Sunday 30 September 2018

अब पीटीआई भी चली लालाओं की राह



312 कर्मचारियों को निकाला, पत्रकारों को ठेके पर लेंगे
पत्रकारों व पत्रकारों संगठनों ने साधी चुप्पी, छी, घिन आती है कभी-कभी कि मैं पत्रकार हूं। नपुंसकों की जमात में शामिल हूं।
एक दिन विलुप्त हो जाएंगे नेता, अडानी-अंबानी चलाएंगे ठेके पर देश

देश की सबसे प्रतिष्ठित व विश्वसनीय समाचार एजेंसी पीटीआई यानी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया भी अमर उजाला, दैनिक जागरण, सहारा, हिन्दुस्तान अखबार जैसे लालाओं की तर्ज पर काम करने लगी है। राइटर जैसी सेवा के साथ गठबंधन के बाद पीटीआई को करोड़ों रुपये का लाभ होता है लेकिन वह अब उसे कर्मचारी बोझ लगने लगे हैं जो कि पिछले 20 वर्षों से भी अधिक समय से यहां जुड़े हुए हैं। जिन्होंने पीटीआई को पाला-पोसा। हम पत्रकार तो बड़े बनने की होड़ में इधर से उधर कूदते रहते हैं। लेकिन पानी पिलाने से लेकर हमारी खबरें, फोटो से लेकर फैक्स और मेल तैयार करने वाले कर्मचारियों को पीटीआई ने बड़ी बेदर्दी से एक दिन में ही रिट्रेंच यानी छंटनी कर बाहर कर दिया।

उम्र के ढलाव में पहुंच चुके अधिकांश कर्मचारी अब कहां जाएंगे। हालांकि मुख्य एडमिन हेड मिश्रा ने बड़ी ही बेशर्मी के साथ छंटनी किए गए कर्मचारियों से अपने बैंक अकाउंट में आए पैसे पता करने का फरमान सुना दिया लेकिन दिनोंदिन बढ़ती महंगाई और प्राइवेट सेक्टर में युवाओं से भला ये लोग कैसे मुकाबला करेंगे? इस संबंध में पीटीआई प्रबंधन ने नहीं सोचा। सूत्रों से पता चला कि पत्रकारों को इसलिए नहीं निकाला गया कि उन्हें ठेके पर लिया जाएगा। जैसे एनबीटी और एचटी ने लिया है।

जो लोग सड़क पर आ जाते हैं, उनसे और उनके परिवार पर क्या गुजरती है? यह एहसास किसी को नहीं है। सिर्फ प्रॉफिट चाहिए और इसके लिए आम कर्मचारियों का खून चूसना है। खून चूसने का ठेका प्रथा से बेहतर विकल्प क्या हो सकता है? विडम्बना है कि पत्रकारों व उनके संगठनों ने इस छंटनी पर एक शब्द नहीं बोला। फिर ऐसे पत्रकार संगठनों का करें क्या? छी घिन सी आती है कि हम पत्रकार कितने नपुंसक होते हैं। और हां, एक बात तय है कि एक दिन होगा जब देश में नेता राजाओं की तरह विलुप्त हो जाएंगे तब उस दिन अडानी-अंबानी जैसे धनवान देश की बोली लगाएंगे और राज चलाएंगे।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]

पीटीआई से 300 से ज्यादा कर्मियों की छंटनी की खबर किसी अखबार में छपी?


यह संयोग ही है कि सारी खबरें एक ही दिन हैं… पीटीआई ने कल अचानक अपने करीब 300 कर्मचारियों को नौकरी से निकल दिया। उनका हिसाब उनके घर भिजवा दिए और पैसे खातों में ट्रांसफर कर दिए। साथ में लिख दिया कि कंपनी की तरफ कुछ बकाया हुआ तो ग्रेच्युटी में समायोजित कर लिया जाएगा। ग्रेच्युटी के लिए फॉर्म भरकर जमा कराएं और पीएफ के पैसे निकालने हों तो उसके लिए भी आवेदन करें आदि आदि। आज यह खबर अखबारों में छपी कि नहीं पता नहीं। मैंने देखा भी नहीं क्योंकि पीटीआई की साइट पर जाकर मैंने कल ही पूरी खबर पढ़ ली थी।

लेकिन यह संयोग ही है कि आज ही अखबारों में पीटीआई की एक और खबर छपी है। खबर यह है कि हिन्दू समाचारपत्र समूह के प्रकाशक एन रवि और पंजाब केसरी अखबार समूह के सीएमडी विजय कुमार चोपड़ा को (शनिवार को ही) सर्वसम्मति से देश की सबसे बड़ी समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया (पीटीआई) का क्रम से अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुन लिया गया। एन रवि एक्सप्रेस समूह के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक विवेक गोयनका की जगह लेंगे। पंजाब केसरी समूह के अखबार नवोदय टाइम्स में आज पहले पेज पर विज्ञापन भरा हुआ है फिर भी यह खबर पहले पेज पर है और यही नहीं, समूह ने प्रधानमंत्री राहत कोष (केरल) की तीसरी किस्त के एक करोड़ रुपए का चेक कल प्रधानमंत्री को दिया तो उसकी फोटो भी पहले पेज पर है।

जहां तक खबरों की बात है, बाकी बची जगह में नवोदय टाइम्स ने लखनऊ में ऐप्पल के प्रबंधक की हत्या की खबर को लीड बनाया है और शुक्रवार रात की यह खबर अखबार ने इतवार के अंक में एसेंजी से छापी है। इतना बड़ा समूह संवाददाता नहीं? और इसके साथ केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के ट्वीट को प्रमुखता से छापा है और बताया है कि राजनाथ सिंह लखनऊ के सांसद भी हैं। अखबार ने दूसरे पेज पर इस घटना से संबंधित और भी खबरें छापी हैं पर सब एजेंसी की हैं या उनमें स्रोत नहीं लिखा है।

एक खबर गाजियाबाद डेटलाइन से है, शीर्षक है, सेल्फ डिफेंस में जान नहीं ले सकती पुलिस : डीजीपी। लखनऊ की यह खबर संजीव शर्मा की बाईलाइन से गाजियाबाद डेटलाइन से क्यों है समझ में नहीं आया। अखबार ने मृतक की एसयूवी और पुलिस कर्मी की क्षतिग्रस्त मोटरसाइकिल की फोटो भी इसी खबर के साथ छापी है। सबसे दिलचस्प यह है कि अखबार ने गोरखपुर डेटलाइन से एजेंसी की ही एक खबर छापी है, घटना मुठभेड़ नहीं थी योगी। अखबार ने मूल खबर को पहले पेज पर यूपी-बिहार में डर लगता है शीर्षक से छापा है। इसके साथ पटना डेटलाइन से एक खबर है, पटना में डॉक्टर के बेटे को अगवा कर मार डाला। इन दो खबरों के साथ अगर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की स्वीकारोक्ति भी छपती तो खबर का प्रभाव अलग होता। याद कीजिए बिहार का जंगल राज और अबका राम राज। पर संपादक भी क्या करे – मालिक की खबर जानी थी।

पीटीआई बोर्ड के सदस्यों में अब एन रवि, विजय चोपड़ा और विवेक गोयंका के अलावा महेंद्र मोहन गुप्त (दैनिक जागरण), केएन शांत कुमार (डेक्कन हेराल्ड), विनीत जैन (टाइम्स ऑफ इंडिया), अवीक कुमार सरकार (आनंद बाजार पत्रिका), एमपी वीरेंद्र कुमार (मातृभूमि), आर लक्ष्मीपति (दिनामलार), एचएन कामा (बॉम्बे समाचार), न्यायमर्ति आरसी लाहोटी, प्रो. दीपक नैयर, श्याम सरन और जेएफ पोचखानवाला भी शामिल हैं।

एक और 56 ईंची लिजलिजापन… पीटीआई एक स्वायत्त संस्थान है। पैसे वाला और वेजबोर्ड देने वाला। वहां ठीक-ठाक यूनियन भी है और तब एक झटके में 300 लोगों की नौकरी गई। फार्मूला यह रहा कि सितंबर की तनख्वाह, नोटिस पीरियड (एक महीने) की तनख्वाह और पीटीआई में जितनी नौकरी की (जितनी बाकी है, नहीं) उसकी आधी तनख्वाह। यानी नौकरी ज्यादा की थी तो छोड़ने के ज्यादा पैसे मिले जबकि कायदे से जिसकी नौकरी ज्यादा बाकी थी उसे ज्यादा मिलने चाहिए।

पीटीआई को अखबारों के लाला लोग ही चलाते हैं और ऐसे में लाला लोग इसे आदर्श फार्मूला बताएंगे। जिस हिसाब से इंजीनियर से लेकर तकनीशियन को निकाला गया है उससे लगता है टेक्नालॉजी बेहतर होने से जिन लोगों की जरूरत नहीं रही, उन्हें निकाला गया है। पर इस तरह नौकरी लेना और बगैर यूनियन से चर्चा किए बर्खास्तगी का फार्मूला बनाना सरकार पर संस्थान का भरोसा भी बताता है। आने वाले दिनों में मीडिया में और क्या होता है, देखने लायक होगा। कर्मचारी यूनियन ने प्रबंधन के इस फैसले की निन्दा की है और इसे वापस लेने की मांग करते हुए एक अक्तूबर से हरेक केंद्र पर रोज सुबह से शाम तक धरना देने और गेट मीटिंग करने की घोषणा की है।

[वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से]

IFWJ and DUWJ Condemn Employees’ Bloodshed in PTI


New Delhi: Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) and Delhi Union of Working Journalists (IFWJ) have demanded the Union Labour Ministry and Government of NCT of Delhi to immediately intervene in the large scale termination of the employees in the premiere news agency, PTI without following the due process of law. This bloodshed spree of the management of the PTI has taken the jobs of 310 employees in one day across the country.

Condemning the unprecedented victimisation of the employees by the PTI management the Vice-President Hemant Tiwari, Secretary General of the IFWJ Parmanand Pandey and the President of the DUWJ Alkshendra Singh Negi have said if the management failed to take back the employees a large scale movement will be launched throughout the country against the highhandedness of the Management. They have also asked the Government of India and the Government of NCT of Delhi to take suo motu cognizance of the arbitrary action of the PTI management to save more than 300 employees and their families from the starvation and suicide.

What is most shocking is that the PTI has been getting a considerable support and subsidy from the Government of India and yet its management has the scant respect for the labour laws. This action of the management demonstrates that it hardly bothers about the rights of the employees as are available to them under the laws of the land. The PTI has also defaulted in properly implementing the recommendations of the Majithia Wage Board but this action of the management has come as a bolt from the blue as no prior permission was obtained from the appropriate government. The IFWJ and the DUWJ have also asked the management to see the reason and take back all employees to avoid the industrial unrest in the organisation.

Parmanand Pandey     
Secretary general, IFWJ                               

Alkshendra Singh Negi 
President, DUWJ

पीटीआई में भारी भरकम छंटनी, देशभर से 312 लोग निकाले गए, देखें लिस्ट



पीटीआई में भारी भरकम छंटनी की खबर है। 312 मीडियाकर्मियों की नौकरी गई। इनमें अधिकतर गैर-पत्रकार कर्मी हैं। मीडिया में यह आईबीएन7 और सीएनएन-आईबीएन से भी बड़ी छंटनी है। एक झटके में देश की सबसे बड़ी समाचार एजेंसी पीटीआई से 312 लोगों को निकाल बाहर किया गया है। छंटनी का शिकार संपादकीय विभाग से इतर काम करने वाले हुए हैं।

शनिवार को पीटीआई बोर्ड की बैठक में यह फैसला किया गया और कुछ ही देर में इस आशय की सूचना देश भर में भेज दी गई। देश भर के सारे कार्यालयों में लिस्ट लग गई है। चेन्नई से दो को छोड़कर बाकी सारा गैर-पत्रकार स्टाफ बाहर कर दिया गया है। छंटनी की कुछ लिस्ट भड़ास के हाथ भी लगी है जिसे नीचे दिया गया है।

पीटीआई के संपादकीय विभाग में कार्यरत पत्रकारों को ठेके पर किए जाने के संकेत दे दिए गए हैं। घटना की जानकारी होते ही पीटीआई के कर्मचारी नेता जाने माने वकील कोलिन गोंजाल्विस के पास पहुंच गए हैं और केस दर्ज कराने की तैयारी कर रहे हैं।

गौरतलब है कि लंबे समय तक पीटीआई इंपलाइज फेडरेशन के महासचिव एम.एस. यादव बीते दिनों यूनियन का चुनाव हार गए थे। उनके उपर कई तरह के आरोप भी थे। इसके बाद यादव को नए पदाधिकारियों ने यूनियन से निकाल दिया था। बताया जाता है कि यादव ने पीटीआई में दूसरी पुरानी यूनियन का पुनर्गठन कर दिया जिसे प्रबंधन ने हाल ही में मान्यता भी दे दी।

पीटीआई फेडरेशन के पदाधिकारियों ने हाल ही में भाजपा सरकार की नजदीकी हासिल करने के लिए लखनऊ में अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर मीडिया सम्मेलन के आयोजन का फैसला किया था जिसकी तैयारी चल रही है। पीटीआई फेडरेशन के इस सम्मेलन का सह आयोजन संघ से जुड़ा एनजीओ कर रहा है जिसके कर्त्ताधर्त्ता पीटीआई के ही लोग हैं।

इधर पीटीआई फेडरेशन अटल बिहारी वाजपेयी के नाम सम्मेलन करा भाजपा के बड़े नेताओं मंत्रियों और योगी आदित्यनाथ वगैरा को साध रहा है, उधर उसके 312 सदस्य मीडिया संस्थान से ही बाहर कर दिए गए हैं।

आईएफडब्ल्यूजे के प्रधान महासचिव परमानंद पांडे ने पीटीआई में हुई बड़े पैमाने पर छंटनी का पुरजोर विरोध करते हुए इसके लिए आंदोलन करने की चेतावनी दी है। आईएफडब्ल्यूजे महासचिव ने पीटीआई कर्मचारियों की हरसंभव कानूनी मदद करने की भी बात कही है।

निकाले गए लोगों की लिस्ट इस प्रकार है…




[साभार भड़ास4मीडिया.कॉम]

Thursday 27 September 2018

मजीठिया: पत्रिका प्रबंधन को फिर मुंह की खानी पड़ी!

पत्रिका प्रबन्धन को फिर मुंह की खानी पड़ी। प्रबन्धन 190 कर्मचारियों के मामले में राजस्थान हाईकोर्ट से स्टे ले कर उसे लम्बा खींचने की कोशिश कर रहा था। लेकिन पत्रिका प्रबन्धन की ये कोशिश नाकाम हो गई और आज राजस्थान हाईकोर्ट ने स्टे ऑर्डर खारिज करते हुए लेबर कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार मामला निपटाने के आदेश दिए।

पत्रिका के गोबर गणेशों ने अपने लकवाग्रस्त दिमागी घोड़े दौड़ा कर देख लिए, हर जगह इनको मात ही खानी पड़ रही है। अभी भी समय है, पत्रिका प्रबन्धन को समझ जाना चाहिए कि ये 1992 वाली लड़ाई नहीं है। ये 2014 की लड़ाई है जिसमें कर्मचारी इनको धोबी पछाड़ दांव लगा कर चित करेगा। कहीं ऐसा न हो कि पत्रिका की शुरुआत जिन परिस्थितियों में हुई थी, कहीं वापस वहीँ न पहुँच जाए।

[विजय शर्मा की एफबी वॉल से]

मजीठिया: तीन श्रम न्‍यायालयों को 31 मार्च तक सुनवाई पूरी करने के निर्देश

सुप्रीम कोर्ट से मजीठिया वेजबोर्ड मामले में एक ताजा आदेश आया है। जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश जारी कर कोटा, बनारस और जयपुर के मजीठिया क्रांतिकारियों को बड़ी राहत दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने कोटा, बनारस और जयपुर लेबर कोर्ट को 31 मार्च तक हर हाल में 17(2) का मामला खत्म करने का निर्देश दिया है। यह आदेश मजीठिया वेजबोर्ड मामले की सुनवाई करने वाले विद्वान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने दिया है। इस आर्डर में सुप्रीमकोर्ट ने बनारस, कोटा और जयपुर के लेबर कोर्ट को अंतिम अवसर और चेतावनी भी दी है।

आप भी पढ़िए सुप्रीमकोर्ट का ये ऑर्डर….



शशिकान्त सिंह
पत्रकार और आर टी आई एक्सपर्ट
9322411335

Wednesday 19 September 2018

नवभारत मुंबई को पीएफ के 20 लाख रुपये 15 दिन में जमा कराने के निर्देश





मुम्बई से खबर आ रही है कि यहां इंपलाई प्रोविडेंट फंड मामले में दैनिक नवभारत मुंबई के कर्मचारियों की पहली जीत हुई है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के नई मुंबई स्थित वाशी कार्यालय के असिस्टेंट पीएफ कमिश्नर ने आदेश जारी कर नवभारत प्रबंधन को 15 दिन के भीतर अप्रैल 2017 से जून 2017 तक 3 माह का 20 लाख 1373 रुपये की कर्मचारियों की पीएफ की रकम जमा करने का आदेश जारी किया है। इस आदेश से नवभारत अखबार प्रबंधन में हड़कंप का माहौल है।

बता दें कि महाराष्ट्र मीडिया इंप्लाइज यूनियन ने जून 2017 में शिकायत दर्ज कराई थी कि नवभारत प्रबंधन द्वारा कर्मचारियों का सिर्फ बेसिक पर पीएफ की कटौती की जाती है वह भी रुपये 15000 की सीलिंग लगाकर। इस 14 माह के दौरान 11 बार सुनवाई की डेट पड़ी जिसके बाद असिस्टेंट पीएफ कमिश्नर ने शिकायत को सही पाया और प्रबंधन द्वारा मुहैया कराए गए डॉक्यूमेंट के आधार पर यह आदेश जारी किया। आदेश के साथ असिस्टेंट पीएफ कमिश्नर ने एक्सप्रेस पब्लिकेशन मदुराई वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया व अन्य के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट का हवाला दिया है जो 2004 का है जिसके आधार पर असिस्टेंट पीएफ कमिश्नर ने कहा है कि नवभारत प्रबंधन को एचआरए और ओवरटाइम छोड़कर बाकी का जो ग्रास होता है उसके आधार पर 12% की दर से पीएफ की रकम डिडक्शन करना होगा। असिस्टेंट पीएफ कमिश्नर ने अपने आदेश में मद्रास हाईकोर्ट, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ग्वालियर बेंच, गुजरात हाईकोर्ट के अलावा कई अन्य अदालतों के फैसलों का उल्लेख किया है।
उन्होंने एंप्लोई प्रोविडेंट फंड एंड मिसलेनियस प्रोविजन एक्ट 1952 का हवाला देते हुए अपने आदेश में कहा है कि मीडिया कर्मियों के लिए ईपीएफ स्कीम 1952 के पैरा 80 धारा 2 के तहत प्रावधान है कि मीडिया कर्मियों का डिडक्शन विदाउट सीलिंग किया जाए। हालांकि इंफोर्समेंट ऑफिसर की जांच पड़ताल में नवभारत प्रबंधन ने पूरे कागजात देने में देर लगाई जिससे फैसले में देरी हुई। शिकायत के 14 माह बाद आदेश जारी हुआ लेकिन देर आए दुरुस्त आए। आगे की एरियर की गणना 2006 से 2018 तक का जारी है। संभवत कुछ समय बाद उस पर भी फैसला आएगा कि नवभारत प्रबंधन को 2006 से लेकर अब तक ब्याज सहित पीएफ का कितना एरियर भुगतान करना होगा। बताते हैं कि इस ऑर्डर के जारी होने के बाद नवभारत मालिक और प्रबंधन में हड़कंप मच गया है। इस बारे में ये भी खबर है कि कंपनी प्रबंधन पुनर्विचार का आवेदन लगाने वाली है।

शशिकान्त सिंह
पत्रकार और आर टी आई एक्सपर्ट
9322411335

Saturday 15 September 2018

आदरणीय प्रधानमंत्री जी एक बार संजय गुप्‍ता से जागरण कर्मियों का हाल भी पूछ लीजिए



आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी आपने 'स्‍वच्‍छता ही सेवा अभियान' की आज से शुरुआत की। आपने इस दौरान वीडियो  कांफ्रेंसिंग के माध्‍यम से स्‍कूली बच्‍चों, बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्‍चन, उद्योगपति रतन टाटा आदि से बात की और देश को उनके योगदान से रू-ब-रू कराया और इसके माध्‍यम से स्‍वच्‍छता की अलख जागने का काम किया। आपने इस दौरान एक मीडिया घराने के मालिक संजय गुप्‍ता से भी वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्‍यम से बात की। ये आपका और सरकार का निर्णय है कि आप किस को इस अभियान के लिए बेहतर मानते हैं, इस पर हम कोई टिप्‍पणी भी नहीं कर सकते। आपसे बातचीत के दौरान संजय गुप्‍ता ने बड़े-बड़े वायदे किए और आपने उनकी सराहना की।

हम पत्रकार साथी बस आपसे एक ही बात पूछना चाहते हैं कि क्‍या आपने दैनिक जागरण के मालिक संजय गुप्‍ता और अन्‍य मीडिया घरानों के मालिकों से कभी ये पूछा है कि आपके यहां कर्मचारियों की क्‍या दशा है, क्‍या आप अपने यहां कर्मचारियों को कानून के हिसाब से वेतन देते हो। क्‍या आप उन्‍हें वह सब सुविधाएं देते हो जो उन्‍हें कानूनन मिलनी चाहिए। वे सरकार की महत्‍वाकांक्षी योजना सबको रोजगार में कितना योगदान दे रहे हैं।

जागरण के वरिष्‍ठ संवाददाता प्रशांत मिश्र का वीडियो कांफ्रेंसिंग के दौरान गिरना और आपका उनको नाम लेकर चिंता प्रकट करना आपके मानवीय पहलू को दिखाता हैं। हम आपसे विनीत करते हैं आप इसके आगे भी देखें। आपको प्रशांत मिश्रा जैसे बड़े-बड़े नामी पत्रकारों के नाम याद हैं। आपको इन जैसे बड़े-बड़े नामी पत्रकारों को देखकर लगता है कि मीडिया में सबकुछ अच्‍छा है। एक बार आप इसमें काम कर रहे बहुसंख्‍यक वर्ग की भी सुध लेकर देखें। तब आपको दिखेगा कि वे कैसा मुश्किल भरा जीवन जी रहे हैं और उनका किस हद तक शोषण हो रहा है। विशेषतौर पर उनके परिवारों की दशा देख लीजिए जिन्‍होंने मजीठिया बेजबोर्ड की मांग की। उनकी इस जायज मांग के बाद  उन्‍हें या तो नौकरी से निकाल दिया गया या फिर दूरदराज तबादला कर दिया गया। जिससे उनके ऊपर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। कितनों के बच्‍चों की पढ़ाई छूट गई और  कितनों ने अपने परिजनों को बेहतर इलाज के अभाव में खो दिया। आज देशभर में मजीठिया वेजबोर्ड की मांग करने वाले 20 हजार से ज्‍यादा पत्रकार-गैर पत्रकार  रोजी-रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

इसके अलावा केंद्र और राज्‍य सरकारें जो भी सुविधाएं मीडिया को देती है ये सोच कर देती है कि इसका फायदा कर्मचारियों को भी पहुंचेगा। लेकिन उनतक तो ये फायदा पहुंचता ही नहीं। अखबार मालिकों का एक बहुत बड़ा तबका उस फायदे को कर्मचारियों तक पहुंचने ही नहीं देता। आज मीडिया घरानों का सालाना कारोबार हजार करोड़ से ऊपर लांघ गया है। वहीं, मीडिया में काम कर रहा कर्मचारी मुश्किल से अपना भरण पोषण कर पा रहा है। इसके बाद भी वे हिम्‍मत करके केस लगा रहे हैं तो उन्‍हें देशभर में फैली लालफीताशाही का सामना करना पड़ रहा है। ज्‍यादातर श्रम विभाग अखबार मालिकों के दबाव में काम करते हुए नजर आ रहे हैं। ऐसे में अच्‍छी शिक्षा, स्‍वस्‍थ्‍य भारत, भ्रष्‍टाचार मुक्‍त भारत जैसी योजनाएं कहां परवान चढ़ पाएगी। अंत में आपसे एक छोटा-सा निवेदन है अखबार मालिकों की तरह हम भी इसी देश के ही नागरिक हैं। कभी हमारी भी सुध ले लीजिए, पत्रकार जगत आपको दिल की गहराइयों से याद करेगा।

धन्‍यवाद।
पीड़ित पत्रकार 


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Thursday 13 September 2018

मजी‍ठिया: समय की मांग है SC की शरण में जाना, दें अपने केस की जानकारी

नई दिल्‍ली। साथियों, सुप्रीम कोर्ट के लेबर कोर्टों को मजीठिया से संबंधित रिकवरी और बर्खास्‍तगी, तबादले आदि के केस 6 महीने में निपटाने के आदेश के बाद भी अभी तक कोई निर्णय नहीं आना चिंता का विषय है।
प्रबंधन किसी ना किसी तरह की तिकड़मबाजी से सुप्रीम कोर्ट के 6 महीने में केस निपटने के फैसले को प्रभावित कर रहा है। ऐसा सुप्रीम कोर्ट की नाक के नीचे दिल्‍ली में ही नहीं पूरे देश में हो रहा है। दिल्‍ली में प्रबंधन ने चार केसों में हाईकोर्ट पहुंच कर लेबर कोर्ट की कार्रवाई को बाधित कर दिया है।

वहीं, जयपुर लेबर कोर्ट-2 जिसको सुप्रीम कोर्ट ने सीधे-सीधे जून में निर्णय देने को कहा था, उसमें भी प्रबंधन ने जयपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर करके उसके फैसले को बाधित कर दिया है। ऐसे पता नहीं कितने केस हैं जिनकी कार्रवाई पर विभिन्‍न राज्‍यों की हाईकोर्टों ने स्‍टे लगा रखा है।

सुप्रीम कोर्ट के 6 महीने के आदेश का भी कई लेबर कोर्ट पालन नहीं कर रहे हैं।  वहीं, कई राज्‍यों के श्रम विभागों का भी बुरा हाल है। हमारे कई साथी ऐेसे हैं जिनको केस लगाए हुए साल-साल भर होने जा रहा है। परंतु उनके केसों को लेबर कोर्ट के लिए रेफर नहीं किया जा रहा है। उत्‍तराखंड में तो श्रम विभाग ने एक कदम आगे बढ़ कर सुप्रीम कोर्ट के 19 जून के आदेश का उल्‍लंघन करते हुए केस ही खारिज कर दिए थे। ऐसे में हमें एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाने के अलावा कोई और चारा नजर नहीं आ रहा है।

हमें यहां उन साथियों के केसों की जानकारी चाहिए, जिनके रिकवरी, बर्खास्‍तगी, तबादले आदि के मामले लंबे समय से श्रम विभाग, लेबर कोर्ट या हाईकोर्ट के स्‍टे में फंसे हुए हैं। इसके लिए बस आपको ये जानकारी हमें उपलब्‍ध करवानी होगी।

-आपका केस किस श्रम विभाग कार्यालय यानि उप श्रमायुक्‍त कार्यालय/लेबर कोर्ट में चल रहा है।
-केस नंबर और उसको दायर करने की तिथि
-लेबर कोर्ट में है तो श्रम विभाग से जारी रेफेरेंस की तिथि
-आपके केस पर हाईकोर्ट का स्‍टे है तो उसकी जानकारी
-क्‍या प्रबंधन 20जे पर कोई आपत्ति उठा रहा है।
-केस की ताजा स्थिति‍ या अभी तक लंबित पड़े होने का कारण 

आप ये जानकारी निम्‍न साथियों तक जल्‍द से जल्‍द पहुंचाने की कृपया करें।
रविंद्र अग्रवाल- 9816103265
राकेश वर्मा- 9829266063
शशिकांत सिंह- 9322411335
Alkshendra Negi- 8383080835
महेश कुमार- 9873029029
तरुण भागवत- 9893295135
मयंक जैन- 9300124476

Wednesday 12 September 2018

मजीठिया: श्रम अधिकारियों को भेजे अवमानना के नोटिस






भोपाल। मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे पत्रकारों ने मध्‍यप्रदेश हाईकोर्ट के आदेशों की अवहेलना के खिलाफ श्रम विभाग के अधिकारियों को अवमानना के नोटिस भेजे हैं। पत्रकारों का आरोप है कि राज्‍य सरकार और श्रम विभाग के अधिकारी अखबार मालिकों के दबाव में काम कर रहे हैं, इसलिए हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी
उनके रेफेंरस रोके बैठे हैं।

मप्र पत्रकार संगठन के दैनिक भास्कर, पत्रिका और नईदुनिया के करीब 120 से अधिक मजीठिया के रिफरेंस इंदौर और भोपाल उपश्रमायुक्त व्दारा कोर्ट  नहीं भेजे जा रहे थे। जिस पर मजीठिया क्रांतिकारियों ने हाईकोर्ट में याचिका लगाकर प्रमुख सचिव श्रम, श्रमायुक्त और उपश्रमायुक्त को पार्टी बनाया था। कोर्ट में संगठन की ओर से युवा एडवोकेट प्रखर कर्पे ने जोरदार तरीके से पत्रकारों का पक्ष रखा था, जिसमें न्‍यायमूर्ति एससी शर्मा ने तत्काल श्रमायुक्त को कोर्ट में तलब कर लिया था। श्रमायुक्त की ओर से सहायक श्रमायुक्त भानुप्रताप हाजिर हुए थे। न्‍यायमूर्ति शर्मा ने उन्हें 15 दिन में सभी प्रकरण श्रम न्यायालय भेजने का आदेश दिया था।

हाईकोर्ट के आदेश के एक माह बाद भी मप्र के बेशर्म श्रम अधिकारियों द्वारा संगठन के केस लेबर कोर्ट नहीं भेजे गए, जबकि हाईकोर्ट ने 15 दिन का समय दिया था इसलिए संगठन ने अधिकारियों को अवमानना नोटिस दिए हैं। जल्द ही अवमानना केस लगाकर इन्हें अदालत में खड़ा किया जाएगा।

Sunday 2 September 2018

मजीठिया: अपना हक मांगने पर निकाले गए 5 भास्करकर्मियों को मिला न्‍याय, होगी बहाली



लेबर कोर्ट ने कर्मियों की सेवा समाप्ति को माना अवैध और अनुचित
प्रबंधन को सेवा बहाली का आदेश
सेवा समाप्ति मामले में ये देशभर में पहली बड़ी जीत



मजीठिया की मांग को लेकर निकाले गए भास्‍कर के पांच कर्मियों के मामले में होशंगाबाद श्रम न्यायायलय ने शुक्रवार को ऐतिहासिक आदेश पारित किया। अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि दैनिक भास्कर ने मजीठिया मांगने पर इन कर्मचारियों की सेवा समाप्ति की है। इसलिए इन्हें पुनः सेवा में बहाल किया जाता है। सेवा समाप्ति मामले में ये देशभर में पहली बड़ी जीत है। इन सभी की 2015 में सेवा समाप्‍त कर दी गई थी।

होशंगाबाद हरिओम शिवहरे, केशव दुबे, अजय गोस्वामी, अजय लोखंडे, प्रकाश मालवीय का यह संघर्ष शुक्रवार को रंग लाया। प्रबंधन के तमाम प्रलोभन इनके मजबूत इरादों को डिगा नहीं पाए। कर्मचारियों की ओर से अदालत में श्रमिक मामलों के जाने माने वरिष्ठ अधिवक्ता जी के छिब्बर साहब और उनके सहयोगी महेश शर्मा की दलीलों के आगे प्रबंधन टिक नहीं पाया और झूठ बेनकाब हो गया। लेबर कोर्ट से भास्कर के खिलाफ पहली बार इस तरह का कोई ऐतिहासिक फैसला आया है। इससे फिर एक बार साबित हुआ जो लड़ेगा वही जीतेगा।
[हरिओम शिवहरे, होशंगाबाद]