Monday, 19 May 2025

मजीठिया पर बड़ी खबरः HC के आदेश के बाद गीता रावत व रमा शुक्ला को सहारा ने ज्वाइन करवाया, एक साल का वेतन भी दिया


साथियों, नोएडा से एक बड़ी खबर आ रही है। सहारा मीडिया को दो महिला उप-संपादकों को इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद ज्वाइन करवाना पड़ा। साथ ही कंपनी ने दोनों कर्मियों को एक-एक साल का वेतन भी दिया है। इससे पहले पिछले साल हाईकोर्ट के दिए आदेश के बाद सहारा को दोनों को तीन-तीन लाख के डीडी भी सौंपने पड़े थे, परंतु प्रबंधन ने उस आदेश की पूरी तरह पालना नहीं की थी।

जिसके बाद गीता रावत और रमा शुक्ला ने दोबारा इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया। उनकी तरफ से इस बार भी वरिष्ठ वकील मनमोहन सिंह ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। 13 मई सुनवाई के दौरान प्रबंधन के यह मानने पर की उसने 3-3 लाख रुपये दोनों याचिकाकर्ताओं को सौंप दिए हैं, परंतु दोनों की नियुक्ति अभी तक नहीं हुई के बाद अदालत ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता 19 मई को सहारा कार्यालय में पहुंच कर ज्वाइनिंग करें। 

इसके साथ ही अदालत ने 26 मई की अगली तारीख निर्धारित करते हुए प्रबंधन को इस मामले में हलफनामा भी दायर करने का आदेश दिया। इसके साथ ही अदालत ने प्रबंधन को याचिकार्ताओं के खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई ना करने का भी निर्देश दिया। अदालत ने इसके साथ प्रबंधन को ये भी आदेश दिया कि दोनों याचिकाकर्ताओं को 30 अप्रैल 2024 के अंतरिम आदेश के बाद से अब तक के वेतन का भुगतान किया जाए।

हाईकोर्ट के आदेश के बाद दोनों महिला उप संपादक आज सोमवार को सेक्टर 12 स्थित सहारा मीडिया के कार्यालय में पहुंची। प्रबंधन ने हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार दोनों को एक साल का वेतन देते हुए दोनों को फिर से ज्वाइन करवाया।

मालूम हो कि सहारा मीडिया ने कई कर्मचारियों को अवैध रूप से नौकरी से निकाल दिया था। सहारा के प्रिंट में कार्यरत गीता रावत और रमा शुक्ला भी उन कर्मचारियों में शामिल थीं, जिन्होंने अपने पिछले कई महीनों का बकाया वेतन और मजीठिया वेजबोर्ड को लागू करने की मांग की थी। जिसके बाद इन्होंने नोएडा डीएलसी में अवैध सेवा समाप्ति को लेकर वाद दायर किया था और वहां से केस नोएडा लेबर कोर्ट को रेफर हो गया। लेबर कोर्ट ने 20 अक्टूबर 2023 को दोनों कर्मचारियों को पुरानी सेवा की निरंतरता के साथ पूर्व पूर्ण वेतन व अन्य समस्त हित लाभ समेत अवार्ड प्रकाशन के एक माह के अंदर सेवा में बहाल करने का आदेश दिया था।

इस अवार्ड के खिलाफ सहारा प्रबंधन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। जिसमें इस अवार्ड को चुनौती दी गई थी और उसपर अमल करवाने पर रोक लगाने की मांग की गई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुना। जिसके बाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पहले प्रबंधन 15 दिन के भीतर गीता रावत और रमा शुक्ला को नौकरी पर बहाल करे और ज्वाइनिंग के समय दोनों को 3-3 लाख रुपये का डीडी दे, इसके बाद स्टे प्रभावी होगा। लेबर कोर्ट में गीता रावत और रमा शुक्ला की तरफ से एआर राजुल गर्ग ने मजबूत तर्क रखे।


Monday, 21 April 2025

बड़ी खबरः मजीठिया क्रांतिकारी जीतेंद्र सिंह को पत्रिका ने दिए साढ़े 21 लाख रुपये


राजस्थान पत्रिका प्रबंधन का जिलाधिकारी ग्वालियर (मध्य प्रदेश) को 19 अप्रैल 2025 को लिखा पत्र


मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लेकर पत्रकारों द्वारा लड़ी जा रही कानूनी लड़ाई में एक और मीडियाकर्मी को उनके हक का पैसा मिला है। राजस्थान पत्रिका प्रबंधन ने अपने कर्मचारी जीतेंद्र सिंह को कुल 21 लाख 46 हजार 945 रुपये अब तक दिए हैं। इस अखबार प्रबंधन ने 10 लाख 46 हजार 945 रुपये एक डिमांड ड्राफ के जरिए 17 अप्रैल 2025 को जितेंद्र को दिए हैं। फिलहाल ये पैसा जीतेंद्र सिंह के खाते मे आ गया है।

खुद राजस्थान पत्रिका प्रबंधन ने जिलाधिकारी ग्वालियर (मध्य प्रदेश) को 19 अप्रैल 2025 को लिखे एक पत्र में यह जानकारी दी है। इसके पहले जीतेंद्र सिंह को पत्रिका प्रबंधन ने 11 लाख रुपये का भुगतान 14-05-2024 को एक डिमांड ड्राफ्ट के जरिए किया था जो जीतेंद्र सिंह को मिल चुका है। इस बात की जानकारी भी राजस्थान पत्रिका प्रबंधन ने इसी पत्र में दी है।

आपको बता दें की जीतेंद्र ने पत्रिका प्रबंधन के खिलाफ लंबी अदालती लड़ाई लड़ी थी। फिलहाल जीतेंद्र सिंह को हर तरफ से बधाई मिल रही है।

शशिकांत सिंह

पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी

9322411335

श्रीनारायण तिवारी बनाए गये दैनिक यशोभूमि के संपादक


मुंबई से प्रकाशित लोकप्रिय हिंदी दैनिक यशोभूमि के कार्यकारी संपादक श्रीनारायण तिवारी को प्रमोशन देकर इसी समाचार पत्र का नया संपादक बनाया गया है जिससे उनके चाहने वालों मे खुशी की लहर है। 

डॉ. रामनोहर त्रिपाठी पत्रकारिता पुरस्कार तथा अन्य कई पुरस्कारों से सम्मानित श्रीनारायण तिवारी ने लोकप्रिय दैनिक जनसत्ता और संझा जनसत्ता में मुख्य संवाददाता, लोकमत समाचार और लोकमत तथा लोकमत टाइम्स में विशेष संवाददाता एवं दबंग दुनिया, एब्सलूट इंडिया, पूर्व विराम और दैनिक जागरुक टाइम्स में भी कार्यकारी संपादक के रूप में कार्य किया। उन्हें खबरों में तीखी धार और समाचार पत्र में नए कलेवर के लिए जाना जाता है, जो आज भी दैनिक यशोभूमि समाचार पत्र में दिखाई देता है।

Wednesday, 9 April 2025

धर्मेन्द्र प्रताप सिंह से फिर हारा ‘दैनिक भास्कर'


मुंबई से बहुत बड़ी खबर आ रही है... मजीठिया क्रांतिकारी धर्मेन्द्र प्रताप सिंह से देश का सबसे विश्वसनीय और नंबर 1 अखबार ‘दैनिक भास्कर' एक बार फिर हार गया है। मुंबई के श्रम न्यायालय के विद्वान न्यायाधीश प्रशांत एच. इंगले ने धर्मेन्द्र प्रताप सिंह के टर्मिनेशन वाले मामले में ‘दैनिक भास्कर' के झूठ को सच मानने से इनकार कर दिया। कुल 18 पृष्ठ के ऑर्डर की कॉपी में जज साहब ने 4 पंक्तियों के अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि:

1) यह घोषित किया जाता है कि जांच अधिकारी द्वारा की गई जांच निष्पक्ष और उचित है।

2) यह भी घोषित किया जाता है कि जांच अधिकारी के निष्कर्ष गलत हैं।

यहां बताना आवश्यक है कि मजीठिया क्रांतिकारी के तौर पर मुंबई में धर्मेन्द्र प्रताप सिंह की अपनी अलग पहचान है... वह हंसते हुए तंज कसते हैं- ‘हां, आज मुझे इसी नाते हर-एक अखबार का मालिक जानता है।' वैसे यह सत्य भी है। मुंबई महानगर में धर्मेन्द्र प्रताप सिंह पहले पत्रकार थे, जिन्होंने किसी भी संस्थान की ओर से सबसे पहले मजीठिया अवॉर्ड की मांग की थी। मुंबई के ही वह पहले पत्रकार थे, संस्थान ने जिनका इसी मांग के चलते सीकर (राजस्थान) ट्रांसफर किया तो उन्होंने औद्योगिक न्यायालय से स्टे पा लिया। वह महाराष्ट्र राज्य के पहले पत्रकार हैं, जिनकी उपरोक्त मांग पर स्थानीय श्रम विभाग की ओर से आरआरसी (रेवेन्यू रिकवरी सर्टिफिकेट) जारी हुई थी।

इस आरआरसी के विरुद्ध कंपनी (डी. बी. कॉर्प लि.) माननीय बॉम्बे हाई कोर्ट में गई तो जस्टिस मेनन ने कहा कि सबसे पहले आप यहां 50% जमा करो, फिर हम आपको सुनेंगे। और यह तो भारत देश में पहली बार हुआ था, जब इस आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट पहुंची ‘डी. बी. कॉर्प लि' को वहां भी मुंह की खानी पड़ी थी। जी हां, हाई कोर्ट में कंपनी ने एफिडेविट देकर कहा था कि हम दो सप्ताह में पैसे जमा कर देंगे। फिर भी, सबसे पहले 50% जमा करने के बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को उसकी ओर से जब सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया तो मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने यह कह कर कंपनी की पिटीशन खारिज कर दी- ‘हमें नहीं लगता कि इस आदेश में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है।' इसके बाद कंपनी ने हाई कोर्ट में यह रकम जमा भी करवा दी थी... मजीठिया के मामले में यह भी देश में पहली बार हुआ था, मगर बाद में हाई कोर्ट ने धर्मेन्द्र प्रताप सिंह सहित 5 जनों के मामले को यह कहते हुए लेबर कोर्ट भेज दिया था कि ‘लेबर कमिश्नर के पास आरआरसी जारी करने का अधिकार नहीं है।'
 
बहरहाल, ट्रांसफर पर तो धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने स्टे पा लिया था... लेकिन हार से तिलमिलाई कंपनी (डी. बी. कॉर्प लि.) के क्रोध का क्या करते, जो हर-हाल में उन्हें सबक सिखाने पर आमादा थी। इसलिए येन-केन-प्रकारेण, डेढ़ साल की लंबी डोमेस्टिक इन्क्वायरी के बाद धर्मेन्द्र प्रताप सिंह को ‘दोषी' मानते हुए जब उन्हें टर्मिनेट कर दिया गया तो उसी मामले को लेकर वह लेबर कोर्ट गए, जहां से यह हालिया ऑर्डर (पार्ट- 1) आया है। इस पर धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने बड़ी सधी हुई प्रतिक्रिया व्यक्त की है- ‘एक लंबी एवं कठिन लड़ाई के बाद का यह आरंभिक परिणाम हम सभी मजीठिया क्रांतिकारियों को सम्बल प्रदान करेगा। मुझे विश्वास है, फाइनल जजमेंट भी मेरे फेवर में आएगा।'आपको बता दें कि अब मुंबई में मजीठिया की लड़ाई लड़ने वालों में धर्मेन्द्र प्रताप सिंह अकेले पत्रकार नहीं हैं... वह स्वयं ‘न्यूजपेपर एम्प्लॉयीज यूनियन ऑफ इंडिया' (NEU India) नामक राष्ट्रीय संगठन के जनरल सेक्रेटरी हैं (पत्रकारों के लिए तो कई सारे संगठन हैं... यह संगठन अखबारों में काम करने वाले हर-एक कर्मचारी के अधिकारों की लड़ाई लड़ता है) तो ‘दैनिक भास्कर’ के ही सैकड़ों साथियों का साथ उन्हें हासिल है। धर्मेन्द्र प्रताप सिंह के मुताबिक, ‘महेन्द्र सिंह धोनी का पहला चर्चित विज्ञापन शायद वही था, जिसमें वह ‘दैनिक भास्कर' के लिए कहते नज़र आए थे- ‘ज़िद करो, दुनिया बदलो।' वह मानते हैं कि इस कैंची लाइन का उन पर बहुत असर है- ‘इसलिए मजीठिया अवॉर्ड की बात जब सामने आई तो मुझे लगा कि जो काम हमारे पूर्व के पत्रकारों ने नहीं किया, वह मैं जरूर करूंगा। वैसे भी, अखबार मालिकान पहले ही कई Wages हज़म कर चुके थे, सो मैंने आवाज़ उठाने का फैसला किया। मुझे गर्व है कि इस आवाज़ को बुलंद करने में ‘bhadas4media.com’ के अग्रज यशवंत सिंह एवं मजीठिया  क्रन्तिकारी शशिकांत सिंह ने मेरा निरंतर और मजबूत साथ दिया है... और हां, अपने एडवोकेट विनोद शेट्टी का मैं विशेष रूप से आभार व्यक्त करना चाहूंगा। वह सच और अधिकार की इस लड़ाई को दिमाग के साथ-साथ पूरे दिल से भी लड़ रहे हैं।
'

Saturday, 5 April 2025

दैनिक जागरण हारा, लेबर कोर्ट धर्मशाला ने राजीव गोस्‍वामी को किया नौकरी पर बहाल


दैनिक जागरण धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) को लेबर कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। एक चीफ सब एडिटर को बिना किसी जांच के अवैध तौर पर नौकरी से हटाने के मामले में लेबर कोर्ट ने कर्मचारी को वरिष्‍ठता व अन्‍य सेवा लाभों के साथ नौकरी पर बहाल करने के आदेश जारी किए हैं। इसके अलावा कर्मचारी को दो लाख रुपये मुआवजा भी देने के आदेश दिए हैं।

मिली जानकारी के राजीव गोस्‍वामी बनाम जागरण प्रकाशन लि. मामले में लेबर कोर्ट धर्मशाला ने 29 मार्च को आवार्ड पारित किया है। राजीव गोस्‍वामी दैनिक जागरण के धर्मशाला केंद्र के तहत संपादकीय विभाग के डेस्‍क पर चीफ सब एडिटर के पद पर तैनात थे। मजीठिया वेजबोर्ड को लागू करवाने को लेकर इन्‍होंने भी अपने बाकी साथियों के साथ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की थी और इसके बाद से उपजे विवाद में प्रबंधन ने इन्‍हें भी अवैध तौर पर नौकरी से हटाया दिया था।

लेबर कोर्ट ने साक्ष्‍यों के आधार पर पाया कि राजीव गोस्‍वामी कंपनी प्रबंधन के खिलाफ 02 अक्‍तूबर, 2015 को हुई कथित हड़ताल में शामिल नहीं थे, बल्‍कि इस दौरान वह छुट्टी पर थे और स्‍टेशन से बाहर थे। उन पर मई, 2015 को मजीठिया वेजबोर्ड लागू ना करने बारे श्रम अधिकारी को सौंपी गई शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा था और उन्‍हें व उनके बाकी साथियों को प्रबंधन लगातार प्रताड़ित कर रही थी। इसके चलते मंजूर छुट्टी के बाद उन्‍होंने अपनी छुट्टी बढ़ाने की मेल की, जिसे अस्‍वीकार कर दिया गया था। इसके बाद कंपनी ने बाकी कर्मचारियों को तो चार्चशीट करने के बाद जांच की ओर बर्खास्‍त कर दिया, मगर राजीव गोस्‍वामी को बिना की जांच और नोटिस के ही नौकरी से हटा दिया। कंपनी की ओर से भेजे गए नोटिस उनके घर के पते से बिना डिलीवर हुए वापस आ गए थे यानि उन्‍हें सर्व नहीं हो पाए थे। कंपनी ने इन अनियमितताओं के बावजूद वादी कर्मचारी को नौकरी से हटा दिया और कोर्ट के समक्ष उसके स्‍वयं नौकरी से लापता होने की झूठी दलील साबित नहीं कर पाई।

वहीं वादी कर्मचारी ने यह बात साबित कर दी कि जब उसे नौकरी से हटाया गया तब मजीठिया वेजबोर्ड लागू ना करने और अन्‍य मांग पत्रों पर उसकी समझौता वार्ता लंबित थी और इस दौरान प्रतिवादी ने उसे नौकरी से हटाने से पूर्व समझौता अधिकारी से औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 33 के तहत जरूरी मंजूरी नहीं ली थी। इस तरह वादी की बर्खास्‍तगी औद्योगिक विवाद अधिनियम और वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट के प्रावधानों के विपरित थी। इसके चलते वादी को चीफ सब एडिटर के पद पर उसकी बर्खास्‍तगी की तारीख से बहाल करने के अलावा उसे नियमित सेवालाभ और वरिष्‍ठता देने का फैसला सुनाया है। वहीं वादी को दो लाख रुपये मुआवजा भी दिया गया है।

ज्ञात रहे कि इस विवाद में प्रतिवादी पक्ष ने चीफ सब एडिटर को कर्मचारी की श्रेणी में ना आने का मुद्दा भी उठाया था, जिसे कोर्ट ने खारीज कर दिया और माना कि चीफ सब एडिटर की पोस्‍ट पर वादी वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट के तहत श्रमजीवी पत्रकार के तौर पर कार्यरत था, उसे कंपनी ने सुपरवाइजरी या प्रबंधकीय क्षमता के तहत नहीं रखा था। ज्ञात रहे कि वादी का विवाद वर्ष 2016 में लेबर कोर्ट भेजा गया था, मगर रेफरेंस में खामियां होने के चलते राजीव गोस्‍वामी ने न्‍यूजपेपर इम्‍पलाइज यूनियन ऑफ इंडिया के अध्‍यक्ष रविंद्र अग्रवाल की सलाह पर पहले का रेफरेंस वापस लेकर वर्ष 2020 में दोबारा रेफरेंस लगाया था। इसके अलावा इनका मजीठिया वेजबोर्ड क्‍लेम का रेफरेंस भी लेबर कोर्ट में लंबित है। इस मामले की पैरवी एआर के तौर पर रविंद्र अग्रवाल ने ही की थी।

Sunday, 25 August 2024

मजीठियाः 8 साल का संघर्ष, ‘दैनिक भास्कर‘ ने घुटने टेके, मिले 17 लाख व नौकरी पर बहाली


मजीठिया अवॉर्ड की लड़ाई लड़ रहे पत्रकारों / गैर-पत्रकारों के लिए मुंबई से एक अच्छी और बड़ी खबर है... ‘दैनिक भास्कर‘ के लिए अस्बर्ट गोंजाल्विस नामक मजीठिया कर्मचारी को नौकरी से निकालना न केवल भारी पड़ गया, बल्कि अस्बर्ट गोंजाल्विस को नौकरी पर फिर से बहाल करने के साथ-साथ उन्हें फुल बैक वेजेस के रूप में करीब 17 लाख रुपये भी देने पड़े हैं।

खबर के मुताबिक, अप्रैल 2023 में मुंबई के श्रम न्यायालय ने ‘दैनिक भास्कर‘ (डी. बी. कॉर्प लि.) को आदेश दिया था कि उसने अपने जिस कर्मचारी अस्बर्ट गोंजाल्विस को 7 साल पहले नौकरी से निकाल दिया था, वह उसे नौकरी पर पुनः बहाल तो करे ही, साथ-ही-साथ अस्बर्ट गोंजाल्विस को इस समयावधि का पूरा बकाया वेतन भी अदा करे। ज्ञातव्य है कि ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ वही संस्थान है, जो स्वयं को भारत का सबसे बड़ा अखबार समूह बताता है... यह कंपनी हिंदी में ‘दैनिक भास्कर’, गुजराती में ‘दिव्य भास्कर’ और मराठी में ‘दैनिक दिव्य मराठी’ नामक अखबारों का प्रकाशन करती है।

यह बात और है कि श्रम न्यायालय का आदेश आने के बाद भी अस्बर्ट गोंजाल्विस को अपना पूरा हक पाने के लिए लगभग डेढ़ साल के समय का इंतजार करना पड़ा। जी हां, इस आदेश की प्रति जब मुंबई के श्रम कार्यालय में आई, तब पहले तो कंपनी और कर्मचारी के बीच लगभग आठ महीने तक सुनवाई हुई... कंपनी ने अस्बर्ट गोंजाल्विस को मेल के माध्यम से सूचित किया कि हम आपकी सैलरी तो आगामी मई (2023) महीने से देना शुरू कर देंगे, किंतु एरियर्स देने के मामले में उसका जवाब था कि कैलकुलेशन किया जा रहा है और उसे भी आपको कुछ दिनों में दे देंगे। बेशक, अस्बर्ट गोंजाल्विस को सैलरी मिलने भी लगी, लेकिन एरियर्स देने के नाम पर कंपनी लगातार आनाकानी करती रही... कभी समझौते की पहल के बहाने तो कभी बॉम्बे हाई कोर्ट जाने की बात कह कर ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ ने टाइमपास करना जारी रखा।

इसके बाद अस्बर्ट गोंजाल्विस की तरफ से लेबर डिपार्टमेंट में उनका पक्ष रख रहे ‘न्यूजपेपर एंप्लॉईज यूनियन ऑफ इंडिया’ (NEU India) के जनरल सेक्रेटरी धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने असिस्टेंट लेबर कमिश्नर निलेश देठे से स्पष्ट शब्दों में कहा कि आपको लेबर कोर्ट का आदेश लागू करवाना है, न कि कंपनी द्वारा टाइमपास करने की योजना में उलझना। इस मामले में यूनियन के उपाध्यक्ष शशिकांत सिंह ने भी अस्बर्ट गोंजाल्विस की तथ्यपूर्ण पैरवी की, तब कहीं जाकर देठे ने 1 फरवरी 2023 को ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ के विरुद्ध अस्बर्ट गोंजाल्विस का रेवेन्यू रिकवरी सर्टिफिकेट (आरआरसी) जारी करते हुए वसूली के लिए उसे मुंबई उपनगर के जिलाधिकारी के पास भेज दिया।

चूंकि इस दौरान देश में लोकसभा का आम चुनाव आ गया... संबंधित जिलाधिकारी कार्यालय का समूचा स्टाफ उसमें व्यस्त हो गया, इसलिए मौके को भुनाने की गरज से ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ प्रबंधन बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंच गया और वहां उसने लेबर कोर्ट के आदेश को चुनौती दी। लेकिन हाय री किस्मत, ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ को मार्च 2024 में वहां मुंह की खानी पड़ी... बॉम्बे हाई कोर्ट के माननीय जज अमित बोरकर ने लेबर कोर्ट के आदेश को न सिर्फ पूरी तरह सही माना, बल्कि ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ की रिट पिटीशन (3145/2024) को सिरे से ख़ारिज भी कर दिया। इस दौरान संबंधित कंपनी का पक्ष आर. वी. परांजपे और टी. आर. यादव ने रखा, जबकि अस्बर्ट गोंजाल्विस की वकालत विनोद संजीव शेट्टी ने की।











अपने आदेश में विद्वान न्यायाधीश अमित बोरकर ने कहा कि प्रतिवादी (अस्बर्ट गोंजाल्विस) की बर्खास्तगी से पहले न तो उससे कोई पूछताछ की गई और न ही वादी द्वारा उसकी बर्खास्तगी को उचित ठहराने के लिए लेबर कोर्ट के समक्ष कोई ठोस सबूत ही प्रस्तुत किया गया... अदालत ने पाया कि कंपनी की एचआर मैनेजर अक्षता करंगुटकर ने प्रतिवादी पर यह कहते हुए इस्तीफा देने का दबाव बनाया कि उसकी परफार्मेंस कमजोर है, लेकिन सिस्टम इंजीनियर अस्बर्ट गोंजाल्विस ने इस्तीफा नहीं दिया तो 31 अगस्त 2016 को उसकी सेवा समाप्त कर दी गई... यही नहीं, 1 सितंबर 2016 को अस्बर्ट के दफ्तर में प्रवेश करने पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया।

इसलिए प्रतिवादी ने लेबर डिपार्टमेंट से होते हुए लेबर कोर्ट का रुख किया और नौकरी पर अपनी पुनः बहाली के लिए वहां प्रार्थना करते हुए अदालत को अवगत कराया कि उसकी सेवासमाप्ति अवैध है... यह कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना किया गया है, इसलिए सेवा बहाली सहित उसको 1 सितंबर 2016 से पूर्ण बकाया वेतन भी मिलना चाहिए। अदालत ने याचिकाकर्ता के इस आरोप को मानने से इनकार कर दिया कि नोटिस पीरियड में प्रतिवादी ठीक से काम करने में विफल रहा अथवा उसने अनुमति के बिना छुट्टी का लाभ उठाया या फिर कई चेतावनियों के बावजूद उसके रवैए में कोई सुधार नहीं हुआ।

यहां बताना आवश्यक है कि अस्बर्ट गोंजाल्विस को नौकरी से अचानक तब निकाल दिया गया था, जब उन्होंने ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ से भारत सरकार द्वारा अधिसूचित मजीठिया अवॉर्ड की मांग की थी। खैर, बॉम्बे हाई कोर्ट में मुकदमे की सुनवाई के दौरान कंपनी का प्रयास था कि अस्बर्ट गोंजाल्विस को नौकरी पर पुनः रखने का आदेश ख़ारिज कर दिया जाए, परंतु बॉम्बे हाई कोर्ट ने प्रतिवादी के शपथ-पत्र में किए गए दावे के आधार पर कंपनी के वकील की मांग सिरे से ख़ारिज कर दी, जैसे- प्रतिवादी ने नौकरी ढूंढने की कोशिश की, लेकिन कलंकपूर्ण सेवा-समाप्ति के कारण उसे कहीं नौकरी नहीं मिली। इसलिए लेबर कोर्ट का यह आदेश उचित है कि कंपनी में साढ़े आठ साल तक की नौकरी कर चुके प्रतिवादी को बहाल करने सहित उसे उसका पिछला पूरा बकाया मिलना ही चाहिए। इतना ही नहीं, माननीय जज अमित बोरकर ने पर्याप्त कानून न होने का हवाला देते हुए एरियर्स की राशि में संशोधन (कमी) करने से भी इनकार कर दिया... और अपने आदेश की अंतिम पंक्तियों में माननीय हाई कोर्ट ने कहा- ‘लेबर कोर्ट द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों में कोई विकृति नहीं है, इसलिए याचिका में कोई दम नहीं है... रिट याचिका खारिज की जाती है।’

इसके बाद धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश की प्रति जब मुंबई (उपनगर) जिलाधिकारी कार्यालय को उपलब्ध करवाई, तब कहीं मामले में तेजी आई... यहां से आरआरसी के संदर्भ में तहसीलदार (अंधेरी) को आदेश हुआ, फिर तहसीलदार ने तलाठी (सांताक्रुज) को निर्देशित किया कि बकाएदार कंपनी को नोटिस देकर उसे आगे की कार्यवाही से अवगत कराया जाए। आखिर ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ के प्रबंधन को एक बात अच्छी तरह समझ में आ गई कि अब बचने का कोई रास्ता नहीं है... सुप्रीम कोर्ट में जाने के बाद कहीं मजीठिया अवॉर्ड को लेकर उस पर अवमानना का मामला न बन जाए, अतः कंपनी ने पिछले महीने की 25 तारीख को तहसीलदार कार्यालय में 16,90,802/- की डीडी जमा करवा दी।

वैसे डीडी की यह धनराशि अस्बर्ट गोंजाल्विस के अकाउंट में तुरंत आ गई हो, ऐसा भी नहीं था... अस्बर्ट बताते हैं- ...इसके लिए हमारी यूनियन के जनरल सेक्रेटरी धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने बहुत भागदौड़ की। यह धर्मेन्द्र ही थे, जिन्होंने लेबर आफिस में मेरा मजबूती से पक्ष रखा तो जिलाधिकारी, तहसीलदार और तलाठी तक से लगातार टच में रहते हुए मुझे रोजाना अपडेट दे रहे थे। इसीलिए अभी 23 अगस्त को फुल बैक वेजेस का मेरा अमाउंट जब मेरे अकाउंट में क्रेडिट हुआ, तब सबसे पहले मैंने उन्हीं को फोन करके आभार व्यक्त किया... बहरहाल, माननीय न्यायालय के माध्यम से अस्बर्ट गोंजाल्विस को मिले इस न्याय को लेकर भारत के समस्त मजीठिया क्रांतिकारियों में उत्साह की लहर है।

शशिकांत सिंह 

पत्रकार और मजिठिया क्रांतिकारी 

9322411335





Friday, 16 August 2024

मजीठिया: अवैध सेवा समाप्‍ति के मामले में दिव्य हिमाचल अखबार की बड़ी हार




माली को सौ फीसदी वेतनमान व अन्य सेवालाभ के साथ बहाली के आदेश

हिमाचल प्रदेश के दैनिक समाचार पत्र दिव्य हिमाचल के प्रबंधन की लेबर कोर्ट धर्मशाला में चल रहे अवैध सेवा समाप्‍ति के मामले में बड़ी हार हुई है। सुनील कुमार बनाम मैसर्ज दिव्य हिमाचल प्रकाशन प्राईवेट लि. मामले में कोर्ट ने माली के पद पर तैनात सुनील कुमार के मौखिक सेवा समाप्‍ति और उसे अपना कर्मचारी ना स्वीकारने के मामले में लेबर कोर्ट धर्मशाला ने 31 जुलाई को फैसला सुनाया था। 

लेबर कोर्ट में माली के पद पर तैनात इस गरीब कर्मचारी के मामले की पैरवी वरिष्ठ  पत्रकार एवं न्यूज पेपर इम्लाइज यूनियन आफ इंडिया के अध्यक्ष रविंद्र अग्रवाल ने बतौर एआर की। उन्होंने वादी श्रमिक का पक्ष मजबूती के साथ रखा और एक लैंडमार्क जजमेंट हासिल करने में सफलता पाई। ज्ञात रहे कि सुनील कुमार को प्रतिवादी कंपनी ने माली के पद पर बिना किसी नियुक्ति पत्र के जुलाई 2011 में अपने मुख्यालय में रखा था, मगर उसका नाम नियमित कर्मचारियों के रिकार्ड में शामिल नहीं किया था। ना तो उसे सेलरी स्लिप दी जाती थी और ना ही पीएफ व अन्य  वेतनलाभ दिए जाते थे। सेलरी उसे कैश इन हैंड ही दी जाती थी। एक छदम रिकार्ड के जरिये कई अन्‍य कर्मचारियों की तरह उसे भी तैनात करके रखा गया था ताकि उसे नियमित अखबार कर्मचारियों को मिलने वाले लाभों और श्रमजीवी पत्रकार एवं गैर पत्रकार कर्मचारियों के लिए घोषित मजीठिया वेजबोर्ड के तहत वेतनमान से महरूम रखा जाए। 

वादी ने अपने क्‍लेम में यह भी वाद उठाया था कि उसकी सेवासमाप्‍ति मजीठिया वेजबोर्ड के तहत वेतनमान मांगे जाने के चलते की गई। उसने 24 अप्रैल 2018 को मजीठिया वेजबोर्ड के तहत संबंधित प्राधिकारी के पास वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट की धारा 17(1) के तहत रिकवरी का केस फाइल किया था। कंपनी को 3 मई 2018 को संबंधित प्राधिकारी ने नोटिस जारी करके जवाब मांगा, तो प्रतिवादी ने वादी पर रिकवरी का केस वापस लेने का दबाव बनाया, मगर वह नहीं माना। इस पर प्रतिवादी ने 15 मई 2018 को वादी को नौकरी से हटा दिया और वादी का संस्‍थान में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया।  

वादी के लेबर कोर्ट में दाखिल क्‍लेम के जवाब में कंपनी का लिखित उत्‍तर था कि वादी उसका कर्मचारी है ही नहीं, उसे तो कंपनी के सीएमडी ने घर पर निजी नौकर के तौर पर रखा था और वही उसे अपनी जेब से ही मेहनताना देते थे। जबकि इस केस में अहम साक्ष्य के तौर पर वादी द्वारा लोन लेने के लिए कंपनी से मांगी गई फरवरी 2012 की एक मात्र सेलरी स्लिप ने डूबते के लिए तिनके का सहारा बनने का काम किया। यह सेलरी स्लिप भी उस बैंक के रिकार्ड में लगी हुई थी, जिससे उसने लोन लिया हुआ था। सेलरी स्‍लीप को लेकर प्रतिवादी ने अजीब तर्क था कि यह तो वादी को लोन देने के लिए  मानवीय आधार पर जारी की गई थी। 

वहीं बैंक के मैनेजर ने वादी के गवाह के तौर पर कोर्ट में उपस्‍थित होकर इस सेलरी स्लिप को प्रूव किया, जिसमें सुनील कुमार के नाम और पद के अलावा उसकी डेट ऑफ ज्वाेइनिंग नवंबर 2011, विभाग का नाम और वेतनमान लिखा गया था और कंपनी की अथॉरिटी के हस्ताक्षर व मुहर भी लगी हुई थी।

इसके अलावा वादी कर्मचारी ने तीन पूर्व कर्मचारियों की गवाही भी करवाई। वहीं इन गवाहों में से एक पूर्व कर्मचारी ने अपनी गवाही में बताया कि किस तरह कंपनी अपने कर्मचारियों का छद्म रिकार्ड बनाती है, जैसा कि उसके साथ किया गया था। कंपनी ने गवाह के इसी लेबर कोर्ट में लंबित मामले में यह तो स्वीकार किया था, वह उसका कर्मचारी है, मगर कर्मचारियों के रिकॉर्ड में ना तो उसका नाम था और ना ही उसे बैंक के माध्यम से सेलरी दी जाती थी। उसे पहले बैंक अकाउंट के माध्यम में सेलरी दिए जाने के बाद अचानक बंद कर दिया गया था और कैश इन हैंड सेलरी दी जाने लगी थी। इससे साबित हुआ कि कंपनी ने कर्मचारियों का रिकॉर्ड नियमानुसार नहीं रखा है। साथ ही कंपनी के स्टैंडिंग ऑर्डर भी सत्यापित नहीं हैं। वहीं जो रिकॉर्ड कोर्ट में दाखिल किया गया वो भी नियमानुसार नहीं तैयार किया गया था। 

इस तरह कोर्ट ने सभी गवाहों और साक्ष्यों के आधार पर पाया कि कर्मचारी ने खुद को प्रतिवादी कंपनी का कर्मचारी साबित करने के लिए जरूरी प्रारंभिक सक्ष्या मुहैया करवाने का अपना भार या दायित्व पूरा किया है। वहीं कंपनी की ओर से कोर्ट में प्रस्तुत एकमात्र गवाह के माध्‍यम से कंपनी अपना पक्ष रखने में विफल रही। वहीं जिस गवाह को कोर्ट में उतारा गया, उसकी नियुक्‍ति ही कर्मचारी की सेवा समाप्‍ति के बाद हुई थी, जिसनेे जिरह में ही स्‍वीकार कर लिया था कि वह अपनी नियुक्‍ति से पूर्व के कंपनी के मामलों के बारे में परिचित नहीं है। उसकी नियुक्‍ति अक्टूबर 2019 में हुई है। 

वहीं कंपनी यह भी साबित नहीं कर पाई कि वादी को कंपनी के सीएमडी ने निजी नौकरी के तौर पर रखा था। इस फैसले में लेबर कोर्ट ने वादी को जहां आईडी एक्‍ट की धारा 2(एस) के तहत कर्मचारी माना तो वहीं वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट की धारा 2(डीडी) की धारा के तहत गैर पत्रकार अखबार कर्मचारी मानाते हुए मजीठिया वेजबोर्ड के तहत वेतनमान का हकदार भी बताया है। 

कोर्ट ने अपने फैसले में कर्मचारी की 15.5.2018 सेे की गई सेवासमाप्‍ति को निरस्‍त करते हुए वादी को वरिष्‍ठता और सेवा में निरंतरता के लाभ सहित 15.5.2018 सेे लेकर नौकरी बहाली तक की पूरा वेतनमान तीन माह के भीतर जारी करने के आदेश दिए हैं। ऐसा ना करने पर प्रतिवादी को अवार्ड की तिथि से लेकर आदेश के पालन तक 6 फीसदी ब्‍याज के साथ ये लाभ देने पड़ेंगे।

जारी कर्ता: शशिकांत