Sunday 25 April 2021

राष्ट्रीय हिंदी दैनिक की धर्मशाला ईकाई में नहीं कोरोना प्रोटोकॉल!



धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश)। कोरोना महामारी जिस विकरालता के साथ भयावह होती जा रही है, इससे बचाव के लिए उतनी ही सतर्कता और सुरक्षात्मक उपायों पर जोर दिया जाना भी जरूरी है। मगर हालात कुछ ऐसे हैं कि हर सुबह देश-दुनिया की खबरों खासकर करोना संक्रमितों और इसके कारण हुई मौतों के आंकड़ों के साथ से लोगों को जागरूक करने का काम करने वाले मीडिया संस्थान खुद इसके प्रति लापरवाह हैं। कोरोना संक्रमण के प्रति इनकी लापरवाही का ताजा उदाहरण देश के 11 राज्यों से प्रकाशित होने वाले प्रमुख हिंदी समाचार पत्र के हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा (धर्मशाला) स्थित प्रकाशन केंद्र में सामने आ रही है। सूत्रों के अनुसार गत 17 अप्रैल को संपादकीय विभाग के दो साथी कोपॉजिटिव पाए गए हैं। 


लापरवाही की हद देखिये संपादकीय विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पहला केस सामने आने के 18 घंटे तक इसकी जानकारी न ही राज्य संपादक को दी और न ही प्रकाशन केंद्र प्रमुख को। जब इसकी जानकारी राज्य संपादक को हुई तो उन्होंने उक्त अधिकारी को फटकार लगाई। मगर विडंबना यह है कि राज्य संपादक भी फटकार लगाने के बाद शांत हो गए हालांकि उन्होंने यूनिट प्रबंधक को जानकारी तो दी लेकिन कोरोना प्रोटोकॉल का दायित्व निभाने की जिम्मेदारी से वह भी पीछे हट गए। यह और बात है कि अपने लेखों में आए दिन वह कोरोना प्रोटोकॉल का ज्ञान जरूर बांटते रहते हैं। 


अखबार प्रबंधन ने इससे कोई सबक नहीं लिया। न तो अन्य कर्मचारियों की कोरोना जांच के लिए कोई कदम उठाया है और न कोरोना प्रोटोकॉल का दायित्व निभाने में कोई दिलचस्पी दिखाई है। नतीजा यह हुआ कि एक और संपादकीय साथी कोरोना पाजिटिव पाया गया। अब भी प्रबंधन ने कोई एहतियात नहीं बरती है। सूत्र बताते हैं कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि अखबार प्रबंधन यूनिट को माइक्रो कंटेनमेंट जोन घोषित किए जाने के डर से ग्रसित हो गया है। अन्य कर्मचारियों की जान को भी खतरे में डालने से गुरेज नहीं किया जा रहा। कोरोना काल में मीडिया कर्मियों ने वॉरियर्स की भूमिका बखूबी निभाई थी, लेकिन आज जो हालात एक प्रकाशन केंद्र में बने हैं उसकी गंभीरता को कब तक आर्थिक नुकसान के तराजू में तोल कर किसी की जान से खिलवाड़ किया जाता रहेगा।

कोरोनाः लॉकडाउन में महाराष्ट्र के पत्रकारों को लोकल ट्रेन में आने-जाने की अनुमति मिले, मीडियाकर्मियों की वेतन कटौती बंद हो



एनईयूआई ने लिखा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को पत्र 

महाराष्ट्र में कोरोना लॉकडाउन के दौरान राज्य के पत्रकारों और समाचार पत्र कर्मियों को सरकार की ओर से लोकल ट्रेन में जाने इजाजत नहीं है। इस कारण मीडियाकर्मियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। वहीं नौकरी बचाने के लिए मीडियाकर्मियों को सैकड़ों रुपये फूँक कर और घंटो बर्बाद कर कार्यालय आना-जाना पड़ रहा है। यही नहीं मीडिया हाऊस सरकार के उस आदेश का भी पालन नहीं कर रहे, जिसके तहत कोरोना महामारी से बचने के लिए वर्क फ्रार्म होम लागू किया गया है। प्रदेश में जहां सरकार व निजी आफिसों में 15 प्रतिशत कर्मचारियों से ही काम लिए जाने का आदेश है, तो वहीं कई समाचार पत्र या तो सभी कर्मचारियों को कार्यालय आने को बाध्‍य कर रहे हैं या फिर इन आदेशों की आड़ में अपने कर्मचारियों को कार्यालय न बुलाकर उनकी वेतन कटौती कर रहे हैं। इससे मीडियाकर्मी काफी तनाव में हैं। उनके सामने आर्थिक दिक्कत भी आ खड़ी हुई है। इस स्‍थिति पर न्यूज़ पेपर इम्प्लॉयज यूनियन ऑफ इंडिया (एनईयूआई) ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री तथा मुख्य सचिव को पत्र लिखकर मांग की है कि जल्द से जल्द महाराष्ट्र के मीडियाकर्मियों और अखबारकर्मचारियों को लोकल ट्रेन में आने जाने की अनुमति दी जाए। मुख्यमंत्री को मेल से भेजे गए इस पत्र में एनईयूआई के अध्‍यक्ष रविन्द्र अग्रवाल और महासचिव धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने कहा है कि लॉकडाउन में मुम्बई, ठाणे, नई मुम्बई और पालघर सहित पूरे महाराष्ट्र में पत्रकारों और समाचार पत्र कर्मियों को लोकल ट्रेन में आने-जाने की अनुमति नहीं दी गई है। इसके कारण समाचार पत्र कर्मचारियों और पत्रकारों को कार्यालय आने-जाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही कई समाचार पत्र संस्थान अपने कर्मचारियों की वेतन कटौती भी कर रहे हैं। मीडियाकर्मियों की स्थिति ये है कि कई समाचार पत्र संस्थान अपने कर्मचारियों से वर्क फ्रॉम होम नियम का भी पालन नहीं कर रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि एक तरफ तो पत्रकारों ओर मीडियाकर्मियों को कारोना वारियर्स कहा जाता है, तो दूसरी तरफ इस तरह से उनके साथ भेदभाव करके उनके लिए दिक्‍कतें खड़ी कर दी गई हैं। 


यूनियन ने महराष्‍ट्र सरकार से आग्रह किया है कि जल्द से जल्द महाराष्ट्र के पत्रकारों और समाचार पत्र कर्मियों को उनका परिचय पत्र दिखाकर उचित टिकट या मासिक पास जारी करते हुए लोकल ट्रेन से कार्यालय आने जाने की अनुमति देने की कृपा करें। साथ ही सभी समाचार पत्र संस्थानों को ये निर्देश दें कि वे लॉकडाउन में वर्क फ्रार्म होम नियम का पालन करें और अपने सभी कर्मचारियों को पूरा वेतन दिया जाए। 


Saturday 24 April 2021

Remembering Comrade Santosh Kumar


In the death of Com. Santosh Kumar (he always preferred to be called Comrade), today at the ripe old age of 94, the trade union movement of newspaper employees have suffered a huge loss. He is survived by his daughter and her family. He lived throughout his life in a refugee colony, which was allotted to him when he came to Delhi from Lahore after the partition of the country. With the death of his young son and later of his wife, he was a totally devastated person but his enthusiasm to participate in any struggle of workers remained undiminished.  

He was the President of the All-India Newspaper EmployeesFederation (AINEF) after the death of the veteran CPI leader S Y Kolhatkar. He was the Secretary-General of the Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) and led to many struggles of newspaper employees. One might have disagreed with Comrade Kumar, but he never had any personal animosity or rancour with anybody. Proficient in Hindi, Urdu, and English, he retired as the news editor from the Urdu daily Pratap. A Kashmiri by origin Comrade Santosh Kumar Gurtu was born in Lahore in 1927. Besides, journalism and trade unionism, he had in-depth knowledge of the Hindu religion. He despised superstations and laid emphasis on the rationality and morality of the religion. Widely travelled Com Santosh Kumar has written many books. His book ‘LahoreNama’ provides a vivid picture of the historical city of Lahore of the pre-partition days.

The grief and sorrow in tearing down the great culture of Lahore by the successive communal and bigoted governments of Pakistan are pensively reflected in the book. The posterity of journalists, opinion-makers, politicians, and diplomats will, without doubt, continue to be benefitted from the travelogue Lahore Nama. Although Comrade Santosh Kumar was the cardholder of the Communist Party of India, yet he never kowtowed with politicians, as he lived a saintly life. He used to regularly attend the joint meetings of the different media trade unions and everyone used to listen to him seriously. Alas! Now he will be no more available to guide and benefit us. Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) dips its banner to mourn the passing away of one of its former Secretary- Generals. We pray to God to give him rebirth to lead the working class, which was most dear to his heart.

Parmanand Pandey

Wednesday 21 April 2021

हजारों लोगों को न्याय दिलाने वाले आशीष अग्रवाल खुद सिस्टम से हार मानकर दुनिया से चल बसे

 


सरकारी सिस्टम से जूझते हुए दुनिया को अलविदा कह गए कैंसरग्रस्त पत्रकार आशीष अग्रवाल



उत्तर प्रदेश के रुहेलखंड डिवीजन और उत्तराखंड की पत्रकारिता में एक बड़ा नाम आशीष अग्रवाल, जिन्हें उनके सभी अपने अजीज "आशीष जी" के नाम से संबोधित करते थे, वह सरकारी सिस्टम से जूझते हुए बुधवार को दुनिया को अलविदा कह गए। एक तो कैंसर ग्रस्त और उस पर कोरोना काल में जिस तरह से प्रसार भारती ने उनके साथ निर्दयता पूर्ण व्यवहार किया, उससे वह इन दिनों बुरी तरह टूट गए थे। दैनिक अमर उजाला संस्थान बरेली और मुरादाबाद में एक लंबे अरसे तक आशीष अग्रवाल कार्यरत रहे। उत्तराखंड आंदोलन में जान डालने के लिए जब भी मीडिया का जिक्र आया तो आशीष अग्रवाल उससे अछूते नहीं रहे। उत्तराखंड आंदोलन में जिस तरह से टीम लीडर के रूप में बेहतरीन कवरेज कराके उन्होंने अमर उजाला अखबार की एक अलग पहचान बनाई, वह किसी से छिपी नहीं है।


        जरा सी बात पर अमर उजाला छोड़कर घर बैठ गए। उसके बाद फिर अमर उजाला में आए मगर अपने सिद्धांतों से कोई समझौता करने को तैयार नहीं हुए। उनका काम करने का एक अलग अंदाज उनकी एक अलग पहचान थी। देहरादून गए और साइड स्टोरी नाम से एक मैगजीन निकाली, मीडिया की प्रतिस्पर्धा में मैगजीन बहुत दिनों तक बाजार में नहीं टिक सकी। बाद में अमर उजाला के संपादकीय सलाहकार टीम में शामिल हो गए। इस बीच केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से लंबे समय तक उनका छात्र जीवन में जुड़ाव रहने के कारण उनकी नियुक्ति प्रसार भारती ने डीडी न्यूज़ में कर दी। 


         श्री अग्रवाल को अगस्त 2018 में कैंसर रोग का शिकार होना पड़ा, हालांकि इससे पहले वह अपनी तकलीफ को एक वर्ष तक राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट में दिखाते रहे। वहाँ के प्रमुख डाक्टर एके दीवान उन्हें कैंसर न होने की बात करते रहे। आखिर में बायोप्सी कराने के सलाह में उन्हें मामूली सा कैंसर बता दिया गया। खैर उनका बड़ा आपरेशन हुआ। उन्होंने दिल्ली के बी एल कपूर अस्पताल में अपना आपरेशन कराया। उसके बाद करीब एक माह बाद वह फिर अधिकारियों की अनुमति से आफिस गए। मगर डाक्टरों की एक माह बाद रेडियेशन की सलाह के बाद वह शारीरिक रूप से उस समय इस लायक नहीं रहे कि आफिस जा सकें। बाद में वह 2019 में अपने घर बरेली आ गए। 2020 में मार्च में लाक डाउन की घोषणा और कोरोना के प्रकोप के चलते जब सभी जगह work from home की घोषणा हुई तो उन्होंने अपने लिए वर्क फ़्रोम होम मांगा। इस बीच बरेली के सांसद और केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री को पत्र लिखकर श्री अग्रवाल का बरेली दूरदर्शन केंद्र या आकाशवाणी मे तबादला करनेकी सिफ़ारिश की, मगर यह पत्र भी प्रसार भारती की भूल भुलैया में खो गया, जिसका कोई जवाब भी सूचना मंत्री और केंद्रीय श्रम मंत्री को नहीं दिया गया। केंद्र सरकार के दो महत्वपूर्ण मंत्रियों के सिफ़ारिशी पत्र को भी नौकरशाहों ने इगनोर कर दिया। सरकारी सिस्टम से जूझते हुए आशीष अग्रवाल पूरी तरह टूट चुके थे।



     बुधवार की सुबह जिसने भी सुना, वही अवाक रह गया। परसों ही उन्होंने "झुमका बरेली का" व्हाट्सएप ग्रुप पर किसी ने तबियत हाल पूछा तो लिखा था- जी लग तो रहा है, अंतिम दौर है। एफबी पर पोस्ट डालते रहते थे, जीवन बड़ा कष्टमय है। अब समय आ चला है ....।

    यकीन नहीं हो रहा है कि हम सबके प्रिय आशीष जी अब हमारे बीच में नहीं है। उनका अनायास ही यूं चला जाना झकझोर गया। मुझे कोरोना हुआ तो दिन में कई कई बार व्हाट्सएप पर हालचाल पूछते रहते थे। कुछ दिन पहले मैसेज आया था कि कब आओगे। बरेली आना तो मुझसे मिलकर जाना। जरूरी बात करूंगा।

    उस दिन बहुत खुश हुए, जब उनको पता चला था कि मैं मजीठिया का केस जीत गया और मैंने एचटी मीडिया संस्थान की आरसी कटवा कर बरेली कलक्टर को भिजवा दी। घर बुलाया, पीठ थपथपाई, पत्नी से बोले ये है निर्मल। इसने कम्पनी की आरसी कटवा दी। ऐसे लोग मेरे साथ हैं।

     आज बुरी खबर मिली। मन बुरी तरह व्यथित है। पता नहीं कौन सी अपने मन की बात कहना चाहते थे, अफसोस मैं बरेली नहीं जा पाया और उनकी मन की बात नहीं सुन सका। आशीष जी की कमी हमेशा खलेगी। प्रभु उनकी आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे। मुश्किल है आपको भुला पाना आशीष जी।

ॐ शांति ॐ। 

निर्मल कांत शुक्ला

वरिष्ठ पत्रकार

मंडल अध्यक्ष

उत्तर प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार यूनियन

बरेली मंडल बरेली

मोबाइल-7017389915

Wednesday 14 April 2021

कोरोनाः दिल्ली लेबर कोर्ट एक बार फिर हुआ ऑनलाइन, आज की डेट वालों की सुनवाई अब 17 को


नई दिल्ली, 14 अप्रैल। कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए दिल्ली की लेबर कोर्ट में 9 अप्रैल से एक बार फिर से ऑनलाइन सुनवाई शुरू हो गई है। इससे पहले वह पिछले साल मार्चं में कोरोना लॉकडाउन के चलते बंद हो गया था। लॉकडाउन खुलने के बाद उसमें ऑनलाइन सुनवाई शुरू हुई थी और लंबे अंतराल बाद एक दिन आधी अदालतें खुलती थी, बाकि में ऑनलाइन सुनवाई होती थी। हाल ही में अदालत पूरी तरह से खुली थी। इसके अलावा आज बुधवार को अंबेडकर जयंती पर अवकाश होने की वजह से अब इस दिन होने वाले मामलों की ऑनलाइन सुनवाई 17 अप्रैल को होगी।

प्राप्त जानकारी के अनुसार कोरोना संक्रमण की बढ़ती लहर को देखते हुए दिल्ली की लेबर कोर्ट में फिजिकल सुनवाई बंद कर दी गई है। यह आदेश 24 अप्रैल तक के लिए है। कोरोना संक्रमण के बीच 9 अप्रैल को जब कई वकील और कर्मचारी लेबर कोर्ट पहुंचे तो वहां उन्हें इस आदेश का पता चला। इसके बाद उनमें से कई ने ऑनलाइन कार्रवाई में हिस्सा लिया। वहीं, 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती का अवकाश घोषित होने की वजह से सुनवाई नहीं हो पाई। अब इन सभी केसों की ऑनलाइन सुनवाई 17 अप्रैल को होगी। नीचे अदालत का नंबर और माननीय जज का नाम के साथ ऑनलाइन सुनवाई का लिंक दिया गया है। जिसके माध्यम से मजीठिया लड़ाके इस सुनवाई में शामिल हो सकते हैं। ज्यादा जानकारी के लिए उसके आगे दिए गए मोबाइल नंबर से प्राप्त की जा सकती है। 




जो ऑक्सीजन सिलेंडर आपके पापा को लगाया गया उसमें तो आक्सीजन था ही नहीं!

राजेश अग्रवाल-


तो इस तरह से जान ली गई हमारे कार्टूनिस्ट भाई प्रदीप की… सुनिए उनके बच्चे की ज़ुबानी..,.



अंकल, तीन चार दिन से पापा को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। हमने उनको प्रेस जाने से मना कर दिया था। मैं ऑक्सीजन का छोटा यूनिट लेकर घर आ गई। पर डर था, कब कैपिसिटी खत्म हो जाये।


सिम्स लेकर आये। ऑक्सीजन सिलेंडर में लिया गया। कुछ देर बाद पता चला कि सिलेंडर का लेवल गिर रहा है। डॉक्टर आयें तो बात करें। बात कोई सुनने वाला नहीं था। फिर पता किया, किसी प्राइवेट अस्पताल में कोई ऑक्सीजन बेड खाली नहीं है। एक स्टाफ ने बताया, आरबी हॉस्पिटल में अभी-अभी एक ऑक्सीजन बेड खाली हुई है, ले जाओ।


दूसरा ऑक्सीजन इक्विपमेंट वहां था ही नहीं। नीचे एम्बुलेंस खड़ी थी। मैं घर से जो पोर्टेबल ऑक्सीजन कंसंट्रेटर ले आई थी, उसे तीसरे माले से पापा पर लगाकर नीचे उतरी। पापा बुरी तरह हांफ रहे थे। बस उम्मीद थी, जल्दी से जल्दी एम्बुलेंस आरबी हॉस्पिटल पहुंचें, ऑक्सीजन मिले और पापा को बचा लें।


आर बी में एम्बुलेंस रुकते ही व्हील चेयर आ गई। ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ। मैंने अपनी यूनिट हटाई। उन्होंने अपनी ऑक्सीजन यूनिट लगाई। पर, उनका हांफना बंद नहीं हुआ। स्टाफ से पूछा तो बताया कि बस दो चार मिनट में काम करने लगेगा। पापा को ऑक्सीजन मिलने लगेगा।


उसी हाल में पापा को आर बी के ऊपर बने कोविड हॉस्पिटल में मैं खुद रोते-रोते ले गई। आईसीयू में पापा पहुंच गये। आईसीयू में पहुंच गये थे, पर बस दो चार मिनट तक राहत महसूस कर सकी। उनका तड़पना बंद नहीं हुआ, बल्कि और बढ़ गया। मैं भागे-भागे नीचे आई। जिन नर्सों ने एम्बुलेंस अटैंड किया था, उनसे बात बताना चाह रही थी। मगर उन तीन में से दो मोबाइल फोन पर व्यस्त थीं। तीसरी मेरी ओर बड़ी उपेक्षा से देख रही थी।

 

मुझे समझ में आ गया कि इन्हें किसी के जान की परवाह बिल्कुल नहीं है। मुझे करंट सा लगा- जब एक ब्वाय ने बताया कि जो ऑक्सीजन सिलेंडर आपके पापा को यहां आने पर लगाया गया उसमें ऑक्सीजन तो था ही नहीं। वह तो खाली है। ये नौटंकी तो आपको संतुष्ट करने के लिये की गई।


मैं ऊपर भागी, अपने साथ लाये हुए आक्सीजन कंस्ट्रेटर को लेकर। दरवाजे पर पहुंची। रोका गया। बताया गया- तुम्हारे पापा अब नहीं रहे।


अंकल, मेरी ही गलती थी। न तो उनको अस्पताल ले जाती, न उनकी मौत होती।


(साभारः bhadas4media.com)

https://www.bhadas4media.com/pradeep-ki-maut-aise-huyi/



Saturday 10 April 2021

हिमाचल: पत्रकारों की मान्‍यता नई सिरे से जारी करने के आदेश, आचरण पर अहम टिप्‍पणियां



शिमला, 10 अप्रैल। हिमाचल प्रदेश उच्‍च न्‍यायालय की न्‍यायमूर्ति त्रिलोक सिंह चौहान की एकल पीठ ने एक पत्रकार की मान्‍यता निलंबित किए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर हिमाचल प्रदेश में पत्रकारों को मान्‍यता के नियमों में संशोधन करने और अब तक जारी मान्‍यता आदेशों पर पुनर्विचार व संशोधन करके नियमों का सख्‍ती से पालन करते हुए नए सिरे से मान्‍यता देने के आदेश जारी किए हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश में उन पत्रकारों को भी मान्‍यता दिए जाने को लेकर सवाल उठाए हैं, जिनकी अखबार की प्रसार संख्‍या हिमाचल में नगन्‍य है या फिर जो हिमाचल में प्रकाशित ही नहीं होते हैं।


इसके अलावा कोर्ट ने शिमला में अपना मकान/फ्लैट होने के बावजूद सरकारी आवास कब्‍जाए बैठे पत्रकारों को यह सुविधा तुरंत छोड़ने के आदेश जारी किए हैं। वहीं एक ही प्रकाशन/ समाचारपत्र से एक ही पत्रकार को राज्‍य या जिला स्‍तर की मान्‍यता देने के नियमों का सख्‍ती से पालन करने को कहा है। साथ ही नई मान्‍यता के आवेदन या मान्‍यता के नवीनिकरण की मंजूरी/इनकार करने की समयसीमा तय करने आवेदन रद्द करने की स्‍थिति में ऐसा करने का कारण कलमबद्ध करने का प्रावधान करने के आदेश भी जारी किए हैं। वहीं संबंधित विभाग को मान्‍यता के नियमों का सख्‍ती का पालन करने को कहा है और अब तक जारी किए गए सभी मान्‍यता आदेशों की समीक्षा करके सभी आवेदकों को नियमों का अक्षरश: पालन करके नए सिरे से मान्‍यता आदेश जारी करने को कहा है। इन आदेशों के पालन के लिए संबंधित विभाग को छह माह का समय दिया गया है और कोर्ट में इस पर अगली सुनवाई 9 जुलाई को रखी गई है।    


 

हिमाचल हाईकोर्ट ने विजय गुप्‍ता बनाम हिमाचल सरकार एवं अन्‍य के मामले में लंबित सीडब्‍ल्‍यूपी 7487/2012 पर नौ अप्रैल को जारी आदेशों में याचिकाकर्ता पर चल रहे आपराधिक मुकदमों के चलते उसकी मान्‍यता निलंबित करने के संबंधित विभाग के फैसले को सही ठहराते हुए पत्रकार के आचरण और पत्रकारिता के आदर्शों को सर्वोच्‍च माना और याचिकाकर्ता को अपने पर लगे आरोपों से बाइज्‍जत बरी होने तक राहत देने से इनकार कर दिया। साथ ही न्‍यायालय ने पत्रकार मान्‍यता और पत्रकारों के आचरण को लेकर कुछ अहम टिप्‍पणियां की हैं। इनका संक्षिप्‍त विवरण इस प्रकार से है:  


 

कोर्ट ने अपने फैसले में टिप्‍पणी करते हुए कहा है कि मीडिया को अक्सर न्याय का दास, समाज व न्यायपालिका का प्रहरी, न्याय का यंत्र तथा सामाजिक सुधारों का उत्प्रेरक कहा जाता है। इसलिए, सभी मीडिया हाउसेज, समाचार चैनलों, पत्रकारों और प्रेस की यह अत्‍यंत जिम्‍मेवारी है कि वो जिम्‍मेदार तरीके से अपने कर्तव्‍यों का निर्वहन करे। कोर्ट ने प्रकाश खत्री बनाम मधु त्रेहन मामले में दिल्‍ली उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ के फैसले का हवाला देते हुए कहा है कि प्रेस की शक्ति लगभग परमाणु शक्‍ति की तरह है, जो निर्माण करती है तो वहीं विनाश भी कर सकती है। इसे ध्यान में रखते हुए, यह जरूरी है कि याचिकाकर्ता की तरह एक समाचारपत्र मालिक/संपादक के कंधे पर अत्‍याधिक जिम्मेदारी है और यदि उसका अपना आचरण जांच के दायरे में है, तब जाहिर है, उसकी मान्यता को निलंबित करना होगा।


 

कोर्ट ने कहा कि भारतीय प्रेस ने, विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश में विभिन्न चुनौतियों और परीक्षा की घड़ी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसकी खोजी पत्रकारिता ने ऐसी महत्‍वपूर्ण घटनाओं को उजागर किया, जो अन्‍यथा किसी के ध्‍यान में ही नहीं आ पातीं। कोर्ट ने अपनी महत्‍वपूर्ण टिप्‍पणियों में लिखा है कि हालाँकि, जैसा कि अन्य संस्‍थाओं के साथ आम है, कुछ परेशान करने वाली प्रवृत्तियाँ इस संस्‍थान (प्रेस) में भी व्याप्त हैं। इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि इस तरह के एक गौरवशाली संस्थान को कमियों से पार पाने की ललक होगी। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को यह कहते हुए राहत देने से इनकार किया कि जिसका अपना ही व्‍यवहार संदेह के घेरे में है, उसकी मान्‍यता वापस लेने के निर्णय को तब तक नहीं वापस लिया जा सकता, जब तक कि वो अपने पर लगे आरोपों से बरी नहीं हो जाता।  


 

फैसले में लिखा गया है कि अन्य संस्थानों की तरह, पत्रकारिता की संस्था भी चरमरा रही है। जहां समाज को दिशा देने और जनमत निर्माण में प्रेस का कार्य एवं जिम्‍मेदारी कहीं अधिक महत्‍वपूर्ण है, तो वहीं पत्रकारों की कुकुरमुत्‍तों की तरह वृद्धि के कारण और पत्रकारों के बीच गलाकाट प्रतियोगिता के चलते उनके मानकों में गिरावट आ रही है, जो पत्रकारिता की संस्था की गिरावट का कारण है। एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण टिप्‍पणी में कोर्ट ने कहा है कि इसी तरह राज्य द्वारा कुछ तथाकथित पत्रकारों को मान्यता दी गई है, जो वास्तविक अर्थों में पत्रकार नहीं हैं। वो  केवल उन सुविधाओं का आनंद लेते हैं, जो कि मान्यता प्राप्त पत्रकारों के लिए उपलब्ध हैं।



कोर्ट ने इस सब बातों को ध्यान में रखकर आदेश जारी करते हुए संबंधित विभाग को मान्यता की सूची की समीक्षा करके इसे संशोधित करके, यह सुविधा केवल वास्‍तविक और विश्‍वसनीय संवाददाताओं को देने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा मान्‍यता के नियमों का कड़ाई से पालन ना होने को लेकर भी कोर्ट ने टिप्‍पणियां करते हुए कुछ गाइडलाइन भी जारी की हैं। कोर्ट की टिप्‍पणियां इस प्रकार से हैं:


 

कोर्ट के अनुसार पत्रकारों को उनके समाचारपत्र के हिमाचल प्रदेश में प्रसार के आधार पर मान्‍यता का नियम दरकिनार करके कुछ ऐसे सामाचारपत्रों के संवाददाताओं को भी मान्‍यता जारी की गई है, जिनके समाचारपत्र का प्रसार हिमाचल प्रदेश में नगण्य है और कुछ मामलों में तो ये सामाचार प्रदेश में बिकते ही नहीं हैं। इसके अलावा कुछ ऐसे समाचारपत्रों के रिपोर्टर्स को मान्‍यता दी गई है, जिनकी हिमाचल में प्रसार संख्‍या नगण्य है, मगर देश के बाकी हिस्‍सों में उनकी अच्‍छी मौजूदगी है। कोर्ट ने इन तथ्‍यों के आधार पर आदेश जारी किए हैं कि यह सुनिश्चित करना होगा कि राज्‍य स्‍तर पर मान्‍यता देने के लिए हिमाचल प्रदेश में प्रसार संख्‍या को आधार माना जाए, नाकि महज संबंधित अखबार के संपादक के नियुक्‍तिपत्र को।  

 


यद्यपि तत्‍कालीन नियम 2002 को मौजूदा नियमों में संशोधित किया गया है, मगर इनमें पत्रकारों की मान्‍यता के आवेदन और नवीनिकरण को लेकर समयसीमा निर्धारित नहीं की गई है। लिहाजा नियमों में सशोधन करके उनमें समयसीमा निर्धारित की जरूरत है। स्‍पष्‍ट तौर पर समयसीमा निर्धारण के अलावा यह नई मान्‍यता या नवीनिकरण के आवेदन को निरस्‍त करने के कारणों का उल्‍लेख करने का प्रावधान भी किया जाए।  

 

 


यद्यपि नियमों में स्‍पष्‍ट तौर पर एक प्रकाशन/समाचारपत्र के एक ही पत्रकार को मान्‍यता (राज्‍य स्‍तर/ जिला स्‍तर) देने का प्रावधान है, मगर यह देखा गया है कि एक संस्‍थान के एक से अधिक पत्रकारों को मान्‍यता देकर नियमों की खुलेआम अव्‍हेलना की जा रही है। यह प्रथा कई योग्‍य पत्रकारों को इस सुविधा से महरूम करती है।

 


यद्यपि, सरकारी कर्मचारियों की तरह ही उन मान्‍यताप्राप्‍त पत्रकारों को सरकारी आवास रखने की स्‍पष्‍ट रोक है, जिनके शिमला में अपने मकान/फ्लैट हैं। इसके बावजूद यह पता चला है कि कई ऐसे पत्रकार जिनके अपने मकान या फ्लैट शिमला में हैं या कुछ ने एशिया द डॉन, नजदीक संकटमोचन मंदिर में स्‍थित जर्नलिस्‍ट हाउसिंग सोसायटी की अनुदानित जमीन पर फ्लैट बना रखे हैं वो अभी भी सरकारी आवास अपने पास रखे हुए हैं। इस तरह की प्रथा को तुरंत रोक लगाने की जरूरत है और इस तरह के सरकारी आवासों को तुरंत सरकार को हैंडओवर करने की जरूरत है।

 


कोर्ट ने अपने आदेशों में दो दिशानिर्देश भी जारी किए हैं और तीन माह में इनकी अनुपालना का आदेश जारी करते हुए अगली तारीख 9 जुलाई 2021 तय की है:



प्रतिवादी एक विभिन्‍न कैटेगरी को जारी की गई मान्‍यता आदेशों को 2016 के नियमों के अनुसार सख्‍ती से पुनर्विचार करते हुए संशोधित करेगा और इसके बाद नियमों का सख्‍ती से पालन करते हुए नए मान्‍यता आदेश जारी करेगा।

 

नियम 2016 में संशोधन करते हुए मान्‍यता जारी करने/ इनकार करने की समयसीमा निर्धारित करने के साथ ही मानयता से इनकार करने की स्‍थिति में मान्‍यता आवेदन निरस्‍त करने का कारण लिखना बाध्‍यकारी बनाया जाएगा। यह भी सुनिश्‍चित करना होगा कि नियमों के अनुसार एक प्रकाशन/समाचारपत्र से एक ही पत्रकार को राज्‍य या जिला स्‍तर की मान्‍यता दिए जाने का प्रावधान हो।  

 

उधर, न्‍यूजपेपर इम्‍प्‍लाइज यूनियन ऑफ इंडिया के अध्‍यक्ष एवं मजीठिया वेजबोर्ड को लागू करने के लिए हिमाचल सरकार द्वारा गठित त्रिपक्षीय समिति के सदस्‍य रविंद्र अग्रवाल ने कोर्ट के इस निर्णय का स्‍वागत किया है। साथ ही उन्‍होंने पत्रकारिता के गिरते स्‍तर पर कोर्ट की चिंताओं की सराहना की है। उन्‍होंने कहा कि पहले भी न्‍यायपालिका पत्रकारों और पत्रकारिता के गिरते स्‍तर और नियमों की अव्‍हेलना को लेकर टिप्‍पणियां करती रही है, मगर राजनीतिक दखल और समाचारपत्र संस्‍थानों की पत्रकारों को उनका तय वेतनमान ना देकर विज्ञापन की कमीशन और सरकारी सुविधाओं की लालच देकर पत्रकारिता के स्‍तर का गिराने की प्रवृत्ति के चलते पत्रकारिता का स्‍तर काफी गिर चुका है। उन्‍होंने कहा कि कोर्ट के ऐसे आदेशों का सख्‍ती से पालन करवाने की जरूरत है।