Friday 27 September 2019

मजीठिया वेजबोर्ड लागू करने के लिए बनारस के मीडियाकर्मियों का प्रदर्शन



वाराणसी। मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को लागू करने, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी वेजबोर्ड के दायरे में लाने, पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने समेत विभिन्न मांगों को लेकर पत्रकारों व समाचार पत्र कर्मियों ने आज उप श्रमायुक्त कार्यालय पर प्रदर्शन किया। काशी पत्रकार संघ और समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन के नेतृत्व में हुए इस प्रदर्शन के बाद राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन डीएलसी मधुर सिंह को सौंपा गया। ज्ञापन में केंद्र सरकार द्वारा श्रम कानूनों में संशोधन से संबंधित विधेयक का कड़ा विरोध किया गया।

इस दौरान हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि समाचार पत्र उद्योग में वेजबोर्ड को पूर्व की भांति कायम रखा जाए। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कर्मियों को भी वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट में शामिल किया जाए। ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रेशन के लिए मालिकानों की स्वीकृति की अनिवार्यता न लागू हो। उद्योग-संस्थानों को बंद करने के लिए अनुमति के प्रावधानों को पूर्व की भांति रखा जाए। औद्योगिक संस्थानों में वैधानिक रूप से हड़ताल के लिए वर्षों से प्राप्त अधिकार को कायम रखा जाए। संशोधन के जरिए लगभग 48 श्रम कानूनों को समाप्त कर चार नए श्रम कानूनों में समाहित करने का प्रस्तावित प्रावधान रद किया जाए। नए कोड ऑफ वेज बिल को रद्द किया जाए। कर्मचारियों के लिए 34 गंभीर बीमारियों के स्ंदर्भ में कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआई) की सुविधा पूर्व की भांति लागू की जाए और ईएसआई की सारी सुविधाएं सेवानिवृत्ति के बाद भी बहाल रखी जाए। पत्रकार सुरक्षा कानून तत्काल बनाया जाए।

वक्ताओं ने कहा कि मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को मीडिया संस्थानों ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बावजूद भी अभी लागू नहीं किया है। सम्प्रति देश भर में मजीठिया वेजबोर्ड से संबंधित हजारों मुकदमे श्रम न्यायालयों में लंबित हैं और कोई निर्णय न होने से पत्रकारों को न्याय नहीं मिल पा रहा है।

वक्ताओं ने चेतावनी दी कि यदि मांगें पूरी नहीं हुई तो इसके खिलाफ लड़ाई तेज की जाएगी। प्रदर्शन में काशी पत्रकार संघ के अध्यक्ष राजनाथ तिवारी, महामंत्री मनोज श्रीवास्तव, पूर्व अध्यक्ष प्रदीप कुमार, विकास पाठक, योगेश कुमार गुप्त, सुभाष चन्द्र सिंह, पूर्व महामंत्री डा॰ अत्रि भारद्वाज, प्रेस क्लब के अध्यक्ष चन्दन रूपानी, समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन के मंत्री अजय मुखर्जी, काशी पत्रकार संघ के उपाध्यक्ष कमलेश चतुर्वेदी, देवकुमार केशरी, मंत्री पुरूषोत्तम चतुर्वेदी के अलावा शैलेश चौरसिया, सुधीर गणोरकर, एके लारी, रमेश राय, संजय सिंह, जगधारी, संजय सेठ, जयराम पाण्डेय, देवाशीष भट्टाचार्य सहित काफी संख्या में पत्रकार व गैर पत्रकार शामिल थे।

[साभार: भड़ास4मीडिया.कॉम]

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Thursday 26 September 2019

मजदूऱ हितों को नजर अंदाज करने वाली सरकार का पुरजोर विरोध करेगी बीएमएस


वर्किंग जर्नलिस्ट्स ऑफ इंडिया की दूसरी वार्षिक सभा सम्पन्न

नई दिल्ली। बीएमएस के वरिष्ठ नेता अनीश मिश्रा ने बृहस्‍पतिवार को कहा कि जो भी सरकार मजदूर हितों का विरोध करेगी उसका पुरजोर विरोध हमारे द्वारा किया जाएगा। अनीश मिश्रा आज बीएमएस से सम्बद्ध वर्किंग जर्नलिस्ट्स ऑफ इंडिया की राष्ट्रीय कार्यकरिणी को संबोधित कर रहे थे। राष्ट्रीय कार्यकरिणी की एजीएम दिल्ली में दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर दाँतोपंत ठेंगड़ी भवन में दो सत्रों में सम्पन्न हुई।

प्रथम सत्र में बीएमएस के क्षेत्रीय संगठन मंत्री पवन कुमार के मुख्य अतिथित्व सम्बोधन में महत्वपूर्ण जानकारी दी। बीएमएस के वरिष्ठ नेता अनीश मिश्रा व ब्रिजेश कुमार भी सम्मिलित हुए।

दूसरे सत्र में राष्ट्रीय महासचिव नरेंद्र भंडारी ने वार्षिक व्योरा दिया तथा बीते वर्ष के कार्यकलाप व उपलब्धियां गिनाई। इसी के साथ नए वर्ष के लिए प्रस्तावित रुप रेखा रखी। महासचिव भण्डारी ने घोषणा की आज इस अवसर पर देश भर में पत्रकारों के हो रहे उत्पीड़न को लेकर एक WJI 24 X 7 हेल्प लाइन व्हाट्सअप ग्रुप की शुरुआत की गई जिसके माध्यम से पत्रकारों के उत्पीड़न पर संज्ञान लेकर सरकार व अन्य स्तर पर पहुंचाएगी व संघर्ष करेगी।

एजीएम में WJI के कई प्रान्तों से जुड़े साथियों ने सम्मिलित होकर सहभागिता की। उत्तराखण्ड से सुनील गुप्ता व देवेन्द्र कुमार, चंडीगढ़ से सुरेंद्र वर्मा, उत्तर प्रदेश से पवन कुमार श्रीवास्तव, जम्मू कश्मीर, केरल से आदर्श, हरियाणा से भूपेन्द्र चौधरी एवं दिल्ली से संदीप शर्मा व वरिष्ठ पत्रकार व साथी अन्सारी, बिजनौर से नादिर त्यागी, अंजली भाटिया, उदय मन्ना, संजय उपाध्याय, संजय सक्सेना, अर्जुन जैन, विकास सुखीजा, श्रीमती अन्नू भण्डारी, संतोष कुमारी, राकेश कुमार, दीपक कुमार सहित काफी सदस्य व पदाधिकारी सम्मिलित हुए।

डब्ल्यू जे आई. के राष्ट्रीय प्रचार सचिव उदय मन्ना ने बताया कि बैठक में केंद्र सरकार से डिजिटल मीडिया और ई पेपर को मंजूरी देने के साथ-साथ इसके लिए कोई नीति बनाने की मांग की गई। बैठक में पत्रकारों के ग्रुप इंश्यूरेंस भी चर्चा की गई। वार्षिक सभा में राष्ट्रीय अध्यक्ष अनूप चौधरी ने सुनील गुप्ता, पवन कुमार श्रीवास्तव व भूपेंद्र चौधरी को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया तथा सभी साथियों का आभार व्यक्त किया।




मजीठिया: डाउनलोड करें परदेशी-जगदाले में मामले में अवार्ड की 50 फीसदी राशि जमा कराने का हाईकोर्ट का ऑर्डर



जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड मामले में दैनिक भास्कर और दिव्य मराठी समाचार पत्र का प्रकाशन करने वाली कंपनी डी बी कॉर्प को तगड़ा झटका लगा है। बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ ने सेवालकर डेवलपर्स लिमिटेड वर्सेज रूपी कॉपरेटिव बैंक लिमिटेड, पुणे के 2016 के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के दिए सायटेशन का संदर्भ लेते हुए दिव्य मराठी के औरंगाबाद के पेजमेकर दिनेश परदेशी, डिप्टी न्यूज़ एडिटर सुधीर जगदाले के मामले में डीबी कार्प को स्पष्‍ट निर्देश दिया कि आप पचास प्रतिशत राशि कोर्ट में जमा करें। दिनेश परदेशीजी की ओर से लिगल अॅडवायजर सिध्देश्वर ठोंबरेजी और राहुल खाडपजी ने पक्ष रखते हुए कोर्ट से दरखास्त की कंपनी से पहले 50 फीसदी राशि जमा कराई जाए। जिसके बाद अदालत ने डी बी कॉर्प को स्टे देने से मना किया। यह आदेश बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ के विद्वान न्यायाधीश रविन्द्र घुगे ने दिया है।

डी बी कॉर्प के पिटीशन पर औरंगाबाद हाइकोर्ट में सुनवाई चल रही थी। आपको बता दें कि लेबर कोर्ट से पेजमेकर दिनेश परदेशी के पक्ष 21 लाख का अवार्ड पास हुआ है और साथ ही डिप्टी न्यूज एडिटर सुधीर जगदाले के पक्ष में 28 लाख का अवार्ड 4 जनवरी 2019 को पारित किया गया था। जिसके बाद डीबी कॉर्प ने अदालत में रिव्यू पिटीशन दाखिल की थी। डीबी कॉर्प द्वारा दाखिल रिव्यू पिटिशन भी औरंगाबाद लेबर कोर्ट ने 10 जून 2019 को खारिज कर दी थी। दिनेश परदेशी और सुधीर जगदाले के पक्ष में लेबर कोर्ट के सुनाए फैसले पर 23 सितम्बर 2019 को डीबी कॉर्प ने औरंगाबाद हाइकोर्ट में स्टे की डिमांड की थी। डी बी कॉर्प की पिटीशन पर औरंगाबाद हाइकोर्ट ने स्टे देने से इन्कार करते हुए स्पष्‍ट कहा कि 50 फीसदी राशि पहले जमा करो। आपको बता दें कि हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए डीबी कॉर्प 10 बड़े वकीलों की फौज के साथ पहुंचा था। अदालत ने यह आदेश WRIT PETITION NO. 11646 OF 2019 औऱ WRIT PETITION NO. 11665 OF 2019 पर संयुक्‍त रूप से दिया।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्टीविस्ट
९३२२४११३३

Tuesday 24 September 2019

केजरीवाल फिर जीते तो यूपी छोड़ दिल्ली में बस जाउंगा!


रॉबी शर्मा कानपुर के जाने-माने सोशल एक्टिविस्ट हैं। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़े-बड़ों से लड़ाई लड़ी और उनके छक्के छुड़ा दिए। दैनिक जागरण समूह द्वारा हड़पी गई करोड़ों की जमीनों को मुक्त कराने के लिए रॉबी शर्मा ने कोर्ट में दमदारी से अपनी बात रखी और ढेर सारे दबावों-धमकियों के बावजूद अड़े रहे। अंतत: उन्हें जीत हासिल हुई। इन्हीं रॉबी शर्मा ने ऐलान किया है कि अगर दिल्ली में केजीरवाल दोबारा जीतकर सरकार बनाते हैं तो वह यूपी छोड़कर दिल्ली में बस जाएंगे।

रॉबी शर्मा फेसबुक पर लिखते हैं :

If kezariwal comes to power again in Delhi then I would like to migrate to Delhi and spend my last days there.
-Robby Sharma

उनके इस एलान पर उनके एक मित्र Anil Sharma पूछते हैं- Why do you think so?

इसका जवाब रॉबी शर्मा कुछ यूं देते हैं-
Because I can’t afford the electricity bill and health services bills in uttar Pradesh.

यूपी में रॉबी शर्मा अकेले नहीं हैं जो भारी बिजली बिल और कबाड़ा स्वास्थ्य सुविधाओं की मार झेल रहे हैं। हर कोई बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था से परेशान है। बिजली के भारी बिल के कारण लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में बिजली-स्वास्थ्य को लेकर सीएम अरविंद केजरीवाल का दिल्ली मॉडल अच्छी खाली लोकप्रियता देश के दूसरे राज्यों में प्राप्त कर सकता है। केंद्र और यूपी की भाजपा सरकारों को जल्द से जल्द बिजली बिल में राहत देने और स्वास्थ्य सुविधाओं को चमकाने के लिए सोचने की जरूरत है वरना कहीं देर न हो जाए।

[साभार: भड़ास4मीडिया.कॉम]

रॉबी शर्मा के बारे में ज्यादा जानने के लिए इसे पढ़ें-
जागरण समूह की चोरी-धोखाधड़ी पकड़ी गई, हाईकोर्ट ने दिए रेव3 मल्टीप्लेक्स तुरंत गिराने के निर्देश




कैंसर से हार गए बनारस के पत्रकार शशिभूषण तिवारी, दैनिक जागरण ने मजीठिया मांगने पर कर दिया था तबादला


दैनिक जागरण के उप सम्पादक और मजीठिया क्रांतिकारी शशिभूषण तिवारी अब इस दुनिया में नहीं रहे। उन्होंने बनारस के एपेक्स अस्पताल में शनिवार को अंतिम सांस ली। शशिभूषण तिवारी काफी दिनों से कैंसर से जूझ रहे थे।

शशिभूषण को मजीठिया की मांग करने पर दैनिक जागरण प्रबंधन ने प्रताड़ित करना शुरू कर दिया था और उनका तबादला तक कर दिया गया था। बीमारी के बाद उनको आगरा से वापस लौटना पडा। कैंसर के इलाज के चलते उनके परिवार की आर्थिक स्थिति काफी बिगड़ गई थी। सोशल मीडिया पर उनकी मदद के लिए उनके परिचिनों ने अभियान भी चलाया था। पर शशिभूषण को बचाया न जा सका।

उनकी बीमारी की जानकारी मिलने के बाद पत्रकार अनिल सिंह ने अपनी एफबी बॉल पर एक पोस्‍ट की लिखी थी, जिसे यहां जारी किया जा रहा है....

ईमानदारी की सजा भोग रहे हैं पत्रकार शशिभूषण तिवारी

Anil Singh : भड़ास पर एक खबर पढ़ने के बाद मन बुरी तरह व्‍यथित है. पत्रकारिता के पेशे में ईमानदार होना और रीढ़ रखना कितना दुखदायी हो सकता है, इसके जीते जागते उदाहरण हैं दैनिक जागरण, बनारस के पत्रकार शशिभूषण तिवारी. कैंसर से पीडि़त एवं बदहाली से जूझते शशि भैया की तस्‍वीर देखकर दिल विचलित हो गया. बेहद हंसमुख और मिलनसार तबीयत वाले शशि भैया के साथ दैनिक जागरण, चंदौली ब्‍यूरो में लंबे समय तक काम करने का अवसर मिल चुका है, इसलिये उनकी हालत देखकर तकलीफ कुछ ज्‍यादा हो रही है. उनको फोन मिलाया तो यह दर्द और बढ़ गया. फोन भाभी ने उठाया, मैंने परिचय दिया तो उन्‍होंने बताया कि बोल नहीं पा रहे हैं. फिर भी, बात कराया, लेकिन वे ठीक से बोल नहीं पा रहे थे. उनकी आवाज तक समझ नहीं आ रही थी. उनकी ऐसी हालत देखकर भगवान पर भी भरोसा करने का मन नहीं हो रहा है.

दरअसल, पत्रकारिता के चमकदार चेहरे के पीछे जिंदगी कितनी स्‍याह होती है, उसके जीते जागते उदाहरण बन गये हैं शशि भूषण तिवारी. अखबार के घटियापन के शिकार शशि भइया को इस हालत में पहुंचाने का जिम्‍मेदार दैनिक जागरण, वाराणसी का प्रबंधन है. खासकर वाराणसी यूनिट में समाचार संपादक रहे राघवेंद्र चड्ढा एवं मैनेजर अंकुर चड्ढा. शशि भूषण तिवारी की गलती केवल इतनी थी कि उन्‍होंने दैनिक जागरण प्रबंधन की ओर से मजमीठिया नहीं मांगने के लिये बनाये गये पत्र पर हस्‍ताक्षर करने से इनकार कर दिया था. यही इनकार उनकी जिंदगी के लिये परेशानी का सबब बन गया. बेहद ईमानदार और भाषा पर जबर्दस्‍त पकड़ रखने वाले शशि भूषण तिवारी इसके बाद ही जागरण प्रबंधन के निशाने पर आ गये. पहले उन्‍हें चंदौली से हटाकर बनारस लाया गया, फिर उन्‍हें जबरदस्‍ती इलाहाबाद यूनिट भेज दिया गया. इलाहाबाद में उनके साथ प्रबंधन जितना दुर्व्‍यवहार कर सकता था किया. इलाहाबाद में तैनाती के दौरान उनसे बात होती थी तो बताते थे कि किस तरीके से अधिक समय तक काम कराया जा रहा है. तरह तरह से प्रताडि़त करने का प्रयास किया जा रहा है.

मामूली तनख्‍वाह देने वाले प्रबंधन ने जब हद से ज्‍यादा परेशान कर दिया तो उन्‍होंने श्रम न्‍यायालय में मजीठिया वेज बोर्ड के लिये मामला दायर कर दिया, लेकिन तमाम सरकारी संस्‍थानों की तरह श्रम न्‍यायालय भी दैनिक जागरण प्रबंधन के दबाव में अब तक मामले को लटकाये रखा है. इसके बाद उनका तबादला आगरा यूनिट के लिये कर दिया गया, जहां कुछ दिन काम करने के बाद बीमारी के चलते आवेदन देकर घर चले आये. कुछ दिन प्राइवेट नौकरी करके काम चलाते रहे. कैंसर के महंगे इलाज ने धीरे-धीरे सब कुछ बिकवा दिया. बेइमानी कभी की नहीं इसलिये कोई अवैध संपत्ति या बैंक बैलेंस जमा नहीं किया. बीमारी के दौरान एकमात्र पुत्र के प्राइवेट नौकरी से खर्च चल रहा था, लेकिन पिता के इलाज के लिये ज्‍यादा अवकाश लेने पर उसकी नौकरी भी खतरे में आ गई है.

सवाल यही है कि समाज और सिस्‍टम किसी पत्रकार को बईमान या भ्रष्‍ट घोषित करने में एक मिनट की देरी नहीं करता, लेकिन एक पत्रकार, जो मामूली पैसे में नौकरी करने के बावजूद ईमानदारी से अपना काम करता है, के साथ समाज का एक आदमी खड़ा नहीं होता, आखिर क्‍यों? शशि भूषण तिवारी अगर बेईमान होते या रीढ़विहीन होते तो शायद दैनिक जागरण में मलाई खा रहे होते. महंगे से महंगा ईलाज भी उनसे तमाम लाभ लेने वाले करा देते, लेकिन ईमानदारी से अपना काम किया तो पूरा परिवार बरबादी के कगार पर है. फिर क्‍यों कोई पत्रकार संवेदनहीन समाज के लिये ईमानदारी और जिम्‍मेदारी से काम करे? क्‍यों?

[कई न्यूज चैनलों और अखबारों में काम कर चुके लखनऊ के पत्रकार अनिल सिंह की एफबी वॉल से]

[साभार: भड़ास4मीडिया.कॉम]

पत्रकारों ने भी मांगी मेट्रो किराए में छूट, केजरीवाल से मिले


नई दिल्ली। दिल्ली पत्रकार संघ (डीजेए) ने दिल्ली के सभी पत्रकारों के लिए दिल्ली मेट्रो रेल व दिल्ली परिवहन निगम की सभी बसों में नि:शुल्क यात्रा, अस्पतालों में बिना बारी के इलाज, 25000 रुपये मासिक पेंशन और दिल्ली में पत्रकार भवन बनाने की दिल्ली सरकार से मांग की है। इसे लेकर दिल्ली पत्रकार संघ (डीजेए) का एक प्रतिनिधिमंडल अध्यक्ष मनोहर सिंह और महासचिव अमलेश राजू की अगुवाई में दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल से मिला।

करीब 20 मिनट की मुलाकात में मुख्यमंत्री केजरीवाल इस बात पर सहमत थे कि दिल्ली में सभी पत्रकारों (गैर मान्यताप्राप्त को भी) को दिल्ली परिवहन निगम की सभी बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा मिले। उन्होंने कहा कि उनकी कोशिश है कि न केवल महिलाओं को, बल्कि केवल पत्रकारों को भी मेट्रो किराए में विशेष रियायत दी जाए। डीजेए पदाधिकारियों की मांगों को सुनने के बाद मुख्यमंत्री केजरीवाल ने संकेत दिया कि अगर केंद्र सरकार से सहयोग मिले तो दिल्ली सरकार मेट्रो रेल में भी पत्रकारों को किराए में छूट दे सकती है।

शुक्रवार को डीजेए के नवनिर्वाचित पदाधिकारियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने दिल्ली सचिवालय स्थित केजरीवाल के कार्यालय में मिलकर उन्हें श्रमजीवी पत्रकारों के अधिकारों एवं हितों पर केन्द्रित अपना सात सूत्री मांगपत्र सौंपा। प्रतिनिधिमंडल ने पत्रकारों के हित में कई उन्य कदम उठाने की मांग भी की, जिस पर विचार करने का मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया।

डीजेए राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कार्यरत 1500 से अधिक श्रमजीवी पत्रकारों का प्रतिनिधिसंगठन है, जो 1972 से मूल्य आधारित पत्रकारिता को बढावा देने के साथ-साथ श्रमजीवी पत्रकारों के अधिकारों एवं हितों के लिए प्रयासरत है। प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री से दिल्ली परिवहन निगम की बसों में सभी पत्रकारों यानि मान्यता प्राप्त और गैर मान्यताप्राप्त पत्रकारों को निशुल्क यात्रा करने की सुविधा प्रदान करने, इन्दिरा गांधी अन्तरराषट्रीय हवाई अडडे के लिए संचालित बसों में भी यह सुविधा प्रदान करने की मांग की।

इसके अलावा पत्रकारों के लिए दिल्ली मेट्रो रेल में निशुल्क यात्रा करने की सुविधा की व्यवस्था करने, हरियाणा, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश आदि राज्यों की तरह दिल्ली के पत्रकारों को भी 60 वर्ष की आयू पूर्ण होते ही मासिक पेंशन प्रदान करने और दिल्ली में यह राशि 25000 तक निर्धारित करने की मांग की है।

इसके अलावा डीजेए ने दिल्ली सरकार से मांग की है कि सभी पत्रकारों (मान्यताप्राप्त, गैर मान्यताप्राप्त, डेस्क) के लिए सरकारी और निजी अस्पतालों में अलग प्रेस पंजीकरण काउंटर, जांच केन्द्रों तथा दवाई काउंटर पर पत्रकारों के लिए अलग से खिड़की की व्यवस्था की जाए और खिड़की के बाहर ‘पत्रकार’ शब्द अवश्य लिखा जाए ताकि सभी पत्रकार उसका लाभ ले सकें। इतना ही नहीं दिल्ली में पत्रकारों लिए बैठने एक ‘पत्रकार भवन’ का निर्माण कराने और अकेली रहने वाली अथवा अविवाहित महिला पत्रकारों के लिए विशेष हॉस्टल का निर्माण कराने की मांग भी डीजेए ने मुख्यमंत्री के सामने रखी। मुख्यमंत्री ने प्रतिनिधिमंडल के द्वारा उठाए गए मुद्दों पर सहमति जताई और शीध्र समाधान का आश्वासन दिया।

प्रतिनिधिमंडल में मनोहर सिंह व अमलेश राजू के अलावा नवनिर्वाचित कार्यकारिणी से राजेंद्र स्वामी, उमेश चतुर्वेदी, नेत्रपाल शर्मा, संतोष सूर्यवंशी, श्रीनाथ मेहरा, प्रतिभा शुक्ला, प्रेरणा कटियार, आशुतोष कुमार सिंह, मिलन शर्मा, धर्मेद्र जागर और प्रियरंजन शामिल थे।

जारीकर्ता: दिनेश यादव, कार्यालय सचिव


[साभार: भड़ास4मीडिया.कॉम]

पत्रकारों के अस्तित्‍व की रक्षा के लिए 10 अक्‍टूबर को दिल्‍ली में जबरदस्‍त रोष प्रदर्शन

चेन्‍नई। वर्तमान सरकार द्वारा पत्रकारों एवं गैर पत्रकारों के लिए गठित वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट के खात्‍मे के खिलाफ देशभर के पत्रकार 10 अक्‍टूबर 2019 को दिल्‍ली में जबरदस्‍त रोष प्रदर्शन करेंगे। इस प्रदर्शन की घोषणा यहां शनिवार 21 सितंबर को आयोजित The Confederation of Newspapers & News Agency Employees’ Organizations द्वारा आहूत एक बैठक में की गई। इस बैठक में देशभर की पत्रकार यूनियनों के प्रतिनिधि मौजूद थे। बैठक में Working Journalists Act, 1955 और अन्‍य लेबर कानूनों के खात्‍मे, पत्रकारों और गैर पत्रकारों के लिए नए वेतन बोर्ड का गठन, वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट 1955 के तहत इलेक्‍ट्रानिक मीडिया और वेब पोर्टल आदि के कर्मियों को शामिल करना और देशभर की अदालतों में लंबित पड़े मजीठिया वेजबोर्ड के केसों पर विशेष रूप से चर्चा की गई।

बैठक में केंद्र सरकार से अपील की गई कि वह वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट को निरस्त करने के अपने फैसले पर पुर्नर्विचार करें नहीं तो देशभर के सभी मीडिया कर्मियों को अपना आंदोलन तेज करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि केंद्र सरकार को वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट में व्यापक संशोधन करना चाहिए ताकि इलेक्ट्रॉनिक और इंटरनेट मीडिया कर्मी भी इसके दायरे में आ सके। वर्तमान में, इलेक्ट्रॉनिक और इंटरनेट मीडिया में कार्यरत कर्मियों की स्थिति बहुत दयनीय है और उन्‍हें उन न्यूनतम बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित रखा जाता है, जोकि प्रिंट मीडिया के कर्मियों को मिलती हैं। इलेक्ट्रॉनिक और इंटरनेट कर्मियों का वेतन भी वेजबोर्ड की जगह मालिक तय करते हैं। वेजबोर्ड के अंदर नहीं आने की वजह से उन्हें अवकाश, कार्य के घंटे, भविष्य निधि, ईएसआई और बोनस आदि की सुविधाओं से वंचित रखा जाता है।

बैठक में इस बात पर आश्चर्य जताया गया कि पत्रकारों और गैर पत्रकारों के लिए विशेष तौर पर बनाए गए वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट को ऐसे 13 अन्‍य एक्‍टों के साथ मर्ज किया जा रहा है जिनकी आपस में तुलना नहीं की जा सकती। वे एक्‍ट पूरी तरह से प्‍लांट, फैक्‍टरी, बीड़ी कारखानों, खदान आदि में कार्यरत कामगारों के लिए हैं, जबकि वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट लोकतंत्र के चौथे स्‍तंभ के कर्मियों के काम के अधिकारों की रक्षा के लिए गठित किया गया था।

बैठक आशा व्यक्त की गई कि केंद्र सरकार कार्यशील पत्रकारों के लिए बने कानून को खत्‍म करने की जगह इसके दायरे को बड़ा करेगा। बैठक में नए वेतन बोर्ड के गठन की भी मांग की गई। इसके साथ ही केंद्र और राज्‍य सरकारों से सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने की मांग की गई। पत्रकार और गैर पत्रकारों के परिसंघ ने मांग की कि मीडिया कर्मचारियों की संविदा नियुक्ति पर प्रतिबंध लगना चाहिए और इसका उल्लंघन करने वाली कंपनी पर मुकदमा चलना चाहिए।

बैठक को एम.एस. यादव (फेडरेशन ऑफ पीटीआई एम्प्लॉइज यूनियन), परमानंद पांडे और हेमंत तिवारी (आईएफडब्ल्यूजे), ए सुरेश प्रसाद (आईजेयू), अशोक मलिक (एनयूजे(आई), गीतार्थ पाठक (आईजेयू), G. Bhooathy (अखिल भारतीय समाचार पत्र कर्मचारी महासंघ), अनिल गुप्ता (द ट्रिब्यून), डेका (असम ट्रिब्यून) ने संबोधित किया। बैठक में IFWJ के पूर्व महासचिव और अनुभवी पत्रकार के निधन पर शोक व्यक्त किया गया। पूर्व महासचिव ने पिछले सप्‍ताह नई दिल्‍ली में अंतिम सांस ली थी। बैठक में शामिल होने वालों में भारतीय पत्रकार संघ (Indian Federation of Working Journalists-IFWJ), नेशनल जर्नलिस्ट यूनियन (इंडिया) (NUJ (I), अखिल भारतीय समाचार पत्र कर्मचारी महासंघ ( AIENF), नेशनल फेडरेशन ऑफ न्यूजपेपर्स एम्प्लॉइज (NFNE), इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन (IJU), द हिंदू एम्पलाइज यूनियन, इंडियन एक्सप्रेस एम्पलाइज यूनियन, ट्रिब्यून एम्पलाइज यूनियन, असम ट्रिब्यून, टाइम्स ऑफ इंडिया एम्प्लॉइज यूनियन और बंगलौर समाचार पत्र कर्मचारी संघ के लगभग 150 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। 

Newspaper Trade Unions to Stage Demonstration on 10 October in New Delhi

All apex trade union bodies of newspaper employees have decided to stage a massive demonstration on 10th of October in New Delhi against the proposed abolition of the Working Journalists Act by the Central Government. This decision was taken in a meeting of the Confederation of Newspaper and News Agencies Employees Federation, which consisted of the Indian Federation of Working Journalists (IFWJ), the National Journalists Union (India) (NUJ(I) , All India Newspaper Employees Federation (AIENF), National Federation of Newspapers Employees (NFNE), Indian Journalists Union (IJU) and many plant-level unions like, the Hindu Employees Union, Indian Express Employees Union, the Tribune Employees Union, Assam Tribune, Times of India Employees Union and Bangalore Newspaper Employees Union.

The meeting appealed to the Central Government to eschew the obstinate attitude of repealing the Working Journalists Act otherwise all media employees of the country will be compelled to intensify their agitation. The meeting unanimously decided that the government must be prevailed upon to comprehensively amend the Working Journalists Act so as to bring the Electronic and Internet Media employees within its ambit. At present, the working conditions of employees working for the Electronic and Internet Media are very pathetic as they are deprived of even the basic minimum facilities, which are available to the employees of the print medium. The wages of the electronic and internet medium employees are whimsically decided by the owners. They are denied of the facilities of proper Leave and Holidays, Working hours, Provident Fund, ESI and Bonus etc.

The meeting wondered how the Working Journalists Act, which is a distinct Act has been proposed to be merged with 13 other laws including those of the Plantation Workers Act, Dock Workers Act, Mines Act, Factories Act, Beedi Workers Act, Cine and Theatre Workers Act. It is really strange that a special act like the Working Journalists Act can is being proposed to be merged with other acts when there is no commonality among them. How the working of the beedi workers, factory workers, mines workers and plantation workers are compared with the working journalists?

It was hoped in the meeting that the good sense would prevail on the Government and it will widen the scope of the Working Journalists instead of abrogating it lock, stock and barrel. The meeting also demanded that the new Wage Board should be set up and the government must take all necessary steps to ensure the implementation of the Majithia Wage Board recommendations. The Confederation demanded that the contractual appointment of the media employees should be banned and any proprietor violating it should be prosecuted.

Among those who spoke in the meeting were M.S. Yadav (Federation of PTI Employees Union), Hemant Tiwari and Parmanand Pandey (IFWJ), Akhouri Suresh Prasad (IJU), Ashok Malik (NUJ(I), Geetarth Pathak (IJU), G. Bhooathy (All India Newspaper Employees Federation), Anil Gupta (The Tribune), Mr Deka (Assam Tribune). The meeting was attended by nearly 150 representatives of the different unions.

The meeting condoled the death of the former Secretary-General of the IFWJ and a veteran journalist, who passed away last week in New Delhi.

Parmanand Pandey
Secretary-General, IFWJ

मजीठिया: भास्‍कर को हाईकोर्ट में झटका, कहा- स्‍टे चाहिए तो अवॉर्ड का 50 फीसदी जमा कराओ, तब करेंगे विचार

औरंगाबाद। दैनिक दिव्य मराठी (भास्कर ग्रुप) को दिनेश परदेशी और सुधीर जगदाले के मामले में तगड़ा झटका लगा है। डीबी कॉर्प इन दोनों के मामले में स्‍टे लेने के लिए हाईकोर्ट गया था। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने स्‍पष्‍ट कहा कि कंपनी को स्‍टे चाहिए तो उन्‍हें अवॉर्ड की राशि का 50 फीसदी (लगभग साढ़े चौबीस लाख) जमा करवाना होगा।

भास्‍कर ने 22 अगस्त 2019 को औरंगाबाद हाईकोर्ट में दो याचिकाएं दायर की थी। ये याचिकाएं इसी साल 10 जून को लेबर कोर्ट द्वारा रिव्‍यू पिटीशन पर दिए फैसले के खिलाफ दायर की गई थी। दिनेश परदेशी और सुधीर जगदाले के मामले में दायर इन याचिकाओं पर 23 सितंबर को हाईकोर्ट की एकलपीठ में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान न्‍यायमूर्ति रवींद्र घुगे ने भास्कर के स्टे मांग को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि प्रबंधन पहले अवॉर्ड की राशि का 50 फीसदी रजिस्टार के पास जमा करवाएं, तभी हम हम आगे की सुनवाई जारी रखेंगे और इस पर विचार करेंगे।

मालूम हो कि देशभर में औरगांबाद लेबर कोर्ट से मजीठिया मामले में सबसे पहले 13 अवॉर्ड पारित हुए थे, जोकि करीब पौने तीन करोड़ रुपये के है। औरगांबाद लेबर कोर्ट ने दिनेश परदेशी, सुधीर जगदाले, भास्कर कोडम, संतोष पाईकराव, विजय नवल, देवीदास लांजेवार, धनंजय ब्रह्मपूरकर, अरुण तलेकर, प्रकाश खंडेलोटे, नामदेव गायकवाड, सुरेश बोर्डे, विजय वानखेडे, सूरज जोशी के पक्ष में 4 जनवरी 2019 को अवॉर्ड पारित किए थे। जिसके बाद भास्‍कर ने लेबर कोर्ट में रिव्‍यू पिटिशन दायर की थी। 10 जून 2019 को रिव्‍यू पिटिशन पर सुनवाई करते हुए लेबर कोर्ट ने सभी को खारिज कर दिया था। जिसके बाद सभी 13 लोगों ने हाईकोर्ट में कैविएट लगा दिया था। भास्‍कर ने इनमें से केवल 2 कर्मचारियों दिनेश परदेशी और सुधीर जगदाले के मामले में हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। लेबर कोर्ट ने दिनेश परदेशी का 21 लाख और सुधीर जगदाले का 28 लाख का अवॉर्ड पारित किया था।


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Thursday 19 September 2019

श्रम न्यायालयों के कार्य की समीक्षा कर मजीठिया मामलों की सुनवाई में लाई जाएगी तेजी: मौर्या


मजीठिया मामले में श्रम मंत्री से मिली श्रमजीवी पत्रकार यूनियन
यूनियन ने मंत्री को सौंपा ज्ञापन श्रम न्यायालयों में वादों की सुनवाई में तेजी लाने की मांग
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद सालों से लंबित पड़े हैं मजीठिया के वाद

पीलीभीत। उत्तर प्रदेश के श्रम न्यायालयों में मजीठिया वेज बोर्ड के वेतन भत्ते व बकाया एरियर आदि के मामलों में धीमी गति से सुनवाई होने का मामला उत्तर प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार यूनियन में मंगलवार को सूबे के श्रम विभाग के काबीना मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के सामने रखा। यूनियन की ओर श्रम मंत्री को ज्ञापन सौंपा गया। उत्तर प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के मंडल अध्यक्ष निर्मल कांत शुक्ला, मंडल महासचिव राधाकृष्ण रावत, जिला महासचिव साकेत सक्सेना आदि लोक निर्माण विभाग के अतिथि गृह में जनपद के प्रभारी मंत्री व श्रम एवं रोजगार मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या से मिले।

श्रम मंत्री को सौंपे गए ज्ञापन कहा गया कि उत्तर प्रदेश के विभिन्न श्रम न्यायालयों में मजीठिया वेज बोर्ड के बकाया वेतन व एरियर की मांग को लेकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के क्रम में श्रम न्यायालयों में मुकदमे चल रहे हैं। माननीय सर्वोच्च न्यायालय में इन मुकदमों को छह माह की समयावधि के अंदर निपटाने की स्पष्ट निर्देश दे रखे हैं। इसके बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से श्रम न्यायालय में नियुक्त पीठासीन अधिकारी गंभीर नहीं है और दो-दो साल से मजीठिया संबंधी मुकदमे श्रम न्यायालयों में लंबित पड़े हुए हैं। उनकी समयबद्ध सुनवाई ना करके पीठासीन अधिकारी माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का भी उल्लंघन कर रहे हैं।

ज्ञापन में मांग की गई कि मजीठिया वेज बोर्ड से संबंधित प्रकरणों में जानबूझकर सुनवाई में विलंब कर रहे पीठासीन अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए। इस संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार श्रम न्यायालयों के पीठासीन अधिकारियों को अलग से माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समयबद्ध आदेश का अनुपालन करने के लिए आदेशित किया जाए ताकि उत्तर प्रदेश में मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे पत्रकारों को न्याय मिल सके।

श्रम एवं रोजगार मंत्री श्री मौर्य ने आश्वासन दिया कि इस मामले में समीक्षा करके सरकार की ओर से पीठासीन अधिकारियों के लिए निर्देश जारी कराएंगे।

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Tuesday 17 September 2019

मजीठिया: उप्र के श्रम मंत्री ने दिया सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का सख्ती से पालन का निर्देश


लखनऊ। श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने श्रम विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे पत्रकारों और गैर पत्रकारों के लिए गठित मजीठिया वेजबोर्ड  की सिफारिशों को लागू करने के संबंध में सर्वोच्‍च न्यायालय के आदेशों का सख्ती से पालन कराए।

मौर्या सोमवार को बापू भवन में मजीठिया वेजबोर्ड की सिफरिशों को लागू करने के लिए गठित त्रिपक्षीय अनुश्रवण समिति की बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे। बैठक में प्रमुख सचिव श्रम सुरेश चंद्र और प्रदेश के सभी उपश्रमायुक्तों के अलावा पत्रकारों के प्रतिनिधि के रूप में यूपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के अध्यक्ष हसीब सिद्दीकी तथा इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट के मुदित माथुर, योगेश गुप्ता और लोकेश त्रिपाठी शामिल हुए।

श्रम मंत्री ने पत्रकारों की शिकायतें सुनने के बाद कहा कि किसी को यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि उनके संस्थानों का निरीक्षण नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि निरीक्षण न होना हमारी कमजोरी न समझा जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि श्रम विभाग की भूमिका दोनों पक्षों के बीच विवाद पैदा होने के बाद आती है। सेवायोजकों को उदार भाव से काम करते हुए टकराव की स्थिति से बचना चाहिए।

उन्होंने कहा कि किसी को प्रताड़ित करना हमारा मकसद नही हैं। इसलिए सरकार कभी-कभी शिथिलता बरतती है। लेकिन यदि कर्मचारियों का शोषण होगा तो सरकार अवश्य सक्रिय होगी।


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पत्रिका ने मजीठिया क्लेम करने वाले मीडियाकर्मी पर चोरी का केस लिखा दिया!

देश के चर्चित अखबारों में शुमार राजस्थान पत्रिका में अगर आप जॉब करते हैं तो मान कर चलिए की वेतन वृद्धि या मजीठिया वेजबोर्ड की मांग करने पर कभी भी पुलिस की मदद से आपके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराया जा सकता है। पढ़िए इस अखबार के मैनेजमेंट ने किस तरह एक मीडियाकर्मी को परेशान किया कि आज ये कर्मचारी चार महीने से घर से नहीं निकल रहा है। इस कर्मचारी का पत्र ये रहा….

आदरणीय भाईसाहब

नमस्कार

आप लोगों के सहयोग से मैंने और मेरे जैसे अनेक लोगों ने मजीठिया वेतन आयोग के लिए केस किया। मुझे मजीठिया के बारे में कोई विशेष जानकारी भी नहीं थी। राजस्थान के पाकिस्तान के साथ लगते बार्डर एरिया के छोटे से कस्बे का रहने वाला हूं और इतनी बड़ी कंपनी से अपना हक लेने का सपना देख लिया। माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश के बावजूद भी लगभग तीन साल तक केस चला और कंपनी के किसी भी कर्मचारी अधिकारी की गवाही तक ना हो सकी।

उन्नीस अप्रैल २०१९ को राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर के मैनेजर ने थाने में चोरी का मामला दर्ज कराया। उसका कहना था कि मैंने २०१३ में कार्यालय से एक दस्तावेज चोरी किया था जो कि मैंने पीएफ कमिश्नर जयपुर के आफिस में पेश किया था। मैनेजर का यह कहना था कि उसने सूचना के अधिकार के तहत पीएफ कमिशनर आफिस से यह सूचना प्राप्त की है जबकि पीएफ आफिस ने यह दस्तावेज मेरे द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज में शामिल नहीं बताया था।

पीएफ का केस हमारे पक्ष में हुआ। पुलिस का मुझ पर बहुत अधिक दबाव रहा। जांच अधिकारी मुझे रात को भी फोन करता। पैसे की मांग के लिए। मुझे इसके अलावा अन्य मामलों में फंसाने की धमकी दी गई। मेरे पिता नहीं हैं। मां के सर में क्लाट है, जिसकी दवा चल रही है। उनकी भी तबीयत बिगड़ गई और मुझसे थाने में ही केस वापस लेने के कागजों पर साइन करवा लिए जबकि राजस्थान पत्रिका मुझे कर्मचारी मानने से इंकार करता रहा है।

मैंने ये कागज थाने में भी दिए थे। मुझे पक्का यकीन था कि मैं केस जीत जाऊंगा और मुझे नौकरी वापस मिल जाएगी। मुझे माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश पर पूरा भरोसा था कि मैं हक ले लूंगा, लेकिन अखबार मालिक बहुत ताकतवर हैं। ये लोग सरकारी कार्यालयों में प्रभावी भी हैं। तीन साल मैनेजर की गवाही नहीं हुई। मेरे उपर आजतक कभी भी किसी प्रकार का कोई केस नहीं था। चोरी के मामले से अब आगे नौकरी मिल पाना नामुमकिन सा हो गया है। छोटा शहर है। बहुत ज्यादा परेशान हूं। डिप्रेशन का शिकार हो गया।

चार महीने से घर में ही हूं। कहीं बाहर जाने का मन नहीं करता। कई बार आत्महत्या करने का विचार भी मन में आता है। पर मेरे बाद मेरे बच्चों का क्या होगा, ये सोच कर परेशान हो गया। हक पाने की लड़ाई में जीवन तबाह हो गया है। जीने की इच्छा खत्म हो गई है। माननीय उच्चतम न्यायालय से यह कहना चाहता हूं कि क्या यही आपका इंसाफ है? क्या इसलिए ही हम लड़े इन ताकतों से? आपके आदेश के बावजूद भी हम परेशान होने को मजबूर हैं!

[साभार: भड़ास4मीडिया.कॉम]


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Sunday 15 September 2019

अब लोकमत ने किया मजीठिया के बकाया का भुगतान, भोपाल श्रम न्यायालय में निपटा पहला मामला

भोपाल। हिमाचल प्रदेश के बाद अब मध्‍यप्रदेश से भी मजीठिया के रिकवरी मामले को लेकर एक बड़ी खबर आ रही है। यहां पर प्रबंधन ने लेबर कोर्ट में चल रहे रिकवरी केस के दौरान कर्मचारी से समझौता कर लिया। इस समझौते के तहत प्रबंधन ने अदालत में कर्मचारी को चैक सौंपा। चैक को बैंक एकाउंट में डाला जा चुका है। इस खबर ने मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे हजारों साथियों के बीच उत्‍साह का संचार पैदा कर दिया है।

मामला मजीठिया के बकाया को लेकर धारा17(2) के तहत मामला भोपाल लेबर कोर्ट में चल रहा था। लोकमत समाचारपत्र के पूर्व उप सम्पादक अशोक रोहले ने बकाया के लिए ये केस दायर किया था। रोहले साल 2015 में लोकमत से इस्तीफा देकर होशंगाबाद में नवदुनिया से जुड़े थे। सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान लोकमत के वकील और अशोक के बीच समझौता हुआ। लोकमत प्रबंधन ने भोपाल श्रम न्यायालय में बीते 11 सितम्बर को इस समझौते के तहत मजीठिया के एरियर का भुगतान चैक से किया। लोकमत प्रबंधन ने लगाए गए क्‍लेम से एक लाख रुपये कम देने की पेशकश की थी, जिसे अशोक और उनके वकील ने मान लिया था। चेक की राशि अशोक के बैंक खाते में जमा हो चुकी है।

मालूम हो कि इससे पहले दिव्‍य हिमाचल ने भी धर्मशाला श्रम न्‍यायालय में चल रहे मजीठिया के बकाया मामले में अपने कर्मचारी से समझौता कर लिया था और चैक से भुगतान किया था।

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Saturday 14 September 2019

निरंकुशता के खिलाफ आकाशवाणी महानिदेशालय और महिला आयोग के सामने जबरदस्‍त प्रदर्शन


नई दिल्‍ली। वर्षों से आकाशवाणी महानिदेशालय के निरंकुश अधिकारियों ने अपनी मनमानी से आकाशवाणी केन्द्रों के कैजुअल अनाऊंसर एंड कॉम्पीयर्स का शोषण करके और उन्हें केन्द्रों से बाहर करके उनकी आवाज को दबाया है।

इसी निरंकुशता के विरोध में ऑल इंडिया कैजुअल अनाउंसर एंड कॉम्पीयर्स यूनियन (रजिस्टर्ड) नई दिल्ली द्वारा 13 सितम्बर को आकाशवाणी महानिदेशालय और महिला आयोग के समक्ष पुरजोर धरना-प्रदर्शन किया गया। इस प्रदर्शन में देश के सबसे बड़े भारतीय मजदूर संघ ने आल इंडिया रेडियो कैजुअल अनाऊंसर रजिस्टर्ड यूनियन का सहयोग किया। संघ के पदाधिकारी बृजेश मिश्र, प्रमोद कुमार एवं अन्य उपस्थिति रहे।

गौरतलब है कि प्रसार भारती और आकाशवाणी महानिदेशालय ने कैजुअल अनाऊंसर और कॉम्पीयर्स की आज तक कोई सुनवाई नहीं की है और अधिकारियों ने दिन प्रतिदिन पुराने कैजुअलकर्मिंयों का शोषण किया है।


यूनियन की महासचिव डॉ. शबनम खानम ने बताया कि आकाशवाणी के अधिकारियों द्वारा पीड़ित कैजुअल अनाउंसर/कॉम्पीयर्स महिलाओं ने महिला आयोग में कई बार लिखित पत्रों और महिला आयोग अध्यक्ष से मिलकर गुहार लगाई थी मगर आज तक आयोग ने आरोपी अधिकारियों के विरूद्ध कोई ठोस कार्यवाई नहीं की और ना ही अधिकारियों ने पीड़ित महिला कैजुअलकर्मिंयों की ड्यूटी शुरू की इसलिए देशभर की समस्त पीड़ित महिला कैजुअलकर्मिंयों ने महिला आयोग के सामने धरना-प्रदर्शन करके अपना रोष प्रकट किया और महिला आयोग को दोषी अधिकारियों के विरूद्ध ठोस कार्यवाही करने का आह्वान किया।

इसके बाद आयोग ने बातचीत के लिए यूनियन के एक प्रतिनिधि मण्डल को आमन्त्रित किया जिसमें यूनियन महासचिव शबनम खानम व उपाध्यक्ष संज्ञा टण्डन की अगुवाई में पीड़ित महिलाओं का एक प्रतिनिधि मण्डल महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा से मिला। उन्होंने आश्वासन दिया कि अगले महीने आकाशवाणी महानिदेशालय को तलब कर मुआमले की पुन: सुनवाई की जाएगी और पीड़ित महिलाओं के साथ-साथ आरोपी अधिकारियों को बाकायदा समन भेजकर बुलाया जाएगा और पीड़ित महिलाओं को यथासंभव राहत दिलाने के लिए महानिदेशालय को निर्देशित किया जाएगा।

यूनियन अध्यक्ष हरिकृष्ण शर्मा ने बताया कि महिला आयोग के साथ-साथ कैजुअलकर्मिंयों ने अपने नियमितिकरण, कोर्ट गए कैजुअलकर्मिंयों की बन्द ड्यूटीज समान रूप से शुरू करने और ड्यूटी की फीस बढ़ोतरी जैसी कई जायज मांगों को लेकर यूनियन द्वारा आकाशवाणी महानिदेशालय के सामने एकदिवसीय सांकेतिक धरना-प्रदर्शन किया गया।

इस दौरान महानिदेशालय एडीजी संगीता गोयल से मुलाकात करने का संदेश आया लेकिन यूनियन ने इसे अस्वीकार करते हुए कहा कि महानिदेशालय डीजी व सीईओ प्रसार भारती ही सक्षम अधिकारी है जो हमारी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं अगर उनसे मुलाकात नहीं होती है तो अगले कुछ दिनों में महानिदेशालय के सामने अनिश्चितकालीन धरना व क्रमिम भूख हड़ताल की जाएगी और इस तरह सांकेतिक धरना-प्रदर्शन सम्पन्न हुआ।

धरना-प्रदर्शन के दौरान रेडियो के मशहूर श्रोताओं सुखविन्द्र सिंह जौड़ा कृष्णा पार्क और पंखा रोड़ से पिन्टू दिवाना ने यूनियन के लिए चाय-नाश्ते का प्रबन्ध किया।

यूनियन के प्रेस सचिव नरेन्द्र कौशिक 'धरतीपकड़' हिसार ने बताया कि यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हरिकृष्ण शर्मा शिमला,महासचिव शबनम खानम दिल्ली, उपाध्यक्ष, संज्ञा टंडन बिलासपुर, रेशमा इन्दुरकर नागपुर, करताप ठाकुर शिमला, कोषाध्यक्ष अर्चना गोयल दिल्ली, सचिव नवीन भारद्वाज कुरूक्षेत्र, सुधीर मेश्राम बालाघाट, सहसचिव अतुल श्रीवास्तव सागर, श्रीपाल शर्मा सूरतगढ़, प्रवक्ता सुनील चिपड़े बिलासपुर, रविन्द्र एकान्त कुरूक्षेत्र, नीता अग्रवाल, राधा पाठक, नीलम, सहित देशभर के सैंकड़ों महिला और पुरूष कैजुअलकर्मिंयों और मजदूर संघ कार्यकर्ताओं ने धरना-प्रदर्शन में भाग लेकर अपनी जायज मांगों के लिए आवाज उठाई।

वाराणसी में जीता पत्रकार, 50 फीसदी वेतन तुरंत और शेष का भुगतान 2 माह के भीतर करने का आदेश

वाराणसी। उत्तर प्रदेश के वाराणसी श्रम न्यायालय ने पीड़ित पत्रकार को 50 फीसदी वेतन तुरंत और शेष का भुगतान 2 माह के भीतर करने का आदेश का आदेश दिया है।

धर्म, संस्कृति, आध्यात्म की अति प्राचीन नगरी काशी के रहने वाले कर्तव्यपरायण, लगनशील पत्रकार काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष रहे कलम के बेताज बादशाह विकास पाठक ने अपना सम्पूर्ण जीवन काशी से प्रकाशित होने वाले एक सान्ध्य दैनिक में वर्ष 1987 से पत्रकारिता शुरू करके नित नए कीर्तिमान स्थापित करते हुए सहायक सम्पादक तक का सफर तय किया था।

खोजी पत्रकारिता के दौरान वाराणसी का चर्चित संवासिनी काण्ड रहा हो या अन्य समाजिक समरसता से जुड़ी खबरें सत्य व निर्भिक तथा अपने क्रांतिकारी लेखनी के द्वारा काशी ही नहीं अपितु अन्य जनपदों से लगायत प्रांतीय, राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी लेखनी की धार को कभी कुंद नहीं होने दिया।

वाराणसी के सान्ध्य दैनिक अखबार गाँड़ीव संस्थान के मलिकानों द्वारा इस कलम के जादूगर को काफी प्रताड़ित भी किया गया, लेकिन हार नहीं मानी और अपने कर्तव्य के पथ पर अडिग रहे। वर्ष 2011 मे सेवायोजन संस्थान द्वारा अचानक सेवा समाप्त कर दिया।

वर्ष 2016 मे कलम के इस जादूगर ने श्रम न्यायालय वाराणसी में वाद दाखिल किया। लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद अभिनिर्णय शासानादेश संख्या 678 दिनांक 03 सितम्बर 2019 द्वारा प्राप्त हुआ और 12 सितम्बर 2019 को एबार्ड प्रकाशित हुआ।

निर्णय में कहा गया है कि सेवायोजक संस्थान द्वारा श्रमिक को 50 प्रतिशत वेतन का भुगतान तत्काल करे और शेष भुगतान 2 माह के अंदर किया जाए। समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन उत्तर प्रदेश के उपाध्‍यक्ष जयराम पांडेय के अनुसार पीड़ित पत्रकारों व गैर पत्रकारों के हक में श्रम न्यायालय में कानूनी लड़ाई की मुख्य भूमिका यूनियन के वरिष्ठ विद्वान अधिवक्ता अजय मुखर्जी और आशीष टंडन ने निभाई। इस फैसले से पीड़ित पत्रकारों व गैर पत्रकारों में हर्ष का माहौल व्याप्त है।

Tuesday 10 September 2019

उत्तर प्रदेश में पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने की मांग

लखनऊ। उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति एवं  इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट ने उत्‍तर प्रदेश सरकार से पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने की मांग की है। उन्‍होंने  इस संदर्भ में एक पत्र उत्‍तर प्रदेश सरकार को लिखा है...

सेवा में                            10-09-19

श्री योगी आदित्यनाथ जी
माननीय मुख्यमंत्री
उत्तर प्रदेश

विषय—पत्रकारों के उत्पीड़न और बदले की भावना से की जा रही कार्यवाहियों के संदर्भ में


महोदय,

आपको अवगत कराना है कि विगत कुछ समय से प्रदेश भर में पत्रकारों को समाचार संकलन व प्रकाशन सहित संप्रेषण में प्रशासन की ओर से बाधाएं खड़ी की जा रही हैं और उनका उत्पीड़न किया जा रहा है। मिर्जापुर में मिड डे मील में धांधली को उजागर करने वाले पत्रकार पवन जायसवाल को उलटे पुलिस केस में फंसा दिया गया है। आजमगढ़ में बिना नंबर की स्कार्पियों रखने वाले पुलिस अधिकारी पर खबर दिखाने वाले पत्रकार संतोष जायसवाल पर झूठा मुकदमा दर्ज कर उसे जेल भेज दिया गया है जबकि बिजनौर में दलित बिरादरी के लोगों का दंबगों के पानी बंद किए जाने की खबर लिखने पर दैनिक जागरण व न्यूज 18 सहित पांच पत्रकारों पर संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है। राजधानी लखनऊ में पत्रकार असद रिजवी को मुहर्रम से संबंधित खबर लिखने पर पुलिस ने घर पहुंच कर धमकाया है।

उत्तर प्रदेश राज्य मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति अध्यक्ष व इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन सहित सभी पत्रकार संगठन इन सभी प्रकरणों को लेकर न केवल विरोध दर्ज करा चुके हैं बल्कि सक्षम अधिकारियों से वार्ता कर पत्रकारों का उत्पीड़न रोकने, उनके खिलाफ मुकदमे वापस लेने व दोषी अधिकारियों पर कारवाई करने की मांग कर चुके हैं। अब तक कोई कारवाई दोषियों के खिलाफ नहीं हो पाई है।

हम सभी पत्रकारगण इस ज्ञापन के माध्यम से निम्नलिखित मांग करते हुए मीडिया का आजादी पर मंडरा रहे संकट को लेकर सरकार से अविलंब कारवाई की अपेक्षा करते हैं।

1.     देश के कई अन्य राज्यों की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी पत्रकार सुरक्षा कानून लागू किया जाए।

2.     पत्रकारों पर झूठे व बदले की भावना से दर्ज मुकदमें तत्काल वापस लिए जाएं।

3.     पत्रकारों पर उत्पीड़नात्मक कारवाई करने वाले अधिकारियों पर कारवाई की जाए।

4.    प्रदेश व जिला स्तर पर पत्रकारों की स्थाई समिति को पुनर्जीवित करते हुए उसमें मान्यता समिति व अन्य पत्रकार संगठनों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए।

5.     पत्रकार के खिलाफ किसी प्रकार का मुकदमा दर्ज करने से पहले उसे स्थाई  समिति के पास भेजा जाए व जांच की जाए।

6.     मिर्जापुर प्रकरण में दोषी जिलाधिकारी के खिलाफ अविलंब कारवाई करते हुए पत्रकार पर दर्ज मुकदमा वापस लिया जाए। बिजनौर, आजमगढ़ सहित अन्य इस तरह के प्रकरणों में दर्ज मुकदमों को वापस लिया जाए व दोषियों पर कारवाई हो।

7.     प्रशासनिक अक्षमता व धांधली के मामले उजागर करने वाले पत्रकारों को खतरे की दशा में पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध करायी जाए।

महोदय निवेदन का इस ज्ञापन में उल्लिखित मांगों पर समुचित कारवाई सुनिश्चित की जाए।

भवदीय

हेमंत तिवारी
अध्यक्ष
उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति एवं
उपाध्यक्ष
इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट

Monday 9 September 2019

वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट और वेजबोर्ड के खात्‍मे के खिलाफ ATEU ने निकाला मार्च, राज्‍यपाल को सौंपा ज्ञापन


गुवाहाटी। असम ट्रिब्यून कर्मचारी संघ (ATEU) ने 4 सितंबर को वेतन स‍ंहिता 2019 के द्वारा पत्रकारों और गैर पत्रकारों के वेजबोर्ड के खात्‍मे के खिलाफ जबरदस्‍त प्रदर्शन किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राज्‍य के राज्‍यपाल जगदीश मुखी के माध्‍यम से एक ज्ञापन भेजा। इस ज्ञापन के माध्‍यम से केंद्र सरकार से अपने फैसले को वापस लेने की मांग की गई।

ATEU के बैनर तले असम ट्रिब्यून ग्रुप ऑफ पब्लिकेशन्स के कर्मचारियों ने ट्रिब्यून बिल्डिंग परिसर से राजभवन तक एक लंबा विरोध मार्च निकाला। विरोध मार्च के दौरान अखबार के पत्रकार और गैर-पत्रकार कर्मचारियों के हित के लिए बनाए गए विशेष अधिनियमों को निरस्त करने के कदम के खिलाफ जबरदस्‍त नारेबाजी की गई। साथ ही ATEU ने देश के अखबार कर्मचारियों के लिए नए वेजबोर्ड के गठन की मांग की।


गौरतलब है कि केंद्र द्वारा विभिन्न श्रम कानूनों को रद्द कर एक कानून बनाया जा रहा है। जिसकी वजह से पत्रकारों और गैर पत्रकारों के लिए बना वर्किंग जर्नलिस्ट एक्‍ट भी इससे अछूता नहीं है। इस एक्‍ट को पत्रकारों और गैर पत्रकारों के कार्य की प्रवृत्ति को देखते बनाया गया था, जो कि उन्‍हें अन्‍य क्षेत्रों में कार्यरत कर्मियों से अलग पहचान देता था और उनके लिए अलग से काम के घंटे और अन्‍य सुविधाएं आदि निर्धारित करता था। इन्‍हीं विशेष अधिनियमों के तहत ही पत्रकारों और गैर पत्रकारों के लिए वेतन आयोग का गठन किया जाता है। अखबारकर्मियों के अंतिम वेतन आयोग का गठन 2008 में किया गया था। जिसकी सिफारिशों को 11 नवंबर 2011 को जारी किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अखबार मालिकों की सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए फरवरी 2014 में मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों को सही माना था। अखबार मालिकों ने कर्मियों के लिए बने वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट और वेजबोर्ड की समाप्ति के लिए वर्ष 2011 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।



समाचारपत्र कर्मचारी संघ ने ज्ञापन के माध्‍यम से केंद्र सरकार से विशेष तौर पर पत्रकारों और गैर पत्रकारों के लिए बने इन अधिनियमों को रद्द करने के प्रस्ताव को वापस लेने की मांग की है। संघ ने प्रधानमंत्री को दिए अपने ज्ञापन में कहा है कि इससे देश के लोकतांत्रिक लोकाचार और मूल्‍यों को बनाए रखने में अपना अथक योगदान देने वाले चौ‍थे स्‍तंभ की अनूठी पहचान खत्‍म हो जाएगी। इससे पत्रकारों और गैर पत्रकारों को मिले विशेषाधिकार खत्‍म होने के साथ वे वित्‍तीय और नौकरी की असुरक्षा से घिर जाएंगे,जोकि उनके निष्‍पक्ष कार्य को प्रभावित करेगी।

ATEU प्रतिनिधिमंडल ने अपने अध्यक्ष सिबा प्रसाद डेका के नेतृत्‍व में राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा। विस्तृत चर्चा के बाद राज्यपाल ने प्रतिनिधिमंडल को प्रधानमंत्री को उनकी चिंताओं और आशंकाओं के बारे में जानकारी देने का आश्वासन दिया। प्रतिनिधिमंडल में महासचिव जितेन कलिता, उपाध्यक्ष पार्थ प्रतिम हजारिका, सहायक महासचिव गौतम काकती, आयोजन सचिव अनिमा दास और सदस्य ममता मिश्रा और दिगंत दास भी शामिल थे।

(साभार: http://www.assamtribune.com) 

दैनिक भास्कर चंडीगढ़ के आधा दर्जन कर्मचारियों ने मजीठिया वेज बोर्ड के लिए क्लेम लगाया



दैनिक भास्कर के चंडीगढ़ आफिस से खबर आ रही है कि आधा दर्जन मीडियाकर्मियों ने अपने वेतन और एरियर के लिए मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब से पेमेंट की मांग करते हुए क्लेम लेबर आफिस में जमा कर दिया है। मनजीत सिंह समेत आधा दर्जन लोगों ने असिस्टेंट लेबर कमिश्नर कपूरथला को भेजे पत्र में अपने वेतन व एरियर की गणना कर इन्हें दिलाने की मांग की है। मनजीत सिंह ने कुल 35 लाख रुपये बकाया मांगा है।

[साभार: भड़ास4.कॉम] 

Sunday 8 September 2019

ATEU march against move to scrap Wage Board


GUWAHATI. Registering strong protest against the Centre’s move to introduce the Code of Wages, 2019 that intends to scrap the wage board – the tripartite wage fixation machinery for journalists and non-journalist newspaper employees, the Assam Tribune Employees’ Union (ATEU) met Governor Jagdish Mukhi and submitted a memorandum to Prime Minister Narendra Modi through him, demanding rollback of the proposal.


The employees of the Assam Tribune Group of Publications under the banner of ATEU took out a protest march from the Tribune Buildings premises to the Raj Bhavan, shouting slogans against the move of repealing of legislations meant for journalists and non-journalist employees of newspaper houses.

ATEU demanded a new wage board to recommend wages and other perks and allowances for the employees working in different newspaper houses of India. It needs mention here that the Code of Wages, 2019 brought by the Union government besides subsuming various labour laws, would also lead to repealing of the Working Journalist and Other Newspaper Employees (Condition of Service and Miscellaneous Provisions) Act 1955 and the Working Journalist (Fixation of Rates of Wages) Act 1958, once the Occupational Safety, Health and Working Conditions Code 2019 (which is a part of the Code of Wages, 2019), comes into being.




The newspaper employees union, in particular, has been demanding of the government to hold back the proposal to scrap the two Acts, which are exclusively for journalists and other newspaper employees. The wage board for newspaper employees is statutory in nature unlike the wage boards meant for other category of employees and workers of the country.

“We consider this as a serious infringement on our rights and privileges as the employees of the newspaper industry. Further, this will invariably push us towards more financial and job insecurity. We are completely against such a move which will annihilate our identity, our job security, our wage fixation system and above all, our unique identity as the member of an industry that has been relentlessly trying to uphold the democratic ethos and values in this country,” the memorandum given to the Prime Minister mentioned.

The ATEU delegation, comprising its president Siba Prasad Deka, general secretary Jiten Kalita, vice president Partha Pratim Hazarika, assistant general secretary Gautam Kakati, organising secretary Anima Das and members Mamata Mishra and Diganta Das handed over the memorandum to the Governor. The Governor, after a detailed discussion, assured the ATEU members of forwarding its concerns and apprehensions to the Prime Minister.

(source: assamtribune.com)

Friday 6 September 2019

IFWJ and DUWJ Oppose Abolition of Working Journalists Act

Friends,

Government of India has decided to repeal the Working Journalists Act, which was enacted in 1955 on the recommendations of the First Press Commission, which has been opposed by the IFWJ. The validity of the Act has been challenged by newspaper owners twice in the Supreme Court; once in the Indian Express Case in 1955 and the second time in ‘ABP and Another vs Union of India and others in 2011. The first time the Act was upheld by the constitution bench and the second time it was reiterated and reaffirmed by three judges bench of the Supreme Court, which consisted of the then Chief Justice P.S. Sathashivam, the Present Chief Justice Ranjan Gogoi, and Justice Shivkirti Singh, now retired.

We have been demanding that instead of repealing the Working Journalists Act it should be reinforced and strengthened by comprehensively amending it as it has proved to be thoroughly inadequate in the present times.

Our major demand is that:

(a)      It should be made self-contained.
(b)      All streams of media should be brought within the purview of the Working Journalists Act; and
(c)      the new Wage Board should be immediately set up for all media employees.

We have sent our latest representation today to the Union Minister for Labour and Employment. It is a joint memorandum of the Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) and the Delhi Union of Working Journalists (DUWJ) signed by its President Shri Alkshendra Singh Negi.

Following is the memorandum to the Union Minister.


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Date: 06.09.2019
To
Shri Santosh Gangwar
Union Minister for Labour and Employment
Government of India
Shram Shakti Bhawan, Rafi Marg,
New Delhi-110001

Sub.: Regarding the Working Journalists Act.

Sir,

This is to draw your attention to the all-round concern being felt by thousands of journalists and non- journalists’ employees of the newspaper industry over the reported move of the Government to the repeal the Working Journalists Act of 1955. IFWJ is the oldest and the largest journalist organisation of the country, which was founded on 28th of October 1950 under a banyan tree at Jantar Mantar of New Delhi. It was because of the efforts of our organisation the first Press Commission was set up by the Government of India under the chairmanship of Justice GC Rajyadhyaksh, which recommended in its report of 1954 for the enactment of the Working Journalists Act, which was unanimously passed by both houses of Parliament in 1955. To the best of our information no journalist’s union, at least not our Federation, has been consulted about the proposed abrogation of this Act.
While we fully appreciate and endorse the initiative of the government for compressing 44 labour laws into four code bills because we feel that multiplicity of the labour laws has done more damage to the cause of the working class than giving them any benefits. We also feel that the Working Journalist Act should not only be retained but strengthened' It is a sui generis, a distinct act from all other acts. There is no doubt that employers have been taking advantage of the archaic and multiplicity of labour laws to harass and victimise the workers. Since the managements have the resources so they can the luxury of being litigation-loving, but the poor workers cannot afford to go around the courts for years together without getting any justice in most of the cases.
The worker has to struggle to fend for himself or herself and this makes him/ her highly vulnerable before the employers. He or she has to work hard to make both ends meet, which, in any case, is not the problem with the employers. In the majority of the cases, the workers are migrants in different cities as they come from various states and remote places to work, where there is always the problem for them to find a roof to live. At present, the workers' unions are not very strong mainly because of the contract system of employment of the employees.
The Working Journalists Act of 1955 provides certain facilities to the working journalists like; a journalist can be terminated from the job only after the payment of three months’ salary which is six months in the case of an editor. As far as the gratuity is concerned it is lopsided against them because while other workers in other sectors are entitled to get their gratuity only after the completion of five years of regular service but in the case of a journalist, it is ten years. In case of those journalists who resign from their jobs on the call of their conscience after three years of their service, they can also avail the gratuity as per the Working Journalists Act, but it is easier said than done because it is an uphill task for any journalist to prove that he or she has resigned on the basis of the voice of his/her conscience.
Apart from it, a distinct feature of the Working Journalists Act is the provision for the constitution of the Wage Boards from time to time for the revision of the wages and allowances of the journalists and non-journalists working for the print medium. Nonetheless, a large number of journalists and non-journalist employees have hardly been benefited by the Wage Board recommendations. At present there are more than twenty thousand cases pending in different Labour Courts of the country where the workers have filed the complaints about the non-implementation of latest Wage Board i.e. the Majithia Wage Board recommendations, which was constituted more than ten years ago in the year 2008 and submitted its report in the year 2010. The employers are using all the weapons in their armoury to delay the disposal of the cases.
We, therefore, have the following request to you that (a) the Working Journalists Act should be comprehensively amended so as to bring the print, electronic, new media, social media and digital media in its ambit ; (b) A new Wage Board should be set up for revising the wages and allowances for all media employees to neutralise the  inflation in the last more than ten years; (c) A media commission must be constituted to find out the changes that have taken place in the light of  the huge explosion in the communication technology particularly in the last two decades more due to the advent of the internet; (d) to suggest the ways and means to make the new  media, digital media more responsive and responsible towards society and the profession.
We also demand that the contract employees of the journalists and the other media employees should be banned because of their hiring and firing at the whims and fancies of the proprietors are biggest danger to the freedom of speech and expression. The exploitative managements have been indulging into such anti-labour with gay abandon, without having any consideration for the livelihood of the employees.
The provision for the Wage Boards should not be disturbed and the Act should be made stronger and more self-contained instead of compressing it with other acts or codes. It must also be ensured that the recommendations of the Wage Boards are properly implemented failing which the provision of exemplary punishment and penalty in the Act. The facilities of limited duty hours, holidays and the period of notice on the termination of media employees should be retained.
The journalists have been availing the protection of this Act although very yet any attempt to repeal it would cause dissatisfaction among newspaper employees therefore, we demand it should be comprehensively but not rescinded.
We hope and believe that the Government will seriously consider over the protection of the interests of the media persons of all spectrums (print, electronic, internet, social, digital and the new media) and amend it exhaustively.

Thanking you,

Yours sincerely,    

Parmanand Pandey 
Secretary-General, IFWJ                  

Alkshendra Singh Negi 
President - DUWJ







Wednesday 4 September 2019

लोकमत ने कालिदास साव को दिया 15 साल की सेवा का फल, एक झटके में छीनी नौकरी, पढ़े पत्र

नई दिल्‍ली। लोकमत में पिछले 15 साल से कार्यरत कालिदास साव की सेवाओं का फल लोकमत ने उन्‍हें एक झटके में नौकरी से बाहर निकाल कर दे दिया हैं कालिदास की बोर्ड ऑपरेटर के रूप में कंपनी को अपनी सेवाएं र्इमानदारी से दे रहे थे। उन्‍होंने महंगाई के जमाने में भी आज मात्र 11 हजार रुपये ही मिल रहे थे।

इसी में अपने परिवार का गुजारा कर रहे थे। कालिदास अपने ऊपर हो रहे अन्‍याय के खिलाफ अदालत की शरण में गए थे, जिसके बाद उन्‍हें नौकरी से बाहर निकाल दिया गया। कालिदास इस अन्‍याय के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए प्रतिबद्ध है और इस लड़ाई में समय-समय पर आप सभी के मार्गदर्शन और सहयोग की उपेक्षा करते हैं। कालिदास का लिखा  पत्र यहां पढ़े-


अन्‍याय के खिलाफ आकाशवाणी महानिदेशालय और महिला आयोग के सामने करेंगे धरना-प्रदर्शन

विगत चार वर्षों से देशभर के आकाशवाणी केन्द्रों के कैजुअल अनाऊंसर/कॉम्पीयर्स/आरजे, सरकार के सामने अपने  नियमितीकरण की गुहार लगा रहे हैं लेकिन आकाशवाणी महानिदेशालय और सरकार इनकी सुनवाई नही कर रही। अतः दिन प्रतिदिन आकाशवाणी महानिदेशालय द्वारा इन पर शोषण बढ़ता जा रहा है। यही नहीं, आकाशवाणी के अधिकारी निरंकुश हो कर हमें जीने के अधिकार से भी वंचित करने पर आमादा हैं।

गौ़रतलब है कि आकाशवाणी उद्घोषक /कॉम्पीयर्स/आरजे संवर्ग वर्षों से सेवारत कैजुअल अनाऊंसर के नियमितिकरण के मामले में दोहरा मापदण्ड, पक्षपात तथा भेदभाव करने वाले आकाशवाणी महानिदेशालय /प्रसार भारती एवं सूचना प्रसारण मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारीगण सरकार को भी गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं।

ऑल इंडिया रेडियो कैजुअल अनाऊंसर एंड कॉम्पीयर्स यूनियन (रजिस्टर्ड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हरिकृष्ण शर्मा ने बताया कि गत सप्ताह यूनियन की बैठक दिल्ली में सम्पन हुई जिसमें यह निर्णय लिया गया कि आकाशवाणी महानिदेशालय के शोषण के विरूद्ध और अपनी माँगों को लेकर देशभर के कैजुअल अनाऊंसर/कॉम्पीयर्स/आरजे  आगामी 13 सितम्बर को महिला आयोग और महानिदेशालय के समक्ष धरना-प्रदर्शन करेंगे।

उन्होंने बताया कि महिलाओं के शोषण के विरोध में यूनियन ने महिला आयोग को गुहार लगाई, हालांकि महिला आयोग ने आकाशवाणी महानिदेशालय को तलब किया लेकिन महानिदेशालय ने अभी तक दोषी अधिकारियों के खिलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं की है और न ही पीड़ित महिलाओं की ड्यूटी शुरू की है और न ही किसी मुआवजे का एलान किया है, जिससे यूनियन की महिलाओं में भारी रोष है और ये सब महिलाएं 13 सितम्बर को प्रदर्शन के लिए महिला आयोग के समक्ष पहुँचेंगी।

यूनियन की महासचिव डॉ शबनम ख़ानम जो व्यक्तिगत रूप से प्रताड़ित महिलाओं को न्याय दिलाने में कार्यरत हैं ने बताया कि वो महिलाओं को न्याय दिलाने के लिये महिला आयोग के संपर्क में है पर अभी तक आयोग ने भी कोई विशेष राहत इन्हें प्रदान नहीं की है।

नियमितीकरण के विषय मे उन्होंने ने बताया कि दूरदर्शन में P-5 कॉन्ट्रेक्ट पर आकस्मिक प्रोडेक्शन असिस्टेन्ट और आकस्मिक जनरल असिस्टेन्ट के रूप में सेवा देने वाले कैजुअलकर्मियों को नियमितीकरण का लाभ दिया गया और दिया जा रहा है।

वहीं P-5 कॉन्ट्रेक्ट पर ही समान रूप से समान सेवाशर्तों पर अर्थात उद्घोषक संवर्ग के कैजुअलकर्मियों के नियमितीकरण के मामले में आकाशवाणी महानिदेशालय/प्रसार भारती और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय,आरम्भ से ही दोहरा मापदंड,पक्षपात एवं भेदभाव कर रहा है।

कई संसदीय समितियों ने इसे बंधुआ मजदूरी प्रथा कायम रखने की और तथ्यों को छिपाने एवं तोड़मरोड़ कर पेश करने की बात कही है और कई न्यायपालिकाओं ने इसे पक्षपात एवं भेदभाव करार दिया है। देश के सभी कैजुअल कर्मी इस दोहरे मापदंड, पक्षपात, भेदभाव और दमन की  नीतियों की भर्त्सना एवं निन्दा करते हैं।

आकाशवाणी महानिदेशालय, परफारमेंस रिव्यू/री स्क्रीनिंग की आड़ में स्वर/लिखित/एवं साक्षात्कार परीक्षा का आयोजन कर वर्षों से कार्य कर रहे अनुभवी कैजुअल कर्मियों को आकाशवाणी से बाहर निकालने तथा हमारी जगह नये लोगों,अपने रिश्तेदारों के चयन, की गलत नीति तथा तथ्यों पर अण्डरटेकिंग जैसी शोषणकारी नीति अपना रहा है।

इसके विरोध में आल इंडिया रेडियो कैजुअल अनाऊंसर एंड काॅम्पीयर्स रजिस्ट्रर्ड यूनियन ने सितम्बर 2017 और जुलाई 2018 में महानिदेशालय का घेराव किया व सामूहिक रूप से पुलिस को अपनी गिरफ्तारियां दी। पुलिस के सहयोग से CEO व अन्य अधिकारियों से कई मुद्दों पर बातचीत हुई लेकिन खेद है कि उचित मांगों पर अधिकारियों ने कोई भी वांछित कार्यवाही नहीं की।

इसलिए यूनियन ने निर्णय लिया है कि 13 सितम्बर को यूनियन आकाशवाणी महानिदेशालय का घेराव करेगी जिसमें मुख्य मांगे रहेंगी कि वर्षों से सेवारत कर्मियों को नियमितिकरण का लाभ दिया जाए। विभिन्न कोर्ट या कैट में गए कर्मियों की ड्यूटियां समानता के आधार पर लगाई जाएं।

जिन अधिकारियों ने महिलाओं को प्रताड़ित किया है, उनके विरूद्ध सख्त कार्यवाही की जाए। उन महिलाओं को न्याय दिलाया जाए एवं उनकी ड्यूटीज तुरंत शुरू की जाए एवम सभी कैजुअल्स की ड्यूटी संख्या निश्चित की जाए क्योंकि डयूटी कम/अधिक करने, लगाने और ड्यूटी काटने के निरंकुश अधिकार के कारण ही अधिकारियों द्वारा महिलाओं का शोषण किया जाता है।

शहडोल, धर्मशाला, बीड़, कुरुक्षेत्र, ओबरा और सागर के उन सभी कैजुअलकर्मियों की ड्यूटियाँ तुरन्त लगाई जाएं जिन्हें अनावश्यक कारणों से डयूटी से वंचित किया गया है।

स्टाफ की कमी के कारण करीब 40 प्रतिशत केंद्रों में ड्यूटी करने वाले कैजुअल साथी लॉगिंग का काम भी करते हैं। ऐसे केंद्रों पर बाकी केंद्रों की तरह प्रति सभा दो कैजुअल्स की ड्यूटी लगाई जाए।

फ्रेश ऑडिशन पर सदा के लिए रोक लगाई जाए और जब तक नियमितीकरण नहीं होता तब तक उत्तरोत्तर वृद्धि के साथ प्रति डयूटी की तीन हजार रुपये फीस दी जाए। इन सभी मांगों को लेकर 13 सितम्बर को देशभर के आकाशवाणी केन्द्रों के सैंकड़ों कैजुअलकर्मी धरना-प्रदर्शन के लिए दिल्ली पहुंचेंगे।


हरिकृष्ण शर्मा, अध्यक्ष
09418589066

नरेन्द्र कौशिक धरतीपकड़, प्रेस सचिव 
आल इंडिया रेडियो कैजुअल अनाऊंसर एंड कॉम्पीयर्स रजिस्टर्ड यूनियन नई दिल्ली
(AIRCACU)

दैनिक जागरण, कानपुर में प्रबंधन ने एक और मीडियाकर्मी का मेल हैक कर जबरन सेंड कर दिया इस्तीफा



दैनिक जागरण समूह नौकरी करने के लिहाज से सबसे खतरनाक मीडिया ग्रुप बनता जा रहा है। यहां प्रबंधन के लोग अपने इंप्लाइज का इस्तीफा साजिश कर ले लेते हैं। सबसे पहले इंप्लाई की जानकारी के बिना उसका मेल हैक किया जाता है फिर मेल से इस्तीफा लिखकर सेंड कर दिया जाता है। इंप्लाई जब अगले दिन आफिस आता है तो पता चलता है कि वह इस्तीफा दे चुका है।

दैनिक जागरण कानपुर के संपादकीय विभाग में कार्यरत आशुतोष शुक्ला दूसरे ऐसे शख्स हैं जिनके साथ यह कारनामा प्रबंधन ने किया है। इसके पहले यही हरकत आशुतोष मिश्र के साथ की गई। आशुतोष शुक्ला ने लेबर आफिस और पुलिस विभाग को जो पत्र लिखा है, पढ़ें-




[साभार: भड़ास4मीडिया.कॉम]

हिंदुस्तान बनारस में भी छंटनी शुरू, तरह-तरह से प्रताड़ित किए जा रहे पत्रकार

कमलेश चतुर्वेदी हिन्दुस्तान के वाराणसी संस्करण में वर्ष 2005 से कार्यरत हैं। लम्बे इंतजार के बाद वर्ष 2011 में इन्हें स्टाफ रिपोर्टर बनाया गया। छह माह पहले कमलेश काशी पत्रकार संघ के उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए। इसी के बाद से हिंदुस्तान प्रबंधन ने इन्हें नौकरी से हटाने का प्रयास करना शुरू कर दिया। पिछले डेढ़ माह से रेटिंग कम होने का बहाना बनाकर इन्हें परेशान किया गया। रेटिंग भी उस स्थानीय सम्पादक योगेश राणा की दी बताई गई जिसकी रेटिंग कम्पनी की निगाह में खुद अच्छी नहीं रही। इसीलिए राणा को कम्पनी ने यहां से हटाने के बाद सीधे बाहर का रास्ता दिखा दिया। एचआर मैनेजर और नए स्थानीय सम्पादक अक्सर कमरे में बुलाकर इस्तीफा देने का दबाव बनाने लगे।

15 दिन पहले बेजबोर्ड वाले पेजीनेटर सुनील श्रीवास्तव और अनुराग पांडेय से जबरी इस्तीफा ले लिया गया। इसके बाद एक और रेगुलर कर्मचारी से इस्तीफा लिखवाकर स्ट्रिंगर के कागजात पर दस्तखत करा लिए गए। इसके बाद 22 अगस्त को एचआर व स्थानीय सम्पादक ने मुझे कमरे में बुलाकर दो माह की सेलरी लेकर इस्तीफे की पेशकश की जिसे मैने अस्वीकार कर दिया। इसके बाद फिर परेशान किया जाने लगा तो कमलेश चिकित्सकीय अवकाश पर चले गए।

29 अगस्त को कमलेश के घर स्पीड पोस्ट से पत्र भेजकर बिना सूचना अनुपस्थित रहने की नोटिस भेज दी गई। एक दिन पहले 28 अगस्त को वार्ता के लिए एचआर के बुलावे पर कमलेश बीमारी की अवस्था में हिन्दुस्तान कार्यालय जगतगंज पहुंचे। तब उनकी एचआर से बात हुई। यह दृश्य वहां के सीसीटीवी मे दर्ज होगा। एचआर ने उन्हें फिर कहा कि जो मिल रहा है उसे लेकर इस्तीफा दे दीजिए। इस प्रस्ताव को कमलेश ने दोबारा ठुकरा दिया. कमलेश ने ऐलान कर दिया है कि वह सक्षम न्यायालय में अपने हक की मांग करेंगे। कमलेश श्रमायुक्त कार्यालय में अधिवक्ता अजय मुखर्जी के जरिए प्रार्थना पत्र दे आए हैं और प्रबंधन को स्पीड पोस्ट के जरिए गैरहाजिर होने से सम्बंधित पत्र का जवाब भेज दिया है।

[साभार: भड़ास4मीडिया.कॉम]

एडवोकेट मदन तिवारी पर जानलेवा हमला


महंगा पड़ा सामंतवादी मानसिकता का विरोध, घर में घुसकर परिजनों के साथ अधिवक्ता की हुई पिटाई
गया। बिहार के जाने-माने अधिवक्ता मदन तिवारी को सामंतवादी मानसिकता का विरोध करना महंगा पड़ गया। हमलावरों ने अधिवक्ता मदन तिवारी की सड़क पर पुलिस की मौजूदगी में बेरहमी से पिटाई की। इसके पूर्व हमलावरों ने घर में घुसकर अधिवक्ता के परिजनों के साथ भी मारपीट की।

मामला यह था कि अधिवक्ता मदन तिवारी की पुत्री अपने गया शहर के सिविल लाइंस थाना क्षेत्र अंतर्गत शहमीरतक्या मुहल्ले में एक एटीएम से पैसे निकालने के लिए गई। एटीएम से राशि निकली नहीं और खाते से पैसे काट लिए गए। एटीएम के बाहर दर्शाए गए मोबाइल फोन नंबर पर अधिवक्ता मदन तिवारी ने फोन कर बात की। फोन करने के कुछ अंतराल पर दो व्यक्ति मदन तिवारी के घर पर पहुंचे।

एक ने फोन कर अपने समर्थकों को बुलाया। इस बीच मदन तिवारी और उक्त दोनों व्यक्तियों के बीच बहस होने लगी। तभी पास के नूतन नगर मुहल्ले से बीस-पच्चीस की संख्या में आए हमलावर मदन तिवारी को घेरकर मारपीट करने लगे। मदन तिवारी के अनुसार, हमलावरों से बचने के लिए वे अपने घर के अंदर भागे। हमलावर भी घर में पीछा करते हुए प्रवेश कर गए। परिवार के सदस्य बचाव के लिए आगे आए। हमलावरों ने उनके साथ भी मारपीट की। मदन तिवारी घर के अंदर से अपने चैंबर होते हुए फिर घर से बाहर निकले। हमलावर मदन तिवारी के साथ सड़क पर मारपीट करने लगे। सिविल लाइंस थाना की पुलिस मौके पर पहुंची। लेकिन हमलावर पुलिस के सामने मारपीट कर फरार हो गए।

दोनों पक्षों की ओर से सिविल लाइंस थाना में प्राथमिकी दर्ज कराई गई है। दूसरे पक्ष के दो व्यक्तियों ने मदन तिवारी पर मारपीट कर सिर फोड़ने का आरोप लगाया है। वहीं, मदन तिवारी का कहना है कि घर में प्रवेश करने के क्रम में कुत्तों के लिए रखे दूध के बड़े बर्तन में या अन्य जगह पर संभवतः गिरने से हमलावरों को चोट लगी होगी। मदन तिवारी का कहना है कि वे और उनका परिवार जान बचाने के लिए भाग रहे थे। पुलिस के सामने उनकी पिटाई की गई।

बाद में एक और गाड़ी पुलिस वहां पहुंच गई। जब ये लोग हमला कर रहे थे उस दरम्यान अधिवक्ता मदन तिवारी ने सिटी डीएसपी को फोन करते हुए उन्हें तुरंत पुलिस फोर्स भेजने के लिए कहा परन्तु सीएम के प्रोग्राम में व्यस्तता के कारण समय पर पुलिस नहीं आई। वैसे अगर पुलिस नहीं आती तो नि:सन्देह अधिवक्ता मदन तिवारी के पूरे परिवार की हत्या ये लोग कर देते क्योंकि हमलावर बार कह रहे थे- ”जानता नहीं है, हमलोग भूमिहार हैं, रणवीर सेना का नाम सुना है न, गांव के गांव खत्म कर दिए, तुम्हारे परिवार को छोड़ेंगे नहीं, घर से बाहर निकलना बंद कर देंगे”।

पूर्व में भी नूतन नगर के अपराधी तत्व इस तरह की घटना को अंजाम दे चुके हैं। नूतन नगर में इनके आतंक के कारण कोई भी शरीफ परिवार रहना नहीं चाहता है। पुलिस ने एक दो बार गिरफ्तारी भी की लेकिन उसके बावजूद इनका जातीय दंभ और आतंक कम नहीं हुआ है। सदियों से सामंती मानसिकता आज भी इनके अंदर है। इनका आयकॉन इनकी जाति के अपराधी हैं। उनके पीछे ये लामबन्द हो जाते हैं। अधिवक्ता मदन तिवारी का कहना है कि किसी भी कीमत पर इनकी सामंती मानसिकता के आगे नही झुकेंगे, भले हत्या ही क्यों न हो जाय।



[साभार: भड़ास4मीडिया.कॉम]