Saturday 30 November 2019

मोदी सरकार ने लोकसभा में पेश किया मजदूर विरोधी बिल, विपक्ष ने किया विरोध

नई दिल्ली। सरकार ने बृहस्‍पतिवार को लोकसभा में 'औद्योगिक संबंध संहिता, 2019' और उससे संबंधित एक विधेयक पेश किया जिसमें श्रमिक संघ, औद्योगिक प्रतिष्ठानों या उपक्रमों में रोजगार की शर्तें, औद्योगिक विवादों की जांच तथा निपटारे एवं उनसे संबंधित विषयों के कानूनों को मिलाने का और संशोधन करने का प्रावधान है। सदन में श्रम और रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने इस संबंध में विधेयक पेश किया।
हालांकि, इससे पहले विधेयक पेश किए जाने का विरोध करते हुए आरएसपी के एन के प्रेमचंद्रन, तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय और कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने उक्त संहिता को कर्मचारी विरोधी बताते हुए सरकार से इसे श्रम पर संसदीय स्थायी समिति को भेजने की मांग की। प्रेमचंद्रन ने कहा कि इसमें राज्यों से जरूरी परामर्श नहीं किया गया है। सौगत राय ने कहा कि किसी मजदूर संगठन ने इस संहिता की मांग नहीं की थी और उद्योग संगठन चाहते थे, इसलिए सरकार इसे लेकर आई है। उन्होंने इसे 'श्रमिक विरोधी' बताते हुए कहा कि इसे श्रम पर स्थाई समिति को भेजा जाना चाहिए। चौधरी ने भी इसे 'श्रमिक विरोधी' बताते हुए स्थाई समिति को भेजने की मांग की।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि सदस्यों ने जो भी कारण बताए हैं, वह विधेयक के विरोध में हैं और चर्चा में रखे जाने चाहिए। विधेयक पेश किए जाने के विरोध में कोई कारण सदस्य नहीं बता रहे। संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि सदस्यों ने एक भी कारण ऐसा नहीं बताया है जिससे साबित हो कि इस सदन को विधेयक लाने का विधायी अधिकार नहीं है।
भाकपा के के. सुब्बारायन और माकपा के अब्दुल मजीद आरिफ तथा एस वेंकटेशन ने भी विधेयक पेश किए जाने के विरोध में बोलने की अनुमति मांगी लेकिन लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि पूर्व में नोटिस नहीं दिया गया। सदस्य चर्चा के दौरान विस्तार से अपनी बात रख सकते हैं। बात रखने की अनुमति नहीं मिलने पर वामदलों के सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया।
संतोष गंगवार ने कहा कि सरकार लंबी चर्चा और श्रम संगठनों तथा सभी राज्य सरकारों से परामर्श के बाद औद्योगिक संबंध संहिता लेकर आई है। इसमें कोई भी प्रावधान मजदूरों के हक के खिलाफ नहीं है। इसके बाद उन्होंने 'औद्योगिक संबंध संहिता, 2019' को सदन में पेश किया।

क्‍या है बिल में
लोकसभा में पेश बिल के विभिन्न प्रावधानों में औद्योगिक संस्थानों में हड़ताल करने को कठिन बनाया गया है, जबकि कर्मचारियों की बर्खास्तगी को आसान बनाया गया इस विधेयक में श्रमिकों की एक नई श्रेणी बनाई गई है फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट, यानी एक नियत अवधि के लिए रोजगार। इस अवधि के समाप्त होने पर कामगार का रोजगार अपने आप खत्म हो जाएगा। इसके जरिए औद्योगिक संस्थान ठेकेदार के जरिए श्रमिकों को रोजगार देने के बजाय अब खुद ही ठेके पर लोगों को रोजगार दे सकेंगे। इस श्रेणी के कामगारों को तनख्वाह और सुविधाएं नियमित कर्मचारियों जैसी ही मिलेंगी। इसी तरह किसी भी संस्थान में श्रमिक संघ को तभी मान्यता मिलेगी जब उस संस्थान के कम से कम 75 प्रतिशत कामगारों का समर्थन उस संघ को हो। इससे पहले यह सीमा 66 प्रतिशत थी। नए विधेयक  के तहत सामूहिक आकस्मिक अवकाश को हड़ताल की संज्ञा दी जाएगी और हड़ताल करने से पहले कम से कम 14 दिन का नोटिस देना होगा।
अब नौकरी जाने की सूरत में किसी भी कर्मचारी को उस संस्थान में किए गए हर वर्ष काम के लिए 15 दिन के वेतन  का ही मुआवजा मिलेगा। इससे पहले के विधेयक में हर वर्ष के काम के बदले 45 दिन के मुआवजे का प्रावधान था। नौकरी से निकाले जा रहे कर्मचारी को नए कौशल अर्जित करने का मौका मिलेगा जिससे उसे दोबारा रोजगार मिल सके। इसका खर्च पुराना संस्थान ही उठाएगा।
इस बिल के कानून बनने पर ट्रेड यूनियन एक्ट 1926, इंडस्ट्रियल एंप्लॉयमेंट एक्ट 1946, और इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट 1947 अपने आप खत्म हो जाएंगे। इस विधेयक को लाने का उद्देश्य भारत में काम करने की सुगमता यानी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की रैंकिंग बेहतर करना है।
श्रम सुधारों को तेज करने के लिए श्रम मंत्रालय ने 44 श्रम कानूनों को चार कोर्ट में बांटने का जिम्मा उठाया था - वेतन औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य, सुरक्षा और काम करने की स्थितियां। इनमें से वेतन संबंधी श्रम कोड को संसद ने अगस्त में ही पारित कर दिया था जबकि स्वास्थ्य सुरक्षा और काम करने की स्थितियां संबंधी विधेयक श्रम संबंधी संसदीय समिति के हवाले है।

Thursday 28 November 2019

IFWJ Mourns the Death of Veteran Journalist Madhu Shetty

Veteran journalist Madhu Shetty passed away this morning at Mumbai at the ripe old age of 89. Shetty was closely associated with Bombay Union of Journalists and Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) in different capacities. He played a significant role in establishing the Mumbai Press Club in 1968 in collaboration with Bombay Union of Journalists.

Shetty fought for the Goa Mukti Sangram along with SB Kolpe, who later became the President of the Indian Federation of Working Journalists. He fought for the implementation of the Palekar Tribunal Award in the newspapers. Shetty started his career from the Free Press Journal and later he became the special correspondent of Patriot and Link weekly in Bombay. Patriot was a left-

leaning newspaper, published from New Delhi and veterans like E. Narayanan and indomitable freedom fighter Aruna Asif Ali were moving spirits for the starting the newspaper.

He also worked for some time for a weekly ‘Clarity’ being published from Mumbai. Shetty was also a social worker of a very good repute and was elected as a Corporator to the Bombay Municipal Corporation. IFWJ President B.V. Mallikarjunaiah and Secretary-General Parmanand Pandey have expressed their deep sorrow over the sad demise of Comrade Shetty, who always for the cause of workers and downtrodden.


Parmanand Pandey
Secretary-General, IFWJ

Saturday 16 November 2019

अब संपादक एक डरा-सहमा, दीन-हीन और दलाल पद है



-मत बांधों हमसे इतनी उम्मीदें, हम अब निष्पक्ष नहीं
समतल नहीं उत्तल और अवतल दर्पण हो गया मीडिया
-अधिकारियों से भी अधिक शिकायतें हैं पत्रकारों के खिलाफ: पीसीआई

आज नेशनल प्रेस डे है। भारतीय प्रेस काउंसिल यानी पीसीआई की स्थापना इसलिए की गई थी कि मीडिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर काम करें। लेकिन विगत कुछ वर्षों से पीसीआई पत्रकारों की शिकायतों की सुनवाई नहीं कर पा रहा है। पीसीआई का उद्देश्य ही भटक गया है। कारण, पत्रकारों की इतनी शिकायतें पीसीआई को मिली हैं कि समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर किस मीडिया संस्थान और किस पत्रकार को पीला, नीला या काला मानें। साफ है कि अब कारपोरेट जनर्लिज्म को दौर है। जनपक्षधरता बची ही नहीं। एक उदाहरण दे रहा हूं, देहरादून में आयुष छात्रों की फीस कई गुणा बढ़ा दी गई। मुख्यधारा के समाचार पत्रों या चैनलों का एक भी जिन्दा दिल पत्रकार या संस्थान ऐसा नहीं है जिसने घटनात्मक रिपोर्टिंग के अलावा समस्या की जड़ तक जाने का प्रयास किया हो। हालांकि 50 दिन से धरने पर बैठे इन बच्चों में पत्रकारों के कई सगे-संबंधी भी हैं, लेकिन उनकी मजबूरी यह है कि वो चाहकर भी सरकार के खिलाफ नहीं जा सके। कारण, सरकार विज्ञापन रोक देगी तो संपादक की कुर्सी हिल जाएगी। संपादक एक डरा हुआ आदमी है, वह संपादक कम दलाल अधिक है। उसे खबरों से अधिक मालिक के काम शासन से कराने होते हैं। संपादक का अर्थ असहाय और चाटुकार है। इसलिए अब कोई सरकार के खिलाफ चूं नहीं करेगा तो लोगो मत बांधों हमसे अधिक उम्मीदें। हम मिशनरी नहीं कारपोरेट पत्रकार हैं। तो बोला, प्रेस डे की जय।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]

Thursday 14 November 2019

डीएनए के 73 कर्मचारियों के टर्मिनेशन और मशीन तीसरी पार्टी को बेचने पर अदालत ने लगाई रोक

मुम्बई से पिछले दिनों अपना कारोबार समेटने वाले जी समूह के अंग्रेजी दैनिक डीएनए के कर्मचारियों के लिए एक अच्छी खबर आ रही है। यहां महाराष्ट्र के ठाणे इंस्ट्रीयल कोर्ट ने  डीएनए के 73 कर्मचारियों के टर्मिनेशन और मशीन तीसरी पार्टी को बेचने पर अंतरिम रोक लगा दी है। आपको बता दें कि डीएनए की कर्मचारी यूनियन डिलिजेंट मीडिया कारपोरेशन कर्मचारी यूनियन वर्सेज मेसर्स डिलिजेंट मीडिया कारपोरेशन लिमिटेड एंड अदर्स के मामले में इंडस्ट्रियल कोर्ट में चल रही सुनवाई के मामले में ठाणे की इंडस्ट्रियल कोर्ट के विद्वान न्यायाधीश एस जी दबाडग़ांवकर ने यह आर्डर 5 नवंबर 2019 को दिया। इस दौरान डीएनए कर्मचारी यूनियन को न्यूज पेपर एम्प्लाइज यूनियन ऑफ इंडिया के नेशनल सेक्रेटरी धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने भी अपना पूरा सहयोग दिया। आप को बता दें की डीएनए आर्थिक घाटे का रोना रोकर लगातार कर्मचारियों का छंटनी कर रहा था। और पिछले दिनों उसने मुम्बई में अपना प्रिंट प्रकाशन बंद कर दिया था।

सर डीएनए वाली जो न्यूज़ थी उसमें डीएनए यूनियन के वकील और कुछ पदाधिकारियों का नाम जोड़ना था।उनके वकील का नाम छूट गया था जबकि बीयूजे के एम जे पांडे का नाम हटाना है।
जो जोड़ना है वो ये है।

डिलिजेन्ट  मिडिया कॉर्पोरेशन एम्प्लॉईज युनियन  के इस मामले में  मीडिया कर्मियों का अदालत में पक्ष रखा
एडवोकेट अरुण निंबालकर ने  और सलाहकार  थे प्रदीप कदम जबकि यूनियन के अध्यक्ष हैं  सागर राठौड़,
सचिव- प्रशांत कदम,कोषाध्यक्ष हैं  क्रांती कुरणे । कार्यकारिणी के सदस्य हैं अभिषेक लोटांकर ,
 बालकृष्ण वालिंबे ,
 सहदेव दलवी  और
 विनोद म्हात्रे ।
आर्डर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न path का प्रयोग करें- https://drive.google.com/file/d/1DY3j0VdLv0CaOunP_1tfgeYohLO6AUl9/view?usp=sharing


शशिकांत सिंह
पत्रकार,आर टी आई एक्सपर्ट और वाइस प्रेसिडेंट, न्यूज़ पेपर एम्प्लाइज यूनियन ऑफ इंडिया
9322411335

उफ! एक दिन यह तो होना ही था मीडिया के साथ


  • जेएनयू के छात्रों ने गोदी मीडिया को दुत्कारा
  • छात्रों के बयान लेने के लिए तरसते रहे मीडियाकर्मी


जब मीडिया बायस हो जाए तो यह दिन तो आने ही थे। हाल में जेएनयू में फीस बढ़ोतरी के खिलाफ जो छात्रों का आंदोलन हुआ उसमें गोदी मीडिया की जो बेइज्जती हुई, वह हम सब पत्रकारों के लिए एक सबक है। जेएनयू के छात्रों ने मीडियाकर्मियों को भगा दिया और उनसे बात नहीं की। छात्रों ने बुरी तरह से पत्रकारों का जलील किया। एक भी छात्र गोदी मीडिया को बाइट देने के लिए तैयार नहीं हुआ। यहां तक छात्राओं ने दो बड़े चैनल के लेडी और जेंट्स पत्रकार को बुरी तरह डांटा। संभवतः यह पहली बार है जब छात्रों का आक्रोश मीडिया पर फूटा।
दरअसल, गोदी मीडिया ने जेएनयू को टुकड़े-टुकड़े गैंग समझ लिया है और बायस मीडिया भी इस धारणा में शामिल हो गया, जबकि देश के सबसे बेस्ट ब्रेन जेएनयू में ही हैं। मीडिया ने जब अपनी हदें पार कर ली हैं और मीडिया साफ बंटा हुआ या बिका हुआ नजर आता है तो ऐसा रिएक्शन मिलना स्वाभाविक है। हमें पत्रकारिता में सिखाया गया था कि जो बात जनसरोकार की हो, न्याय की हो, तर्क संगत हो और उससे समाज को एक संदेश जाता हो तो उस खबर को दिखाना या लिखना चाहिए। लेकिन अब मीडिया का अर्थ हो गया है कि लाला जो कहे, संपादक जिसमें बिके और वेतन-भत्ते जिस समाचार से निकले, वो समाचार परोसे। जब मीडियाकर्मी पूर्व निर्धारित स्थिति में स्टोरी एंगल लेकर जाता है तो वह बायस हो सकता है। घटनात्मक समाचार तो स्‍पॉट पर ही बनता है। जेएनयू की दस रुपये की फीस मीडिया को चुभ रही है, लेकिन उसी कोर्स के लिए जब निजी संस्थान लाखों वसूलते हैं तो उनके खिलाफ चुप्पी इसलिए होती है कि वो विज्ञापन देते हैं। इसके बावजूद उन संस्थानों की स्थिति जेएनयू के पैरों की धूल के बराबर भी नहीं होती। मीडियाकर्मियों को समझना होगा कि जेएनयू से जो मीडिया विरोध के स्वर निकले हैं वो दूर तक जाएंगे और फिर सुधीर चौधरी, अरनब गोस्वामी और अंजना जैसे पत्रकार स्टूडियो में मीडिया पर हमले या विरोध का पैनल बिठाकर बेतुकी बहस कर रहे होंगे। तो संभल जाओ गोदी मीडिया। बुरे दिन आ गए हैं।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]

Monday 11 November 2019

भड़ास एडिटर यशवंत अपने होम टाउन गाजीपुर में सड़क हादसे में बुरी तरह घायल


चोटें इतनी मिली हैं कि इसकी आदत-सी हो गई है। सो, कोई नई चोट आतंकित नहीं करती, हदस पैदा नहीं करती। कल रात स्कूटी को एक कार वाले ने उड़ा दिया। हेलमेट ने 90 फीसदी रक्षा की।

ये जो बाकी चोट तस्वीर में दिख रही है, वह हवा में दो तीन कलाबाजी खाकर लुढ़कते हुए घिसटने से दर्ज हुई। ज्यादा नहीं, पांच छह टांके लगे हैं। शरीर भर में पंद्रह सोलह जख्म हैं।

दुर्घटना के फौरन बाद ऑटो लेकर अकेले ही ग़ाज़ीपुर जिला अस्पताल पहुंचा तो देखा कि दोस्त मित्र भाई सब जमे हुए हैं। फिर मुझे कुछ न कहना- करना पड़ा। केवल आंखें बंद किए रहा। इंजेक्शन, टांके, ड्रेसिंग महसूसता रहा।

पहली तस्वीर दुर्घटना से ठीक 10 मिनट पहले की है।

बिल्कुल नए हेलमेट की हालत देखिए।

आज सुबह से हल्दी दूध, अनार जूस, मूंग खिचड़ी का सेवन कर लिया। एनर्जेटिक फील कर रहा। ना जाने क्यों जख्मों-चोटों से मोहब्बत सी हो गई है। ये होते हैं तो खुद के वजूद का एहसास होता है। वरना लोग जन्मते मरते हैं, पर कभी चैन से जख्मी होकर नहीं जी पाते!

[भड़ास एडिटर यशवंत सिंह की एफबी वॉल से]




Friday 8 November 2019

फरार आरोपी व सैकड़ों पत्रकारों को प्रताडि़त करने वाले को प्रतिष्ठित राजा राम मोहन राय पुरस्कार दिया जाना उचित नहीं....

श्रीमान सचिव महोदय
भारतीय प्रेस परिषद
नई दिल्ली।
विषय: राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक  गुलाब कोठारी को भारतीय प्रेस परिषद की ओर से प्रतिष्ठित राजा राम मोहन राय पुरस्कार देने के विरोध में।
महोदय, निवेदन है कि भारतीय प्रेस परिषद ने प्रतिष्ठित राजा राम मोहन राय पुरस्कार के लिए राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक  गुलाब कोठारी को चयनित किया है। यह पुरस्कार पत्रकारिता के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान के लिए दिया जाता है।
महोदय, परिषद ने  कोठारी को यह पुरस्कार गलत दिया है। वे इसके हकदार नहीं है। राजस्थान पत्रिका समूह के सैकड़ों पत्रकार और कर्मचारियों का आर्थिक, सामाजिक और मानसिक शोषण करने वाले व्यक्ति  गुलाब कोठारी के खिलाफ देश की विभिन्न अदालतों में पत्रकारों व कर्मचारियों की ओर से सैकड़ों मामले लंबित है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी संविधान प्रदत्त जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड पत्रकारों व कर्मचारियों को नहीं दिया। ऐसे व्यक्ति को प्रतिष्ठित राजा राम मोहन राय पुरस्कार देना देश की पत्रकारिता जगत में अचरज से देखा जा रहा है और ये समझ से भी परे है। कोठारी का पत्रकारिता के क्षेत्र में इतना ही योगदान है कि वे राजस्थान पत्रिका के संस्थापक  कर्पूरचन्द्र कुलिश के बेटे है और उनके अखबार के मालिक हैं। देश के संविधान और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाना इनकी आदत में शुमार रहा है। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि मजीठिया वेजबोर्ड के एक मामले में न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी मुरैना  सत्यम पांडे के प्रकरण क्रमांक 1363/2015 श्रम विभाग विरुद्ध डॉ.गुलाब कोठारी फिलिंग नम्बर 2753/2015 सीएनआर नम्बर एमपीजीरो-6010014702015, फिलिंग डेट 30/06/15 में पारित आदेश दिनांक 22/07/2017 को कोर्ट ने फैसले में  गुलाब कोठारी को फरार घोषित कर उनके खिलाफ स्थायी गिरफ्तारी वारंट जारी कर रखा है। (आदेश प्रति संलग्न है) न्यायिक मजिस्ट्रेट क्रम संख्या आठ जयपुर महानगर कोर्ट में श्रम विभाग की ओर से मजीठिया वेजबोर्ड मामले में राजस्थान पत्रिका समूह व उनके मालिकों के खिलाफ मामला लंबित है। 
आश्चर्य तो इस बात का है कि हाल ही मैं भारतीय प्रेस परिषद की पैड न्यूज को लेकर जयपुर में जनसुनवाई कार्यक्रम रखा गया था। राजस्थान पत्रिका के खिलाफ भी पैड न्यूज से संबंधित मामलों की सुनवाई परिषद के माननीय अध्यक्ष व अन्य परिषद सदस्यों ने की थी। उक्त अवसर पर भी पत्रकार संगठनों के पदाधिकारियों ने परिषद चेयरमैन से व्यक्तिगत मिलकर राजस्थान पत्रिका समूह के मालिक व प्रधान संपादक  गुलाब कोठारी की कारगुजारियों की जानकारी दी थी। ऐसे अखबार के प्रधान संपादक व मालिक को प्रतिष्ठित पुरस्कार देना कहां तक उचित है। यहीं नहीं  गुलाब कोठारी व पत्रिका समूह के कई जमीनी मामले भी चर्चित रहे हैं।
महोदय, हमारा अनुरोध है कि अविलम्ब गुलाब कोठारी को दिया जाने वाला पुरस्कार समारोह रोका जाए और कोठारी का पुरस्कार वापस लिया जाए। साथ ही इस पुरस्कार देने के मामले की जांच करवाई जाए। परिषद के कोठारी को पुरस्कार देने के फैसले से देश भर के पत्रकारों व कर्मचारियों में खासा आक्रोश है। अगर गुलाब कोठारी को दिया जाने वाला पुरस्कार की घोषणा वापस नहीं ली गई तो पत्रकार संगठन 16 नवम्बर को आयोजित समारोह में गुलाब कोठारी का विरोध प्रदर्शन करेंगे।
धन्यवाद

भवदीय
देवेन्द्र गर्ग
अध्यक्ष
अमित मिश्रा, राकेश कुमार शर्मा
सचिव
जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड संघर्ष समिति राजस्थान

Thursday 7 November 2019

Representation to the Chairman and the Members of the Parliamentary Standing Committee on Labour

Subject:  Representation to the Chairman and the Members of the Parliamentary Standing Committee on Labour


Dear Comrade,

ञ्‍--We hope that you are aware of the that the Government of India has contemplated to repeal the Working Journalists Act and subsume it with other 11 Acts. All Acts will be the part of the ‘Occupational Safety, Heath and Working Conditions Code’. We have opposed it tooth and nail and have met with the Hon’ble Minister at least two times for retaining the Working Journalists Act. We have also sent a representation to the Chairman and the Members of the Parliamentary Standing Committee on Labour. Presently the committee is headed by Shri Bhartruhari Mahtab, a Member of Parliament from Odisha.

In case you have to express any opinion about it, kindly let us know immediately so that we can discuss the same in the executive body of the Confederation of Newspapers and News Agencies Employees Organisation. As you know that we have also staged a massive demonstration at Jantar on 10 October 2019 for the retention of the Working Journalists Act. We have to be prepared for a long struggle to keep the Act intact.


Thanking you,


Yours sincerely,

Parmanand Pandey

Secretary-General, IFWJ

WJA को बचाने के लिए मैंने भी पत्र भेजा, आप भी भेजें


साथियों जैसा की आपको पता है कि केंद्र सरकार कई श्रम कानूनों के साथ-साथ हमारे हितों के रक्षक श्रमजीवी पत्रकार और अन्‍य समाचारपत्र कर्मचारी (सेवा की शर्तें) और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम,1955 तथा श्रमजीवी पत्रकार (मजदूरी की दरों का निर्धारण) अधिनियम, 1958 को निरस्‍त करने जा रही है। यदि आप इसको बचाना चाहते हैं तो निम्‍न पत्र लोकसभा की स्थायी श्रम समिति को भेजे या फि‍र मेल करें। पता और ईमेल ये है- (माननीय अध्यक्ष एवं सदस्यगण, लोकसभा की स्थायी श्रम समिति, संसद भवन, नई दिल्ली। E-mail : comm.labour-lss@sansad.nic.in)
पत्र के नीचे अपना नाम, पता, संस्‍थान का नाम-यूनिट समेत, मोबाइल नंबर आदि जरूर भरें। पत्र इस प्रकार है...

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सेवा में,                                                                                                    दिनांक- 07-11-2019
       
माननीय अध्यक्ष एवं सदस्यगण
लोकसभा की स्थायी श्रम समिति
संसद भवन, नई दिल्ली
E-mail : comm.labour-lss@sansad.nic.in

विषय :-

श्रमजीवी पत्रकार एवं अन्य समाचार पत्र कर्मचारी(सेवा की शर्तें)और प्रकीर्ण उपबन्ध अधिनियम(वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट)-1955 
                  तथा
श्रमजीवी पत्रकार(मजदूरी दरों का निर्धारण) अधिनियम-1958

को अवक्रमित अथवा समाप्त नहीं किया जाए तथा प्रिंटमीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया, वेब पोर्टल मीडिया आदि को इसके दायरे में लाने हेतु संशोधित किया जाए तथा व्यापक सुधार कर और अधिक प्रभावी किया जाने का निवेदन किये जाने के सम्बन्ध में : -

सम्मानित महोदय,

आपको अवगत कराना है कि तत्कालीन सरकार द्वारा गठित "प्रथम प्रेस आयोग" द्वारा समाज और राष्ट्र की सेवा में कार्यरत पत्रकारों के श्रम की संवेदनशील प्रकृति के कारण अन्य व्यवसायिक श्रमिकों से अलग रखते हुए 1954 में की गई संस्तुति के आधार पर यह श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम बनाया गया था। जो कि श्रमजीवी पत्रकारों को समय-समय पर वेजबोर्ड के गठन नौकरी की सुरक्षा, अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा और उचित वेतनमान व भत्ते प्रदान कर आजीविका के प्रबंध की व्यवस्था करता है। जो कि "वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट"-1955 & 1958 कहलाया।

भारत सरकार द्वारा न्यायमूर्ति जी सी राज्याध्यक्ष की अध्यक्षता में गठित "प्रथम प्रेस आयोग" के सदस्यों में डॉ० जाकिर हुसैन, आर वेंकटरमन ( बाद में दोनों भारत के राष्ट्रपति बने), दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के निदेशक वीकेआरवी राव (बाद में इन्दिरा गांधी की सरकार में केंद्रीय मंत्री बने), त्रिभुवन नारायण सिंह (बाद में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने), जयपाल मुंडा (आदिवासी नेता और संसद सदस्य), एम चेलापति राव (इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स IFWJ के तत्कालीन अध्यक्ष) महत्वपूर्ण हस्तियां शामिल थी।

माननीय सुप्रीम कोर्ट (सर्वोच्च न्यायालय) द्वारा अनेक अवसरों पर वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट को मान्यता दी गई तथा केन्द्रीय कर्मचारियों के समान वेतन देने की सिफारिश की गई।

इतना महत्वपूर्ण होने के बावजूद इसे समाप्त किया जाना न्यायसंगत नही है।

आपको बता दे कि
वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट सहित 13 विभिन्न श्रम कानूनों को समाप्त कर, 23 मार्च 2019 में इसका ड्राफ्ट तथा 4 माह बाद 23 जुलाई को मात्र "व्यवसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता"- 2019 लोकसभा में पेश कर दिया गया, जिसमें पत्रकार हितों की भारी अनदेखी हुई है।

वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट के तहत समय-समय पर वेज बोर्ड के गठन और प्रिंट मीडिया के लिए काम करने वाले पत्रकारों और गैर पत्रकार कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में संशोधन के प्रावधान तथा व्यवसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, कार्य की स्थिति को विनियमित करने वाले कानूनों में संशोधन की व्यवस्था समाप्त हो गई है।

फिलहाल समीक्षा और संशोधन के लिए लोकसभा की स्थायी श्रमसमिति के पास विचाराधीन है।

यदि वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट-1955 +1958 समाप्त कर दिया गया तो इसके परिणामस्वरूप मीडिया संस्थान के मालिक अपनी मनमानी पर उतर आएंगे और लोकतंत्र के सजग प्रहरी पत्रकार बंधुआ और दैनिक मजदूर से भी बदतर स्थिति में सड़क पर आ जाएंगे।

विनम्र निवेदन है कि पत्रकार हितों पर कुठाराघात करने वाली नई श्रमसंहिता-2019 में से वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट को पृथक करके इस हद तक संशोधित किया जाए जिससे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, वेब पोर्टल मीडिया, सोशल मीडिया भी इसके दायरे में आ जाए ताकि उनका संरक्षण और नियमन भी किया जा सके।   

अतः उपरोक्त विषयक मांग पूरी करते हुए इसे और अधिक व्यापक एवं प्रभावी बनाने का कष्ट करें। ताकि लोकतंत्र जिन्दा रह सकें।

पत्रकार जगत आपका आभारी रहेगा।

निवेदक
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Sunday 3 November 2019

वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट बचाना हो तो तीन दिन में भेजें सुझाव, लोकसभा ने गठित कर रखी है स्थायी समिति, डाउनलोड करें मैटर


देश के पत्रकारों और पत्रकार एवं गैर-पत्रकार संगठनों के लिए श्रमजीवी पत्रकार और अन्‍य समाचारपत्र कर्मचारी (सेवा की शर्तें) और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम,1955 तथा श्रमजीवी पत्रकार (मजदूरी की दरों का निर्धारण) अधिनियम, 1958 को निरस्‍त होने से बचाने के लिए अपना विरोध दर्ज करवाने के लिए चार दिन शेष बचे हैं।

देश की संसद ने लोकसभा सचिवालय, नई दिल्‍ली के तहत व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2019 पर विचार के लिए लोकसभा सांसद भर्तृहरि मेहताब की अध्‍यक्षता में एक स्‍थायी समिति का गठन कर रखा है और इस समिति के समक्ष उपरोक्‍त संहिता के संबंध में विचार या सुझाव प्रस्‍तुत करने के लिए लोकसभा सचिवालय ने 21 अक्‍टूबर को प्रेस विज्ञप्‍ति जारी कर रखी थी और इसके तहत प्रेस विज्ञप्‍ति जारी किए जाने के 15 दिनों के भीतर कोई भी व्‍यक्‍ति, संस्‍था, समूह या यूनियन अपना विचार या सुझाव रख सकती है।

ऐसे में अब महज तीन दिन का समय शेष बचा है। लिहाजा उपरोक्‍त पत्रकार अधिनियमों के निरस्‍त किए जाने का विरोध कर रहे समाचारपत्र कर्मचारियों, यूनियनों, संगठनों, क्‍लबों को सलाह दी जाती है कि वे अधिक से अधिक संख्‍या में अपना उपरोक्‍त अधिनियमों को निरस्‍त किए जाने से होने वाले नुकसान से लोकसभा की इस स्‍थायी समिति को अवगत करवाएं।

हालांकि विज्ञप्‍ति के अनुसार सुझाव/विचार लिखित तौर पर दो प्रतियों में मांगे गए हैं, मगर देरी से बचने के लिए इसे ईमेल के माध्‍यम से भी तुरंत भेजा जा सकता है। लिहाजा अपने सुझाव/विचार/विरोध इत्‍यादि लिख कर नीचे दी गई ईमेल आईडी पर तुरंत मेल करें और साथ ही इसका प्रिंट लेकर दो प्रतियां नीचे दिए गए पते पर स्‍पीडपोस्‍ट कर दें। इस संबंध में न्‍यूजपेपर इम्‍प्‍लाइज यूनियन आफ इंडिया द्वारा भेजा गया पत्र भी संलग्‍न किया जा रहा है।

पता- डायरेक्‍टर (एएन-आईआई एंड एल), लोकसभा सचिवालय, कमरा संख्‍या-330, संसद भवन अनेक्‍स, नई दिल्‍ली;110001, फैक्‍स नंबर 23011697,

ADDRESS: DIRECTOR (AN-II&L), LOK SABHA SECRETERIATE, ROOM NO. 330, PARLIAMEN HOUSE ANNEXE, NEW DELHI-110001.

EMAIL: comm.labour-lss@sansad.nic.in

न्‍यूजपेपर इम्‍प्‍लाइज यूनियन आफ इंडिया के अध्‍यक्ष रविंद्र अग्रवाल की रिपोर्ट. संपर्क- 9816103265