Sunday 19 December 2021

प्रिंटिंग रोल में दबकर नईदुनिया जागरण के कर्मचारी की मौत

 


इंदौर। इंदौर में नई दुनिया ए यूनिट ऑफ जागरण प्रकाशन अखबार के प्रिंटिंग प्रेस कार्यालय में शनिवार 18 दिसम्बर की रात हुए हादसे में एक कर्मचारी की मौत हो गई। हादसा उस समय हुआ जब अखबार के प्लांट में एक कागज से भरा हुआ ट्रक खाली होने पहुंचा था। ट्रक में भरे पेपर रोल को उतरवाने में नई दुनिया के कर्मचारी साबिर अहमद की ड्यूटी लगी हुई थी। 

राऊ पुलिस के मुताबिक इंदौर के आजाद नगर के रहने वाले साबिर अहमद रोल खाली करवाने में मदद कर रहे थे। इसी दौरान पेपर के रोल उन पर गिर पड़े। हादसे में साबिर ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। 

इस हादसे को लेकर नई दुनिया प्रबंधन ने खबर तक नहीं प्रकाशित की, जबकि देश के प्रमुख अखबार दैनिक भास्कर और अन्य अखबारों ने इस खबर को प्रकाशित किया है। कर्मचारियों ने हादसे को लेकर शोक जताया है। वहीं कर्मचारियों का कहना है कि नईदुनिया अखबार में हादसे की खबर न छापना कुछ छुपाने की मानसिकता को दिखाता है। ऐसा लगता है कि नईदुनिया जागरण प्रबंधन पूरे मामले को रफा-दफा करके दबाना चाहता है।

Saturday 4 December 2021

दैनिक जागरण की नाक कट ही गयी!


हमने पहले भी कहा था कि जागरण की नाक ग्वालियर में भी कट सकती है। अब ग्वालियर से बहुत बढ़िया खबर आ गयी है। आर्डर के मुताबिक जो मुख्य बात है, वह यह कि जागरण प्रकाशन लिमिटेड को 31 दिसंबर 21 तक पूरी राशि को ब्याज सहित या तो कर्मचारियों में बांटना है या फिर किसी राष्ट्रीय बैंक में फिक्स्ड डिपॉजिट के रुप में जमा कराना है। माननीय हाइकोर्ट तभी जागरण के केस को सुनेंगे। 

दूसरी ओर ग्वालियर हाइकोर्ट में एक अन्य केस में पहले से यह आदेश आया हुआ है कि जागरण 31 तक राशि वर्करों में बांट कर क्लोजर रिपोर्ट के साथ उनके समक्ष जनवरी में पेश हो। 

कुल मिलाकर बात यह हुई कि जागरण को कोर्ट ने अपने आदेश के जरिये यह बता दिया है कि कानून का उलंघन करना ठीक नहीं। कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं होगा कि जागरण को जागरण के खास लुटेरों ने ही लूटा है और यह अच्छी बात है। क्योंकि इस संजय को अपने और सच्चे लोगों को देखने के लिए दृष्टि नहीं है। कोई बात नहीं। कुछ दिन बाद यही संजय गाते फिरेंगे कि हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था, मेरी किस्ती वहां डूबी जहां पानी कम था...। बाकी बातें फिर कभी...

(वरिष्ठ पत्रकार रतन भूषण की फेसबुक वॉल से साभार)


जागरण ने दिया 186000 का हर्जाना


नोएडा लेबर कोर्ट ने नंबर वन अखबार दैनिक जागरण को मजीठिया मामले में कुछ दिन पहले 1 लाख 86 हज़ार रुपये हर्जाने का आदेश दिया था, जिसे जागरण ने चेक से दिया। लेबर कोर्ट में वर्कर ने चेक लिया। 

जाहिर है, जब कोर्ट के आदेश का कोई पालन नहीं करता है, तभी उसे सज़ा के रूप में कॉस्ट देना होता है। 

जागरण के वर्कर जागरण से कई बार कॉस्ट ले चुके हैं और यह लगातार जारी है। संभव है, कुछ केस में आगे भी जागरण कॉस्ट लेकर लेबर कोर्ट आये। उसे आगे की तारीख में भी यह देना है। पर जागरण के वर्कर इन छोटी राशि वाले चेक से बहुत खुश नहीं हैं। वे प्रति वर्कर करोड़ों का सपना सजाए बैठे हैं और उनके सपने पूरे होंगे, यह तय है। हमारे सर के के पुरवार शुरू से कहते आ रहे हैं कि कोई चाहकर भी इस केस को हार नहीं सकता। यानी है निश्चित, हमारी जीत।

(वरिष्ठ पत्रकार रतन भूषण की फेसबुुक वॉल से साभार)


आखिर दैनिक जागरण की नाक क्यों कटती है! ग्रेज्यूटी मामले में एचआर मैनेजर को देनी ही पड़ी राशि


जी हां, हम बात कर रहे हैं जेपीएल यानी जागरण प्रकाशन लिमिटेड के दैनिक जागरण की। जी वही अखबार , जो दावे करता है नंबर वन का, लेकिन करनी ऐसी कि कोर्ट में हर जगह मुंह की खाता है। इन कामों में फायदा तो हर तरह से उठाता है भागदौड़ करने वाला, वकील और कोर्ट और मैनेजमेंट के बीच की कड़ी बनने वाला बिचौलिया, लेकिन हर जगह नाक कटती है बेचारे दैनिक जागरण की। अजीब तो यह है कि सूर्पनखा की नाक तो एक बार कटी थी, लेकिन उपरोक्त लोगों के कारण जागरण की नाक बार-बार कट रही है। कहने का आशय यह है कि जागरण के लोगों ने जागरण की हालत सूर्पनखा से भी बदतर बना दी है।

जब अखबार के कर्मचारियों के लिए मजीठिया वेजबोर्ड केंद्र सरकार ने लागू किया, तो दैनिक जागरण के लोग ही थे जिन्होंने उसे माननीय सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया। जिसका फैसला आया 2014 में, जिसमें कहा गया कि 4 किस्तों में कर्मचारियों की बकाया राशि भुगतान किया जाए। यहां पहली बार जागरण की नाक कटी। लेकिन जागरण को माननीय का आदेश कैसे मंजूर होता? उसने आदेश को नहीं माना, तब कर्मचारियों ने अवमानना याचिका लगाई। जागरण ने वहां अपना पक्ष रखा, तो माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कुछ पैरे को स्पष्ट कर 2017 में आदेश सुनाया कि कर्मचारी डीएलसी के यहां केस लगाकर अपनी राशि लें। दूसरी बार जागरण की नाक यहां कटी।

उसके बाद जागरण के खिलाफ देश के तमाम जिलों-शहरों में मजीठिया की मांग को लेकर केस लगे। कई जगह से फैसले कर्मचारियों के हक में आ चुके हैं और इनकी नाक कटने का सिलसिला जारी है। इस बीच कुछ जगह झूठ बोलकर, कोर्ट को गुमराह कर जागरण केस को लेट कराने में सफल हुआ, लेकिन सच को देर तक झूठ नहीं बनाया जा सकता। इनकी नाक फिर कट जाती है, इसके तमाम उदाहरण हैं।

इनकी हालिया नाक का सवाल था जागरण के एच आर मैनेजर रमेश कुमार कुमावत का केस। यह केस नोएडा डीएलसी में था। कुमावत का शुरू से कहना था कि जागरण को मजीठिया के हिसाब से वर्कर को वेतन देना चाहिए और वे यही बात अपने साथी सीनियर और मैनेजर वगैरह से भी कहते थे। कर्मचारियों से भी उनका इंसानी रिश्ता था, इसलिए जागरण को वे पसंद नहीं आए और उन्हें निकाल दिया गया। उनकी जो राशि बनती थी, वह दिया, लेकिन ग्रेज्यूटी की राशि रोक दी जो 1 लाख 12 हजार कुछ सौ थी। जागरण का कहना था कि उनका बनता नहीं है। मैनेजमेंट के एक व्यक्ति ने बताया कि यह केस जागरण की नाक का सवाल है। वह ग्रेज्यूटी का पैसा नहीं देगा। मामला माननीय हाइकोर्ट भी गया। माननीय ने जागरण को नोएडा में 1 लाख जमा करने का आदेश दिया और टाइम बाउंड के साथ केस को फिर से सुनने के लिए कहा। केस वहां से नोएडा आया। पिछले दिनों मामला कुमावत के पक्ष में आया और जमा राशि 1 लाख उनके खाते में भी चली गई। यानी यहां भी जागरण की नाक कटी। राशि 10 फीसदी इंटरेस्ट के साथ जागरण को देना है। कहने का आशय यह है कि जागरण जहां भी नाक का सवाल बनाता है, उसकी नाक कट जाती है।

लोग कहते हैं कि बिजनेसमैन रुपये खर्च करने के मामले में बहुत सोचते हैं। जागरण ने मजीठिया मामले में अभी तक पैसा पानी की तरह बहाया, लेकिन अपनी नाक कभी नहीं बचा पाया। यह भी संभव है कि बिचौलिए ने पैसे खर्च के नाम पर जागरण से बटोरे, लेकिन आगे दिए नहीं। अपने संदूक को भर लिया। जागरण के कुछ लोग इसे सही भी कहते हैं कि कुछ लोग जागरण में रह कर मजीठिया ले लिए। उम्मीद करता हूं, जब तक महाभारत रूपी जागरण के इस संजय को ठग जैसे अपने लोगों को पहचानने में दृष्टि दोष रहेगा, जागरण की नाक आगे भी कटती रहेगी।

(वरिष्ठ पत्रकार रतन भूषण की फेसबुुक वॉल से साभार)