Thursday 27 April 2017

मजीठिया: अगली सुनवाई तीन मई को



देश भर के मीडियाकर्मियों के वेतन और एरियर से जुड़ी जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड मामले में अखबार मालिकों के खिलाफ चल रहे अवमानना मामले में माननीय सुप्रीमकोर्ट में गुरुवार को दो चरणों में सुनवाई हुई।

सुनवाई के दौरान अखबार मालिकों की तरफ से पहले दैनिक जागरण के एडवोकेट अनिल दिवान के निधन पर समय लेने का प्रयास किया गया, मगर विद्वान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अखबार मालिकों को कोई भी रियायत देने से मना कर दिया। उसके बाद सुनवाई में चर्चित एडवोकेट प्रशांत भूषण ने शानदार तरीके से मीडियाकर्मियों का पक्ष रखा। इस दौरान सीनियर एडवोकेट कोलिन गोंसाल्विस और एडवोकेट उमेश शर्मा तथा परमानंद पांडे ने भी मीडियाकर्मियों का दर्द अदालत के समक्ष रखा। उसके बाद दोपहर तीन बजे का समय अखबार मालिकों के एडवोकेट को दिया गया। जिन्‍होंने अपने तर्क अदालत के समक्ष रखे। अब इस मामले की अगली सुनवाई तीन मई को निर्धारित की गई है। आज हुई सुनवाई के दौरान अदालत कक्ष पूरी तरह मीडियाकर्मियों से भरा हुआ था और देशभर के मीडियाकर्मी इस दौरान सुनवाई के लिए सुप्रीमकोर्ट में उपस्थित थे।


शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्टीविस्ट
9322411335

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Wednesday 26 April 2017

मजीठिया: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई कल तक के लिए टली



मजीठिया वेजबोर्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज यानि 26 अप्रैल को अखबार मालिकों के खिलाफ चल रहे अवमानना मामले की सुनवाई नहीं हो सकी। इसे कल तक यानि 27 अप्रैल तक के लिये टाल दिया गया है। तकनीकी भाषा में कहें तो आज यह सुनवाई समयाभाव के कारण बोर्ड पर नहीं आ पायी। अब गुरुवार को इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट नंबर चार में आयटम नंबर 9 के तहत होगी। अखबार मालिकों ने केंद्र सरकार द्वारा गजट होने और माननीय सुप्रीमकोर्ट द्वारा आदेशित किए जाने के बाद भी अपने मीडियाकर्मियों को जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ नहीं दिया। इसी को लेकर अवमानना के सैकड़ों केसों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है।

बताते हैं कि एक पुराने मामले की सुनवाई बुधवार को चल रही थी जिसकी सुनवाई में लंबा समय लग गया, इसलिए बाकी मामलों को गुरुवार तक के लिये टाल दिया गया। ये सुनवाई सुप्रीमकोर्ट के विद्वान न्यायाधीश रंजन गोगोई की खंडपीठ करेगी। इस सुनवाई में मीडियाकर्मियों की तरफ से जाने माने एडवोकेट प्रशांत भूषण और सीनियर एडवोकेट कोलिन गोंसाल्विस तथा चर्चित एडवोकेट उमेश शर्मा एवं परमानंद पांडे मीडियाकर्मियों का पक्ष रखेंगे।

इस मामले की सुनवाई कई महीने बाद हो रही है। पहले इस अवमानना मामले की सुनवाई सिर्फ मंगलवार को होती थी, मगर पहली बार नए कंप्यूटराइज सिस्टम का उपयोग किया गया और मंगलवार को होने वाली ये सुनवाई अब रविवार को छोड़कर किसी भी दिन होगी। 27 अप्रैल को होने वाली अवमानना मामले की सुनवाई पर देश भर के मीडियाकर्मियों और अखबार मालिकों की नजर है। माना जा रहा है कि 27 अप्रैल को होने वाली सुनवाई में सुप्रीमकोर्ट कुछ कड़ा कदम उठा सकता है।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्टीविस्ट
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Saturday 22 April 2017

MCD चुनाव: पत्रकार साथियों इस बार वोट उसे ही दें जो आपकी सुने



मतदाताओं को वोट की कीमत समझाने वाले पत्रकार साथियों अब आपको भी अपने वोट की कीमत समझनी चाहिए। नौकरी में रहते हुए हमारी मजबूरी होती है कि हम संस्‍थान की नीतियों के विरुद़ध नहीं लिख सकते हैं। ऐसे में हम कई बार जमीनी हकीकत को भी नजरअंदाज कर चुनाव के वक्‍त किसी एक ही पार्टी के पक्ष में लगातार रिपोर्टिंग करते हैं, क्‍योंकि हमारे अपने संस्‍थान के उस राजनीतिक पार्टी से कोई न कोई हित जुड़े हुए होते हैं। हम पाठक को वो ही पढ़ाना या दिखाना चाहते हैं जो हमारा संस्‍थान चाहता है, ना कि पाठक या दर्शक। ये हमारी पेशागत नहीं पापी पेट की मजबूरी होती है। ऐसे कई कारणों से ही ये मीडिया मालिक हमारा शोषण करते हैं और हम उर्फ तक भी नहीं कर पाते। क्‍योंकि हम जानते हैं कि ताकतवर मीडिया मालिकों के प्रभाव में प्रशासन हमारी नहीं सुनने वाला। यही कारण है कि आज मजीठिया वेजबोर्ड मांगने वाले देशभर के हमारे दैनिक भास्‍कर, दैनिक जागरण, राजस्‍थान पत्रिका आदि के कई हजार साथियों को या तो नौकरी से निकाल दिया गया या उन्‍हें तरह-तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है। हम अभी तक पूरी तरह से एकजुट नहीं हो पाए हैं इसलिए हम अखबार मालिकों के दमन चक्र का लगातार शिकार हो रहे हैं।

हाल ही में नोएडा में देश के नामी अखबारों में शामिल हिंदुस्‍तान ने 15-16 मशीन के साथियों का जबरन इस्‍तीफा ले लिया और ऐसी सूचनाएं आ रही हैं कई अन्‍य को भी जबरन इस्‍तीफा देने का दवाब बनाया जा रहा है और कहा जा रहा है कि खुद इस्‍तीफा नहीं दिया तो हम खुद तुम्‍हें निकाल कर तुम्‍हारी गेजुय्‍टी आदि भी रोक देंगे। ऐसी ही एक अन्‍य सूचना आई है कि दैनिक जागरण के उच्‍चाधिकारियों ने भोपाल में कर्मचारियों के साथ बैठक कर नई दुनिया के कर्मचारियों पर केस वापस लेने का दबाव बनाया और जो साथी मुखर हुआ उसे बैठक से बाहर जाने का आदेश दिया। भोपाल में ही डेरा जमाए अधिकारी ये भी धमकी दे रहे हैं कि आपने ऐसा नहीं किया तो हम भोपाल की प्रिटिंग यूनिट को ही बंद कर देंगे।     

यही हाल देश के अन्‍य नामी गिरामी अखबारों का भी है, जो लगातार आपके हकों पर डाका डाल रहे हैं या उसके लिए तरह तरह के प्रपंच रच रहे हैं। यहां ये भी कहना चाहूंगा कि सरकारें हमारे लिए वेजबोर्ड तो बना देती हैं, परंतु प्रभावशाली मीडिया मालिकों के कारण इसे पूरी तरह से लागू कराने में कोई दिलचस्‍पी नहीं लेती। यदि वे चाहे तो क्‍या कुछ नहीं हो सकता, क्‍या अखबार मालिक सरकार से ऊपर हैं।
ऐसे कई उदाहरण हैं जहां अपने खिलाफ रिपोर्ट लिखने वाले कई पत्रकारों की नौकरी केंद्र व कई राज्‍यों की सरकारों ने समय समय पर खा ली। जब वे अपने खिलाफ लिखने वाले पत्रकार की नौकरी खा सकते हैं तो क्‍या अपनी ताकत का प्रयोग कर पत्रकारों का शोषण नहीं रुकवा सकते। रुकवा सकते हैं, परंतु ऐसा नहीं होता कारण आप भी जानते हैं।

साथियों जब तक हम एकजुट नहीं होंगे, तब तक हमारा शोषण इसी तरह होता रहेगा। मैं दिल्‍ली निवासी तो नहीं हूं परंतु इतना जानता हूं कि यहां हमारे साथियों की तादाद बहुत अच्‍छी संख्‍या में है। यहां कुछ एक ऐसे पोलिंग बूथ भी हैं जहां वे अपने परिजनों के वोटों के साथ एमसीडी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। आप को बस इतना ही आंकलन करना है कि कौन सी पार्टी मीडिया धरानों की नाराजगी मोल लेकर खुलकर पत्रकारों का पक्ष लेती है या पत्रकारों के पक्ष में अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए कानून में कुछ अच्‍छे प्रावधान करती है। आखिरी में आप से इतना ही कहना चाहूंगा कि मजीठिया के लिए संघर्षरत अपने हजारों साथियों का ध्‍यान रखते हुए इस बार अपना व अपने परिवार के वोट का सही इस्‍तेमाल करें।

जय मजीठिया

रवि कुमार, मप्र

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Tuesday 18 April 2017

मजीठिया: एक खुली पाती वाजपेयी जी के नाम

वाजेपयी जी,

हमें लगता है कि हमें ऐसे व्यर्थ के विवादों में अपना समय और ताकत बर्बाद नहीं करनी चाहिए। जब 28 अप्रैल 2015 के बाद डेट नहीं पड़ रही थी तब परमानंद पांडेय जी ने ही पहल कर सुनवाई की डेट ली थी और लंबे समय से इंतजार कर रहे साथियों की जान में जान आई थी। इस बार भी जब डेट नहीं पड़ रही और हम हलकान हो कर अपने वकीलों की तरफ देख रहे हैं और उन तक अपने पैगाम लगातार भेज रहे हैं ऐसे में उमेश शर्मा जी के प्रयास करने के बाद पांडेय जी ने भी जनआकांक्षाओं का मान रखते हुए अपने बेहतर प्रयास किए। हमारे लिए इतना ही काफी है परिणाम चाहे कुछ भी रहा हो। अंत में एक बात और आप एक बहुत अच्छे ग्रुप की नौकरी में कार्यरत हैं आप कृपया कर उन हजारों साथियों की पीड़ा पर भी ध्यान दें जो अपने हक की लड़ाई के चलते सड़क पर आ गए हैं और उनके पास अपने बच्चों की फीस भरने और इलाज के लिए पैसे नहीं है। आखिर में एक बार फिर... ये लड़ाई किसी एक की नहीं है, हम सब की है। हमें ताकतवर अखबार मालिकों के खिलाफ अपनी एकजुटता बनाए रखनी होगी।

धन्यवाद।
आपका ही एक साथी

(नीचे अंग्रेजी में लिखे आपके पत्र के आधार पर व्यक्त मेरी भावनाएं।)

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Dear All

A few days ago, on 12.4.2017, Advocate Parmanand Pandey decided to bring up the Majithia matter before the Supreme Court and ask for an early hearing. His request was turned down by the Chief Justice. It is true that most of the Journalist fraternity is frustrated and feels hopeless at being denied a hearing in a case that is almost at it's conclusion and that too for 3 months. However, I believe we need to condemn the way in which this mentioning was made as it was done without consulting any of the other lawyers who are representing the Journalists.

It is the opinion of Senior Advocate Mr. Colin Gonsalves who is  the arguing counsel for the vast majority of us and is also the arguing counsel in most of the cases of Mr. Parmanand Pandey in the Majithia matter that the mentioning "has caused the case harm" (I am quoting him verbatim here). Thus, this is not my personal opinion on the matter. I am sure that the other advocates appearing on behalf of the journalists also hold the same view.

- Pius Kumar Bajpai
 Convenor
 Majithia Implementation Sangharsh Smiti, New Delhi
(किसी एक साथी ने हमें यह पत्र भेजा था, जिसे हम आप सभी के लिए जारी कर रहे हैं।)  


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मजीठिया: नई‍ दुनिया को नोटिस, 15 दिन में भुगतान करें, नहीं तो जारी होगा राजस्‍व वसूली प्रमाण पत्र

रायपुर। छत्‍तीसगढ़ के श्रम आयुक्‍त ने मजीठिया वेजबोर्ड मामले में नई दुनिया प्रबंधन को नोटिस जारी किया है। 13 अप्रैल 2017 को जारी इस नोटिस के साथ उन 51 कर्मियों की सूची भी संलग्‍न की है, जिन्‍होंने मजीठिया वेजबोर्ड के लिए क्‍लेम लगाया हुआ है। नोटिस में श्रम आयुक्‍त ने क्‍लेम करने वाले कर्मचारियों के बैंक एकाउंट में क्‍लेम की राशि जमा कर 15 दिवस के अंदर उनके दस्‍तावेज प्रस्‍तुत करने का निर्देश दिया है।

छत्‍तीसगढ़ श्रम आयुक्‍त की इस कार्रवाई से जहां नई दुनिया प्रबंधन सकते में हैं, वहीं कर्मचारियों में हर्ष है। लगभग छह सात माह से मजीठिया वेजबोर्ड के लिए संघर्ष कर रहे कर्मचारियों को सफलता मिली है।


क्‍या लिखा है नोटिस में.....

प्रति
संपादक,
नई दुनिया समाचार पत्र
.............................

..................

संदर्भित पत्र द्वारा आपसे आपकी स्‍थापना में कार्यरत कर्मचारियों को मजिठिया वेतन अनुशंसाओं के अनुरुप किए गए भुगतान की जानकारी पत्र के संलग्‍न प्रारुप में मांगा गया था। परंतु आपके द्वारा जानकारी प्रस्‍तुत नहीं की गई है।

उक्‍त परिपेक्ष्‍य में इस कार्यालय में माननीय उच्‍ततम न्‍यायालय के आदेशों के हवाले से श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम, 1955 की धारा 7 (1) के तहत मजिठिया वेतन अनुशंसाओं के देय राशि हेतु राजस्‍व वसूली प्रमाण पत्र जारी करने के लिए 51 आवेदकों द्वारा आवेदन किया गया है। इन कर्मचारियों की सूची एवं उनकी दावा का विवरण परिशिष्‍ठ "A" में संलग्‍न है। आपसे यह अपेक्षा की जाती है कि आप 15 दिवस के भीतर इन कर्मचारियों को मजिठिया वेतन अनुशंसाओं के अनुरुप अंतर की बकाया राशि उनके बैंक खाते में भुगतान कर प्रमाण मेरे समक्ष प्रस्‍तुत करें।

यदि आपके द्वारा निर्देशानुसार मजिठिया वेतन अनुशंसाओं के अनुरुप भुगतान का प्रमाण पत्र (Bank Statement) 15 दिवस में प्रस्‍तुत नहीं किया जाता है तो यह मान्‍य कर लिया जायेगा कि आपको इस संबंध में कुछ नहीं कहना है एवं तदनुसार एक पक्षीय कार्यवाही करते हुए राजस्‍व वसुली प्रमाण पत्र जारी कर दिया जायेगा। प्रकरण में दिनांक 02/06/2017 नियत किया जाता है।
संलग्‍नक - आवेदकों के claim का विवरण
(अविनाश चम्‍पावत)
श्रमायुक्‍त
छत्‍तीसगढ़, नया रायपुर
रायपुर, दिनांक 13/04/17  


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