Friday 15 March 2024

मजीठिया: बॉम्बे हाई कोर्ट में 'डी. बी. कॉर्प लि.' की करारी हार




मजीठिया अवॉर्ड की लड़ाई लड़ रहे पत्रकारों के लिए मुंबई से एक बड़ी खबर है... खबर के मुताबिक, मुंबई के श्रम न्यायालय ने 'डी. बी. कॉर्प लि.' के लिए आदेश दिया था कि उसने अपने जिस कर्मचारी अस्बर्ट गोंजाल्विस को सात साल पहले नौकरी से निकाल दिया है, उसे न केवल नौकरी पर पुनः बहाल करे, अपितु अस्बर्ट गोंजाल्विस को इस समयावधि का पूरा बकाया वेतन भी अदा करे। ज्ञातव्य है कि 'डी. बी. कॉर्प लि.' वही संस्थान है, जो स्वयं को भारत का सबसे बड़ा अखबार समूह बताता है... यह कंपनी हिंदी में 'दैनिक भास्कर', गुजराती में 'दिव्य भास्कर' और मराठी में 'दैनिक दिव्य मराठी' नामक अखबारों का प्रकाशन करती है।

श्रम न्यायालय का आदेश लागू करवाने के लिए आदेश की प्रति जब मुंबई के श्रम कार्यालय में आई, तब भी कंपनी और कर्मचारी के बीच लगभग आठ महीने तक सुनवाई हुई। इस दौरान कंपनी ने अस्बर्ट गोंजाल्विस को मेल के माध्यम से सूचित किया कि हम आपकी सैलरी तो आगामी महीने से देना शुरू कर देंगे, किंतु एरियर्स के लिए कैलकुलेशन किया जा रहा है और उसे भी आपको कुछ दिनों में दे दिया जाएगा। हालांकि अस्बर्ट गोंजाल्विस को सैलरी मिलने भी लगी, लेकिन एरियर्स देने के नाम पर कंपनी लगातार आनाकानी करती रही... कभी समझौते की पहल के बहाने तो कभी बॉम्बे हाई कोर्ट जाने की बात कह कर 'डी. बी. कॉर्प लि.' ने टाइमपास करना जारी रखा। 

इसके बाद अस्बर्ट गोंजाल्विस की तरफ से यहां उनका पक्ष रख रहे 'न्यूजपेपर एंप्लॉईज यूनियन ऑफ इंडिया' के महासचिव धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने सहायक श्रम अधिकारी निलेश देठे का ध्यान जब इस बिंदु की ओर आकर्षित किया कि आपको श्र्म न्यायालय का आदेश लागू करवाना है, न कि कंपनी द्वारा टाइमपास करने की योजना में उलझना ! इस मामले में यूनियन के उपाध्यक्ष शशिकांत सिंह ने भी अस्बर्ट गोंजाल्विस की खूब पैरवी की, तब कहीं जाकर देठे ने 1 फरवरी, 2024 को 'डी. बी. कॉर्प लि.' के विरुद्ध अस्बर्ट गोंजाल्विस का रिकवरी सर्टिफिकेट जारी करते हुए वसूली के लिए उसे मुंबई उपनगर के जिलाधिकारी के पास भेज दिया।

बहरहाल, इस बीच श्रम न्यायालय के आदेश को चुनौती देने के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंची 'डी. बी. कॉर्प लि.' को कल अदालत में मुंह की खानी पड़ी... मुंबई उच्च न्यायालय के माननीय जज अमित बोरकर ने श्रम न्यायालय के आदेश को न केवल पूर्णतः सही माना, बल्कि 'डी. बी. कॉर्प लि.' की रिट पिटीशन (3145/2024) को सिरे से ख़ारिज भी कर दिया। इस दौरान संबंधित कंपनी का पक्ष जहां आर. वी. परांजपे और टी. आर. यादव ने रखा, वहीं अस्बर्ट गोंजाल्विस की वकालत विनोद संजीव शेट्टी ने की।

अपने आदेश में विद्वान न्यायाधीश अमित बोरकर ने कहा है कि प्रतिवादी (अस्बर्ट गोंजाल्विस) की बर्खास्तगी से पहले न तो उससे कोई पूछताछ की गई और न ही वादी द्वारा उसकी बर्खास्तगी को उचित ठहराने के लिए श्रम न्यायालय के समक्ष कोई सबूत प्रस्तुत किया गया... अदालत ने पाया कि कंपनी की एच. आर. मैनेजर ने प्रतिवादी पर यह कहते हुए इस्तीफा देने का दबाव बनाया कि उसकी परफार्मेंस कमजोर है, लेकिन सिस्टम इंजीनियर अस्बर्ट गोंजाल्विस ने इस्तीफा नहीं दिया तो 31 अगस्त 2016 को उसकी सेवा समाप्त कर दी गई... 1 सितंबर 2016 को दफ्तर में उसके प्रवेश पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया।

इसलिए प्रतिवादी ने श्रम न्यायालय का रुख किया और नौकरी पर अपनी पुनः बहाली के लिए प्रार्थना करते हुए अवगत कराया कि उसकी सेवा-समाप्ति अवैध है... यह कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना किया गया है, इसलिए सेवा बहाली सहित उसको 1 सितंबर 2016 से पूर्ण बकाया वेतन भी मिलना चाहिए। अदालत ने याचिकाकर्ता के इस आरोप को मानने से इनकार कर दिया कि नोटिस पीरियड में प्रतिवादी ठीक से काम करने में विफल रहा अथवा उसने अनुमति के बिना छुट्टी का लाभ उठाया या फिर कई चेतावनियों के बावजूद उसके रवैए में कोई सुधार नहीं हुआ।

यहां बताना आवश्यक है कि अस्बर्ट गोंजाल्विस को नौकरी से तब निकाल दिया गया था, जब उसने 'डी. बी. कॉर्प लि.' से भारत सरकार द्वारा अधिसूचित मजीठिया अवॉर्ड की मांग की थी। बहरहाल, इस मुकदमे की सुनवाई के दौरान कंपनी का प्रयास था कि अस्बर्ट गोंजाल्विस को नौकरी पर पुनः रखने का आदेश ख़ारिज कर दिया जाए, परंतु मुंबई उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी के शपथ-पत्र में किए गए दावे के आधार पर कंपनी के वकील की मांग सिरे से ख़ारिज कर दी, जैसे- प्रतिवादी ने नौकरी ढूंढने की कोशिश की, लेकिन कलंकपूर्ण सेवा-समाप्ति के कारण उसे कहीं नौकरी नहीं मिली। इसलिए श्रम न्यायालय का यह आदेश उचित है कि कंपनी में साढ़े आठ साल तक की नौकरी कर चुके प्रतिवादी को बहाल करने सहित उसे उसका पिछला बकाया मिलना ही चाहिए। यही नहीं, माननीय जज अमित बोरकर ने पर्याप्त कानून न होने का हवाला देते हुए एरियर्स की राशि में संशोधन करने से भी इनकार कर दिया... और अपने आदेश की अंतिम पंक्तियों में कहा- 'श्रम न्यायालय द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों में कोई विकृति नहीं है, इसलिए याचिका में कोई दम नहीं है... रिट याचिका खारिज की जाती है।'

Friday 2 February 2024

वरिष्ठ पत्रकार श्रीनारायण तिवारी दैनिक यशोभूमि के कार्यकारी संपादक बनाए गए

 


वरिष्ठ पत्रकार श्रीनारायण तिवारी को मुंबई के लोकप्रिय हिंदी दैनिक यशोभूमि का कार्यकारी संपादक बनाया गया है। दैनिक यशोभूमि को मुंबई में रहने वाले उत्तर भारतीयों का मुख पत्र माना जाता है। इस समाचार पत्र में नारायण तिवारी को कार्यकारी संपादक बनाए जाने पर मुंबई में रहने वाले उत्तर भारतीयों में हर्ष का माहौल है। उनके पदभार संभालने पर समाचार पत्र के मुद्रक, प्रकाशक और संपादक प्रवीण मुरलीधर शिंगोटे सहित पूरे प्रबंधन ने उनका स्वागत किया। मृदुल भाषी श्रीनारायण तिवारी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले की बदलापुर तहसील स्थित गांव जगजीवनपुर के मूल निवासी हैं और वह विगत 39 वर्षों से मुंबई में रहकर पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान कर रहे हैं। 


तिवारी हिंदी दैनिक जनसत्ता, दैनिक लोकमत, दैनिक दबंग दुनियां, दैनिक देशोन्नति, दैनिक राष्ट्रप्रकाश, दैनिक एब्सल्यूट इण्डिया, दैनिक पूर्वविराम जैसे कई अखबारों में संवाददाता, मुख्य संवाददाता, ब्यूरो प्रमुख, पोलिटिकल एडिटर, स्थानीय और कार्यकारी संपादक के रूप में सेवा दे चुके हैं। तिवारी ने हिंदी दैनिक जनसत्ता और संझा जनसत्ता में वरिष्ठ संवाददाता और मुख्य संवाददाता, हिंदी दैनिक लोकमत समाचार में मुंबई ब्यूरो चीफ, मराठी दैनिक लोकमत, अंग्रेजी दैनिक लोकमत टाइम्स में विशेष संवाददाता के रूप में एक लम्बी पारी खेली है। हिंदी दैनिक दबंग दुनिया मुंबई संस्करण के संपादक के रूप में उनका समाज जोड़ने का अभियान काफी सराहा गया था। वह हिंदी दैनिक जागरूक टाइम्स के कार्यकारी संपादक भी रह चुके हैं।

तिवारी का हाल ही में आदर्श पत्रकारिता पुरस्कार के लिए चयन किया गया है। इससे पहले रामनाथ गोयनका पत्रकारिता पुरस्कार, गजानन आर्य पत्रकारिता पुरस्कार, लोकभारतीय पत्रकारिता पुरस्कार, श्रीमती रामादेवी द्विवेदी पावन स्मृति विशिष्ट पत्रकार गौरव पुरस्कार आदि जैसे दर्जनों पुरस्कारों से वे सम्मानित हो चुके हैं।

Friday 19 January 2024

मजीठिया: नवदुनिया जागरण को झटका, 20जे की दलील भी खारिज, 17 कर्मियों को देना होगा वेजबोर्ड


एक माह में करनी होगी आदेश की पालना अन्यथा 6 प्रतिशत की ब्याजदर से करना होगा भुगतान 


भोपाल श्रम न्यायालय क्रमांक 1 में वर्ष 2017 से लंबित नवदुनिया ए यूनिट ऑफ जागरण प्रकाशन लिमिटेड के 17 पत्रकार और गैर पत्रकार कर्मचारियों के पक्ष में श्रम न्यायालय ने अवार्ड पारित किया है। इसमें 20 जे और नॉन 20 जे दोनों ही तरह के मामले शामिल थे। श्रम न्यायालय ने प्रबंधन की तमाम तकनीकी और 20 जे की आपत्ति को खारिज करते हुए सभी को मजीठिया वेतनमान का लाभ देने का आदेश दिया है। गौरतलब है कि भोपाल श्रम न्यायालय में नवदुनिया ए यूनिट ऑफ जागरण के खिलाफ 100 से अधिक मामले लंबित हैं, जिनमें से 17 मामलों में निर्णय आया है। कर्मचारियों की इस जीत से सभी उत्साहित हैं। मजीठिया के मामले वर्ष 2017 से लंबित थे और प्रबंधन मामलों को लेकर कई बार हाईकोर्ट गया लेकिन उसकी चाल कामयाब नहीं हो सकी। श्रम न्यायालय ने अपने आदेश में माना है कि सभी कर्मचारी मजीठिया के पात्र हैं। कर्मचारियों को प्रबंधन मजीठिया से आधा वेतन दे रहा था, इसलिए सभी कर्मचारियों को वर्ष 2011 से मजीठिया का लाभ एक माह में देने के आदेश हैं। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि प्रबंधन यदि एक माह में वेतन का लाभ नहीं देता है तो 6 प्रतिशत की दर से ब्याज लगाया जाएगा।  

नवदुनिया को 5वीं श्रेणी में मानकर वेतन का निर्धारण  

गौरतलब है कि नईदुनिया मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के अखबार नवदुनिया भोपाल का अधिग्रहण जागरण कानपुर समूह ने अप्रैल वर्ष 2013 में किया था। कर्मचारियों ने अपने दावे में जागरण प्रकाशन समूह को वर्ग-1 में रखकर गणना पत्रक तैयार किया था, वहीं  प्रबंधन ने वर्ष 2007-08-09 और 09-10 की नवदुनिया भोपाल की बैलेंस शीट पेश की थी और अपनी श्रेणी को 7वीं कैटेगरी में रखा था। कोर्ट ने माना की इन वित्तीय वर्षों में जागरण अस्तित्व में नहीं था, इसलिए नईदुनिया मीडिया प्राइवेट लिमिटेड की संपूर्ण बैलेंस शीट को गणना का आधार माना जाएगा। प्रबंधन ने कोर्ट के आदेश के बाद भी जब समूह की बैलेंस शीट प्रस्तुत नहीं की तो कोर्ट ने नवदुनिया को दो श्रेणी बढ़ाते हुए 7वीं से 5वीं श्रेणी में माना और कर्मचारियों को 5वीं श्रेणी के अनुसार वेतन देने के आदेश दिए हैं।  

वेतन में दो से तीन गुना की बढ़ोतरी

मजीठिया वेतनमान के निर्धारण के बाद कर्मचारियों के वेतन में दो से तीन गुना की वृद्धि होगी। कोर्ट ने अपने आदेश में सभी कर्मचारियों का नवंबर 2011 का बैसिक, 20 प्रतिशत वैरिवल पे, 165 प्रतिशत महंगाई राहत, 10 प्रतिशत टीए, एचआरए और प्रतिवर्ष 2.5 प्रतिशत की दर से वेतनवृद्धि के आदेश दिए हैं। ज्ञात हो कि वर्ष 2011 में नवदुनिया में एक उप-संपादक का कुल वेतन ही 12000 हजार रुपये था। ऐसे में मजीठिया वेतनमान लागू होने के बाद अब कर्मचारियों के वेतन में दो से तीन गुना की वृद्धि होगी।

कर्मचारियों की जीत पर स्टेट वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन एमपी की ओर से सभी को जीत की बधाई दी गई। कर्मचारियों की ओर से श्रम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता जीके छिब्बर और उनके साथी महेश शर्मा ने दमदारी से पक्ष रखा।  

(साभार-स्टेट वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन एमपी)

Monday 8 January 2024

Majithia: SC stayed the stay order of Delhi HC on the reference to Labour Court

 


New Delhi, 8 January. Good news has come in the battle of Majithia Wage Board (MWB) which has been dragging on for a long time due to legal complications. The Honorable Supreme Court, while hearing the SLP of a Delhi-based employee of HT Media on Monday, has stayed the order of Delhi High Court issuing stay on the proceedings of the Labor Court on reference for recovery of due wages of MWB recommendations. Besides, stay also orders have been given to continue the proceedings of the Labor Court as per law. The special thing about this case is that this ploy of HD Media Ltd. Company, which is expert in trapping the employees in legal trap, has been foiled by the Supreme Court AOR and young lawyer Advocate Rahul Shyam Bhandari and that too without any fees. 

It is important to write some words about Advocate Bhandari because when he came to know that the references of two newspaper employees Ravindra Dhakad and Kuldeep, who had lost their jobs in the MWB fight, were harassed by the above Newspaper Establishment specifically by way of delay tactics before the trial court and now has challenged the reference order of the NCT Delhi through Deputy Labour Commissioner who is a designated authority in terms of Section 17 of the Working Journalists and Other Newspaper Employees (Conditions of Service) and Miscellaneous provisions Act, 1955 in the High Court after almost three years delay. It was difficult for the above stated newspaper employees him to arrange the fees to hired the lawyers. In such a situation, on the request received on the phone of these two newspaper employees, Advocate Rahul Bhandair has agreed to represent them as “Pro bono” before the Delhi High Court and presented their case without any fees, but after the company got a sketchy stay order from there, he appealed this interim order in the Supreme Court also. After decided to challenge the above interim stay order, he first made a strong case and challenged the matter of Sh. Ravindra Dhakad. The result of the Special Leave Petition (C) filed before Hon’ble SC has come out on 08.01.2024. Now he will soon file the case of another employee named Kuldeep in similar manner. On the other hand, expressing happiness over this decision, President of the Newspaper Employing Union of India Ravindra Aggarwal and Vice President Shashikant have expressed gratitude to Advocate Rahul Shyaram Bhandari. He said that it is only because of young and helpful lawyers like Rahul ji that the common man in the country is getting justice.



मजीठिया वेजबोर्ड के रेफरेंस पर दिल्ली हाईकोर्ट के स्टे को सुप्रीम कोर्ट ने किया स्टे

युवा वकील राहुल श्याम भंडारी के सहयोग से एचटी कर्मी की बड़ी जीत


नई दिल्‍ली, 8 जनवरी। कानूनी दांव पेच के चलते लंबी खिंचती चली जा रही मजीठिया वेजबोर्ड की लड़ाई में एक और खुशी की खबर आई है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एचटी मीडिया के दिल्ली  स्थित एक कर्मचारी की एसएलपी पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के लेबर कोर्ट की सुनवाई पर स्टेस जारी करने के आदेश को स्टे कर दिया है। साथ ही लेबर कोर्ट की कार्यवाही को जारी रखने के आदेश दिए हैं।

इस मामले की खास बात यह रही कि कर्मचारियों को कानूनी मक्कड़जाल में फंसाने की माहिर एचडी मीडिया कंपनी की इस चाल को सुप्रीम कोर्ट के एओआर एवं युवा वकील एडवोकेट राहुल श्याम भंडारी ने नाकाम किया है और वो भी बिना किसी फीस के।


इस खबर में एडवाकेट भंडारी के बारे में लिखा जाना इसलिए अहम है क्योंकि जब उनको इस बात का पता चला कि मजीठिया वेजबोर्ड की लड़ाई में नौकरी खो चुके दो अखबार कर्मचारियों रविंद्र धाकड़ और कुलदीप के रेफरेंस को हिंदुस्तान टाइम्स कंपनी ने खासतौर पर डिले टैक्टिक (देरी के मकसद से) के तहत करीब तीन साल बाद हाईकोर्ट में चैलेंज किया है और उनके लिए दिल्ली हाईकोर्ट के वकील की फीस का जुगाड़ कर पाना मुश्किल है। बिहार के मजीठिया क्रांतिकारी पंकज जी के सहयोग से ये दोनों एडवोकेट राहुल भंडारी जी के संपर्क में आए और इनके फोन पर मिले अनुरोध पर राहुल जी ने बिना किसी फीस के पहले तो दिल्ली  हाईकोर्ट में खड़े होकर उनका पक्ष रखा, मगर वहां से कंपनी को स्टेे दिए के बाद उन्होंने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में भी नि:शुल्क चुनौती देने का फैसला लिया। इसके बाद उन्होंने एक मजबूत केस बनाकर पहले रविंद्र धाकड़ के स्टे‍ को चैलेंच किया, जिसका नतीजा आज सामने आया है। अब वे जल्द ही दूसरे कर्मी कुलदीप के केस को भी दायर करके दिल्‍ली हाईकोर्ट के स्टे पर स्टे हासिल करेंगे।


यहां बाकी मजीठिया क्रांतिकारियों के लिए अच्‍छी खबर यह है कि आज के फैसले से मजीठिया कर्मचारियों को हाईकोर्ट से मिले स्टे पर स्टे लेने का रास्ता खुला है, तो  वहीं इस मामले में अगर सुप्रीम कोर्ट फैसला देता है तो अखबार मालिकों का रेफरेंस को हाईकोर्ट में चैलेंज करके स्टे लेने और देरी करने के हथकंडों पर रोक लग सकती है।  उधर, इस फैसले पर खुशी जाहिर करते हुए न्‍यूजपेपर इम्‍पलाइज यूनियन ऑफ इंडिया के अध्‍यक्ष रविंद्र अग्रवाल और उपाध्‍यक्ष शशिकांत ने एडवोकेट राहुल श्‍याम भंडारी का आभार व्‍यक्‍त किया है। उन्‍होंने कहा कि राहुल जी जैसे युवा और मददगार वकीलों के चलते ही देश में आम आदमी को न्‍याय मिल पा रहा है।

Monday 30 October 2023

IFWJ Celebrates 74th Foundation Day

New Delhi, 30 October . Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) celebrated its 74th foundation day today across the country and resolved to fight to protect and save the Working Journalist Act of 1955. However, the government is bent on abolishing this act by merging it into the proposed four labour codes. The irony is that instead of putting the Working Journalist Act in any particular code it has been scattered into all four wage codes namely, Code on Wages, Industrial Relations Code, Social Security Code, and Occupational Safety, Health and Working Conditions Code, If the Working Journalist Act is scrapped then there will be no wage boards and privileges available to the fourth estate. 

IFWJ demanded that instead of abrogating the Working Journalist Act, its ambit and scope should be expanded to include all the genres of media including electronic, web, print and digital. At present, only journalists belonging to print media fall under the Working Journalist Act.

Among those who spoke in the meeting were IFWJ Secretary General Parmanand Pandey, its legal cell convenor Mohan Babu Aggarwal, DUWJ President Alkshendra Singh Negi, leader of the Dainik Jagran Employee Union Vivek Tyagi, and the Chief Correspondent of Virat Swaroop Vijay Verma and well-known journalist Geeta Rawat. The main function was held at the Sports Club of India in New Delhi. It was also resolved to restart the publication of the ‘ Working Journalist’.

मुंबई के हिंदी भाषी पाठकों का दुर्भाग्य

 लांचिंग के दिन से ही विवादों में दैनिक भास्कर

5 साल पहले राजस्थान का मशहूर अखबार ”राजस्थान पत्रिका” मुंबई में कब लॉन्च हुआ और कब बंद हो गया किसी को पता ही नहीं चला। इस अखबार की गुपचुप विदाई के बाद जब काफी जोर-शोर से मायानगरी मुंबई में "दैनिक भास्कर" लांच किया गया तो हिंदी भाषी पाठकों के मन में दिलचस्पी बनी थी कि यह अखबार कुछ नया करेगा और उस गैप को भरने की कोशिश करेगा जिसे अब तक दो प्रमुख अखबार ”नवभारत टाइम्स” और ”नवभारत” नहीं भर पाए हैं। पर हिंदी न्यूज वर्ल्ड की विडंबना देखिए कि इस अखबार की लांचिंग के दिन से ही यह विवादों में रहा है और नाम कमाने से पहले ही बदनाम हो रहा है। जिस दिन दैनिक भास्कर की लांचिंग हुई उसी दिन इस अखबार के इंफ्रा और रेलवे कवर करने वाले रिपोर्टर की रेल टिकट दलाली के मामले में गिरफ्तारी हो गई। उसके कुछ दिन ही बाद इस अखबार के क्राइम रिपोर्टर को पुलिस स्टेशन के चक्कर लगाने पड़े, जब उसने अपनी पत्रकारिता का धौंस दिखाते हुए ट्रैफिक हवलदार के साथ गाली गलौज कर दी। हालांकि इस क्राइम रिपोर्टर को बाद में एडिटर से मतभेदों के चलते नौकरी छोड़ देने के लिए बोला गया, जबकि इंफ्रा और रेलवे कर करने वाला रिपोर्टर आज भी जमानत पर है। अबकी बार इस अखबार की बदनामी में नया चैप्टर जोड़ा है, खुद इसके स्थानीय संपादक ने, जो फिलहाल बड़े-बड़े स्पॉन्सरों के बलबूते पिछले एक पखवाड़े से पूरे यूरोप की यात्रा कर रहे हैं। मुंबई में आम पत्रकारों में यह सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है कि आखिर इन लोगों की नैतिकता कहां गई है जो नेताओं और दलालों के स्पॉन्सरशिप पर विदेश की सैर कर रहे हैं। खासकर दैनिक भास्कर के स्थानीय संपादक की बात तो और भी गंभीर हो जाती है।  मीडिया जगत में विदेश सैर की टाइमिंग पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि फिलहाल तो संपादक महोदय को अपनी टीम को नए-नए अखबार की लांचिंग में पूरा तन मन झोंक देना चाहिए। सप्ताहिक अवकाश भी नहीं लेना चाहिए। पर वे साहब तो रोज फेसबुक पर कभी स्पेन कभी नीदरलैंड के समुद्र तटों पर फोटो खींच कर अपनी तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं।यूरोप की सैर करने वाले पत्रकारों की इसी टोली में नवभारत टाइम्स के भी पत्रकार हैं जिन्होंने कुछ दिन पहले ही अभी फ्लैट खरीदा है और वह ईएमआई अदा कर रहे हैं। कुछ तो यह भी कह रहे हैं कि यह "नवभारत टाइम्स" और "नवभारत" अखबार के मालिकों का षड्यंत्र है कि "दैनिक भास्कर" जैसे नए नवेले समाचार पत्र को मुंबई में सेटल होने का मौका ही न दिया जाए और उनके रिपोर्टर और संपादकों को उलझाए रखा जाए। "दैनिक भास्कर" मुंबई के लिए एक बड़ी चुनौती यह भी बन रही है कि "नवभारत टाइम्स" से लाए गए एक्जीक्यूटिव एडिटर की रिपोर्टिंग टीम पर कोई पकड़ नहीं हैं। उन्होंने हमेशा से डेस्क पर काम किया है और उनका शांत सौम्य व्यक्तित्व उनके आड़े आ रहा है। इसके अलावा, दैनिक भास्कर की पूरी टीम में एक भी ऐसा पत्रकार नहीं है, जिसे अगर किसी अंग्रेजी बोलने वाले के सामने खड़ा कर दिया जाए तो वे इसकी एक लाइन भी रिपोर्टिंग नहीं कर पाएंगे। 

दूसरे संपादक भी कम नहीं

यह मुंबई के अखबार जगत का दुर्भाग्य है कि किसी भी अखबार को ढंग का संपादक नहीं मिला। नवभारत टाइम्स के संपादक की बात करें तो उनका बैकग्राउंड मिलिट्री का रहा है और उन्हें पत्रकारिता की एबीसीडी भी नहीं मालूम। जब से भास्कर लांच हुआ है तब से उन्होंने जिम जाकर अपने डोले शोले को फेसबुक पर अपलोड करने का अभियान तेज कर लिया है। जबसे मिलिट्री मैन के हाथ में एनबीटी की कमान आई है, तब से इस ब्रांड को काफी धक्का लगा है। अब इसकी गिरती साख को बचाने के लिए दूसरे सीनियर पत्रकार को लाया गया है, पर मुंबई और महाराष्ट्र के बारे में उनकी नासमझी समूचे ब्रांड पर भारी पड़ रही है। अब नवभारत की भी कर लें। इस अखबार के संपादक की कला पर किताब लिखी जाए तो भी कम पड़ जाए। पैसे के पीछे भागने वाले और सेटिंग करने में महारत हासिल कर चुके इस सज्जन को रिटायरमेंट के बाद भी नागपुर वाले धनकुबेर मालिकों ने सेवा विस्तार दिया। मीडिया सर्कल में उन्हें न जाने कितने नामों से पुकारा जाता है, जिसमें एक नाम कालीचरण है। उनके रिटायरमेंट की राह तक रहे नवभारत के उस पत्रकार को गहरा धक्का लगा है जो नवभारत टाइम्स और पीटीआई जैसे संस्थानों में काम कर चुका है और संपादक बनने राह तक रहा है। कुल जमा कहें तो मुंबई में हिंदी प्रिंट मीडिया की दुर्गति पहले भी थी और आज भी है और कल भी रहने वाली है। अगर इनके मालिक समय पर चेत जाते हैं तो शायद बात बन जाए।

(वरिष्ठ पत्रकार की कलम से)