Saturday 4 December 2021

आखिर दैनिक जागरण की नाक क्यों कटती है! ग्रेज्यूटी मामले में एचआर मैनेजर को देनी ही पड़ी राशि


जी हां, हम बात कर रहे हैं जेपीएल यानी जागरण प्रकाशन लिमिटेड के दैनिक जागरण की। जी वही अखबार , जो दावे करता है नंबर वन का, लेकिन करनी ऐसी कि कोर्ट में हर जगह मुंह की खाता है। इन कामों में फायदा तो हर तरह से उठाता है भागदौड़ करने वाला, वकील और कोर्ट और मैनेजमेंट के बीच की कड़ी बनने वाला बिचौलिया, लेकिन हर जगह नाक कटती है बेचारे दैनिक जागरण की। अजीब तो यह है कि सूर्पनखा की नाक तो एक बार कटी थी, लेकिन उपरोक्त लोगों के कारण जागरण की नाक बार-बार कट रही है। कहने का आशय यह है कि जागरण के लोगों ने जागरण की हालत सूर्पनखा से भी बदतर बना दी है।

जब अखबार के कर्मचारियों के लिए मजीठिया वेजबोर्ड केंद्र सरकार ने लागू किया, तो दैनिक जागरण के लोग ही थे जिन्होंने उसे माननीय सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया। जिसका फैसला आया 2014 में, जिसमें कहा गया कि 4 किस्तों में कर्मचारियों की बकाया राशि भुगतान किया जाए। यहां पहली बार जागरण की नाक कटी। लेकिन जागरण को माननीय का आदेश कैसे मंजूर होता? उसने आदेश को नहीं माना, तब कर्मचारियों ने अवमानना याचिका लगाई। जागरण ने वहां अपना पक्ष रखा, तो माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कुछ पैरे को स्पष्ट कर 2017 में आदेश सुनाया कि कर्मचारी डीएलसी के यहां केस लगाकर अपनी राशि लें। दूसरी बार जागरण की नाक यहां कटी।

उसके बाद जागरण के खिलाफ देश के तमाम जिलों-शहरों में मजीठिया की मांग को लेकर केस लगे। कई जगह से फैसले कर्मचारियों के हक में आ चुके हैं और इनकी नाक कटने का सिलसिला जारी है। इस बीच कुछ जगह झूठ बोलकर, कोर्ट को गुमराह कर जागरण केस को लेट कराने में सफल हुआ, लेकिन सच को देर तक झूठ नहीं बनाया जा सकता। इनकी नाक फिर कट जाती है, इसके तमाम उदाहरण हैं।

इनकी हालिया नाक का सवाल था जागरण के एच आर मैनेजर रमेश कुमार कुमावत का केस। यह केस नोएडा डीएलसी में था। कुमावत का शुरू से कहना था कि जागरण को मजीठिया के हिसाब से वर्कर को वेतन देना चाहिए और वे यही बात अपने साथी सीनियर और मैनेजर वगैरह से भी कहते थे। कर्मचारियों से भी उनका इंसानी रिश्ता था, इसलिए जागरण को वे पसंद नहीं आए और उन्हें निकाल दिया गया। उनकी जो राशि बनती थी, वह दिया, लेकिन ग्रेज्यूटी की राशि रोक दी जो 1 लाख 12 हजार कुछ सौ थी। जागरण का कहना था कि उनका बनता नहीं है। मैनेजमेंट के एक व्यक्ति ने बताया कि यह केस जागरण की नाक का सवाल है। वह ग्रेज्यूटी का पैसा नहीं देगा। मामला माननीय हाइकोर्ट भी गया। माननीय ने जागरण को नोएडा में 1 लाख जमा करने का आदेश दिया और टाइम बाउंड के साथ केस को फिर से सुनने के लिए कहा। केस वहां से नोएडा आया। पिछले दिनों मामला कुमावत के पक्ष में आया और जमा राशि 1 लाख उनके खाते में भी चली गई। यानी यहां भी जागरण की नाक कटी। राशि 10 फीसदी इंटरेस्ट के साथ जागरण को देना है। कहने का आशय यह है कि जागरण जहां भी नाक का सवाल बनाता है, उसकी नाक कट जाती है।

लोग कहते हैं कि बिजनेसमैन रुपये खर्च करने के मामले में बहुत सोचते हैं। जागरण ने मजीठिया मामले में अभी तक पैसा पानी की तरह बहाया, लेकिन अपनी नाक कभी नहीं बचा पाया। यह भी संभव है कि बिचौलिए ने पैसे खर्च के नाम पर जागरण से बटोरे, लेकिन आगे दिए नहीं। अपने संदूक को भर लिया। जागरण के कुछ लोग इसे सही भी कहते हैं कि कुछ लोग जागरण में रह कर मजीठिया ले लिए। उम्मीद करता हूं, जब तक महाभारत रूपी जागरण के इस संजय को ठग जैसे अपने लोगों को पहचानने में दृष्टि दोष रहेगा, जागरण की नाक आगे भी कटती रहेगी।

(वरिष्ठ पत्रकार रतन भूषण की फेसबुुक वॉल से साभार)


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