Wednesday 26 October 2016

मजीठिया: आर सी कटने के बाद मालिकों का बैँक खाता सील कराएं

देश भर के मीडियाकर्मियों के वेतन ,एरियर और प्रमोशन से जुड़े मजीठिया वेज बोर्ड मामले में माननीय सुप्रीमकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए श्रम आयुक्त कार्यालयों ने रिकवरी के लिए आर सी काटना शुरू कर दिया है ।जिन मीडिया कर्मियों के पक्ष में फैसला आया है वे आर सी कटने के बाद क्या करें । इस पर मजीठिया वेज बोर्ड मामले में पत्रकारों के पक्ष में सुप्रीमकोर्ट में लड़ाई लड़ रहे एडवोकेट उमेश शर्मा ने काफी महत्वपूर्ण सलाह दी है।उन्होंने कहा कि जिन अखबार मालिकों के खिलाफ आर सी कटी है पहले उन मालिकों के बैंक खाते सील कराइये। उमेश शर्मा ने कहा है कि आर सी कटने के बाद इसे जिलाधकारी कार्यालय में भेजा जाएगा।वहाँ लापरवाही होगी और विभाग द्वारा कहा जाएगा कि प्रबंधन को नोटिस भेजा जा रहा है ।आप सीधे जिलाधिकारी को कंपनी प्रबंधन के बैंक खाते , गाड़ी और फ्लैट और यहाँ तक कि जिसपर मालिक बैठते हैं उस कुर्सी का भी डिटेल दीजिये और कहिये बैंक खातों को सील कराइये।बैंक खातों को सील कराने के लिए जिलाधिकारी एक पत्र सम्बंधित बैंक को लिखेंगे और बैंक मैनेजर खाता सील कर देंगे।उसके बाद खुद ब खुद मालिक आपके बकाये को क्लियर करने को मजबूर हो जायेंगे उनकी गाडी तक कब्जे में ले ली जायेगी ।यहाँ तक कि अखबार मालिक जिस कुर्सी पर बैठते हैं उसे भी कब्जे में लेलिया जाएगा जो मालिक कभी नहीं होने देगा ।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आर टी आई एक्टिविस्ट
9322411335





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Resolution passed in CWC at Vishakhapattanam


This Central Working Committee of All India Newspaper Employees Federation, New Delhi, held at Vishakhapattanam (AP) on 22-23rd October 2016 after extensive and exhaustive deliberations unanimously resolves –

On implementation of Awards

          (1)     That in the light of the recommendations in Palekar Award (1979), Bachawat Award (1988), Manisana Award (1998), Majithia Award (2011) if the management of a Newspaper Establishment has failed to comply with any recommendation/s Unions should raise an industrial dispute

(a)     for implementation of the said recommendation/s by asking the management to produce relevant Balance Sheets to verify the same for purposes of determination of its gross revenue and class thereof;

(b)     for fixation in scales of pay provided for in the Award/s for relevant class of Newspaper Establishment and also for grant of appropriate increments and/or benefits provided for in the Award/s;

(c)     that this action of the Unions will be in addition to contempt proceedings, if any, filed by it or individual employees and without prejudice to the same but in addition to it;

On Alarming Increase in Employment on Contract Basis

          (2)     That in the light of the growing unfair labour practices on the part of the Newspaper Establishments to engage both journalist and non-journalist employees on contract basis, so as to deny these employees benefits of regularization and permanency and various awards and also other related labour laws, by keeping these employees perpetually on tenterhooks of uncertainty and condemning them to life of humiliation, subjugation and servitude is a blatant violation of Human Rights and other legal rights.  This meeting, therefore, strongly condemns indulgence of Newspaper Establishments in these unfair labour practices and;

(a)     calls upon the Newspaper Establishments to refrain from such unfair labour practices and to regularize services of all journalist and non-journalist employees, who are presently working on contract basis, and to pay them all the benefits of regular and permanent employees, including benefits of various Awards with retrospective effect;

(b)     calls upon the Unions to enroll all such journalists and non-journalist employees, who are committed to abolition of such system of employment on contract basis, and actively help them liberate from this abhorrent method of exploitation and degradation of continually working on contract basis;

(c)     calls upon the Unions to do everything in their power to strengthen both numerically and qualitatively the system of employing employees on regular and permanent basis and to ensure filling up of all vacancies on that basis.

ON CLANDESTINE JOBS ELLMINATION & REDUCTION OF EMPLOYMENT OPPORTUNITIES

          (3)     That looking to the growing resort of Newspaper Establishments to unfair labour practices of outsourcing for jobs elimination and continuous application of systems of rationalization and automation, resulting in increasing workload and sapping of energy and strength of employees to perilous level, resulting ultimately in reduction of employment opportunities as well, this Central Working Committee meeting, therefore,

(a)     calls upon the Unions to identify and oppose all overt and covert methods of outsourcing aimed at reducing regular and permanent jobs to the disadvantage of the employees;

(b)     calls upon the Unions to identify and oppose each and every step/decision of rationalization and automation which is likely to lead to retrenchment of employees and/or saddles them with additional workload without corresponding or commensurate benefit thereof.

This Central Working Committee of the All India Newspaper Employees Federation expects every union to devise its own peaceful and constitutional methods and use all or any peaceful trade union ways and means, in keeping with its strength and given capacity, depending on the local conditions and the willingness of the members to traverse the distance and to implement the Resolution accordingly.  With this the Central Working Committee feels success is assured, may be in stages and at a slower rate.

          In case of difficulties, President of the All India Newspaper Employees Federation will be available for guidance and help.

          Resolution passed unanimously.




                                                          ( S.D. Thakur, Advocate )
                                                                      President       
Resolution No. 1 of 23.10.2016

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Wednesday 19 October 2016

मजीठिया: हिंदुस्‍तान, अमर उजाला, पंजाब केसरी के साथियों इतिहास आपको कभी माफ नहीं करेगा


 मजीठिया की लड़ाई निर्णायक दौर में पहुंच चुकी है, उसके बावजूद अपने जायज हक के लिए आवाज न उठाने के लिए पत्रकारिता के इतिहास में हिंदुस्‍तान, अमर उजाला, पंजाब केसरी जैसे अखबारों में कार्यरत साथियों का नाम काले अक्षरों में लिखा जाएगा। यह बहुत ही शर्म की बात है कि अंदर कार्यरत साथियों को तो छोड़ों, जो रिटायर या नौकरी बदल चुके हैं उन्‍होंने भी अभी तक रिकवरी का क्‍लेम नहीं लगाया है।

सुप्रीम कोर्ट ने तो फरवरी 2014 में ही आपको मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार वेतनमान देने का फैसला दे दिया था। अब तो लड़ाई उस आदेश को पूरी तरह से अमलीजामा पहनाने के लिए लड़ी जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष स्थिति स्‍पष्‍ट होती जा रही है कि कैसे संस्‍थान कर्मचारियों का हक मारे बैठे हैं और उसके बार-बार के आदेश के बावजूद हमारे साथी क्‍लेम लगाने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। राज्‍यों सरकारों के श्रमायुक्‍तों की रिपोर्टें कुछ ऐसा ही कह रही हैं।

ऐसे में वीरों और शहीदों की भू‍मि कहलाने वाले हिमाचल प्रदेश, उत्‍तराखंड और उत्‍तरप्रदेश (अपवाद स्‍वरुप नोएडा जागरण को छोड़कर) से साथियों का अपने हक के लिए आगे न आना शर्म से डूबने वाली बात है।

पहले हम बात करते हैं अमर उजाला के रणबांकुरों की, हिमाचल प्रदेश को छोड़कर कहीं से भी अपने हक को बुलंद करने की आवाज नहीं आ रही है। जिन दो-चार ने केस भी किए उन्‍होंने कंपनी की बातों में आकर छोटे-छोटे स्‍वार्थों के लिए अपने हक का छोड़ दिया। केवल इनमें से एक धर्मशाला से रविंद्र अग्रवाल इस पूरी लड़ाई का अकेला सेनापति और सैनिक बनकर उभरा है। वह पूरे जोश से अपने हक के लिए लड़ रहा है और विभिन्‍न मंचों पर अपनी बात रख रहा है। अन्‍य राज्‍यों से कोई सुगबुगाहट नहीं है।

कैटेगरी के मामले में अमर उजाला ने जैसा कहा सभी कर्मियों ने वैसा ही मान लिया। जबकि अमर उजाला कम से कम बी ग्रेड की कंपनी है (यदि किसी के पास इसके नए टर्नओवर की जानकारी है तो कृपया कर जनहित में जारी करें) और एक्‍ट के अनुसार इसे अपनी कन्‍याकुमारी से लेकर कश्‍मीर तक की सभी यूनिटों में एक जैसे ही ग्रेड के अनुसार वेतन देना पड़ेगा। जबकि यह सभी यूनिटों का ग्रेड अलग-अलग दिखाकर अपने को बचाने की कोशिश में लगी हुई है। खैर इसको भी एक दिन सभी कर्मियों का जायज हक देना ही पड़ेगा। इसके लिए आपको भी आगे आना होगा, विशेषकर रिटायर और नौकरी बदल कर जा चुके कर्मियों को तो कोई दिक्‍कत नहीं होनी चाहिए।

अब बात करते हैं पंजाब केसरी के साथियों की, इनको तो जैसे सांप ही सूंध गया है। इनकी कंपनी हमारी जानकारी के अनुसार कम से कम बी ग्रेड की है और हमारी अब तक की जानकारी के अनुसार इनमें से एक भी साथी ने अपना क्‍लेम नहीं डाला है। कारण क्‍या है ये तो वो ही बेहतर जान सकते हैं, परंतु ये अपनी कायरता से पंजाब और हिमाचल प्रदेश के वीरों को शर्मिंदा कर रहे हैं। हमारी जानकारी यदि सही है तो जालंधर पंजाब केसरी के पूरे ग्रुप का टर्नओवर 700 करोड़ से ऊपर का है। जिसमें उर्दू, पंजाबी, नवोदय टाइम्‍स आदि तक शामिल हैं। ऐसे में इनका एरियर आज की तारीख में 15-20 लाख से कहीं ऊपर बन रहा है और इनका अपने हक के लिए आवाज न उठाना आश्‍चर्यजनक है।

उत्‍तराखंड में यही हाल दैनिक जागरण, हिंदुस्‍तान, अमर उजाला आदि का भी है। यहां के साथी भी क्‍लेम लगाने के लिए आगे आने से कतरा रहे हैं।

यही हाल उत्‍तरप्रदेश में हिंदुस्‍तान, अमर उजाला आदि के साथियों का है। शायद वे मानकर चल रहे हैं कि जो सबके साथ होगा वह हमारे साथ भी होगा।
ऐसे में किसी के भी आगे न आने की वजह से उत्‍तराखंड के श्रमायुक्‍त ने 04 अक्‍टूबर 2016 की सुनवाई से पहले सुप्रीम कोर्ट में जमा अपनी रिपोर्ट में अमर उजाला और हिंदुस्‍तान में मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशें पूरी तरह से लागू होने की बात कही है। उत्‍तराखंड ने अपनी रिपोर्ट में केवल हिंदुस्‍तान, दैनिक जागरण, अमर उजाला, उत्‍तर उजाला और राष्‍ट्रीय सहारा का ही जिक्र है। शायद उनके अनुसार राज्‍य में अन्‍य कोई अखबार नहीं है जो मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के अंतर्गत आता हो, जबकि सालाना एक करोड़ से ऊपर के टर्नओवर वाले सभी अखबार, पञिकाएं और न्‍यूज एजेंसियां वेजबोर्ड में आती हैं।

वहीं, सुप्रीम कोर्ट की आफिस रिपोर्ट में उत्‍तर प्रदेश में हिंदुस्‍तान के लखनऊ, मेरठ, मुरादाबाद, अलीगढ़, बरेली, नोएडा, वाराणसी, इलाहाबाद और कानपुर में मजीठिया वेजबोर्ड को लागू माना गया है। वहीं, इंडियन एक्‍सप्रेस का मामला कुछ और ही इशारा कर रहा है, रिपोर्ट के अनुसार मजीठिया वेजबोर्ड संस्‍थान की लखनऊ यूनिट में तो लागू है, परंतु इसकी नोएडा यूनिट में यह पूरी तरह से लागू नहीं है।
ऐसा कैसे संभव हो सकता है, जबकि सच यह है कि इंडियन एक्‍सप्रेस ने भी अपने यहां मजीठिया की सिफारिशें पूरी तरह से लागू नहीं की हैं।

रिपोर्ट में अमर उजाला की लखनऊ, मेरठ, मुरादाबाद, गोरखपुर, अलीगढ़, बरेली, आगरा, नोएडा, वाराणसी, इलाहाबाद और कानपुर में इसको पूरी तरह लागू नहीं बताया गया है।

रिपोर्ट में शाह टाइम्‍स की मुजफ्फरनगर यूनिट के आगे Yes लिखा हुआ है। क्‍या आपको लगता है शाह टाइम्‍स ने अपने कर्मियों को मजीठिया दे दिया होगा।

इस मामले में मध्‍यप्रदेश में कुछ स्थिति ठीक है यहां कर्मियों का संघर्ष रंग लाता हुआ नजर आ रहा है। इसका ही नतीजा है कि यहां रिकवरियां भी क‍टी हैं और कई अखबारों पर जुर्माना भी लगा है। मध्‍यप्रदेश की तीसरी स्थिति रिपोर्ट जो सुप्रीम कोर्ट में जमा हुई है उसके अनुसार केवल इंदौर में फ्री प्रेस और हिंदुस्‍तान टाइम्‍स ने लागू होने की रिपोर्ट (31-07-2015) सौंपी है, जिसकी लेबर विभाग द्वारा जांच की जा रही है। हिंदुस्‍तान टाइम्‍स पर 250 रुपये जुर्माना भी लगाया गया है। रिपोर्ट में पूरे प्रदेश की बाकी अन्‍य अखबारों के आगे नहीं लिखा हुआ है।
रिपोर्ट के अनुसार ग्‍वालियर में जागरण की यूनिट नई दुनिया, दैनिक आचरण व दैनिक स्‍वदेश पर 200-200 रुपये, जबलपुर में जबलपुर एक्‍सप्रेस दैनिक समाचार पत्र, दैनिक दबंग दुनिया, दैनिक जनप्रकाश समाचार, नव भारत प्रेस भोपाल, राज एक्‍सप्रेस, नई दुनिया, प्रदेश टूडे व दैनिक यंग ब्‍लड पर 200-200 रुपये, अरली मोर्निंग पर 500 रुपये और हितकरनी प्रकाशन प्रा लि‍मिटेड पर 600 रुपये का जुर्माना लगाया गया है।

रिपोर्ट में 16 रिकवरी काटने का भी जिक्र है, जिनमें से सबसे ज्‍यादा भोपाल उप श्रमायुक्‍त द्वारा 19-09-2016 में काटी गईं हैं-

भोपाल में कटी रिकवरियां
समाचार पत्र - कर्मचारी का नाम - रिकवरी की राशि
राजस्‍थान पत्रिका, भोपाल - कौशल किशोर - 9,06,108
नई दुनिया, इंदौर - लोमेश कुमार गौड़ - 21,75,895
दैनिक भास्‍कर, भोपाल - विकास - 9,60,671
दैनिक भास्‍कर, भोपाल - जीवन सिंह - 8,23,728
दैनिक भास्‍कर, भोपाल -  धीरेंद्र प्रताप सिंह - 11,36,161
दैनिक भास्‍कर, भोपाल - प्रकाश सिंह - 8,70,928
दैनिक भास्‍कर, भोपाल - बलराम सिंह राजपूत - 7,86,068
दैनिक भास्‍कर, भोपाल - मुरारीलाल - 7,93,285
दैनिक भास्‍कर, भोपाल - के सिंह राजपूत - 7,35,528
दैनिक भास्‍कर, भोपाल - ब्रजेश शाहू - 9,40,901
दैनिक भास्‍कर, भोपाल - जयराम - 9,02,392
दैनिक भास्‍कर, भोपाल - देव नारायण - 8,33,728
दैनिक भास्‍कर, भोपाल - योगेश सिंह - 7,77,056
दैनिक भास्‍कर, भोपाल - भावगत सिंह तोमर - 8,76,560
दैनिक भास्‍कर, भोपाल - मदन सिंह - 8,64,687
वहीं ग्‍वालियर में 31-08-2016 को एक रिकवरी कटी है।
राजस्‍थान पत्रिका, ग्‍व‍ालियर - मदन सिंह - 21,46,945
रिपोर्ट में इंदौर के दैनिक भास्‍कर के संजय कुमार चौहान का जबरन इस्‍तीफे का केस है, जिसे लेबर कोर्ट में रेफर कर दिया गया है।

दिल्‍ली द्वारा पिछली बार भी एक नई रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा करवाई गई है, जिसके अनुसार सेंट्रल दिल्ली में M/s Bennet Coleman and company ltd. के 60, अमृत इंडिया प्रकाश लि‍मिटेड, जागरण प्रकाशन, लोक माया डेली व द पोलिटिक्‍ल एंड बिजनेस डेली के एक-एक और दैनिक भास्‍कर के 11 कर्मचारियों का जिक्र है।

वहीं, नई‍ दिल्‍ली उप श्रम कार्यालय की रिपोर्ट में जागरण के 200 कर्मचारियों के आगे हाई कोर्ट के 6 जून 2016 के स्‍टे का जिक्र किया गया है और सुनवाई की अगली तिथि 7-10-2016 लिखा है।

उसके नीचे ही धनंजय कुमार, अभिषेक रावत नई दुनिया (जागरण प्रकाशन) एवं दलीप, ज्‍योति धमीजा व रामजीवन गुप्‍ता दैनिक जागरण के कर्मियों के आगे As the matter of Dainik Jagran v/s Vikas Chowdhary & Anr. Is sub-judice, no further proceeding has been done. लिखा हुआ है और सुनवाई की अगली तिथि का कोई जिक्र नहीं किया गया है।

उसके ठीक नीचे ही दैनिक जागरण के ही कुमार संजय, अनंतानंद, पूजा झा, भरत कुमार, अजीत सिंह, विजय कुमार व रामनाथ राजेश के आगे भी As the matter of Dainik Jagran v/s Vikas Chowdhary & Anr. Is sub-judice, no further proceeding has been done. लिखा हुआ है, परंतु उनके आगे सुनवाई की तिथि 7-10-2016 लिखी हुई है।
इसमें ही नए केस के रुप में सत्‍यम शिवम का नाम दिखा गया है। जिन्‍होंने केस 19-09-2016 को फाइल किया है।

वहीं, हिंदुस्‍तान के कर्मचारियों विक्रम दत्‍त व पुरुषोत्‍तम के आगे हाई कोर्ट के स्‍टे का जिक्र किया गया है। नरेंद्र के आगे लिखा है कि इन्‍होंने पहले समझौता कर लिया था, परंतु अब इन्‍होंने फिर से फाइल खुलवाई है।
हिंदुस्‍तान के शिव मोहन, राजेश कुमार और प्रेम चंद के आगे समझौते का जिक्र किया गया है। इनके बारे में ऐसी सूचना मिली है कि इन्‍होंने भी अपना केस फिर से खुलवाने की अर्जी दी है। इनका यह एक सही निर्णय है और ऐसे साथियों के लिए सीख है जो कंपनी द्वारा दिए गए ब्रांडों व कागजों पर हस्‍ताक्षर करके चुपचाप बैठे गए हैं। साथियों आपको यह समझना होगा कि कोई भी समझौता आपके मजीठिया पाने के रास्‍ते में रोड़ा नहीं बन सकता। इन साथियों को भी मजीठिया के अनुसार पूरा एरियर नहीं मिला है। जैसे ही इन्‍हें कंपनी द्वारा अपने को गुमराह किए जाने का पता चला इन्‍होंने केस फि‍र से खुलवाने की अर्जी दे दी। साथियों यदि आपने कोई समझौता कर लिया है तो चुप न बैठे अपने हक के लिए 17(1) के तहत रिकवरी उपश्रमायुक्‍त कार्यालय में डाले। उन्‍हें आपका पक्ष सुनना ही पड़ेगा और एक्‍ट के अनुसार कार्यवाही करनी पड़ेगी और आपको न्‍याय मिलेगा ही।

यहां उड़ीसा के एक अखबार कर्मी ने भी केस किया हुआ है जिसका नाम है शिशुपाल खरे, जिसकी कंपनी का नाम है प्रगतिवादी। इसका ब्‍यूरो कार्यालय दिल्‍ली में स्थित है। हमारा उन साथियों से विशेष अनुरोध है कि जिनके अखबारों के ब्‍यूरो कार्यालय दिल्‍ली में हैं, जबकि मुख्‍य कार्यालय अन्‍य राज्‍यों में, वे बिना हिचक के अपने क्‍लेम दिल्‍ली में लगाए उन्‍हें जरुर मजीठिया का हक मिलेगा। शिशुपाल खरे के बारे में हमें जो जानकारी मिली है उसके अनुसार वह लंबे समय से अपने संस्‍थान में ठेका कर्मी के रुप में कार्यरत था। अब उसने नई दिल्ली के उप श्रमायुक्‍त के यहां मजीठिया के अनुसार एरियर (लगभग 16 लाख रुपये) का क्‍लेम भी लगाया है और लंबे समय तक ठेके पर रहने को चुनौती देते हुए मजीठिया से पहले के अपने न्‍यूनतम वेतनमान के जायज हक की मांग के लिए अलग केस लड़ रहा है।


साथियों हमारा आपसे फिर से अनुरोध है कि दूसरों के कंधों पर अपनी हक की लड़ाई न छोड़े और आगे आएं। अमर उजाला, दैनिक जागरण, हिंदुस्‍तान और अन्‍य अखबारों के कर्मी कैटेगरी के मुद्दे को वकीलों पर छोड़ क्‍लेम लगाएं, क्‍योंकि एक्‍ट से ऊपर वेजबोर्ड की सिफारिशें नहीं हो सकती है।

साथियों आपको क्‍लेम लगाने में यदि किसी मदद की जरुरत है तो आप बेहिचक इनसे संपर्क कर सकते हैं-
महाराष्‍ट्र में
शशिकांत सिंह - 09322411335
shashikantsingh2@gmail.com
दिल्‍ली में
महेश कुमार - 09873029029
mkumar1973@gmail.com
kmahesh0006@gmail.com
हिमाचल में
रविंद्र अग्रवाल
9816103265
ravi76agg@gmail.com)
उत्‍तर प्रदेश में
बिजय - 09891079085
bijayindian@gmail.com
राजस्‍थान में
राकेश वर्मा
9829266063


(अंत में साथियों इस लेख से यदि किसी की भावनाएं आहत हुईं हो तो हम तहेदिल से उससे माफी मांगते हैं, परंतु आज की परिस्थिति में हम जनहित को ध्‍यान में रखते इस लेख को जारी करने से रोक नहीं सके। हमारा मकसद केवल और केवल मजीठिया की लड़ाई को आपके साथ मिलकर उसके अंतिम अंजाम तक पहुंचना है।)  





http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/01/16f-20.html




यदि हमसे कहीं तथ्यों या गणना में गलती रह गई हो तो सूचित अवश्य करें।(patrakarkiawaaz@gmail.com)


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Monday 10 October 2016

लोकमत प्रबंधन को पटकनी देने वाले महेश साकुरे की ये संघर्ष की कहानी मजीठिया क्रांतिकारियों में जोश भर देगी



जानिये कैसे 17 साल की लड़ाई के बाद सुप्रीमकोर्ट में महेश ने दी लोकमत प्रबंधन को पटकनी, हर मीडियाकर्मी इसे जरूर पढ़े

लोकमत प्रबंधन को लेबर कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट और फिर सुप्रीमकोर्ट तक में पटकनी देने वाले वीर मराठा महेश साकुरे की कहानी उन सभी साथियों को प्रेरित करती है जो मजीठिया वेज के अनुसार वेतन, एरियर और प्रमोशन की मांग को लेकर सुप्रीमकोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं। 4 अक्टूबर 2016 के सुप्रीमकोर्ट के ऑर्डर के बाद कई मीडियाकर्मी निराश हुए। मेरा दावा है महेश की कहानी आप एक बार पढ़िए। निश्चित रूप से आप में जोश आएगा और महेश के जज्बे को भी आप सलाम करेंगे। अपनी संघर्ष की कथा मेरे निवेदन पर लिखने को तैयार हुए महेश साकुरे।
शशिकान्‍त सिंह
पत्रकार और आर टी आई एक्टिविस्ट
9322411335

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मै महेश मनोहरराव साकुरे भंडारा (महाराष्ट्र) निवासी हूं। मैं कॉलेज जाते-जाते एक दिन यूँ ही भंडारा स्थित लोकमत जिला कार्यालय पहुंचा, जहां मेरे कुछ दोस्त कार्यरत थे। तब उन्होंने कहा की काम करते हो तो यहां काम है। मैं तो खालीपिली था। मैने हां कही। तब वहां जो कर्मचारी थे वो सारे के सारे बाउचर पर काम कर रहे थे। तब क्या खर्चा पानी से मतलब था। 1 अक्टूबर 1996 से मैं टेलीप्रिंटर ऑपरेटर बतौर काम करने लगा। तब मुझे 300 रुपये मिलते थे। काम के साथ मेरा कॉलेज भी चल रहा था। कुछ महीने बीत गए। बाद में मुझे 500 रु. देने लगे। उस दौरान भंडारा कार्यालय में सितंबर 1997 को कंप्‍यटर आया। (तब तक टेलिप्रिंटर से न्यूज नागपुर भेजी जाती थी) मुझे कंप्‍यूटर की कोई जानकारी नहीं थी। इसीलिए मुझे पांच दिन नागपुर कार्यालय में ट्रेनिंग के लिए बुलाया था। उसके बाद मुझे 1000 रु. मिलने लगे। फिर उन्होंने मानव सेवा ट्रस्ट की ओर से लेटर दिया। ज्यादा जानकारी नहीं होने के कारण मैंने वह लेटर लिया। वहां लिखा था की आप इसके तहत 2 साल के कॉन्ट्रॅक्ट में काम करोगे। वहां 1,500 रु. लिए थे। मैंने स्वीकार किया क्योंकि जेबखर्चे के लिए मुझे पैसों की जरुरत थी। तब मां के गुजर जाने से मन भी अकेला था और जेब भी खाली।

कुछ दिन यूँही काम चलता रहा। काम बढ़ने लगे थे। तब पैसों की कमी खल रही थी। उस दरम्यान मैंने हमारे भंडारा लोकमत कार्यालय के जिला कार्यालय प्रमुख प्रा.एच.एच. पारधी जोकि जे.एम. पटेल कॉलेज में बतौर अध्यापक के रुप में काम कर रहे थे वे लोकमत तथा लोकमत समाचार के जिला प्रतिनिधि थे। प्रा.पारधी के पास मैंने वेतन बढ़ाने के लिए कई अर्जीयां दी। (जब से लगा तब से 300/500/1000/1500 रुपये मिलते थे बाउचर पर) तब तक तब उन्होंने नागपुर बात कर मेरा मानव सेवा ट्रस्ट का कॉन्ट्रॅक्ट खत्म कराया और लोकमत प्राइवेट लिमि. का ऑर्डर लाया।

1 जुलाई 2000 से 30 जून 2001 तक एक साल का कॉन्ट्रॅक्ट मिला। वहां मोडेम ऑपरेटर लिखा था और पेमेंट 2000 रु. मैं भंडारा कार्यालय में काम कर रहा था। काम बढ़ते गए पर पेमेंट 2 हजार ही मिल रहा था। जैसे जैसे साल खत्म आ रहा था तब डर सता रहा था कि एक साल खत्म होने के बाद निकाल देंगे। तब मैंने और अर्जियां दी। नागपुर आफिस के बड़े ओहदे वाले लोग कह रहे थे कि करना हो तो करो वर्ना नोकरी छोड़ दो पगार बढ़ने वाला नहीं। बार-बार यहीं सुनने को मिल रहा था। इतने दिन काम करने पर ये लोग काम छोड़ने को कह रहे थे तो बुरा लगा।

तब मैं नागपुर के लोकमत की युनियन की संपर्क में आया। उन्होंने मुझे मेरे पास जो डाक्यूमेंट है वो लेकर युनियन कार्यालय में पहुंचने को कहां। मैं एक दिन नागपुर गया और सब कुछ हकीकत बयान किया। फिर यूनियन के लोग मुझे एडवोकेट एस.डी. ठाकुरजी के पास ले गए। जोकि  हमारे यूनियन के तरफ से लड़ रहे थे। उन्होंने सारी बात सुन कर डाक्यूमेंट देखकर केस करने को कहा। तब मेरा एक साल का कॉन्ट्रॅक्ट खत्म होने में आखिरी महीना बचा था।

मैंने रेग्युलर एन्ड परमन्सी के लिए 6.6.2001 को इंडस्ट्रीयल कोर्ट नागपुर में यूएलपीए 375/2001 केस फाईल की। पहले जो नागपुर वाले लोग मेरे पेमेंट के बारे में बात करने को कतराते थे, झटक देते थे वो लोग फिर समझाने आ गए कि पेमेंट बढ़ा देंगे, ऐसा क्यों करते हो तब मन में बहुत गुस्सा था, तो मैंने उनकी बात नकार दी। तभी 23.6.2001 को मुझे दोपहर को एक लेटर मिला। उसमें लिखा था की आपकी सेवा 30 जून 2001 तक ही है। फिर क्या, बछावत/मनिसेणा आयोग की हिसाब से पेमेंट नहीं देना पड़े, इसीलिए उन्होंने मुझे निकाल दिया और 30 जून 2001 को मेरा कार्यालय का आखिरी दिन साबित हुआ।

मैंने न्यायालय में स्टे के लिए 375/2001 अर्जी लगाई। 8 अगस्त 2001 को नागपुर के इंडस्ट्रीयल कोर्ट से मुझे इंटेरिम रिलीफ मिला। फिर भी कंपनी वालों ने एक साल तक मुझे काम पर नहीं लिया। इसके बाद लोकमत कंपनी ने 8.8.2001 के इंडस्ट्रीयल कोर्ट के विरोध में हाई कोर्ट में रिटपिटीशन 3163/2001 दायर की। वहां मा.जज मोहिते ने कंपनी की अर्जी खारिज की। फिर मैंने लेबर कोर्ट में 15.10.2001 को क्रिमिनल केस नं. 151/2001 दायर की। फिर कोर्ट ने विजय दर्डा के नाम कोर्ट में हाजिर रहने के लिए 18.2.2002 को समन निकाला और मैंने 15.2.2002 को नागपुर कार्यालय में हमदस्त दिया।

उसके बाद मुझे एक दिन फोन आया की आपको कंपनी में 25.3.2002 को सुबह 11 बजे बुलाया है। मैं उस दिन सुबह 11 बजे गया। वहां मैं पर्सनल अधिकारी खापर्डे को मिला। उन्होंने मुझे कहां की आपको हम आज से प्रोबेशनपर अकोला (महाराष्ट्र) यहां नौकरी के लिए भेज रहे है। आप पिछला सब कुछ भू्ल कर अच्छे से नौकरी करो। आपको 2000 रु. मिलेंगे। मैंने उनकी बात को नकार दिया।

कंपनी ने 27.3.2002 को लेटर भेजा की आपने यूएलपी 375/2001 जो इंडस्ट्रीयल में दाखिल किया वह 8 अगस्त 2001 को पास हुआ। आपको 1 अप्रैल 2002 से धुले (महाराष्ट्र) जाने का आदेश दिया जा रहा है।

ट्रान्सफर के लिए कंपनी ने कोर्ट से परमीशन मांगी थी वो कोर्ट ने खारिज की और मुझे भंडारा में काम पर लेने का आदेश दिया ।

तब कंपनी ने मुझे 3 सितंबर 2002 के लेटर के तहत भंडारा में इंटरिम एंड टेंपररी अरेंजमेंट के तहत काम करने को कहां। बतौर ऑपरेटर की पोस्ट पर और मैं 7 सितंबर 2002 से फिर से भंडारा कार्यालय में काम करने लगा। 2000 रुपये प्रतिमाह और मेरा पीएफ अकाउंट में 240 रु. जमा होते थे। यानि कुल 1760 रु. महिना मिलता था। इस बीच जब से कंपनी ने मुझे खाली किया था तब से 16.12.2002 को 26,492 रु. का चेक दिया। मैंने मनिसेणा, बछावत आयोग की हिसाब से पेमेंट देने के लिए केस डाली यह पैसे कम है कहकर अंडर प्रोटेस्ट ले लिए और उसका लेटर भी कंपनी को दिया।

मेरे परिवार में हम तीन भाई और पिताजी थे। बड़े भाई की शादी हुई थी और उनको एक बच्चा था। परिवार सब साथ में ही रहता था। तब मेरी शादी 5 मई 2003 को हुई और अब मुझे एक बेटा और एक बेटी है। परिवार बढ़ता गया और जिम्मेदारी भी, पर पेमेंट 2000 रु. केस धीरे धीरे चल रहा था।

फिर इंडस्ट्रीयल कोर्ट और लेबर कोर्ट नागपुर से भंडारा शिफ्ट हो गया और मेरी केस भंडारा आ गई ।

(टेलिप्रिंटर ऑपरेटर का काम निरंतर 1.10.1996 से 31.5.1997 करने से 240 दिन पूरे होते ही मैं इस तारीख से रेग्युलर एंड परमानेंट  टेलिप्रिंटर ऑपरेटर हुआ। हमारे कंपनी को इंडस्ट्रीयल एम्प्लायमेंट स्‍टैंडिंग ऑर्डर के तहत मॉडल स्‍टैंडिंग ऑर्डर लगते है। इसलिए परमानेंट टेलिप्रिंटर ऑपरेटर के सभी फायदे मिलने का मुझे पूरा हक है।

1.1.1998 से अखबार इंडस्ट्रीज को बछावत आयोग लागू है। इसके तहत टेलिप्रिंटर ऑपरेटर  एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ के 4 ग्रेड में आता हैं।

बाद में १.४.१९९८ से कम्प्युटर से काम होने की वजह से मै जो काम करता हूं वह प्लानर की पोस्ट का है. इसीलिए मनिसाना अवार्ड के हिसाब से पेमेंट की मांग की ।प्लानर जर्नालिस्ट श्रेणी में ग्रेड ३ - ए में आता है. वर्कींग जर्नालिस्ट एक्ट के तहत जर्नालिस्ट श्रेणी में काम का समय सप्ताह में ३६ घंटे है पर मुझे हर सप्ताह ४८ घंटे से उपर काम करवा लेते थे. इसका डबल रेट से ओवरटाईम भी मांगा क्योकि फॅक्टरी एक्ट  भी लागू है.)

यु.एफ.पी. क्र. ८५/२००१ यह मामला औद्योगिक न्यायालय भंडारा (महाराष्ट्र) में था और वह १८.१०.२०११ को (इंडस्ट्रीयल कोर्ट के जज श्री वीं.पी. कारेकर) थे ।मै जिस अखबार में काम करता हूं उसको वर्कींग जर्नालिस्ट अँड अदर न्यूज पेपर एम्प्लॉई कन्डीशन आॅफ सर्विस एन्ड  अदर मिसलेनिअस प्रोविजन एक्ट १९५५ के  प्रावधान लागू है।इस के तहत शासन ने वेज बोर्ड के तहत बछावत, मणिसाना और मजिठिया लागू किया  है. इसका फायदा मिलना मेरा हक है।

मुझे ३१.५.१९९७ से परमनंट टेलिप्रिंटर

१.४.१९९८ से रेग्यलर एन्ड परमनंट प्लानर

१.४.१९९८ से हर सप्ताह १२ घंटे जादा काम का ओवरटाईम डबल रेट से यह आदेश दिया.

इस आदेश को कंपनी ने हाई कोर्ट में रिट याचिका क्र. ६१०७/२०११ को चॅलेंज किया. इस याचिका को सिंगल बेंच के मा.वासंती नाईक ने दि. ९.२.२०१२ खारीज किया और मुझे १० लाख रुपये कंपनी को हाय कोर्ट में जमा करने के आदेश दिए और फरवरी २०१२ से दस हजार रुपये प्रतीमाह देने का आदेश दिया रिट याचिका प्रलंबित रहने तक।

सिंगल बेंच का ९.२.२०१२ के आदेश को कंपनी ने डिविजन बेंच एलपीए क्र. १६२/२०१२ दायर किया. मा. डिविजन बेंच के मा.एस.सी. धर्माधिकारी और मा.एम.टी. जोशी सर ने दि. ६ जुलाई २०१२ को दि. ९.२.२०१२ का आदेश बराबर है कहकर खारीज किया।

इसके बाद कंपनी ने दि. ६ जुलाई २०१२ का हायकोर्ट के आदेश को मा. सुप्रिम कोर्ट में २४४७१/२०१२ को चैलेन्ज किया. वहां मा.न्यायमूर्ती टी.एस. ठाकुर और मा.न्यायमूर्ती फकीर महोम्मद इब्राहीम खलीफुल्ला सर ने ७.९.२०१२ को कंपनी को आदेश दिया की हायकोर्ट में जो १० लाख भरे वहां से अभी ५ लाख रु. तथा १०,००० रु. प्रती माह देने का आदेश दिया और सीविएल अपील क्र. ७६५४/२०१४  को आदेश पास कर मा. हायकोर्ट को रिट याचिका क्र. ६१०७/२०११ को छह महिने में परिणाम निकालने के निर्देश दिए।

मा. सर्वोच्च न्यायालय का आदेश होने के बाद भी कंपनी ने जान बुझकर फरवरी २०१२ से १०,००० रु. महिना न देते हुए अगस्त २०१२ तक २००० रु. ही दिए. उसके ५६,००० रु. वो बाकी थे.

इस के तहत मा. उच्च न्यायालय के मा.जज जेड ए. हक सर ने २५.६.२०१५ को दोनो पक्षो को  सुनकर २४.७.२०१५ को आदेश जारी किया कि  १०,००० रु. कॉस्ट लगाकर मामले को खारीज किया  और कहा  मा.औद्योगिक न्यायालय भंडारा का आदेश बराबर है इस पर मुहर लगा दी और मा.उच्च न्यायालय में जो रकम है उसको निकालने की अनुमती दी।

फिर कंपनी ने २४.७.२०१५ के मा.उच्च न्यायालय के सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ मा.सुप्रिम कोर्ट में एलएफपी क्र. २८७५५/२०१५ दायर की. यह याचिका मा.न्यायमूर्ती फकीर महोम्मद इब्राहीम खलीफुल्ला सर और मा. जस्टीस उदय उमेश ललीत सर ने नोटीस न निकालते हुए १२.१०.२०१५ को खारीज की ।इस बीच नया वेज बोर्ड जो मजीठीया अवार्ड है वह मुझे ११.११.२०११ से लागू है. उसके तहत मुझे भी यह अवार्ड के फायदे और वेतन दि.११.११.२०११ से लागू है. यह आदेश दिया.

फिर कंपनी ने मुझे ६.१.२०१६ को ७,७४,९३६.४९ और १०,००० रु. कॉस्ट इतनी रकम दी. मैने यह रकम अंडर प्रोटेस्ट स्वीकार ली।

इसके तहत मजिठिया और ओवर टाईम मिलाकर मैने कुल ७० लाख रुपये का क्लेम बनाया. कंपनी ने अब तक जो वेतन दिया वह २० लाख मायनस कर ५० लाख रु. मांगे और मजीठिया अनुसार वेतन ७०००० और डबल ओवरटाईम पकडकर कुल ९५,००० महिना होता था. नवंबर २०१५ तक यह हिसाब कोर्ट में जोडा है.  परंतु कंपनी  मुझे सिर्फ ४० हजार रु. महिना दे रही है और ८ घंटे काम और ६.६६.९२७.०० इन्कम टॅक्स काटा है। कौन से साल कितना इन्कम टॅक्स काटा यह कहांबार बार मैने कंपनी को लेटर लिखकर लेकिन कोई फायदा नही हो रहा है।

पीएफ अकाऊंट में भी २००१ से ही जॉइनिंग डेट दिखा रही है और वही से कंपनी ने रकम डाली है. साल का इन्क्रीमेंट भी नही दे रहे न बेसीक में बढोतरी.  इसके बारे में भी कंपनी को लेटर लिखा है. परंतु कोई जवाब नही दे रही.

और फिर कामगार न्यायालय में आयडीए क्र. ५८/२०१५ दायर की. जिसमें मजीठिया के तहत वेतन, बकाया करीब ५० लाख रुपये और उनपर ब्याज, पीएफ अकाऊंट जबसे कंपनी जॉईन की उसकी एन्ट्री और फायदे तथा ६ घंटे के लिए  बोला है.


 ठाकुर सर ने कहां है की लोकमत को पानी पिलाकर ही रहेंगे. बस उनपर पुरा भरोसा है. अब तक उन्होंने ही मुझे संभाला है. जब केस डालनी थी तब घर वालों ने मुझे कहां था आप जो करना उचित समझो वह करो. हम आपका पुरा साथ देंगे.

सुप्रिम कोर्ट के आदेश के बाद पर्सनल मैनेजर घोडवैद्य और उनके साथी अली मेरे घर भंडारा मिलने आए थे और उन्होंने कहां की कब तक लडते रहोगे. तुम्हारे ठाकुर साब अब कितने दिन जिएंगे, बुढे हो गए है वो. मैने तब कहां कि आपकी की क्या गारंटी है कि आप ज्यादा जियोगे. उन्होंने बहुत समझाया कि  केस फायनल करो और ३० हजार रु. पेमेंट लो और पिछला २० लाख भी देते हैं । फिर मैने कहां कि  अब तक जो परेशानी हुई है उसका हिसाब? तो कह रहे थे कि  माँ बाप से कोई लड़ता है क्या? मैने कहां की कौनसे माँ बाप इतनी घटीया हरकत करते हैं।

केस चलते बहुत  बार मन हुआ की कुछ कर लेते है. पर मेरी वाईफ ने कहां कि  जितना सोचोगे उतना लक्ष्य दूर जाएगा. पैसो के बारे में मत सोचो पैसा अपने आप पास आएगा और सोचेगो तो दूर जाएगा.

बस उसी की बात को आज तक दिमाग में लिए जी रहे है. पर कुछ भी हो जाए समझौता कंपनी से नहीं करेंगे. बस हमारे युनीयन के साथी जो बाहर है वो अंदर आ जाए. ठाकुर सर, युनीयन के साथी और आप जैसे वरिष्ठ साथीयों का स्नेह है और भगवान का आशीर्वाद, बस और क्या चाहिए. जो है उनसे निपट लेंगे, आखरी दम तक.

महेश मनोहरराव साकुरे
सहकार नगर, रविंद्रनाथ टागौर वॉर्ड
सहकार नगर, भंडारा.




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