Wednesday 30 November 2022

इतिहास याद रखेगा एक पत्रकार से डर गई सरकार



रवीश को लेकर सरकार का यह डर अच्छा लगा

रवीश जहां खड़ें होंगे, उनके पीछे लाइन दोबारा खड़ी हो जाएगी

यह तो होना ही था। अगस्त में जब अडाणी ग्रुप ने एनडीटीवी के 29.18 फीसदी शेयर अप्रत्यक्ष रूप से खरीद लिए थे तो तभी से कयास लग रहे थे कि रवीश को अब जाना होगा या समझौता करना होगा। सत्ता की चाटुकारिता करने की बजाए रवीश ने इस्तीफा देना बेहतर समझा। एनडीटीवी की प्रेसीडेंट सुपर्णा सिंह ने एनडीटीवी के कर्मचारियों को आंतरिक मेल जारी कर इसकी जानकारी दी। इससे पहले एनडीटीवी के संस्थापक प्रणय राय और राधिका राय ने भी आरआरपीआर होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के डायरेक्टर पद से इस्तीफा दे दिया था।

इतिहास इस बात को याद रखेगा कि सत्ता के सामने निडरता से सच बोलने का साहस दिखाने वाले एक पत्रकार के लिए सत्ता ने पूरा संस्थान खरीद डाला। यानी एक पत्रकार ने पूरी सत्ता झुका दी। जब देश में बड़ी-बड़ी संस्थाएं ढह रही हों तो एक एनडीटीवी का ढहना कोई बड़ी बात नहीं है। जनता में संदेश यह गया है कि सरकार एक पत्रकार से डर गयी। यह डर बहुत अच्छा लगा।

रवीश कुमार प्रकरण से मेरे जैसे पत्रकारों के हौसले और अधिक बुलंद हुए हैं। मेरा लोकतंत्र और जनपक्षधरता में और अधिक विश्वास बढ़ा है। मैं अब और मुखरता और निडरता से भ्रष्ट और जनविरोधी तंत्र पर जोर से प्रहार करूंगा। सच यही है कि कलम की ताकत तलवार की मार से अधिक होती है।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

Wednesday 9 November 2022

मजीठिया की पिच पर दैनिक जागरण क्लीन बोल्ड, देना होगा 57 कर्मियों को ब्याज समेत 21 करोड़


मजीठिया वेजबोर्ड की कानूनी लड़ाई के मैदान पर स्वर्गीय एआर हरीश शर्मा की तैयार पिच पर कर्मियों के मजबूत इरादों, एआर राजुल गर्ग की दमदार पारी और ऐन टाइम पर रविंद्र अग्रवाल की दस्तावेज मांगने की सुझाव रूपी गुगली से जागरण प्रबंधन क्लीन बोल्ड हो गया। अदालत में जागरण द्वारा तैयार किए 20जे के कागजात, जिसे प्रबंधन ने ब्रह्मास्त्र के रूप में इस्तेमाल किया था, बेकार साबित हुए। 17-2 पर भी जागरण हिट विकेट हो गया। 7 साल का संघर्ष सोमवार को नोएडा के 57 कर्मियों के जीवन में मुस्कान लेकर आया और जागरण के लिए ब्याज समेत लगभग 21 करोड़ की देनदारी।

इस संघर्ष की नींव तो 2014 में ही पड़ गई थी, जब दैनिक जागरण ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार कर्मचारियों को मजीठिया बेजबोर्ड का लाभ नहीं दिया। इसके बाद कर्मचारियों ने जागरण प्रबंधन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर कर संघर्ष का बिगुल बजा दिया था। इसके बाद अवमानना का केस लगाने वाले और पुराने कर्मचारियों को परेशान करने का सिलसिला तेज हो गया। परंतु कर्मचारियों ने हार नहीं मानी और एकजुटता का जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए प्रबंधन की हर ज्‍यादती सहन की। कर्मचारियों ने कड़ी से कड़ी चुनौती और आर्थिक तंगहाली के बावजूद हार नहीं मानी और अपने प्रतिनिधियों का चयन कर लड़ाई जारी रखी। इस बीच, सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बीच कर्मचारियों ने डीएलसी स्‍तर पर भी मजीठिया की मांग जारी रखी।

प्रबंधन लगातार दवाब बनाने का प्रयास करता रहा। कर्मचारियों ने 8 जून 2015 को एक मांगपत्र प्रबंधन को सौंपा। इस बीच कर्मचारी काम के दौरान काली पट्टी बांध कर रोष जताते रहे और अपनी एकजुटता प्रदर्शित की। परिणामस्वरूप 14 जुलाई 2015 को डीएलसी नोएडा में देररात चली वार्ता के दौरान समझौता हुआ, जिसमें अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने पर उसे लागू करने की बात कही गई।

लेकिन अंदर ही अंदर खार खाए बैठे जागरण प्रबंधन ने चाल चली और कर्मचारियों को दबाने के लिए 2 महिला कर्मियों को निकाल दिया। इससे भी कर्मचारियों के हौसले डगमगाए नहीं। इसके कुछ दिन बाद ही प्रबंधन ने इष्टदेव, रतन भूषण, विवेक त्यागी, सीपी पाठक, प्रदीप कुमार तिवारी समेत 16 कर्मचारियों को बिना जांच किए सीधे नौकरी से निकाल दिया। इनमें से ज्यादातर कर्मचारियों के प्रतिनिधि थे।

इसका भी असर कर्मचारियों पर नहीं पड़ा और वे प्रबंधन के खिलाफ एकजुट खड़े रहे और वे 2 अक्टूबर 2015 को गांधी जयंती के मौके पर मजीठिया को लेकर एक मांगपत्र देने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय और राष्ट्रपति भवन तक गए। इसके बाद आनन-फानन में प्रबंधन ने लगभग 200 कर्मचारियों की गेट पर नो एंट्री लगा दी और कार्यालय के बाहर भारी पुलिस बल तैनात करवा दिया। प्रबंधन यहीं नहीं रूका और नोएडा के 200 कर्मचारियों समेत दिल्ली, हिसार, लुधियाना, जालंधर व धर्मशाला के लगभग 350 कर्मचारियों को अवैध हड़ताल व अन्‍य फर्जी आरोप लगाकर निलंबित कर दिया और फरवरी-मार्च 2016 में अवैध बर्खास्तगी कर दी।

अपनी अवैध बर्खास्तगी के बाद भी कर्मचारियों ने हार नहीं मानी और कानूनी लडाई के मैदान पर वे अंगद की तरह पांव जमाए खड़े रहे। उन्‍होंने मजीठिया वेजबोर्ड के एरियर के अलावा अवैध बर्खास्‍तगी के दो अलग-अलग केस दायर किए जो माननीय श्रम न्‍यायालयों में लंबित थे। इसका सुखद फल सोमवार, 7 नवंबर को नोएडा की माननीय अदालत ने मजीठिया वेजबोर्ड एरियर मामले में 57 कर्मचारियों के पक्ष में अपना फैसला सुनाकर दिया। ज्ञात रहे कि यह फैसला दो भागों में आया है। पहले कोर्ट ने जागरण प्रबंधन के सबसे बड़े मगर खोखले हथियार 20जे को निरस्‍त कर दिया था और कर्मचारियों को मजीठिया वेजबोर्ड व अंतरिम राहत का हकदार माना था। इस फैसले में प्रबंधन को रिकार्ड दाखिल करने के निर्देश दिए थे, जो नहीं माने गए। 

नोएडा लेबर कोर्ट में अभी बाकी कर्मचारियों की सुनवाई जारी है और जल्द ही उनका भी फैसला आ जाएगा। अन्य जगहों के कर्मचारी भी मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे हैं। आशा है, नोएडा लेबर कोर्ट की तरह हर जगह के कर्मचारी विजयी होंगे।

शशिकांत सिंह

वरिष्ठ पत्रकार व आरटीआई कार्यकर्ता

मोबाइल नंबर 9322411335

Tuesday 1 November 2022

अरूण खरे जी हिंदी पत्रकारिता के एक सशक्त हस्ताक्षर थे!



अरविंद कुमार सिंह-

कुछ देर पहले भाई ओम पीयूष के फोन से खबर मिली कि अरुण खरे जी चुपचाप चले गए। खबर सच थी। फिर भी कुछ जगह फोन किया। फिर फेसबुक पर मुकुंद, सीमा किरणजी, हिमांशु और कई साथियों की पोस्ट देख कर समझ गया कि खबर सच है।

वे हिंदी पत्रकारिता के सशक्त हस्ताक्षर और बेहतरीन दोस्त थे। ऐसे दोस्त, जो सुख में भले न दिखें लेकिन तकलीफ में हमेशा साथ होते थे। अपना नुकसान सह कर भी साथ होते थे। यह सब तजुर्बा से कह रहा हूं क्योंकि दो तीन साल तो हमने साथ काम किया था। बाकी जानता तो जाने कब से था।

2011 में मां के निधन के बाद मन बहुत खिन्न था। अरुण जी ने फोन किया, कहा कि सीधे जबलपुर आ जाइए कुछ दिन दोनों मित्र यहीं रहेंगे। मैं उनके पास गया और उनके सात भेड़ाघाट से लेकर जाने कितनी जगहें देखीं, रानी दुर्गावती की समाधि और बहुत कुछ। पुराने मित्र चैतन्य भट्ट जी भी मिले थे। जो तस्वीर साझा कर रहा हूं उसमें पहली तस्वीर उनके साझ भेड़ाघाट जबलपुर की है।


अरुण खरे और अरविंद कुमार सिंह

वे जहां जिस भूमिका में रहे परफेक्ट काम करते थे। दिल्ली लोकल की जबरदस्त जानकारी थी, राजनीतिक विषयों पर गहरी समझ थी और संसदीय मामलों में भी श्रम से उन्होने एक अलग पहचान बनायी थी। साहित्य, कला और संस्कृति पर भी उनकी समझ बहुत गहरी थी।

उनके संपर्कों का दायरा विशाल था। उन्होने कई पत्रकार साथियों को निखारा और मदद की। बुंदेलखंड के मामले में वे बहुत गहरी समझ रखते थे। मैने उनको कई बार कहा कि एक पुस्तक इस पर लिखिए। टाला नहीं, लेकिन लिखा भी नहीं। दरअसल उनसे लिखवा सकता था लेकिन जिद करके बैठना पड़ता।

चंद माह पहले मैं संसद भवन में था तो उनका फोन आया। हाल चाल के बाद तय हुआ था कि जल्दी वे दिल्ली आएंगे और फिर विस्तार से बात होगी। वे नहीं आये, लेकिन उनके न होने की खबर आयी।

बहुत सी यादें हैं और बहुत कुछ लिखने के लिए भी है। लेकिन लिखा नहीं जा रहा हूं। मन बहुत भारी है। कोई ऐसे भी जाता है अरुण भाई।

[source: https://www.bhadas4media.com/arun-khare-ki-yaad/]

नहीं रहे वरिष्ठ पत्रकार अरुण खरे



मुकुंद मित्र-

अपने बेहद अभिन्न और बड़े भाई अरुण खरे का आज कानपुर ले जाते समय रास्ते में निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार कल सुबह बांदा में होगा। हे परमात्मा उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान जरूर देना।


राजू मिश्र-

बांदा जिले के छोटे से नरैनी कस्बे से निकलकर जिला मुख्यालय और फिर राष्ट्रीय राजधानी में कलम का लोहा मनवाने वाले अरुण खरे ने संक्षिप्त बीमारी के बाद आज दुनिया को अलविदा कह दिया।

गोरे थे सो देखने मे बिल्कुल अंग्रेज लगते थे। बाजदफे लोग धोखा भी खा जाते थे। पाठा के जंगलों में सूखे की रिपोर्टिंग करते हुए ऐसे कई वाक्ये हुए। मुफलिसी से लेकर शाहखर्ची तक का लंबा साथ रहा। ट्रेन में बिना टिकट भी चले और टिकट लेकर एसी फर्स्ट क्लास में भी।

बीते दिन आंखों के सामने सपने के मानिंद तैर रहे हैं। कमासिन में हम दोनों ने एक औरत के सती होने का खौफनाक दृश्य देखा। सिगरेट बहुत पीते थे, पीते ही नहीं बल्कि चेनस्मोकर थे। दैनिक कर्मयुग प्रकाश के दिनों में वह पहला पेज देखते थे और हम शहर/ग्रामीण।

कभी कहते कि आकाशवाणी वाले धीमी गति के समाचार पत्रकारों को काहिल बनाने के लिए चलाते हैं, हम कहते कि नहीं, यह तो पत्रकारों के प्रति उनकी सदाशयता है।

तमाम झंझावातों के बावजूद हमारी बरात में वह गए, उनकी बरात में हम। बहुत ही नेक, शरीफ और सह्रदय व्यक्ति थे। मिलनसारिता के तो कहने ही क्या!

रिक्शेवाले या भिखारी को मनमाना पैसा दे देना उनकी फितरत थी, भले ही अपनी खातिर कुछ न बचे।

परमात्मा इस असीम वेदना को सहन करने की भाभी जी और बच्चों को अपार शक्ति दें। अरुण जी आप बहुत याद आएंगे। अंतिम प्रणाम।

[source: https://www.bhadas4media.com/arun-khare-death/]