Monday 31 August 2020

मजीठिया: गांडीव अखबार के अभय चटर्जी व सत्यप्रकाश ने भी जीता केस

वाराणसी। मजीठिया मामले की लड़ाई लड़ रहे काशी पत्रकार संघ व समाचारपत्र कर्मचारी यूनियन को लगातार सफलता हासिल हो रही है। वाराणसी श्रम न्यायालय ने काशी पत्रकार संघ के सदस्य व गांडीव अखबार के उपसम्पादक अभय चटर्जी के साथ ही वहां के कम्प्यूटर आपरेटर सत्यप्रकाश के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उन्हें मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के अनुसार वेतन देने का आदेश दिया है।

काशी पत्रकार संघ अध्यक्ष राजनाथ तिवारी, महामंत्री मनोज श्रीवास्तव, पूर्व अध्यक्ष प्रदीप कुमार, संजय अस्थाना, विकास पाठक, योगेश गुप्त के साथ ही समाचारपत्र कर्मचारी यूनियन के मंत्री अजय मुखर्जी ने इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा है कि इसके लिए पूरी कार्यसमिति बधाई की पात्र है, जिसकी एकजुटता और संघर्ष का परिणाम है कि लगातार सार्थक नतीजे हासिल हो रहे हैं।

इन दो के साथ ही मजीठिया की लड़ाई में गांडीव के खिलाफ जीत हासिल करने वालों की संख्या अब चार हो चुकी है। काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष विकास पाठक के साथ ही सुशील मिश्र मजीठिया वेज बोर्ड का केस पहले ही जीत चुके हैं।

सांध्य दैनिक गांडीव में अभय चटर्जी वर्ष 1991 से उप सम्पादक पद पर स्थायी रूप से कार्य कर रहे थे, जबकि सत्यप्रकाश कम्प्यूटर आपरेटर के पद पर 1990 से कार्यरत थे। मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के अनुरूप वेतन भुगतान की उनके लगातार मांग करने पर अखबार प्रबंधन टालमटोल करता रहा। बाद में अभय चटर्जी व सत्यप्रकाश की सेवा गांडीव प्रबंधन ने अवैधानिक रूप से समाप्त कर दी।

इस बीच मजीठिया मामले की लड़ाई लड़ रहे काशी पत्रकार संघ ने समाचारपत्र कर्मचारी यूनियन के सहयोग से स्थानीय श्रम न्यायालय में वाद दाखिल किया। वरिष्ठ अधिवक्ता अजय मुखर्जी व उनके सहयोगी आशीष टण्डन की मजबूत पैरवी का नतीजा रहा कि श्रम न्यायालय ने फैसला अभय चटर्जी व सत्यप्रकाश के पक्ष में सुनाया। श्रम न्यायालय के पीठासीन अधिकारी अमेरिका सिंह ने अपने फैसले में अभय चटर्जी व सत्यप्रकाश को  वेतन मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के अनुसार देने का आदेश दिया है। साथ ही यह भी कहा है कि सेवायोजक के ऐसा न करने पर अभिनिर्णय की तिथि से श्रमिक सम्पूर्ण वेतन पर सात प्रतिशत वार्षिक ब्याज पाने का अधिकारी होगा।

शशिकांत सिंह

9322411335

मजीठिया: जल्‍द भेजें ये जानकारी

दोस्तों, सुप्रीमकोर्ट के एडवोकेट उमेश शर्मा ने उन साथियों के लिए एक फार्मेट जारी किया है जिनका जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड के तहत मामला लेबरकोर्ट या हाईकोर्ट में चल रहा है। सभी साथी इस फार्मेट को पूरी तरह भरकर उमेश सर के मेल legalhelplineindia@gmail.com पर भेज दें। इसकी सीसी majithiasmanch@gmail और Majithia.award2011@gmail.com पर अवश्‍य करें। 


FORMAT OF INFORMATION BY MAJITHIA CLAIMANTS

 

Name of the claimant:

 

Contact number :

 

Post on which working:

 

Name and address of the newspaper establishment:

 

Date of filing of claim under Majithia before Labour Office:

 

Date of reference to Labour Court:

 

Stage of case before Labour Court: (Tick anyone)

A. Filing of WS by management

B. Evidence of claimant

C. Evidence of management

D. Arguments

अब कौन लाएगा ग्रुप एडिटर शशि शेखर के घर सब्जी-राशन?


- हिन्दुस्तान से कई संपादक इधर-उधर, कई निकाले गये

- शशि शेखर जिस डाल पर बैठे, वही डाल सूख गयी

हिन्दी हिन्दुस्तान से मेरा गहरा लगाव है। दिल्ली में दिग्गज पत्रकार और हिन्दुस्तान के तत्कालीन संपादक आलोक मेहता और स्व. संतोष तिवारी जी से पत्रकारिता का ककहरा हिन्दुस्तान में ही सीखा। आज हिन्दुस्तान अखबार में डर का माहौल है। धड़ाघड़ लोग निकाले जा रहे हैं। पेजिनेटर, स्ट्रिंगर्स जैसे छोटे-छोटे कर्मचारियों पर गाज गिर रही है। देहरादून से ही तीन-चार लोगों को हटा दिया गया है। इस बीच राहत की बात यह है कि शशि शेखर के निकटस्थ को नौकरी से निकाला जा रहा है या उनका तबादला किया जा रहा है। बरेली के संपादक मनीष मिश्रा का कांट्रेक्ट रिन्यू नहीं किया गया। मिश्रा के बारे में सब जानते हैं कि अमर उजाला के समय से ही वो ग्रुप एडिटर शशि शेखर के घरेलू काम भी करते थे। प्रताप सोमवंशी को भी दिल्ली से दूर कर दिया गया है। बताया जा रहा है कि प्रबंधन की हिट लिस्ट में शशि शेखर के कई निकटस्थों के नाम हैं। सूत्रों का कहना है कि शशि शेखर मूक तमाशा देख रहे हैं और स्वयं उनकी कुर्सी डोल रही है। 


शशि शेखर जब अमर उजाला नोएडा में आए तो सबसे पहले उन्होंने अमर उजाला दिल्ली की मजबूत टीम को बाहर करने का काम किया। वरिष्ठ और नामी पत्रकारों को परेशान कर दिया ताकि एकछत्र राज कर सकें। यही काम उन्होंने आज समाचार पत्र में भी किया था। पहले आज का भट्ठा बिठाया और बाद में अमर उजाला का भट्ठा बिठा दिया जो कि उस चोट से अब तक नहीं उभर सका है। इसके बाद हिन्दुस्तान में चले गए। वहां सबसे पहले चुन-चुन कर ईमानदार पत्रकारों को ठिकाने लगाया। इनमें बहुत से पहाड़ी पत्रकार थे, जिन्हें वो मृणाल पांडे का आदमी समझते थे। इसके बाद उन्होंने अमर उजाला की सेकेंड लाइन यानी चाटुकार पत्रकारों को हिन्दुस्तान में भरा ताकि वो यहां एकछत्र राज कर सकें। शशि शेखर ने हिन्दुस्तान के पत्रकारों को पत्रकार नहीं रहने दिया। आम लोगों को पता नहीं होगा कि हिन्दुस्तान में कोई भी पत्रकार नहीं है बल्कि आउटसोर्स कर्मचारी हैं। इस बदहाली के लिए भी हिन्दी पत्रकारिता शशि शेखर को ही दोषी ठहराया जाएगा कि उन्होंने पत्रकारों को खत्म करने का काम किया। पिछले दस 12 साल में शशि शेखर ने खूब मनमानी की, लेकिन अब संभवतः उनकी नहीं चल रही है। ईमानदार पत्रकारों की हाय जरूर लगेगी, उनकी भी जिनका करियर इन्होंने तबाह किया है।


[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

Saturday 29 August 2020

Journalists and non-journalists unite once again to knock the SC’s door for implementation of the Justice Majithia Wage Board Award during the Corona period

 


The struggle of the Journalists and non-journalists to get the benefit of Majithia Wage Board Award during the Covid-19 lockdown and subsequent unlocking process has completely slowed down.

In most of the states, the work of the courts has not started smoothly and if at all it has started in some places it is moving at a slow pace.


Even in Labour Courts and Labour Commissioner’s Offices same condition prevails. In such situation, this fight will not get the right results, so a decision has been taken to knock the door of honourable Supreme Court on this matter.


One of the SC decisions regarding Majithia Wage Board Award implementation came in June 2017 and an order was passed by the Apex Court to clear the matter going on in the labour courts and labour departments within a time bound duration of 180 days (six months). Despite the order of the honourable SC no matter has been solved in any state. A bunch of RTIs applications to different courts of the states reveal the fact that even after 6 months’ time bond decision, about 99 per cent of the employees have not received the benefit but are simply harassed by the employers.

A public interest litigation (PIL) will be filed in the honourable Supreme Court of India regarding the adamant attitude of the newspaper, magazine owners as they are not giving due importance and respect to the order of the highest court of the country.

The condition of the employees in Covid-19 period has further deteriorated and they are facing the worst time with no help from any corners.

Therefore, all the workers and colleagues fighting the battle of Majithia Award (#MajithiaAward2011) are requested to make their case information available to us as soon as possible so that a suitable action plan can be made.

Whether you are a reporter, photographer, pagemaker, part of the editorial team, machineman, driver or worked/working in any department of a newspaper, whether the case is of recovery (WJA Sec. 17 or 20J) or forced resignation, transfer, or dismissal, retrenchment etc. whether you are from a Hindi newspaper or magazine (India Today, Outlook or any magazine) or Urdu, Punjabi, English, Kannada or any language of the country you are entitled to get the benefit of the #MajithiaAward2011.

Whether your office is in Delhi or Kanyakumari or Chennai or in Jammu and Kashmir or in Karnataka or in Manipur or any other state like Assam, Maharashtra, Nagaland etc., you must send your information to us to fight for your genuine demand.

Whether the case is going on in the Labour Offices or in the Labour Courts or any other courts, whether the matter is of recovery or forced resignation or dismissal you must send in your information to us at email: majithia.award2011@gmail.com  (SEND EMAIL IF YOU NEED FORM IN .DOCX FORMAT)

For this, a form is given below you should also fill this form yourself and along with other friends and colleagues of yours and mail it to us on the following ID: majithia.award2011@gmail.com

For more information contact on number 9431848786.


FORM:-


JOINT PETITION BY HARASSED/RETRENCHED/VICTIMISED EMPLOYEES OF NEWSPAPER ORGANISATIONS FOR TOTAL IMPLEMENTATION OF JUSTICE MAJITHIA WAGEBOARD AWARD 2011 AND REINSTATEMENT OF WORKERS WITH TOTAL BACK WAGES AND CONTINUITY OF SERVICES WITH ALL ATTENDANT BENEFITS 


#MAJITHIA_AWARD_2011

CLAIMED ON: . . . . . . . . . . . .


NAME OF WORKER:

AGE:

DESIGNATION/LAST POST HELD:

DATE OF APPOINTMENT:

DATE OF TRANSFER/TERMINATION/RETRENCHMENT:

NAME/ADDRESS OF EMPLOYER:



WORKING STATION ADDRESS:



CLAIM/CASE FILED AT: (Address with PIN code)




That, I, . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . . . . . . . . .  S/o . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . . , am covered by the recommendations of the Justice Majithia Wage Board Award and as such I am entitled for receiving the pay scale as per the #MajithiaAward2011. The honourable Supreme Court has very clearly ordered in the Contempt Petition (C) No. 411/2014 and in Writ Petition (C) No. 246/2011 that any transfer, termination and retrenchment of workers for demanding wages as per the #MajithiaAward2011 is illegal. The employer/management has grossly violated the order of the Honourable Supreme Court of India and the Competent Authority at the local level has been delaying the matter, which has already exceeded the 180-day deadline fixed by the Honourable Supreme Court of India. 

Most respectfully this is to request you to kindly intervene in to the matter and allow us to join duty with all back wages and salary and interim relief as per the Justice Majithia Wage Board Award. This is also to request you to kindly issue directions to the employer/management to release all our legal dues as per the Justice Majithia Wage Board Award and to do not victimize and harass any employee for demanding #MajithiaAward2011.


REPLY OF MANAGEMENT:

(Attach Evidence) Brief explanations 



Name:

Signature:

Address:



Phone No:

Email:


कोरोना काल में मजीठिया क्रांतिकारियों को राहत दिलाने को SC का दरवाजा खटखटाने की तैयारी, सभी साथी दें ये जानकारी


कोरोना संक्रमण के चलते लगे लॉकडाउन और उसके बाद चल रही अनलॉक की प्रक्रिया में मजीठिया की लड़ाई बहुत धीमी पड़ गई है। कई राज्‍यों में अभी अदालतों का काम सुचारू रूप से शुरू नहीं हुआ है और कहीं शुरू हुआ तो वह मंथर गति से चल रहा है। ऐसे कुछ हालत श्रम आयुक्‍त कार्यालयों (DLC) के भी हैं। ऐसे में ये लड़ाई और लंबी ना जाए इसके लिए एक बार फिर इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दरवाजा खटखटाया जाएगा। 

मजीठिया को लेकर जून 2017 में आए अवमानना के फैसले और उसके बाद 6 महीने के टाइम बांड के बाद भी अभी तक लगभग 99 फीसदी साथियों के फैसले नहीं आए हैं। ऊपर से कोरोना संक्रमण की वजह से उत्‍पन्‍न स्थितियों ने इसको और लेट कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के आर्डर को नहीं मानने पर अड़े अखबार और मैगजीन मालिकों की हठधर्मिता और आज के हालत में कर्मचारियों की दशा को लेकर एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की जाएगी। 

इसलिए मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे सभी साथियों से अनुरोध है कि वे अपने केस की जानकारी जल्‍द से जल्‍द हमें मुहैया करवाएं। केस चाहे श्रम कार्यालय (DLC) में चल रहा हो या लेबर कोर्ट या किसी अन्‍य ऊपरी अदालत में। आप चाहे रिपोर्टर हो, चाहे फोटोग्राफर हो, चाहे पेजमेकर हो, चाहे संपादकीय टीम का हिस्‍सा, चाहे मशीनमैन, चाहे ड्राइवर हो, चाहे किसी भी विभाग के हो। मामला चाहे रिकवरी (WJA Sec. 17) का हो या जबरन इस्‍तीफे, तबादला, बर्खास्‍तगी, छंटनी आदि का। आप चाहे हिंदी के अखबार या मैगजीन (इंडिया टुडे, आउटलुक आदि) से हो या फिर उर्दू, पंजाबी, अंग्रेजी, कन्‍नड़ आदि किसी अन्‍य भाषा से, आप का कार्यालय चाहे दिल्‍ली में हो या कन्‍याकुमारी में या चंडीगढ़ में, या चेन्‍नई में या जम्‍मू-कश्‍मीर में या कर्नाटक में या मणिपुर में या फ‍िर असम, महाराष्‍ट्र, नगालैंड, उत्‍तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा आदि जैसे किसी अन्‍य राज्‍य या केंद्रशासित प्रदेश में, आप अपनी जानकारी हम तक जरूर भेजें। 

इसके अलावा वे साथी भी अपने केस से संबंधित जानकारी दें, जिनके मामले लंबे समय से श्रम कार्यालय (DLC) में दायर हैं और उन्‍हें अभी तक लेबर कोर्ट में रेफर नहीं किया गया है। या फिर जिनके मामले काफी समय पहले श्रम कार्यालय (DLC) से लेबर कोर्ट में रेफर कर दिए गए हैं, परंतु वे अभी तक लिस्टिंग में नहीं आए हैं या वहां तक पहुंचे ही नहीं है। या फिर लेबर कोर्ट के आर्डर करने के बाद वह हाईकोर्ट में है परंतु उसपर आजतक कोई डेट नहीं लगी है, यानि एक भी सुनवाई नहीं हुई है। या फिर किसी अन्‍य अदालत में लंबे समय से बिना सुनवाई के पड़े हुए हैं। या फिर श्रम कार्यालय (DLC)  ने सुप्रीमकोर्ट के जून 2017 के आर्डर की अनदेखी करते हुए लेबर कोर्ट में केस रेफर न करके खुद ही खारिज कर दिया। विशेष तौर पर 20जे को लेकर। या फिर इस केस से संबंधित अन्‍य कोई जानकारी जो आपको जरूरी लगती हो आप हमें दे सकते हैं।  

साथियों, नीचे दिए एक फार्म दिया गया है। इस फार्म को आप खुद भी भरें और दूसरे साथियों से भी भरवाकर हमें निम्‍न आईडी पर मेल करें - majithia.award2011@gmail.com (फार्म की DOCX फाइल लेने के लिए ईमेल पर भी मैसेज भेज सकते हैं)

अधिक जानकारी के लिए इस नंबर 9431848786 पर संपर्क करें। 


फार्म- 

JOINT PETITION BY HARASSED/RETRENCHED/VICTIMISED EMPLOYEES OF NEWSPAPER ORGANISATIONS FOR TOTAL IMPLEMENTATION OF JUSTICE MAJITHIA WAGEBOARD AWARD 2011 AND REINSTATEMENT OF WORKERS WITH TOTAL BACK WAGES AND CONTINUITY OF SERVICES WITH ALL ATTENDANT BENEFITS 


#MAJITHIA_AWARD_2011

CLAIMED ON: . . . . . . . . . . . .


NAME OF WORKER:

AGE:

DESIGNATION/LAST POST HELD:

DATE OF APPOINTMENT:

DATE OF TRANSFER/TERMINATION/RETRENCHMENT:

NAME/ADDRESS OF EMPLOYER:



WORKING STATION ADDRESS:



CLAIM/CASE FILED AT: (Address with PIN code)




That, I, . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . . . . . . . . .  S/o . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . . , am covered by the recommendations of the Justice Majithia Wage Board Award and as such I am entitled for receiving the pay scale as per the #MajithiaAward2011. The honourable Supreme Court has very clearly ordered in the Contempt Petition (C) No. 411/2014 and in Writ Petition (C) No. 246/2011 that any transfer, termination and retrenchment of workers for demanding wages as per the #MajithiaAward2011 is illegal. The employer/management has grossly violated the order of the Honourable Supreme Court of India and the Competent Authority at the local level has been delaying the matter, which has already exceeded the 180-day deadline fixed by the Honourable Supreme Court of India. 

Most respectfully this is to request you to kindly intervene in to the matter and allow us to join duty with all back wages and salary and interim relief as per the Justice Majithia Wage Board Award. This is also to request you to kindly issue directions to the employer/management to release all our legal dues as per the Justice Majithia Wage Board Award and to do not victimize and harass any employee for demanding #MajithiaAward2011.


REPLY OF MANAGEMENT:

(Attach Evidence) Brief explanations 



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काम के दबाव के कारण दैनिक भास्कर के मीडियाकर्मी ने की आत्महत्या

चंडीगढ़ से एक बुरी ख़बर आ रही है। एच आर डिपार्टमेंट के एक कर्मचारी ने सुसाइड कर लिया है।


मीडियाकर्मी का नाम महेश है।


महेश की शादी कुछ समय पहले ही हुई थी। महेश ने एमबीए की पढ़ाई कर रखी थी।


बताया जाता है कि काम के बोझ और नौकरी पर खतरे के कारण महेश ने आत्महत्या की है।


पुलिस मामले की जांच कर रही है। एच आर हेड पूरे मामले की लीपापोती में लगा हुआ है।


विस्तृत विवरण की प्रतीक्षा है।


यह भी कहा जा रहा है कि काम का बोझ जबरन बढ़ाए जाने के कारण महेश ने इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद सुसाइड कर लिया।


[bhadas4media.com से साभार]



Friday 28 August 2020

देहरादून अमर उजाला और हिन्दुस्तान में कोरोना की धमक



- दो डेस्ककर्मियों और एक रिपोर्टर को कोरोना होने की सूचना

देहरादून में हमारे चार साथी मीडियाकर्मियों को कोरोना संक्रमण हो गया है। इनमें दो साथी अमर उजाला के हैं तो एक साथी हिन्दुस्तान का है। इसके अलावा इलेक्ट्रानिक मीडिया के माकेर्टिंग विभाग से जुड़े एक अन्य साथी को भी कोरोना संक्रमण हो गया है। तीन साथी दून अस्पताल तो एक तीलू रौतेली में दाखिल हैं। मैं इन सबके जल्द स्वस्थ होने की कामना करता हूं। सूत्रों का कहना है कि अमर उजाला के कर्मचारियों में भारी डर है।  हिन्दुस्तान में स्थिति बेहतर है। यहां मीडियाकर्मियों को घर से ही रिपोर्ट फाइल करने के लिए कहा गया है। बेहतर है कि सभी साथी पत्रकार रिपोर्टिंग और डेस्क पर काम करते समय सावधानी बरतें। कोरोना किसी को भी हो सकता है, लेकिन हमारी कोशिश बचाव और सावधानी है।

अमर उजाला के कुछ वरिष्ठ साथियों का कहना है कि संस्थान में सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान रखा जा रहा है । गिनती के लोग बुलाए जा रहे हैं और सबको दूर-दूर बिठाया जा रहा है। साथ बैठने या एक जगह खड़े होकर बात करने की मनाही है। संपादक किसी तरह का दबाव नहीं बना रहे। हेड आफिस की गाइडलाइन का पालन हो रहा है।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

लॉकडाउन में वेतन कटौती और छंटनी के सभी मामले एक साथ सुनेगा उच्चतम न्यायालय


देशभर के मीडियाकर्मियों की लॉकडाउन में हुई छंटनी और वेतन कटौती मामले पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को माननीय सुप्रीमकोर्ट ने इस मामले को डायरी नम्बर 10983/2020 से टैग कर दिया। अब दोनों मामलों को एक साथ सुना जाएगा।

डायरी नम्बर 10983 /2020 में इसी तरह के एक मामले की सुनवाई विचाराधीन है। डायरी नम्बर 10983 /2020 की सुनवाई करते हुए सुप्रीमकोर्ट ने निजी नियोक्ताओं, कारखानों, उद्योगों को फौरी राहत देते हुए कहा था कि निजी नियोक्ताओं, कारखानों, उद्योगों के खिलाफ सरकार कोई कठोर कदम नहीं उठाएगी, जो लॉकडाउन के दौरान श्रमिकों को मजदूरी देने में विफल रहे। ये व्‍यवस्‍था देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार के श्रम विभाग वेतन भुगतान के संबंध में कर्मचारियों और नियोक्ताओं के बीच बातचीत करवाएं। मजदूरों को 54 दिन के लॉकडाउन की मजदूरी के भुगतान के लिए बातचीत करनी होगी। उद्योग और मज़दूर संगठन समाधान की कोशिश करें।

इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को 29 मार्च के अपने आदेश की वैधानिकता पर जवाब दाखिल करने के लिए 4 और सप्ताह दिए थे जिसमें सरकार ने मजदूरी के अनिवार्य भुगतान का आदेश दिया था। अगली सुनवाई जुलाई के अंतिम सप्ताह में होनी थी।

अब इन दोनों मामलों को एक साथ सुना जाएगा। आज मीडियाकर्मियों के इस मामले की सुनवाई माननीय सुप्रीमकोर्ट के विद्वान न्यायाधीश जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस सुभाष रेड्डी और एम आर शाह ने किया। इस दौरान मीडियाकर्मियों की तरफ से प्रस्तुत एडवोकेट को संशोधित याचिका पेश करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया गया।


शशिकांत सिंह

पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी

9322411335


Thursday 27 August 2020

कोरोना काल में अखबार मालिकों की करोड़ों की कमाई का गोरखधंधा

आज जो समाचार पत्र प्रकाशित हो रहा है उसका एबीसी (आडिट व्यूरो) की अगले तीन महीने के बाद रिपोर्ट आती है और उसी के आधार पर डीएवीपी द्वारा रेट निर्धारित होता है। अभी जो इन्हें कागज का कोटा और सरकारी  विज्ञापनों का दर निर्धारित है वह पीछे के आडिट रिपोर्ट के आधार पर है। कोरोना के डर से न तो लोग अखबार खरीद रहे हैं और न ही बांटने वाला हाकर अखबार उठा रहा है। जगह जगह अखबारों का पहुंचना पूरी तरह वाहनों के परिचालन रुके होने के चलते बंद है। इस दौर में रद्दी अखबार भी नहीं डिस्पोजल हो सकता। अखबार पांच लाख के जगह पर पांच हजार छप रहा है और विज्ञापन पांच लाख के एवज में मिल रहा है। अखबारों में 80 फीसदी कर्मचारी आउट सोर्सिंग वाले हैं। उन्हें घर बैठा दिया है और कहा कोरोना का लाक डाउन जब हटेगा तब आना। नो वर्क नो पे।वह अलग से नेट सेविंग है।

इधर धरल्ले से सरकार द्वारा मिला रियायती कागज अखबारों के मालिक और मैनेजर ब्लैक में बेच दे रहे हैं और उस राशि का एक छोटा-सा हिस्सा अखवार प्रबंधन अपने बड़े बड़े एजेंटों के नाम से जमा करा रहा है और दावा यह कर रहा है कि अखबार उसके छप और बिक रहे हैं। कागज़ों के इस उलटफेर से केवल 25 करोड़  से अधिक का कारोबार पटना एच‌एमवीएल में होने की खबर है। एच‌एमवीएल के सर्कुलेशन से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि यदि कोरोना की लाक डाउन महीने भर रहा तो मालकीन मैडम का लक्ष्य 50 करोड़ का है जो उन्हें नोटबंदी के समय नुकसान हुआ था, वह भरपाई इससे पूरी हो जाएगी।

अब आपको इस थ्योरी को दूसरे तरह से समझता हूं। अखबार के बिजनेस शुरू करने में कहा जाता है कि अगले दो साल अखबार को स्टेबुल करने में होने वाले घाटे को उसके आरंभिक पूंजी में शामिल करना होता है। आपने अखबार का प्रकाशन शुरू किया। तीन महीने छपे। उसके बाद आडिट रिपोर्ट को अआपने जमा किया।आपका उसके आधार पर डीएवीपी की रिपोर्ट बनी। फिर विज्ञापन की दर तय हुई। उसके अगले तीन में आपका सर्कुलेशन बढ़कर तीन गुना हुआ लेकिन आपका विज्ञापन का रेट वह होगा जो पुराना है। फिर आपका नया आडिट होगा तब दस हजार के आधार पर आप विज्ञापन लेंगे और तीस हजार छापेंगे। इस तरह नए अखबार को अगले दो साल तक जब-तक उसका सर्कुलेशन स्टेबल नहीं हो जाय,घाटे का क्रम चलता है। इसी तरफ जब सर्कुलेशन घटने लगता है तब अखबार जाकर भले बैठ जाएं,तात्कालीक मुनाफे बढ़ जाते हैं।

यहां तो दस हजार अखबार छापकर पांच लाख अखबार का कागज और विज्ञापन दोनों का खेल है। 

अब यह बात उठनी चाहिए कि कोरोना के पीरियड में विज्ञापन और कागज के कोटे और विज्ञापन के दर में कटौती हो।

कोर्ट आर्डर के बाद दैनिक जागरण अपने मीडियाकर्मी को देगा 6 लाख 20 हजार रुपये!



हाई कोर्ट ने जागरण प्रकाशन लिमिटेड को दो माह में 6 लाख 20 हजार रुपये देने का आदेश दिया


जागरण प्रकाशन लिमिटेड इलाहाबाद से एक खबर आ रही है। यहां दैनिक जागरण में जूनियर प्लेट मेकर पद पर कार्यरत राम चरित्र मिश्रा को जीत हासिल हुई है। बताया जाता है कि प्लेट विभाग बन्द होने के बाद जागरण प्रबंधन ने राम चरित्र मिश्रा का प्रताड़ना शुरू कर दिया ताकि वे इस्तीफा देकर चले जाएं।

इस पर राम चरित्र ने श्रम विभाग में अपना मुकदमा फाइल कर दिया।

बताते हैं कि सन 2006 में राम चरित्र मिश्रा की अवैध तरीके से सेवा समाप्ति कर दी गई थी। उन्होंने अपनी लड़ाई जारी रखते हुए श्रम न्यायालय से जीत हासिल की। इस पर जागरण प्रकाशन लिमिटेड ने माननीय हाई कोर्ट में अपील की। यहां पर 4 अगस्त को हाई कोर्ट ने रामचरित्र मिश्रा के पक्ष में फैसला सुनाया।

बताया जाता है कि राम चरित्र मिश्रा को 15 नवंबर 2006 को नौकरी से हटाया गया था। उनके पक्ष में 2012 में फैसला आया। वैसे रामचरित्र मिश्रा कुछ माह पहले सेवा मुक्त हो गए हैं लेकिन वह मजीठिया का भी क्लेम दाखिल करेंगे।

शशिकांत सिंह

पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी

9322411335

‘गांडीव’ से मजीठिया की लड़ाई जीते सुशील मिश्र के मैटर में फैसले की कापी देखें


बनारस के अखबार ‘गांडीव’ के मीडियाकर्मी सुशील मिश्र ने मजीठिया वेज बोर्ड मामले में लड़ाई जीत ली है.

वाराणसी श्रम न्यायालय ने काशी पत्रकार संघ के सदस्य सुशील मिश्र के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उनको सेवा में पुनः बहाल करने के साथ ही उन्हे बेकारी अवधि (लगभग 6 वर्ष) के सम्पूर्ण वेतन व अन्य पावनाओं का भुगतान करने का आदेश दिया है.

काशी पत्रकार संघ व समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन की मजबूत पैरवी से सुशील को ये बड़ी सफलता मिली.

बनारस लेबर कोर्ट के आर्डर की कापी देखें-






मजीठिया युद्ध में विनय सिंह ने ‘आज’ अखबार को दी पटखनी

काशी पत्रकार संघ व समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन को मिली एक और सफलता

वाराणसी। मजीठिया मामले की लड़ाई लड़ रहे काशी पत्रकार संघ व समाचारपत्र कर्मचारी यूनियन को एक और बड़ी सफलता हासिल हुई है। वाराणसी श्रम न्यायालय ने काशी पत्रकार संघ के सदस्य व वरिष्ठ पत्रकार विनय सिंह के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उन्हें मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के अनुसार वेतन देने के साथ ही वर्ष 2008 से आंतरिम भुगतान का भी आदेश दिया है।

काशी पत्रकार संघ अध्यक्ष राजनाथ तिवारी, महामंत्री मनोज श्रीवास्तव, पूर्व अध्यक्ष प्रदीप कुमार, संजय अस्थाना, विकास पाठक के साथ ही समाचारपत्र कर्मचारी यूनियन के मंत्री अजय मुखर्जी ने इस फैसले का स्वागत किया है।

दैनिक ‘आज’ में विनय सिंह वर्ष 1978 से उप सम्पादक पद पर स्थायी रूप से कार्य कर रहे थे और जुलाई 2013 में सेवानिवृत हो गए। इस बीच वह मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के अनुरूप वेतन के साथ ही अंतरिम के भुगतान की लगातार मांग करते रहे पर अखबार प्रबंधन टालमटोल करता रहा। इस बीच मजीठिया मामले की लड़ाई लड़ रहे काशी पत्रकार संघ ने समाचारपत्र कर्मचारी यूनियन के सहयोग से स्थानीय श्रम न्यायालय में वाद दाखिल किया।

वरिष्ठ अधिवक्ता अजय मुखर्जी व उनके सहयोगी आशीष टण्डन की मजबूत पैरवी का नतीजा रहा कि श्रम न्यायालय ने फैसला विनय सिंह के पक्ष में सुनाया।न्यायालय ने वर्ष 2008 से मूल वेतन का 30 प्रतिशत अंतरिम राहत के रुप सिंह को भुगतान करने का आदेश अखबार प्रबंघन को दिया है।

इसके साथ ही श्रम न्यायालय के पीठासीन अधिकारी अमेरिका सिंह ने अपने फैसले में सिंह को नवम्बर 2011 से जुलाई 2013 तक का वेतन मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के अनुसार देने का आदेश दिया है। साथ ही यह भी कहा है कि सेवायोजक के ऐसा न करने पर अभिनिर्णय की तिथि से श्रमिक सम्पूर्ण वेतन पर सात प्रतिशत वार्षिक व्याज पाने का अधिकारी होगा।


शशिकांत सिंह

पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी

9322411335

हिंदुस्तान में भयंकर छंटनी चल रही, एक अन्य संपादक नपा, प्रधान संपादक की नौकरी भी खतरे में!

हिंदुस्तान अखबार में कत्लेआम मचा हुआ है। संपादक से लेकर ट्रेनी तक नापे जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि छंटनी रोकने में हिंदुस्तान के प्रधान संपादक शशि शेखर भी नाकाम है। उन्हें दरकिनार कर दिया गया है। 

लखनऊ के स्थानीय संपादक और कई पत्रकारों को निकाले जाने के बाद सूचना मिली है कि धनबाद संस्करण के संपादक रंजीत कुमार भी कार्यमुक्त कर दिए गए हैं। बताया जा रहा है कि 55 साल से ज्यादा उम्र वाले सभी कर्मियों को जबरन रिटायर कर दिया जाएगा।

रिपोर्टर और डेस्क के साथियों की भी ज़बरदस्त छंटनी होगी। इस पूरी प्रक्रिया में प्रधान संपादक को कंपनी ने दरकिनार कर दिया है। इस मामले में उनकी नहीं सुनी जा रही है। चर्चा है कि वे खुद भी अपनी नौकरी बचा रहे हैं। 

सूत्रों के मुताबिक मेकेनजी कंपनी को कॉस्ट कटिंग का काम सौंपा गया है। इस समय सबसे अधिक पावरफुल मैनेजिंग डायरेक्टर प्रवीण सोमेश्वर हैं। इन्हें एक तरह से ग्रुप सीईओ भी कह सकते हैं। इनके आगे शशि शेखर की भी एक नहीं चलती। 

बताया जा रहा है कि संपादकीय में सीधा दखल प्रवीण सोमेश्वर का ही है। हिन्दुस्तान के डिजिटल एडिशन की ज़िम्मेदारी शशि शेखर से छीन ली गई है। वे सिर्फ कंटेंट देखेंगे। डिजिटल का काम एक नए आए सीईओ के जिम्मे है। इनका नाम पुनीत जैन है जो पेटीएम से आए हैं। बताया जा रहा है कि डिजिटल में कोई छंटनी नहीं होगी। 

[bhadas4media.com से साभार]

लॉकडाउन में मीडिया कर्मियों की छंटनी और वेतन कटौती पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज


देश की सबसे बड़ी अदालत सर्वोच्च न्यायालय में आज कोरोना वायरस महामारी के दौरान कुछ मीडिया संगठनों द्वारा पत्रकारों सहित कर्मचारियों के साथ ‘अमानवीय और गैरकानूनी’ व्यवहार किए जाने के आरोपों पर सुनवाई होगी।

पत्रकारों के संगठनों का आरोप है कि इन मीडिया संस्थानों ने कोविड-19 की वजह से लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को नौकरी से हटाने, वेतन में कटौती करने और उन्हें बिना वेतन के छुट्टी पर जाने के नोटिस दिए।

इससे मामले की सुनवाई जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस बीआर गवई की पीठ करेगी।

पत्रकारों के तीन संगठनों की याचिका पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इस सुनवाई के दौरान केंद्र, इंडियन न्यूजपेपर्स सोसायटी, द न्यूज ब्राडकास्टर्स एसोसिएशन उपस्थित रहेगी। इस मामले में पीठ ने कहा था कि ‘ये मामले ऐसे हैं जिन पर सुनवाई की आवश्यकता है और इसमें कुछ गंभीर मुद्दे उठाए गए हैं।

याचिकाकर्ता नेशनल एलांयस ऑफ जर्नलिस्ट्स, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स और बृहन्मुम्बई यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोन्साल्विस मीडियाकर्मियों का पक्ष रखेंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि कोरोना वायरस का हवाला देते हुए पत्रकारों सहित कर्मचारियों को नौकरी से हटाया जा रहा है और एकतरफा निर्णय लेकर उनके वेतन में कटौती की जा रही है तथा उन्हें अनिश्चित काल के लिए बगैर वेतन के छुट्टी पर भेजा जा रहा है.

इस जनहित याचिका में न्यायालय से अनुरोध किया गया है कि समाचार पत्रों का प्रकाशन करने या डिजिटल मीडिया सहित मीडिया के क्षेत्र में काम करने तथा पत्रकारों और गैर पत्रकारों को नौकरी पर रखने वाले सभी व्यक्तियों को अपने कर्मचारियों को मौखिक या लिखित में दी गई सभी नोटिस अगले आदेश तक तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का निर्देश दिया जाए। इस पूरे मामले पर आज सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई होगी। जिसपर देशभर के मीडियाकर्मियों की नजर होगी।

शशिकांत सिंह

पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी

9322411335

Friday 21 August 2020

मजीठिया मामले में एक और जीत, संपूर्ण वेतन के साथ बहाली का आदेश

काशी पत्रकार संघ व समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन को मिली बड़ी सफलता


गांडीव के सुशील मिश्र की सेवा बहाली के साथ ही 6 वर्ष का वेतन व अन्य पावना देने का आदेश



वाराणसी मजीठिया मामले की लड़ाई लड़ रहे काशी पत्रकार संघ व समाचारपत्र कर्मचारी यूनियन को एक और बड़ी सफलता हासिल हुई है। वाराणसी श्रम न्यायालय ने काशी पत्रकार संघ के सदस्य सुशील मिश्र के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उनको  सेवा में पुनः बहाल करने के साथ ही उन्हे बेकारी अवधि ( लगभग 6 वर्ष) के सम्पूर्ण वेतन व अन्य पावनाओ का भुगतान करने का आदेश दिया है।

वाराणसी से प्रकाशित हिन्दी सांध्य दैनिक गांडीव में श्री सुशील मिश्र वर्ष 1988 से प्रूफ रीडर पद पर स्थायी रूप से कार्य कर रहे थे। मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के अनुरूप वेतन मांगने से नाराज गांडीव प्रबंधन ने नवम्बर 2014 में अवैधानिक तरीके से उनकी सेवा समाप्त कर दी। इस बीच मजीठिया मामले की लड़ाई लड़ रहे काशी पत्रकार संघ ने समाचारपत्र कर्मचारी यूनियन के सहयोग से स्थानीय श्रम न्यायालय में वाद दाखिल किया। संघ के अधिवक्ता अजय मुखर्जी व उनके सहयोगी आशीष टण्डन की मजबूत पैरवी का नतीजा रहा कि श्रम न्यायालय ने फैसला सुशील मिश्र के पक्ष में सुनाया।न्यायालय ने श्री मिश्र की सेवा को पुनः उसी पद पर निर्णय के एक माह के भीतर बहाल करने। बेकारी अवधि (नवम्बर 2014 से अब तक ) के सम्पूर्ण वेतन के साथ ही अन्य समस्त लाभों का भुगतान करने व वाद व्यय का एक हजार रुपया भी देने का सेवायोजक (गांडीव प्रबंधन) को आदेश दिया है। अपने आदेश में श्रम न्यायालय के पीठासीन अधिकारी अमेरिका सिंह ने यह भी कहा है कि सेवायोजक के ऐसा न करने पर अभिनिर्णय की तिथी से श्रमिक सम्पूर्ण वेतन पर सात प्रतिशत वार्षिक व्याज पाने का अधिकारी होगा। काशी पत्रकार संघ के अध्यक्ष राजनाथ तिवारी, महामंत्री मनोज श्रीवास्तव ने श्रम न्यायालय के इस निर्णय का स्वागत करते हुए इसे संघ के प्रत्येक सदस्यों की जीत बताया है। साथ ही कहा है कि इस निर्णय से सीख लेते हुए अन्य अखबारों के प्रबंघन को चाहिए कि वह अपने यहां मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को पूरी तरह लागू करने के साथ ही इसकी मांग करने वाले पत्रकारों, कर्मियों का उत्पीड़न बंद करें। समाचारपत्र कर्मचारी यूनियन के मंत्री अजय मुखर्जी ने कहा है कि इस निर्णय ने यह साबित कर दिया है कि समाचारपत्र प्रबंधन चाहे जितनी भी मनमानी कर ले पर जीत अंततः न्याय की ही होगी । काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप कुमार, संजय अस्थाना, विकास पाठक ने भी इस फैसले का स्वागत किया है। साथ ही कहा है कि यह जीत पत्रकारो की एकता का प्रतीक है।

Thursday 20 August 2020

हिमाचल में मजीठिया वेजबोर्ड की मॉनिटरिंग को त्रिपक्षीय कमेटी गठित


मजीठिया क्रांतिकारी रविंद्र अग्रवाल के प्रयासों से मिली सफलता

शिमला,20 अगस्‍त। हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्‍य के पत्रकार और गैर पत्रकार अखबार कर्मचारियों के लिए 11 नवंबर 2011 को अधिसूचित मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों को लागू किए जाने और प्रगति पर नजर रखने के लिए पहली बार त्रिपक्षीय कमेटी का गठन करने की अधिसूचना जारी की है। इसमें हिमाचल के वरिष्‍ठ पत्रकार एवं मजीठिया क्रांतिकारी रविंद्र अग्रवाल को भी सदस्‍य बनाया गया है। ज्ञात रहे कि इस कमेटी का गठन भी रविंद्र अग्रवाल के प्रयासों से ही संभव हो पाया है। रविंद्र अग्रवाल न्‍यूजपेपर इम्‍प्‍लाइज यूनियन ऑफ इंडिया के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष भी हैं और वर्ष 2014 से मजीठिया वेजबोर्ड के तहत वेतनमान लागू किए जाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्‍होंने प्रदेश में मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों को लागू किए जाने को लेकर श्रम विभाग के आला अधिकारियों के समक्ष अखबार कर्मचारियों का पक्ष पूरी दृढ़ता के साथ रखा है और उनकी इसी मेहनत का नतीजा है कि आखिरकार प्रदेश सरकार को मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों को लागू किए जाने की मॉनिटरिंग के लिए त्रिपक्षीय कमेटी का गठन करना पड़ा है।

प्राप्‍त जानकारी के अनुसार 07 अगस्‍त 2020 को प्रदेश के श्रम एवं रोजगार विभाग के प्रधान सचिव (श्रम एवं रोजगार) केके पंत ने प्रदेश के राज्‍यपाल के माध्‍यम से इस त्रिपक्षीय कमेटी के गठन के आदेश जारी किए हैं। इन आदेशों के तहत कमेटी के आधिकारिक सदस्‍य के तौर पर शामिल हिमाचल प्रदेश के श्रमायुक्‍त इस कमेटी के अध्‍यक्ष भी होंगे, वहीं दूसरा आधिकारिक सदस्‍य निदेशक, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग को बनाया गया है। नियोक्‍ता पक्ष (गैर आधिकारिक) की ओर से चार सदस्‍य बनाए गए हैं।  इनमें अमर उजाला हिमाचल के शिमला स्‍थित संपादक और द ट्रिब्‍यून के चंडिगढ़ स्‍थित संपादक सहित हिमाचल दस्‍तक के शिमला स्‍थित राज्‍य ब्‍यूरो प्रमुख राजेश मंढोत्रा और दिव्‍य हिमाचल के शिमला स्‍थित राज्‍य ब्‍यूरो प्रमुख मस्‍त राम डलैल शामिल हैं। वहीं श्रमिक प्रतिनिधि, पत्रकार और गैर पत्रकार पक्ष की ओर से पांच सदस्‍य बनाए गए हैं। इनमें हिमाचल प्रदेश यूनियन आफ जर्नलिस्‍ट (इंडिया) के प्रदेश अध्‍यक्ष बीरबल शर्मा और महासचिव सुरेंद्र शर्मा, दैनिक जागरण के शिमला स्‍थित राज्‍य ब्‍यूरो प्रमुख प्रकाश भारद्वाज, न्‍यूजपेपर इम्‍पलाइज यूनियन ऑफ इंडिया के अध्‍यक्ष रविंद्र अग्रवाल और दिव्‍य हिमाचल के गैरपत्रकार कर्मचारी मनोज गर्ग शामिल हैं। यह अधिसूचना 14 अगस्‍त को राजपत्र में प्रकाशित हो चुकी है। इसके तहत इस कमेटी का कार्यकाल अधिसूचना जारी होने की तिथि से तीन वर्ष तक का होगा। यह कमेटी छह माह में कम से कम एक बार बैठा करेगी।



त्रिपक्षीय कमेटी के गठन को लेकर वरिष्‍ठ पत्रकार रविंद्र अग्रवाल को श्रम विभाग के अधिकारियों की ओर से जारी पत्र


 

उधर, इस त्रिपक्षीय कमेटी के सदस्‍य एवं वरिष्‍ठ पत्रकार रविंद्र अग्रवाल ने बताया कि इस कमेटी के बनने से मजीठिया वेजबोर्ड को लागू करवाने के उनके प्रयासों को और मजबूती मिलेगी। उन्‍होंने कहा कि इस कमेटी में वे हिमाचल प्रदेश के अखबार कर्मचारियों का पक्ष पूरी मजबूती से रखेंगे और मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारियों को केंद्र सरकार की नोटिफिकेशन एवं माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय के आदेशों के तहत लागू करवाने का प्रयास किया जाएगा। उन्‍होंने इस त्रिपक्षीय कमेटी के गठन के लिए मुख्‍यमंत्री जयराम ठाकुर, श्रम एवं रोजगार मंत्री विक्रम सिंह ठाकुर, प्रधान सचिव(श्रम एवं रोजगार) केके पंत, श्रमायुक्‍त एसएस गुलेरिया और उप-श्रमायुक्‍त आरपी राणा का आभार व्‍यक्‍त किया है।  


मजदूरी का भुगतान न करना श्रमिकों के जीवन के अधिकार का उल्लंघन है: बॉम्बे हाई कोर्ट


मुंबई। श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान करने में देरी या वेतन न देना संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा प्रदत्त जीवन के उनके अधिकार का उल्लंघन है। यह बात बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुधवार को कही।

जस्टिस उज्जल भुयान और एन आर बोरकर की पीठ ने यह बात उस समय कही जब एक कंपनी को आदेश दिया कि वह लॉकडाउन के दौरान वेतन का भुगतान करे।

रायगढ़ में एक इस्पात कारखाने के लगभग 150 श्रमिकों ने अपनी यूनियन के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में कोरोनोवायरस महामारी को देखते हुए सुरक्षा उपायों को लागू करने के लिए कारखाने को दिशा-निर्देश देने की भी मांग की।

कंपनी ने वरिष्ठ वकील गायत्री सिंह के माध्यम से दायर याचिका में कहा कि मार्च, अप्रैल और मई में मजदूरों को आधे से कम मजदूरी का भुगतान किया गया था।

इसके अलावा, लॉकडाउन से पहले कंपनी ने उन्हें दिसंबर, जनवरी और फरवरी के लिए मजदूरी का भुगतान नहीं किया।

हालांकि उन्हें लॉकडाउन लागू होने के बाद मार्च में काम बंद रखने के लिए कहा गया था, लेकिन बाद में कारखाना फिर से खुल गया।

याचिका में कहा गया है कि महामारी के मद्देनजर सुरक्षा उपायों को लागू नहीं किया गया और न ही सार्वजनिक परिवहन के अभाव के बावजूद कारखाने से श्रमिकों को आने जाने के लिए कोई व्यवस्था की गई। परिणामस्वरूप, कई मजदूर काम को फिर से करने में असमर्थ हैं।

याचिका में कहा गया है कि श्रमिकों और फैक्ट्री मालिकों के बीच विवाद के कारण भुगतान में देरी हुई। याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि इस साल मई में हाईकोर्ट ने कारखाने के मालिकों को निर्देश दिया था कि तालाबंदी से पहले के महीनों के लिए श्रमिकों को उनका बकाया भुगतान करें, लेकिन कोई भुगतान नहीं किया गया था।

फैक्ट्री मालिकों ने हालांकि आरोपों का खंडन किया और कहा कि यूनियन उनके साथ एक अनौपचारिक समझौता की थी, जिसके तहत श्रमिकों को किश्तों में उनके बकाये का भुगतान किया गया था।

अदालत ने माना कि याचिकाकर्ताओं को अनौपचारिक समझौता के आधार पर उनके वेतन से वंचित नहीं किया जा सकता है।


शशिकांत सिंह

पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी

9322411335



सुनवाई के दौरान गायब रहा राजस्थान पत्रिका प्रबंधन, लगी फटकार

अगली तारीख में हाजिर रहने का निर्देश

लॉकडाउन के दौरान मुंबई से अपने संपादकीय समेत कॉरपोरेट ऑफिस को अचानक बंद करके गायब हुए राजस्थान पत्रिका प्रबंधन को सुनवाई में उपस्थित न रहने पर महाराष्ट्र कामगार आयुक्त की ओर से बुधवार को फटकार लगाई गई और साथ ही अगली तारीख में बांद्रा स्थित कार्यालय में उपस्थित रहने के निर्देश भी दिए गए।

दरअसल कोरोनावायरस के दौरान लॉकडाउन के समय राजस्थान पत्रिका प्रा. लि. प्रबंधन मुम्बई से अचानक अपने सभी ऑफिस में ताला लगाकर फरार हो गया था, जिसे लेकर पिछले करीब 6 वर्षो से ‘राजस्थान पत्रिका’ के मुंबई ब्यूरो में कार्यरत विशेष प्रतिनिधि रोहित कुमार तिवारी ने न्याय पाने के लिए महाराष्ट्र कामगार आयुक्त के यहां शिकायत की थी। वहीं कामगार आयुक्त कार्यालय के असिस्टेंट कमिश्नर आनंद भोसले ने राजस्थान पत्रिका प्रबंधन की ओर से 19 अगस्त को तारीख पर किसी के हाजिर न होने पर प्रबंधन के सीनियर जनरल मैनेजर रघुनाथ सिंह को फोन किया। पत्रिका प्रबंधन की तरफ से कोरोनावायरस का हवाला दिया गया। इस पर असिस्टेंट कमिश्नर भोसले ने उन्हें फटकार लगाई और अगली तारीख 9 सितंबर को समस्त कागजात समेत हाजिर रहने का निर्देश दिया।

गौरतलब है कि वर्षों से राजस्थान पत्रिका प्राइवेट लिमिटेड के मुंबई ब्यूरो कार्यालय में कार्यरत रोहित तिवारी को देश में फैली महामारी को लेकर जारी लॉकडाउन के दौरान प्रबंधन द्वारा अचानक न सिर्फ परेशान किया गया, बल्कि उन पर अपना फुल एंड फाइनल हिसाब करने का भी दबाव बनाया गया। सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र कामगार आयुक्त कार्यालय में असिस्टेंट कमिश्नर आनंद भोसले के समक्ष नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स महाराष्ट्र की अध्यक्ष शीतल करदेकर और पत्रकार रोहित तिवारी के अलावा कामगार कार्यालय की भिसे और भारती मैडम भी उपस्थित थीं।

इस पर असिस्टेंट लेबर कमिश्नर की ओर से पत्रकार रोहित तिवारी को मजीठिया वेज बोर्ड के तहत बकाया देने समेत उन्हें पूर्व की तरह पुनः काम पर रखने की नोटिस पर सुनवाई की गई। अब इस मामले की अगली सुनवाई को तारीख 9 सितंबर निर्धारित की गई है। देखना दिलचस्प होगा कि हजारों पत्रकारों को बेरोजगार करने वाला राजस्थान पत्रिका प्रबंधन इस मामले में किस तरह के हथकंडे अपनाता है।


शशिकांत सिंह

पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी

9322411335

Tuesday 4 August 2020

खत्म होती पत्रकारिता और गैंग में बंटे पत्रकार


- एजेंडा पत्रकारिता ने मीडिया को लाइजनर बना दिया

- वास्तविक पत्रकारिता अब केवल सोशल मीडिया पर

उत्तराखंड के मीडिया जगत में इन दिनों जो कुछ चल रहा है वह नेशनल मीडिया की प्रतिछाया मात्र है। उत्तराखंड में केरल के बाद सबसे अधिक साक्षरता है लेकिन साक्षरता का आकलन बुद्धिमानी से नहीं किया जा सकता है। साक्षर होने का अर्थ यह नहीं लगाया जा सकता है कि लोग बहुत पढ़े-लिखे हैं। बस हस्ताक्षर करना जानते हैं। यही हाल यहां के मीडिया का है। अध-कचरा ज्ञान, सड़ी-गली हिन्दी और बेहद कमजोर अंग्रेजी का ज्ञान, दिमाग में खुराफात और मेहनत किए बिना जल्द ही बहुत बड़ा और नामी पत्रकार बनने की चाहत लिए हैं यहां के अधिकांश पत्रकार। कुंए के मेढ़क की तरह अपने को बड़ा और बडे़ पत्रकार समझने वालों की यहां कोई कमी नहीं है। मैं देहरादून के दर्जनों ऐसे पत्रकारों को जानता हूं जो छुटमुलपुर या सहारनपुर तक भी नहीं गए। न ही उन्हें पहाड़ की समझ है और न यहां के मुद्दों की। लेकिन अंदर फट्टा गारमेंट पहन आंखों पर चश्मा लगा गर्दन अकड़ा कर चलते हैं और कहते हैं कि पत्रकार हैं। देहरादून के मुख्यधारा की मीडिया में इस तरह के दिमागी दिवालियेपन के शिकार पत्रकारों की एक बड़ी भीड़ है।

मैं पिछले दस साल से यहां के मुख्यधारा के तथाकथित बड़े पत्रकारों को देख रहा हूं, गिने-चुने पत्रकारों को छोड़कर कोई एक ढंग की स्टोरी या याद करने लायक स्टोरी नहीं निकाल सका है क्योंकि उनकी पत्रकारिता प्रेस नोट के इर्द-गिर्द घूमती है। स्‍पॉट रिपोर्टिंग, फेक्ट फाइंडिंग, एसआईटी, स्कूप या सीरीज स्टोरीज से इनका कोई लेना-देना नहीं हैं। उनका एकसूत्रीय एजेंडा है कि मालिकों के लिए सत्ता पक्ष के साथ लाइजिंग करना। सुबह अखबार या टीवी देखो तो पत्रकारिता कम और डाकिया का काम अधिक लगता है। जो पत्रकार कुछ करना भी चाहते हैं तो डीएनई, एनई या संपादक या मालिक उनका खुमार उतार देते हैं। यही हाल इलेक्ट्रानिक मीडिया का है। पांच-दस हजार रुपये पगार पाने वाला स्ट्रिंगर खुद ही कैमरा भी चलाएगा और पीटू भी करेगा। ऐसे में उसका ध्यान पत्रकारिता से कहीं अधिक लिफाफे पर होता है जिसमें प्रेस नोट के साथ गांधीजी की पावर होती है। यह उसकी मजबूरी भी है और निकम्मापन भी।

इस दौर में जब लोकतंत्र में एक ओर तंत्र है और दूसरी ओर लोक। तो मीडिया की भूमिका अहम होनी चाहिए थी, लेकिन मीडिया स्पष्ट तौर पर बंट गया है। मीडिया एजेंडा पत्रकारिता कर रहा है। यानी गैंग में बंट गया है। इन दिनों उत्तराखंड में पत्रकारों के बीच गैंगवार सा छिड़ा हुआ है। दो ग्रुप बन गए हैं सत्ता पक्ष और सत्ता के खिलाफ। इस गैंगवार के बीच जनता और जनपक्षधरता हाशिए पर चली गई है। एजेंड़ा पत्रकारिता में मुद्दे गौण हैं और पक्षधरता हावी हो गई है।

निश्चित तौर पर एजेंडा पत्रकारिता कर रहे एक ग्रुप को लाभ हो रहा है और दूसरे को नुकसान। पर गैंग तो गैंग है। सभी जानते हैं कि मुख्यधारा का मीडिया अब सरकारी भौंपू बनकर रहा गया है। पृथ्वीराज रासौ लिखने वाले चदबरदाई टाइप चारण, जो राजा के गीत गाए और राजदरबारी कहलाए। असल पत्रकारिता अब सोशल मीडिया पर हो रही है, इसलिए गैंगवार का कारण भी सोशल मीडिया है। मुख्यधारा के पत्रकारों की बेचैनी भी यही है। लोग झूठ को करीने से परोसने वाले न्यूज चैनलों पर होने वाली गुंडा-गिर्दी, अभद्रता, छदम युद्ध, महिमा मंडन और व्यक्ति पुराण से उबकाई करने लगे हैं। अधिकांश अच्छे और नामी पत्रकारों ने अखबार पढ़ने बंद कर दिए हैं और टीवी देखना छोड़ दिया है। उनका समय अब सोशल मीडिया पर बीतता है और उनके विचार भी वहीं नजर आते हैं। दरअसल, रियल जर्नलिज्म अब सोशल मीडिया पर ही हो रहा है। सोशल मीडिया परं साख बन और बिगड़ रही हैं।

टीवी न्यूज चैनल और मुख्यधारा के अखबारों ने जिस तेजी के साथ जनता का साथ छोड़ कर सत्ता का दामन थामा है, जनता उससे भी अधिक तेजी से चैनल और अखबारों का साथ छोड़ रहे हैं। मुख्यधारा के अखबार भले ही एबीसी की झूठी रिपोर्ट दिखा रहे हों लेकिन सच यही है कि उनकी प्रसार संख्या तेजी से घट रही है, तो टीआरपी में उत्तराखंड-यूपी के सभी चैनलों की वाट लग रही है। कारण, मीडिया ने अपनी विश्वसनीयता खो दी है। या तेजी से खो रही है। लोग अब खबर को खबर मानने को तैयार नहीं है। उन्हें लग रहा है कि वो अखबार या वो चैनल बता रहा है तो उन्हें वो न्यूज बायस लगती है, चाहे वो सच्ची हो। लोगों की यह धारणा मीडिया के लिए सबसे खतरनाक है। खतरनाक बात यह भी है कुछ पत्रकार अच्छे हैं, तटस्थ हैं, लेकिन सब देख चुप हैं। यह चुप्पी भी खतरनाक है।

उत्तराखंड के पत्रकारों की कहानी उस मासूम कबूतर जैसी हो गई है जो बिल्ली को देख आंख बंद कर देता है कि खतरा टल गया है। दरअसल, खतरा अब शुरू हुआ है। यदि यह गैंगवार जारी रहेगी तो देखना सत्ता में कोई भी हो, और कोई भी सत्ता में आए, हर हाल में पत्रकार ही मारा जाएगा। खतरा सबको है। अंतर यह है कि आज मेरी बारी-कल तेरी बारी। लेकिन समझाएं तो किसे? कुछ पावर के नशे में हैं तो कुछ पावर की तलाश में। यही तथाकथित पावर उनका भ्रम है।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]