Tuesday 31 July 2018

मजीठिया: बॅाम्बे हाई कोर्ट ने दी कर्मचारियों को बड़ी राहत, लेबर कोर्ट में हो रही सुनवाई पर हस्तक्षेप करने से किया इनकार

कंपनी द्वारा उठाये गए आपत्ति को भी किया रिजेक्ट

एडवोकेट उमेश शर्मा ने दमदार तरीके से रखा बॅाम्बे हाई कोर्ट में कर्मचारियों का पक्ष

जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड मामले में बॅाम्बे हाई कोर्ट ने वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 17 (2) में क्लेम लगाने वाले कर्मचारियों को बड़ी राहत देते हुए लेबर कोर्ट की सुनवाई में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए साफ कहा है कि इश्यू तय करने और उस पर निर्णय सुनाने का लेबर कोर्ट को अधिकार है। हाई कोर्ट मामले में कोई दखल नहीं देगा। मुंबई के एक समाचार पत्र प्रबंधन कंपनी श्री अंबिका प्रिंटर्स एंड पब्लिकेशन्स के सात कर्मचारियों ने जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड के तहत वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 17 (1) के तहत अपने बकाये को पाने के लिए कामगार आयुक्त कार्यालय में क्लेम लगाया था। इस पर विवाद हुआ और मामला लेबर कोर्ट में पहुंचा। लेबर कोर्ट ने कुछ इश्यू तय किए, जिस पर कंपनी प्रबंधन बॅाम्बे हाई कोर्ट पहुंच गया। कर्मचारियों की तरफ से इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने एडवोकेट उमेश शर्मा, जो देश भर के मजीठिया क्रांतिकारियों की सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं, उन्होंने बॅाम्बे हाई कोर्ट में कर्मचारियों का पक्ष जोरदार तरीके से रखा। इस दौरान कंपनी के एडवोकेट ने कर्मचारियों द्वारा किए गए क्लेम की रकम पर सवाल उठाया और कहा कि यह क्लेम राशि गलत है, क्योंकि हमारा क्लासिफिकेशन ही गलत तरीके से किया गया है। हम सातवीं कैटेगरी में आते हैं, जबकि कर्मचारियों ने यह क्लेम चौथी कैटेगरी के तहत लगाया है।

हाई कोर्ट के विद्वान न्यायाधीश श्री एस सी गुप्ते ने कंपनी को एक पुराने रेफरेंस का हवाला देते हुए मत दिया कि कंपनी क्लासीफिकेशन को क्लियर कराने के लिए बैलेंस शीट का सहारा ले। इसके साथ ही कंपनी द्वारा जब एक और सवाल उठाया गया कि प्राइमरी इश्यू पर फैसला पहले होना चाहिए, तब इस पर एडवोकेट उमेश शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए डी. पी. माहेश्वरी के मामले से जुड़े फैसले का उल्लेख करते हुए हाई कोर्ट का ध्यान दिलाया कि ऐसा नहीं हो सकता।

इस फैसले पर एडवोकेट उमेश शर्मा ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि बॅाम्बे हाई कोर्ट द्वारा दिया गया यह फैसला मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई लड़ रहे कर्मचारियों को विजय की तरफ ले जाएगा। यह फैसला सौ प्रतिशत कर्मचारियों के पक्ष में है। श्री शर्मा ने कहा है कि कंपनी द्वारा बैलेंस शीट देने के मुद्दे पर इस आर्डर में एक पासिंग रेफरेंस है और अगर इस पर अदालत चाहे तो बैलेंस शीट मंगा सकती है। इससे दूसरे कर्मचारियों को कितना फायदा होगा, इस पर उमेश शर्मा जी ने कहा है कि कोई भी कंपनी अगर बीच में हाई कोर्ट जाती है तो इस आर्डर का हवाला देकर हाई कोर्ट कंपनी के केस को रिजेक्ट कर देगा। यह पूछे जाने पर कि धारा 17 (2) के तहत कंपनी के लोग, जो बार-बार हाई कोर्ट जा रहे हैं कर्मचारियों को कितना फायदा होगा। इस पर श्री शर्मा ने कहा कि बहुत फायदा होगा। सभी कर्मचारियों को फायदा होगा और किसी का समय भी जाया नहीं होगा। उमेश शर्मा ने कहा कि इस केस में कंपनी हाई कोर्ट स्टे लेने भी गई थी, मगर हाई कोर्ट ने स्टे देने से न सिर्फ मना कर दिया, बल्कि उनका एप्लीकेशन ही रिजेक्ट कर दिया है... यह कहते हुए कि इसका कोई ग्राउंड नहीं है। प्राइमरी इश्यू पर उमेश शर्मा ने कहा कि प्राइमरी इश्यू तय नहीं होंगे, बल्कि सभी इश्यू तय होंगे। यह आर्डर हमें सफलता की ओर ले जाते दिख रहा है। यह कर्मचारियों के लिए विजय का एक रास्ता है। जज साहब ने बहुत ही तगड़ा आर्डर किया है।

-मुंबई से धर्मेन्द्र प्रताप सिंह की रिपोर्ट
मोबाइल: 9920371264
ई-मेल: dpsingh@journalist.com

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मजीठिया: तीन बर्खास्त कर्मचारियों को बहाल करने के आदेश

मजीठिया के अनुसार वेतन देने के निर्देश

देहरादून। राष्ट्रीय सहारा को निकाले गए कर्मियों के मामले में भी झटका लगा है। लेबर कोर्ट ने तीन कर्मियों की बर्खास्तगी को अवैध मानते हुए उनकी बहाली के साथ ही मजिठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के अनुसार वेतन देने का भी निर्देश दिया है।
राष्ट्रीय सहारा ने देहरादून से छह कर्मचारियों को बिना कारण व चार्जशीट दिये बिना ही नौकरी से निकाल दिया था। इनमें से तीन कर्मचारी अदालत की शरण में गये थे। तीनों ही कर्मचारी प्रोडक्शन के थे। अदालत ने माना कि किसी भी कर्मचारी को बेवजह नहीं निकाला जा सकता है। मजीठिया की सिफारिशें माननीय सुप्रीम कोर्ट ने लागू की हैं। इसके चलते पूर्णानंद त्रिपाठी, जय सिंह बिष्ट और अनिल वर्मा को नौकरी पर बहाल करने का आदेश दिया। इन लोगों को फरवरी 2016 में नौकरी से निकाला गया था। अदालत ने प्रबंधन को आदेश दिये हैं कि इन्हें उक्त अवधि से अब तक का हर माह का 50 फीसदी वेतन भी दिया जाए और साथ ही मजीठिया के अनुसार वेतन भी दें। सहारा प्रबंधन के मुताबिक अभी उन्हें अदालती आदेश नहीं मिले हैं।

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मजीठिया: बड़ी खबर- देशभर में सबसे पहले गुणानंद को मिली लेबर कोर्ट में जीत

लेबर कोर्ट देहरादून ने दिया सहारा को बड़ा झटका

ठेका कर्मी को नियमित कर्मचारी मानते हुए मजीठिया देने का आदेश

राष्ट्रीय सहारा को लेबर कोर्ट देहरादून ने करारा झटका दिया है। श्रम न्यायालय ने सहारा प्रबंधन के तमाम तिकडम और दबाव के बावजूद कर्मचारियों के हक में फैसला दिया है। श्रम न्यायालय के माननीय जज एस के त्यागी ने राष्ट्रीय सहारा देहरादून में मुख्य उप संपादक के रूप में कांट्रेक्ट पर तैनात गुणानंद जखमोला को नियमित कर्मचारी माना। अदालत में प्रबंधन ने तर्क दिया कि गुणानंद को कांट्रेक्ट पर तैनात किया गया था और उसकी अवधि पूरी हो जाने पर स्वत‘ ही कांट्रेक्ट समाप्त हो जाता है। प्रबंधन द्वारा यह भी तर्क दिया गया कि गुणानंद का फुल एडं फाइनल भुगतान हो चुका है लेकिन अदालत में यह बात प्रबंधन साबित नहीं कर सका। प्रबंधन ने यह तर्क भी दिया था कि गुणानंद को प्रबंधकीय अधिकार थे जबकि वादी ने इससे स्पष्ट इनकार किया। प्रबंधन गुणानंद को कर्मकार की श्रेणी में नहीं मान रहा था जबकि वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट के अनुसार और यूपी श्रमिक विवाद अधिनियम 1955 के अनुसार उपसंपादक कर्मचारी की श्रेणी में है। वादी ने तर्क दिया कि वह एक अक्टूबर 2009 से 31 मार्च 2016 तक बिना किसी ब्रेक के कंपनी में कार्यरत रहा और हर साल उसने 240 दिनों से भी अधिक काम किया। इस आधार पर वह न सिर्फ वेतन, एरियर, ग्रेच्युटी और मुआवजा लेने का अधिकारी है बल्कि मजीठिया लेने का भी अधिकारी है। अदालत ने तथ्यों व पेश किये सबूतों के आधार पर माना कि गुणानंद के साथ प्रबंधन ने अन्याय किया। अदालत ने यूपी श्रम विवाद अधिनियम के तहत गुणानंद को छंटनी का शिकार माना और उसे छह माह का वेतन, लीव इनकैसमेंट, बोनस व ग्रेच्युटी देने का आदेश दिया। अदालत ने प्रबंधन को कहा कि मजीठिया की सिफारिश के अनुसार गुणानंद को 11-11-2011 से मजीठिया का लाभ भी दिया जाए। लेबर कोर्ट द्वारा मजीठिया के अनुसार वेतनमान देने का ये देशभर में पहला फैसला है।




मजीठिया: उप्र के श्रम मंत्री ने कहा- अदालत से नहीं, आपसी विचार-विमर्श करके शीघ्र लागू किया जाएगा वेजबोर्ड

लम्बित मुकदमों के शीघ्र निस्तारण हेतु उप श्रमायुक्तों को निर्देश
जनपद स्तर पर शिकायतों के निस्तारण हेतु जिलाधिकारी की अध्यक्षता में सदस्यों के साथ प्रतिमाह बैठक का निर्देश 

लखनऊ। श्रमजीवी पत्रकारों एवं समाचार पत्रों के कर्मचारियों के वेतन/भत्ते आदि के निर्धारण के लिए मजीठिया वेजबोर्ड की संस्तुतियों को प्रदेश में लागू करने एवं इनके  विवादों के निराकरण हेतु शासन द्वारा गठित त्रिपक्षीय समिति की आज बापू भवन में संपन्न बैठक को सम्बोधित करते हुए प्रदेश के श्रम, सेवायोजन एवं समन्वय मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि उत्तर प्रदेश में मजीठिया आयोग की संस्तुतियों को आपसी सहमति एवं बातचीत के जरिये व्यवहारिक परिवेश में लागू कराया जायेगा। उन्होंने कहा कि सरकार का प्रयास है कि इसका निराकरण अदालतों से नहीं बल्कि आपसी विचार-विमर्श करके मध्यम मार्ग से  किया जाये। 
श्रम मंत्री ने प्रमुख सचिव श्रम को निर्देश दिये कि जिन प्रदेशों में आयोग की संस्तुतियां लागू की गयी हैं उनकी प्रगति रिपोर्ट मंगाकर इसका अध्ययन किया जाये और अगली बैठक में इसकी रिपोर्ट प्रस्तुत की जाये, ताकि प्रदेश में भी इसे शीघ्र लागू किया जा सके। उन्होंने निर्देशित किया कि प्रेस कर्मचारियों के वेतन भुगतान बैंक के माध्यम से हो रहा है कि हाथों-हाथ किया जा रहा है, इसकी भी रिपोर्ट प्रेस मालिकों से मंगा ली जाये। साथ ही सभी प्रेस मालिकों को आयोग की संस्तुतियों की छायाप्रति उपलब्ध करा दी जाये। ताकि वे इसकी सेवा शर्तो की जानकारी न होने का बहाना न बना सके। प्रेस मालिकों और पत्रकारों/कर्मचारियों के बीच विवाद को समाप्त कर वेजबोर्ड की सिफारिशो को शीघ्र लागू करने के लिए बैठक में समिति के अतिरिक्त अन्य प्रेस प्रतिनिधियों को भी बुलाया जाये। उन्होंने उप श्रमायुक्तों को निर्देश दिये कि अपने यहां पत्रकारों के लम्बित सभी मुकदमों का शीघ्र निस्तारण कराये और मा. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार पत्रकारों को मजदूरी दिलाये।

बैठक में प्रमुख सचिव श्रम सुरेश चन्द्रा ने निर्देश दिये कि सभी अधिकारी जनपद स्तर पर ही शिकायतों का निस्तारण करने के लिए जिलाधिकारी की अध्यक्षता में सदस्यों के साथ प्रतिमाह बैठक करेंगे। पत्रकारों की समस्याओं के निराकरण के लिए जिला स्तर पर प्रभावी माॅनीटरिंग की जाये। प्रेस एजेन्सियों की बैलेन्स शीट लेकर राजस्व के आधार पर श्रेणी का निर्धारण करते हुए पत्रकारों को न्यूनतम पारिश्रमिक दिलाने का भी प्रयास किया जाये। 

बैठक में पत्रकार सदस्य मुदित माथुर, हसीब सिद्दीकी, लोकेश त्रिपाठी, जेपी त्यागी ने मजीठिया आयोग की संस्तुतियों, पत्रकारों की समस्याओं एवं श्रम विभाग के अपेक्षित सहयोग के संदर्भ में अपने विचार प्रस्तुत किये। उन्होंने कहा कि सुबह से लेकर देर रात तक कार्य करने वाले पत्रकारों के काम का समय और वेतन का भी निर्धारण होना चाहिए। मजीठिया वेजबोर्ड की संस्तुतियों को अन्य राज्यों की तरह यहां भी लागू करने के लिए विचार किया जाये। उन्होंने कहा कि जिला स्तर पर भी मानिटरिंग होनी चाहिए। जनपद स्तरीय अखबार भी आय के आधार पर पत्रकारों को वेतन दें, इसके भी प्रयास किये जाये।   

बैठक में उपस्थित उप श्रम आयुक्तों ने अपनी-अपनी प्रगति को बैठक में रखा और कहा कि अनुपालन में आ रही बाधाओं को दूर कर न्यायिक प्रक्रिया को और अधिक चुस्त दुरूस्त बनाया जायेगा ताकि पत्रकारों को त्वरित न्याय सुलभ हो सके।

बैठक में श्रम एवं सेवायोजन राज्य मंत्री मनोहर लाल (मन्नू कोरी), श्रम आयुक्त अनिल कुमार, निदेशक सूचना डा उज्ज्वल कुमार, विशेष सचिव आरपी सिंह, मण्डलों से आये उप श्रम आयुक्त, सहायक श्रम आयुक्त आदि उपस्थित थे।


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मजीठिया: जागरण पर लगाया 20 हजार का जुर्माना

दैनिक जागरण हिसार के 41 कर्मियों का टेर्मिनेशन का मामला

हिसार के 41 कर्मियों की टर्मिनेशन का 16 A की शिकायत सरकार ने 17 की शक्ति का प्रयोग करते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय आदेशानुसार 6 माह की समय सीमा  के साथ न्यायनिर्णय हेतु लेबर कोर्ट हिसार भेज कर दोनों पक्षो को 29 जनवरी 2018 उपस्थित होने का निर्देश दिया। 2-3 तारीख के बाद न्यायालय के आदेशानुसार हम लोगों ने अपना क्लेम स्टेटमेंट दिया, जब उसका जबाब माँगा गया तो प्रबंधन ने प्लीमिनरी ऑब्जेक्शन लगाते हुए सरकार के रेफरेन्स को गलत बताते हुए केस डिसमिस करने को कहा। जज महोदय ने कहा कि पहले आप क्लेम स्टेटमेंट का जबाब दीजिये, इस दौरान सरकार ने same bearing no और date से रेफरेन्स की संशोधित करके 10 (1) C के तहत भेज दिया। 6वें मौके पर 24 मई को जबाब न मिलने पर एक आखिरी मौका देते हुए प्रबन्धन के वकील से लिखवा लिया कि यदि 31 मई जबाब नही दिया तो डिफेंस struck off होने पर उसे कोई आपत्ति नही होगी।

इस बीच प्रबन्धन हाई कोर्ट में पीटीशन लगाकर रेफरेन्स को चुनौती दी और लेबर कोर्ट की कार्यवाही पर स्टे की मांग की। दोनों जगह 31 मई की तारीख लगी। हाई कोर्ट ने कोई स्टे नही दिया और 23 जुलाई की तारीख लगा दी। इधर लेबर कोर्ट ने 31 मई को प्रबंधन का जबाब न मिलने पर डिफेंस struck off करके कर्मियो की गवाही के लिए 5 जुलाई की तारीख दे दी। परेशान प्रबंधन  23 जुलाई की सुनवाई को प्रीपोन कराने के लिए हाई कोर्ट गया, जो डिसमिस हो गया। दुबारा  फिर हाई कोर्ट में नया केस लगाया, जिसमे लेबर कोर्ट के फाइनल निर्णय सुनाने पर 9 ऑक्टबर तक स्टे लगा। प्रबंधन फिर लेबर कोर्ट के डिफेंस struck off होने पर फिर हाई कोर्ट पहुँचा, जिसकी 30 जुलाई को तारीख थी, माननीय जज ने 20 हज़ार की कॉस्ट लगाते हुए लेबर कोर्ट में जबाब देने का एक अवसर दिया (अभी साइट पर ऑर्डर नही अपलोड हुआ है, कन्फर्म तभी होगा)।

नाम बड़े और दर्शन छोटे :
क्या विडम्बना है?
कहने को चौथा खंभा। बुद्धिजीवियो और संपादकों की फ़ौज इनके पास। इन धृतराष्ट्रों को कौन समझाए?

सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस |
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||

अर्थ : मंत्री, वैद्य और गुरु —ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से (हित की बात न कहकर ) प्रिय बोलते हैं तो (क्रमशः ) राज्य,शरीर एवं धर्म -  इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है|
मेरी तो यही कामना है कि ईश्वर सद्बुद्धि दे।

(बृजेश कुमार पाण्डेय)

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Saturday 28 July 2018

मजीठिया: लेबर कोर्ट में नहीं चली HT की, मिलेंगी छोटी डेट

लखनऊ लेबर कोर्ट से हिन्दुस्तान समूह को बड़ा झटका लगा है। श्रम विभाग को सेट करके केसों को लटकाने में माहिर हिंदुस्तान ग्रुप की लेबर कोर्ट में एक न चली। 27 जुलाई को 12 साथियों की डेट थी।  कर्मचारियों के वकील शरद शुक्ल ने अपनी बात मजबूती से रखी और कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट का मजीठिया मामले में निर्देश है कि ऐसे मामले रेफरेंस डेट से 6 महीने के अंदर निपटाए जाएं। हालांकि हिंदुस्तान के वकील ने ये प्रयास किया कि डेट जल्दी नही लगाई जाए क्योंकि इतने मामलो की तैयारी में टाइम नही मिलेगा। तो जज साहब ने स्पष्ट कर दिया कि इन मामलों में एक हफ्ते से ज्यादा की डेट नही दी जाएगी। शार्ट डेट ही लगेंगी। अगली डेट उन्होंने 1 अगस्त लगा दी है।  इनके अलावा लेबर कोर्ट में 11 अन्य साथियों की डेट 31 जुलाई लगी है। इसके अलावा 40 केस जल्दी ही लेबर कोर्ट और लेबर ट्रिब्यूनल में रेफेर होने वाले हैं।

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Friday 27 July 2018

लेबर कोर्ट में जीता ठेका कर्मी, मिलेगा मजीठिया वेतनमान, कहा- मैं आज लगभग दस साल बाद खुलकर हंसा

पत्रकारिता की अवैध संतान हैं रामकृपाल सिंह, शशि शेखर और उपेंद्र राय 
पीत पत्रकारिता, भ्रष्टाचार और निजी हितों के लिए होनहार पत्रकारों का गला घोंटा
बड़े-बड़े शब्द थूकने वाले ये दलाल किस्म के पत्रकार

मैं आज लगभग दस साल बाद खुलकर हंसा। कारण था, सहारा प्रबंधन के खिलाफ लेबर कोर्ट में केस जीतना। मैंने प्रबंधन को पहले चरण में हरा दिया और इससे मेरा न्याय व्यवस्था पर भरोसा भी बढ़ा। अदालत ने माना कि सहारा ने मेरे साथ अन्याय किया और मेरे वेतन व अन्य मदों मे अनियमिताएं कीं। मैं जानता हूं कि सहारा प्रबंधन हाईकोर्ट जा सकता है, लेकिन मुझे उसकी परवाह नहीं है। आज मैं दिल का गुबार निकाल रहा हूं। शुरुआत अमर उजाला नई दिल्ली संस्करण से। मैंने अमर उजाला में लगभग आठ वर्ष कड़ी मेहनत की। हरियाणा में अमर उजाला को उजाला सुप्रीम का ग्रुप माना जाता था। मारूति आंदोलन में अमर उजाला को एक नई पहचान दिलाने का काम किया। पहली बार मारुति ने किसी हिंदी अखबार को विज्ञापन दिया तो उसका कारण मेरी लेखनी थी, जिस पर मुझे गर्व है। इस आठ साल की नौकरी में अमर उजाला ने मेरा कई बार तबादला किया। जवान था, अपना खून चुसवा रहा था। वर्ष 2004-05 की बात है। अमर उजाला में कारपोरेट कल्चर आ गया। लाये शशि शेखर। राजनीतिक खबरें बंद कर दी गई और कारपोरेट दलाली शुरू। मुझे तब अचम्भा हुआ कि शशि शेखर के बेटे को हीरो होंडा की मोटर साइकिल चाहिए थी, वो उसे फ्री में हासिल करना चाहते थे, लेकिन हाशमी जी जो अब पायनियर हरियाणा के संपादक हैं, ने अच्छा खासा डिस्काउंट दिला दिया। आश्चर्य यह है कि उस मोटरसाइकिल को गुड़गांव से नोएडा पहुंचाने के लिए एक रिपोर्टर को भेजा गया और खर्चा दिखाया गया अमर उजाला के एकाउंट में। ये छोटी सी बात है। अमर उजाला नोएडा में एक थे मनीष मिश्रा। अब संपादक हैं, उनका काम शशि शेखर जी के घर सब्जी पहुंचाने का था। ऐसे पत्रकारों को सबसे अधिक तरक्की मिली और मुझे मिला, 311 रुपये का इंक्रीमेंट। शशि शेखर के आसपास आज भी वही चमचे टाइप संपादक हैं। खैर, मैंने उस इंक्रीमेंट लेटर पर लिखा घोर निंदनीय। तत्कालीन एनसीआर संपादक शम्भूनाथ शुक्ल जी ने मुझे नोएडा तलब कर लिया और कहा, क्यों भगत सिंह बन रहे हो। इस टिप्पणी को हटा दो। बहुत कहने पर मैंने टिप्पणी पर वाइटनर लगाया और साइन कर दिये। तय कर लिया था कि अब अमर उजाला में काम नहीं करना। चार महीने तक रिजाइन लेटर जेब में रखा और नवभारत टाइम्स में परीक्षा देकर गुड़गांव और फरीदाबाद का ब्यूरो चीफ बना दिया गया। संपादक मधुसूदन आनंद बहुत ही सुलझे हुए थे। दिन-रात एनबीटी के एनसीआर एडिशन के लिए कमरतोड़ मेहनत की। कई कई महीनों तक विकली आफ भी नहीं लिया। टाइम्स ग्रुप में ब्रांड सबसे शक्तिशाली होता है। ब्रांड मैनेजर अमन नायर बहुत खुश थे। किस्मत खराब हुई और एनबीटी में इलेक्ट्रानिक मीडिया में गये जुगाडु संपादक रामकृपाल सिंह मधुसूदन आनंद की पीठ पर छुरा भोंकने के आ गये। आपको बता दूं कि रामकृपाल सिंह जिस भी मीडिया में गये, उन्हें गधे की उपाधि दी गई। क्योंकि वो जोड़-तोड़ और राजनीति में ही माहिर थे, पत्रकारिता में नहीं। उनका झुकाव अपने पुराने एक चेले पर था, जो फरीदाबाद ब्यूरो में तैनात था। न पहले किसी काम का था और न ही आज है। रामकृपाल के सत्ता संभालते ही एनबीटी की अच्छी खासी टीम बर्बाद होने लगी। एनसीआर एडिटर अभय किशोर और मुझे परेशान किया जाने लगा। रामकृपाल सिंह मुझे मधुसूदन जी का आदमी मानते थे जबकि मैंने उन्हें बता दिया कि परीक्षा और साक्षात्कार के बाद ही मेरा चयन हुआ। साजिशों का दौर चला। सबसे पहले निशाना मैं बना। अनाप-शनाप आरोप लगे। रामकृपाल सिंह और अमन नायर ने टाइम्स भवन के एक घनघोर अंधेरे कमरे में टेबल लैंप की रोशनी में मुझसे ऐसी पूछताछ की कि जैसे मैं शातिर अपराधी हूं। अमन नायर आज भी टाइम्स में हैं और उनके चेहरे को देख मुझे आज भी आईआईएम के होनहार बच्चों पर तरस आता है कि किस तरह प्रतिभावान होते हुए भी अवसरवादियों के सामने बेबस हो जाते हैं। अमन नायर बेबस थे और रामकृपाल पूरे डिक्टेटर। मुझे कहा गया कि आपके खिलाफ आरोपों की जांच होगी। मैं तैयार हो गया। तीन महीने तक जांच चली और कुछ हासिल नहीं हुआ, तो मुझे तीन महीने के वेतन के साथ इस्तीफा देने का जोर दिया। मैं इतने तनाव में था कि दो लाइन का इस्तीफा दे दिया। तब मैं कोर्ट जाना चाहता था लेकिन 20 साल से अधिक करियर सामने था। मुझे पता था कि यदि कोर्ट गया तो मुझे दूसरे अखबार भी ब्लैक लिस्ट कर देंगे। सो, चुप रहा। नतीजा अच्छा निकला और राष्ट्रीय सहारा में देहरादून में एक पद बड़े यानी चीफ सब एडिटर की नौकरी मिल गयी। देहरादून में सहारा के छह साल संघर्ष में ही बीते। कुछ साथी इसलिए परेशान हो गये कि विधानसभा चुनाव का स्टेट हेड बना दिया गया। कुछ साथी इसलिए नाराज हो गये कि मुंहफट हूं। एक बदतमीज संपादक एलएन शीतल मेरे विरोधियों से मिले और मुझे नौकरी से बेदखल करवाने में जुट गये। लेकिन मैंने ठान लिया था कि एनबीटी वाली गलती अब नहीं करूंगा। यदि पत्रकार अपनी ही लड़ाई नहीं लड़ सकता तो फिर उसके लिए यह पेशा नहीं है। सहाराश्री की करीबी समरीन जैदी मैडम ने मदद की और मेरी नौकरी बच गयी। उपेंद्र राय ने सहारा का बेड़ागर्क किया और सहाराश्री के जेल जाते ही आम कर्मचारियों को परेशान करना शुरू कर दिया। ग्रुप एडिटर उपेंद्र राय अपने चमचों को किसी न किसी तरह से सेलरी या खर्चा दिलवा देते और हम रात दो बजे तक नौकरी करने वालों को वेतन नहंी मिलता। बच्चों की फीस, कमरे का किराया, राशनवाले का उधार और दूध जैसी दैनिक उपयोगी वस्तुओं से भी बेजार हो गये। मैंने विरोध किया तो प्रबंधन ने मेरा कांट्रेक्ट नहीं बढ़ाया। मैं अपना बकाया और मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत पहले श्रम विभाग और फिर लेबर कोर्ट चला गया। इसमें मेरी जीत हुई है, लेकिन हर पत्रकार संघर्ष नहीं कर पाता है क्योंकि हर एक की आर्थिक व पारिवारिक समस्या भिन्न है। यह जीत छोटी सी है और प्रबंधन के रूख का मुझे पता नहंी, लेकिन मेरा दिल आज बहुत खुश है। मैं इस जीत में शशि शेखर, रामकृपाल सिंह और उपेंद्र राय जैसे तुच्छ मानसिकता के संपादकों की हार देख रहा हूं।
(गुणानंद जखमोला)

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Tuesday 24 July 2018

मजीठिया: उप्र के राज्यपाल ने दिया भरोसा, कहा- इस मामले पर जरुरी कदम उठाएंगे


उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रामनाइक ने प्रदेश के पत्रकारों को भरोसा दिलाया है कि मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिश को पूरी तरह लागू कराने के लिये वे जो भी जरुरी कदम होगा  जरुर उठायेंगे। इसके लिये राज्यपाल ने कहा है कि पत्रकार
एजेंडा के साथ उनसे मिलने आयें और इस वेजबोर्ड को लागू कराने में जो भी समस्या आयेगी उसे दूर करने के लिये दखल दिया जायेगा। मुंबई  हिन्दी पत्रकार संघ द्वारा उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रामनाईक से वार्तालाप कार्यक्रम २४ जुलाई को मुंबई प्रेस क्लब के कांफ्रेस हाल  में रखा गया था। इस वार्तालाप कार्यक्रम की अध्यक्षता मुंबई हिन्दी पत्रकार संघ के अध्यक्ष आदित्य दुबे और महासचिव विजय सिंह कौशिक ने की थी। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक से  मजीठिया क्रांतिकारी और मुंबई के पत्रकार शशिकांत सिंह ने सवाल पूछा कि उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के अच्छे दिन कब आयेंगे। माननीय सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बाद भी किसी भी समाचार पत्र प्रतिष्ठान ने जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिश लागू नहीं की।

इस पर राज्यपाल ने कहा कि मैं भरोसा दिलाता हूं कि मजीठिया मामले में माननीय सुप्रीमकोर्ट के आदेश का पालन कराने के लिये जो भी जरुरी दखल होगा वे जरुर उठायेंगे। इसके लिये राज्यपाल ने कहा कि आप एक एजेंडा के साथ मिलिए। एजेंडा के साथ हम पत्रकार संगठनों का भी स्वागत करेंगे। प्रेस कांफ्रेस के बाद राज्यपाल  के एडीसी मेजर जगमीत सिंह ने भी शशिकांत सिंह से मुलाकात की और भरोसा दिया कि आप और पत्रकार संघठन तय कर लें कि कब  मुलाकात करनी है और मेल कर दीजिए मैं मुलाकात का समय तय करा कर आपको अवगत करा दूंगा।
इस अवसर पर भाजपा नेता अमरजीत मिश्र, मुंबई हिन्दी पत्रकार संघ के विनोद यादव  सहित कई पत्रकार मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन ओपी तिवारी ने किया।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआईएक्टीविस्ट
९३२२४११३३५

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Monday 16 July 2018

क्रांतिकारियों ने उठाई सीएम के सामने मजीठिया की आवाज

रेसीडेंसी कोठी में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मजीठिया क्रांतिकारियों को सवाल पूछने का मौका तो नहीं मिला, लेकिन उन्होंने अपना एक ज्ञापन अवश्य सीएम तक पहुंचाने में सफलता प्राप्त की है।
रविवार को इंदौर रेसीडेंसी कोठी में प्रेस कॉन्फ्रेंस की जानकारी शनिवार रात एक वरिष्ठ पत्रकार ने मजीठिया क्रांतिकारियों को देते हुए बताया कि आप अपनी बात इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में रखें। इस पर रात करीब 1 बजे ही मजीठिया क्रांतिकारियों से चर्चा की गई और निष्कर्म निकाला कि हर नेता की प्रेस कॉन्फ्रेंस में अब मजीठिया क्रांतिकारी पहुंचकर मजीठिया की आवाज उठाएंगे।
रविवार को सुबह चार मजीठिया क्रांतिकारी रेसीडेंसी कोठी में पहुंचे। इस दौरान प्रेस कॉन्फ्रेंस में केवल 5 सवाल ही पूछने के बाद मुख्यमंत्री जावरा के लिए रवाना होंगे लगे। इसी बीच एक मजीठिया क्रांतिकारी ने मजीठिया का सवाल दागा, लेकिन सीएम कुछ नहीं कहते हुए खड़े हुए तो उनके हाथ में 2011 से आज तक पत्रकारों को मजीठिया नहीं मिला संबंधी आवेदन दिया गया। ज्ञापन में साफ तौर पर उल्लेख किया गया कि 2011 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद आज तक पत्रकारों से मजीठिया नहीं दिया गया है। मुख्यमंत्री जन आशीर्वाद यात्रा निकालकर अपनी उपलब्धि बता रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्रीजी ने इस तीन कार्यकाल में पत्रकारों के लिए क्या किया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद केन्द्र और राज्य सरकार भाजपा की होने के बावजूद पत्रकारों को आज तक मजीठिया नहीं मिलना सीधे-सीधे भाजपा सरकार की नाकामी है। ज्ञापन में इस बात का भी उल्लेख किया गया कि एक 71 वर्ष से प्रकाशित अखबार में इस वर्ष कर्मचारियों को परेशान करने के लिए इंक्रीमेंट नहीं किया गया।
दोस्तों रविवार से मजीठिया क्रांतिकारियों ने नेताओं के सामने अपनी आवाज उठाना शुरू कर दी है। यह अभियान में सतत चलेगा और निश्चित रूप से पत्रकारों को मजीठिया, पत्रकार सुरक्षा कानून और पत्रकार आवास के लिए आवाज उठाई जाएगी। अब सवाल यह है कि क्या प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल होने वाले पत्रकार साथी मजीठिया क्रांतिकारियों को नेताओं से सवाल पूछने में सहयोग करेंगे।  अगर साथी पत्रकारों और वरिष्ठ पत्रकारों का सवाल पूछने के लिए सहयोग मिला तो मजीठिया की आवाज हर नेता तक पहुंचाई जाएगी।

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Tuesday 3 July 2018

अंबानी के चैनल का पत्रकार बना भू-माफिया!

लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारिता से जुड़े तमाम लोग भले ही बहुत अच्छी स्थिति में न हों, मगर बात जब देश के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी के न्यूज चैनल की हो तो उससे जुड़ा पत्रकार भी दादागिरी के हथकंडे अपना कर खुद को भू-माफिया बनाने में व्यस्त है !

जी हां, यह घटना उत्तर प्रदेश के जिले इलाहाबाद की तहसील सोरांव की है। यहां होलागढ़ थानांतर्गत आने वाले गांव न्यायीपुर के राधाकृष्ण त्रिपाठी, पुत्र- (स्व.) गंगा प्रसाद त्रिपाठी जहां स्वयं को 'न्यूज 18 इंडिया' चैनल का उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड प्रभारी बताते हैं, वहीं अंबानी के चैनल से संबंध रखने का दावा करते हुए उन्हें शासन-प्रशासन की दलाली करने में भी महारत हासिल है। सुना है कि राधाकृष्ण त्रिपाठी इन दिनों पैदल हैं... पूर्व में भी कुछ-एक मीडिया संस्थानों से भगाए जा चुके यह डपोरशंखी पत्रकार अब पत्रकारिता की आड़ में ग्राम समाज सहित अपने सीधे-सादे पड़ोसियों तक की जमीन व उनके मकान कब्जाने में लगे हैं।

सूत्रों की मानें तो अपने दो चचेरे भाइयों- श्यामकृष्ण त्रिपाठी व हरिकृष्ण त्रिपाठी, पुत्र- माता प्रसाद त्रिपाठी के सहारे राधाकृष्ण त्रिपाठी पहले तो ग्राम सभा की जमीन पर बने नए व पुराने मकानों को कब्जा कर लेते हैं, फिर सादे कागज पर अथवा दस रुपए के स्टांप पेपर पर लिखवा कर उसे ही लाख-पचास हजार रुपए में बेच देते हैं। आश्चर्य है कि इसके लिए सामने वाला मान गया तो ठीक, अन्यथा फर्जी मुकदमे में फंसा कर उसे आर्थिक और मानसिक रूप से अपाहिज करवाने का अभियान छेड़ देना भी इन्हें बखूबी आता है ! चर्चा है कि पत्रकारिता की धौंस दिखा कर राधाकृष्ण त्रिपाठी यदि स्थानीय प्रशासन का आसानी से सहयोग पा जाते हैं तो अपने मंसूबे से अब तक दर्जनों लोगों को लाचार करके गांव में इन्होंने अपना दबदबा भी कायम कर लिया है !!

आपको बता दें कि इन दबंग त्रिपाठी बंधुओं की दादागिरी के नए शिकार देवीदत्त त्रिपाठी बन सकते हैं, जो भारत-तिब्बत सीमा पुलिस में सब-इंस्पेक्टर हैं। चूंकि देवीदत्त त्रिपाठी खुद तो परिवार के साथ बाहर रहते हैं और उनके दो भाई भी नौकरी के सिलसिले में गांव से दूर हैं, इसलिए पत्रकार से भू-माफिया बने राधाकृष्ण त्रिपाठी का प्रयास अब देवीदत्त त्रिपाठी का घर कब्जाने का है। अपनी इस कोशिश के तहत अभी 30 जून को देवीदत्त त्रिपाठी के मकान में जब दो राजमिस्त्री और चार मजदूर काम कर रहे थे, राधाकृष्ण त्रिपाठी ने प्रशासन या न्यायालय के आदेश के बिना दोपहर में वहां पहुंच कर न सिर्फ उन्हें काम करने से रोक दिया, अपितु खबर तो यहां तक आ रही है कि देवीदत्त त्रिपाठी के परिजनों ने शांति और समझदारी से काम नहीं लिया होता तो गाली-गलौच पर उतारू राधाकृष्ण त्रिपाठी एंड ब्रदर्स के साथ उनकी मारपीट भी हो सकती थी। इसके बावजूद गिरोहबाज टाइप का यह तथाकथित पत्रकार अब जबकि देवीदत्त त्रिपाठी का घर घेरने की नीयत से उनके मकान के ठीक सामने दीवार उठवाने लगा है, देश की सीमा पर तैनात यह सैनिक अब स्थानीय प्रशासन से मदद एवं न्याय की गुहार लगा रहा है।

देखिए, अंबानी द्वारा अपने सम्मानित चैनल को बदनाम करने वाले पत्रकार (अगर वह है तो) के ऊपर लगाम कब और कैसे लगाई जा सकती है !

-मुंबई से धर्मेन्द्र प्रताप सिंह की रिपोर्ट