Saturday 27 June 2020

कोरोना काल में चली गई एक बेरोजगार पत्रकार की जान



चंद्रशेखर। हमारे अजीज। हम सबके अजीज आज चल बसे। 4 दशक भी जी नहीं पाए। एक पत्रकार की जान चली गयी,  एक बेरोजगार की जान चली गयी। कोरोना काल ने उनसे नौकरी छीन ली थी।

ज्यादा दिन नहीं हुए थे जब एक संस्थान में नौकरी के लिए वे आए थे। उ्न्होंने मदद मांगी थी। किन्ही से कह देने का आग्रह बहुत संकोच करते-करते किया था। मेरी ओर से वह मदद भी नहीं हो पायी।

आप यकीन नहीं करेंगे, मगर यह सच है। लक्ष्मीनगर से चंद्रशेखरजी नोएडा सेक्टर 63 तक लगभग पैदल पहुंचे थे और लौटे भी थे। फोन पर उन्होंने मुझे बताया था कि कहीं एक जगह छोटी दूरी के लिए ऑटो पर बैठे थे। ऑटो वाले एक स्टॉप का किराया भी 50 रुपया मांग रहे थे। दिल्ली-यूपी बॉर्डर लॉक था। सो, पैदल ही चल पड़े थे।

एक तो नौकरी नहीं मिली। दूसरे, लौटने के बाद से ही अस्वस्थ हो गये जैसा कि मेरे एक अन्य मित्र ने आज मुझे बताया। इस बीच जब बीमारी बढ़ने लगी, आशंका होने लगी तो कोरोना का टेस्ट कराया। रिपोर्ट आने में तीन दिन लग गये। तब तक हालत बिगड़ती चली गयी। फिर लोकनायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल में भर्ती हुए। दो दिन पहले उनकी अपने इंडिया न्यूज के सहकर्मी से बात हुई। आज रात करीब 9 बजे मुझे उनके इस दुनिया को छोड़ देने की खबर मिली।

चंद्रशेखर जी ने जी न्यूज, फोकस ग्रुप, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, इंडिया न्यूज में काम किया। बहुत कम तनख्वाह में जीते रहे। देहात की पृष्ठभूमि। शुरुआत पीसीआर में काम करते हुए की। वे बताया करते थे कि अमीष देवगन भी उनके साथ पीसीआर में काम किया करते थे जो आज बड़े एंकर हैं। बाद में वे दोनों ही संपादकीय विभाग से जुड़े। पैकेजिंग के बेहतरीन व्यक्ति थे चंद्रशेखर जी। मगर, यही बात उन्हें सालती भी थी। उनकी लालसा रही कि उनकी पहचान संपादकीय के अच्छे व्यक्ति के रूप में बने। मैंने उनका जो कुछ भी सहयोग किया था, उसे वे बढ़-चढ़कर लोगों को बताया करते थे। यही तो अच्छे व्यक्ति की पहचान होती है।

चंद्रशेखर जी और उनकी पत्नी बस यही दो व्यक्ति उनके परिवार में थे। परिवार से संपर्क की कोशिश में हूं। निर्दयी, निष्ठुर दुनिया से उनका रुखसत होना मुक्ति पाने की तरह है। मगर,  इतना कह भर देने से जिम्मेदारी पूरी नहीं होती।

जो व्यक्तिगत रूप से मदद करने की इच्छा रखते हैं, वे दिवंगत चंद्रशेखर जी की पत्नी के अकाउंट में राशि डाल सकते हैं।

Name - MS Anita Gupta
Account- 6023000100079260
IFSC- PUNB0602300
Mobile number-8447325870

[व़रिष्‍ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्‍लेषक प्रेम कुमार की फेसबुक वॉल से साभार]

Friday 26 June 2020

आज समाज अखबार व इंडिया न्यूज चैनल में भी कोरोना लील रहा नौकरियां

कोरोना काल ने अखबार मालिकों के हाथ में एक ऐसा ब्रह्म अस्त्र दे दिया है जिसे अखबार मालिक अपने कर्मचारियों पर अंधाधुंध चला रहे हैं। देश भर के अखबार मालिक अपने कर्मचारियों की बलि लेने में अब कोई गुरेज नहीं कर रहे हैं। ताजा मामला पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा के बेटे कार्तिक शर्मा के अखबार ‘आज समाज’ और टीवी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में कार्यरत कर्मचारियों के कत्लेआम का है। आज समाज की अंबाला युनिट के कर्मचारियों को जहां पिछले तीन  चार महीने से सैलरी नहीं मिल रही है। वहीं मैनेजमेंट ने उनकी सैलरी में 50 प्रतिशत की कटौती भी कर दी है।

मैनेजमेंट के उच्चपदस्थ सूत्रों की माने तो यह कटौती मार्च महीने से ही लागू कर दी गई है। इसी के साथ पूरे हरियाणा में फैले आज समाज अखबार के रिपोर्टस और स्टिंगर को मुफ्त में काम करने के लिए मौखिक रूप से यह कह दिया है कि अब मैनेजमेंट सैलरी नहीं दे पाएगा, काम करना है तो मुफ्त में करो। साथ ही विज्ञापन की उगाही करो और अपना हिस्सा ले जाओ। यही नहीं अंबाला युनिट में डेस्क पर कार्य करने वाले कई कर्मचारियों और मार्केटिंग से जुडे लोगों को भी घर बैठा दिया गया है। इसी के साथ चंडीगढ़ ब्यूरो ऑफिस में भी पैकिंग शुरू हो गई है। सेक्टर-26 स्थित चैनल और अखबार के कार्यालय को बंद कर दिया गया है, यहां का फर्नीचर व आदि सामान अंबाला युनिट में भेजा जा रहा है। चंडीगढ़ में अब सिर्फ नाम का ही आफिस सेक्टर-17 में बनाया है। यहां भी रिपोर्टस और मार्केटिंग से जुडे लोगों को घर बैठा दिया गया है और यहां तैनात आईटीवी नेटवर्क के संपादक को दिल्ली आफिस अटैच कर दिया गया है।

गौरतलब है कि हरियाणा का नम्बर वन अखबार आज समाज की अंबाला, हिसार और दिल्ली युनिट के दर्जनों कर्मचारियों ने मजीठिया की मांग को लेकर अंबाला, हिसार और दिल्ली की अदालतों में मुकदमें कर रखे हैं। इसी के साथ ही सैलरी न मिलने पर कुछ और लोग भी मुकदमें की तैयारी कर रहे थे। ऐसे में मैनेंजमेंट ने कोरोना के नाम पर लोगों को नौकरी से ही हटाना शुरू कर दिया है। वहीं कार्तिक शर्मा के भाई जेसिका लाल के हत्यारे मनु शर्मा को अच्छे चाल चलन के कारण जेल से रिहा कर दिया गया है। ऐसे में मालिकों की ओर से यह अंदरूनी आदेश आ गया है कि जितने भी मुकदमें मजीठिया व अन्य के चल रहे है उन्हें तत्काल निपटाया जाए। मैनेजमेंट अब मुकदमेंबाजी के चक्कर से दूर होना चाह रहा है। इस संबंध में मजीठिया का केस दायर करने वाले कर्मचारियों से भी मैनेजमेंट की ओर से सम्पर्क शुरू हो गया है। कूल मिलाकर अखबार के कर्मचारियों के लिए यह समय ठीक नहीं चल रहा है। शेष अपडेट के लिए प्रतीक्षा करें।

(चंडीगढ़ से एक पत्रकार की रिपोर्ट)

Thursday 11 June 2020

बिहार से मजीठिया क्रांतिकारी कुणाल प्रियदर्शी को मिली बड़ी जीत,प्रभात खबर को देना होगा 17 लाख रुपये

मजीठिया क्रांतिकारियों के लिए बिहार से बड़ी खुशखबरी आयी है। मुजफ्फरपुर के कुणाल प्रियदर्शी ने ढाई साल की लंबी लड़ाई के बाद आखिर प्रभात खबर (अखबार, कंपनी- न्यूट्रल पब्लिशिंग हाउस लिमिटेड) प्रबंधन को पराजित करने में सफलता पायी है। यह बिहार के मजीठिया क्रांतिकारियों में पहली जीत है। मुजफ्फरपुर लेबर कोर्ट ने कुणाल के पक्ष में फैसला सुनाते हुए प्रभात खबर प्रबंधन को दो महीने के भीतर 17 लाख रुपये आठ प्रतिशत सालाना की दर से  ब्याज सहित भुगतान का आदेश दिया है। ब्याज की राशि 03 दिसंबर, 2017 से तब तक जोड़ी जायेगी, जब तक कंपनी पूरी राशि का भुगतान नहीं कर देती।
कुणाल की यह जीत इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि बिहार के एक बड़े वकील के जीत की संभावना से इनकार कर दिये जाने के बाद उन्होंने न सिर्फ लड़ाई खुद ही लड़ी, बल्कि बिहार में लेबर कानून के बड़े जानकार माने जाने वाले एक बड़े वकील को पराजित भी किया।पर, ऐसा नहीं है कि उन्होंने इसके लिए किसी वकील से मदद नहीं ली। करीब एक हजार किलोमीटर दूर दिल्ली में रह रहे वकील हरीश शर्मा ने समय-समय पर उनकी मदद की, जिससे की लडाई आसान होती चली गयी।यहां ध्यान देने वाली बात है कि कंपनी की ओर से जिस बड़े वकील ने बहस की, वे ही बिहार में कमोबेश सभी अखबार प्रबंधन का पक्ष मजीठिया केसों में रख रहे हैं।ऐसे में यह जीत बिहार के सभी मजीठिया क्रांतिकारियों के लिए एक टॉनिक की तरह है।

नवंबर, 2017 में शुरू हुई लड़ाई

कुणाल की लड़ाई नवंबर, 2017 में शुरू हुई।मजीठिया वेज बोर्ड की मौखिक डिमांड करने पर अखबार प्रबंधन की ओर से उन्हें लगातार प्रताड़ित किया जाने लगा। तब 03 दिसंबर, 2017 को उन्होंने न सिर्फ न्यूज राइटर के पद से इस्तीफा दिया, बल्कि मजीठिया वेज बोर्ड की डिमांड भी की। अपने त्यागपत्र में उन्होंने प्रताड़ना की पूरी कहानी का जिक्र भी किया।मजीठिया का लाभ नहीं मिलने पर कुणाल ने डीएलसी मुजफ्फरपुर के समक्ष लिखित शिकायत दर्ज करायी।अप्रैल 2018 में डीएलसी ने यह केस श्रमायुक्त बिहार के यहा अग्रसारित कर दिया। अगले छह महीने तक जेएलसी-2 ने मामले की सुनवाई की व समझौता नहीं होने पर मामले को लेबर कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया। जुलाई, 2019 में लेबर कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई।आखिर 08 फरवरी, 2020 को कोर्ट ने कुणाल के पक्ष में फैसला जारी कर दिया. हालांकि, लॉकडाउन के कारण इसकी घोषणा 06 जून को हुई।


बहस के दौरान कंपनी के वकील ने एमडी व चीफ ह्यूमन रिसोर्स ऑफिसर को व्यक्तिगत तौर पर पार्टी बनाये जाने का दावा किया. पर, कोर्ट ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। अपने जजमेंट में कोर्ट ने लिखा है कि डब्ल्यूजे एक्ट अखबार में काम करने वाले वर्किंग जर्नलिस्ट व अन्य कर्मियों से जुड़ा है। ऐसे में कोई व्यक्तिगत कैपेसिटी में पार्टी बनाया ही नहीं जा सकता. पार्टी जब भी बनेगा तो वह न्यूजपेपर स्टेबलिशमेंट ही होगा। यही नहीं कोर्ट ने कंपनी की ओर से सेक्शन 20(जे) के तहत भरे गये डॉक्ट्रीन ऑफ वेभर (डीओडब्ल्यू) को भी फर्जी पाया। साथ ही साफ किया कि यह तभी मान्य होगा, जब कर्मी को वेज बोर्ड से बेहतर सैलरी मिल रही हो।

कोर्ट वैलिडिटी तय नहीं करती, रेफरेंस पर फैसला देती है

बहस के दौरान कंपनी के वकील ने रेफरेंस की वैधता पर सवाल उठाये। इस पर कोर्ट ने एक अहम फैसला दिया, जो कि अन्य क्रांतिकारियों के लिए भी फायदेमंद हो सकता है. कोर्ट ने नेशनल इंजीनियरिंग इंडस्ट्रीज लिमिटेड व राजस्थान सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा है कि लेबर कोर्ट या इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल को रेफरेंस की वैधता तय करने का अधिकार नहीं है।वे सिर्फ रेफरेंस के बिंदू पर ही फैसला दे सकते हैं। फिलहाल इस फैसले से मजीठिया क्रांतिकारियों में खुशी की लहर है।


शशिकांत सिंह
पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी
9322411335

गर्भवती नवोदय टाइम्स का गर्भ गिरा, छह मीडियाकर्मी बाहर


- नीशीथ जोशी जैसे दिग्गज पत्रकार भी कैल्शियम और प्रोटीन नहीं जुटा सके
- पंजाब केसरी उत्तराखंड का तीन साल में ही दम निकला

उत्तराखंड में नवोदय टाइम्स का गर्भ गिर गया है। पिछले 36 महीने से गर्भ में पल रहा यह अखबार देहरादून से प्रकाशित तो नहीं हो सका, लेकिन प्री-मैच्योर बेबी के तौर पर कोरोना काल में इसका गर्भ गिर गया। भविष्य का नवोदय और मौजूदा पंजाब केसरी अखबार ने देहरादून में अपना प्रकाशन शुरू करने से पहले ही छह मीडियाकर्मियों को निकाल बाहर किया है। छंटनी में दो बहुत ही अच्छे रिपोर्टर अमित ठाकुर और दीपक फरस्र्वाण भी शामिल हैं। दीपक की दमदार रिपोर्टिंग और अव्यवस्था पर बेखौफ हमला शायद प्रबंधन को नहीं भाया। सिटी चीफ अमित ठाकुर भी अच्छे पत्रकारों में शुमार हैं।

अक्सर अच्छे पत्रकारों को ही निकाला जाता है क्योंकि वो चाटुकारिता से दूर रहते हैं। अमित और दीपक को यह इनाम मुबारक। दरअसल, आज अच्छे पत्रकारों की किसी को भी जरूरत नहीं है। न संस्थान को, न संपादक को और न ही नता को। अमित और दीपक के अलावा पंकज भट्ट, गजे सिंह बिष्ट, संतोष बिष्ट और सुनील पांडे छंटनी के शिकार हुए हैं। सूत्रों का कहना है कि बाजार में यह संदेश गया है कि देश के नामी पत्रकारों में शुमार नीशीथ जोशी जी 20-25 लोगों की टीम भी नहीं संभाल सके। हालांकि यह बाजारवाद का समय है। सभी संस्थान ऐसा कर रहे हैं।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

Wednesday 10 June 2020

दैनिक जागरण, गया संस्करण के डेढ़ दर्जन कर्मियो से प्रबंधन ने इस्तीफा लिया, फूट-फूट कर रोने लगे कई कर्मी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लाॅकडाउन में नौकरी से नहीं निकालने का निर्देश की धज्जियां दैनिक जागरण, बिहार का प्रबंधन उड़ा रहा है।

महाप्रबंधक एस एन पाठक, जीएम,वित्त बिनोद कुमार शुक्ला और आईटी इंजिनियर राजेश वर्मा मंगलवार को डेढ़ दर्जन कर्मियो के लिए अमंगलकारी साबित हुए। दैनिक जागरण, पटना के  प्रबंधन से जुड़े तीनों अधिकारियों ने एडिटोरियल के मंगलानंद मिश्रा, अखिलेश यादव,पंकज कुमार और मनीष कुमार से इस्तीफा ले लिया।

टीपीसी के आईटी इंजिनियर संजय कुमार सिंह से इस्तीफा देने को कहा गया।संजय सिंह ने इस्तीफा दे दिया। वहीं, टीपीसी के तीन अन्य कर्मियों क्रमशः धर्मेन्द्र,रंजीत सिंह और एक अन्य कर्मी को पटना ट्रांसफर कर दिया गया।

गया यूनिट के मशीन मैन चंदन,पप्पू, विनोद भारती, देवेंद्र और गुंजन को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। सभी से इस्तीफा ले लिया गया।प्रसार शाखा के योगेश प्रसाद यादव उर्फ मुंशी जी और स्टोर के इंद्रदेव को भी इस्तीफा देने को कहा गया। दोनों ने इस्तीफा दे दिया। वहीं, बिजली शाखा के संजय सिंह सहित करीब आधा दर्जन कर्मियों की तलाश हो रही थी। लेकिन वो सभी ड्यूटी पर नहीं मिले। चर्चा है कि जिन्हें खोजा जा रहा था। उनमें कई ऐसे थे।जो पटना से आए अधिकारियों की मंशा जानकर कार्यालय से गायब हो गए।

वहीं, इस्तीफा देने वाले कई कर्मियों ने बताया कि एक ओर इस्तीफा लिखवाया जा रहा था। वहीं, दूसरी ओर प्रबंधन के द्वारा 15 से 30 हजार रुपए का चेक पीड़ित कर्मियों को दिया गया।पीएफ, ग्रेच्यूटी और अन्य सेवा लाभ की राशि का कोई उल्लेख प्रबंधन द्वारा नहीं किया गया।
कई कर्मियों ने प्रबंधन के तुगलकी फरमान के खिलाफ मजीठिया वेज बोर्ड की अनुशंसा के आलोक में अदालत का शरण लेने का मन बना लिया है।


फूट-फूट कर रोने लगे कई कर्मी

जबरन इस्तीफा लेने से परेशान कई कर्मी फूट-फूटकर रोने लगे। अधिकारियों के समक्ष अपनी बेबसी का हवाला देते हुए कहा कि जवानी तो नौकरी के खुमार में निकल गया।अब परिवार और बाल-बच्चों की जिंदगी को संवारने का समय आया तो सड़क   पर फेंक दिया।

वहीं,कई कर्मचारियों ने अधिकारियों को यह भी कहा कि भगवान के घर देर है अंधेर नहीं।जिस तरह से हम लोगों के साथ नाइंसाफी किए हों एक न एक दिन हम सब का हाय तुम्हें और मालिकों को भी ले डूबेगा।
कभी बिहार में नंबर वन की रेस में रहा दैनिक जागरण अब चौथे पायदान पर ऐसे ही नहीं पहुंच गया। इसके पीछे भी दैनिक जागरण को नंबर एक की रेस में पहुंचाने वाले कर्मचारियों का हाय कंपनी को लगा है। ‌जिन्हें कंपनी ने हटाया था।

(Source: social media)

Wednesday 3 June 2020

दैनिक जागरण नोएडा में बड़े पैमाने पर छंटनी होगी, कोरोना से सील हुआ आफिस

दैनिक जागरण से कई बुरी खबरें आ रही हैं. बताया जाता है कि नोएडा आफिस और नोएडा से प्रकाशित संस्करणों से संबद्ध कुल 125 लोगों की लिस्ट बनाई गई है, जिनकी छंटनी होनी है। इस लिस्ट में सभी विभागों के लोग शामिल हैं। इस सूची को लेकर कर्मचारियों में हलचल है। हर कोई ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि उसका नाम इस सूची में न हो।

सूत्रों का कहना है कि दैनिक जागरण नोएडा के मार्केटिंग के लोगों को 30 जून को देवेंद्र कुमार ने नोटिस देकर लैपटॉप ले लिया है. इन सभी को 15 जून को आखिरी कार्य दिवस बताया गया है।

उधर, खबर है कि कोरोना के चलते दैनिक जागरण के राष्ट्रीय ब्यूरो कार्यालय को सील कर दिया गया है। यहां एक कर्मचारी कोरोना पाजिटिव मिला है।  INS में जागरण कार्यालय सील होने के बाद नेशनल ब्यूरो वाले अब अपने अपने घरों से काम कर रहे हैं।

[साभार भड़ास4मीडिया.कॉम]

दस मीडिया समूहों को बॉम्बे हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया

पत्रकारों के वेतन कटौती और छंटनी के खिलाफ याचिका… बॉम्बे हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य को भी नोटिस जारी किया

बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार 3 जून को केंद्र, राज्य और दस मीडिया हाउसों को कोविड-19 महामारी के दौरान पत्रकारों / गैर-पत्रकार कर्मचारियों पर वेतन में कटौती करने के “गैरकानूनी और मनमानी” आदेशों के विरुद्ध नोटिस जारी करके जवाब तलब किया है।

न्यायमूर्ति एसबी शुकरे और न्यायमूर्ति ए एस किलोर की पीठ ने जनहित याचिकाओं पर कर्मचारियों की छंटनी या उनका वेतन काटने से रोकने के लिए मीडिया समूहों को निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सभी उत्तरदाताओं को नोटिस जारी किया और चार सप्ताह में जवाब मांगा है। पीठ महाराष्ट्र यूनियन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स और नागपुर यूनियन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

याचिकाकर्ताओं ने केंद्र सरकार और महाराष्ट्र राज्य के अलावा, इंडियन न्यूज़पेपर सोसाइटी, विदर्भ दैनिक समाचार पत्र, लोकमत मीडिया, टाइम्स ऑफ़ इंडिया / महाराष्ट्र टाइम्स, दैनिक भास्कर, सकाल मीडिया, इंडियन एक्सप्रेस / लोक सत्ता, तरुण भारत, नवभारत मीडिया समूह, देशोन्नति समूह और पुण्य नगरी समूह को मामले में उत्तरदाता बनाया है। एमयूडब्लूजे के लिए वकील श्रीरंग भंडारकर, एनयूडब्लूजे के लिए वकील मनीष शुक्ला, केंद्र के लिए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल यूएम औरंगाबादकर और राज्य के लिए सरकारी वकील एसवाई देवपुजारी सुनवाई के दौरान उपस्थित हुए।

याचिका के अनुसार ऐसे समय में प्रधानमंत्री द्वारा कर्मचारियों को आजीविका से वंचित ना करने की अपील और मार्च में श्रम मंत्रालय की एडवाइजरी नजरअंदाज करते हुए पत्रकारों को एकतरफा बर्खास्त किया जा रहा है, इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया है, सेवा शर्तों में बदलाव के लिए तैयार किया जा रहा है, वेतन कटौती के लिए मजबूर किया जा रहा है और सेवा की स्थिति में परिवर्तन को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया है। वेतन आयोग को पूरी तरह अप्रासंगिक किया जा रहा है। नियमित या स्थायी कर्मचारियों को कांट्रेक्ट (सीटीसी) में परिवर्तित किया जा रहा है। इसके अलावा, समाचार पत्रों के प्रबंधन की ओर से से कर्मचारियों बर्खास्त करने, दूरदराज के स्थानों पर स्थानांतरण आदि की धमकी दी जा रही है।

याचिकाकर्ताओं ने प्रतिवादी मीडिया समूहों के लिए काम करने वाले कर्मचारियों की छंटनी और वेतन कटौती के विशिष्ट उदाहरणों का भी उल्लेख किया है। याचिका में कहा गया है कि नियोक्ताओं / समाचार पत्रों के मालिकों का यह कार्रवाई अमानवीय और गैरकानूनी है तथा भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि कोरोनावायरस महामारी संकट की आड़ में वे नियमित पत्रकार / गैर-पत्रकार कर्मचारियों की सेवा की शर्तों को बदल रहे हैं और उन्हें अनुबंध (कॉस्ट टू कंपनी) के आधार पर फिर से नियुक्त करने की पेशकश कर रहे हैं।

वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.

[साभार भड़ास4मीडिया.कॉम]