Monday 30 October 2023

IFWJ Celebrates 74th Foundation Day

New Delhi, 30 October . Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) celebrated its 74th foundation day today across the country and resolved to fight to protect and save the Working Journalist Act of 1955. However, the government is bent on abolishing this act by merging it into the proposed four labour codes. The irony is that instead of putting the Working Journalist Act in any particular code it has been scattered into all four wage codes namely, Code on Wages, Industrial Relations Code, Social Security Code, and Occupational Safety, Health and Working Conditions Code, If the Working Journalist Act is scrapped then there will be no wage boards and privileges available to the fourth estate. 

IFWJ demanded that instead of abrogating the Working Journalist Act, its ambit and scope should be expanded to include all the genres of media including electronic, web, print and digital. At present, only journalists belonging to print media fall under the Working Journalist Act.

Among those who spoke in the meeting were IFWJ Secretary General Parmanand Pandey, its legal cell convenor Mohan Babu Aggarwal, DUWJ President Alkshendra Singh Negi, leader of the Dainik Jagran Employee Union Vivek Tyagi, and the Chief Correspondent of Virat Swaroop Vijay Verma and well-known journalist Geeta Rawat. The main function was held at the Sports Club of India in New Delhi. It was also resolved to restart the publication of the ‘ Working Journalist’.

मुंबई के हिंदी भाषी पाठकों का दुर्भाग्य

 लांचिंग के दिन से ही विवादों में दैनिक भास्कर

5 साल पहले राजस्थान का मशहूर अखबार ”राजस्थान पत्रिका” मुंबई में कब लॉन्च हुआ और कब बंद हो गया किसी को पता ही नहीं चला। इस अखबार की गुपचुप विदाई के बाद जब काफी जोर-शोर से मायानगरी मुंबई में "दैनिक भास्कर" लांच किया गया तो हिंदी भाषी पाठकों के मन में दिलचस्पी बनी थी कि यह अखबार कुछ नया करेगा और उस गैप को भरने की कोशिश करेगा जिसे अब तक दो प्रमुख अखबार ”नवभारत टाइम्स” और ”नवभारत” नहीं भर पाए हैं। पर हिंदी न्यूज वर्ल्ड की विडंबना देखिए कि इस अखबार की लांचिंग के दिन से ही यह विवादों में रहा है और नाम कमाने से पहले ही बदनाम हो रहा है। जिस दिन दैनिक भास्कर की लांचिंग हुई उसी दिन इस अखबार के इंफ्रा और रेलवे कवर करने वाले रिपोर्टर की रेल टिकट दलाली के मामले में गिरफ्तारी हो गई। उसके कुछ दिन ही बाद इस अखबार के क्राइम रिपोर्टर को पुलिस स्टेशन के चक्कर लगाने पड़े, जब उसने अपनी पत्रकारिता का धौंस दिखाते हुए ट्रैफिक हवलदार के साथ गाली गलौज कर दी। हालांकि इस क्राइम रिपोर्टर को बाद में एडिटर से मतभेदों के चलते नौकरी छोड़ देने के लिए बोला गया, जबकि इंफ्रा और रेलवे कर करने वाला रिपोर्टर आज भी जमानत पर है। अबकी बार इस अखबार की बदनामी में नया चैप्टर जोड़ा है, खुद इसके स्थानीय संपादक ने, जो फिलहाल बड़े-बड़े स्पॉन्सरों के बलबूते पिछले एक पखवाड़े से पूरे यूरोप की यात्रा कर रहे हैं। मुंबई में आम पत्रकारों में यह सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है कि आखिर इन लोगों की नैतिकता कहां गई है जो नेताओं और दलालों के स्पॉन्सरशिप पर विदेश की सैर कर रहे हैं। खासकर दैनिक भास्कर के स्थानीय संपादक की बात तो और भी गंभीर हो जाती है।  मीडिया जगत में विदेश सैर की टाइमिंग पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि फिलहाल तो संपादक महोदय को अपनी टीम को नए-नए अखबार की लांचिंग में पूरा तन मन झोंक देना चाहिए। सप्ताहिक अवकाश भी नहीं लेना चाहिए। पर वे साहब तो रोज फेसबुक पर कभी स्पेन कभी नीदरलैंड के समुद्र तटों पर फोटो खींच कर अपनी तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं।यूरोप की सैर करने वाले पत्रकारों की इसी टोली में नवभारत टाइम्स के भी पत्रकार हैं जिन्होंने कुछ दिन पहले ही अभी फ्लैट खरीदा है और वह ईएमआई अदा कर रहे हैं। कुछ तो यह भी कह रहे हैं कि यह "नवभारत टाइम्स" और "नवभारत" अखबार के मालिकों का षड्यंत्र है कि "दैनिक भास्कर" जैसे नए नवेले समाचार पत्र को मुंबई में सेटल होने का मौका ही न दिया जाए और उनके रिपोर्टर और संपादकों को उलझाए रखा जाए। "दैनिक भास्कर" मुंबई के लिए एक बड़ी चुनौती यह भी बन रही है कि "नवभारत टाइम्स" से लाए गए एक्जीक्यूटिव एडिटर की रिपोर्टिंग टीम पर कोई पकड़ नहीं हैं। उन्होंने हमेशा से डेस्क पर काम किया है और उनका शांत सौम्य व्यक्तित्व उनके आड़े आ रहा है। इसके अलावा, दैनिक भास्कर की पूरी टीम में एक भी ऐसा पत्रकार नहीं है, जिसे अगर किसी अंग्रेजी बोलने वाले के सामने खड़ा कर दिया जाए तो वे इसकी एक लाइन भी रिपोर्टिंग नहीं कर पाएंगे। 

दूसरे संपादक भी कम नहीं

यह मुंबई के अखबार जगत का दुर्भाग्य है कि किसी भी अखबार को ढंग का संपादक नहीं मिला। नवभारत टाइम्स के संपादक की बात करें तो उनका बैकग्राउंड मिलिट्री का रहा है और उन्हें पत्रकारिता की एबीसीडी भी नहीं मालूम। जब से भास्कर लांच हुआ है तब से उन्होंने जिम जाकर अपने डोले शोले को फेसबुक पर अपलोड करने का अभियान तेज कर लिया है। जबसे मिलिट्री मैन के हाथ में एनबीटी की कमान आई है, तब से इस ब्रांड को काफी धक्का लगा है। अब इसकी गिरती साख को बचाने के लिए दूसरे सीनियर पत्रकार को लाया गया है, पर मुंबई और महाराष्ट्र के बारे में उनकी नासमझी समूचे ब्रांड पर भारी पड़ रही है। अब नवभारत की भी कर लें। इस अखबार के संपादक की कला पर किताब लिखी जाए तो भी कम पड़ जाए। पैसे के पीछे भागने वाले और सेटिंग करने में महारत हासिल कर चुके इस सज्जन को रिटायरमेंट के बाद भी नागपुर वाले धनकुबेर मालिकों ने सेवा विस्तार दिया। मीडिया सर्कल में उन्हें न जाने कितने नामों से पुकारा जाता है, जिसमें एक नाम कालीचरण है। उनके रिटायरमेंट की राह तक रहे नवभारत के उस पत्रकार को गहरा धक्का लगा है जो नवभारत टाइम्स और पीटीआई जैसे संस्थानों में काम कर चुका है और संपादक बनने राह तक रहा है। कुल जमा कहें तो मुंबई में हिंदी प्रिंट मीडिया की दुर्गति पहले भी थी और आज भी है और कल भी रहने वाली है। अगर इनके मालिक समय पर चेत जाते हैं तो शायद बात बन जाए।

(वरिष्ठ पत्रकार की कलम से)

Sunday 1 October 2023

Unvarnished Lies of Dainik Jagran in the Supreme Court

 

The Majithia Wage Board was set up in 2008 and finally submitted its report to the Government of India in 2010. The Government notified it for implementation in November 2011. But instead of implementing it the owners of newspapers and news agencies approached the Supreme Court for repealing the Working Journalist Act which envisages the constitution of the Wage Boards by the Central government from time to time. However, the owners got a crushing defeat in the Supreme Court, but they adopted another route to deny the recommended wages to the employees. The irony is that governments have been active partners in their nefarious designs.

There is a section 20 J in the Majithia Wage Board which says that employees can opt out of the Wage Board scales if the existing pay scales are more favourable to them. Taking advantage of this section, the employers forced the employees to opt for the 20 J. Those who refused to fall in line were punished in different ways. This is not only the height of illegality but also of unscrupulousness and unethical behaviour of the newspaper owners. The newspapers and their editors who do not tire of delivering homilies on maintaining good behaviour in the public and private committed the crime of forcing the employees to sign on their prepared proforma of accepting the 20 J provision. Unfortunately, this tactic was adopted by the so-called big newspapers like Dainik Jagran and Dainik Bhaskar among others.  The governments should have taken note of this notorious practice of the newspaper tycoons, but they left the newspaper employees to fend for themselves. 

The sad part of it is that employees across the country irrespective of any newspaper are deprived of their due wages and arrears. They are running from pillar to post but to no avail. Many newspaper employees have been thrown out of their jobs. Some of them were transferred to insignificant places. Their only fault has been that they demanded the Majithia Wage Board. Pretty good numbers have been contesting their cases in the labour courts. Even the cases decided by the high courts are being appealed in the Supreme Court.

The other day, Dainik Jagran Management fielded top-notch advocates like Mukul Rohatgi and Niraj Kishan Kaul in the Supreme to get its SLP admitted on the ground that they have been paying more than what the Wage Board has recommended. The Hon’ble judges asked them to give the chart of both baskets-one which is being spent and the other what the Wage Board has recommended. The moot question of why the Management is not giving more wages than what has been recommended by the Wage Board is because employees do not want more than the Wage Board suggested pay scales and allowances. Look at the brazenness of Dainik Jagran Management which does not want to pay as per the wage board. If it wants to pay more than the Wage Board has recommended, then why is it contesting the workers' claim from the lower court to the Supreme Court? This speaks of the blatant lie of the Management, and therefore, it must be slapped with a heavy cost for wasting precious judicial time in different courts.

Last but not least, what message these top-notch advocates are sending to the people? They are telling unvarnished lies in the courts for hefty amounts of fees.

Adv. Parmanand Pandey 
(AOR, Supreme Court and General Secretary IFWJ).

Friday 29 September 2023

मजीठिया पर बड़ी खबर: अवमानना व कुर्की के डर से पत्रिका ने जूही गुप्ता को सौंपा चेक

 

जूही गुप्ता का मामला

- चार दिन पहले तक प्रबंधन जूही गुप्ता को डराने के लिए कह रहा था की तुम्हें किसी कीमत पर नहीं मिलेगा पैसा

- लेबर कोर्ट नही गया था मामला,17-1 में सुनवाई के बाद DLC ने जारी की थी RRC

- DLC ने WJA के Sec 13 का दिया था हवाला

- HC में मजीठिया मामलों में बनी थी दो सदस्यीय विशेष खंडपीठ

- माननीय सुजॉय पॉल की इस खंडपीठ ने RRC को माना था सही

- SC में भी हारी थी राजस्थान पत्रिका

- RRC की वसूली मामले में 6 Oct को थी HC में सुनवाई

- जूही गुप्ता के पेश 6,11,298 रुपये के दावे को DLC ने माना था सही

- जूही असिस्टेंस एचआर के पद पर थी तैनात

- यह खबर उन लोगों के मुँह पर करारा तमाचा है जो कहते हैं कि अखबार मालिकों से आप अपने हक की एक दमड़ी भी नहीं ले सकते हैं

- इस चेक ने साबित कर दिया की जो लड़ेगा वो अपना हक लेकर रहेगा

- ये खबर उन साथियों के लिए भी सबक हैं, जो थक कर केस को बीच मे छोड़ कर बैठ गए हैं


.........राजस्थान से हमारे एक वरिष्ठ पत्रकार साथी की कलम से 

सत्य के लिए युद्ध FIGHT FOR RIGHT  में हमें आठ साल में पहली निर्णायक विजय प्राप्त हुई  है । इस जीत के लिए मध्य प्रदेश के वरिष्ठ साथी विजय शर्मा और जितेंद्र जाट को साधुवाद। 

दरअसल तीन साल  पहले मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने हमारी भोपाल की साथी जूही गुप्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए पत्रिका को मजीठिया का बकाया भुगतान करने का आदेश दिया था। पत्रिका ने इसकी पालना करने की जगह, आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। वहां भी पत्रिका को करारी  हार का सामना करना पड़ा। 

सुप्रीम कोर्ट में हारने के बावजूद पत्रिका ने भुगतान नहीं किया तो विजय शर्मा के सहयोग से जूही ने एक बार फिर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उच्च न्यायालय से नोटिस जारी होने के बाद श्रम अधिकारी ने पत्रिका प्रबन्धन को भुगतान करने के लिए कहा, इस पर पत्रिका ने जवाब दिया कि बकाया भुगतान राशि का चेक हमने जबलपुर भेज दिया है जो 6 अक्टूबर को कोर्ट में पेश कर दिया जाएगा। 

पत्रिका के इस जवाब पर श्रम अधिकारी ने कहा कि ठीक है मैं पत्रिका का बैंक अकाउंट फ्रीज करने का और कुर्की का आदेश आज ही जारी कर देता हूँ,  श्रम अधिकारी के ये तेवर देखकर पत्रिका प्रबन्धन घबरा गया और बुरी तरह फंसने के बाद पत्रिका के वरिष्ठ प्रबंधक गोपाल शर्मा ने कल तहसीलदार कार्यालय में जाकर जूही को बकाया राशि के भुगतान के रूप में चेक सौंपा।


इस केस से जुड़ी खबर यहाँ पढ़े....

मजीठियाः 20जे व तकनीकी मुद्दों पर क्रांतिकारियों की सुप्रीम जीत, देशभर की अदालतों में होगा मान्य, डाउनलोड करें सभी आर्डर

http://patrakarkiawaaz.blogspot.com/2021/02/20_25.html?m=1




Tuesday 29 August 2023

मजीठियाः अब रिव्यू में हारा जागरण, 20जे की ढाल काम ना आई, कैटेगरी पर दिखाया आईना, लगाया जुर्माना


साथियों, इलाहाबाद हाईकोर्ट से आज एक बड़ी खबर आई है। रिकवरी के मामले में सिंगल बेंच और डबल बेंच में हारने के बाद दैनिक जागरण ने सिंगल बेंच के ऑर्डर के खिलाफ रिव्यू पेटिशन डाली थी। जिसे माननीय अदालत ने मैरिट के आधार पर खारिज करके जागरण को बड़ा झटका दिया है। अदालत ने 20 जे को ढाल बनाने वाली कंपनियों पर टिप्पणी की और साथ ही कैटेगरी के मुद्दे पर एक कदम और आगे जाते हुए रिक्वासिफिकेशन पर भी स्थिति साफ कर दी। 20जे और कंपनी की कैटेगरी/क्वासिफिकेशन में यह आदेश अन्य साथियों के लिए भी काफी काम का है। आज के रिव्यू और इससे पहले का आदेश सभी साथियों को अपने वकीलों को उपलब्ध करवा देना चाहिए। 

जागरण प्रकाशन लिमिटेड बनाम अमर कुमार सिंह के दोनों केस नंबर ये हैं....

WRIT - C No. - 10419 of 2023

SPECIAL APPEAL No. - 396 of 2023

CIVIL MISC REVIEW APPLICATION ( CMRA ) - [ 351/2023 ]

अदालत ने आज के फैसले में 20जे पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि जागरण की बात मान ली गई तो एक्ट ही अप्रभावी हो जाएगा। अदालत ने साथ ही वेजबोर्ड को लागू करने से बचने और समझौते की आड़ में इसकी सिफारिशों से कम वेतन देने पर कंपनियों की निंदा भी की और कहा कि कैसे सालों से वे समझौते की ढाल की आड़ में वेजबोर्ड की सिफारिशों से कम वेतन देते हैं। 

अदालत ने कंपनी की कैटेगरी यानि वर्गीकरण पर विस्तार से लिखा है। साथ ही ये भी कहा है कि जागरण ने लेबर कोर्ट में इस बारे में कोई तथ्य पेश नहीं किए। मालूम हो कि कर्मचारियों ने लेबर कोर्ट में सुनवाई के दौरान जागरण प्रबंधन से कई दस्तावेजों की मांग की थी। जिसको जागरण प्रबंधन ने नहीं दिया था। अदालत ने भी पार्ट ऑर्डर में इन दस्तावेजों को फैसले के लिए जरूरी मानते हुए इन्हें जागरण प्रबंधन से तलब किया था। तब भी जागरण प्रबंधन दस्तावेजों को लेबर अदालत के समक्ष पेश नहीं किया था। जिसके बाद लेबर कोर्ट ने दूसरे व अंतिम पार्ट ऑर्डर में कंपनी द्वारा मांगे ना जाने पर दस्तावेज पेश ना किए जाने की बात का भी उल्लेख किया था।

माननीय अदालत ने कहा कि मैरिट के आधार पर ये याचिका खारिज करने योग्य है और दावा याचिका दायर करने वाले प्रत्येक कर्मचारी को 10 हजार रुपये की कास्ट देने के साथ इस आवेदन को खारिज किया जाता है। अपने दावे के लिए न्यायिक प्राधिकारी के पास पहुंचे कर्मचारियों को अॅवार्ड की राशि के साथ इन 10 हजार रुपये की भी वसूली करेगा भुगतान करेगा।

अदालत ने साथ ही किशन लाल मामले में लगी रिव्यू पेटिशन को भी खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि दोनों याचिकाओं में उठाए गए मुद्दे एक समान थे, इसलिए इस याचिका को देखने का कोई कारण नहीं दिखता। इन टिप्पणियों के साथ अदालत ने दोनों रिव्यू पेटिशन खारिज कर दी।

इससे पहले माननीय अदालत ने 25 हजार की कास्ट के साथ जागरण की याचिका को खारिज कर दिया था। जिसके बाद प्रबंधन ने इसके खिलाफ डबल बैंच में गया था, जहां याचिका को सुनवाई योग्य ना मानते हुए खारिज कर दिया था। जिसके बाद प्रबंधन ने रिव्यू याचिका दायर की थी।


Monday 14 August 2023

मजीठिया मामले में " हिंदुस्तान" अखबार को अब बिहार में झटका, देने होंगे 23 लाख

 


- जून 2020 से भुगतान की तारीख तक लगेगा आठ परसेंट ब्याज भी

- मजीठिया मामले में लेबर कोर्ट मुजफ्फरपुर का फैसला, संजीव को मिली सफलता

मजीठिया वेज बोर्ड अवार्ड मामले में अब हिंदुस्तान अखबार को बिहार में झटका लगा है। 03 जुलाई 2023 को लेबर कोर्ट मुजफ्फरपुर ने प्रबंधन को नॉन वर्किंग जर्नलिस्ट संजीव कुमार को दो महीने के भीतर बकाए एरियर के रूप में 22.65 लाख रुपए देने का आदेश दिया है। उसे एक जून 2020 से पेमेंट की तारीख तक 8 पर्सेंट ब्याज भी देना पड़ेगा। मजीठिया वेज बोर्ड के मामले में यह बिहार से दूसरा अवार्ड है। पहला अवार्ड भी लेबर कोर्ट मुजफ्फरपुर में ही तीन वर्ष पहले घोषित हुआ था।

संजीव कुमार हिंदुस्तान अखबार के सर्कुलेशन विभाग में असिस्टेंट मैनेजर के रूप में काम करते थे। कंपनी ने उनके पदनाम के आधार पर उन्हें मैनेजमेंट का हिस्सा बताने की कोशिश की, पर कोर्ट ने उसकी इस दलील को अस्वीकार कर दिया। माना कि मजीठिया वेज बोर्ड अवार्ड में पद का नाम नहीं, कार्य के स्वरूप के आधार पर पद का निर्धारण होता है। यह अवार्ड इस रूप में भी महत्वपूर्ण है कि कोर्ट ने स्वीकार किया है कि एक ही मैनेजमेंट के अंतर्गत आने वाली सभी सब्सिडियरी कंपनी एक यूनिट होती है। संजीव कुमार की ओर से अदालत में उनका पक्ष अधिवक्ता वी. के. ठाकुर ने रखा। श्री कुमार के अनुसार अधिवक्ता सूजॉय कुमार सिन्हा ने भी अदालती कार्रवाई के दौरान उनकी काफ़ी मदद की।

शशिकान्त सिंह

पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी तथा आरटीआई कार्यकर्ता

9322411335

Saturday 5 August 2023

प्रेस क्लब ने दी वरिष्ठ पत्रकार टिल्लन रिछारिया को भावभीनी श्रद्धांजलि


नई दिल्ली, 5 अगस्त। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में आज वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक टिल्लन रिछारिया के आसमायिक निधन पर शोक व्यक्त किया गया। प्रेस क्लब में आयोजित शोक सभा में देश के जाने-माने पत्रकारों और लेखकों ने उन्हें अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। सभा में स्वर्गीय रिछारिया की धर्मपत्नी पुष्पा और उनके इकलौते पुत्र रवि भी मौजूद थे।

25 मार्च 1952 को जन्मे शिव शंभू दयाल रिछारिया उर्फ टिल्लन रिछारिया का निधन पिछले महीने 28 जुलाई को रतलाम में एक कार्यक्रम के दौरान हृदयगति रूक जाने से हुआ था। मूलतः चित्रकूट निवासी टिल्लन रिछारिया ने धर्मयुग, महान एशिया, ज्ञानयुग प्रभात, करंट, बोरीबंदर, हिंदी एक्सप्रेस, वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, हरिभूमि, कुबेर टाइम्स आदि में काम किया था। टिल्लन रिछारिया हिन्दी पत्रकारिता में उन चुनिंदा पत्रकारों में से एक रहे जिन्होंने संभवतः सर्वाधि‍क अखबारों और मैग्जीनों में काम किया। 

श्रद्धांजलि सभा में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा, नेशनल यूनियन जर्नलिस्ट के अध्यक्ष राकेश थपलियाल, लोकेश शर्मा, सुनील श्रीवास्तव, विशंभर शुक्ला, गणेश गुप्ता, मुकुंद, सीमा, किरण, अलका सक्सेना, हरी मोहन मिश्रा, अशोक सूद और विष्णुगुप्त ने विचार व्यक्त किए। सभा में दैनिक भास्कर के वरिष्ठ पत्रकार एएस नेगी, दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार विवेक त्यागी, टोटल टीवी के वरिष्ठ पत्रकार राजेश रतूड़ी भी मौजूद थे। सभा का संचालन वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक एसएस डोगरा ने किया और शांति पाठ ज्ञानेंद्र सिंह ने किया।

Friday 4 August 2023

वरिष्ठ पत्रकार टिल्लन रिछारिया को भावभीनी श्रद्धांजलि आज


नई दिल्ली, 5 अगस्त। वरिष्ठ पत्रकार टिल्लन रिछारिया को आज प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में भावभीनी श्रद्धांजलि दी जाएगी। श्रद्धांजलि सभा का आयोजन शाम 3 बजे होगा। शिव शंभू दयाल रिछारिया उर्फ टिल्लन रिछारिया ने पिछले महीने 28 जुलाई को अंतिम सांस ली थी। उनके निधन से पत्रकार जगत में शोक व्याप्त है।

25 मार्च 1952 में जन्मे टिल्लन रिछारिया ने धर्मयुग, महान एशिया, ज्ञानयुग प्रभात, करंट, बोरीबंदर, हिंदी एक्सप्रेस, वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, हरिभूमि, कुबेर टाइम्स आदि में काम किया था। मूलतः चित्रकूट निवासी टिल्लन रिछारिया हिन्दी पत्रकारिता में उन चुनिंदा पत्रकारों में से एक रहे जिन्होंने संभवतः सर्वाधि‍क अखबारों और मैग्जीनों में काम किया। उनकी किसी भी किस्म की रचनात्मकता में समय, समाज और सभ्यता का स्पष्ट वेग रहा है। टिल्लन रिछारिया हिन्दी पत्रकारिता में टिल्लन रिछारिया कांसेप्ट, प्लानिंग, लेआउट और प्रेजेंटेशन अवधारणा को शुरु करने वालों में से रहे हैं। 

Thursday 3 August 2023

मजीठियाः श्रम न्यायालयों में पीठासीन अधिकारियों के भरे जाएंगे पद


लखनऊ, 3 अगस्त। श्रम न्यायालयों में पीठासीन अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की कमी को शीघ्र दूर किया जाएगा। यह घोषणा श्रम मंत्राी अनिल राजभर ने आज पत्राकारों और गैर पत्राकारों के लिए गठित मजीठिया वेजबोर्ड के निर्णयों को लागू कराने के लिए गठित त्रिपक्षीय समीक्षा समिति की बैठक में की।

यह मामला बनारस से आए काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष और पत्रकारों के प्रतिनिधि योगेश गुप्त पप्पू और यू.पी. वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन के अध्यक्ष हसीब सिद्दीकी ने उठाया। इन दोनों का कहना था कि स्टाफ की कमी के कारण पत्रकारों और गैर पत्रकारों के मुकदमों की सुनवाई नहीं हो पा रही है। राजभर ने आश्वस्त किया कि स्टाफ की कमी शीघ्र दूर की जाएगी। इस संबंध में वह मुख्यमंत्री से भी बात करेंगे। उन्होंने बैठक में लिए गए निर्णयों को लागू कराने और समिति की बैठक हर तीन माह में बुलाने का भी निर्देश दिया।

बनारस से आए पत्रकार नेता योगेश गुप्त पप्पू ने मंत्री का ध्यान अखबारों में कार्यरत पत्रकारों को वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट के अनुरूप पद नाम न देने की तरफ दिलाया। इसका परिणाम यह हुआ है कि वाराणसी के एक वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय रमेन्द्र सिंह की विधवा को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कोविड पीडि़तों के आश्रितों को राज्य सरकार द्वारा दी गई आर्थिक सहायता का लाभ नहीं मिल सका है। यू.पी. वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन द्वारा केस की पैरवी दो वर्षों से कर रही है।

सूचना निदेशक शिशिर ने घोषणा की कि सरकार ने मृतक की विधवा को दस लाख रूपये की आर्थिक सहायता देना स्वीकार कर लिया है। इसके लिए काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष योगेश गुप्त और सिद्दीकी ने सरकार के प्रति आभार व्यक्त किया।

श्रम मंत्री ने कहा कि बैठक में अखबार मालिकों को ऐसे प्रतिनिधियों को भेजना चाहिए जो जवाब देने की स्थिति में हो। उन्होंने इस संबंध में विभागीय अधिकारियों को कदम उठाने के निर्देश दिए।

यू.पी. न्यूज पेपर इम्पलाइज यूनियन के महामंत्री उमाशंकर मिश्र ने सुझाव दिया कि पत्रकारों संबंधी डाटा उपलब्ध कराने में सूचना विभाग अहम भूमिका निभा सकता है। इस सुझाव को श्रम मंत्री ने स्वीकार कर लिया। सूचना निदेशक शिशिर ने निर्देशों का पालन करने और पत्राकारों के हित में विभाग के काम करने का आश्वासन दिया।

बैठक में प्रमुख सचिव श्रम के अलावा विभाग के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भी भाग लिया। पत्रकारों के प्रतिनिधियों के रूप में हसीब सिद्दीकी, योगेश कुमार गुप्त, मुदित माथुर के अलावा विशेष आमंत्रित सदस्य चंद्र किशोर शर्मा ने भी भाग लिया।


Wednesday 2 August 2023

मजीठियाः कर्मचारी यूनियनों को भी शामिल करें त्रिपक्षीय समिति में




नोएडा। लखनऊ में आज सुबह 11 बजे मजीठिया पर त्रिपक्षीय समिति की आज बैठक होने वाली है। बैठक से पहले इंडियन एक्सप्रेस इम्पलाइज यूनियन ने एक पत्र लिखकर समिति से अनुरोध किया है कि जब सभी सेवायोजक समिति के सदस्य हो सकते हैं, तो उन संस्थानों से संबंधित कर्मचारियों की यूनियनें क्यों नहीं। यूनियन के अध्यक्ष एनके पाठक ने समिति से अनुरोध किया है कि उनकी यूनियन को भी समिति का हिस्सा बनाया जाए।

यूनियन ने समिति को लिखे अपने पत्र में कर्मचारियों द्वारा श्रम कार्यालय या अन्य जगहों पर दायर वादों में आ रही समस्याओं का जिक्र किया है। यूनियन ने अपने पत्र में कहा है कि किस तरह से प्रबंधन वादों की कार्यवाही के दौरान निरर्थक विवाद पैदा कर उनमें व्यवधान डाल रहा है। यूनियन ने साथ ही आरोप लगाया है कि कर्मचारियों की न्यायोचित मांगे भी श्रम कार्यालय द्वारा अनदेखी की जा रही है। 

Tuesday 1 August 2023

मीडियाकर्मियों के रिटायर होने की उम्र बढ़ी, सीएस नायडू के जब्बे को सलाम

नई दिल्ली, 2 जुलाई। साथियों, दिल्ली से एक बड़ी खबर आ रही है। यहां पर इंडियन एक्सप्रेस के कर्मचारियों ने सेवानिवृत्ति के मामले में एक बड़ी जीत हासिल की है। आईटीओ स्थित राउज एवेन्यू की लेबर ट्रिब्यूनल ने सेवानिवृत्ति की उम्र मामले में इंडियन एक्सप्रेस वर्कर्स यूनियन, दिल्ली के पक्ष में फैसला दिया है।

लेबर ट्रिब्यूनल के माननीय जज अजय गोयल ने 2009 में दायर इस याचिका में 31 जुलाई 2023 को फैसला देते हुए सेवानिवृत्ति की उम्र 58 की जगह 60 साल करने की यूनियन की मांग को जायज ठहराया।

लेबर ट्रिब्यूनल ने साथ ही साथ ही दो माह के भीतर 15.10.2009 से रिटायर कर्मचारियों को दो साल का वेतन 8 फीसदी ब्याज के साथ देने का भी आदेश दिया है। 

इस याचिका को इंडियन एक्सप्रेस वर्कर्स यूनियन, दिल्ली के तत्कालीन पदाधिकारी और वर्तमान में इंडिया न्यूजपेपर्स इम्पलाइज फेडरेशन सचिव सीएस नायडू ने दायर किया था। वे लगातार इस केस को लेकर सक्रिय रहे और आज उनके प्रयासों की वजह से इंडियन एक्सप्रेस के कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति मामले में एक बड़ी जीत हासिल हुई है। 

Saturday 29 July 2023

पत्रकार साथियों के नाम एक खुली पाती


आज हम सभी को आत्म मंथन की जरूरत है। ऐसा क्या हुआ कि यूनियनें कमजोर से कमजोर होती चली गईं। क्यों नहीं यूनियनों को मजबूत करने पर ध्यान दिया गया। प्रबंधन हर मामले में एकजुट होता रहा और यूनियनें टूटती-बिखरती गईं। तकनीक के विकास के साथ मालिकन ने तालमेल बिठाया, परंतु यूनियनों का ढर्रा बदला नहीं। पुरानी यूनियनें संख्याबल से कर्मचारी हित में लंबी-लंबी लड़ाईयां लड़ती थी और जीत हासिल करती थीं। ना आज संख्याबल है और ना ही लड़ाई का वह जज्बा बचा है। आज भी यूनियनें नहीं चेती तो जो बची खुची हैं उनको भी सिमटने में वक्त नहीं लगेगा। 

आजतक के सारे वेजबोर्ड पुरानी यूनियनों की लडाई का ही नजीता है। वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट और मजीठिया वेजबोर्ड को बचाने की सुप्रीम कोर्ट में जंग भी इन्हीं यूनियनों ने लडी है और जीत हासिल की। फिर भी ऐसा क्या है कि यूनियनों में संख्या बल लगातार घटता जा रहा है।

 इसके पीछे ज्यादातर यूनियनों की दकियानूसी सोच, उनके कई पदाधिकारियों की निष्क्रियता, उनकी दूरदर्शी सोच में कमी, जयचंदों की बढती फौज। इन सबके बीच मजीठिया वेजबोर्ड की वजह से कर्मचारियों पर चला इतिहास का सबसे बड़ा दमनचक्र। हर वेजबोर्ड में 20जे था, परंतु इस बार कंपनियों ने इसका सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया और कर्मचारियों के वकीलों की फौज कुछ भी नहीं कर पाई और अवमानना याचिका में मात्र एक वकील के इर्दगिर्द घूमता केस और उस वकील का ये कहना कि मालिकों को जेल भेजकर क्या होगा, मालिकों के दमनकारी हौंसलों को और उड़ान दे गया। आज यूनियनें कह रही हैं कि संख्याबल नहीं बढ़ रहा। क्या उन्होंने इस पर मंथन किया है वे तभी आगे बढ़ सकते हैं जब वे कर्मचारियों की समस्याओं के निदान के लिए दिल से आगे आएं, उन्हें कानूनी सहायता उपलब्ध करवाएं। मजीठिया की वजह से आज हजारों पत्रकार-गैर पत्रकार अपने अस्तित्व की लड़ाई के लिए लड़ रहे हैं, क्या यूनियनें उनकी मदद के लिए आगे आईं, क्या उन्होंने न्याय दिलवाने में कोई योगदान दिया। इन सबका उत्तर है नहीं। जब नौकरी सुरक्षित नहीं होगी तो कोई कर्मचारी कैसे यूनियन से जुड़ेगा। लाखों रुपये अपने कार्यक्रमों में एक दिन में ही फूंकने का सामर्थ्य रखनेवाली यूनियनें चाहें तो ईमानदार वकीलों का एक पैनल तैयार कर सकती हैं, जो कर्मचारियों को न्याय दिलवाने में मदद कर सकते हैं, क्योंकि जल्द न्याय न मिलना भी कर्मचारियों का यूनियनों से दूरी बनाने का एक विशेष कारण है।


यूनियनें चाहें तो सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल के माध्यम से कर्मचारियों के हित में कई निर्णय करवा सकती हैं, परंतु वे आज के समय में केवल तमाशा देख रही हैं, कर्मचारियों की बर्बादी का। उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र में नागपुर की डबल बेंच के wja के सेक्शन 17 के मामले में एक निर्णय ने पूरे राज्य में चल रहे मजीठिया की रिकवरी के केसों का बुरी तरह से प्रभावित कर दिया है। ऐसे में क्या खुद यूनियनों को कर्मचारियों के हित में आगे नहीं आना चाहिए, उनके जुड़े वकीलों को वहां के हजारों कर्मचारियों के हित में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटना चाहिए। ये केवल सेक्शन  17 का ही मामला नहीं है जहां कर्मचारी एक कोर्ट से दूसरी कोर्ट में भटकता है। उसके अलावा भी रेफेरेंस में डीएलसी की गलती और कई मुद्दे है जिसपर सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट आदेश उनकी अदालती लड़ाई की अवधि को कम कर सकते हैं। इस पर विस्तार से मंथन करना होगा और रणनीति बनानी होगी। 

एक संदेश, मजीठिया की लडाई लड़ रहे कर्मचारियों के लिए भी। उनको भी यूनियनों के साथ आना होगा, वे भी ये कह नहीं बच सकते कि यूनियनों ने उनके लिए किया क्या है, इन यूनियनों की वजह से ही तो मजीठिया से लेकर कई वेजबोर्ड धरातल पर आए हैं। उस लड़ाई के दौरान तो आप कहीं भी नजर नहीं आते थे। आप अपने उन नेताओं को भी पहचाने जो आपको कहते हैं, कि मजीठिया लेने के बाद हमें आगे कुछ नहीं करना है, हम क्यों यूनियनों का साथ दें। ऐसे नेता या तो उम्रदराज हो गए हैं या कहीं ना कहीं मालिकों से मिले हुए हैं। आपमें से बहुत से साथियों की नौकरी का एक लंबा काल बचा हुआ है और उस काल को आत्मसम्मान से जीने के लिए यूनियनों का साथ देना ही होगा। पुराने और नए को एकमंच के नीचे आकर नई सोच और ऊर्जा के साथ मालिकों को हर क्षेत्र में मात देनी होगी।

(वरिष्ठ पत्रकार की कलम से)

Friday 28 July 2023

मीडिया संगठनों में अवैध छंटनी के खिलाफ संसद पर प्रदर्शन नौ को

अखबार, टीवी चौनल और अन्य मीडिया प्रतिष्ठानों में कर्मचारियों को अवैध तरीके से निकाले जाने के विरोध में कन्फेडरेशन ऑफ न्यूजपेपर्स एंड न्यूज एजेंसी इम्पलाइज आर्गनाइजेशन ने नौ अगस्त को संसद भवन पर बड़ा प्रदर्शन करने की घोषणा की है।

कन्फेडरेशन की जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार इस प्रदर्शन में देश भर से मीडियाकर्मियों के संगठनों के नेता और प्रतिनिधि शामिल होंगे। प्रदर्शन के साथ ही उस दिन वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की बहाली और पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपे जाएंगे।

कन्फेडरेशन के अध्यक्ष रास बिहारी, महासचिव एम एस यादव और कोषाध्यक्ष एम एल जोशी ने बयान में कहा कि पूरे देश में जगह-जगह अखबार और समाचार चैनलों से पत्रकार और गैर पत्रकार कर्मचारियों को बड़े पैमाने पर नौकरी से निकाला जा रहा है। इससे पहले कोरोना काल में महामारी के बहाने लाखों कर्मचारियों को मीडिया प्रतिष्ठानों से बिना मुआवजा दिए निकाला गया था। उन्होंने बताया कि कन्फेडरेशन की तरफ से वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की बहाली और पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग लगातार उठायी जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों के कारण अखबारों, संवाद समितियों और चैनलों के समक्ष आर्थिक संकट बढ़ता जा रहा है। इस कारण बड़ी संख्या में अखबार बंद हो रहे हैं। संवाद समितियों के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है।

कन्फेडरेशन से संबद्ध नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स-इंडिया के महासचिव प्रदीप तिवारी, इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन के अध्यक्ष श्रीनिवास रेड्डी, महासचिव बलबिन्दर जम्मू, इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के महासचिव परमानंद पांडे, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ पीटीआई इम्पलाइज यूनियन के अध्यक्ष भुवन चौबे, यूएनआई वर्कर्स फेडरेशन के महासचिव एम एम जोशी, ऑल इंडिया न्यूजपेपर्स इम्पलाइज फेडरेशन सचिव सी के नायडू, द ट्रिब्यून इम्पलाइज यूनियन चंडीगढ़ के अध्यक्ष अनिल गुप्ता और नेशनल फेडरेशन ऑफ न्यूजपेपर्स इम्पलाइज के अध्यक्ष ने बयान में कहा है कि दिल्ली में प्रदर्शन से पहले देश भर में मीडियाकर्मियों के मुद्दों पर जगह जगह बैठकें आयोजित की जाएंगी।

नहीं रहे वरिष्ठ पत्रकार टिल्लन रिछारिया


वरिष्ठ पत्रकार टिल्लन रिछारिया नहीं रहे। टिल्लन जी का पूरा नाम शिव शंकर दयाल रिछारिया है। टिल्लन रिछारिया अपने पीछे पत्नी पुष्पा, पुत्र रवि, बहू और नाती को छोड़ गए हैं। टिल्लन रिछारिया ने धर्मयुग, महान एशिया, ज्ञानयुग प्रभात, करंट, बोरीबंदर, हिंदी एक्सप्रेस, वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, हरिभूमि, कुबेर टाइम्स आदि में काम किया था।


राजू मिश्र-

टिल्लन रिछारिया नहीं रहे। सुनकर बड़ा अजीब सा लगा। वह उज्जैन जा रहे थे। बचपन से ही उनका सान्निध्य रहा। चित्रकूट से जब भी वापसी होती, भाभी के बनाये पराठे और आचार खिलाकर ही कुतुब एक्सप्रेस में बैठने देते। हम दोनों ने बहुत यात्राएं भी की। वह जिन-जिन अखबार या पत्रिकाओं में रहे, हमको बराबर स्थान दिलवाते रहे।

परसों सुनील दुबे पर केंद्रित पुस्तक में लेख छपा देख फोन किया तो बहुत खुश हुए थे। ‘मेरे आसपास के लोग’ किताब में उन्होंने लंबी संगत का जिक्र भी किया है। अभी मुकुंद के फोन से यह मनहूस जानकारी मिली तो सहसा विश्वास नहीं हुआ। परमात्मा शिव शंभु दयाल रिछारिया उपाख्य टिल्लन रिछारिया को अपने श्रीचरणों में सबसे निकट स्थान प्रदान करें। विनम्र श्रद्धांजलि।

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PANKAJ SWAMY

सातवें-आठवें दशक में जबलपुर के चर्चित अखबार ज्ञानयुग (पूर्व में हितवाद) के सह संपादक टिल्लन रिछारिया (पूरा नाम श‍िवशंकर दयाल रिछारिया) का गत दिवस निधन हो गया। वे मूलतः चित्रकूट के रहने वाले थे लेकिन यायावरी तबियत के होने के कारण उनका जबलपुर आना हुआ था। उनकी किसी भी किस्म की रचनात्मकता में समय, समाज और सभ्यता का स्पष्ट वेग रहा।

टिल्लन रिछारिया हिन्दी पत्रकारिता में उन चुनिंदा पत्रकारों में से एक रहे जिन्होंने संभवतः सर्वाधि‍क अखबारों व मैग्जीन में काम किया। हिन्दी पत्रकारिता में टिल्लन रिछारिया कांसेप्ट, प्लानिंग, लेआउट और प्रेजेंटेशन अवधारणा को शुरु करने वालों में से रहे। इसका भरपूर प्रवाह राष्ट्रीय सहारा के ‘उमंग‘ और ‘खुला पन्ना‘ में 1991 से 1995 तक देखने को मिला। भाषा की रवानी, कथ्य की कहानी, आकर्षक फोटो और ग्राफिक्स से सजे धर्मयुग, करंट, राष्ट्रीय सहारा के उमंग और खुला पन्ना के वे पन्ने हालांकि इतिहास के झरोखे से उन लोगों के जेहन में अभी भी झांकते हैं जो उस दौर के हिन्दी-प्रवाह के साथ आँख खोल कर चले और आज भी अतीत की उस श्रेष्ठता को सराहने में झेंपते नहीं।

टिल्लन रिछारिया इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप मुम्बई के हिन्दी एक्सप्रेस, करंट, धर्मयुग, पूर्वांचल प्रहरी (गुवाहाटी) वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, हरिभूमि (नई दिल्ली) में स्थानीय सम्पादक, दैनिक भास्कर (नई दिल्ली) में वरिष्ठ सम्पादक, आईटीएन टेली मीडिया मुम्बई, एन सी आर टुडे के एसोसिएट एडिटर व प्रबंध सम्पादक रहे। फिलहाल आयुर्वेदम पत्रिका के प्रधान संपादक थे।

टिल्लन रिछारिया जबलपुर से बहुत प्यार करते थे। वे कहते थे कि जबलपुर प्रेम व आनंद का सिद्ध तीर्थ है। उनको भी इस रस राग और तिलिस्मात से भरे शहर ने अपनी छांव में कुछ समय रहने का मौका दिया। टिल्लन पूरी दुनिया घूम लिए लेकिन उनका कहना था कि गहन आत्मीयता से भरा जबलपुर शहर पल भर में ही अपना दीवाना बना लेता है। उन्होंने कभी लिखा था-‘’ हमें आये अभी एक दो दिन ही हुए थे कि दफ्तर के पास की चाय पान की दुकान में देखिए दिलफरेब स्वागत होता है।

साथियों से नाम सुनते ही पान वाले बोले... अरे टिल्लन जी आप आ गये। बम्बई से पूनम ढिल्लन जी का फोन था कि भाई साहब का ख्याल रखना। इस शहर में आपका स्वागत है, हम हैं न।.... अरे हां, राखी भेजी है आप के लिए, अभी लाकर देता हूँ।.... जबलपुर ज्यादा देर आपको अजाना नहीं रहने देता।‘’ जबलपुर में टिल्लन रिछारिया के यारों के यार में राजेश नायक, चैतन्य भट्ट, राकेश दीक्ष‍ित, ब्रजभूषण शकरगाए, अशोक दुबे थे। टिल्लन रिछारिया को श्रद्धांजलि।

9425188742

pankajswamy@gmail.com

(Source: Bhadas4media.com)

Tuesday 25 July 2023

मजीठियाः नोएडा में दैनिक जागरण फिर लगा झटका, 24 कर्मियों को देना होगा 5.79 करोड़, देना होगा 7% ब्याज


साथियों, नोएडा से फिर एक और बड़ी खबर आ रही है। यहां के श्रम न्यायालय ने 21 जुलाई को मजीठिया के 24 मामले में कर्मियों के पक्ष में फैसला दिया है। ये राशि दो माह के भीतर देय तिथि से 7 प्रतिशत ब्याज के साथ देनी होगी। इन 24 कर्मियों की बकाया राशि 5,78,90,729 रुपये बनती है। 

7 नवंबर 2022 को 57 कर्मियों के मजीठिया की रिकवरी केस हारने के बाद से जागरण प्रबंधन की हार का सिलसिला लगातार जारी है। इसी महीने की 13 तारीख को जागरण प्रकाशन लिमिटेड के नई दुनिया मामले में दिल्ली की राउज एवेन्यू लेबर कोर्ट ने धनंजय सिंह को मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों का अधिकारी मानते हुए उसके पक्ष में 10.38 लाख की राशि का अवार्ड पारित किया था, अदालत ने साथ ही 9 प्रतिशत ब्याज का आदेश भी दिया था। इस तरह जागरण के लिए इसी महीने में ये दूसरा झटका है। नोएडा लेबर कोर्ट के इस आदेश के बाद अब तक नोएडा के 118 और दिल्ली का एक मामला मिलाकर 119 कर्मियों के पक्ष में फैसला आ चुका है। अदालत से इन कर्मियों के पक्ष में 19 करोड़ से अधिक का अवार्ड पारित हो चुका है। जिस पर प्रबंधन को ब्याज भी देना होगा।

हर बार की तरह जागरण प्रबंधन ने इन मामलों को भी लंबा खींचने की कोशिश की, लेकिन कर्मचारियों के प्रतिनिधि राजुल गर्ग ने अदालत के समक्ष पक्ष रखते हुए उसकी इस कोशिश को भी नाकाम कर दिया। 

अवार्ड की राशि निम्न अनुसार है....

1 मुरारी शरण 3609022

2 सुरेंद्र प्रताप सिंह 1770271

3 कृष्ण मोहन त्रिवेदी 2148230

4 ललित कुमार कम्बोज 2660389

5 राज कुमार उपाध्याय 1829995

6 सत्य प्रकाश मिश्रा 1812520

7 विकास चौधरी 1882836

8 राजेन्द्र कुमार जैन 2298160

9 ललित मोहन विष्ट 1695618

10 अरुण कुमार बरनवाल 2834470

11 आशुतोष कुमार 1700666

12 त्रिलोकी नाथ उपाध्याय 4092129

13 प्रेमपाल सिंह 3304652

14 प्रशांत कुमार गुप्ता 1878559

15 भूपेंद्र सिंह 2118775

16 अनिल कुमार तिवारी 1658869

17 भगवान दास तिवारी 1725227

18 पवन कुमार दुबे 1602969

19 प्रमोद कुमार शर्मा 2731408

20 अरुण शुक्ला 1766728

21 प्रदीप कुमार ठाकुर 2341633

22 नरेंद्र चांद 2895131

23 जगजीत राणा 2946497

24 योगिनी खन्ना 4585975

Monday 17 July 2023

मजीठियाः अब दिल्ली में जागरण को झटका, धनंजय को देने होंगे 10.38 लाख, मिलेगा 9 फीसदी ब्याज


नई दिल्ली, 17 जुलाई। साथियों, मजीठिया के रिकवरी मामले में दिल्ली से एक बडी खबर आ रही है। यहां पर जागरण प्रकाशन लिमिटेड को नोएडा के बाद एक और झटका लगा है। यहां के आईटीओ में स्थित राउज एवेन्यू लेबर कोर्ट ने 13 जुलाई 2023 को जागरण प्रकाशन लिमिटेड के समाचार पत्र नई दुनिया में कार्यरत रहे धनंजय कुमार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए 10,38,192 रुपये का अवार्ड पारित किया है। इसके साथ ही अदालत ने कंपनी को इस राशि पर 9 फीसदी ब्याज देने का भी आदेश दिया है। अदालत ने साथ ही लिटिगेशन के रूप में कंपनी को एक महीने के भीतर धनंजय को 35 हजार रुपये देने का भी आदेश दिया है।

दिल्ली में कार्यरत धनंजय कुमार नोएडा और दिल्ली में जागरण प्रकाशन लिमिटेड के खिलाफ मजीठिया की रिकवरी मामले में केस लगाने वाले सबसे पहले दो साथियों में से एक थे। जागरण प्रकाशन लिमिटेड ने धनंजय को अपना कर्मचारी मानने से इनकार किया था। इसके अलावा कंपनी ने न्यायिक क्षेत्राधिकार पर भी सवाल खड़े किए थे। धनंजय के मामले में डीएलसी ने सबसे आरआरसी जारी की थी, जिसे कंपनी ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी और केस को 17-2 के तहत लेबर कोर्ट रेफर करने की मांग की थी। जिस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने डीएलसी को मामले को 17-2 के तहत लेबर कोर्ट रेफर करने का आदेश दिया था।

Tuesday 4 July 2023

बड़ी खबर; 75 अखबार कर्मियों की बर्खास्तगी गैर कानूनी, 12 फीसदी ब्याज के साथ बकाये का आदेश

 


पटना श्रम न्यायालय कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला


टाइम्स ऑफ इंडिया के 75 कामगारों एवं पत्रकारों का नौकरी से निकालने का फैसला गैर कानूनी

12 प्रतिशत सूद के साथ  बकाया भुगतान करने का आदेश


टाइम्स ऑफ इंडिया के 75 पत्रकार एवं गैर कामगारों ने पिछले 11 वर्षों से चल रहे मनिसाना और मजीठिया वेज बोर्ड के कार्यान्वयन तथा डिसमिस के खिलाफ ऐतिहासिक जीत दर्ज की है।

पटना श्रम न्यायालय में 2012 से ही चल रही सुनवाई पर न्यायाधीश श्री ॠषि गुप्ता ने अपने 140 पन्ने के जजमेंट में पत्रकार एवं कामगारों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए तत्काल बकाए राशि को 2012 से ही अब तक 12 प्रतिशत सूद के साथ भुगतान करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने इस बकाए राशि को एक महीने के भीतर भुगतान करने को आदेश दिया है।


कामगारों की ओर से चंद्रशेखर प्रसाद सिन्हा ने बहस की । वे लगातार 2019 से लेकर 2023 तक कामगारों के पक्ष में अनवरत खड़े  रहे जबकि टाइम्स ऑफ इंडिया की तरफ से आलोक सिन्हा एवं अन्य चार एडवोकेट की टीम काम कर रही थी।

पटना से दिनेश कुमार 

महासचिव 

बिहार पत्रकार संघ, 

पटना।

संयोजक, 

मजीठिया संघर्ष समन्वय समित,बिहार

Friday 23 June 2023

मजीठिया के बाद पीएफ की लड़ाई भी जीते कुणाल, मिले 10 लाख रुपये

 


- मजीठिया वेज बोर्ड के तहत पहले ही पा चुके हैं 24 लाख रुपये


- प्रभात खबर अखबार को एक और झटका 


देश में मजीठिया वेज बोर्ड के तहत वेतन पाने वाले पहले पत्रकार कुणाल प्रियदर्शी के नाम एक और उपलब्धि जुड़ गयी है।अब वे मजीठिया वेतनमान के तहत पीएफ की राशि हासिल करने वाले भी देश के पहले पत्रकार बन गये हैं। पीएफ कमिशनर के आदेश पर प्रभात खबर की  न्यूट्रल पब्लिशिंग हाउस लिमिटेड प्रबंधन को उनके पीएफ अकाउंट में करीब 10 लाख रुपये जमा करने को मजबूर होना पड़ा है। इसमें बैक अमाउंट के साथ ब्याज भी शामिल है। कुणाल को इस उपलब्धि के लिए करीब तीन साल तक कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। कुणाल मुजफ्फरपुर जिले के मेघ रतवारा के मूल निवासी हैं।

 

वर्ष 2018 में उन्होंने मजीठिया वेज बोर्ड अवार्ड के तहत वेतन के लिए कानूनी लड़ाई शुरू की थी। जून 2020 में लेबर कोर्ट मुजफ्फरपुर से उनके पक्ष में अवार्ड पारित हुआ। इसमें कंपनी को बकाये राशि के भुगतान का आदेश दिया गया, वहीं कुणाल को पीएफ की बकाया राशि के लिए इपीएफ एक्ट का सहारा लेने का निर्देश दिया गया। कोर्ट के निर्देश पर कुणाल ने 2020 में ही इपीएफ एक्ट के तहत इपीएफ कमिश्नर रांची के यहाँ आवेदन दाखिल किया। करीब तीन साल तक लम्बी लड़ाई चली।इस दौरान कई बार कंपनी की ओर से  झूठे तर्क दिए गये। यहाँ तक कि इपीएफ की गणना में वेरिएबल पे को शामिल करने पर भी सवाल उठाये गए पर, कुणाल के तर्कों से संतुष्ट होकर इपीएफ कमिश्नर ने कंपनी को सात दिनों के भीतर इपीएफ की बकाया राशि ब्याज सहित इपीएफ अकाउंट में जमा करने का आदेश दिया। आखिर में कंपनी को 9.46 लाख रूपये इपीएफ अकाउंट में जमा करने को मजबूर होना पड़ा।जानकारी हो कि न्यूट्रल पब्लिशिंग हाउस लिमिटेड प्रभात खबर के नाम से दैनिक हिंदी समाचारपत्र प्रकाशित करती है। कुणाल उसमें न्यूज़राइटर के रूप में काम करते हैं. वर्ष 2022 में सिविल कोर्ट मुजफ्फरपुर में एग्जीक्यूशन केस में जीत हासिल करने पर उन्हें करीब 24 लाख रुपये प्राप्त हुए थे। यह राशि उन्हें मजीठिया वेज बोर्ड अवार्ड के तहत बकाये वेतन के रूप में मिला था।


शशिकान्त सिंह

पत्रकार और आरटीआई  कार्यकर्ता तथा उपाध्यक्ष न्यूज़ पेपर एम्प्लॉयज यूनियन ऑफ इंडिया (एनईयूआई)


9322411335

Friday 12 May 2023

"डी. बी. कॉर्प लि." बड़ा झटका, फुल बैक वेजेस के साथ ही गोंसाल्विस को नौकरी पर रखने का आदेश

अस्बर्ट गोंसाल्विस

मुंबई से एक बड़ी खबर आ रही है... यहां के माननीय लेबर कोर्ट से "डी. बी. कॉर्प लि." को बड़ा झटका लगा है ! 8वें लेबर कोर्ट की जज श्रीमती एस. एम. औंधकर ने अस्बर्ट गोंसाल्विस को न सिर्फ नौकरी पर पुनः रखने का आदेश दिया है, बल्कि आदेश में अस्बर्ट को फुल बैक वेजेस भी प्राप्त करने योग्य माना है ।


आपको बता दें कि "डी. बी. कॉर्प लि." नामक मातृ कंपनी के अंतर्गत भारत में मुख्य रूप से तीन अखबारों का प्रकाशन किया जाता है - 'दैनिक भास्कर' (हिंदी), 'दिव्य भास्कर' (गुजराती) और 'दिव्य मराठी' (मराठी) । सन् 2008 के फरवरी महीने में "डी. बी. कॉर्प लि." (दैनिक भास्कर) ने मुंबई स्थित अपने कार्यालय में अस्बर्ट गोंसाल्विस (एंप्लॉई कोड: 13688) की जब सिस्टम (कंप्यूटर) इंजीनियर के तौर पर नियुक्ति की, तब से सन् 2016 के मध्य तक सब कुछ ठीक-ठाक चला... समय-समय पर अस्बर्ट का इंक्रीमेंट भी होता रहा ! लेकिन इसी दौरान अस्बर्ट ने मजीठिया अवॉर्ड की मांग क्या कर दी, कंपनी में मानो भूचाल आ गया !! अब कंपनी को अस्बर्ट में कमियां ही कमियां नज़र आने लगीं और आखिरकार 31 अगस्त, 2016 को उन्हें टर्मिनेट कर दिया गया !!!



अस्बर्ट गोंसाल्विस ने मुंबई स्थित लेबर कमिश्नर के समक्ष इसकी शिकायत की, जहां महीनों तक चली सुनवाई के बाद मामले को माननीय श्रम न्यायालय में भेज दिया गया । यहां बरसों तक चली सुनवाई के दौरान कंपनी ने ऐसे हर दांव-पेंच आजमाए, जिसके चलते मामले को ज्यादा से ज्यादा डिले किया जा सके... कोरोना काल ने भी इसमें कंपनी की काफी मदद की । बहरहाल, कहते हैं न- जाको राखे साइयां... सन् 2022 के मध्य में अदालत के समक्ष "डी. बी. कॉर्प लि." (मुंबई) की एचआर हेड अक्षता करंगुटकर की पहली गवाही हुई, तत्पश्चात आईटी हेड शिवेन्द्र शर्मा की गवाही की डेट सुनिश्चित की गई । लेकिन अपना एफिडेविट देने के बावजूद शर्मा करीब 8 महीने बाद गवाही देने से पीछे हट गए, जिसके बाद फर्स्ट पार्टी (डी. बी. कॉर्प लि.) के वकील वी. बी. कांबले और सेकंड पार्टी (अस्बर्ट गोंसाल्विस) के वकील विनोद शेट्टी के बीच अदालत में बहस की शुरुआत हुई ।


'दैनिक भास्कर' (डी. बी. कॉर्प लि.) का आरोप था कि अस्बर्ट वर्कमैन नहीं हैं, वह एडमिनिस्ट्रेटिव कैपेसिटी में आते हैं । इस कारण अस्बर्ट सेक्शन 25 की परिभाषा में नहीं आते, साथ ही 20 (जे) फॉर्म पर दस्तखत करने की वजह से वह किसी भी बेनिफिट के पात्र नहीं हैं ! कंपनी का कहना था कि अस्बर्ट के खिलाफ लगातार शिकायतें आ रही थीं... अस्बर्ट को बार-बार चेतावनी दी गई थी और अपना काम व व्यवहार सुधारने के लिए उन्हें तीन महीने का समय भी दिया गया था, पर कोई सुधार / बदलाव नहीं होने के कारण 'दैनिक भास्कर' प्रबंधन के पास उन्हें टर्मिनेट करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था !!


इसके जवाब में अस्बर्ट के विद्वान वकील शेट्टी के रखे तर्कों और सबूतों से अदालत पूरी तरह सहमत और संतुष्ट नज़र आई, मसलन- अस्बर्ट परमानेंट एंप्लॉई थे, जिन्हें कोई चार्जशीट नहीं दी गई... 30 अगस्त, 2016 को ई-मेल करके उन्हें सीधे टर्मिनेट कर दिया गया, जो कि पूरी तरह गैर-कानूनी था ! यही नहीं, अदालत ने कांबले के सायटेशन को जहां केस से संबंधित मानने से इनकार कर दिया और कहा कि वे फर्स्ट पार्टी (डी. बी. कॉर्प लि.) की मदद नहीं करते, वहीं शेट्टी द्वारा प्रस्तुत सायटेशन को केस से संबंधित माना कि वे लीगल होने का समर्थन करते हैं ।


माननीय जज ने इश्यूज से संबंधित अपने ऑब्जर्वेशन में भी कहा है- 'यह सिद्ध करना फर्स्ट पार्टी का दायित्व था कि वह सिद्ध करे, अस्बर्ट वर्कमैन नहीं हैं... फर्स्ट पार्टी यह सिद्ध नहीं कर पाई । दूसरी ओर यह सिद्ध करने का दायित्व सेकंड पार्टी (अस्बर्ट गोंसाल्विस) का था कि वह सिद्ध करे कि उसका टर्मिनेशन इल्लीगल है... अस्बर्ट को यदि 6 इंक्रीमेंट मिले हैं तो फिर वह नाकारा कैसे हुए ? अक्षता करंगुटकर ने अस्बर्ट के खिलाफ मौखिक शिकायतें मिलने की बात तो मानी, पर इसके समर्थन में वह कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाईं ।' गौरतलब है कि फर्स्ट पार्टी तो यह भी सिद्ध नहीं कर पाई कि शिवेन्द्र शर्मा के पास अस्बर्ट को टर्मिनेट करने का अधिकार था... अस्बर्ट के अप्वाइंटमेंट लेटर में क्लॉज होने के बावजूद कंपनी द्वारा उन्हें नोटिस पीरियड के एक महीने की सैलरी का न तो प्रूफ दिया गया, न ही कंपनी ने अस्बर्ट को रिलीविंग लेटर इश्यू किया ।


माननीय अदालत ने यह भी पाया कि 'आरोप लगने के ही कारण अस्बर्ट को कहीं भी नौकरी नहीं मिली, इसलिए उन्हें अब तक बेरोजगार रखने की जिम्मेदारी पूरी तरह "डी. बी. कॉर्प लि." की है । अस्बर्ट का टर्मिनेशन इल्लीगल है और वह विक्टिमाइज हुए हैं !' इन सभी तथ्यों और तर्कों संग अस्बर्ट गोंसाल्विस के सर्विस के पीरियड को देखते हुए जज श्रीमती औंधकर ने अपना फैसला सुनाया है- 'सेकंड पार्टी 1 सितंबर, 2016 से अब तक फुल बैक वेजेस के साथ-साथ कंपनी द्वारा प्रदत्त अन्य लाभ पाने एवं नौकरी पर पुनः रखे जाने की अधिकारी है ।' आखिर में अदालत ने स्टेट गवर्नमेंट को निर्देश दिया है कि अस्बर्ट गोंसाल्विस के अवॉर्ड के अनुपालन हेतु वह समुचित कदम उठाए !


बहरहाल, "डी. बी. कॉर्प लि." के विरुद्ध आए इस फैसले से देश भर के पत्रकारों में उत्साह की लहर है ! इस जीत का श्रेय सत्य और अपनी टीम को दे रहे अस्बर्ट गोंसाल्विस ने बड़ी सधी हुई प्रतिक्रिया व्यक्त की है- 'मुझे तो पता था कि मैं सही हूं, लेकिन अदालत को यह विश्वास दिलाना मेरे वकील शेट्टी सर के हाथ में था । सर ने बहुत मजबूती से मेरा पक्ष रखा, जबकि मेरा धैर्य बनाए रखने और हौसला बढ़ाने में मेरी पूरी टीम का योगदान है... खासकर, हमारी 'न्यूजपेपर एंप्लॉईज यूनियन ऑफ़ इंडिया' (NEU India) के जनरल सेक्रेटरी धर्मेन्द्र प्रताप सिंह और वाइस प्रेसीडेंट शशिकांत सिंह से मिले सहयोग के लिए मैं उनका सदैव आभारी रहूंगा !' आगामी 14 मई को अस्बर्ट का जन्मदिन है... बधाई !

Thursday 11 May 2023

मजीठियाः फिर हारा दैनिक जागरण, पूजा झा को देने होंगे 20.78 लाख, 7% ब्याज अलग


मजीठिया वेजबोर्ड मामले में देश के प्रमुख समाचार पत्र दैनिक जागरण को एक बार फिर श्रम न्यायालय से पराजय का सामना करना पड़ा है। उत्तर प्रदेश की नोएडा की श्रम अदालत ने दैनिक जागरण की महिला कर्मचारी पूजा झा के पक्ष में फैसला सुनाते हुए निर्देश दिया है कि दैनिक जागरण दो महीने के अंदर पूजा झा को 20 लाख 78 हजार 410 रुपये का भुगतान करे। दैनिक जागरण को 7 प्रतिशत ब्याज का भुगतान भी करना होगा।

पूजा झा एक अगस्त 2011 को ग्राफिक्स डिजाइनर (ट्रेनी) के रूप में दैनिक जागरण में भर्ती हुई थी। मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार वेतन मांगने पर पूजा झा के खिलाफ कारवाई की गई। पहले दैनिक जागरण ने पूजा को अपरेंटिस माना और कहा कि वे वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 17 (1) के तहत जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड मामले में लाभ पाने की अधिकारी नहीं हैं। मगर पूजा ने कहा कि वे एक साल बाद ही स्थायी हो गई थीं। श्रम अदालत के पीठासीन अधिकारी प्रदीप कुमार गुप्ता ने पूजा झा के तर्क को सही माना और मैसर्स जागरण प्रकाशन लि. को आदेश दिया कि दो महीने के अंदर पूजा झा को 20 लाख 78 हजार 410 रुपये का भुगतान मय 7 प्रतिशत ब्याज के साथ किया जाए। फिलहाल इस खबर से दैनिक जागरण के कर्मचारियों में खुशी का माहौल है। पूजा झा की तरफ से उनका पक्ष अधिवक्ता राजुल गर्ग ने रखा।

शशिकांत सिंह

पत्रकार और मजीठिया क्रातिकारी

9322411335

Thursday 27 April 2023

मजीठियाः दैनिक जागरण को हाईर्कार्ट ने दिया जोर का झटका, याचिका की खारिज, लगाया 25 हजार का जुर्माना


Case :- WRIT - C No. - 10419 of 2023

Case :- WRIT - C No. - 23212 of 2021

नई दिल्ली, 27 अप्रैल। साथियों इलाहाबाद हाईकोर्ट से एक बहुत बड़ी खुशखबरी आई है। यहां पर दैनिक जागरण को अदालत से जबरदस्त झटका लगा है। उसकी अमर कुमार सिंह के मामले में लेबर कोर्ट के ऑर्डर पर स्टे लेने की मंशा तो पहले ही धाराशायी हो गई थी, अब आज अदालत ने उसकी याचिका खारिज करते हुए 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगा दिया है। अदालत ने इसके साथ ही लगभग पौने दो साल से स्टे में फंसे कृष्ण लाल के मामले का निपटान भी इसी याचिका के साथ कर दिया है।

दैनिक जागरण नोएडा लेबर कोर्ट में रिकवरी का मामला हारने के बाद हाईकोर्ट इस उम्मीद से पहुंचा था कि किशन लाल के मामले की तरह अदालत को गलत तथ्यों के साथ गुमराह करके स्टे ले लेगा और मामले को जितना लंबा हो सकेगा खीचेंगा। परंतु हाईकोर्ट ने सुनवाई की पहली तारीख 3 अप्रैल 2023 को स्टे देने से इनकार कर दिया और जागरण की उम्मीदों को तोड़ते हुए अगली सुनवाई की तिथि 7 अप्रैल कर दी। 7 अप्रैल को दोनों पक्षों की लंबी बहस सुनने के बाद हाईकोर्ट ने फैसला रिजर्व कर लिया और हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में स्थानांतरित हो चुके जज साहब ने आज 27 अप्रैल को वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से एक शब्द डिसमिस के साथ प्रबंधन के मंसूबों पर पानी फेर दिया। अदालत में कर्मचारियों की तरफ से वकील निखिल अग्रवाल और मनमोहन सिंह ने जबरदस्त तर्क रखे और कर्मचारियों की जीत निश्चित की।

अदालत ने अपने फैसले में लिखा कि जागरण प्रकाशन लिमिटेड 1000 हजार करोड़ रुपये से ऊपर की कंपनी है जो क्लास एक में आती है। अदालत ने अपने फैसले में लिखा कि लेबर कोर्ट नोएडा के आर्डर में कोई कमी नहीं है। अदालत ने 20जे और वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट के सेक्शन 17-2 पर भी फैसला कर्मचारियों के पक्ष में दिया। अदालत ने नान जर्नलिस्ट को वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट के तहत लाभान्वित नहीं होने के प्रबंधन के तर्क को भी खारिज कर दिया।अदालत ने जागरण प्रबंधन की याचिका खारिज करते हुए कानूनी खर्च के लिए 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है, जो कि कर्मचारी को मिलेगा। अदालत ने अमर सिंह के मामले के साथ ही किशन लाल वाले केस को जोड़ते हुए किशन लाल के मामले को भी खारिज करते हुए रिकवरी के मामले को तेजी से निपटाने के आदेश भी दिए हैं। अदालत के इस एक फैसले में ही अमर सिंह के साथ जुड़े 56 मामलों का भी निपटारा हो गया है। इस फैसले से पूरे देशभर में मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे कर्मचारियों में खुशी की लहर फैल गई है।

Wednesday 26 April 2023

DUJ NEW OFFICE BEARERS AND NATIONAL COUNCIL MEMBERS

New Delhi, 26 April 2023. The Delhi Union of Journalists elected its new executive committee and office bearers on Monday, April 24, 2023. Chief Returning Officer Dr. Satish Misra announced that the following panel was elected unopposed late in the evening. He was assisted by Sunil Kumar and Sanjay Kumar as Assistant Returning Officers.


OFFICE BEARERS

PRESIDENT – MS. SUJATA MADHOK

VICE PRESIDENT — SH. S.K. PANDE

GENERAL SECRETARY — SH. JIGEESH A.M.


SECRETARIES

SH. MASOOM MORADABADI

MOHD. AHMAD KAZMI

SH. MUKUND JHA


TREASURER

SH. M. PRASHANTH


EXECUTIVE COMMITTEE MEMBERS (ENGLISH)

SH. MANISH KUMAR JHA

SH. SANJAY KUMAR JHA

SH. SHEMIN JOY


EXECUTIVE COMMITTEE MEMBERS (HINDI)

SH. BHAGWATI PRASAD DOBHAL

SH. JAGJEET RANA

SH. MAHESH KUMAR

MS. MRINAL BALLARI


EXECUTIVE COMMITTEE MEMBERS (URDU AND OTHER INDIAN LANGUAGES)

SH. JAVED AKHTAR

VISHNU. J.S.


EXECUTIVE COMMITTEE MEMBERS (GENERAL)

MS. DIVYA TRIVEDI

MS. JYOTI

SH. RAVINDRA TRIPATHI EXECUTIVE COMMITTEE MEMBERS (NEWS AGENCY)

SH. ASHISH KAR

SH. RAJESH ABHAY

SH. SHEIKH MANSOOR AHMAD NATIONAL COUNCIL MEMBERS

SH. ATHUL C.S. NAIR

SH. BHAGWATI PRASAD DOBHAL

MS. DIVYA TRIVEDI

SH. JIGEESH A.M.

SH. KAMALJEET SINGH

SH. MASOOM MORADABADI

SH. RAVINDRA TRIPATHI

MS. SUJATA MADHOK

SH.SHEMIN JOY

MS. SUJATA RAGHVAN

SH. S. K. PANDE

MS. TRIPTI NATH

The new team is a mixture of new and old faces with a tilt towards the young as the DUJ is in transition into a new phase of activity, committed to democratization and modernization. The DUJ will organize more professional and cultural activities and defend journalists’ rights and freedom of press at a time when they are under grave threat.


Confederation of Newspapers and News Agencies Employees' Unions Decides to Fight for New Wage Boards


New Delhi, 26 April 2023. The Confederation of Newspapers and News Agency Employees Organisations has demanded the government to immediately set up a new wage board for the wage revision of media employees in view of the galloping inflation and increased cost of living in nearly one and half decades when the Majithia recommendations were notified. The meeting of the apex body of the six media organisations was held in Chandigarh on the 23rd and 24th of April. It was also decided to launch countrywide agitation for retaining and strengthening of Working Journalist Act by bringing the employees of other media persons into its ambit.
While addressing the meeting of the confederation the Chief Ministers of Punjab Bhagwant Singh Mann, Manohar Lal Khattar of Haryana, and the Himachal Chief Minister Sukhwinder Singh Sukhu supported all the demands of media employees. There was a broad consensus among all the media union leaders that pressure should be mounted on the central government for introducing the Media Protection Act and for amending the Information Technology Act so that the media persons may not have to face harassment by the mischievous elements. There was a strong feeling against the move of abrogating the Working Journalist Act by subsuming it with other labour codes.
 
The Punjab Chief Minister Bhagwant Singh Mann addressed the meeting in his inimitable style and emphasised the importance of print media. He said that despite the tough competition posed by the electronic, web and social media the credibility that is enjoyed by print medium was head and shoulders above all. He appealed that the focus of journalists should be on raising important social and economic issues rather than pursuing petty matters.
 
Himachal Pradesh Chief Minister Sukhwinder Singh Sukhu felt that there was an urgent need for bringing social security scheme for journalists to keep the fourth pillar of democracy objective and independent. He highlighted the steps taken by his government for the welfare of the people including journalists. Shri Sukhu assured the media persons that some budgetary provisions would be made by his government to provide economic assistance to the media employees. Himachal’s Social Security and Health Minister Col Dhani Ram Shandilya called for strong free and fair media to help and guide even the policymakers.
 
Addressing the concluding session of the Haryana Chief Minister Manohar Lal Khattar announced the increase in the monthly pension of retired journalists from Rupees 10 thousand to 11 thousand. He underlined the need for the development of language newspapers to help achieve the goals of democracy.
 
The meeting was hosted by the Tribune Employee’s Union. Its president Anil Kumar Gupta and Gen Secretary Ms.Ruchira M Khanna declared that their employees' union would be next to none in continuing the struggle of the media persons all over the country. The General Secretary of the Confederation MS Yadav declared that very soon for deciding the future course of action a meeting will be held in Delhi at the May end.
 
Among those who addressed the meeting were the IFWJ Vice President Hemant Tiwari, Secretary General Parmanand Pandey, UNI Workers Union President ML Joshi, Indian Journalist Union President Shrinivas Reddy, General Secretary Balwinder Jammu, National Union of Journalists President Ras Bihari and General Secretary Pradeep Tiwari. Indian Express Workers Union President CS Naidu, Delhi Union of Working Journalist President AS Negi told the meeting that more than 30 thousand newspaper employees have been thrown out of jobs for demanding their dues of Majithia Award. Not only that hundreds of employees have either died or committed suicides due to poverty and hunger. it was attended by nearly 300 representatives of newspapers and news agency employees from all over India including those of Bangalore Newspaper Employee’s Union and the All-India Newspaper Employees Federation. Vivek Tyagi and Rajesh Niranjan attended from Delhi. IFWJ Secretary Siddharth Kalhans and UPWJU President TB Singh came from Lucknow to Chandigarh specially to participate in the meeting. All leaders pledged to continue their struggle till the demands of the media employees were fulfilled.
Parmanand Pandey
Secretary General: IFWJ

Tuesday 25 April 2023

PF: पेंशन, केवाईसी, मोबाइल नंबर... किसी भी तरह की दिक्कत के लिए यहां करें संपर्क


हम में से बहुत से साथी मजीठिया की वजह से बर्खास्तगी या तबादले के केस लड़ रह रहे हैं। ऐसे में पीएफ से जुड़ी कई समस्याएं हमारे सामने आ रही हैं। विशेषतौर पर जिनमें नियोक्ता यानि कंपनी प्रबंधन की तरफ से समस्याएं आ रही हैं। कंपनी प्रबंधन आपके दस्तावेजों पर हस्ताक्षर नहीं कर रहा या उन्हें अप्रूव नहीं कर रहा। आपका आधार पीएफ एकाउंट से नहीं जुड़ा या बैंक एकाउंट नहीं जुड़ा या अपना पुराना मोबाइल बदल चुके हैं, जिस वजह से आप अपने भूले हुए पासवर्ड को बदल नहीं पा रहे हैं। ज्यादातर इस तरह की समस्याओं के हल के लिए आपको कंपनी प्रबंधन के हस्ताक्षर चाहिए और वे इसके लिए दिक्कत पैदा कर रहे हैं। ऐसे में आप पीएफ कार्यालय द्वारा चलाए जा रहे है निधि आपके निकट 2.0 कार्यक्रम में शामिल होकर अपनी समस्याओं के हल के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। ये कार्यक्रम देश के हर जिले में हर माह आयोजित किए जाते हैं। जिसमें आप जाकर अपनी समस्याओं का हल पा सकते हैं। गौतमबुद्ध नगर की कंपनियों में कार्यरत कर्मचारियों के लिए नोएडा में ये कार्यक्रम 27 अप्रैल को सुबह 9 से शाम 5.45 बजे तक आयोजित होगा। इस कार्यक्रम का स्थल है.....

Development Commissioner Office, Noida S.E.Z. Ministry of Commerce and Industry, Govt. Of India

Noida Special Economic Zone, Noida Dadri Road, Phase-II, G.B. Nagar, U.P. 201305

आप अपनी शिकायत लिखित में यहां देकर उसका पंजीकरण करवा सकते हैं। इसमें आप कंपनी प्रबंधन द्वारा पैदा की जा रही है समस्याओं को उल्लेख भी कर सकते हैं। आप इसके लिए अपनी शिकायत की दो कापियां लेकर जाएं और एक कापी पीएफ कार्यालय को सौंपे और एक पर उसकी रिसीविंग लें। 

ज्यादा पेंशन स्कीम के तहत भी आप यहां जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। आपके द्वारा डाले गए केसों की वजह से कंपनी प्रबंधन आपको सहयोग नहीं कर रखा है और आप बड़ी हुई पेंशन स्कीम का फायदा उठाना चाहते हैं तो आप अपने वकील या एआर के माध्यम से जहां केस चल रहा हो वह एक एप्लीकेशन भी डाल सकते हैं अपने बड़े हुए पेंशन के आधिकार को सुरक्षित रखने के लिए। इसमें आपको ये भी लिख सकते हैं कि कंपनी प्रबंधन आपकी कोई मदद नहीं कर रहा है। ये प्रक्रिया आपको 3 मई से पहले करना होगा, क्योंकि ये उसकी अंतिम तिथि है। हो सकता है पीएफ विभाग इस स्कीम आगे भी बढ़ा सकता है। फिलहाल आपको 3 मई की तारीख याद रखनी है।

जिन साथियों का आधार कार्ड पीएफ एकाउंट से लिंक हो रखा है और उनका पीएफ में डाला गया मोबाइल नंबर बदल गया है और वे अपना पासवर्ड भूल चुके हैं तो वे आधार में अपना नया मोबाइल नंबर अपडेट करने के बाद पीएफ में forget passwoard में जाकर नया ओटीपी लेकर अपना पासवर्ड बदल सकते हैं।

यदि आप किसी वजह से इस कैंप में भाग नहीं पा रहे हैं तो अपने स्थानीय पीएफ कार्यालय में जाकर इसकी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और अपनी शिकायत भी दे सकते हैं। 

अपने साथ अपना पीएफ नंबर, आधार कार्ड जैसे जरूरी कागजातों की फोटो कापी भी रखें। 


Thursday 20 April 2023

मजीठियाः फिर हारा दैनिक जागरण, 36 कर्मियों को ब्याज समेत देने होंगे करोड़ों रुपये


साथियों, नोएडा से एक फिर बड़ी खबर आ रही है। यहां की लेबर कोर्ट ने रिकवरी में मामले 18 अप्रैल को 36 कर्मियों के पक्ष में अपना फैसला सुनाया है। रिकवरी की ये राशि लगभग 9 करोड़ 30 लाख रुपये है। इसमें सबसे अधिक राशि 2897511 रुपये है, जबकि सबसे कम राशि 1223917 रुपये है। माननीय अदालत ने अपने फैसले में इन कर्मचारियों को देय तिथि से 7 फीसदी ब्याज का भी आदेश दिया है। 

माननीय अदालत ने इस धनराशि को दो माह के भीतर देने का भी निर्देश दिया है।

जागरण प्रबंधन ने ने इन मामलों को भी लंबा खींचने की कोशिश की, लेकिन कर्मचारियों के प्रतिनिधि राजुल गर्ग ने अदालत के समक्ष पक्ष रखते हुए उसकी इस कोशिश को भी नाकाम कर दिया। 

मालूम हो कि इससे पहले भी नवंबर 2022 में जागरण प्रबंधन 57 कर्मचारियों के मामले में हारा था। जिसमें अदालत ने उसे 11,59,00,78 करोड़ रुपये देय तिथि से मय सात फीसदी ब्याज की दर से देने का निर्देश दिया था। इन 57 कर्मचारियों के मामले में नोएडा उप श्रमायुक्त कार्यालय से आरआरसी भी जारी हो चुकी है। जागरण नोएडा लेबर के आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी गया था, जहां पर उसे स्टे नहीं मिला और अदालत ने फैसला अभी सुरक्षित रखा हुआ है।

इन साथियों की रिकवरी राशि इस प्रकार है....

श्री महेश कुमार तिवारी 2450894

श्री अंजनी कुमार चौधरी 2252868

श्री हरिश्चन्द्र सिंह 1308328

श्री भागवत प्रसाद 1798251

श्री बैध नाथ झा 1223917

श्री देवेंद्र जोशी 2738914

श्री सुभाष प्रसाद 2209072

श्री अरविंद कुमार 2072408

श्री बीरेंद्र कुमार मिश्रा 2484296

श्री नरवीर सिंह 1656652

श्री गोपाल कृष्ण गुप्ता 1630395

श्री नरेंद्र कुमार 2181095

श्री रण विजय पांडेय 1824814

श्री संजय कुमार गोयल 2897511

श्री अतर सिंह 2888149

श्री नरेंद्र सिंह राणा 1842189

श्री राजेश कुमार 1847784

श्री मदन मोहन 2008159

श्री देवी प्रसाद यादव 1766556

श्री मुन्ना कुमार सिंह 1933666

श्री संतोष कुमार झा 1755170

श्री अजय कुमार शर्मा 1807597

श्री रमाकांत यादव 2296087

श्री राम मुरारी तिवारी 1235874

श्री सत्य प्रकाश दीक्षित 1985515

श्री यशपाल सिंह 1970274

श्री हरपाल सिंह 2438530

श्री राजेश बाजपेयी 2900072

श्री विनोद कुमार झा 2029581

श्री नरेंद्र कुमार राजपूत 2272528

श्री अमरवीर सिंह 1430537

श्री जगवीर सिंह 1948283

श्री बिजेन्दर कुमार 2056218

श्री श्यामवीर सिंह 1663759

श्री नाहर सिंह 2324777

श्री आदेश 1861062

Saturday 25 March 2023

सुप्रीम कोर्ट निर्देश का पालन नहीं करने पर निचली अदालत से नाराज



नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस बात पर नाराजगी व्यक्त की कि निष्पादन अदालत (अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश, 15वीं अदालत, अलीपुर) ने उस मामले को स्थगित कर दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया कि वह निष्पादन की कार्यवाही की सुनवाई एक दिन के आधार पर करे।

यह देखा गया कि सावधानी बरती जानी चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेशों के माध्यम से जो मंशा व्यक्त की है, उस पर पूर्ण प्रभाव दिया जाए।

खंडपीठ ने कहा, "हम केवल यह कहना चाहेंगे कि न्यायाधीश को यह सुनिश्चित करने में सावधानी बरतनी चाहिए कि इस न्यायालय के आदेशों को समझने के बाद अनुपालन किया जा रहा है। मामले को इस अदालत के सामने निगरानी रखने और यह सुनिश्चित करने के लिए रखा गया कि निष्पादन की कार्यवाही समाप्त हो जाए और यह नहीं कि संबंधित न्यायाधीश मामले को स्थगित कर दें…”

सुप्रीम कोर्ट ने 03.02.2023 को निष्पादन अदालत को निर्देश दिया कि वह याचिका को दैनिक आधार पर ले। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि जब दिनांक 03.02.2023 के आदेश को निष्पादन अदालत के संज्ञान में लाया गया तो उसने विशेष अनुमति याचिका के परिणाम की प्रतीक्षा करते हुए सुनवाई को 31.03.2023 तक के लिए स्थगित कर दिया।

जस्टिस संजय किशन कौल ने वकील की बात सुनकर कहा, "मुझे नहीं पता कि वे सरल आदेशों को क्यों नहीं समझ सकते। मुझे क्या कहना चाहिए?"

जस्टिस कौल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ इस बात से परेशान है कि 03.02.2023 के आदेश पर विचार करने के बाद भी, जिसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि निष्पादन की कार्यवाही नियमित आधार पर होनी है, निष्पादन न्यायाधीश ने सुनवाई स्थगित कर दी।

खंडपीठ ने कहा, "यह हमारे लिए बिल्कुल स्पष्ट है कि न्यायालय ने 03.02.2023 के आदेश के अर्थ को नोटिस करने के बाद भी नहीं समझा है।"

इसने आगे उल्लेख किया, “उस आदेश के संदर्भ में हमने निष्पादन की कार्यवाही को दिन-प्रतिदिन चलने के लिए कहा। इसे दिन-प्रतिदिन लेने के बजाय यह बहाना बनाया गया कि मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है!

वर्तमान मामले में लगभग चार साल पहले निष्पादन में अवार्ड की पुष्टि की गई, लेकिन निष्पादन याचिका आज तक लंबित है। पिछले अवसर पर कलकत्ता हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को मामले की प्रगति के बारे में ट्रायल जज से रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए बुलाया गया और 12.11.2018 को शुरू की गई निष्पादन याचिका साढ़े चार साल बाद भी लंबित क्यों है।

अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, 15वें न्यायालय, अलीपुर द्वारा भेजी गई अनुपालन रिपोर्ट में देरी के कुछ कारण यह है कि पंद्रह मौकों पर स्थानीय बार एसोसिएशन द्वारा हड़ताल के कारण सुनवाई नहीं हो सकी; डीएचआर और जेडीआर ने छह तारीखों पर स्थगन मांगा; पीठासीन अधिकारी का स्थानांतरण उसी पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की,

"... (यह) इस बात का दुखद पठन करता है कि कैसे एक या दूसरे बहाने निष्पादन की कार्यवाही को बाधित किया जा रहा है, इस तथ्य के अलावा कि स्थानीय बार टोपी की बूंद पर हड़ताल का आह्वान करने में उलझा हुआ है!"

सुनवाई की पिछली तारीख को सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को निर्देश दिया कि वे आवश्यक कदम उठाने के लिए चीफ जस्टिस को सूचित करें, जिससे विचाराधीन न्यायालय में न्यायाधीश मौजूद हो और निष्पादन याचिका पर एक दिन के आधार पर विचार किया जा सके। इसने यह भी स्पष्ट किया कि बार एसोसिएशन के किसी भी प्रस्ताव या हड़ताल से सुनवाई बाधित नहीं होगी।

[केस टाइटल: निर्मल कुमार खेमका और अन्य बनाम एम/एस. जे.जे. गृहनिर्माण प्रा. लिमिटेड और अन्य। एसएलपी (सी) नंबर 2804-10/2023

(Source: https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/supreme-court-expresses-displeasure-at-a-trial-court-adjourning-matter-despite-its-direction-to-expedite-process-224740)

Thursday 16 March 2023

मजीठियाः 57 कर्मचारियों के मामले में दैनिक जागरण के खिलाफ करोड़ों की आरआरसी जारी



नोएडा के डीएलसी कार्यालय ने आज देश के नंबर वन का तगमा लगाकर घूमने वाले समाचार पत्र दैनिक जागरण के खिलाफ आरआरसी जारी की। नोएडा स्थित लेबर कोर्ट ने पिछले साल 7 नवंबर को 57 कर्मचारियों के मामले में दैनिक जागरण के खिलाफ आदेश देते हुए 2 माह के भीतर एरियर की बकाया राशि का भुगतान करने का समय दिया था। लेबर कोर्ट ने अपने आदेश में साथ ही कहा था कि इस राशि पर प्रबंधन 7 फीसदी सालाना ब्याज का भी भुगतान करें।

जागण प्रबंधन ने समय सीमा के भीतर भुगतान नहीं किया। लेबर कोर्ट का ये आदेश परिपालन के लिए नोएडा श्रम कार्यालय पहुंचा। जहां पर प्रबंधन ने अपने तर्क रखे, जिनका कर्मचारियों की तरफ से उनके प्रतिनिधि राजुल गर्ग ने जबरदस्त तरीके से खंडन किया। मालूम हो कि राजुल गर्ग ही लेबर कोर्ट में कर्मचारियों का मामला देख रहे हैं। लेबर कोर्ट के आदेशानुसार एरियर की ये राशि 11,59,00,78 रुपये बन रही है। जिस पर उसे 7 फीसदी सालाना ब्याज देने का भी निर्देश है। 


Saturday 4 March 2023

विवाद की कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान कर्मचारी को नहीं किया जा सकता है बर्खास्त

बेंगलुरू। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक कर्मचारी को बहाल करने का आदेश दिया है जिसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था जबकि उसके और कंपनी के बीच औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत एक विवाद चल रहा था।

उच्च न्यायालय ने 20 फरवरी को दिए अपने आदेश में श्रम न्यायालय के एक आदेश को बरकरार रखा और कहा, श्रम न्यायालय ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि उसके समक्ष कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान कर्मचारी को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था, बर्खास्तगी के आदेश के संबंध में कोई औचित्य नहीं बनाया गया है। श्रम न्यायालय सही निष्कर्ष पर पहुंचा है कि बर्खास्तगी अनुचित थी और पिछले वेतन वाले कामगार की बहाली का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज की एचसी एकल-न्यायाधीश पीठ ने यह भी कहा कि जब श्रम न्यायालय के समक्ष कोई विवाद होता है तो उसके पास बर्खास्तगी के आदेशों को रद्द करने सहित सभी मामलों पर निर्णय लेने की शक्तियां होती हैं।

इसमें कहा गया है, जब श्रम न्यायालय के समक्ष विवाद लंबित होते हैं, तो श्रम न्यायालय उससे संबंधित और औद्योगिक विवाद से संबंधित सभी प्रासंगिक मामलों का न्यायनिर्णय कर सकता है, जिसमें बर्खास्तगी के आदेश को रद्द करना, बहाली का निर्देश देना और बकाया वेतन का आदेश देना शामिल हो सकता है।

विवाद WRIT PETITION NO. 28177 OF 2009 (L-TER) शहतूत सिल्क्स लिमिटेड (पहले शहतूत सिल्क इंटरनेशनल लिमिटेड के रूप में जाना जाता था) और एक कर्मचारी एन जी चौडप्पा के बीच था।

चौडप्पा के खिलाफ एक जांच में उन्हें कदाचार (misconduct) का दोषी पाया गया और उन्हें 6 अगस्त 2003 को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। चौडप्पा और बर्खास्त किए गए चार अन्य कर्मचारियों ने इसे श्रम न्यायालय के समक्ष चुनौती दी थी।

लेबर कोर्ट का मामला केवल चौडप्पा के संबंध में चलता रहा। इसने 27 अगस्त 2009 को उनकी बहाली के आदेश देने वाले उनके आवेदन की अनुमति दी। कंपनी ने 2009 में हाईकोर्ट के समक्ष इसे चुनौती दी और अदालत ने 20 फरवरी 2023 को अपना फैसला सुनाया।

फैसले में कहा गया कि जब विवाद लंबित था, तब प्रतिवादी (चौडप्पा) की बर्खास्तगी अधिनियम की धारा 33 की उप-धारा (2) का स्पष्ट उल्लंघन है, जो बर्खास्तगी या सेवामुक्ति के आदेश के बावजूद ऐसे कामगारों को रोजगार में बने रहने का अधिकार देती है। इस तरह की अनुमति मांगे जाने और प्राप्त किए बिना, बर्खास्तगी के आदेश को गैर-स्थायी माना जाएगा और कभी भी पारित नहीं किया जाएगा।

(साभारः एजेंसियां)

Sunday 19 February 2023

दैनिक दिव्य मराठी को सुप्रीम कोर्ट से झटका!



वरिष्ठ पत्रकार सुधीर जगदाले व उनकी टीम का हाईकोर्ट में जमा 1 करोड़ की बकाया राशि को वापस लेने पर रोक


 औरंगाबाद हाईकोर्ट का स्टे आॅर्डर बरकरार !!


जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में डी.बी. कॉर्प को सुप्रीम कोर्ट ने एक झटका दिया है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद में डी.बी. कॉर्प के समाचार पत्र दैनिक दिव्य मराठी के मीडियाकर्मियों के  अदालत में जमा पैसे को निकलाने पर बांबे हाईकोर्ट की औरंंगाबाद खंडपीठ द्वारा लगाई गई रोक को माननीय सुप्रीमकोेर्ट ने अगली तिथि तक बरकरार रखा है।  माननीय सुप्रीमकोर्ट की डबल बेंच ने 13 फरवरी 2023 को जारी अपने आदेश में दिव्य मराठी (डीबी कॉर्प) को औरंगाबाद उच्च न्यायालय में जमा 97 लाख 20 हजार 341 रुपये की राशि निकालने पर रोक लगा दी है (मूल रूप से यह राशि आधी ही है, आधी राशि अभी भी दिव्य मराठी के पास शेष है।  दैनिक दिव्य मराठी के कर्मचारियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सुधांशु चौधरी ने जोरदार तर्क दिया और कहा कि  औरंगाबाद हाईकोर्ट ने तकनीकी आधार पर ही आदेश पारित किया है। मेरिट चेक नहीं हुई। इसके विपरीत, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दृढ़ता से तर्क दिया था  कि योग्यता के आधार पर निर्णय देकर तकनीकी आधार को खारिज कर दिया गया है। डी. बी. कॉर्प के वकील ने तर्क दिया कि राज्य सरकार श्रम पत्रकार अधिनियम की धारा 17 (2) के तहत अपनी शक्तियों को किसी दूसरे को नहीं दे सकती। राज्य सरकार द्वारा बिना अधिकार के 11 मई 2016 को जारी की गई अधिसूचना अवैध है और नागपुर खंडपीठ द्वारा पारित आदेश सही है, मामले को खारिज किया जाना चाहिए। इस पर न्यायाधीश ने कंपनी के वकील से कहा कि चूंकि यह मामला राज्य सरकार का है, इसलिए वे मामले पर उनकी राय सुने बिना कोई आदेश पारित नहीं कर सकते।उसके बाद डी. बी. कॉर्प के वकील ने औरंगाबाद पीठ से सुधीर जगदाले और टीम का बकाया अदालत में जमा पैसा वापस लेने की अनुमति मांगी।  मीडियाकर्मियों  के वकील सुधांशु चौधरी , महेश शिंदे, वात्सल्य वैग्य और प्रशांत जाधव ने इसका कड़ा विरोध किया और स्थगन पर जोर दिया। इस पर माननीय सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच के न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और दीपांकर दत्ता ने अगली तारीख तक स्थगन आदेश पारित किया और प्रतिवादी को नोटिस तामील करने का आदेश दिया।


शशिकांत सिंह

पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी

9322411335

Saturday 11 February 2023

Journalists Thank Dr Sivadasan for Raising the Issue of Journalists in the Parliament

(From left) Parmanand Pandey, Alkshendra Singh Negi, Mahesh Kumar, Dr. V. Sivadasan (beard) and Vivek Tyagi.


New Delhi, 11 Feb. A delegation of the Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) today met the CPI(M) Member of Parliament Dr V Sivadasan here and thanked him for raising the wage board issue of journalists in the Rajya Sabha.  Dr Sivadasan had asked the government about the number of journalists working in print, electronic and online media industry-wise. He also wanted to know what the stage of the constitution of the wage board was and whether the journalists were getting their wages as per the recommendation of the wage board. It is regrettable that on all counts the government has not been able to furnish any convincing reply.

A few years ago, when a similar question was asked about the implementation of the Majithia wage award, the then Labour Minister Santosh Gangwar had replied that some four hundred sixty newspapers had implemented the wage board award but the figure was nowhere near the reality. In fact, even now hardly any newspaper has fully implemented the award. Some twenty thousand newspaper employees have been thrown out of jobs across the country and their only fault has been that they demanded wages according to wage board recommendations from their owners.

The Working Journalist Act covers only print media journalists and non-journalist employees. Those working for Electronic and Web media are not covered under the Act, therefore their wages and other facilities depend on the whims and fancies of the media owners. In some media organisations, the condition of employees is very pathetic, and they are subjected to the worst kind of exploitation. Dr Sivadasan assured the IFWJ delegation that he and his party would continue to support the cause of the working class, but he said that it would gain momentum only when the media persons themselves came forward and led the struggle.

Dr Sivadasn had a lengthy discussion with the delegation about the state of the media industry in the country. He expressed his disappointment that the media employees have, by and large, not been taking part in the struggle of the working class. Among those included in the delegation were Indian Federation of Working Journalists (IFWJ)  Secretary General Parmanand Pandey, Alkshendra Singh Negi and Vivek Tyagi, the President and the General Secretary of the Delhi Union of Working Journalists (DUWJ) respectively and Mahesh Kumar.


-Parmanand Pandey

Secretary-General: IFWJ