Wednesday 28 December 2022

मजीठिया केस में जवाब देने से भाग रहा अमर उजाला, मिला आखिरी मौका



- यशवंत सिंह

अयोध्या में अमर उजाला के ब्यूरो चीफ/चीफ सब एडिटर धीरेंद्र सिंह की ओर से दायर मजीठिया वेजबोर्ड केस में अमर उजाला प्रबंधन को अपना जवाब देते नहीं बन रहा है। पिछले 6 महीने से कभी क्षेत्राधिकार तो कभी जवाब दाखिल करने के लिए बार-बार समय की मांग से आजिज आकर श्रम न्यायालय ने 11 जनवरी को आखिरी मौका दिया है, अब जवाब दाखिल नहीं हुआ तो वादी को तारीखी खर्च देने के साथ 36 लाख रुपए बकाये की आरआरसी की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।

आमतौर पर नौकरी करते वक्त बगैर किसी विवाद के कोई भी पत्रकार अपने संस्थान से वेजबोर्ड मांगने की हिम्मत नहीं जुटा पाता, लेकिन धीरेंद्र सिंह ने दैनिक हिंदुस्तान में 11 साल के कार्यकाल में सोनभद्र, मऊ और बलिया का ब्यूरो चीफ रहने के दौरान भी वेजबोर्ड के रिकमेंडेशन की मांग की थी जिसे प्रबंधन को स्वीकार करना पड़ा और भुगतान भी करना पड़ा।

2013 में अमर उजाला ज्वाइन करने पर मजीठिया वेजबोर्ड देने का पत्र जारी करने के बाद भी प्रबंधन भुगतान नहीं कर रहा था। अलबत्ता बीते डेढ़ साल से अमर उजाला के स्टाफ को रिजाइन करा कर संवाद न्यूज एजेंसी में आधे वेतन पर ज्वाइन करने के लिए सभी यूनिटों में अभियान चल रहा था। इसके लिए दूरदराज के इलाकों में ट्रांसफर का आदेश जारी किया जा रहा था, फिर मजबूर कर्मचारियों से समझौता करके उन्हें संवाद में ज्वाइन कराया जा रहा था।

अयोध्या के ब्यूरो चीफ धीरेंद्र सिंह का ट्रांसफर भी इसी उद्देश्य से जनवरी 2022 में शिमला ब्यूरो में किया गया लेकिन प्रबंधन की चाल को समझते हुए धीरेंद्र सिंह ने उप श्रम आयुक्त से स्थानांतरण के खिलाफ स्टे आदेश ले लिया। बाद में प्रबंधन ने मजीठिया वेजबोर्ड देने का आश्वासन देते हुए श्रम आयुक्त कार्यालय में समझौता किया। इसके बाद भी मार्च माह में स्थानांतरण आदेश को बदलते हुए आगरा यूनिट में कर दिया लेकिन वहां जाने पर भी मजीठिया वेजबोर्ड देने की जगह दिखाया गया कि आगरा के आसपास के सभी जिलों के ब्यूरो चीफ स्टाफर को संवाद में नहीं शामिल होने पर हटा दिया गया है। दूसरे को संवाद एजेंसी से ब्यूरो प्रभारी बनाया गया है।

सच्चाई का दम भरने वाले और कर्मचारियों के हित की बात करने वाले अमर उजाला के मालिकान की ऐसी अनीति और धोखाधड़ी सभी यूनिटों के जिलों में देखते हुए धीरेंद्र सिंह ने प्रबंधन के आगे झुकने के बजाय मजीठिया वेजबोर्ड के तहत करीब 3600000 बकाया को लेकर बीते जून माह में श्रम आयुक्त कार्यालय अयोध्या में मुकदमा दायर किया।

इसके बाद घबराए प्रबंधन ने क्षेत्राधिकार का मुद्दा उठाते हुए लिखित जवाब दिया कि यह केस आगरा में हो सकता है, अयोध्या में नहीं। प्रत्युत्तर में धीरेंद्र सिंह की ओर से अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि क्षेत्राधिकार दिल्ली, लखनऊ आगरा और अयोध्या चारों जगह है, लेकिन धीरेंद्र सिंह ने अपने मजीठिया वेजबोर्ड की मांग अयोध्या के कार्यकाल के दौरान 9 साल 6 माह का बकाया मांगा है इसलिए अयोध्या में ही इसकी सुनवाई हो सकती है।

दरअसल अमर उजाला प्रबंधन ने क्षेत्राधिकार का मुद्दा उठाने के पीछे षड्îंत्र रचा था कि श्रम कार्यालय इसे खारिज करता है तो हाईकोर्ट में मामले को लटका देंगे लेकिन श्रम कार्यालय ने अमर उजाला प्रबंधन से मूल केस का जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए कहा कि क्षेत्राधिकार का मुद्दा वाद के अंतिम निस्तारण में तय करेंगे। इसके बाद अमर उजाला प्रबंधन मेरिट पर जवाब देने से भाग रहा है। पिछली 15 दिसंबर की तारीख पर अमर उजाला ने जवाब नहीं तैयार होने की लिखित माफी मांगते हुए और वक्त मांगा तो श्रम कार्यालय सख्त हो गया और चेतावनी देकर अगली तारीख 11 जनवरी को जवाब देने का आखिरी मौका दिया है। अब यदि अमर उजाला ने जवाब नहीं दिया तो मामले में एकतरफा आदेश पारित हो सकता है।


मजीठिया के दो दर्जन और मुकदमे जल्द दाखिल होंगे

रातोंरात अमर उजाला से हटाकर संवाद न्यूज एजेंसी में ज्वाइन कराए जा रहे स्टाफ की ओर से सिर्फ लखनऊ में दो दर्जन से अधिक मुकदमे मजीठिया वेजबोर्ड के तहत दाखिल होने जा रहे हैं। अमर उजाला की कई यूनिटों से भी अयोध्या केस की कॉपियां मंगाई गई हैं। दरअसल वेजबोर्ड का मुकदमा करने के बाद अमर उजाला न ट्रांसफर कर सकता है न ही निकाल सकता है।


ये सावधानियां बरतनी है-

औद्योगिक विवाद की जगह केवल मजीठिया वेजबोर्ड की 17(1) के तहत मुकदमा दाखिल किए जाए। उद्योग विभाग विवाद का मामला लंबा चलता है और ट्रिब्यूनल में जाने के बाद लटक जाता है। जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से वेजबोर्ड का बकाया का केस जिला स्तरीय एएलसी कार्यालय में दाखिल हो सकता है और वहीं से संक्षिप्त सुनवाई के बाद ही आरआरसी जारी होने का प्रावधान है। इस सच्चाई को जानने वाले पत्रकारों में अब मजीठिया वेजबोर्ड मांगने का क्रेज तेजी से बढ़ रहा है। यह केस करने के बाद प्रबंधन की कोई भी परेशान करने वाली कार्रवाई कोर्ट के निगरानी में आ जाएगी।

[साभारः भड़ास4मीडिया.कॉम]

https://www.bhadas4media.com/jawab-dene-se-bhag-raha-amar-ujala/