नुस्खों के विज्ञापन नजर आना बंद हो गए थे, पिछले दिनों से उनके भी दर्शन अखबारों में होने लग गए हैं।

देर-सवेर ही सही, सुप्रीम कोर्ट में चल रहा पत्रकारों के वेजबोर्ड की अवमानना का मामला रंग लाना ही है, क्योंकि बजट भाषण में भी वित्तमंत्री ने श्रमिक हितों में लागू वेजबोर्ड पर एक लाइन बोली, जो कहीं इंगित नहीं की गई।

मतलब साफ है, मध्यम वर्ग को जब सरकार ने ईमानदार मानकर आयकर में छूट दी है, तब यह संकेत माना ही जा सकता है कि सरकार श्रमिक हितों के खिलाफ नहीं जाएगी। मान भी लें कि नोटबंदी से तात्कालिक बाजार में उठापटक हुई, लेकिन जितनी छंटनी मीडिया घराने कर रहे हैं, उससे तो यह लग रहा है कि नोटबंदी का सारा का सारा आसमान इन्हीं पर टूटा है, जो एक सामान्य आदमी की समझ से भी परे है। कल ही एक आरएएस अफसर से चर्चा हुई तो उसका भी यही कन्क्लूजन था कि हर जगह पत्रकारों के वेजबोर्ड को लेकर चर्चा है और यह छंटनी की प्रक्रिया भी उसी से जुड़ी है, क्योंकि कानून से ऊपर कोई नहीं है।

नोटबंदी को अगर अधिकृत कारण बताया जाता है तो जनता में सीधा संदेश यही जाएगा कि लोकतंत्र का चौथा पाया ही देश के लिए दीमकबना हुआ था। मीडिया घरानों का दूसरा टारगेट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी हो सकते हैं जिन्होंने नोटबंदी जैसा कठोर निर्णय लिया। मीडियाकर्मियों को निकालकर प्रधानमंत्री को दबाव में लाने का दुस्साहस भी माना जा सकता है
जो मीडिया घरानों और उनसे परोक्ष से जुड़े राजनीतिक दलों की चाल भी हो सकती है, ताकि मीडिया घराने फिर कोई न कोई बड़ा लाभ सरकारों से ले सकें। आगे-पीछे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी वेजबोर्ड के लिए कानून लागू होगा ही। हो सकता है, यह नीति इसे रोकने का हिस्सा भी हो सकती है।
हालांकि, इसके बाद भी कर्मचारी को तो उसके हक के लिए संघर्ष की इबारत लिखने को कमर कसनी ही होगी, क्योंकि मैनेजमेंट किसी का सगा नहीं होगा दोस्तों..., हक तो उसी को मिलेगा जो मांगने की हिम्मत करेगा।

सादर
एक पत्रकार की कलम से...

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मजीठिया से बचने के लिए मार्केटिंग वालों पर पर गाज गिरा रहे हैं अखबार मालिक

मुंबई सहित झारखंड के कुछ साथियों ने बताया कि वे जिस अखबार में काम करते थे वहां खूब बिजनेस देते थे, मगर विज्ञापन प्रबंधक ने केबिन में बुलाकर जबरन इस्‍तीफा लिखवा लिया और कहा कि मेरे ऊपर काफी दबाव है। कमोबेश हर जगह
यही स्थिति है।


आपको बता दें कि मार्केटिंग विभाग को अखबार का सबसे कमाऊ विभाग माना जाता है, लेकिन अखबार मालिक आखिर अपने इस कमाऊ पूत को क्यों निकाल रहे हैं, इसकी वजह क्या है। इसपर खोजबीन की गई तो पता चला की अखबार मालिक मार्केटिंग के कुछ लोगों को निकालकर दूसरों का टारगेट बढ़ाने की योजना बना रहे हैं ताकि खर्च कम हो और माल ज्यादा आए और टारगेट के खौफ से कर्मचारी भाग जाए तो उतने ही वेतन पर दो नए कर्मचारी को लाया जाए और जो आएं उन्हें नई कंपनी में या प्लेसमेंट एजेंसी के जरिए ज्वाइन कराया जाए ताकि वे मजीठिया ना मांग सकें।  



शशिकांत सिंह
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