Sunday 31 May 2020

मजदूरों, श्रमिकों और रोज कमाने वालों के हित में सरकार को कुछ सुझाव


1- केंद्र सरकार सभी मजदूरों और कामगारों, फेरीवालों तथा रिक्शा ठेला चलाने वालों का चाहे वह किसी भी फील्ड में हो कैम्प लगाकर निशुल्क रजिस्ट्रेशन करके उनका पूरा डेटा और बैंक डिटेल अपने पास रखे तथा जिनका बैंक खाता नहीं है उनका खाता अनिवार्य खुलवाए।

2- सरकार आधार कार्ड की तरह इनको एक निशुल्क डिजिटल कार्ड दे और ये मजदूर, रिक्शा वाले ठेला वाले, हॉकर, श्रमिक जिस राज्य में काम कर रहे हैं।उ सका डेटा राज्य सरकार के श्रम विभाग में हो।


3- बिना इस डिजिटल कार्ड के कार्य करने की अनुमति न दी जाए जिससे मजबूरी में ये सभी लोग कार्ड बनवाएं। और श्रम निरीक्षक कल कारखानों, बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन पर जाकर इस बात की जांच करें कि बिना कार्ड के कोई वर्कर काम तो नही कर रहा है। अगर कर रहा है तो उसके मालिक और वर्कर दोनों को फाइन लगाएं। जिससे वर्कर कार्ड बनवा लें।

4- लॉकडाउन जैसे हालात पैदा होने पर सीधे इन मजदूरों, रिक्शावाले ठेला वाले, फेरी वालों के खाते में 15-15 हजार रुपये तीन महीने के लिए ट्रांसफर कर दिए जाएं। ताकि कोई भी मजदूर या रिक्शा ठेला वाले, फेरी वाले उन तीन महीने में घर से बाहर न निकले। देखिए कोई मजदूर बाहर नहीं निकलेगा। फिर अगर वह बिना ठोस कारण के निकल रहा है तो उसे फाइन लगाया जाए।

5- सभी लोगों को कोरोना की निशुल्क जांच कराना अनिवार्य किया जाए और इसके लिए निजी अस्पतालों और स्वयंसेवी संस्थाओं, नगर सेवक और ग्राम प्रधानों की मदद से कलेक्शन सेंटर सभी स्कूलों में बनाया जाए।

6- जिन कर्मचारियों को उनके मालिकों ने वेतन नहीं दिया या वेतन काटा उनसे राज्य सरकार का श्रम विभाग उनकी तीन साल की बैलेंसिट और प्रॉफिट एन्ड लॉस एकाउंट और कर्मचारियों की लिस्ट मंगाए और वास्तव में वह कंपनी घाटे में जा रही है तो उससे कर्मचारियों की पूरी लिस्ट और कर्मचारियों का बैंक डिटेल लेकर कर्मचारियों के खाते में सरकार उनकी सेलरी का पैसा तीन महिने ट्रांसफर करें और कंपनी मालिक से पांच साल में इसकी बिना ब्याज के इसकी वसूली करे।

7- सभी छोटी बड़ी कंपनियों को यह अनिवार्य किया जाए कि बिना नियुक्ति पत्र, आईकार्ड दिए आप किसी कर्मचारी को नहीं रख पाएंगे और नियुक्ति पत्र की डिजिटल प्रति राज्य सरकारों के श्रम विभाग को भी देना अनिवार्य होना चाहिए। अगर कंपनी मालिक ऐसे नहीं करते तो उन्हें भारी जुर्माना लगाया जाए।

8- किसी कर्मचारी का ट्रांसफर टर्मिनेशन या प्रमोशन होता है तो उसकी भी सूचना कंपनी अधिकारियों को श्रम विभाग को देना अनिवार्य हो ताकि श्रम विभाग के पास पूरा डेटा रहे।

9- लॉकडाउन के दौरान जितने कर्मचारियों की छंटनी हुए है उन्हें सरकार कुछ राहत दे तथा प्रयास करे कि जिन कंपनियों ने उनकी छटनी की है उन्हें वापस काम पर रखें अगर वास्तव में वह घाटे में नहीं जा रही हैं तो।

10- सरकार फ्रीलान्स कार्य करने वालों, मार्केटिंग वालों और छोटे दुकानदारों का भी अलग कटेगरी में रजिस्ट्रेशन करे और उन्हें राहत दे।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई कार्यकर्ता
9322411335

Saturday 30 May 2020

मुट्ठी भर को छोड़ दें तो आज भी अधिकांश पत्रकार ईमानदार


- कारपोरेट जर्नलिज्म के खतरे और चुनौतियां भी हैं बहुत
- ऐसे में क्यों कहते हो, मीडिया बिकाऊ है!

आज सुबह राष्ट्रीय सहारा देहरादून के एक साथी का फोन आया। पूछा, यार वो राशन बांट रहे थे न तुम। मुझे भी दिला दो। बात मजाक में थी लेकिन मर्म सीधा सा था कि सहारा ने अप्रैल माह का वेतन अब तक नहीं दिया। पिछले छह साल से सहारा में ऐसा ही हो रहा है। दिल्ली पंजाब केसरी के फोटो जर्नलिस्ट के.के. शर्मा और आगरा दैनिक जागरण के पंकज कुलश्रेष्ठ का कोरोना के कारण निधन हो चुका है। देश भर में कई पत्रकार, छायाकार और अन्य मीडियाकर्मी कोरोना महामारी के बीच भी डटे हुए हैं। उनके पास न पीपीई किट है, न अच्छे मॉस्क और न लंबे माइक। हर पल कोरोना का संकट और उससे भी अधिक नौकरी जाने का भय। देश के सभी प्रमुख न्यूजपेपर मालिकों ने सबसे पहले इन्हीं सड़क पर फिरने वाले पत्रकारों का कत्लेआम किया।

सैकड़ों पत्रकारों और मीडियाकर्मियों को केवल फोन से ही सूचना मिली कि कल से आफिस मत आना। इनमें नवभारत टाइम्स, हिन्दुस्तान समेत कई बड़े अखबार शामिल हैं।

ये पत्रकार कौन हैं? क्या बेईमान हैं? क्या ग्लेमर के कारण? क्या उन्होंने मिशनरी बनने की शपथ ली है? आखिर क्यों चुनते हैं ये वो पेशा? कई सवाल जनमानस के मन में होते हैं। लेकिन मेरा मानना है कि पत्रकार वो होते हैं जिनके जज्बात होते हैं, दूर तक देखने और जूझने की ताकत होती है। जिनके मन में आग होती है, वही पत्रकार होते हैं।

एक शब्द सीधा दिल को चुभता है कि मीडिया बिकाऊ है। मैं कहता हूं, महज दस प्रतिशत पत्रकार ही बिकाऊ होते हैं लेकिन 90 प्रतिशत ईमानदार हैं। हां, इतना जरूर है कि इन ईमानदारों की कमान बेईमानों के पास होती है। तो क्या ये कसूर ईमानदार पत्रकारों का है? या व्यवस्थागत खामियां का या प्रबंधन के लालच का।

आज पत्रकारिता के अनेकों जोखिम हैं। सरकार बेवजह केस कर देती है। जेल भेज देती है। रासुका, आपदा, यूएपीए आदि सब कानून हम पर भी लागू होते हैं यानी पत्रकार न हुए गैगस्टर या बदमाश हो गए। हम पर नेता और माफिया हमला कर देते हैं। जान तक ले लेते हैं। पिछले कुछ समय से पत्रकारों पर जानलेवा हमलों की संख्या तेजी से बढ़ी है। चार-पांच साल में देश में 70 से ज्यादा पत्रकारों की हत्याएं हो चुकी हैं। यदि गौरी लंकेश की बात छोड़ दी जाएं तो देश में किसी पत्रकार की हत्या पर कहीं चूं तक नहीं हुई। यदि नेता और माफिया छोड़ दें तो नक्सली मार देते हैं। पत्रकार अच्युतानंद साहू भी नक्सलियों के हमले के शिकार हो गए थे।

इस सबके बावजूद अधिकांश पत्रकार निडर, ईमानदार और स्वाभिमानी हैं। वो भूखें रह जाएंगे पर किसी से कुछ न कहेंगे। आरएनआई ने पिछले दो माह के आंकड़े जारी कर कहा है कि कोरोना के कारण हिन्दी मीडिया को 4500 करोड़ का नुकसान हुआ है। और अगले सात महीने तक यह नुकसान बढ़कर ढाई लाख करोड़ तक हो सकता है। यानी मीडियाकर्मियों की नौकरी आगे भी खतरे में ही है।

लॉकडाउन के दौरान देखते ही देखते मीडिया में पत्रकारों का कत्लेआम शुरू हो गया और आज तक जारी है लेकिन मजाल कया है कि केंद्र सरकार ने एक भी कदम उठाया हो। कुछ एक पत्रकार संगठनों ने भी सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर को चिट्ठी लिख कर इतिश्री कर ली। न जनता और न नेता, न अफसर, कोई पत्रकारों के हितों की बात नहीं करता। यह हम पत्रकारों की नियति है कि हम दूसरों के दुख-दर्द का ढिंढोरा जग में पीटते हैं और खुद गुप-चुप अपना दुख सह लेते हैं। फिर ऐसे में क्यों कहते हो, कि मीडिया बिकाऊ है।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

Hindi Journalism is to Emerge Strong after Corona Time

Lucknow May 30. Indian federation of Working Journalists (IFWJ) today organised a Webinar on ‘Hindi journalism: Future and its Challenges’ on the occasion of Hindi Patrakarita Diwas. All speakers were of the view that while the media as a whole is passing through the economic recession, Hindi media like others has also been very badly hit during the Corona time. Hundreds of media houses have pulled down their shutters and thousands of employees have either lost their jobs or their wages have been drastically reduced.

The latest issue of the Hindi monthly ‘Media Manch’ being published from Lucknow for the last twenty-two years was also released on this day. The IFWJ Vice President Hemant Tiwari told that the Media Manch is distinct from other newspapers and magazines because it is not brought out by any industrial house but by a dedicated journalist T B Singh. The magazine is closely associated with the problems of the public. In the present issue itself, it has highlighted the difficulties and problems of the migrant workers. Tiwari said that the IFWJ is the only organisation of journalists, which has organised three Webinars in the month of May. The first was on International Labour Day, the second was on May 3 to celebrate the World Journalism Day and this is the 3rd in the series when have assembled to rededicate ourselves for the cause of Hindi journalism. Speaking on the occasion Senior journalist Rajeev Ojha said that Hindi has very big reach as it is one of the three big languages of the world.

Its market is expanding very rapidly and hopefully, the new generation will pull the Hindi journalism out of the economic crisis that it is facing today.

IFWJ Vice President KM Jha deplored that many media houses have been using the Corona as a pretext to retrench the employees and thereby adding their difficulties and sufferings. The editor of the Hindi daily Aaj Samaj, Ajay Shuka said that Hindi journalism will become strong by espousing the truth and maintaining its credibility. The editor of Dainik Bhaskar in Mumbai Vijay Singh said that the role of Hindi journalism in Corona time has been excellent and praiseworthy and it has not only scotched the rumours spread by social media but also-provided correct information to the public, which has been appreciated by everybody. Devkinandan Mishra of Rashtriya Sahara said that it is an undeniable fact that now journalism has become a force to reckon with and nobody can ignore it. Gone are the days when the politicians and authorities used to conceal their misdeeds by showering favours on the select media houses and persons but now it is very difficult to manage it, thanks to the phenomenal growth of the digital media.

MS Kanchan Srivastava who has been associated with many Hindi and English newspapers and magazines said that the economic aspect of Hindi journalism has always been weak even before the Corona. She said that it has been a tragedy that Hindi journalists have been paid less than others despite their better performance. This must be changed to ensure the quality and credibility of Hindi journalism. IFWJ Secretary Siddharth Kalhans, hosted the Webinar and threw light on the significance of the Hindi Patrakarita Diwas to remember the sacrifices of our ancestors, who encouraged us to firmly work in the service of Hindi journalism. The editor of Kaimur Times, Vijay Shankar Chaturvedi, who has been raising the issues of Adivasis through his magazine congratulated everybody on the Hindi Patrakarita Diwas. Shri Chaturvedi has been working for the development of Hindi journalism from various international fora.

IFWJ Secretary-General Parmanand Pandey said that the scope and acceptability of Hindi journalism are growing day by day.

He said that we must be obliged to non-Hindi speaking journalists like Baba Vishnu Rao Paradkar, Rajaram Khadilkar,

Laxminarayan Garde and Vidyabhaskar etc.  who shaped Hindi journalism in its initial years. Among others who participated in the Webinar was Dada Hemant Shukla, Rajesh Mishra, Santosh Gupta, Ck Pandey, Mikul Mishra, Sudhanshu Kumar (Bihar) and

Ajay Trivedi ( UP).

हिंदुस्तान टाइम्स में भयानक ‘कत्लेआम’, कई संपादकों समेत 150 फायर, दो एडिशन बंद


शोभना भरतिया के मालिकाना हक वाले अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स और बिजनेस अखबार मिंट से बड़ी और दुखद खबर आ रही है. यहां से डेढ़ सौ से ज्यादा कर्मियों की छंटनी किए जाने की सूचना है। कुल स्टाफ का 27 परसेंट छंटनी का शिकार हुआ है।

बताया जा रहा है कि एचटी प्रबंधन ने एक सर्वे एजेंसी की सेवाएं ली थी और उसकी सलाह पर ये छंटनी की है। छंटनी के दायरे में एचटी और मिंट दोनों अखबार हैं। मिंट अखबार भी शोभना भरतिया का है जो अंग्रेजी बिजनेस डेली है।

बताया जा रहा है कि हिंदुस्तान टाइम्स की मैनेजिंग एडिटर सौम्या भट्टाचार्या को भी फायर कर दिया गया है।

सीनियर एडिटर्स पूनम सक्सेना, मंजुला नारायण, पदमा राव पर भी गाज गिराए जाने की सूचना है। हालांकि पदमा राव ने एक पोस्ट लिखकर ये बताया है कि उन्हें हटाया नहीं गया है बल्कि उन्होंने खुद हफ्ते भर पहले रिजाइन दे दिया है।

देखें पदमा राव की एफबी पोस्ट…

उधर, पता चला है कि हिंदुस्तान टाइम्स ने दो एडिशंस भी बंद कर दिए हैं। पटना और पुणे संस्करणों की तालाबंदी की खबर है। चर्चा है कि नोएडा और गुड़गांव एडिशंस भी बंद किए जा सकते हैं।

कोरोना व लाकडाउन के चलते प्रिंट मीडिया में चौतरफा फायर जारी है। हर मीडिया हाउस छंटनी व बंदी की राह पर है। एचटी में इतने बड़े पैमाने पर हुए ‘कत्लेआम’ से मीडियाकर्मियों में दहशत हैं।

[साभार: भड़ास4मीडिया.कॉम]

Thursday 28 May 2020

दुखद खबर: डीडी न्यूज दिल्ली के 50 वर्षीय कैमरामैन की कोरोना से मौत

- निजी अस्पताल की लापरवाही
- डीडी न्यूज के स्टाफ की भी होगी टेस्टिंग

कोरोना के इस संकट काल में मीडिया के लिए दुखभरी खबर है। डीडी न्यूज दिल्ली के 50 वर्षीय कैमरामैन योगेश कुमार का निधन मंगलवार को fortis हॉस्पिटल शालीमार बाग में हो गया। पहले यह बताया गया था कि उनकी मौत हार्ट अटैक से हुई लेकिन जांच में उन्हें कोरोना पाजिटिव पाया गया। परिजनों का कहना है कि उन्हें 2 दिन से गले में खराश थी और सीने में अचानक तेज दर्द होने पर fortis शालीमार बाग़ एक निजी अस्पताल में दाखिल कराया गया था जहां के डाक्टरों ने कोविड-19 का शक होने के चलते उन्हें एडमिट नहीं किया और डॉ की लापरवाही के चलते उनका निधन हो गया।

उनके अनुसार योगेश कुमार 21 मई को डीडी न्यूज गए थे और उसके बाद से ही उनकी तबीयत खराब हो गई थी वह अपने पीछे 21 वर्षीय अध्यनरत पुत्री और 18 वर्षीय पुत्र को छोड़ गए हैं। वहीं उनके परिजनों के साथ ही आफिस के उन लोगों से भी संपर्क किया जा रहा है जो उनके संपर्क में आए थे। कोरोना से कैमरामैन की मौत से डी डी न्यूज के साथ साथ अन्य संस्थानों में कार्यरत उन कर्मचारियों में डर का माहौल है जो वर्षों से काम करने के बाद भी अभी तक परमानेंट नहीं किए गए हैं और न ही उनका कोई बीमा ही हुआ है। ऐसे में बीमार होने पर ना तो सरकार उनकी जिम्मेदारी लेगी ना ही संस्थान।

वैसे ये खबर पूरी मीडिया में फ़ैल चुकी है, मगर सरकारी दबाव और रिपोर्ट सार्वजानिक न होने की वजह से कोई कुछ लिखने और बोलने से डर रहा है।

(एक साथी की रिपोर्ट के आधार पर) 

Wednesday 27 May 2020

IFWJ Expresses Dismay over Arbitrary Sacking of Media Employees

Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) is shocked and dismayed at the bloodbath in many newspapers in the time of Coronavirus. The Hindustan Times, considered to be one of the wealthiest newspapers of the country, has sacked more than 150 employees from its Delhi office. It is reported that its management is going to pull down the shutters of the Patna and Pune editions. Another top newspaper, the Times of India, has also taken the recourse of retrenching the employees on a very large scale and for closing some of its editions. Many newspapers like Dainik Bhaskar and Rajasthan Patrika have adopted the dirtiest possible tricks to remove the employees without even paying them their legitimate dues.

In a statement, the IFWJ President BV Mallikarjunaih, Vice-Presidents, Hemant Tiwari and Keshab Kalita have asked the governments of Delhi, Assam, Maharashtra and Rajasthan to intervene forthwith so that jobs of the journalists and non-journalists can be saved at the time of the terrible Pandemic. It is highly distressing that a newspaper like ‘The Telegraph’ of the ABP Group, which claims to be the leader of righteousness (?) has asked all the employees of its Guwahati edition to resign to be effective from 31st May. This newspaper claims to have the fifth-highest readership in the country. Similarly, another popular Assamese weekly ‘Sadin’ of Pratidin group has laid off most of its employees by giving a paltry compensation of one month’s salary.

IFWJ has called upon the leaders of all political parties to exert pressures on the governments to take stern action against the cruelty of media houses, who are terminating the services of employees by throwing the labour laws to the wind without any qualms and compunctions. .

Parmanand Pandey

Secretary-General: IFWJ

Saturday 23 May 2020

'जागरण' की खबरें चुरा कर निकल रहा है 'यशोभूमि'



हमारे देश में 'नंबर वन' होने का दावा कौन-सा अखबार नहीं करता है? कोई राज्य में शीर्ष पर होने का दावा करता है तो कोई शहर में, जबकि देश में भी अपने आप को नंबर वन बताने के लिए अखबारों में होड़ लगी रहती है... आश्चर्य है कि अपने दावे को मजबूती प्रदान करने के लिए ये अखबार जहां अनजानी-सी भी एजेंसियों की सर्वे रिपोर्ट का हवाला दे देते हैं, वहीं उसके आधार पर अपने ही अखबारों में खुद के नंबर वन होने का विज्ञापन भी बड़ी बेशर्मी से प्रकाशित करते हैं!

इसलिए हम यहां पर सबूत के साथ जो खबर देने जा रहे हैं, वह पाठकों की आंखें खोलने के लिए पर्याप्त तो है ही, बहुत महत्वपूर्ण भी है... जी हां, मुंबई में नंबर वन होने का दावा करने वाला 'दैनिक यशोभूमि' नामक समाचार-पत्र इन दिनों बड़ी निर्लज्जता के साथ उस 'दैनिक जागरण' की खबरें चोरी करके प्रकाशित कर रहा है, जो स्वयं को भारत का नंबर वन अखबार बताता है!

जैसा कि आपको पता ही है, वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के प्रभाव को रोकने के लिए सम्पूर्ण राष्ट्र में लाकडाउन है, जिसके चलते कई अखबारों का प्रकाशन बंद है तो प्रकाशित हो रहे ज्यादातर अखबारों के कर्मचारियों के लिए वर्क @ ह़ोम लागू है... 'यशोभूमि' भी उन्हीं में से एक है, जिसका दफ्तर कुछ  समय पहले ही मध्य मुंबई से शिफ्ट होकर नवी मुंबई चला गया है! जाहिर है कि लाकडाउन के इस दौर में दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले स्टाफ का दफ्तर पहुंचना आसान नहीं है, फिर भी 'यशोभूमि' इस हालात में एक तीर से कई निशाने साध रहा है... अपने कर्मचारियों को कम करने की शरारत से बाज नहीं आ रहा है!

संस्थान के नजदीकी लोगों द्वारा प्रबंधन से संपर्क करने पर टका-सा जवाब दे दिया जाता है कि अभी आने की जरूरत नहीं है, पर यदि कोई दफ्तर में आना ही चाहे तो उसके लिए प्रबंधन का स्पष्ट आदेश है- 'आ जाओ, मगर लिख कर देना पड़ेगा कि यदि 'कुछ' हुआ तो उसके जिम्मेदार तुम खुद रहोगे!' और दूसरे, चाटुकारनुमा उन कर्मचारियों की बदौलत अखबार का प्रकाशन भी नियमित रूप से कर रहा है, जो 'जागरण' सहित उत्तर / मध्य भारत में प्रकाशित होने वाले कई अखबारों- 'अमर उजाला', 'हिंदुस्तान', 'दैनिक भास्कर' आदि की खबरों को चुरा कर ज्यों की त्यों 'यशोभूमि' में इस्तेमाल कर रहा है!

यहां पर संलग्न कटिंग में 'यशोभूमि' की हालिया खबरों पर गौर कीजिए, जो 'जागरण' में अथवा उसकी साइट पर पहले ही प्रकाशित / प्रसारित हो चुकी हैं!

















यह सही है कि हिंदी अखबारों में यहां-वहां से खबरें उठाने की एक पुरानी परंपरा रही है, मगर इतना तो लिहाज रहता ही आया है कि 'साभार' के तहत संबंधित अखबार के प्रति अहसान भी जता दिया जाता है ! यह बात अलग है कि 'यशोभूमि' ने खबर उठाने के बजाय बाकायदा चोरी की है... सेम टु सेम कामा और फुल स्टाप के साथ 'जागरण' के ही शीर्षक से लेकर उसकी फोटो तक का इस्तेमाल धड़ल्ले से करने में मशगूल है, लिहाजा अब की बार मामला बिगड़ता नज़र आ रहा है ! पता चला है कि 'जागरण' के मुंबई ब्यूरो द्वारा कानपुर स्थित अपने मुख्यालय को यह सबूत भेज दिया गया है और आगे की कार्रवाई के लिए 'जागरण' की लीगल टीम शीघ्र ही 'यशोभूमि' के खिलाफ सख्त कदम उठा सकती है!

-मुंबई से दीपक भैया की रिपोर्ट

Friday 22 May 2020

कोरोना: पत्रकार का योगी को पत्र



श्री योगी आदित्य नाथ जी,
मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश,

विषय-कोरोना काल में बेरोजगार हुए पत्रकारों की सहायता के संबंध में।

माननीय मुख्यमंत्री जी,

कोरोना महामारी के प्रकोप का विपरीत असर सभी क्षेत्रों में पड़ा है। इस संकट से उबारने के लिए आपकी सरकार प्रंशसनीय कार्य कर रही है। सम्पूर्ण देश में मीडिया ने इस दौरान जनता को जागरूक करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। प्रार्थी इस पत्र के माध्यम से उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले पत्रकारों व गैर पत्रकारों की कोरोना काल में हुई दयनीय हालत की तरफ आपका ध्यान दिलाना चाहता है। उत्तर प्रदेश के सभी जिलों और स्थानीय स्तर पर मजिठिया वेजबोर्ड की मांग करने पर निकाले गए पत्रकार व गैर पत्रकारों के सामने कोरोना काल में जीवनयापन का संकट गहरा गया है। बड़ी संख्या में पत्रकारों को वेतन नहीं मिला है। ऐसे में उनके सामने मकान का किराया देने, बच्चों की स्कूल की फीस देने और परिवार के लिए राशन की व्यवस्था करना भी बहुत कठिन हो गया है। बीमार होने पर दवा इंतजाम करने के लिए कुछ पत्रकारों को उधार मांगना पड़ा।

ऐसे में प्रार्थी सहित अन्य कई पत्रकार साथियों को आर्थिक संकट की घड़ी में सहायता करने की आवश्यकता है। कुछ लोगों को राशन भी नहीं दिया गया है।

आपसे निवेदन है कि उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में आर्थिक संकट से जूझ रहे पत्रकारों के लिए आर्थिक सहायता देने का कष्ट करें।

आशा है आप हमारे अनुरोध को स्वीकार करेंगे।


आभार सहित
शारदा प्रसाद त्रिपाठी
दैनिक जागरण कानपुर उत्तर प्रदेश
पता :- आराजी नम्बर 234 नियर साँई गैलेक्सी मिर्जापुर,
कल्याणपुर कानपुर नगर, उत्तर प्रदेश 208017
मोबाइल नम्बर 9452108610

Wednesday 20 May 2020

दुखद खबर: हिन्दी खबर चैनल के कैमरामैन ने किया स्यूसाइड


- महीनों से वेतन नहीं मिला, पत्नी बीमार थी, कैमरामैन ने स्यूसाइड कर लिया

हिन्दी खबर नामक न्यूज चैनल के एक कैमरामैन ने 16 मई को खुदकुशी कर ली। दो दिन की छुट्टी के बाद जब ड्यूटी पर नहीं पहुंचे सत्येंद्र तो ऑफिस से फोन आया तो सबको पता चला। यह जानकारी सामने आई कि कई महीनों से तनख्वाह नहीं मिली थी। घर में पैसे नहीं थे। पत्नी बीमार रहा करती थीं। दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। जिन्दगी के तीसरे दशक में ही एक पत्रकार की जिन्दगी दम तोड़ गई। मुझे यह नहीं पता कि यह कैमरामैन दिल्ली में कार्यरत था या नोएडा।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

Tuesday 19 May 2020

कोरोना पर मीडिया को लेकर दोहरे मापदंड से कठघरे में योगी सरकार


- जागरण और जी न्यूज प्रबंधन पर आपदा अधिनियम लागू नहीं होता?
- द वायर के सिद्धार्थ वरदराजन और द हिन्दू के पीरजादा ही हैं गुनाहगार?

मीडिया जगत से जुड़ी दो अलग-अलग घटनाओं को लेकर देश में एक नई बहस को जन्म दिया है। यह बहस राष्ट्रीय आपदा अधिनियम 2005 के तहत निहित शक्तियों की है। पहली घटना द वायर के वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन से जुड़ी है। यूपी के फैजाबाद की पुलिस ने एक अप्रैल 2020 को उनके खिलाफ योगी आदित्यनाथ पर टिप्पणी करने के आरोप में रिपोर्ट दर्ज की। सिद्धार्थ ने योगी पर आपदा के बावजूद अयोध्या में धार्मिक कार्यक्रम में भाग लेने पर ट्वीट किया था। इसी तरह से जम्मू-कश्मीर में द हिन्दू के पत्रकार पीरजादा आशिक द्वारा सोशल मीडिया पर भी आपदा अधिनियम के तहत पोस्ट लिखने पर केस दर्ज किया गया है।

बहस का दूसरा मुद्दा है कि दैनिक जागरण और जी न्यूज प्रबंधन पर यह अधिनियम लागू होता है या नहीं? दैनिक जागरण आगरा में कोरोना संक्रमण से एक पत्रकार पंकज कुलश्रेष्ठ की मौत हो गई और कई अन्य संक्रमण के दायरे में आ गए, लेकिन इस ऑफिस को सील नहीं किया गया, बल्कि छह मीडियाकर्मियों को वहीं क्वारंटीन कर दिया गया। अब जागरण नोएडा का ऑफिस भी खतरे में है तो वहां महज सेनेटाइज्ड किया जा रहा है।

दूसरी ओर जी न्यूज का नोएडा ऑफिस है। यहां 15 मई को लक्ष्मीनगर दिल्ली निवासी एक मीडियाकर्मी की कोरोना पाजिटिव रिपोर्ट आई। होना यह चाहिए था कि उसी दिन ऑफिस को सील कर दिया जाता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जी न्यूज के सीईओ पुरुषोत्तम वैष्णव कर्मचारियों को ऑफिस आने के लिए धमकाते रहे। नतीजा, अब 28 कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव निकले हैं। अब इस ऑफिस को सील किया गया है। क्या जी न्यूज के मालिक, संपादक और सीईओ के खिलाफ यह अधिनियम लागू नहीं होता।

मैं आपको बता दूं कि राष्ट्रीय आपदा अधिनियम की धारा 2005 के तहत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण आदेशों का पालन ना करने पर किसी भी राज्य के अधिकारी के साथ-साथ प्राइवेट कंपनियों के अधिकारी पर भी कार्रवाई कर सकती है। ये कानून किसी प्राकृतिक आपदा और मानव-जनित आपदा की परिस्थिति पैदा होने पर इस्तेमाल किया जा सकता है। यदि ये अधिकार सरकार के पास हैं तो क्यों नहीं योगी सरकार ने दैनिक जागरण और जी न्यूज के मालिकों, संपादकों और प्रबंधन के खिलाफ मामला दर्ज किया। क्योंकि जागरण और जी न्यूज प्रबंधन को इस कानून की जानकारी थी और जानबूझकर और निजी स्वार्थ के तहत यहां कार्यरत कर्मचारियों की जान को खतरे में डाला। कोरोना के प्रसार में इन दोनों संस्थानों के प्रबंधन की भूमिका संदिग्ध है। तो क्या यह मान लिया जाए कि आपदा अधिनियम में भेदभाव हो रहा है।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

Monday 18 May 2020

कल रात सपने में निर्मल बाबा का


कल रात सपने में निर्मल बाबा का
सरकारी रूपांतरण निर्मला बॉबी (बाबा का स्त्रीलिंग) आई
मैंने पूछा, हे बॉबी
पत्रकारों पर कृपा कब होगी?
कहने लगी
निकम्मे पत्रकारों
तुम्हें किस बात की कमी जो कृपा मांग रहे हो
भूखे कहां मर रहे हो।
तुम चाटते रहो
मोदी सरकार के तलुवे
भर जाएगा पेट।।

# 20 लाख करोड़ में मीडिया को चवन्नी नहीं।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

ब्रेकिंग न्यूज- जी न्यूज के 28 मीडियाकर्मी कोरोना पाजिटिव


- सीईओ धमका रहा था कि आफिस आओ
- आफिस सील, विऑन से चलेगा जी न्यूज

जी न्यूज नोएडा से बड़ी खबर। यहां 4 लोगों के कोरोना पॉजिटिव आने के बाद बाकी सभी का कोरोना टेस्ट कराया गया। कुल 52 लोगों का टेस्ट कराया गया, जिनमें से 28 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। बताया जा रहा है कि पूरे ऑफिस को सील कर सैनिटाइज किया जा रहा है।

मैं लगातार पत्रकारों की हालात पर लिख रहा हूं, लेकिन कहीं कोई प्रतिक्रिया नहीं है, क्योंकि चैनल और अखबार मालिकों ने मंदी के नाम से छंटनी की है।

सब पत्रकार डरे और सहमे हैं।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

Sunday 17 May 2020

दिये तले अंधेरा: 20 लाख करोड़ की चमक दिखाते भूख और कोरोना से मरते मीडियाकर्मी



- जी न्यूज दिल्ली का एक मीडियाकर्मी कोरोना पॉजिटिव, 53 क्वारंटीन, सीईओ धमका रहा आफिस आओ!
- नवभारत टाइम्स दिल्ली ने मंदी के नाम पर कत्ल कर डाले कई पत्रकार

देश में पिछले चार दिन से बड़ा ड्रामा चल रहा है। वित्त मंत्री सीतारमण का बजट भाषण याद कीजिए, कितनी देर का था। मुश्किल से सवा घंटे का लेकिन मोदी सरकार पिछले चार दिनों से अदृश्य 20 लाख करोड़ रुपये के सुनहरे सपने 135 करोड़ लोगों को बेच रही है। उधर, मजदूर सडकों पर पैदल ही घर जा रहा है और जान गंवा रहा है। सड़क पर प्रवासी मजदूरों के बच्चों की दिल दहलाने वाली तस्वीरें आत्मनिर्भर भारत की सच्ची तस्वीर बता रही हैं, किसान भूखा मर रहा है। मध्यम वर्ग भुखमरी के कगार पर है, क्योंकि उसे तो सस्ता राशन और इलाज भी नहीं मिल रहा है। कल्याणकारी देवी बनी हुई हैं निर्मला, ठीक निर्मल बाबा की तरह भूखे, बेबस, बेरोजगार और बदहाल लोगों पर कृपा बरसा रही है।

हां, हम और हमारा मुख्यधारा का मीडिया मोदी को आधुनिक भारत का भगवान बना रहे हैं। जनता ने भगवान श्रीराम से सीता को लेकर सवाल उठाए थे, लेकिन खबरदार, जो किसी ने मोदी सरकार पर सवाल उठाए। विज्ञापन बंद हो जाएंगे, आपदा एक्ट के तहत केस दर्ज हो जाएगा। एनएसए भी लग सकती है। पूरे देश में देख लो, हिसाब लगाओ। मोदी शासन में सबसे अधिक पत्रकारों पर केस दर्ज किए गए और जानलेवा हमले हुए। कई पत्रकार मार भी दिए गए। कहने को मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है लेकिन सत्ता रूपी दीमक ने इस खम्भे को खोखला कर दिया है। ये कारपोरेट मीडिया युग है। मीडिया को जीवित रहने के लिए सरकार की मदद चाहिए तो सीधी बात यह है कि सरकार जो कहे, वही सही। हो भी यही रहा है।

लोग मीडिया या मीडियाकर्मियों को बिकाऊ कहते हैं, लेकिन मैं आपको बता दूं कि मालिक और मीडिया घराने बिकते हैं, मीडिया नहीं। मीडिया मजबूर है। यदि दस प्रतिशत पत्रकारों को छोड़ दिया जाए तो 90 प्रतिशत पत्रकार ईमानदार हैं। वो बेबस हैं, लाचार हैं व्यवस्था के बीच। जब मन विद्रोह करता है तो परिवार का ख्याल आ जाता है। करियर की बात सालने लगती है। वो चुप हो जाता है, कुंठित और बेबस।

देखिए मीडिया घराने क्या करते हैं। नवभारत टाइम्स दिल्ली ने एक दर्जन से भी अधिक पत्रकारों को कल से काम पर न आने के लिए कहा है। ये मेरे वो साथी पत्रकार हैं जिन्होंने नवभारत टाइम्स को एनबीटी के रूप में नई पहचान दिलाई। निकाले गए कई पत्रकार मेरे घनिष्ठ मित्र हैं और इन्होंने पिछले 13 साल में एनबीटी को खबरों के मामले में दूसरे अखबारों से कहीं आगे रखा। लेकिन अचानक ही उन्हें निकाल दिया गया। जबकि अन्य की सेलरी पहले ही घटा दी गई है। साथ ही टीवीपी यानी टारगेट वैल्यूवल पे को शून्य कर दिया गया। एनबीटी के सेलरी पैकेज में टीवीपी का एक बड़ा हिस्सा होता है। यानी ये मीडियाकर्मियों का शोषण करने और डराने का तरीका है कि कम वेतन में दोगुणा काम करो। नहीं तो नौकरी छोड़ो। यही स्थिति प्रिंट-इलेक्ट्रानिक या डिजिटल सबमें है।

हमारी बेबसी समझने की कोशिश कीजिए। हम भी इंसान हैं, हमारा भी परिवार है, इच्छाएं हैं और अनेक सपने हैं, जिनको साकार करने की हसरते दिल में हिलोरें लेती हैं। लेकिन व्यवस्था का क्या? वो लोग जिनको हम खबर बनाते हैं, लेकिन हम स्वयं कभी खबर बनें तो बात बनें। दैनिक जागरण आगरा के डीएनई पंकज कुलश्रेष्ठ की कोरोना से हुई मौत पर कोई बबाल नहीं हुआ। 15 पत्रकार आइसोलेट कर दिए गए लेकिन अखबार फिर भी वहीं से छपा। प्रशासन ने जागरण कार्यालय सील नहीं किया। जागरण में क्या कुछ बदला?

अब जी न्यूज का आउटपुट कर्मी कोरोना पाजिटिव निकला। 53 लोगों को आइसोलेट किया गया है, लेकिन वहां का सीईओ मीडियाकर्मियों को न सिर्फ आफिस आने के लिए धमका रहा है, बल्कि सारा दोष मीडियाकर्मियों पर ही थोप रहा है कि ये तुम्हारी गलती है। इसलिए कोरोना हुआ। यानि जान जोखिम में डालकर काम करो, लेकिन गूंगे बने रहो। उससे भी अधिक खतरनाक है कि मंदी के समय मीडियाकर्मियों को निकाला जा रहा है और सरकार और विपक्षी सब चुप हैं। मुझे आश्चर्य होता है कि दस सेकेंड टीवी में दिखाने या सिंगल कॉलम खबर छपवाने के लिए पत्रकारों के आगे-पीछे घूमने वाले विपक्षी नेता मीडियाकर्मियों को संस्थान द्वारा बाहर का रास्ता दिखाए जाने पर चुप्पी क्यों साध लेते हैं? क्या विपक्ष भी मजबूर होती है? नहीं, उन्हें लगता है कि डीटीसी बस है, एक छूट गई तो दूसरी आ जाएगी। यानि विपक्ष भी कुर्सी को ही सलाम करती है। तो फिर हम पत्रकारों का कौन है? सब हमें भगत सिंह की तर्ज पर काम करने की उम्मीद करते हैं, लेकिन भगत सिंह को आज कौन याद करता है जनाब?

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

Saturday 16 May 2020

मजीठिया: आपसे चाहिए ये जानकारी...

दोस्तों सुप्रीमकोर्ट के एडवोकेट उमेश शर्मा सर का अभी फ़ोन आया था उनको मजीठिया का केस लगाने वालों का कुछ डेटा चाहिए। जो निम्न है।

1- आपका पूरा नाम और पता पिनकोड के साथ

2- आप किस अखबार में काम करते हैं उस अखबार का नाम और कंपनी का पूरा पता और आपका कंपनी में पोस्ट।

3- आपने कितने तारीख को मजीठिया वेजबोर्ड के हिसाब से कंपनी से वेतन मांगा (प्रूफ के लिए कागज भी चाहिए)

4- आपने लेबर विभाग में कब मजीठिया के अनुसार बकाये के लिए केस लगाया (प्रूफ के लिए कागज भी चाहिए)

5- आपका केस लेबर कोर्ट में 6 माह में सुना गया या नहीं (प्रूफ के लिए कागज भी चाहिए)

6- मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार लिखित बकाया मांगने या केस लगाने के बाद अगर आपका ट्रांसफर, टर्मिनेशन,संस्पेंशन हुआ है तो उसका कागज चाहिए।

प्लीज़ नोट ये सारे कागज सिर्फ उन साथियों को देना है जिनका मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार लिखित रूप से वेतन मांगने या लेबर ऑफिस या लेबर कोर्ट में केस करने के कारण कंपनी द्वारा ट्रांसफर टर्मिनेशन या संस्पेंशन किया गया है।

आप अपने मोबाइल पर फास्ट स्कैनर डाउनलोड कर डाक्यूमेंट को स्कैन करके मजीठिया क्रांतिकारी महेश साकुरे सर को उनके मेल पर तीन दिन में अर्जेंट भेज दीजिए। अगर आपका कोई परिचित है, जिसका मजीठिया का केस लगाने के बाद ट्रासंफर टर्मिनेशन या संस्पेंशन किया गया है तो उसे भी ये मैसेज अर्जेंट फारवर्ड कर दें। ताकि वो भी अपना डिटेल और कागज भेज सके।

महेश साकुरे जी का मेल आईडी ये है।

mguddi22@gmail.com

mahesh sakure

कुछ और जानकारी चाहिए तो मुझे फोन करें।

शशिकांत सिंह
9322411335

पीआईएल से श्रमिकों को मिली बड़ी जीत, 12 घंटे काम का आदेश वापस



वाराणसी। श्रमिकों से 12 घंटे काम के आदेश को उत्तर प्रदेश सरकार ने वापस ले लिया। श्रमिक संगठनो की ओर से दाखिल पीआईएल ने यह बड़ी सफलता दिलाई है। अब श्रमिको को पूर्व की तरह आठ घंटे ही काम करना होगा। एटक के प्रदेश सचिव अजय मुखर्जी ने यह जानकारी दी।

उन्होंने बताया कि 12 घंटे काम लेने के खिलाफ उच्च न्यायालय में पीआईएल दाखिल किया गया था, जिस पर सुनवाई 18 मई को होनी थी। इस बीच प्रदेश के प्रमुख सचिव सुरेश चन्द्रा ने इस संबंध में उच्च न्यायालय के मुख्य स्थायी अधिवत्ता को पत्र भेज कर जानकारी दी की गत 8 मई को जारी आदेश को रद्द कर दिया गया है। प्रमुख सचिव ने मुख्य स्थायी अधिवक्ता को भेजे गए पत्र में यह भी कहा है कि इस निर्णय से उच्च न्यायालय को अवगत करा दिया जाए।

Friday 15 May 2020

श्रम कानूनों को 'कमजोर' करने पर 9 राज्यों से जवाब मांगा


नई दिल्ली। संसद की श्रम मामलों की स्थायी समिति ने उत्तर प्रदेश और गुजरात समेत 9 राज्यों से श्रम कानूनों को 'कमजोर' किए जाने को लेकर जवाब मांगा है। समिति के अध्यक्ष भर्तुहरि महताब ने बुधवार को कहा कि श्रमिकों के अधिकारों की कीमत पर उद्योगों को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। उत्तर प्रदेश और गुजरात के अलावा भाजपा शासित मध्य प्रदेश, गोवा, हिमाचल प्रदेश और असम के साथ ही कांग्रेस शासित राजस्थान और पंजाब से भी स्पष्टीकरण मांगा गया है।

श्रम कानूनों को कमजोर किए जाने को लेकर बीजू जनता दल (बीजद) शासित ओडिशा सरकार से भी जवाब तलब किया गया है। महताब भी बीजद से ही आते हैं। बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों की सरकारों ने लॉकडाउन के कारण प्रभावित हुई आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने और निवेश आकर्षित करने के मद्देनजर श्रम कानूनों में संशोधन किया है।

इसी तरह, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और गुजरात ने अपने संबंधित श्रम कानून में संशोधन कर एक दिन में काम के घंटों को आठ से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया है। महताब ने कहा कि श्रमिकों से संबंधित विभिन्न कानूनों को कमजोर किए जाने को लेकर नौ राज्यों से जानकारी तलब की गई है क्योंकि हम यह जानना चाहते हैं कि श्रम कानूनों को कमजोर किए जाने से उद्योग को कैसे फायदा होगा? साथ ही यह भी देखना है कि वे श्रमिकों के अधिकारों को कुचल तो नहीं रहे हैं। उद्योगों की सहायता करने और श्रमिकों के अधिकारों का संरक्षण करने के बीच संतुलन बनाने की जरूरत का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि श्रमिकों के अधिकारों की कीमत पर उद्योगों को प्रोत्साहन नहीं दिया जा सकता, यहां एक संतुलन होना चाहिए।

[साभार: एजेंसियां]

Tuesday 12 May 2020

कोरोना: मजदूरों का खून चूसने से लेकर खाल नोचने की तैयारी


file photo source: social media

- यूपी, हरियाणा समेत छह राज्यों ने श्रम कानून बदले
- 12 घंटे की पाली में करना होगा काम, वेतन की गारंटी नहीं

मई दिवस के पखवाड़े में भारत के मजदूरों के शोषण से भी गंभीर उनके अस्तित्व को मिटाने की पहल हो गई है। देश के कई राज्यों ने श्रम कानूनों को अगले तीन साल के लिए स्थगित कर दिया है। हालांकि अभी यह उत्तराखंड में लागू नहीं हुआ है लेकिन नकलची बंदर के तौर पर कुख्यात त्रिवेंद्र सरकार देर-सबेर यही काम करेगी। उत्तर प्रदेश समेत छह राज्यों ने श्रम कानूनों में गुपचुप बदलाव कर लागू कर दिए हैं। कहा जा रहा है कि निवेशकों को आकर्षित करने के लिए यह कानून आया गया है। अब नए कानून के मुताबिक मजदूर को आठ घंटे की बजाए 12 घंटे काम करना होगा। यूपी के अलावा एमपी, हरियाणा, पंजाब में भी यह कानून लागू होगा। मालिकों को यह छूट होगी कि वो श्रमिकों के हितों की अनदेखी कर सकते हैं। यानी श्रमिकों को मालिकों की दया पर छोड दिया गया है। मध्यप्रदेश सरकार ने तो औद्योगिक विवाद अधिनियम और इंडस्ट्रियल रिलेशन एक्ट ही एक हजार दिनों के लिए निरस्त कर दिया है। यही नहीं मालिक जब चाहेगा तो श्रमिकों को निकाल सकता है। यानी मजदूर को मालिक की दया पर ही रहना होगा।

इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट ने भी सरकार को कहा है कि इन प्रावधानों को जल्द वापस लिया जाए। संगठन के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार बीवी मल्लिकार्जुन ने कहा है कि मध्यप्रदेश, गुजरात, उड़ीसा, गोवा, महाराष्ट्र और यूपी में तो 12 घंटे कार्य को आवश्यक बनाया गया है वह मानवता के खिलाफ भी है। क्योंकि रोजाना आने जाने में मजदूर को तीन घंटे का समय भी लगता है यानी उसे रोजाना 15 से 16 घंटे काम करना होगा। यदि केंद्र सरकार ने इन प्र्रस्तावों को सहमति दे दी तो ये लागू हो जाएंगे।

कहने का अर्थ यह है कि प्रदेश सरकारें अब अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मजूदरों के खून चूसने के साथ ही उसकी खाल में भी निकालने की तैयारी में है। यह यूरोप की औद्योगिक क्रांति से पहले जैसे हालात हो गए हैं।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

Monday 11 May 2020

IFWJ Demands for Immediate withdrawal of Increased Working Hours

New Delhi, 11 May. Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) has demanded the immediate withdrawal of the provision for 72 hours work per week from the ordinance issued by six state governments as it is not only anti-labour but also against all forms of human values. It may be noted here that under the existing laws a worker is mandated to work only 48 hours in a week, but in the case of journalists, it is only 36 hours a week as per the Working Journalists Act.

In a statement the IFWJ President BV Mallikarjunaih, Vice Presidents Hemant Tiwari, KM Jha, Keshab Kalita and Vibhuti Bhushan Kar, Secretaries Sidharth Kalhans, Gitika Talukdar, K Asudhulla and Treasurer Rinku Yadav have expressed shock over the dilution of labour laws particularly with regard to the increase in working hours by the state governments of Uttar Pradesh,

Madhya Pradesh, Maharashtra, Odissa, Goa and Gujrat in the name of meeting the challenges arisen due to calamity of Covid-19. The IFWJ wonders as to how the governments have come to the decision of the magic figure of 12 hours a day for increasing the working hours.

The IFWJ has said that no study was conducted by any expert group before increasing the duty hours from 8 to 12 per day. It means that the workers will have to practically put in fifteen hours of work every day because on an average nearly three hours of time is consumed by the workers in commuting from their dwellings to places of work. The excessive hours of work are bound to badly tell upon their health. Moreover, due to long hours of work, they will suffer from acute exhaustion, fatigue and deprivation of sleep, leading to a frequent accident at workplaces.

IFWJ has reminded the state governments that 8 hours of duty per day for workers had been achieved after a great struggle. Dozens of workers had lost their lives in Haymarket Affair of Chicago in 1886 and to commemorate the victory of 8 hours of work per day, the workers across the globe celebrate the labour Day every year on 1st May. Shockingly the state governments have put the clock back without any application of mind. It may note here that the IFWJ has always been in favour of amending the archaic labour laws and for ending the bureaucratic regime and red-tapism of the labour departments of the state governments.

IFWJ has, therefore, hopes that the good sense will prevail upon the governments and they will restore the hours of work to 48 hours per week for the general workers and 36 hours for the journalists would not be disturbed.

Parmanand Pandey
Secretary-General: IFWJ

Friday 8 May 2020

कोरोना से मौत: जागरण के वरिष्‍ठ पत्रकार पंकज कुलश्रेष्ठ के परिजनों को 50 लाख रुपये दे उप्र सरकार


यू०पी० जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (उपजा) ने कोरोना से दैनिक जागरण के व़रिष्‍ठ पत्रकार पंकज कुलश्रेष्ठ की मौत होने पर उत्‍तर प्रदेश सरकार से उनके परिजनों 50 लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग की है।

उपजा के प्रदेश महामन्त्री रमेश चन्द जैन ने वरिष्‍ठ पत्रकार की मौत पर दुखद जताते हुए उप्र सरकार से जल्‍द ही उनके परिजनों को मुआवजा देने की मांग की।

दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार पंकज कुलश्रेष्ठ का आगरा के सरोजनी नायडू हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था। उनको वेंटिलेटर पर रखा गया था। 

कोरोना: दैनिक जागरण के मालिकों पर लगे रासुका


- डीएनई पंकज कुलश्रेष्ठ की मौत के लिए डीएम और सीएमओ भी जिम्मेदार
- जागरण आगरा के 15 मीडियाकर्मियों की जान खतरे में

यह पोस्ट लिखते समय मेरी उंगलियां की-बोर्ड पर गुस्से और क्षोभ से थरथरा रही हैं। यदि मैं दिल्ली, नोएडा या कानपुर में होता तो मैं दैनिक जागरण के मालिक संजय गुप्ता या देवेश गुप्ता को...। कितने लालची और खुदगर्ज हैं ये दोनों...। जमातियों को कोसने वाला दैनिक जागरण, उसके संपादक और तथाकथित बड़े पत्रकार अपने साथी डीएनई पंकज कुलश्रेष्ठ की मौत पर चुप बैठे हैं। ... कहीं के। डीएनई पंकज की मौत कोरोना से कहीं अधिक दैनिक जागरण के मालिकों की लापरवाही और लालच के कारण हुई। पंकज ही नहीं जागरण के आगरा संस्करण के 15 अन्य पत्रकारों और जागरणकर्मियों पर मौत का खतरा मंडरा रहा है।

दरअसल, पंकज की मौत कोरोना से नहीं लापरवाही से हुई है। सबसे बड़ी लापरवाही जागरण संस्थान ने की कि अपने कर्मचारियों को आफिस से काम करने के लिए दबाव डाला। जानकारी के अनुसार दैनिक जागरण ने पांच वरिष्ठ पत्रकारों को आफिस में ही क्वारंटीन किया हुआ है, ताकि अखबार निकल सके।

12 पत्रकार हिन्दुस्तान कालेज में क्वारंटीन हैं, दो सिकंदरा में और एक वृद्धाश्रम में। 52 वर्षीय पंकज ने घर से ही कोरोना टेस्ट कराया था। उनकी रिपोर्ट गायब हो गई। सूत्रों के मुताबिक पंकज पांच बार अस्पताल में दाखिल होने के लिए गए, लेकिन दैनिक जागरण का प्रभाव न चला। बुधवार को पंकज की तबीयत अधिक बिगड़ गई तो उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया। इसके बाद लखनऊ एयरलिफ्ट कराया गया, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। पंकज कुलश्रेष्ठ को भावभीनी श्रद्धांजलि।

संभल जाओ मीडियाकर्मियों, मैं बार-बार लिख रहा हूं कि ये मालिक किसी के नहीं हैं। आपको अपनी जान स्वयं बचानी है।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

कोरोना से दैनिक जागरण के एक वरिष्ठ पत्रकार का निधन, दर्जन भर संक्रमित पत्रकारों का चल रहा इलाज!



एक बुरी खबर दैनिक जागरण से आ रही है। दैनिक जागरण आगरा के कोरोना पाजिटिव दर्जन भर से ज्यादा पत्रकारों में से एक पंकज कुलश्रेष्ठ का बृहस्‍पतिवार को निधन हो गया। वे 52 साल के थे और डिप्टी न्यूज एडिटर के पद पर कार्यरत थे।

पंकज दैनिक जागरण मथुरा के जिला प्रभारी रह चुके हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण आगरा में कार्यरत थे. पंकज कुलश्रेष्ठ बहुत ही कर्तव्यनिष्ठ एवं मृदुभाषी थे।

सूत्रों का कहना है कि कोरोना की चपेट में आए पंकज की हालत खराब होती गई और उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया था। डाक्टर उन्हें बचा नहीं पाए। अब भी ग्यारह पत्रकारों का इलाज चल रहा है। बावजूद इसके दैनिक जागरण की यूनिटों में अब भी जबरदस्ती आफिस में बिठाकर काम कराया जा रहा है। इससे यहां कार्यरत मीडियाकर्मियों में रोष के साथ साथ भय भी है।

उल्लेखनीय है कि दैनिक जागरण और पंजाब केसरी जैसे संस्थानों में कोरोना के मरीज मिलने और इस महामारी की चपेट में कई मीडियाकर्मियों के आने के बावजूद इनके आफिसेज को सील नहीं किया गया। ऐसा संभवत: इन मीडिया संस्थानों के रुतबे के चलते हुआ। इनकी जगह अगर कोई दूसरी कंपनी होती तो अब तक प्रशासन सील कर यहां कार्यरत सभी लोगों को क्वारंटीन में डाल चुका होता. पर दैनिक जागरण और पंजाब केसरी वाले अपने धंधे के चक्कर में महामारी में अपने कर्मियों को झोंक दे रहे हैं और प्राण लेने पर उतारू हैं।

दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार पंकज कुलश्रेष्ठ के निधन से हड़कंप मचा हुआ है। पंकज आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज के आइसोलेशन वार्ड में भर्ती थे। बुधवार से वेंटिलेटर पर थे। बताया जाता है कि पंकज को एयर एंबुलेंस से लखनऊ ले जाया गया था पर उन्हें बचाया नहीं जा सका।

[साभार: मजीठिया आंदोलन]

Tuesday 5 May 2020

मीडियाकर्मियों के उत्‍पीड़क इस अखबार को सरकार ने थमाया नोटिस


भोपाल। दबंग दुनिया अखबार के मालिक और गुटखा किंग किशोर बाधवानी को केंद्र सरकार के श्रम विभाग और मप्र श्रम विभाग ने पत्रकार और अन्य कर्मचारियों को वेतन नहीं देने और दुर्भाग्यपूर्ण ट्रांसफर करने के मामले में नोटिस जारी किए हैं। नोटिस का जवाब तत्काल देने की भी हिदायत दी गई है।

नोटिस की एक प्रति दबंग दुनिया भोपाल के सिटी चीफ नितिन दुबे को भी भेजी गई है। नोटिस में पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाने की जिम्मेदारी प्रशासन को सौंपी गई है।

[साभार: bhadas4media.com]

रमजान, रोजे और पत्रकार रिजवाना की स्यूसाइड


- बुंदेलखंड में हाशिए पर जी रहे लोगों ने खो दिया अपना हितैषी
- द वायर, बीबीसी और क्विंट के लिए काम करती थी रिजवाना

बुंदेलखंड के हाशिए पर जी रहे लोगों की आवाज सत्ता के गलियारे में पहुंचाने वाली स्वतंत्र पत्रकार रिजवाना तवस्सुम अब नहीं रहीं। रमजान के पवित्र माह में इस पागल ने रोजे के दौरान कल स्यूसाइड कर लिया। बनारस विवि की पूर्व छात्रा और बनारस की यह तेजतर्रार पत्रकार अपनी कई न्यूज स्टोरीज के लिए चर्चित रही है। रिजवाना की एक अलग छवि थी क्योंकि वो हिजाब पहनकर पत्रकारिता करती थी। वह जुझारू थी, लेकिन क्या अवसादग्रस्त हो गई थी, यह सवाल साल रहा है। हालांकि उसके स्यूसाइड नोट के आधार पर पुलिस ने सपा के नेता समीम नोमानी को अरेस्ट कर लिया है। रिजवाना को भावभीनी श्रद्धांजलि।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

न्‍यूइंडिया ने किया अखबारों को राहत पैकेज का विरोध, वेजबोर्ड के लिए संघर्षरत अखबारकर्मियों को सीधे राहत दे सरकार


अखबारों में कार्यरत कर्मचारियों को मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार वेतनमान व एरियर दिलवाने के लिए संघर्षरत अखबार कर्मियों की यूनियन न्‍यूजपेपर इम्‍प्‍लाइज यूनियन आफ इंडिया (न्‍यूइंडिया) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर अखबार मालिकों की संस्‍था आईएनएस की राहत पैकेज की मांग का विरोध करते हुए मजीठिया वेजबोर्ड लागू करवाने की लड़ाई में नौकरियां गवा चुके हजारों अखबारकर्मियों को सीधे तौर पर आर्थिक मदद की मांग की है। ज्ञात रहे कि ऐसे हजारों अखबार कर्मी नाैकरी छीन जाने के कारण रोजी रोटी को मोहताज हैं। इस संबंध में न्‍यूइंडिया द्वारा लिखा पत्र इस प्रकार से है...

अखबार कर्मचारियों के लिए 11 नवंबर 2011 को केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित और माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा संवैधानिक घोषित मजीठिया वेज बोर्ड को लागू ना करके देश के संविधान और संसद का मखौल उड़ाने वाले अखबार मालिकों के संगठन आईएनएस की हजारों करोड़ के राहत पैकेज की मांग का हम देश भर के पत्रकार और अखबार कर्मचारी कड़ा विरोध करते हैं। आईएनएस एक ऐसी संस्‍था है जो खुद को देश के संविधान, सर्वोच्‍च न्‍यायालय और संसद से बड़ा समझती है। इसका जीता जागता उदाहरण अखबारों में कार्यारत पत्रकार और गैरपत्रकार कर्मचारियों के लिए केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित और माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा वैध और उचित घोषित किए गए मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों को लागू ना करना और वेजबोर्ड को लागू करवाने की लड़ाई में शामिल हजारों अखबार कर्मचारियों को प्रताड़ित करके उनकी नौकरियां छिन लेना है।

महोदय, देश के लगभग सभी समाचारपत्रों की पिछली बैलेंसशीटें हर साल होने वाले करोड़ों रुपये के मुनाफे को दर्शाती हैं। वहीं देश भर के श्रम न्‍यायालयों में मजीठिया वेजबोर्ड की रिकवरी और उत्‍पीड़न के हजारों लंबित मामले साफ दर्शाते हैं कि किस तरह से अखबार प्रबंधन अपने कर्मचारियों का हक मार कर बैठे हैं और पत्रकारों, पत्रकारिता और रोजगार के नाम पर अपनी तिजोरियां ही भरते आए हैं। लिहाजा कोराना संकट में हजारों करोड़ के घाटे की बात करके आईएनएस राहत पैकेज की जो बात कर रहा है, यह सिर्फ अखबार मालिकों की तिजोरियां भरने का ही प्रपंच है। इससे अखबारों में कार्यरत कर्मचारियों को कोई लाभ नहीं होने वाला। यहां गौरतलब है कि लॉकडाउन में भी अखबारों की प्रिंटिंग का काम नहीं रोका गया है और अखबारों के प्रसार में मामूली फर्क पड़ा है। महंगाई के दौर में जहां हर वस्‍तु के दाम उसकी लागत के अनुसार वसूले जाते हैं तो वहीं बड़े बड़े अखबार घराने अखबार का दाम इसलिए नहीं बढ़ाते ताकि छोटे अखबार आगे ना बढ़ पाएं। उनकी इस चालाकी को घाटे का नाम नहीं दिया जा सकता है। यहां एक समाचारपत्र द हिंदू का उदाहरण सबके सामने है, जिसकी कीमत 10 रुपये हैं जबकि बाकी अखबार अभी भी इससे आधी से कम कीमत में बेचे जा रहे हैं, इसका खामियाजा देश की जनता की खून पसीने की कमाई को लूटा कर नहीं भरा जा सकता।

महोदय, यहां यह बात भी आपके ध्‍यान में लाना जरूरी है कि आईएनएस से जुड़े अधिकतर अखबारों ने केंद्र सरकार की उस अपील का भी सम्‍मान नहीं किया है जिसके तहत कर्मचारियों का वेतन ना काटने को कहा गया था। करीब सभी अखबारों ने जानबूझ कर अपने कर्मचारियों से पूरा काम लेने के बावजूद उनका आधे के करीब वेतन काट लिया है ताकि सरकार को घाटे का यकीन दिलाकर राहत पैकेज का ड्रामा रचा जा सके। वेतन काटे जाने को लेकर कुछ यूनियनें माननीय सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दखिल कर चुकी हैं।

महोदय, असल में राहत के हकदार तो वे अखबार कर्मचारी हैं, जो पिछले पांच से छह सालों से मजीठिया वेजबोर्ड की लड़ाई लड़ रहे हैं और इसके चलते अपनी नौकरियां तक गंवा चुके हैं। इनके परिवारों के लिए दो जून की रोटी का प्रबंध करना मुश्किल हो रहा है। केंद्र सरकार से मांग की जाती है कि राज्‍यों के माध्‍यम से श्रम न्‍यायालयों में मजीठिया वेजबोर्ड और अवैध तौर पर तबादले और अन्‍य कारणों से नौकरी से निकाले जाने की लड़ाई लड़ रहे अखबार कर्मचारियों की पहचान करके उन्‍हें आर्थिक तौर पर सहायता मुहैया करवाई जाए। साथ ही कोरोना महामारी के इस संकट में सरकार सिर्फ उन्‍हीं सामाचारपत्र संस्‍थानों को आर्थिक मदद जारी करे जो अपने बीओडी के माध्‍यम से इस आशय का शपथपत्र देते हैं कि उन्‍होंने मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों को केंद्र सरकार की 11.11.2011 की अधिसूचना और माननीय सुप्रीम कोर्ट के 07.02.2014 और 19.06.2017 के निर्णय के अनुसार सौ फीसदी लागू किया है और उसके किसी भी कर्मचारी का श्रम न्‍यायालय या किसी अन्‍य न्‍यायालय में वेजबोर्ड या इसके कारण कर्मचारी को नौकरी से निकालने का विवाद लंबित नहीं है। साथ ही इस संस्‍थान के दावे की सत्‍यता के लिए राज्‍य और केंद्र स्‍तर पर श्रमजीवी पत्रकार और अखबार कर्मचारियों की यूनियनों के सुझाव व आपत्‍तियां लेने के बाद ही इन अखबारों को राहत दी जाए।
भवदीय


[साथियों से अनुरोध है कि व़े इस पत्र को प्रधानमंत्री को भेजें। वे चाहें तो इसमें अपने हिसाब से भी बदलाव कर सकते हैं। इस पत्र को भेजते हुए अपना नाम, संस्‍था का नाम, अपना पद, मोबाइल या फोन नंबर, ई-मेल पता आदि का जरूर उल्‍लेख करें।]

Monday 4 May 2020

24 हजार करोड़ डकार चुका सहारा लूट के लिए मांग रहा है पास


- ऐसा सिर्फ भारत देश में ही हो सकता है!
- प्यारे अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश जी, दे दो इसे भी!

इस देश के तो भाग ही फूटे हैं। ये देखो कैसे फूटे। सुबह अखबार के पहले पन्ने पर देखा। एक लाटसाहब जो पिछले दो-तीन साल से पैरोल पर जेल से बाहर हैं। वो किस घौंस के साथ देश के समस्त डीएम से लॉकडाउन के दौरान गरीबों को लूटने के लिए पास मांग रहा है। और वह भी बड़ी अकड़ के साथ अखबारों में विज्ञापन देकर। कह रहा है कि सुनो बे, डीएम, 100 प्रतिशत पास चाहिए। विज्ञापन देखकर तो कुछ ऐसा ही लग रहा है। महाशय को भारतीय न्यायपालिका की कमजोर कड़ी के कारण पैरोल मिली है। तीन साल पहले मां को चिता की अग्नि देने पैरोल पर आए और आज तक अंदर नहीं गए। ये है लुटेरों के लिए हमारी न्याय व्यवस्था। 24 हजार करोड़ दस साल पहले डकारे थे, यदि कमाउंड इंटरेस्ट जोड़ दिया जाएं तो महाशय जी पर 50 हजार करोड़ से भी अधिक देनदारी है। यानि उत्तराखंड के कुल वार्षिक बजट जितना। लो जी, अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश आप तो हो ही दरियादिल। दे दो इस महाचोर को भी पास। इस देश की गरीब जनता तो लुटने के लिए तैयार बैठी है।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

Sunday 3 May 2020

IFWJ Calls Upon the Civil Society for the Freedom of Media

Indian Federation of Working Journalist IFWJ) has demanded that a Media Commission should be set up to study the problems of the journalists and to suggest their solutions. In a video conference, which was participated by more than 40 journalists from all over the county on the occasion of the World Press Freedom Day, the general refrain in the meeting was that attacks on journalists from the governments, media houses and goons are increasing these days. It can be tackled and stopped only with the collective and concerted efforts the academicians, social activists, media persons and common people.

Introducing the topic, the IFWJ Secretary and the host Sidharth Kalhans underlined the need to defend the media persons from attacks coming from different corners so that they can work without fear and favour. He paid tributes to the journalists who have made sacrifices in different parts of the country in the line of their duty. UPWJU President Bhaskar Dubey said that journalists must also have to change their style of working to win the confidence of the common public because once the credibility of a journalist is gone, no amount of protection would be helpful to restore his/her prestige in the profession. Ajay Shukla of the Arya Samaj (Chandigarh) lamented that many of the media advisors of the different governments, who are supposed to work for the betterment of the journalists, start behaving as the agents of their governments after their appointments. In these circumstances, the unity of the journalists is of the utmost value. 

Kunal Majumdar of the CPJ presented his report on the attacks on journalists which was concentrated mainly on his study on the four districts of Uttar Pradesh. Another guest speaker Abhishek Srivastava told that many of the journalists have been harassed but regrettably, they have failed to get solid support from the Civil society including the media organisations. The IFWJ Vice- President KM Jha told the meeting that the IFWJ has been working for the last 70 years for the protection for the rights of journalist It is because of the efforts of IFWJ that a number of facilities have been made available to them by various governments. Giving the example of Madhya Pradesh he said that MP government has now started paying pension to retired journalists known as ‘Shradha nidhi’ due to the efforts of the organisation.

IFWJ President BV Mallikarjunaih told about the programmes, which will be undertaken by the organization for the physical safety, security, as well as the economic independence of journalists. He said that ‘we have to work hard for saving the jobs of the media persons in the post Corona period.’

IFWJ Vice-President Hemant Tiwari said that the IFWJ and UPWJU together have prevailed upon the governments to provide helps to the needy and victimized journalists. Shri Tiwari laid stress on the protection of jobs and economic stability of journalists because freedom from hunger is the basic need and is more important than the independence of journalism. The latter is meaningless without the security of the former. Veteran Journalist Arvind Kumar Singh congratulated the innovative efforts of the IFWJ for making use of the new technology for interacting the journalists of the country. He said that the IFWJ will have to work in unison with other unions to boldly fight for the independence of the journalism. He further said that the freedom of the press is cannot be segregated from the freedom of the job and both should be safeguarded for the development of healthy journalism. IFWJ Secretary Geetika Talukdar from Guwahati told that the Assam Union of Working Journalists has been able to achieve an insurance cover of Rs fifty lakh for those working in this Corona crisis.

Senior journalist Ram Kishore Trivedi of Mumbai said that the journalists have been vociferous in protecting the cause of the journalists and the regretted that even many big organisations are arbitrarily dispensing with the services of journalists. Another senior journalist from Mumbai J P Singh suggested that a register for the journalists should be maintained on the pattern of Bar Council of India or the Medical Council of India to identify the real journalists from fake ones.

Manjari Tarafdaar from Kolkata said that the situation of the journalists can be protected only with the broader unity of the other media employees. The meeting continued for more than one hour and more than twenty participants got the opportunity to speak.

IFWJ Secretary General Parmanand Pandey said that the biggest danger which is being faced by the journalists is related to their jobs and pay cuts. He said that the IFWJ has always been at the forefront of the struggle for the cause of the journalists.

Neelesh Joshi of Telangana Journalists Union said that Digital journalism is a good step forward for the expansion of the freedom of speech and expression. He, however, cautioned that journalism should not be made a shield to cover the misdeeds of some journalists because it is bound to create a deep crisis of credibility for the profession. Among others who participated in the discussion were IFWJ  treasurer Rinku Yadav, Senior Journalists Rajendra Maurya,

Utkarsh Sinha, Hemant Shukla, T, B. Singh Rajesh Mishra, Ashish Awasthi, Ajay Trivedi, Santosh Gupta from Uttar Pradesh  Kappara Prasad Rao from Telangana, P Venkatmuni from Karnataka, AS Negi,Rajesh Niranjan from Delhi, Sudhanshu Kumar and PPN Sinha from Bihar, Sunil Thapliyal from Uttarakhand and Sanjay Jain from Haryana and Basant Rawat from Gujrat.

Saturday 2 May 2020

पत्रकार का भी परिवार होता है जनाब, उसकी भी समस्याएं हैं!



- लैंग्वेज प्रेस के अधिकांश पत्रकार भुखमरी के कगार पर
- उत्तरांचल प्रेस क्लब सफेद हाथी बना तो अन्य संगठनों के पदाधिकारी लापता

कोरोना संकट की इस घड़ी में समाज के एक वर्ग है जो सबसे अधिक हाशिए पर पहुंच गया है। गरीब का पेट अंत्योदय और सस्ता राशन, समाज कल्याण की योजनाएं भर रही हैं तो अमीरों ने अपनी मुट्ठी केवल अपनी जरूरतों के लिए खोलनी शुरू कर दी है। एक ओर सरकार कोरोना वारियर्स की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए ढाई करोड़ रुपये दे रही है तो दूसरी ओर जनता तक उनकी आवाज पहुंचाने वाले स्ट्रिंगर और छोटी पोस्ट पर काम करने वाले पत्रकार भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं। कई मीडियाकर्मी बेरोजगार भी हो गए हैं। छोटे और मंझोले साप्ताहिक, मासिक और दैनिक अखबारों का न तो सरकारी विज्ञापन मिल रहा है और न ही उनके पास कोई और जीविका उपार्जन का साधन हैं। ऐसे में अखबारों को नियमित जारी रखने की चुनौती भी है। यदि अखबार और पत्रिकाएं नियमित नहीं होंगी तो सूचना विभाग उनको जो गिने-चुने विज्ञापन देता है वो भी देना बंद कर देगा। कुल मिलाकर कोरोना से लैंग्वेज प्रेस खतरे में आ गई है।

बड़े अखबार और न्यूज चैनलों के स्ट्रिंगरों और स्टाफ रिपोर्टरों की हालत भी खराब है। जान जोखिम में डालकर ये स्टिंªगर खबरें जुटाते हैं लेकिन बदले में उन्हें पांच से दस हजार रुपये ही मिलते हैं। जबकि कई चैनलों और अखबारों ने इनको पिछले कई महीनों से भुगतान भी नहीं किया है। ऐसे में इनका परिवार गंभीर आर्थिक संकट में है। पर किसी को परवाह नहीं है न तो सरकार को और न ही पत्रकारिता की आड़ में दुकान चलाने वाले दलाल पत्रकार संगठनों को।

यदि जूनियर वकीलों को बार काउंसिल पांच हजार रुपये महीने की मदद देगा तो क्या उत्तरांचल प्रेस क्लब कुछ ऐसा नहीं कर सकता। क्लब के पास 300 सदस्य हैं। क्लब हर सदस्य से सालाना 1200 वसूलता है। इसके अलावा क्लब रोजाना हॉल बुकिंग के अवैध तौर पर 1500 रुपये वसूलता है। क्लब में बार चलता है। इसके अलावा नेता, हंस फाउंडेशन समेत कई संगठनों और सरकारों ने क्लब को आर्थिक मदद दी है। क्लब इस मुश्किल घड़ी में अपने जरूरतमंद सदस्यों को पांच हजार रुपये की मदद तो कर ही सकता है। उत्तराखंड में पत्रकारों के अनेक संगठन हैं। कई नामी-गिरामी पत्रकार इनके कर्ता-धर्ता हैं। पता नहीं कहां हैं वो रावत- फावत-नेगी-फेगी। कहां हैं ये पत्रकारों के तथाकथित नेता। सब लापता हैं।

मेरा अपने साथी पत्रकारों से निवेदन है कि आप स्वाभिमानी हो, लेकिन जरूरत सबको पड़ती है। ऐसे वक्त एक-दूसरे की मदद करें और सुख-दुख के साथी बनें। अपनी समस्याएं एक दूसरे को बताएं। मैं पहले ही कह चुका हूं कि उत्तरजन टुडे परिवार संकट की घड़ी में आपके साथ है और आपके लिए हमसे जो संभव होगा, हम मदद करेंगे। प्रदेश सरकार को चाहिए कि वो मौजूदा दौर में जूनियर पत्रकारों और छोटे पत्र-पत्रिकाओं के लिए राहत पैकेज लेकर आएं। लाना भी चाहिए। उत्तरांचल प्रेस क्लब से निवेदन है कि वो भी इस दिशा में सोचे। मैं जानता हूं कि क्लब और संगठन में क्या अंतर होता है। फिर भी क्लब इस दिशा में सोचे तो सही?

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

IFWJ Emphasises for the Unity of Media Persons on the May Day

New Delhi, 1st May. Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) has warned the media houses who are resorting to illegal retrenchment of the employees and cutting their wages during the Corona crisis. The IFWJ has asked the Union and other State Governments to ensure that the rights and interests of the media employees are fully protected. 
The IFWJ today held a meeting of its office bearers and other senior journalists through video conferencing, which was participated by more than 40 functionaries from all over the country The meeting was inaugurated by the Labour Minister of Uttar Pradesh Swami Prasad Maurya, who promised that no stone will be left unturned by the State Government in protecting the interests of journalists. He congratulated the entire working class on this International Labour Day. He said that it would be ensured that even during the Corona Pandemic workers do not face any difficulty.
This innovative experiment of modern technology for holding the meeting was made for the first time by any organisation of media persons. In his address, the IFWJ President BV Mallikarjunaih said that the biggest message of the International Labour day is the unity of workers and thanks to the new technology we are achieving this objective even while sitting in our houses.
The IFWJ Vice-President Hemant Tiwari exhorted the media employees to remain united to face the challenges in the post-Corona period. VIbhuti Bhushan Kar, the Vice-President of IFWJ who is also the President of Utkal Journalist Union (UJA)  told that ‘it is because of the unity of journalists in Odissa that the government has accepted many of their demands’. K. M. Jha, the other Vice-President of the IFWJ informed that he has written to the Prime Minister and the Chief Ministers that journalists should be recognised as the Corona warriors as they are performing their duties at the risk of their lives.
Senior journalist and the Working Committee Member Ish Madhu Talwar said that It was because of the efforts of the Union that the Rajasthan government has started giving pension to all eligible journalists from the 1st April of this year. Besides being a well-known journalist Shri Talwar is an important signature of the Literature and he has always been at the forefront of all the struggles of journalists.
Secretary-General Parmanand Pandey while emphasising the unity of the media persons also underscored for their training in the new technology to face the challenges of the post-Corona times. Senior journalist Utkarsh Sinha laid emphasis for the inclusion of the Digital media in the Working Journalists Act. A senior functionary of the IFWJ Ram Kishore Trivedi said in addition to giving Insurance Cover of at least Rs fifty lakh Rs. the media persons must get all the benefits as are available to other government employees.
  The UPWJU President Bhaskar Dubey told the meeting that UPWJU has submitted a memorandum to the State Labour Minister containing eight-point demands,  the important among them was,  that the government must pay the monetary assistance to the media employees for at least six months in this crisis. The relief package should also be announced for media persons on the pattern of the relief given to the other employees of the state government.
IFWJ Secretary Sidharth Kalhans, who hosted the meeting through video conferencing informed that we will continue to use this technology more frequently and in a better manner to interact and discuss the problems of media employees all over the country. The meeting resolved that some orientation courses would be started by the IFWJ to develop the skill of the media persons. The leader of Telangana Journalists Union. Kappara Prasad Rao told that his union has been able to avail many benefits for the media persons by sheer dint of unity and struggle. IFWJ Treasurer Rinku Yadav said the NOIDA being the hub of the national media, we have to concentrate more on organising the media persons.  
Among others who attended the meeting were Sanjay Jain (Haryana), P Venkatamuni (Karnataka), Ajai Trivedi of Aaj Samaj, PPN Sinha, T B Singh, Basant Rawat (Gujrat) Dr Ashok ( President Telanagana Journalists Union) and K Asadhulla (IFWJ Secretary South).


Parmanand Pandey
Secretary-General 

Friday 1 May 2020

अमर उजाला कोरोना संकट को भुनाने में जुटा



- मिस्टर राजुल महेश्वरी, काश, आप मीडियाकर्मियों के लिए भी कुछ सोचते?
- कोरोना की आड़ में फंड से अधिक अखबार बेचने की चिन्ता

वर्ष 2006 की बात है। अमर उजाला के ऋषिकेश ब्यूरो में कार्यरत एक स्ट्रिंगर था भुवनेश जखमोला। कवरेज के दौरान एक्सीडेंट में उसकी मौत हो गई। अमर उजाला ने उसको अपना कर्मचारी नहीं माना। चवन्नी की मदद नहीं दी। उसकी पत्नी तब छह माह के गर्भ से थी। उसका क्या हुआ, आज तक नहीं पता होगा। यह अमर उजाला का एक उदाहरण है कि वो अपने कर्मचारियों के साथ कैसे पेश आता है।

हाल में जब कोरोना और मंदी आई तो अमर उजाला ने अपने कर्मचारियों की सैलरी घटा दी। कई लोगों का गुपचुप तबादला कर दिया ताकि वो नौकरी छोड़ दें। अमर उजाला का सेठ अपने कर्मचारियों के दुख पर दुखी नहीं होता, बल्कि उन्हें दुख देता है। इस अखबार ने अब तक पूरी तरह से मजीठिया भी नहीं दिया। ऐसे में अमर उजाला हेल्थ सेक्टर के लोगों की मदद के लिए अपने फाउंडेशन में रकम मांग रहा है, तो यह अपने अखबार को बेचने का तरीका है।

अमर उजाला ने यदि वो 21 लाख जिससे यह फंड रेज किया जा रहा है, यदि पीएम केयर्स में दिए होते तो क्या बुरा होता? नहीं, लेकिन ये बाजार है जनाब, यहां मौत में भी अपना हित तलाशा जाता है। वही अमर उजाला कर रहा है। क्या मीडियाकर्मी कोरोना वारियर्स नहीं हैं? बेहतर होता कि राजुल महेश्वरी अपने कर्मचारियों का हित भी सोचते। तो हम उन्हें सैल्यूट करते।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]