Friday 25 February 2022

अंशदान में देरी से हुए नुकसान की भरपाई करेंगे नियोक्ता

उच्चतम न्यायालय ने साफ कहा कि ईपीएफ अंशदान जमा करने में देरी के लिए नियोक्ता को कानून की धारा 14 बी के तहत क्षतिपूर्ति देनी होगी नई दिल्ली, 23 फरवरी। कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) में अंशदान (EPF contribution) में देरी के लिए होने वाले नुकसान की भरपाई नियोक्ता को करनी होगी। उच्चतम न्यायालय (SC) ने बुधवार को यह व्यवस्था दी है। न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने कहा कि कर्मचारी भविष्य निधि एवं विविध प्रावधान अधिनियम किसी ऐसे प्रतिष्ठान में काम करने वाले कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता है, जहां 20 या अधिक लोग काम करते हैं। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि इस कानून के तहत नियोक्ता की यह जिम्मेदारी है कि वह अनिवार्य रूप से भविष्य निधि (Provident Fund)) की कटौती करे और उसे ईपीएफ कार्यालय में कर्मचारी के खाते में जमा कराए। उच्चतम न्यायालय ने यह व्यवस्था कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर दी है। उच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि यदि नियोक्ता ईपीएफ में अंशदान में देरी करता है, तो इसकी क्षतिपूर्ति की जिम्मेदारी उसी की होगी। न्यायालय ने कहा, ‘‘हमारा विचार है कि ईपीएफ अंशदान जमा करने में देरी के लिए नियोक्ता को कानून की धारा 14 बी के तहत क्षतिपूर्ति देनी होगी। कर्मचारियों के लिए नई पेंशन योजना पर विचार ईपीएफओ संगठित क्षेत्र के 15,000 रुपये से अधिक का मूल वेतन पाने वाले तथा कर्मचारी पेंशन योजना-1995 (ईपीएस-95) के तहत अनिवार्य रूप से नहीं आने वाले कर्मचारियों के लिए एक नई पेंशन योजना लाने पर विचार कर रहा है। वर्तमान में संगठित क्षेत्र के वे कर्मचारी जिनका मूल वेतन (मूल वेतन और महंगाई भत्ता) 15,000 रुपये तक है, अनिवार्य रूप से ईपीएस-95 के तहत आते हैं। एक सूत्र ने एजेंसी से कहा, ‘‘ईपीएफओ के सदस्यों के बीच ऊंचे योगदान पर अधिक पेंशन की मांग की गई है। इस प्रकार उन लोगों के लिए एक नया पेंशन उत्पाद या योजना लाने के लिए सक्रिय रूप से विचार किया जा रहा है, जिनका मासिक मूल वेतन 15,000 रुपये से अधिक है।’’ सूत्र के अनुसार, इस नए पेंशन उत्पाद पर प्रस्ताव 11 और 12 मार्च को गुवाहाटी में ईपीएफओ के निर्णय लेने वाले शीर्ष निकाय केंद्रीय न्यासी बोर्ड (सीबीटी) की बैठक में आ सकता है। अगले महीने तय होंगी ब्याज दरें वित्त वर्ष 2021-22 के लिए कर्मचारी भविष्य निधि जमा पर ब्याज दरें अगले महीने तय की जाएंगी। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के निर्णय लेने वाले निकाय केंद्रीय न्यासी बोर्ड (सीबीटी) की बैठक अगले महीने होने जा रही है जिसमें चालू वित्त वर्ष के लिए ब्याज दरों पर फैसला किया जाएगा। केंद्रीय श्रम मंत्री भूपेंद्र यादव ने इसी महीने एजेंसी को यह जानकारी दी। यादव ने कहा, ‘‘ईपीएफओ के केंद्रीय न्यासी बोर्ड की बैठक मार्च में गुवाहाटी में होगी, जिसमें 2021-22 के लिए ब्याज दरों तय करने का प्रस्ताव सूचीबद्ध है।’’ यह पूछे जाने पर कि क्या ईपीएफओ 2021-22 के लिए भी 2020-21 की तरह 8.5 प्रतिशत की ब्याज दर को कायम रखेगा, यादव ने कहा कि यह फैसला अगले वित्त वर्ष के लिए आमदनी के अनुमान के आधार पर किया जाएगा। मार्च, 2021 में सीबीटी ने 2020-21 के लिए ईपीएफ जमा के लिए 8.5 प्रतिशत की ब्याज दर निर्धारित की थी। सीबीटी द्वारा ब्याज दर पर फैसला लेने के बाद इसे वित्त मंत्रालय की अनुमति के लिए भेजा जाता है। मार्च, 2020 में ईपीएफओ ने भविष्य निधि जमा पर ब्याज दर को घटाकर 2019-20 के लिए 8.5 प्रतिशत के सात साल के निचले स्तर पर ला दिया था। 2018-19 में ईपीएफओ पर 8.65 प्रतिशत का ब्याज दिया गया था. ईपीएफओ ने 2016-17 और 2017-18 में भी 8.65 प्रतिशत का ब्याज दिया था। 2015-16 में ब्याज दर 8.8 प्रतिशत थी। वहीं 2013-14 में 8.75 प्रतिशत और 2014-15 में भी 8.75 प्रतिशत का ही ब्याज दिया गया था। हालांकि, 2012-13 में ब्याज दर 8.5 प्रतिशत थी। 2011-12 में यह 8.25 प्रतिशत थी। (साभारः भाषा)

Thursday 24 February 2022

सर्विस कंडिशन चेंज होने पर कर्मचारियों का ट्रांसफर अवैध: सुप्रीम कोर्ट


महत्वपूर्ण फैसला, राजस्थान पत्रिका के एक मामले का हवाला भी दिया


किसी कंपनी द्वारा पहले कर्मचारियों पर त्यागपत्र देने के लिए का दबाव बनाने और त्यागपत्र ना देने पर कर्मचार्रिेयों को जबरिया काफी दूर ट्रांसफर करके नौकरी छोड़ने केा मजबूर करने वाली कंपनियों की चाल को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने अवैध करार दिया है। यह फैसला ट्रांस्‍फर को हथियार के तौर पर इस्‍तेमाल करने वाली निजी कंपनियों के लिए एक बड़ा झटका है। एमएस कापरो इंजीनियरिंग इंडिया लिमिटेड बनाम सुरेंद्र सिंह तोमर एवं अन्‍य के मामले में सुप्रीमकोर्ट के जस्‍टीस एमआर शाह व एएस बोपन्‍ना की खंडपीठ ने 26 अक्‍तूबर, 2021 को यह फैसला सुनाया है। इस मामले में पाईप बनाने वाली मध्य प्रदेश की एक कंपनी ने अपने कर्मचारियों की संख्‍या कम करने के गलत इरादे से पहले अपने कर्मचारियों को इस्‍तीफा देने का दबाव बनाया, जब वे ना माने तो एक साथ नौ कर्मचारियों का तबादला मौजूदा कार्यस्‍थल से करीब 900 किमी. दूर राजस्थान में कर दिया गया। इतना ही नहीं इन कर्मचारियों को पाइप बनाने की यूनिट से नट बनाने वाले यूनिट में भेजा गया, जिसे कोर्ट ने सर्विस कंडिशन में बदलाव मानते ही औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 9-ए का उल्‍लंघन माना। इस फैसले में सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने ना केवल सभी कर्मचारियों सिर्फ ट्रांसफर रद्द करने के लेबर कोर्ट के फैसले को सही करार दिया, बल्‍कि चार सप्ताह के अंदर सभी कर्मचारियों को एरियर व वेतन देने, फिर से काम पर रखने और अन्य सभी सुविधाएं देने के अलावा प्रत्येक कर्मचारी को 25-25 हजार रुपए हर्जाना देने का भी आदेश दिया है।

मध्य प्रदेश के दिवास की कापरो इंजिनियरिंग इंडिया लि. में लोहे के पाईप बनाए जाते हैं। इस कंपनी के नौ कर्मचारियों ने कंपनी में 25 से 30 साल तक नौकरी की। कर्मचारियों का कहना था कि कंपनी प्रबंधन ने उनसे त्यागपत्र मांगा मगर उन्होने त्यागपत्र नहीं दिया जिसके बाद कंपनी प्रबंधन ने 13 जनवरी 2015 को कर्मचारियों का ट्रांसफर दिवास से राजस्थान के चोपंकी कर दिया, जो दिवास से लगभग 900 किलोमीटर दूर है। इस ट्रांसफर से सभी कर्मचारी परेशान हो गए, क्योकि जिस जगह तबादला किया वहां 40 से 50 किमी. के दायरे में कोई रिहायशी इलाका तक नहीं था। ऐसे में इस जगह पर जाने से कर्मचारियों के बच्चों से लेकर माता-पिता परेशान होने वाले थे। इतना नहीं जिस नई इकाई में इन कर्मचारियों का ट्रासंफर किया गया वहां पाईप नहीं बल्की नट बोल्ट बनता था। ऐसे में उनका कार्य भी बदला जा रहा था। इन कर्मचारियों का विवाद पहले लेबर कोर्ट गया, जहां से उन्‍हें राहत मिली। कंपनी ने लेबर कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चैलेंज किया और वहां भी लेबर कोर्ट के फैसले को सही माना गया। ऐसे में कंपनी ने सुप्रीमकोर्ट की शरण ली, मगर सुप्रीम कोर्ट ने भी कर्मचारियों के हक में फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इन कर्मचारियों पर नौकरी छोड़ने का दबाव बनाने के लिए सैकड़ों किमी. दूर ऐसे जगह ट्रांसफर करना करना जहां ना तो उनके लिए रहने की व्‍यवस्‍था थी और ना ही उनको पहले वाला कार्य दिया गया था। इस दौरान माननीय सुप्रीमकोर्ट ने राजस्थान पत्रिका प्रा.लि. प्रेसिडेंट वर्सेज डायरेक्टर से जुड़े एक मामले का भी हवाला दिया और कहा कि यह प्रजेंट केस नेचर ऑफ वर्क, सर्विस कंडीशन में बदलाव और गलत तरीके से ट्रांसफर तथा मौलिक अधिकार से जुड़ा है, इसलिए नौ कर्मचारियों का राजस्थान में किया गया ट्रांसफर रद्द करने और वेतन सहित पूर्व के सभी लाभ देने का लेबर कोर्ट का फैसला सही था। वहीं सर्वोच्‍च अदालत ने अपने आदेश में चार सप्ताह के अंदर सभी कर्मचारियों को एरियर और वेतन देने तथा उनको फिर से काम पर रखने के अलावा अन्य सभी सुविधाएं देने सहित प्रत्येक कर्मचारी को 25-25 हजार रुपए अतिरिक्त देने का आदेश भी दिया है। इस आदेश से उन समाचार पत्र कर्मचारियों को भी लाभ  मिल सकता है जिनका इसी तरह से कंपनियों ने त्यागपत्र नहीं देने पर ट्रांसफर किया है, बशर्ते उनके तबादले की परिस्‍थितियां इस केस से मेल खाती हों।

शशिकांत सिंह

उपाध्यक्ष

न्यूज पेपर एम्पलॉयज यूनियन आफ इंडिया (एनएयूआई)

9322411335


Thursday 3 February 2022

पहली बार किसी दल ने अपने घोषणा पत्र में पत्रकारों को जगह दी

कांग्रेस के घोषणा पत्र में पत्रकारों के लिए योजना

विचारक और सामाजिक चिंतक प्रेम बहुखंडी का आभार

उत्तराखंड कांग्रेस के घोषणा पत्र को बनाने में पार्टी के थिंक टैंक प्रेम बहुखंडी की अथक मेहनत रही है। उन्होंने इस घोषणा पत्र में पहाड़ और उत्तराखंडित को समहित करने का भरसक प्रयास किया है। सबसे अलग बात यह है कि उन्होंने गोदी मीडिया से इतर छोटे और मझोले पत्रकारों की सुध ली है। चारण, भाट और दलाल पत्रकारों की तो किसी भी सरकार में मौज होती है लेकिन इनकी संख्या पत्रकारों की कुल संख्या का 10 प्रतिशत ही होता है। 90 प्रतिशत पत्रकार आज भी ईमानदारी से और कठिन परिस्थितियों में जीवन यापन कर रहे हैं।

कांग्रेस घोषणा पत्र में कंस्ट्रक्शन वर्कर्स बोर्ड 1996 की तर्ज पर पत्रकार बोर्ड का गठन करने की बात की गयी है, मसलन जैसे हर प्रकार के कंस्ट्रक्शन की कुल कीमत का कुछ प्रतिशत कंस्ट्रक्शन वर्कर्स बोर्ड के पास जाता है, उसी प्रकार सरकार द्वारा, जितने भी विज्ञापन दिए जाएंगे, उसका कुछ प्रतिशत पत्रकार वेलफेयर बोर्ड के पास जाएगा। इससे पत्रकारों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित होगी, पत्रकारिता के भी स्वतंत्र होने की उम्मीद है। पत्रकारों के लिए सामाजिक सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है। भाजपा सरकार में सच्चे पत्रकार सबसे अधिक असुरक्षित रहे हैं। पत्रकारों पर हमले, उनकी हत्या, झूठे मुकदमे, राजद्रोह समेत कई तरह से उनका उत्पीड़न किया गया है। ऐसे में कांग्रेस के घोषणा पत्र में पत्रकारों के लिए जगह दिया जाना सराहनीय है बशर्ते सरकार आने के बाद इस पर अमल भी हो।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]