Sunday 28 April 2019

IFWJ accorded warm welcome to the delegation of Chinese journalists



Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) and Chinese Journalists Association has started a new chapter of cooperation and goodwill between the journalists of both countries. A seven-member delegation of Chinese Journalists is currently on a visit to India. The delegation was welcomed on by the Indian Federation of Working Journalist on 25th April 2019 at the MERI College of Delhi. It is one of the well renowned Management Education and Research Institutes of India. MERI College has also opened new state-of-the-art journalism and mass communication department and the IFWJ has agreed to provide them with the experienced journalists to become the part of their faculty.


The delegation was received by the IFWJ Secretary General Parmanand Pandey, Treasurer, Rinku Yadav, its members Dinesh Sharma, former Bureau Chief of the Amrit Bazar Patrika, Varunendra Kathuria, the Chief Editor of A-one news channel, Alkshendra Singh Negi, President of the DUWJ, Mangat Ram Sharma of Dainik Bhaskar, IFWJ office secretary Sribhagwan Bhardwaj and many others. The Chinese delegation was presented mementoes and shawls by the IFWJ.


In her address Ms Wang Deng Mei, the leader of the Chinese journalist’s delegation expressed pleasure and gratitude towards IFWJ in extending them the warm welcome. She said that the journalists of India are respected in China for their courage, boldness and for their spirit to fight for the freedom of speech and expression. She said that the role of the Chinees journalists in the transformation of the country is lauded by all sections of the society of the People’s Republic of China. She underlined the need for having more cooperation between the IFWJ and the Chinees Journalist’s Association. Among those who were the part of the Chinese delegation were Zhang Liang of the Department of Culture and Education, Kang Bing, Vice President of the China Daily, Liao Jiyong of China Radio International and Liu Bing. Ms Wang Deng Mei has extended the invitation to the Indian journalists to visit her country and interact with the journalists, which would be beneficial for both. She said that with the advent of the digital media the cooperation among the journalists of all the South East Asian Countries should be strengthened so that they can move ahead on the path of peace and progress with the much faster pace.

In his welcome address the IFWJ Secretary General Parmanand Pandey said that the India and China are the two oldest civilisations in the world and we must work for strengthening the ties between the by preserving our culture. It must be mentioned here that the paper pulp was invented for the first time in China only. He reciprocated Ms Wang Deng Mei and extended an invitation to a delegation of Chinese journalists to participate in the Annual Conference of the IFWJ. He said that a 25-member delegation of Chinees journalists would be invited every year by the IFWJ.

There was a complete bonhomie among the Indian journalists and the visiting Chinees journalists. Among others who participated in the reception was the President of the Indo-China Friendship Association Mr. R.N. Anil, the Chairman of the MERI Group of Institutions Mr Lalit Aggarwal, the Dr Dilip Kumar, HoD of Journalism of MERI College and Vice-Chairman of Aditya Birla Group Dr Vinod K Verma. A large number of the teaching staff of the MERI College and other senior journalists were also present on the occasion.

The leader of the Chinees delegation Ms Wang Deng Mei was presented a shield by the IFWJ Secretary-General in recognition of her services to journalism in her country. She has been working in a very senior capacity in the largest circulated China Daily. She possesses experience in almost all streams of journalism.

The vote of thanks was proposed by Dr. Juneja of the Indo-China Friendship Association. Hopefully, the relationship between IFWJ and the Chinese Journalists Association will herald a new phase of cooperation between the two countries. It was emphasised by both sides that more than one-third of the population of the globe lives only in these two countries and therefore, the cooperation and harmonies between the two countries will be helpful not only for India and China but for the entire humanity.

(Parmanand Pandey)
Secretary-General, IFWJ

Tuesday 16 April 2019

मजीठिया: अब भास्कर को लगा मप्र में झटका, अब्दुल अबरार ने जीता 27.83 लाख रुपये का क्लेम

महाराष्ट्र और राजस्थान के कोटा के बाद मध्य प्रदेश के खंडवा में भी मजीठिया वेज बोर्ड के मामले में श्रम न्यायालय का निर्णय भास्कर के खिलाफ गया है। भास्कर के संपादकीय विभाग में ऑपरेटर के रूप में कार्यरत अब्दुल अबरार को न्यायालय ने मजीठिया वेज बोर्ड के बकाए के 27.83 लाख रुपए देने के निर्देश दिए हैं। इस मामले की खास बात यह है कि भास्कर किस श्रेणी का संस्थान है, यह तय करने के लिए मध्य प्रदेश पत्रकार संगठन के वकील मोहन करपे के माध्यम से संगठन से मदद मांगी थी। भास्कर की बैलेंस शीट जज साहब को ईमेल के जरिए भेजी गई थी। श्री अबरार को संगठन की ओर से बधाई।

Sunday 14 April 2019

मजीठिया: अब कोटा लेबर कोर्ट ने भी 20जे को खारिज किया, 43 कर्मियों को मिलेगा वेजबोर्ड के अनुसार लाखों का एरियर, डाउनलोड कर पढ़े किसको मिलेगा कितना...

कोटा। महाराष्‍ट्र के बाद अब भास्‍कर को एक और बड़ा झटका राजस्‍थान में लगा है। यहां पर कोटा यूनिट में कार्यरत 43 कर्मियों को लेबर कोर्ट ने मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार एरियर देने का फैसला दिया। न्‍यायालय ने कंपनी द्वारा पेश 20जे को भी स्‍वीकार नहीं किया और माना कि कर्मचारियों के हस्‍ताक्षर दबाव में या धोखाधड़ी से लिए गए हैं। इससे पहले महाराष्‍ट्र में भी डीबी कार्प कंपनी के मराठी अखबार दिव्य मराठी मामले में ग्रुप को एक झटका लग चुका है। यहां पर सुधीर जगदाले समेत 16 कर्मियों के पक्ष में लेबर कोर्ट ने फैसला सुनाया था। औरंगाबाद लेबरकोर्ट ने वहां पर भी 20जे पर कंपनी की दलील को नहीं मानते हुए कर्मियों के पक्ष में फैसला सुनाया था। कोटा लेबर कोर्ट ने इनका बकाया 2 महीने के भीतर देने का फैसला दिया है, ऐसा नहीं होने पर 9 प्रतिशत की दर से ब्‍याज देना होगा। इसके अलावा अदालत ने कर्मचारियों को प्रबंधन का हिस्‍सा बताने के कंपनी के तर्कों को भी खारिज कर दिया।

मालूम हो कि 7 फरवरी 2014 में सुप्रीम कोर्ट का मजीठिया वेजबोर्ड पर फैसला आने के बाद दैनिक भास्कर के कोटा संस्करण के लगभग सारे कर्मचारी बागी हो गए थे। मजीठिया वेजबोर्ड के तहत वेतन व बकाया न दिए जाने को लेकर एकजुट हुई पूरी यूनिट ने हड़ताल का एलान कर दिया था। आनन-फानन में दैनिक भास्कर प्रबंधन ने नए लोगों को भर्ती कर अखबार निकालने का काम जारी रखा था। जिन लोगों ने वेतन व बकाये की मांग उठाई थी, उन्हें परेशान करना शुरू कर दिया गया था। परंतु कुछ लोगों को छोड़कर, बाकी लोग डरे नहीं थे।

कुल 47 लोगों ने अदालत में मामला लगाया था। इनमें से चार लोग पीछे हट गए। इनके नाम हैं- अमलेश कुमार गुप्ता, संजय मोदी, देवेंद्र सिंह तंवर और ताराचंद जैन। कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि श्रमिक संजय मोदी और देवेंद्र सिंह तेवर ने स्टेटमेंट आफ क्लेम पेश नहीं किया, इसलिए उनके मामले पर विचार नहीं किया गया और वे किसी प्रकार के लाभ के भागी नहीं होंगे। इसी तरह ताराचंद जैन और अमलेश कुमार गुप्ता ने अपने स्टेटमेंट आफ क्लेम को विथड्रा कर लिया था, इसलिए ये भी कोई लाभ न पा सकेंगे। इनके अलावा बाकी सभी 43 लोगों को मजीठिया वेजबोर्ड के हिसाब से लाखों रुपये की बकाया एरियर मिल जाएगा।

इन विजेता साथियों में आलोक शहर, संतोष श्रीवास्तव, अब्दुल करीम, गिरीश चौधरी, गुमानी शंकर, दिनेश माहेष्वरी, कुंज बिहारी, असफाक अली, दिनेश, जावेद, शर्मा, आशीष, हेमंत, रानू, रघु, विष्णु, विष्णु बलोडिया आदि शामिल हैं। इतने लंबे संघर्ष में हार ना मान कर अपनी जीत दर्ज करा कर इन्‍होंने अन्य साथियों के लिए एक उदाहरण पेश किया है। इनको समय-समय पर दूसरे अन्य साथी अमित मिश्रा, रविन्द्र अग्रवाल, शैलेन्द्र, संजय सैनी, हरिओम, शशिकांत, धर्मेंद्र, सुधीर आदि ने मार्गदर्शन दिया।

हालांकि अभी नियोजक उच्च न्यायालय में इस आदेश को चुनौती दे सकते हैं और सुप्रीम कोर्ट भी जा सकते हैं। पर खुद सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के कारण इस मामले में वे अधिक समय तक इन लाभों को अदा करने से नहीं बच सकेंगे। जिन कर्मचारियों को ये लाभ मिलेंगे उन सभी की नौकरियां इस लाभ को प्राप्त करने के संघर्ष में जा चुकी हैं। उनकी नौकरियों की लड़ाई अभी शेष है। इस निर्णय से उन कर्मचारियों को भी प्रेरणा मिलेगी जो अपने लाभों को अभी तक नौकरी जाने के भय से क्लेम नहीं कर सके हैं।

लेबर कोट कोटा के आर्डर को डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न path का प्रयोग करें-
https://drive.google.com/file/d/1MYhvVi8jMDHk5wnvYcCeXOhutDzFSyDd/view?usp=sharing 


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Tuesday 9 April 2019

बड़ी खबर: भास्कर कोटा के 42 साथियों ने जीता मजीठिया का केस


एक बड़ी खबर भास्कर समूह से आ रही है. इस अखबार के कोटा संस्करण में कार्यरत 42 मीडियाकर्मियों को मजीठिया वेतनमान देने का आदेश हो गया है. इस आदेश से मीडियाकर्मियों में खुशी का माहौल है.

कोटा यूनिट के 42 मीडियाकर्मी एकजुट होकर कई वर्षों से अपने हक के लिए प्रबंधन से लड़ते आ रहे हैं. इसके लिए हड़ताल से लेकर कोर्ट तक का सहारा लिया गया. कोर्ट ने दैनिक भास्कर प्रबंधन को 2 माह में भुगतान करने का आदेश दिया है. अगर भास्कर ने ऐसा नहीं किया तो उसे देय राशि पर 9% ब्याज भी देना होगा. आदेश की कॉपी की प्रतीक्षा की जा रही है ताकि सारे डिटेल मिल सके.

Monday 8 April 2019

मजीठिया: बड़ी खबर- 28 जनवरी 2019 वाले आर्डर में टर्मिनेशन वाला छूटा हिस्‍सा जुड़ा, यहां से डाउनलोड करें पूरा आर्डर


नई दिल्ली। माननीय सुप्रीम कोर्ट के 28 जनवरी 2019 वाले 6 महीने के टाइम बाउंड आर्डर में टर्मिनेशन के केस की तीन लाइनें न होने का जब पता चला जब जयपुर से राजस्थान पत्रिका के अमित जी जब लेबर कोर्ट गए तो जज साहब ने बताया की अदालत में राज्य की हाईकोर्ट से एक आर्डर आया है जिसमें टर्मिनेशन के केस भी 6 महीने में निपटाने के आदेश दिए गए हैं।

इसकी जानकारी जब दिल्ली में महेश जी को दी गई तो उन्होंने तुरंत इसकी सूचना अधिवक्ता गोविंद जी को दी, तो गोविंद जी ने सारी जानकारी ले वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण जी को दी। हमारे नोएडा के क्रांतिकारी रतन भूषण प्रसाद जी और विवेक त्यागी जी ने भी प्रशांत जी मिलकर सारी जानकारी से अवगत कराया।
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण जी ने तुरंत अपने सहयोगी को सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार को निवेदन पत्र लिखने के लिए कहा जिसमें पूरे ब्यौरे की जानकारी दी गई।

इसके तुरंत बाद मामला 5 अप्रैल 2019 को तीन सदस्यीय पीठ माननीय चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, माननीय जस्टिस दीपक गुप्ता और माननीय जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ के सामने सुनवाई पर आया।

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने पीठ के सामने पूरे मामले की जानकारी रखी और 28 January 2019 के आर्डर में टर्मिनेशन का जिक्र न होने की बात बताई। इस दौरान उनके सहयोगी अधिवक्ता गोविंद जी भी साथ थे। सारी बातें सुनने के बाद माननीय पीठ ने टर्मिनेशन की तीन लाइनें भी जोड़ने के आदेश दिए।

मालूम हो कि इस याचिका को डालने में दिल्‍ली के हमारे साथी महेश शर्मा और भोपाल एवं पंजाब के साथियों का भी विशेष योगदान रहा है।

टाइम बाउंड वाले 28 जनवरी 2019 के आर्डर की पीडीएफ कापी डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न path का प्रयोग करें-
https://drive.google.com/open?id=1x5ySq42rKtfhSxkelU7j6hY0hMKY_OGz

टर्मिनेशन वाले टाइम बांड वाले 5 अप्रैल 2019 के आर्डर की पीडीएफ कापी डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न path का प्रयोग करें-
https://drive.google.com/open?id=1qu5mms-L1pV_kwUveA2y320whecRtLLL

ध्‍यानार्थ- टर्मिनेशन, ट्रांसफर आदि के मामलों में दोनों ही आर्डरों का प्रयोग करें। 

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Wednesday 3 April 2019

बड़ी खबर: मजीठिया मामले में मप्र के श्रम आयुक्‍त व उप श्रम आयुक्‍त के खिलाफ हाईकोर्ट ने जारी किए वारंट

इंदौर। मजीठिया वेजबोर्ड की बकाए की वसूली हेतु सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के पालन में समाचार पत्र के कर्मचारियों के सी फॉर्म श्रम न्यायालय न भेजने पर इंदौर उच्च न्यायालय ने मंगलवार को तत्कालीन उप श्रमायुक्त राजेश बहुगुणा तथा उप श्रमायुक्त एलपी पाठक व एसएस दीक्षित के खिलाफ जमानती वारंट जारी किए हैं। बहुगुणा वर्तमान में जबलपुर के संभाग आयुक्त हैं। इस मामले में श्रम विभाग के पूर्व मुख्य सचिव संजय दुबे को भी नोटिस दिए गए थे लेकिन नोटिस तामिल न होने के चलते फिलहाल उनके नाम का वारंट जारी नहीं किया गया है।

मामला इस प्रकार है कि मध्यप्रदेश में मजीठिया वेजबोर्ड की लड़ाई लड़ रही ट्रेड यूनियन मध्य प्रदेश पत्रकार एवं गैर पत्रकार संगठन ने 28 दिसंबर 2017 को अपने सदस्यों के सी फॉर्म उप श्रम आयुक्त के समक्ष प्रस्तुत किए थे। इन आवेदनों में से लगभग 50 आवेदन अब भी श्रम आयुक्त कार्यालय में लंबित है, जबकि इस संबंध में संगठन की याचिका पर इंदौर उच्च न्यायालय ने 14 अगस्त 2018 को श्रम विभाग को निर्देश दिए थे कि वे इन आवेदनों को 15 दिन के भीतर श्रम न्यायालय रेफर करें। लेकिन इसके बावजूद श्रम अधिकारियों ने इस मामले में गंभीरता नहीं दिखाई और यह आवेदन अब तक लंबित ही हैं। इसके बाद संगठन ने इंदौर उच्च न्यायालय में अधिवक्ता प्रखर करपे के माध्यम से अवमानना याचिका दायर की थी। जिसके बाद माननीय न्यायालय ने श्रम विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे, श्रम आयुक्त राजेश बहुगुणा तथा उप श्रमायुक्त एलपी पाठक व एसएस दीक्षित को नोटिस जारी किए थे। लेकिन इनमें से कोई भी अधिकारी या उनका कोई प्रतिनिधि 2 अप्रैल को न्यायाधीश विवेक रूसिया की कोर्ट में हुई सुनवाई में उपस्थित नहीं हुआ। इसके चलते माननीय न्यायाधीश ने प्रमुख सचिव को छोड़कर शेष तीनों अधिकारियों के खिलाफ 10000 के जमानती वारंट जारी किए हैं और उन्हें 30 अप्रैल को न्यायालय में पेश होने को कहा है।

संगठन के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष सुचेन्द्र मिश्रा और महासचिव तरुण भागवत ने बताया कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 6 माह की समय सीमा में मजीठिया वेजबोर्ड के बकाए का निर्धारण करने के निर्देश दिए हैं। लेकिन श्रम विभाग ने इस संबंध में आवेदन दिए जाने के  16 महीने बाद भी अब तक कई कर्मचारियों के सी फॉर्म श्रम न्यायालय रेफर नहीं किए हैं। इस संबंध में संगठन के प्रतिनिधियों ने समय-समय पर श्रम अधिकारियों से अनुरोध भी किया लेकिन उसका नतीजा नतीजा कुछ नहीं निकला। इसके बाद संगठन को मजबूर होकर यह याचिका लगानी पड़ी थी। इसके अलावा माननीय उच्च न्यायालय ने मजीठिया वेजबोर्ड की मांग करने के परिणाम स्वरुप समाचार पत्र के कर्मचारियों को दूरस्थ स्थानों पर ट्रांसफर करने तथा उनकी सेवा समाप्त करने के मामले में आपराधिक अभियोजन की अनुमति के आवेदनों का निपटारा करने के लिए भी 60 दिन की समय सीमा तय की थी लेकिन बावजूद इसके श्रम अधिकारियों ने इस मामले में भी अब तक सुनवाई प्रारंभ नहीं की है। इस ढील पोल के चलते समाचार पत्र प्रबंधन बिना रोक-टोक मजीठिया वेजबोर्ड का अधिकार मांगने वाले पत्रकारों व कर्मचारियों का स्थानांतरण व सेवा समाप्ति कर रहा है।

[साभार: goonj.co.in]

अब कई गुना बढ़ जाएगी निजी कर्मियों की पेंशन, श्रमजीवी पत्रकार भी होंगे लाभान्वित

सुप्रीमकोर्ट की हरी झंडी, पूरी सैलरी के हिसाब से पेंशन देने के आदेश की पुष्टि

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को निजी कंपनियों में काम करने वाले सभी कर्मचारियों के लिए पहले से ज्यादा पेंशन का रास्ता साफ कर दिया है। इससे पेंशन में कई गुना की बढ़ोतरी हो जाएगी। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कर्मचारी भविष्य निधि संस्था (ईपीएफओ) द्वारा केरल उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दाखिल विशेष याचिका को खारिज कर दिया है। इससे देश भर के निजी क्षेत्रों के करोड़ों कर्मचारियों को इस मंहगाई के दौर में राहत मिलेगी। इससे श्रमजीवी पत्रकार भी लाभान्वित होंगे।

केरल उच्च न्यायालय ने ईपीएफओ से कहा था कि वह सभी सेवानिवृत्त कर्मचारियों को उनकी पूरी तनख्वाह के आधार पर पेंशन दे ना कि अंशदान के आधार पर तय किया जाए, जोकि प्रतिमाह अधिकतम 15 हजार रुपये निर्धारित है। अपने आदेश में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हमें विशेष याचिका में कोई योग्यता नहीं मिली। इसी वजह से इसे खारिज किया जाता है।

उच्चतम न्यायालय ने प्राइवेट सेक्टर के सभी कर्मचारियों के पेंशन में भारी बढ़त का रास्ता साफ कर दिया है। इससे निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के पेंशन में कई गुना बढ़त हो जाएगी। कोर्ट ने इस मामले में ईपीएफओ की याचिका को खारिज करते हुए केरल हाई कोर्ट फैसले को बरकरार रखा है। केरल हाईकोर्ट ने कर्मचारियों को उनकी पूरी सैलरी के हिसाब से पेंशन देने का आदेश दिया गया था। फिलहाल ईपीएफओ द्वारा 15,000 रुपये के बेसिक वेतन की सीमा के आधार पर पेंशन की गणना की जाती है।

गौरतलब है कि कर्मचारियों के बेसिक वेतन का 12 फीसदी हिस्सा पीएफ में जाता है और 12 फीसदी उसके नाम से नियोक्ता जमा करता है। कंपनी की 12 फीसदी हिस्सेदारी में 8.33 फीसदा हिस्सा पेंशन फंड में जाता है और बाकी 3.66 पीएफ में। उच्चतम न्यायालय ने अब यह रास्ता साफ कर दिया है कि निजी कर्मचारियों के पेंशन की गणना पूरे वेतन के आधार पर हो। इससे कर्मचारियों की पेंशन कई गुना बढ़ जाएगी।

ईपीएफ या ईपीएस एक पेंशन स्कीम है़, जिसके तहत प्राइवेट सेक्टर के संगठित क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों की नौकरी के दौरान बेसिक सेलरी के 8.33 फीसदी (1250 रुपए मासिक से ज्यादा नहीं) के बराबर पैसा इस स्कीम में जमा होता है। इसके एवज में, यह कर्मचारी को रिटायरमेंट के बाद निश्चित ​मासिक पेंशन प्रदान करती है।

भारत सरकार का कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ही सभी कर्मचारियों के ईपीएफ और पेंशन खाते को मैनेज करता है। हर ऐसा संस्थान जहां पर 20 या इससे ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं, उसे ईपीएफ में हिस्सा लेना होता है। ईपीएस इस योजना के साथ जुड़कर चलती है इसलिए ईपीएफ स्कीम का मेंबर बनने वाला हर शख्स पेंशन स्कीम का मेंबर अपने आप बन जाता है।

ईपीएफ या ईपीएस में, ऐसे कर्मचारियों का अंशदान जमा होना अनिवार्य है, जिनका बेसिक वेतन + डीए 15000 रुपये या इससे अधिक होता है। जो कर्मचारी इससे अधिक बेसिक सैलरी पाते हैं, उनके पास ईपीएफ और EPS को अपनाने या छोड़ने का विकल्प होता है। आपके पीएफ खाते में नियोक्ता जो पैसा डालता है उसका एक हिस्सा पेंशन स्कीम के लिए ही इस्तेमाल होता है, जबकि आपकी सैलरी से जो पैसा कटता है वो पूरा का पूरा ईपीएफ स्कीम में चला जाता है।

तो अगर पूरी सैलरी के हिसाब से पेंशन बनी तो कर्मचारियों की पेंशन कई गुना बढ़ जाएगी। इसमें नुकसान बस इतना है कि पेंशन तो बढ़ेगी, लेकिन पेंशन फंड की निधि कम हो जाएगी, क्योंकि अतिरिक्त योगदान ईपीएफ में जाने की जगह ईपीएस में जाएगा। केंद्र सरकार ने ईपीएस की शुरुआत 1995 में की थी। इसके तहत नियोक्ता कर्मचारी के 6,500 तक के मूल वेतन का 8.33 फीसदी हिस्सा (अधि‍कतम 541 रुपये प्रति महीना) पेंशन स्कीम में डालने का नियम था। लेकिन 1 सितंबर, 2014 को ईपीएफओ ने इसमें बदलाव करते हुए 15,000 तक के मूल वेतन का 8.33 फीसदी (अधिकतम 1,250 रुपये प्रति महीना) कर दिया। सरकारी नौकरी वाले कर्मचारियों के लिए पेंशन और पीएफ की व्यवस्था जीपीएफ के तहत होती है।

मार्च 1996 में सरकार ने इस कानून में संशोधन किया। जिसके अनुसार यदि कर्मचारी अपनी पूरी तनख्वाह के हिसाब से योजना में योगदान देना चाहे और नियोक्ता भी इसके लिए राजी हो तो उसे पेंशन भी उसी हिसाब से मिलनी चाहिए। सितंबर 2014 में ईपीएफओ ने एक बार फिर से नियम में बदलाव किया। जिसके बाद अधिकतम 15 हजार रुपये के 8.33 फीसदी के योगदान को मंजूरी मिल गई। हालांकि इसके साथ यह नियम भी लाया गया है कि यदि कोई कर्मचारी अपनी पूरी तनख्वाह पर पेंशन लेना चाहता है तो उसकी पेंशन वाली तनख्वाह पांच साल के हिसाब से तय की जाएगी। इससे पहले यह पिछले साल की औसत तनख्वाह पर तय होता था। जिसके कारण कई कर्मचारियों की तनख्वाह कम हो गई थी। फिर मामला उच्च न्यायालय पहुंचा। जिसके बाद केरल उच्च न्यायालय ने 1 सितंबर 2014 को हुए बदलाव को रद्द करके पुरानी प्रणाली को बहाल कर दिया था।

अक्‍टूबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारियों के पक्ष में सुनाया था फैसला
अक्‍टूबर, 2016 में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा था कि कर्मचारी को पेंशन कंट्रीब्‍यूशन बढ़ाने का अधिकार है और इसके लिए कोई कट ऑफ डेट तय नहीं की जा सकती है। इसके आधार पर 12 रिटायर्ड कर्मचारियों ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल कर ईपीएफओ से ज्‍यादा पेंशन की मांग की थी। इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने ईपीएफओ को इन कर्मचारियों को हायर कंट्रीब्‍यूशन जमा कराने पर ज्‍यादा पेंशन देने का आदेश दिया था। लेकिन कर्मचारी भविष्‍य निधि संगठन के अधिकारी हायर पेंशन को लेकर उच्चतम न्यायालय के आदेश को लागू करने में हीलाहवाली कर रहे थे।