Sunday 19 December 2021

प्रिंटिंग रोल में दबकर नईदुनिया जागरण के कर्मचारी की मौत

 


इंदौर। इंदौर में नई दुनिया ए यूनिट ऑफ जागरण प्रकाशन अखबार के प्रिंटिंग प्रेस कार्यालय में शनिवार 18 दिसम्बर की रात हुए हादसे में एक कर्मचारी की मौत हो गई। हादसा उस समय हुआ जब अखबार के प्लांट में एक कागज से भरा हुआ ट्रक खाली होने पहुंचा था। ट्रक में भरे पेपर रोल को उतरवाने में नई दुनिया के कर्मचारी साबिर अहमद की ड्यूटी लगी हुई थी। 

राऊ पुलिस के मुताबिक इंदौर के आजाद नगर के रहने वाले साबिर अहमद रोल खाली करवाने में मदद कर रहे थे। इसी दौरान पेपर के रोल उन पर गिर पड़े। हादसे में साबिर ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। 

इस हादसे को लेकर नई दुनिया प्रबंधन ने खबर तक नहीं प्रकाशित की, जबकि देश के प्रमुख अखबार दैनिक भास्कर और अन्य अखबारों ने इस खबर को प्रकाशित किया है। कर्मचारियों ने हादसे को लेकर शोक जताया है। वहीं कर्मचारियों का कहना है कि नईदुनिया अखबार में हादसे की खबर न छापना कुछ छुपाने की मानसिकता को दिखाता है। ऐसा लगता है कि नईदुनिया जागरण प्रबंधन पूरे मामले को रफा-दफा करके दबाना चाहता है।

Saturday 4 December 2021

दैनिक जागरण की नाक कट ही गयी!


हमने पहले भी कहा था कि जागरण की नाक ग्वालियर में भी कट सकती है। अब ग्वालियर से बहुत बढ़िया खबर आ गयी है। आर्डर के मुताबिक जो मुख्य बात है, वह यह कि जागरण प्रकाशन लिमिटेड को 31 दिसंबर 21 तक पूरी राशि को ब्याज सहित या तो कर्मचारियों में बांटना है या फिर किसी राष्ट्रीय बैंक में फिक्स्ड डिपॉजिट के रुप में जमा कराना है। माननीय हाइकोर्ट तभी जागरण के केस को सुनेंगे। 

दूसरी ओर ग्वालियर हाइकोर्ट में एक अन्य केस में पहले से यह आदेश आया हुआ है कि जागरण 31 तक राशि वर्करों में बांट कर क्लोजर रिपोर्ट के साथ उनके समक्ष जनवरी में पेश हो। 

कुल मिलाकर बात यह हुई कि जागरण को कोर्ट ने अपने आदेश के जरिये यह बता दिया है कि कानून का उलंघन करना ठीक नहीं। कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं होगा कि जागरण को जागरण के खास लुटेरों ने ही लूटा है और यह अच्छी बात है। क्योंकि इस संजय को अपने और सच्चे लोगों को देखने के लिए दृष्टि नहीं है। कोई बात नहीं। कुछ दिन बाद यही संजय गाते फिरेंगे कि हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था, मेरी किस्ती वहां डूबी जहां पानी कम था...। बाकी बातें फिर कभी...

(वरिष्ठ पत्रकार रतन भूषण की फेसबुक वॉल से साभार)


जागरण ने दिया 186000 का हर्जाना


नोएडा लेबर कोर्ट ने नंबर वन अखबार दैनिक जागरण को मजीठिया मामले में कुछ दिन पहले 1 लाख 86 हज़ार रुपये हर्जाने का आदेश दिया था, जिसे जागरण ने चेक से दिया। लेबर कोर्ट में वर्कर ने चेक लिया। 

जाहिर है, जब कोर्ट के आदेश का कोई पालन नहीं करता है, तभी उसे सज़ा के रूप में कॉस्ट देना होता है। 

जागरण के वर्कर जागरण से कई बार कॉस्ट ले चुके हैं और यह लगातार जारी है। संभव है, कुछ केस में आगे भी जागरण कॉस्ट लेकर लेबर कोर्ट आये। उसे आगे की तारीख में भी यह देना है। पर जागरण के वर्कर इन छोटी राशि वाले चेक से बहुत खुश नहीं हैं। वे प्रति वर्कर करोड़ों का सपना सजाए बैठे हैं और उनके सपने पूरे होंगे, यह तय है। हमारे सर के के पुरवार शुरू से कहते आ रहे हैं कि कोई चाहकर भी इस केस को हार नहीं सकता। यानी है निश्चित, हमारी जीत।

(वरिष्ठ पत्रकार रतन भूषण की फेसबुुक वॉल से साभार)


आखिर दैनिक जागरण की नाक क्यों कटती है! ग्रेज्यूटी मामले में एचआर मैनेजर को देनी ही पड़ी राशि


जी हां, हम बात कर रहे हैं जेपीएल यानी जागरण प्रकाशन लिमिटेड के दैनिक जागरण की। जी वही अखबार , जो दावे करता है नंबर वन का, लेकिन करनी ऐसी कि कोर्ट में हर जगह मुंह की खाता है। इन कामों में फायदा तो हर तरह से उठाता है भागदौड़ करने वाला, वकील और कोर्ट और मैनेजमेंट के बीच की कड़ी बनने वाला बिचौलिया, लेकिन हर जगह नाक कटती है बेचारे दैनिक जागरण की। अजीब तो यह है कि सूर्पनखा की नाक तो एक बार कटी थी, लेकिन उपरोक्त लोगों के कारण जागरण की नाक बार-बार कट रही है। कहने का आशय यह है कि जागरण के लोगों ने जागरण की हालत सूर्पनखा से भी बदतर बना दी है।

जब अखबार के कर्मचारियों के लिए मजीठिया वेजबोर्ड केंद्र सरकार ने लागू किया, तो दैनिक जागरण के लोग ही थे जिन्होंने उसे माननीय सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया। जिसका फैसला आया 2014 में, जिसमें कहा गया कि 4 किस्तों में कर्मचारियों की बकाया राशि भुगतान किया जाए। यहां पहली बार जागरण की नाक कटी। लेकिन जागरण को माननीय का आदेश कैसे मंजूर होता? उसने आदेश को नहीं माना, तब कर्मचारियों ने अवमानना याचिका लगाई। जागरण ने वहां अपना पक्ष रखा, तो माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कुछ पैरे को स्पष्ट कर 2017 में आदेश सुनाया कि कर्मचारी डीएलसी के यहां केस लगाकर अपनी राशि लें। दूसरी बार जागरण की नाक यहां कटी।

उसके बाद जागरण के खिलाफ देश के तमाम जिलों-शहरों में मजीठिया की मांग को लेकर केस लगे। कई जगह से फैसले कर्मचारियों के हक में आ चुके हैं और इनकी नाक कटने का सिलसिला जारी है। इस बीच कुछ जगह झूठ बोलकर, कोर्ट को गुमराह कर जागरण केस को लेट कराने में सफल हुआ, लेकिन सच को देर तक झूठ नहीं बनाया जा सकता। इनकी नाक फिर कट जाती है, इसके तमाम उदाहरण हैं।

इनकी हालिया नाक का सवाल था जागरण के एच आर मैनेजर रमेश कुमार कुमावत का केस। यह केस नोएडा डीएलसी में था। कुमावत का शुरू से कहना था कि जागरण को मजीठिया के हिसाब से वर्कर को वेतन देना चाहिए और वे यही बात अपने साथी सीनियर और मैनेजर वगैरह से भी कहते थे। कर्मचारियों से भी उनका इंसानी रिश्ता था, इसलिए जागरण को वे पसंद नहीं आए और उन्हें निकाल दिया गया। उनकी जो राशि बनती थी, वह दिया, लेकिन ग्रेज्यूटी की राशि रोक दी जो 1 लाख 12 हजार कुछ सौ थी। जागरण का कहना था कि उनका बनता नहीं है। मैनेजमेंट के एक व्यक्ति ने बताया कि यह केस जागरण की नाक का सवाल है। वह ग्रेज्यूटी का पैसा नहीं देगा। मामला माननीय हाइकोर्ट भी गया। माननीय ने जागरण को नोएडा में 1 लाख जमा करने का आदेश दिया और टाइम बाउंड के साथ केस को फिर से सुनने के लिए कहा। केस वहां से नोएडा आया। पिछले दिनों मामला कुमावत के पक्ष में आया और जमा राशि 1 लाख उनके खाते में भी चली गई। यानी यहां भी जागरण की नाक कटी। राशि 10 फीसदी इंटरेस्ट के साथ जागरण को देना है। कहने का आशय यह है कि जागरण जहां भी नाक का सवाल बनाता है, उसकी नाक कट जाती है।

लोग कहते हैं कि बिजनेसमैन रुपये खर्च करने के मामले में बहुत सोचते हैं। जागरण ने मजीठिया मामले में अभी तक पैसा पानी की तरह बहाया, लेकिन अपनी नाक कभी नहीं बचा पाया। यह भी संभव है कि बिचौलिए ने पैसे खर्च के नाम पर जागरण से बटोरे, लेकिन आगे दिए नहीं। अपने संदूक को भर लिया। जागरण के कुछ लोग इसे सही भी कहते हैं कि कुछ लोग जागरण में रह कर मजीठिया ले लिए। उम्मीद करता हूं, जब तक महाभारत रूपी जागरण के इस संजय को ठग जैसे अपने लोगों को पहचानने में दृष्टि दोष रहेगा, जागरण की नाक आगे भी कटती रहेगी।

(वरिष्ठ पत्रकार रतन भूषण की फेसबुुक वॉल से साभार)


Monday 29 November 2021

डीबी कार्प को पीएफ घोेटाले में तगड़ा झटका, हाईकोर्ट में जमा करने पड़े 77 लाख रुपये




मजीठिया क्रांतिकारियों की शिकायत रंग लाई

दैनिक भाष्कर जैसे समाचार पत्रों का प्रकाशन करने वाली कंपनी डीबी कार्प के दैनिक दिव्य मराठी प्रबंधन को औरंगाबाद हाईकोर्ट ने जोरदार झटका दिया है। नियमानुसार पीएफ जमा नहीं करने पर सेंट्रल गर्वमेंट इंडस्ट्रीयल ट्रिब्यूनल (सीजीआईटी) के आदेश के खिलाफ दिव्य मराठी दैनिक को औरंगाबाद हाईकोर्ट में 76 लाख 83 हजार 542 रुपये जमा करने पड़े। इस समाचार पत्र के डिप्यूटी न्यूज एडिटर और मजीठिया क्रांतिकारी सुधीर जगदाले की शिकायत पर वर्ष 2017 में यह लड़ाई शुरु हुई थी। बताते हैं कि सुधीर जगदाले ने 13 अगस्त 2017 को औरंगाबाद के केंद्रीय भविष्य निधि कार्यालय (पीएफ ऑफिस) से यह लिखित शिकायत की थी कि डीबी कार्प अपने समाचार पत्र दैनिक दिव्य मराठी के कर्मचारियों का पीएफ नियमानुसार नहीं काटता है। जिसके बाद केंद्रीय भविष्य निधि आयुक्त औरंगाबाद ने 7-ए की इंन्क्वायरी शुरू की।

इस इंन्क्वायरी के दौरान मजीठिया क्रांतिकारी सूरज जोशी और विजय वानखेड़े भी जुड़े और इस प्रकरण की आखिर तक लड़ाई लड़ी। बाद में इसमें कई कर्मचारियों ने मेल के जरिए शिकायत की। इन कर्मचारियों की शिकायत थी कि डी.बी. कॉर्प अपने पत्रकारों और गैर पत्रकारों की सैलरी स्लीप पर बेसिक, एचआरए, कंवेश््य अलाउंस, मेडिकल अलाउंस, एज्यूकेशन अलाउंस, स्पेशल अलाउंस आदि लिखता है मगर कंपनी सिर्फ बेसिक पर 12 फीसदी काटती है। जबकि नियमानुसार स्पेशल अलाउंस पर भी पीएफ कटना चाहिए था। इस मामले में कर्मचारियों ने सुप्रीमकोर्ट के 28 फरवरी 2019 के एक लैंड मार्क जजमेंट का हवाला दिया। तीन साल तक चली इस जांच में कोरोना ने ब्रेक लगा दिया। इसके बाद ऑनलाइन सुनवाई शुरू हुई जिसमें मजीठिया क्रांतिकारी सुधीर जगदाले ने अपना और सभी पत्रकारों का पक्ष रखा।

दोनो पक्ष को सुनने के बाद केंद्रीय भविष्य निधि आयुक्त ने 25-1-2021 को आदेश पारित किया कि दिव्य मराठी 15 दिन के अंदर 3 करोड़ 7 लाख 34 हजार 168 रुपये जमा करे। केंद्रीय भविष्य निधि आयुक्त औरंगाबाद के इस आदेश के खिलाफ दैनिक दिव्य मराठी प्रबंधन सेंट्रल गर्वमेंट इंडस्ट्रीयल ट्रिब्यूनल (सीजीआईटी) नागपुर के पास चला गया। इस मामले की सुनवाई करते हुए सीजीआईटी ने दैनिक दिव्य मराठी प्रबंधन को निर्देश दिया कि वह इस पूरी राशि की 50 फीसदी रकम यानि एक करोड़ 53 लाख 67 हजार 84 रुपये जमा करे। परंतु सीजीआईटी के इस आदेश के खिलाफ दिव्य मराठी प्रबंधन औरंगाबाद हाईकोर्ट चला गया जहां उसे मुंह की खानी पड़ी। हाईकोर्ट ने सीजीआईटी के पारित आदेश का 50 फीसदी यानि 76 लाख 83 हजार 542 रुपये अपने पास जमा करने के आदेश दिए। जिसके लिए दैनिक दिव्य मराठी प्रबंधन को 28-9-2021 तक का समय दिया गया। हाईकोर्ट के आदेश के बाद दिव्य मराठी प्रबंधन ने 76 लाख 83 हजार 542 रुपये महाराष्ट्र के औरंगाबाद हाईकोर्ट में जमा करा दिए। यह लड़ाई चार साल चली थी। इस शानदार जीत पर मजीठिया क्रांतिकारी सुधीर जगदाले सहित सुरज जोशी और विजय वानखेड़े को लगातार बधाई मिल रही है।


शशिकांत सिंह

पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी तथा आरटीआई एक्टीविस्ट

9322411335

Saturday 13 November 2021

वेतन वृद्धि मामलाः सुप्रीम कोर्ट ने कहा- उप्र के अधिकारी अहंकारी, अभी तक मिल जानी चाहिए थी कड़ी सजा


नई दिल्ली, 13 नवंबर। सर्वोच्च न्यायालय ने कर्मचारी को नियमित करने और वेतन वृद्धि के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को पूरी तरह से लागू नहीं किए जाने और देरी करने पर उत्तर प्रदेश के दो बड़े अधिकारियों पर कड़ी टिप्पणी की और उनकी गिरफ्तारी का रास्ता साफ कर दिया। सर्वोच्च अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि उत्तर प्रदेश के अधिकारी बहुत ज्यादा अहंकारी है और आप इसी के काबिल है। इसी के साथ याचिका खारिज कर दी। उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जमानती वारंट को खारिज करने के लिए सुप्रीम कोेर्ट में याचिका दायर की थी।

एक राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र की रिपोर्ट के अनुसार इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक वसूली अमीन की नौकरी नियमित करने और वेतन वृद्धि के भुगतान का मामला चल रहा है। इसकी सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के वित्त सचिव और अडिशनल मुख्य सचिव (राजस्व) के खिलाफ कड़ी टिप्पणी की और कहा कि ये दोनों अधिकारी अदालत को खेल का मैदान बना रहे हैं और अमीन को वेतन वृदिघ देने से मना कर दिया था। 

उच्च न्यायालय के आदेश के बाद अधिकारियों ने अदालत को गुमराह किया। इस मामले में एडिशनल एडवोकेट जनरल ने अदालत में अंडरटेकिंग दी थी, लेकिन बावजूद इसके अधिकारियों ने बढ़ा हुआ वेतन नहीं दिया और अंडरटेकिंग की अवहेलना की। उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने अधिकारियों की ओर से अर्जी दाखिल कर उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील की, लेकिन सर्वोच्च अदालत से राहत नहीं मिली।

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि आप इसी के काबिल हैं। उच्च न्यायालय को तो अभी तक गिरफ्तारी का आदेश दे देना चाहिए था और कड़ी सजा देनी चाहिए थी। उच्च न्यायालय ने फिर भी उदारता दिखाई है। आप अपने कंडक्ट को देखिए, एक कर्मचारी की वेतन वृद्धि को देने से आपने मना किया और उसे रोक रहे हैं। आपके जेहन में अदालत के प्रति कोई आदर का भाव नहीं दिखता है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ये अधिकारी अहंकारी दिखते हैं। उत्त्र प्रदेश सरकार के अधिकारियों की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी ने कहा कि वसूली अमीन को नियमित कर दिया गया है और वेतन वृद्धि का भुगतान होना है और साथी ही सर्वोच्च न्यायालय से मामले में नरमी बरतने का अनुरोध किया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ये फिट केस है, जिसमें जमानती वारंट जारी किया गया है।


Monday 8 November 2021

सहाराकर्मियों की काली दिवाली, छठ पर भी काले बादल



दिवाली से ठीक पहले प्रबंधन के लोग रफू-चक्कर

राष्ट्रीय सहारा को मिलते हैं लाखों के सरकारी विज्ञापन, सीबीआई जांच जरूरी

देश की लुटेरी कंपनियों में अग्रणी शुमार सहारा ग्रुप ने इस बार दिवाली को अपने कर्मचारियों को वेतन नहीं दिया। राष्ट्रीय सहारा देहरादून के कर्मचारियों की दिवाली काली रही। पत्रकार तो इधर-उधर से कमाई और वसूली कर ही लेते हैं, लेकिन अन्य स्टाफ सिर पकड़ कर रो रहे हैं। जानकारी के मुताबिक सहारा ने इस साल तीन महीने वेतन ही नहीं दिया। दिवाली पर उम्मीद थी लेकिन वेतन नहीं मिला। सूत्रों के मुताबिक दिवाली से ठीक पहले दिन ही प्रबंधन के लोग आफिस से रफू-चक्कर हो गये। अब कर्मचारियों को चिन्ता है कि छठ पूजा पर भी शायद ही वेतन मिले। 

सीबीआई ने हाल में मध्य प्रदेश के दो अखबारों को झूठा सर्कुलेशन में पकड़ा है। राष्ट्रीय सहारा देहरादून ने भी एबीसी सर्कुलेशन में अपनी प्रसार संख्या 80 हजार करीब बताई है जबकि राष्ट्रीय सहारा उत्तराखंड के चारों एडिशन की प्रसार संख्या दस हजार से भी कम है। इसके बावजूद राज्य सूचना विभाग इस अखबार को हर महीने 40 से 50 लाख का विज्ञापन देता है। इस मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए। सूत्रों के मुताबिक राष्ट्रीय सहारा देहरादून के कर्मचारियों का कुल वेतन 12 लाख रुपये भी नहीं है। इसके बावजूद कंपनी यहां के 30 लाख से अधिक की राशि नोएडा कारपोरेट आफिस को दे देती है। 

वेतन न मिलने से कई कर्मचारियों के परिवार भुखमरी तक पहुंच चुके हैं। सहारा ग्रुप के बड़े अधिकारी किसी भी मद में आज भी लाखों रुपये निकाल लेते हैं लेकिन कर्मचारियों के लिए वेतन के लाले हैं। सहारा ग्रुप पर देश के तीन करोड़ निवेशकों के साथ धोखाधड़ी का आरोप है। और सहारा को सेबी को अरबों रुपये का भुगतान करना है।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]



Sunday 31 October 2021

मणिसाना बेजबोर्ड: अदालत ने दैनिक भास्कर प्रबंधन को जवाब देने का मौका किया समाप्त


मणिसाना बेजबोर्ड मामले में जयपुर की एक अदालत ने दैनिक भास्कर प्रबंधन को बार-बार मौका दिया कि वह अपना पक्ष रखे मगर दैनिक भास्कर प्रबंधन या उनका प्रतिनिधि अदालत में हाजिर नहीं हुआ जिसके बाद जयपुर की अदालत ने दैनिक भास्कर के प्रबंधन को जवाब देने का मौका ही समाप्त कर दिया।

बताते हैं कि दैनिक भास्कर के कई कर्मचारियों द्वारा मणिसाना वेज बोर्ड की सिफारिशों के अंतर्गत बकाया राशि पाने हेतु दैनिक भास्कर के विरुद्ध केस फाइल किया गया है जिसकी सुनवाई जयपुर के श्रम न्यायालय प्रथम में चल रही है।

इस सुनवाई के दौरान माननीय न्यायाधीश महोदय ने दैनिक भास्कर प्रबंधन को चार मार्च 2021, 12 अप्रैल 2021, 2 सितंबर 2021 और 17 नवंबर 2021 जवाब देने का मौका दिया मगर भास्कर प्रबंधन ने जवाब नहीं दाखिल किया जिसके बाद श्रम न्यायालय प्रथम ने एक आदेश जारी कर साफ कर दिया कि अब बार-बार अवसर देने के बाद भी भास्कर प्रबंधन ने कोई जवाब नहीं दिया। इसके बाद 6 अक्टूबर को अदालत ने दैनिक भास्कर के प्रबंधन का जवाब देने का मौका समाप्त कर दिया।

अचरज की बात यह है कि दैनिक भास्कर प्रबंधन ने मणिसाना बेज वोर्ड मामले में 25 जुलाई 2005 को एक शपथपत्र देकर साफ किया था कि वह अपने कर्मचारियों को मणिसाना वेज बोर्ड का लाभ दे रहा है। उसने अपने शपथपत्र में उस समय अपने कर्मचारियों की संख्या तक बताई थी और कहा था कि उसके समाचार पत्र में जयपुर में श्रमजीवी पत्रकारों की संख्या 43 है और गैर श्रमजीवी पत्रकारों में पुरुषों की संख्या 94 और महिलाओं की संख्या 14 है। इस तरह गैर श्रमजीवी पत्रकारों की संख्या 108 है।

दैनिक भास्कर ने अपने कर्मचारियों में अन्य कर्मचारियों की संख्या पुरुष 247 तथा महिलाएं 7 इस तरह कुल 254 अन्य कर्मचारी बताया था। जयपुर में जिन कर्मचारियों ने मणिसाना वेज बोर्ड के तहत बकाया पाने का मामला श्रम न्यायालय में लगाया है उनकी बकाया राशि एक करोड़ से तीन करोड़ रुपए तक है। इन कर्मचारियों में अधिकांश ने मनिसाना वेज बोर्ड के साथ – साथ श्रम न्यायालय में जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड के तहत भी मुकदमा कर रखा है।


शशिकांत सिंह

पत्रकार और आरटीआई कार्यकर्ता

9322411335

Monday 4 October 2021

जागरण नईदुनिया से दो माह में करो मजीठिया की वसूली: हाईकोर्ट



वसूली कर जमा करनी होगी कंप्लायंस रिपोर्ट

ग्वालियर। मप्र उच्च न्यायालय की ग्वालियर पीठ की डबल बैंच ने मजीटिया मामले में दो माह में जागरण नईदुनिया से अवार्ड की वसूली कर कर्मचारियों को दिलाने का ऐतिहासिक आदेश सोमवार 4 अक्टूबर को पारित किया है। माननीय जस्टिस श्री शील नागू की बेंच ने शासन को आदेश दिया है कि 31 दिसम्बर तक जागरण से मजीठिया अवार्ड की राशि वसूल की जाए। साथ ही जनवरी के दूसरे सप्ताह में हाईकोर्ट में कम्प्लायंस रिपोर्ट जमा की जाए। 

दरअसल जागरण नईदुनिया के अनेक कर्मचारियों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वर्ष 2017 में राज्य सरकार से ग्वालियर लेबर कोर्ट में मामले रेफर होने के बाद क्लेम पेश किया था। कोर्ट में करीब 2 साल मामला चला। जागरण नईदुनिया ने यहां 20जे को लेकर आपत्ति ली और इस आधार पर केस खारिज किये जाने को मुख्य आधार बनाया। लेकिन श्रम न्यायालय के विद्वान न्यायाधीश श्री कुबेरचन्द यादव ने 20जे को सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार ठीक नहीं माना। उन्होंने व्याख्या की कि निर्धारित वेतन से कम पर 20जे का कोई औचित्य नहीं है। इस तरह लेबर कोर्ट ने 10 कर्मचारियों के पक्ष में करीब ढाई करोड़ के आवर्ड अगस्त 2019 में पारित किए।

अवार्ड पारित होने के बाद कर्मचारियों ने जागरण के एमडी महेंद्र मोहन, सीईओ संजय गुप्त समेत अन्य को लीगल नोटिस भेजकर अवॉर्ड का पालन करने की अपील की। लेकिन मालिक के चाटुकारों ने इन अहंकारी और धृतराष्ट्र मालिकों के सामने कोई नई गोटी फेंक दी। अहंकारी मालिकों ने करीब दो साल तक लेबर कोर्ट के आदेश की पालना तक नहीं की। चाटुकारों ने धृतराष्ट्र को भरोसा दिलाया था कि आपका कुछ नहीं होगा हम हैं न। 



कर्मचारियों के जज्बे से निकला जीत का रास्ता

इस मामले में कर्मचारियों का जज्बा और अधिवक्ताओं के उचित मार्गदर्शन ने जीत का रास्ता आसान बना दिया। कर्मचारियों ने 2 साल तक धैर्य रखा और शासन में उच्च स्तर तक वसूली के लिए कागजी कार्रवाई करते रहे। चूंकि मामला अखबार से जुड़ा था और जागरण नईदुनिया भाजपा का चारणभाट मुखपत्र है, जिस कारण वसूली को लेकर शासन हीलाहवाली करता रहा। इसके बाद कर्मचारियों ने अगस्त में हाईकोर्ट की ग्वालियर पीठ में रिट फाइल की। मामले में सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने कर्मचारियों के हक में आदेश दिया है।


Saturday 28 August 2021

खंडवा में भी लहराया मजीठिया का परचम, पीयूष पंडित ने जागरण को दी पटकनी

मात्र 6 माह में आया ऐतिहासिक फैसला 

इंदौर के बाद खंडवा में मजीठिया मामले में एक पत्रकार को विजयश्री प्राप्त हुई है। खंडवा में मजीठिया मामले में विजयश्री प्राप्त करने वाले पहले पत्रकार पीयूष पंडित बने हैं। उनके पक्ष में माननीय न्यायालय ने 9.26000 रुपए का अवार्ड पारित किया है।

उक्त जानकारी देते हुए मजीठिया क्रांतिकारी धर्मेन्द्र हाडा ने बताया कि खंडवा के  पीयूष पंडित ने बड़वानी में मजीठिया के बकाया वेतन के लिए कोर्ट में शरण ली थी। इस मामले में  श्रम न्यायालय बड़वानी ने मजीठिया वेज बोर्ड के प्रकरण में पीयूष पंडित के पक्ष में अवॉर्ड पारित किया है। इस अवार्ड में विजश्री प्राप्त करने में वरिष्ठ अभिभाषक  सूरज आर. वाडिया की अहम भूमिका रही है।  वाडिया ने इंदौर से लगातार खंडवा के एडव्होकेट सोलंकी के सम्पर्क रहे। वाडिया ने पीयूष पंडित के ए़डव्होकेट सोलंकी को इंदौर से अपने तैयार किए दावे, बयान और क्रास की कापी उपलब्ध करवाई थी, जिसके आधार पर बड़वानी के माननीय श्रम न्यायालय ने पीयूष पंडित के मजीठिया वेतनमान के बकाया वेतन अंतर व अन्य लाभ के लिए 9,26000 रुपए का अवॉर्ड पारित करते हुए एक माह में संपूर्ण राशि का भुगतान करने का आदेश दिया।  इस केस में सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि पीयूष पंडित ने मात्र 6 माह में मजीठिया के केस में विजयश्री प्राप्त कर इतिहास रचा है।   पूरी जानकारी अवॉर्ड की कॉपी प्राप्त होने के बाद के बाद आपके समक्ष आ जाएगी। हाडा शीघ्र कापी उपलब्ध कराएंगे। इस विजय पर बड़वानी के एडव्होकेट सोलंकी, इंदौर के वरिष्ठ अभिभाषक सूरज आर. वाडिया व पीयूष पंडित को मजीठिया क्रांतिकारियों ने बधाई दी है। 

Saturday 7 August 2021

मजीठिया का केस जीतने वाले बेरोजगार महेंद्र सेंगर बनेंगे लखपति


बेरोजगारी और आर्थिक रूप से परेशान वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र सेंगर ने मजीठिया के केस में विजयश्री प्राप्त कर ली है। अब वे लखपति की श्रेणी में आने वाले हैं, क्योंकि मजीठिया के बकाया वेतन की राशि के रूप में उन्हें 313156 रुपये मिलेंगे।

वरिष्ठ अभिभाषक वाडिया व नई दुनिया के मजीठिया क्रांतिकारी धर्मेंद्र हाडा ने बताया कि इंदौर नई दुनिया इंदौर में जूनियर सब एडिटर के पद पर 2012 तक पदस्थ रहे महेंद्र सिंह सेंगर ने मजीठिया बकाया वेतनमान के लिए कोर्ट की शरण ली थी, जिस पर इंदौर श्रम न्यायालय के न्यायाधीश ने 23 जुलाई को अवार्ड पारित कर सेंगर को बकाया वेतन अंतर एवं अन्य लाभ 11-11-2011 से अक्टूबर 2012 तक का 2,86,756 एवं अंतरिम राहत राशि जनवरी 2010 से अक्टूबर 2011 तक का रुपये 26,400 के साथ ही वाद व्यय 3,000 रुपये देने का निर्णय सुनाया है। ये अवॉर्ड की संपूर्ण राशि एक माह में महेंद्र सिंह सेंगर को देने के आदेश कार्ट ने दिया है।


नहीं थे केस लगाने के पक्ष में

आपको बता दें कि महेंद्र सेंगर मजीठिया वेतन मान का बकाया वेतन पाने के लिए केस लगाने के पक्ष में नहीं थे। उन्हें मेरे व्दारा बार-बार समझाया गया, लेकिन वे मानते नहीं थे। उनका कहना था मात्र 2-3 साल का मजीठिया बकाया क्या मिलेगा। जब उन्हें समझाया गया कि 1-2 लाख रुपये मिल सकता है तो बड़ी मुश्किल से माने और उसके बाद उन्हें वाडियाजी से मिलवाकर मजीठिया का केस दायर किया गया। इसके बाद भी सेंगर तारीख पर जाने में आना-कानी करते थे, क्योंकि नौकरी छूटने के बाद वे आर्थिक रूप से कमजोर हो चुके थे। उन्हें समझाया गया कि आप को जब पैसा मिलेगा तभी वरिष्ठ अभिभाषक वाडिया को पैसा देना आप केस तो पूरी जी-जान से लड़ो। उसके बाद सेंगर ने बयान दिए और क्रॉस भी किया और आज नतीजा यह रहा कि सेंगर करोड़पति बनने की डगर पर खड़े हैं। 


इन साथियों ने की थी आर्थिक मदद

सेंगर नौकरी नहीं होने से बेरोजगारी में जीवन यापन कर रहे थे और मानसिक रूप से टूट चुके थे। उनकी आर्थिक दशा को लेकर इंदौर प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी से भी चर्चा की गई थी, उसके बाद उन्होंने उन्हें आर्थिक रूप से मदद और राशन कीट उपलब्ध कराई थी। इतना ही नहीं वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा और अंकुर जायसवाल व प्रवीण खालीवाल से भी उन्हें राशन की मदद दिलाई थी। अतः साथियों मजीठिया भले ही कितने भी वर्ष का हो उसे केस लगाकर अपना अधिकार प्राप्त होने से पीछे ना हटे। क्योंकि मजीठिया का पैसा मिलना है और इसे लेने से हमें कोई रोक नहीं सकता। अब सेंगर के केस में आरआरसी जारी करने की कार्रवाई एक माह बाद की जाएगी। अवार्ड की कापी धर्मेंद्र हांडा शीघ्र उपलब्ध कराएंगे जो आपके सामने होगी।

प्रमोद

Friday 23 July 2021

No Tears should be shed for Raids on DB Corps

-By Parmanand Pandey

It is really painful to see the monumental ignorance of some journalists, who have been orchestrating that the IT raids on the offices and residences of the owners of DB Corps are attacks on the ‘freedom of speech and expression’. It is an open secret that most of the big media houses in India are corrupt to the core and they are the past masters of exploitation of their employees. There is hardly any exception; be it the BennetColeman and Company, HT Media Ltd., Indian Express Newspapers Group, the Hindu, Eenadu, Anand Bazar Patrika, Dainik Jagran, Amar Ujala, Dainik Bhaskar, Deccan Chronicle, Matribhumi, Deccan Herald, Rajasthan Patrika or any other group. Albeit two medium newspapers; The Tribune of Chandigarh and The Assam Tribune of Guwahati can certainly be considered to be exceptions. Dainik Bhaskar is one of the worst exploiters and it has ruined the lives of hundreds of employees, most of them happen to be journalists. I do not say on the basis of any hearsay but on personally experienced facts. When the Majithia Wage Board recommendations were notified, there was a provision of 20 J, which said that those employees, who were getting more wages than what was prescribed in the Wage Board, could enter into an agreement with their management that they would not claim for the WageBoard wages. A time limit was prescribed for that individual agreement. 

Lo and behold, when all employees began asking for the Wage Board wages, they were called by the managers to sign the management prepared agreements from the backdate. The language of all agreements was identical. Employees were asked to give in writing that they would not ask for the wages according to the Wage Board, although these employees were getting much less than the wage board recommendations. All the government officials knew about the forgery of the agreements, but they were hugely bribed by the managements that they preferred to keep mum. This has happened in the majority of newspapers, but the owners of language newspapers (what they say Vernacular newspapers) have been the biggest culprits. They have been bending and slaughtering the rules and laws with gay abandon. The meaning of freedom of speech and expression has been converted into a big joke. Their semi-literate editors vie with each other in proving their loyalty to their masters and contriving the ways and means of exploitation of employees for their benefit.  Dainik Bhaskar, Dainik Jagran, Amar Ujala and Rajasthan Patrika are the known offenders. They are the blots on journalism. They have not thought even for a moment about the employees while victimizing them.

Many of the journalists working in Dainik Bhaskar were transferred from Delhi to far off and remote places of Bihar, Bengal or Tamilnadu, where people have not even heard the name of the newspaper. The journalists working for the print medium were/are shown to be the employees of the digital platform, where the Wage Board is not applicable. Nobody can tell what has been the contribution of Dainik Bhaskar Dainik Jagran in the development of healthy journalism? These newspapers have been encouraging the journalists to become pimps/ blackmailers/ advertisement collectors. They have brought down the image and credibility of journalism in the eyes of the public because of their unscrupulous conduct. These newspapers have built huge empires mainly because of the blackmailing, browbeating and nefarious connections with politicians and bureaucrats. There is another question whether these media houses owners should be left to openly violate the law? No action should be taken against them even if they are evading taxes? Can they be allowed to slay the labour laws to the detriment of poor employees? Can they grab the advertisements at exorbitant rates and fleece the public exchequer? It does not mean that the governments' officials are lily-white. Accepted that they are equally or more corrupt, but it does not provide any immunity to these media houses. 

Therefore, no tears should be shed for these media houses, which have been using their organs for their enrichment and aggrandisement behind the veneer of the freedom of speech and expression. Such Media houses should be shamed and not sympathised.

Thursday 22 July 2021

दैनिक भास्कर के कई ठिकानों पर इनकम टैक्स का छापा, कर चोरी का आरोप, मजीठिया न देने पर चुप रहने वाली संसद ठप


इंदौर/भोपाल/जयपुर। खुद को देश का सबसे बड़ा मीडिया समूह बताने वाले दैनिक भास्कर के कई ठिकानों पर इनकम टैक्स का छापा पड़ा है। यह छापामार कार्रवाई दैनिक भास्कर ग्रुप के मप्र, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान के ऑफिसों में एक साथ हुई है। ग्रुप के मालिक व संचालकों के आवास पर भी कार्रवाई की गई है। इस घटनाक्रम को लेकर बृहस्पतिवार को संसद में विपक्ष ने हंगामा जिसके बाद सदन की कार्रवाई ठप हो गई जहां मीडिया घरानों द्वारा पत्रकारों मजीठिया वेतनमान नहीं देने पर चुप्पी साध ली जाती रही है।  

हिंदी अखबार दैनिक भास्कर समूह (डीबी कॉर्प लिमिटेड) के सभी ऑफिसों पर छापे की कार्रवाई आयकर विभाग की इन्वेस्टिगेशन विंग कर रही है। अल सुबह एक साथ सभी दफ्तरों में छापे डाले गए। सुबह 5 बजे शुरू हुई कार्रवाई समाचार लिखे जाने तक जारी रही। इस दौरान भोपाल स्थित भास्कर के मालिक सुधीर अग्रवाल सहित सभी संचालकों के निवास के साथ ही ऑफिसों में सर्चिंग शुरू की गई। इस दौरान ऑफिस में मौजूद कर्मचारियों के फोन छीन लिए गए। किसी को भी अंदर से बाहर निकलने और बाहर से अंदर आने पर रोक लगा दी गई।

मीडिया रिपोर्ट और न्यूज एजेंसियों के अनुसार आयकर विभाग ने यह कार्रवाई कर चोरी के आरोप के चलते कर रही है। इसके तहत दैनिक भास्कर के नोएडा, भोपाल, इंदौर, मुंबई और पटना समेत देश के स्थानों पर स्थित ऑफिसों में यह छापेमारी चल रही है। समूह के मालिकों के आवासों पर भी कार्रवाई की गई। राजस्थान में जयपुर स्थित हेड ऑफिस पर भी कार्रवाई जारी है। पता चला है कि यहां आयकर विभाग के लगभग 35 अधिकारी दस्तावेजों की छानबीन कर रहे हैं। अहमदाबाद में भी कार्रवाई की खबर है। अखबार के मालिकों से ईडी पहले भी पूछताछ कर चुकी है।


दिल्ली-मुंबई की टीमें कर रहीं कार्रवाई

बताया जा रहा है कि दैनिक भास्कर द्वारा आयकर विभाग को समूह की ओर से जो दस्तावेज दिए गए वे संतोषजनक नहीं थे। इससे कर चोरी की आशंका होने पर ही छापे की कार्रवाई दिल्ली और मुंबई की टीमों द्वारा की गई। हालांकि आयकर विभाग अथवा उसके नीति-निर्माण निकाय, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) की ओर से इस संबंध में किसी प्रकार की आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है। दफ्तरों और मालिक के निवास के बाहर सीआरपीएफ के अलावा स्थानीय पुलिस भी तैनात की गई है। जैसे ही छापे की खबर लगी प्रबंधन ने अपनी डिजिटल विंग को घर से ही काम करने के लिए कह दिया गया।


कई अन्य कारोबारों से भी जुड़ा है दैनिक भास्कर समूह

दैनिक भास्कर समूह मीडिया बिजनेस के अलावा कई अन्य कारोबार से भी जुड़ा है। बताया जा रहा है कि प्रमुख हिंदी मीडिया समूह के प्रमोटर भी शामिल हैं। वजह यह कि इन प्रमोटरों के माध्यम से कई राज्यों में दैनिक भास्कर का अलग-अलग भाषाओं में संचालन किया जाता है। इसके अतिरिक्त डीबी डिजिटल, डीबी पॉवर, माय एफएम रेडियो के अलावा ऑइल, कपड़ा, प्रॉपर्टी के क्षेत्र में भी भास्कर समूह कार्य करता है। ये सभी आयकर के रडार पर हैं।


...कार्रवाई के खिलाफ विपक्ष ने खोला मोर्चा, संसद में किया हंगामा, दोनों सदनों की कार्रवाई स्थगित

दैनिक भास्कर पर हुई आयकर विभाग की कार्रवाई के बाद तीन राज्यों के मुख्यमंत्रियों सहित संसद में विपक्ष ने मोर्चा खोल दिया। विपक्ष ने इसे आपातकाल निरूपित करते हुए संसद और राज्य सभा में हंगामा किया। विपक्षी सदस्यों ने राज्यसभा में भास्कर ग्रुप पर इनकम टैक्स विभाग के छापों का विरोध कर नारेबाजी भी की। इसके बाद सदन दोपहर 2 बजे तक स्थगित कर दिया गया। बाद में कार्यवाही शुरू हुई, लेकिन भारी हंगामे की वजह से सदन कल तक के लिए स्थगित कर दिया गया। लोकसभा में भी हंगामा हुआ। यहां फोन टैपिंग और जासूसी का मुद्दा उठा। लोकसभा पहले 4 बजे और फिर कल सुबह 11 बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई।

इधर, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, राज्यसभा सदस्य एवं मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी, सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण आदि ने ट्वीट कर ऐतराज जताया है। इन सभी का कहना है कि यह प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ की आवाज दबाने का प्रयास है।


यूपी के भारत समाचार पर भी पड़ा छापा

यूपी के एक टीवी चैनल भारत समाचार पर भी छापे की कार्रवाई की गई। आयकर अधिकारियों की टीम ने इसके लखनऊ स्थित ऑफिस और संपादक के घर तलाशी ली। सूत्रों की मानें तो चौनल की ओर से दिए गए दस्तावेजों के आधार पर टैक्‍स चोरी के पुख्‍ता सबूतों के आधार पर कार्रवाई की गई। कार्रवाई को भारत समाचार की हालिया रिपोर्टिंग में यूपी सरकार की आलोचना किए जाने से जोड़कर भी देखा जा रहा है।


भाजपा विधायक अजय सिंह के घर भी मारा छापा, हड़कंप

बस्ती जिले के हरैया विधानसभा के भाजपा विधायक अजय सिंह के पैतृक गांव लजघटा में भी आयकर विभाग ने छापा मारा। पहुंचते ही पुलिस ने पूरे गांव घेर लिया। विधायक अजय सिंह का एक निजी न्यूज चैनल में कुछ शेयर है। इसी संबंध में उनके घर आयकर विभाग की छापामारी हुई। छापे के दौरान विधायक अजय सिंह मौजूद नहीं थे।


मजीठिया वेतनमान को लेकर न्यायालयों में विचाराधीन हैं कई केस

दैनिक भास्कर समूह देश के उन तमाम मीडिया समूहों में से प्रमुख है जिसके द्वारा अपने कर्मचारियों को मजीठिया वेतनमान का लाभ नहीं दिया जा रहा है। कर्मचारियों की मजीठिया वेतमान की लड़ाई लड़ रहे मप्र पत्रकार-गैर पत्रकार संघ के प्रांतीय महासिचव तरुण भागवत के अनुसार सरकार को दैनिक भास्कर समूह से मजीठिया वेतनमान का लाभ देने के मामले में भी पूछताछ की जानी चाहिए। भागवत के अनुसार मीडिया समूहों को कर्मचारियों को मजीठिया वेतनमान का लाभ 2011 से दिया जाना है जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट 2014 में दिए आदेश में स्पष्ट भी कर चुकी है।

भागवत ने बताया कि देश के हजारों मीडियाकर्मी अपना यह वाजिब हक पाने के लिए श्रम विभाग और न्यायालयों के चक्कर काट रहे हैं। मजीठिया वेतनमान के लिए न्यायालयीन लड़ाई लड़ रहे और प्रताड़ना का शिकार होने वालों में दैनिक भास्कर के कर्मचारियों की संख्या सैकड़ों में है। आश्चर्य तो यह है कि कर चोरी के आरोप में घिरे जिस संस्थान के लिए जो सांसद संसद ठप कर रहे हैं और जो मुख्यमंत्री मातम मना रहे हैं, वे उसी संस्थान द्वारा अपने कर्मचारियों का वाजिब हक मारने पर चुप हैं।

[साभारः acntimes.com]

https://acntimes.com/income-tax-department-raids-several-locations-of-dainik-bhaskar-alleging-tax-evasion-parliament-stalled/


Wednesday 21 July 2021

जागरण अखबार न ज्वाइन करने पर पछतावा नहीं



जागरण अखबार न ज्वाइन करने पर पछतावा नहीं

धीरे-धीरे मौत के आगोश में जा रहा अमर उजाला!

एक डरपोक और जनविरोधी अखबार की नौकरी से बेरोजगारी भली

अमर उजाला की नौकरी की लेकिन तब यह अखबार ऐसा डरपोक न था!

जनता से अपील, ऐसे डरपोक और जनविरोधी अखबारों को न पढ़ें 


इन दिनों पेगासस स्पाईवेयर को लेकर पूरे देश में हंगामा है। लोकतंत्र का कोई भी खंभा ऐसा नहीं है जिसकी जासूसी न की गयी हो। निजी जानकारियों के आधार पर बड़े-बड़े लोगों को ब्लैकमेल किया गया होगा। क्या ये खबर पेज वन की नहीं है, लेकिन दैनिक जागरण के देहरादून एडिशन में यह खबर पेज 12 पर है। अमर उजाला का भी बुरा हाल है। संपादक दलाल हो गये और गुलामी की जंजीर उन्हें बदतर जीवन दे रही है। भले ही वो रिवाल्विंग सीट पर बैठे हों, लेकिन जब भी आईना देखते होंगे तो उन्हें शर्म महसूस होती होगी कि वो किस कदर अपने जमीर की हत्या कर रहे हैं। पता नहीं ये संपादक अपने बच्चों से नजर कैसे मिलाते होंगे? अपने बच्चों को क्या संस्कार देते होंगे? मैं इसका विरोध नहीं कर रहा कि सरकार की गुलामी या चाटुकारिता न करो। यह व्यवसायिक मजबूरी हो सकती है। लेकिन पेगासस जैसा कांड की खबर पेज एक पर नहीं है तो फिर आप जनता को झूठ परोस रहे हैं। बकवास परोस रहे हैं। 

दैनिक जागरण देख कर क्षोभ हो रहा है। आज मैं बहुत खुश हूं कि मैंने दैनिक जागरण की नौकरी ठुकरा दी। दिल्ली में उन दिनों राजेंद्र त्यागी जी संपादक थे। मेरा चयन उन्होंने किया लेकिन मैंने अमर उजाला में ही रहना मुनासिब समझा। तब उन दिनों 2001-02 में राजेश रपरिया जी अमर उजाला के समूह संपादक थे और मैं गुड़गांव में तैनात था और मारुति में आंदोलन चल रहा था। मैं मारुति प्रबंधन की नजरों में खटक रहा था। हमने मारूति आंदोलन को जमकर कवरेज दी थी। जनहित की बात थी। प्रबंधन राजेश रपरिया जी के पास पहुंचा। लालच दिये लेकिन वो नहीं झुके। कहा, जो सड़क पर हो रहा है तो उसे कैसे न छापें। और आज अमर उजाला की धीमे जहर से मौत हो रही है। यह अखबार धीरे-धीरे मौत की ओर जा रहा है। जागरण को ज्वाइन न करने का आत्मसंतोष आज भी है और अमर उजाला में आ रहे बदलाव से दुखी हूं। एक अच्छे अखबार की मौत हो रही है।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार] 

Saturday 17 July 2021

मजीठियाः फ्री प्रेस ने किया कर्मचारी से समझौता, दबंग दुनिया को नोटिस जारी



मजीठिया मामले में फ्री प्रेस ने अपने कर्मचारी से समझौता कर लिया है। इसका खुलासा शुक्रवार को हुआ है। वैसे समझौते किए हुए करीब दो सप्ताह से अधिक का समय हो चुका है।

समझौते का खुलासा शुक्रवार को स्वयं न्यायाधीश ने फ्री प्रेस के अन्य कर्मचारी के प्रकरण में तारीख पर उपस्थित हुए पक्षकार के सामने करते हुए फ्री प्रेस प्रबंधन से कहा कि जब राजेश प्रजापत के मामले में समझौता हुआ है तो इस प्रकरण का भी निराकरण क्यों नहीं किया जाता है। ज्ञात हो कि इस समझौते के संबंध में हमारे व्दारा 6 माह पूर्व यह बताया गया था कि एक अखबार अपने कर्मचारी से मजीठिया का समझौता करने की तैयारी कर रहा है। वैसे समझौता कितने में हुआ यह अभी खुलासा नहीं हुआ है, लेकिन यह स्पष्ट हो गया है कि समझौते बतौर कर्मचारी राजेश प्रजापत को चेक फ्री प्रेस प्रबंधन ने दिए हैं। 

इस संबंध में कानूनविदों का कहना है कि मजीठिया मामले में समझौता कर फ्री प्रेस प्रबंधन ने समझदारी का परिचय दिया है। मजीठिया मामले में जितने लेटलतीफी होगी उसका उतना अधिक ब्याज देने का प्रावधान है। अतः समझौता कर फ्री प्रेस प्रबंधन ने मजीठिया मामले में लाखों रुपये वकीलों को लुटाने के साथ ही ब्याज राशि से भी राहत पाई है।


दबंग दुनिया को नोटिस जारी

इधर, दबंग दुनिया अखबार प्रबंधन को मजीठिया केस में फैसला होने के बावजूद एक माह में तीन साथियों को राशि का भुगतान ना  देने पर नोटिस जारी किया गया है। नोटिस में स्पष्ट है कि लेबर कोर्ट के आदेश के बावजूद आपने एक माह की अवधि पूर्ण होने के बावजूद मजीठिया वेतमान का पैसा जमा नहीं कराया है। अतः क्यों ना आपके खिलाफ आरआरसी की कार्रवाई की जाए। नोटिस में यह भी स्पष्ट किया है कि आरआरसी कार्रवाई में जो हरजाना व खर्च लगेगा उसे वहन करने की जिम्मेदारी आपकी होगी। 


Wednesday 30 June 2021

अमर उजाला को झटका, लेबर कोर्ट जम्‍मू ने तबादला किया स्‍टे, डाउनलोड करें आर्डर


मजीठिया क्रांतिकारियों के लिए जम्‍मू से एक अच्‍छी खबर है। यहां अमर उजाला के खिलाफ मजीठिया वेजबोर्ड के तहत क्‍लेम लगाने वाले एक साथी को प्रताड़ित करने के लिए किए गए तबादले पर लेबर कोर्ट जम्‍मू ने स्‍टे आर्डर जारी किया है। साथ ही कोर्ट ने संस्‍थान को पिछला वेतन और आगामी वेतन जारी करने के निर्देश भी दिए हैं। प्राप्‍त जानकारी के अनुसार अमर उजाला के जम्‍मू सेंटर में तैनात अमिताभ अरोड़ा ने संस्थान में कार्य करते हुए मजीठिया वेजबोर्ड के तहत वेतनमान व एरियर का केस लेबर विभाग में लगाया था और इसी साल मार्च माह में विभाग ने यह मामला वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट की धारा (17-2) के तहत लेबर कोर्ट, जम्‍मू-कश्‍मीर को फैसले के लिए संदर्भित कर दिया था।








जैसे ही कोर्ट में सुनवाई शुरू होने का समन संस्‍थान को मिला, अमिताभ को प्रताड़ित करने के लिए तबादला आदेश जारी कर दिए गए। इतना ही नहीं इन आदेशों में उसे तत्‍काल जम्‍मू के कार्य से हटाने और मुदरादाबाद में ज्‍वाइन करने को कहा गया था। हैरानी की बात यह रही कि जब ये आदेश जारी किए गए, तब पूरे देश में कोरोना के चलते लॉकडाउन चल रहा था। वहीं इन आदेशों से इनके मेलाफाइड होने और कर्मचारी के उत्‍पीड़न की बात साफ साबित हो रही थी।

रिकवरी का मामला पहले ही लेबरकोर्ट में था, इसे देखते हुए न्‍यूजपेपर इम्‍पलाइज यूनियन आफ इंडिया (एनईयूइंडिया) के मार्गदर्शन में अमिताभ की सर्विस कंडिशन बदलने की शिकायत आईडी एक्‍ट की धारा 33ए के तहत लेबर कोर्ट में दायरा की गई और साथ ही मामले की सुनवाई तक तबादला आदेशों को स्‍टे करने की अर्जी भी दाखिल की गई। इस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुना और अमिताभ के पक्ष को सही पाते हुए 28 जून को स्‍टे आर्डर जारी किया है। इस मामले में कोर्ट ने लॉकडाउन के बावजूद ऑनलाइन सुनवाई की और कर्मचारी को राहत प्रदान की। ज्ञात रहे कि अमिताभ अरोड़ा एनईयूइंडिया का सदस्‍य भी है। यूनियन के सहयोग के चलते ही उन्‍हें यह सफलता हाथ लग पाई है। अक्‍सर तबादलों के मामले में कोर्ट से स्‍टे लेना डेढी खीर होती है।

Thursday 17 June 2021

वरिष्ठ पत्रकार संतोष श्रीवास्तव के आकस्मिक निधन से सभी स्तब्ध


पत्रकार जगत में शोक की लहर, दी श्रद्धांजलि

दैनिक भास्कर सहित विभिन्न समाचार पत्रों में करीब तीन दशक तक कार्यरत रहे तलवंडी निवासी वरिष्ठ पत्रकार संतोष श्रीवास्तव (58) का आज गुरुवार सुबह कोटा हार्ट अस्पताल में आकस्मिक निधन हो गया। उन्हें कल दिन में घर पर तबीयत खराब हो जाने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

जानकारी के अनुसार कल दिन को करीब 11 बजे संतोष श्रीवास्तव घर पर अचानक तेज चक्कर आने से नीचे गिर गए। इसके बाद उन्हें कोटा हार्ट अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टर ने जांच कर उन्हें मामूली ब्लड प्रेशर की शिकायत बताई। साथ ही ऑक्सीजन की भी समस्या बताई। मगर हालात खतरे से बाहर बताते हुए एक-दो दिन में ही उनके ठीक हो जाने की बात कही। बताया गया है कि कल शाम तक भी श्रीवास्तव की तबीयत सामान्य थी। इससे उनके जल्दी ही डिस्चार्ज होने हो जाने की उम्मीद थी। मगर आज सुबह अस्पताल में ही अचानक उनका निधन हो गया। जैसे ही यह समाचार मिला पत्रकार जगत में भारी शोक की लहर दौड़ गई। उल्लेखनीय है कि श्रीवास्तव को कई साल से ब्लड प्रेशर की शिकायत थी। इस कारण उनका इलाज भी चल रहा था। मगर दो दिन से उनकी यह समस्या बढ़ गई थी।

आज सुबह 11 बजे बाद किशोरपुरा श्मशान घाट पर कोविड गाइड लाइन के अनुसार संतोष श्रीवास्तव की पार्थिव देह का अंतिम संस्कार कर दिया गया। उनके निधन पर राजस्थान पत्रकार संघ (जार) सहित विभिन्न पत्रकार संगठनों, पत्रकारों और बड़ी संख्या में राजनेताओं ने दुख प्रकट करते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। भगवान से उनकी आत्मा को सद्गति प्रदान करने की प्रार्थना के साथ उनके परिजनों को यह दुख सहने की शक्ति प्रदान करने की कामना भी की गई।


सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों में थी दिलचस्पी

संतोष श्रीवास्तव विभिन्न सामाजिक गतिविधियों से भी जुड़े हुए थे। वह अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के प्रदेश प्रवक्ता रह चुके थे। संगीत का भी उन्हें काफी शौक था। अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप माथुर, महामंत्री धर्मेंद्र जौहरी, प्रदेश प्रवक्ता एवं वरिष्ठ पत्रकार राजीव सक्सेना सहित सभी कार्यकारिणी सदस्यों ने संतोष श्रीवास्तव के निधन पर शोक जताते हुए उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित की है।

(source: newschakraindia.com)

Tuesday 15 June 2021

मीडियाकर्मियों की संगठित लड़ाई रंग लाई, डीएनए प्रेस वर्कर्स को मिलेगा सवा पांच करोड़ रुपये!



सेटलमेंट संबंधी प्रेस रिलीज

कहते हैं संगठन में ही शक्ति है. पर मीडिया फील्ड में काम करने वालों के बीच आपसी एकता, आपसी संगठन बहुत कम है। जहां जहां ये संगठन की शक्ति दिखती है वहां वहां फैसला आम मीडियाकर्मियों के हक में होता है। मुंबई में ऐसा ही हुआ।


मुंबई से प्रकाशित डीएनएन अखबार के प्रबंधन ने एक दिन अचानक सबकी छंटनी की घोषणा कर दी। अखबार प्रबंधन ने औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के सेक्शन 25-N के तहत प्रार्थना पत्र देकर छंटनी की थी। पर बाद में कोर्ट में ये अप्लीकेशन रिजेक्ट हो गया।


कानूनी न्यायिक लड़ाई के साथ साथ आपसी बातचीत का दौर भी चलता रहा। आखिरकार प्रबंधन और कर्मियों में सहमित बन गई। अंग्रेजी अखबार डीएएन के प्रबंधन ने छंटनी के शिकार कर्मियों को 5 करोड़ 22 लाख रुपये देने का फैसला किया है।


इस राशि में मजीठिया वेजबोर्ड के हिसाब से एरियर भी जोड़ दिया गया है ताकि हर मीडियाकर्मी को सात लाख से लेकर ग्यारह लाख रुपये तक एरियर मिल सके।




Sunday 6 June 2021

श्रम संहिताओं को लागू करने की तैयारी, हाथ में आने वाला वेतन घटेगा, बढ़ेगा पीएफ


नई दिल्ली, 6 जून। आगामी कुछ माह में चारों श्रम संहिताएं लागू हो जाएंगी। केंद्र सरकार इन कानूनों के क्रियान्वयन पर आगे बढ़ने की तैयारी कर रही है। ये कानून लागू होने के बाद कर्मचारियों के हाथ में आने वाला वेतन (टेक होम) घट जाएगा, वहीं साथ ही कंपनियों की भविष्य निधि (पीएफ) की देनदारी बढ़ जाएगी।

वेतन संहिता लागू होने के बाद कर्मचारियों के मूल वेतन और भविष्य निधि की गणना के तरीके में उल्लेखनीय बदलाव आएगा।

श्रम मंत्रालय इन चार संहिताओं....औद्योगिक संबंध, वेतन, सामाजिक सुरक्षा, व्यावसायिक और स्वास्थ्य सुरक्षा तथा कार्यस्थिति को एक अप्रैल, 2021 से लागू करना चाहता था। इन चार श्रम संहिताओं से 44 केंद्रीय श्रम कानूनों को सुसंगत किया जा सकेगा।

मंत्रालय ने इन चार संहिताओं के तहत नियमों को अंतिम रूप भी दे दिया था। लेकिन इनका क्रियान्वयन नहीं हो सका, क्योंकि कई राज्य अपने यहां संहिताओं के तहत इन नियमों को अधिसूचित करने की स्थिति में नहीं थे।

भारत के संविधान के तहत श्रम समवर्ती विषय है। ऐसे में इन चार संहिताओं के तहत केंद्र और राज्यों दोनों को इन नियमों को अधिसूचित करना होगा, तभी संबंधित राज्यों में ये कानून अस्तित्व में आएंगे।

एक सूत्र ने कहा, ‘‘कई प्रमुख राज्यों ने इन चार संहिताओं के तहत नियमों को अंतिम रूप नहीं दिया है। कुछ राज्य इन कानूनों के क्रियान्वयन के लिए नियमों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में हैं। केंद्र सरकार हमेशा इस बात का इंतजार नहीं कर सकती कि राज्य इन नियमों को अंतिम रूप दें। ऐसे में सरकार की योजना एक-दो माह में इन कानूनों के क्रियान्वयन की है क्योंकि कंपनियों और प्रतिष्ठानों को नए कानूनों से तालमेल बैठाने के लिए कुछ समय देना होगा।

सूत्र ने बताया कि कुछ राज्यों ने नियमों का मसौदा पहले ही जारी कर दिया है। इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, हरियाणा, ओडिशा, पंजाब, गुजरात, कर्नाटक और उत्तराखंड शामिल हैं।

नई वेतन संहिता के तहत भत्तों को 50 प्रतिशत पर सीमित रखा जाएगा। इसका मतलब है कि कर्मचारियों के कुल वेतन का 50 प्रतिशत मूल वेतन होगा। भविष्य निधि की गणना मूल वेतन के प्रतिशत के आधार पर की जाती है। इसमें मूल वेतन और महंगाई भत्ता शामिल रहता है।

अभी नियोक्ता वेतन को कई तरह के भत्तों में बांट देते हैं। इससे मूल वेतन कम रहता है, जिससे भविष्य निधि तथा आयकर में योगदान भी नीचे रहता है। नई वेतन संहिता में भविष्य निधि योगदान कुल वेतन के 50 प्रतिशत के हिसाब से तय किया जाएगा।

(साभारः भाषा) 

Saturday 29 May 2021

भीख मांगें या उधार लें, कर्मियों के वेतन का भुगतान करना ही होगा



नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश के बावजूद कर्मचारियों और अवकाश प्राप्त कर्मचारियों को पेंशन व बकाया राशि का भुगतान न करने पर कड़ी नाराजगी जताई है। अदालत ने उत्तरी एमसीडी के आयुक्त को तलब किया है।


न्यायमूर्ति विपिन सांघी और जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि आप भीख मांगे, उधार लें या चोरी करे लेकिन आपको कर्मचारियों की राशि का भुगतान करना ही होगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि अगली तारीख तक 5 अप्रैल के आदेश का पालन नहीं किया जाता है तो उत्तरी एमसीडी आयुक्त संजय गोयल सुनवाई में मौजूद रहेंगे।


अदालत का यह निर्देश अखिल दिल्ली प्राथमिक शिक्षामित्र संघ की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। याची के अधिवक्ता रंजीत शर्मा ने अदालत को बताया कि न्यायिक आदेशों के बावजूद सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन का भुगतान नहीं किया गया। उन्होंने उत्तरी दिल्ली नगर निगम के खिलाफ अवमानना शुरू करने की मांग की।


अदालत ने उत्तरी एमसीडी को इस मामले में नोटिस जारी कर दो दिन में अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है। अदालत ने मामले की सुनवाई 31 मई तय की है।


उत्तरी एमसीडी की और से पेश अधिवक्ता दिव्य प्रकाश पांडे ने कहा कि वे वेतन मामलों में रिपोर्ट दाखिल करने की प्रक्रिया में हैं और उन्होंने वेतन और पेंशन के लिए पैसे वितरित करने की कोशिश की है और अप्रैल तक वेतन का भुगतान कर दिया है। 


खंडपीठ ने उनके तर्क को खारिज करते हुए कहा, हम इस बारे में चिंतित नहीं हैं। आप भीख मांगते हैं, उधार लेते हैं या चोरी करते हैं लेकिन राशि का भुगतान करना होगा। कोर्ट ने इससे पहले भी सभी श्रेणियों के सेवारत और सेवानिवृत्त कर्मचारियों के वेतन और पेंशन का बकाया राशि स्पष्ट करने के लिए समय बढ़ाने से इंकार कर दिया था। कोर्ट ने सभी बकाया राशि को मंजूर करने के लिए 5 अप्रैल तक का समय दिया था।


अदालत ने दिल्ली की तीनों एमसीडी को 5 अप्रैल को या उससे पहले सभी पूर्व कर्मचारियों और सभी श्रेणियों के सेवारत कर्मचारियों की पेंशन और वेतन के सभी बकाया राशि को जारी करने निर्देश दिया था। अदालत ने स्पष्ट किया था कि तीनों एमसीडी आयुक्त राशि का भगतान समय पर हो यह सुनिश्चित करे।


अदालत ने न्यूज पेपरों में प्रकाशित कस्तूरबा गांधी अस्पताल के डाक्टरों की धमकी पर भी संज्ञान लिया था कि यदि पिछले वर्ष मार्च माह से रूके पूरे वेतन का भुगतान न हुआ तो वे त्यागपत्र दे देगें।


(साभारः अमरउजाला डॉट काम)


Friday 14 May 2021

IFWJ calls upon media to desist from naming Indian mutant of Corona Virus

New Delhi, 14 May. Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) has expressed extreme shock and huge concern over the use of the term ‘Indian variants’ for the Coronavirus, which is presently sweeping like a tsunami in India and many other countries.  It has called upon all journalists and media houses of the world not to call it an Indian variant as its origin is not even remotely linked with India.


It is highly distressing that even some Indian journalists and media houses have also fallen into the trap of the forces that are inimical to India and are making all efforts to create an atmosphere of fear and panic among the people of the world about India, said the statement of the IFWJ jointly issued by President BV Mallikarjunaih, the Vice-President Hemant Tiwari, and the Secretary-General Parmanand Pandey.  


It is a well-known fact that the origin of the Coronavirus can be traced only and only to China as it has been developed in the Wuhan Virological Institute as a deadly biological weapon to cause massive destruction and devastation to the lives and properties of the world and yet the media across the globe has failed to show the courage to call it a Chinese virus. Initially, some countries used to name it the Wuhan virus but due to the threat, pressure and bullying of China, even the media of the developed and democratic countries shamelessly stopped calling spade a spade. 


So much so, the WHO has proved to be the servile stooge of the Chinese government and has obviously failed to show the requisite courage to ask to enquire about the genesis and the spread of the damning virus leading to the pandemic. It is a well-known fact that China even did not allow entering the WHO’s team of doctors for good 15 days in the virological institute of Wuhan but there was hardly any outrage in the media.


IFWJ has further said that it is highly disturbing that instead of 'naming and shaming China', the original culprit, the media is calling it the Indian mutant, which is a victim country. The media will do a great service to humanity by emphasising upon the WHO and other countries of the world to thoroughly enquire into the role of the Wuhan Virological Institute for leaking the virus, which has actually proved to be the enemy of humanity.


The IFWJ has also asked the Government of India and other regulatory bodies like the Press Council of India to ensure that Indian media is not carried away by the nasty and sinister campaign of the foreign media, which has been perpetually hostile to India. 


Shri Bhagwan Bhardwaj

Office Secretary: IFWJ

मजीठिया: अखबारों के डीटीपी ऑपरेटरों के लिए खुशी की खबर...



अदालत ने दिया 'श्री अम्बिका प्रिंटर्स' के डीटीपी ऑपरेटरों को भी मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ देने का आदेश 


कंपनी ने दावा किया था कि मजीठिया वेज बोर्ड में नहीं आते डीटीपी ऑपरेटर


सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट उमेश शर्मा की मेहनत फिर रंग लाई


जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड मामले में महाराष्ट्र से एक बड़ी खबर आ रही है। यहां महाराष्ट्र के दूसरे सबसे बड़े समाचार पत्र समूह 'श्री अम्बिका प्रिंटर्स एंड पब्लिकेशंस' के तीन डीटीपी ऑपरेटरों ने जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में मुम्बई के लेबर कोर्ट से शानदार जीत हासिल की है। ये डीटीपी ऑपरेटर हैं- हरीश पुजारी, भारती उमेश कोटियन और दामोदर पुजारी। ये तीनों डीटीपी ऑपरेटर 'श्री अम्बिका प्रिंटर्स एंड पब्लिकेशंस' के कन्नड़ दैनिक 'कर्नाटक मल्ला' में कार्यरत हैं, जिन्होंने देश भर के समाचार पत्रों में कई साल से उपेक्षित डीटीपी ऑपरेटरों के सामने एक नजीर पेश कर दी है। 


असल में मजीठिया वेजबोर्ड के रिकमेंडेशन में डीटीपी ऑपरेटर के पोस्ट का स्पष्ट उल्लेख नहीं था, जिसके कारण कंपनी इन्हें मजीठिया वेजबोर्ड की सुविधाएं नहीं दे रहीं थीं। इन तीनों डीटीपी ऑपरेटरों के पास नियुक्ति पत्र तक नहीं था और इनकी सैलरी स्लिप से इनका पोस्ट भी कई सालों से हटा लिया गया था। फिर भी, इन्होंने हिम्मत दिखाई और अपनी लड़ाई लड़ी। इन तीनों डीटीपी ऑपरेटरों ने महाराष्ट्र के मजीठिया क्रांतिकारी और 'श्री अंबिका प्रिंटर्स एंड पब्लिकेशंस' में ही कार्यरत शशिकांत सिंह से संपर्क किया। इसके बाद शशिकांत सिंह ने इनके मामले का पूरा स्टडी किया और सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने एडवोकेट उमेश शर्मा को पूरे मामले की जानकारी दी, तत्पश्चात् केस का गंभीरता से अध्ययन खुद उमेश शर्मा ने किया और पाया कि मजीठिया वेजबोर्ड के रिकमेंडेशन में भले डीटीपी ऑपरेटरों का पोस्ट गायब है, लेकिन पहले के कई रिकमेंडेशन में ये या इसके समानांतर पोस्ट रहे हैं और कार्य की प्रक्रिया भी समान है।


इसके बाद शशिकांत सिंह ने उमेश शर्मा के मार्गदर्शन में आरटीआई का सहारा लिया। उमेश शर्मा ने इन तीनों डीटीपी ऑपरेटरों से वर्ष 2016 में ही कह दिया था कि आप लोग केस लगाइए... आपकी जीत तय है। उमेश शर्मा ने इस मामले की सुनवाई के दौरान खुद दिल्ली से आ कर मुंबई स्थित लेबर कोर्ट में उपस्थित होकर अदालत से लिखित रूप से निवेदन किया कि इन कर्मचारियों के डॉक्युमेंट्स को अदालत में जमा कराया जाए। अदालत ने उमेश शर्मा के इस आवेदन को स्वीकार कर लिया और कंपनी को निर्देश दिया कि इन कर्मचारियों के डॉक्युमेंट्स अदालत में जमा किए जाएं। आखिर कंपनी ने कर्मचारियों के डॉक्युमेंट्स अदालत में जमा कराए और कहा कि डीटीपी ऑपरेटर पोस्ट को लेकर मजीठिया वेजबोर्ड में कहीं उल्लेख नहीं है। फिर भी, कंपनी द्वारा जमा कराए गए डॉक्युमेंट्स और आरटीआई से इन कर्मचारियों को बहुत मदद मिली... उमेश शर्मा ने अदालत में जमकर बहस भी की। इस दौरान कंपनी ने कोर्ट में अपने वकील और उनकी टीम को भेजा तो उमेश शर्मा ने अदालत को इन डीटीपी ऑपरेटरों के कार्य के बारे में विस्तार से बताया।


मुम्बई के बांद्रा स्थित चतुर्थ लेबर कोर्ट के विद्वान न्यायाधीश एफ. एम. पठान ने उमेश शर्मा के तर्क और साक्ष्य को सही माना और तीनों डीटीपी ऑपरेटरों को मजीठिया वेजबोर्ड के रिकमेंडेशन का हिस्सा माना और इन कर्मचारियों को मजीठिया वेजबोर्ड में कंपनी को ग्रुप 5 में मानते हुए उसी अनुसार एरियर देने और वेतन वृद्धि करने का आदेश दिया, जबकि कंपनी इन कर्मचारियों को सातवें ग्रेड से वेतन दे रही थी। अब इन डीटीपी ऑपरेटरों के लिए कंपनी को 5वें ग्रेड के हिसाब से लाखों रुपये देने होंगे, साथ ही इनका मासिक वेतन भी 50 हजार के करीब करना होगा। माननीय न्यायाधीश ने इन सभी कर्मचारियों में जिनकी सेवा 10 साल हो गई है, उन्हें एक प्रमोशन तो बीस साल होने पर दो प्रमोशन और तीस साल की सेवा पूरी होने पर तीन प्रमोशन देने का भी आदेश दिया। इस आदेश के बाद इन तीनों डीटीपी ऑपरेटरों को दो-दो प्रमोशन एक साथ मिलेगा। इसी के साथ प्रत्येक 2 साल पर इन कर्मचारियों को नियमानुसार, एलटीए देने का भी अदालत ने आदेश दिया। साथ ही कर्मचारियों को नाइट शिफ्ट, पांचवें ग्रेड के हिसाब से हाउस रेंट, ट्रांसपोर्ट एलाउंस देने और अन्य भत्ते देने का भी आदेश अदालत ने दिया है।


इसके साथ ही इन सभी कर्मचारियों ने दावा किया था कि 'श्री अम्बिका प्रिंटर्स एंड पब्लिकेशंस' द्वारा हमें आज तक नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया है, जिस पर कंपनी ने कर्मचारियों के इस दावे को गलत बताते हुए कहा था कि कर्मचारियों का यह दावा बिल्कुल हास्यास्पद है कि उन्हें नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया है ! माननीय न्यायाधीश ने कर्मचारियों के दावे को सही माना और कंपनी को लिखित रूप से आदेश दिया कि इन कर्मचारियों को नियुक्ति पत्र भी दिया जाए। इन कर्मचारियों ने बताया कि 'श्री अम्बिका प्रिंटर्स एंड पब्लिकेशंस' हम लोगों को जो सैलरी स्लिप देती है, उस पर हमारे पोस्ट लिख कर नहीं देती है। इस पर माननीय अदालत ने अपने आदेश में साफ तौर पर आदेश दिया कि कर्मचारियों के सैलरी स्लिप में उनके पोस्ट भी डाले जाएं। आपको बता दें कि इन कर्मचारियों ने लगभग 5 साल तक मजीठिया अवार्ड की लड़ाई लड़ी। इस मामले की मुम्बई के बांद्रा स्थित 8वें लेबर कोर्ट की विद्वान न्यायाधीश आर. एन. कुलकर्णी के पास लंबे समय तक सुनवाई चली थी, जिसके बाद में इसे चौथे लेबर कोर्ट के न्यायाधीश एम. एफ. पठान के पास भेजा गया था। मुम्बई में एडवोकेट राज यादव इस लड़ाई को उमेश शर्मा के सान्निध्य में लड़ा, जबकि कंपनी की तरफ से एडवोकेट एम. एस. टोपकर और एम. पवित्रा थीं। 


बहरहाल, इन सभी कर्मचारियों ने एडवोकेट उमेश शर्मा का आभार माना और कहा कि उन्होंने जिस तरह हमारी इस लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाया, इसके लिए उनकी जितनी तारीफ की जाए, कम है। इन कर्मचारियों ने जाने-माने एडवोकेट उमेश शर्मा, ला फर्म 'मुल्ला एंड मुल्ला' और उसके वकील श्री एग्नल, एडवोकेट महेश शुक्ला, एडवोकेट राज यादव, जयपुर के सीए ध्रुव गुप्ता सहित मजीठिया क्रांतिकारियों- शशिकांत सिंह, धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ('न्यूजपेपर एंप्लॉयीज यूनियन आफ इंडिया' के जनरल सेक्रेटरी), दिनेश कुमार पाल, ताराचंद्र रॉय, नागेश पुजारी, डॉक्टर अजय मुखर्जी आदि से मिले सुझाव और सहयोग के लिए भी उनका धन्यवाद दिया है।


धर्मेन्द्र प्रताप सिंह

जनरल सेक्रेटरी

न्यूजपेपर एम्प्लॉयीज यूनियन ऑफ इंडिया

मोबाइल: 9920371264

Wednesday 12 May 2021

MAJITHIA: DA point Nov 2011 to June 2021

 

DA = DA point/167


Nov 2011 to Dec 2011 - 
17 point

 

Jan 2012 to June 2012 - 25 point

 

July 2012 to Dec 2012 - 33 point

 

Jan 2013 to June 2013 - 42 point

 

July 2013 to Dec 2013 - 54 point

 

Jan 2014 to June 2014 - 65 point

 

July 2014 to Dec 2014 - 73 point

 

Jan 2015 to June 2015 - 80 point

 

July 2015 to Dec 2015 - 87 point

 

Jan 2016 to June 2016 - 94 point

 

July 2016 to Dec 2016 – 102 point

 

Jan 2017 to June 2017 - 107 point

 

July 2017 to Dec 2017 – 110 point

 

Jan 2018 to June 2018 - 114 point

 

July 2018 to Dec 2018 – 120 point

 

Jan 2019 to June 2019 – 128 point

 

July 2019 to Dec 2019 –  139 point

 

Jan 2020 to June 2020 – 150 point



July 2020 to Dec 2020 –  160 point

 

Jan 2021 to June 2021 – 168 point




Calculation of DA…

DA = Basic Pay + Variable Pay x DA point/167

 

For other help contact...

 

Vinod Kohli ji  – 09815551892

President, Chandigarh-Punjab Union of Journalists (CPUJ)

Indian Journalists Union

kohlichd@gmail.com

 

Ashok Arora ji (Chandigarh) - 09417006028, 09914342345

Indian Journalists Union

arora_1957@yahoo.co.in

 

Ravinder Aggarwal ji (HP) - 9816103265

ravi76agg@gmail.com

 

(patrakarkiawaaz@gmail.com)

 

 

#MajithiaWageBoardsSalary, MajithiaWageBoardsSalary, Majithia Wage Boards Salary


हमें क्यों चाहिए मजीठिया: जानिए नवंबर 2011 से जून 2021 तक का डीए

साथियोंइस बार जनवरी 2021 से लेकर जून 2021 तक का डीए 168 प्‍वाइंट है। जो साथी एरियर की रिकवरी का दावा पेश करने की तैयारी कर रहे हैं उनकी मदद के लिए हम नवंबर 2011 से जून 2021 तक का डीए बता रहे हैं।


इसके अलावा जिन साथियों ने डीएलसी में दावा पेश किया था और अभी भी उसी कंपनी में कार्यरत हैं और उनके केस लेबर कोर्ट रेफर हो गए हैं ये उनके लिए आज तक की रिकवरी को अपडेट करने के लिए भी काम आएगा।

उदाहरण- रवि ने जनवरी 2019 में डीएलसी में रिकवरी लगाई थी। उसने मजीठिया के अनुसार अं‍तरिम राहत समेत दिसंबर 2018 तक क्‍लेम लगाया था। डीएलसी ने अक्‍टूबर 2019 में उसके केस को लेबर कोर्ट रेफर किया। रवि अभी भी उसी कंपनी में कार्यरत है इसलिए उसने नवंबर 2019 में रेफरेंस के आधार पर लेबर कोर्ट में केस दायर करने से पहले अपने दावे में 23 महीने यानि जनवरी 2019 से अक्‍टूबर 2019 तक का मजीठिया के अनुसार वेतन के अंतर को एरियर राशि में भी जोड़ा है।

(नोट- कुछ साथियों को लगता है कि एक बार आपने जो डीएलसी में क्‍लेम लगा दिया तो उसमें आप सुधार नहीं कर सकते। यह धारणा बिल्‍कुल गलत है। आप इसमें कभी भी सुधार कर सकते हैं और इसके लिए क्‍या करना होता है आपका वकील अच्‍छी तरह से जानता है।)


यह डीए सभी ग्रेडों के समाचार-पत्रोंमैग्‍जीनों और न्‍यूज एजेंसियों में किसी भी शहर में कार्यरत सभी कर्मचारियों पर एक समान ही लागू होगा और यह हर छह महीने बाद (जनवरी से जून और जुलाई से दिसंबर) बदल जाता है।


मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के अनुसार इसका सही बेस प्‍वाइंट 167 है। आप कतई भी 185 या 189 के आधार पर इसकी गणना न करेंयह आपके लिए नुकसानदायक होगा।


(देखें मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिश का पेज नंबर अंग्रेजी में 20 और हिंदी में 18)



DA = DA point/167
नवंबर 2011 से दिसंबर 2011 - 17 point

जनवरी 2012 से जून 2012 - 25 point

जुलाई 2012 से दिसंबर 2012 - 33 point

जनवरी 2013 से जून 2013 - 42 point

जुलाई 2013 से दिसंबर 2013 - 54 point

जनवरी 2014 से जून 2014 - 65 point

जुलाई 2014 से दिसंबर 2014 - 73 point

जनवरी 2015 से जून 2015 - 80 point

जुलाई 2015 से दिसंबर 2015 - 87 point

जनवरी 2016 से जून 2016 - 94 point

जुलाई 2016 से दिसंबर 2016 - 102 point

जनवरी 2017 से जून 2017 - 107 point

जुलाई 2017 से दिसंबर 2017 - 110 point

जनवरी 2018 से जून 2018 - 114 point

जुलाई 2018 से दिसंबर 2018 - 120 point

जनवरी 2019 से जून 2019 - 128 point

जुलाई 2019 से दिसंबर 2019 - 139 point
जनवरी 2020 से जून 2020 - 150 point

जुलाई 2020 से दिसंबर 2020 - 160 point
जनवरी 2021 से जून 2021 - 168 point


डीए की गणना इस तरह होगी-

DA = Basic Pay + Variable Pay x DA point/167
नोट- आप अपना एरियर किसी एकाउंटेंट से भी बनवा सकते हैं। एरियर का क्‍लेम करते हुए एरियर चार्ट पर किसी भी सीए की मोहर की जरुरत नहीं होती। बस इतना ध्‍यान रखें जो आपका एरियर बना रहा है वह मजीठिया की सिफारिशों को ढंग से समझ लें। नहीं तो आपकी गणना में कोई भी गलती आपकी एरियर राशि में मोटा नुकसान पहुंचा सकती है। इसके लिए आप समाचार पत्रों से रिटायर्ड एकाउंटेंटों की मदद भी ले सकते हैं। या आप अपने यहां की पत्रकारों की यूनियनों से मदद ले सकते हैं।

  

मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशें अंग्रेजी में डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न Path का प्रयोग करें-   https://goo.gl/vtzDMO


मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशें हिंदी (सभी पेज) में डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न Path का प्रयोग करें-https://goo.gl/8fOiVD


श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम 1955 (हिंदी-अंग्रेजीमें डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न Path का प्रयोग करें-https://goo.gl/wdKXsB

पढ़े- हमें क्यों चाहिए मजीठिया भाग-10: (ग्रेड  और बी’) खुद निकालेंअपना एरियर और नया वेतनमान http://goo.gl/wWczMH







यदि इसके बाद भी आपको कोई दिक्‍कत आ रही हो तो आप बेहिचक इनसे संपर्क कर सकते हैं।


Vinod Kohli ji  – 09815551892
President, Chandigarh-Punjab Union of Journalists (CPUJ)
Indian Journalists Union


Ashok Arora ji (Chandigarh) - 09417006028, 09914342345
Indian Journalists Union
arora_1957@yahoo.co.in


Ravinder Aggarwal ji (HP) - 9816103265
ravi76agg@gmail.com



यदि हमसे कहीं तथ्यों या गणना में गलती रह गई हो तो सूचित अवश्य करें। (patrakarkiawaaz@gmail.com)



#MajithiaWageBoardsSalary, MajithiaWageBoardsSalary, Majithia Wage Boards Salary