Tuesday 29 December 2020

अति महत्वपूर्ण फैसलाः निर्धारित वेतनमान से कम वेतन लेने का घोषणा पत्र मान्य नहीं, डाउनलोड करें पूरा आदेश



आवेदन प्रारूप में दिया जाए जरूरी नहीं

ग्वालियर। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की युगलपीठ के न्यायमूर्ति सुजयपाल एवं न्यायमूर्ति फहीम अनवर ने राजस्थान पत्रिका लिमिटेड (आर पी एल) बनाम मध्यप्रदेश शासन की पुर्नविचार याचिका निरस्त हुए निर्णित किया है कि वेतनमान प्राप्ति के लिए निर्धारित प्रारूप के अनुसार ही आवेदन दिया जाए यह आवश्यक नहीं है। श्रम कानून सामाजिक लाभ के विधान हैं। इसमें तकनीकी त्रुटियों एवं बारिकियों को नहीं देखा जाना चाहिए। यह सिविल न्यायालय की तरह विधान नहीं है। प्रकरण के तथ्यों के अनुसार कर्मचारी ने निर्धारित वेतनमान के अनुसार वेतन की गणना कर उप श्रमायुक्त के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया था। एवं 9,6108़.00 (रूपये नौ लाख छह हजार एक सौ आठ मात्र) वेतन के अंतर की मांग थी। उप श्रमायुक्त के समक्ष मेनेजमेंट ने तकनीकी आपत्तियां उठाई एवं वेतनमान के अंतर की राशि का स्पष्ट खंडन नहीं किया। 

उप श्रमायुक्त भोपाल ने वेतनमान की सारणी के अनुसार गणना उचित मानकर 9,6108़.00 की राशि वसूली के आदेश दिए। मेनेजमेंट ने उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत कर उप श्रमायुक्त के वसूली आदेश को चुनौती दी। जिसे माननीय उच्च न्यायालय ने गुणदोष पर सही पाते हुए खारिज कर दी तथा उपश्रमायुक्त के आदेश का उचित माना। मेनेजमेंट द्वारा पुनः पुर्नविचार याचिका 18-07-19 के आदेश के खिलाफ प्रस्तुत की। जिसको माननीय उच्च न्यायालय की युगलपीठ ने 18 दिसंबर 2020 को खारिज कर दिया एवं निम्नानुसार व्यवस्थाएं दी।













1. पुर्नविचार याचिका केवल सात्विक त्रुटि के सुधार के लिए ही दी जा सकती है। पुनः गुणदोष पर सुनवाई नहीं की जा सकती।

2. विधान में दिए गए नियम प्रारूप के अनुसार ही आवेदन प्रस्तुत किया जाए यह जरूरी नहीं है। तकनीकी आधार पर आवेदन निरस्त नहीं किया जा सकता।

3. श्रम कानून सामाजिक लाभ के विधान है। इसके प्रावधानों को उदार रूप में देखा जाना चाहिए।

4. आवेदन के निराकरण में उच्च तकनीकी स्वरूप को ही आधार नहीं बनाया जाए।

माननीय उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय के पैरा 21 में यह भी उल्लेखित किया है कि कर्मचारी ने उप श्रमायुक्त के समक्ष जो वेतन पत्रक प्रस्तुत किया था। मेनेजमेंट ने उसे स्पष्टतया विवादित नहीं किया। इसलिए उप श्रमायुक्त का वसूली आदेश विधिवत है। इतना ही नहीं वेतनमान की सिफारिशें के अनुसार निर्धारित वेतनमान से कम वेतन का कोई घोषणा पत्र कर्मचारी से लेना विधि सम्मत नहीं है। माननीय उच्च न्यायालय ने मेनेजमेंट की पुर्नविचार याचिका निरस्त कर दी।  










वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल कृष्ण छिब्बर

Friday 25 December 2020

नई दुनिया के पत्रकारों को मजीठिया में मिली 10वीं सफलता



प्लांट में कार्यरत पदम शर्मा को मिली विजय


जागरण प्रबंधन के नई दुनिया इंदौर में पत्रकार व श्रमजीवी पत्रकारों को मजीठिया मामले में 10वीं विजयश्री प्राप्त हुई है। मंगलवार को प्लांट के मजीठिया क्रांतिकारी पदम शर्मा ने विजय प्राप्त की।


वरिष्ठ अभिभाषक वाडिया ने बताया कि प्लांट में कार्यरत पदम शर्मा के पक्ष में फैसला आया है। मंगलवार मजीठिया केस में कोर्ट ने 10,14,922 बकाया वेतन व 19,200 अंतरिम राशि तथा 3000 जुर्माना सहित देने के आदेश प्रदान किए। उक्त राशि 2011 से 2016 तक की अवधि की है।


प्रमोद दाभाड़े 

मजीठिया क्रांतिकारी 

Wednesday 23 December 2020

इंदौर में बड़ी सफलता: जागरण प्रबंधन को झटका, 7 मजीठिया क्रांतिकारियों ने पाई विजय


इंदौर में मजीठिया क्रांति आखिर रंग लाई और 7 साथियों ने इसमें विजयश्री प्राप्त की। इंदौर में मजीठिया क्रांतिकारियों का जो फैसला हुआ है उसमें नई दुनिया (जागरण प्रबंधन) को बड़ा झटका लगा है, लेकिन जागरण प्रबंधन के लिए राहत वाली बात यह रही है कि 50 हजार का ब्याज कोर्ट ने मान्य इसलिए नहीं किया कि पक्षकार इसे साबित नहीं कर पाए। वैसे माननीय जज ने फैसला ऐतिहासिक सुनाकर मजीठिया क्रांतिकारियों को राहत ही दी है। इस लड़ाई में नई दुनिया के धर्मेन्द्र हाडा और वरिष्ठ अभिभाषक वाडियाजी का सराहनीय योगदान रहा है।


केस 1

संजय पिता त्रम्बकराव हटकर जागरण प्रबंधन के नई दुनिया में ड्राइवर के पद पर कार्यरत थे। उन्होंने दो वर्ष का मजीठिया वेतनमान मांगने के लिए कोर्ट की शरण ली थी। इस मामले में कोर्ट ने 55,218 रुपए का अवार्ड पारित किया साथ ही पक्षकार को 3000 रुपए न्यायिक व्यय के साथ ही 1 माह में वेतन नहीं देने पर 2000 रुपए मय ब्याज देने का आदेश जारी किया। 


केस 2

निशिकांत पिता स्व. कृष्णकांत मंडलोई नई दुनिया में सब एडिटर के पद पर कार्यरत थे। इन्होंने   दो वर्ष का मजीठिया वेतनमान मांगने के लिए कोर्ट की शरण ली थी। इस मामले में कोर्ट ने 66,625 रुपए तथा अंतरिम राहत के 1,02,786 रुपए का अवार्ड पारित किया साथ ही पक्षकार को 3000  रुपए न्यायिक व्यय के साथ ही 1 माह में वेतन नहीं देने पर 2000 रुपए मय ब्याज देने का आदेश जारी किया। 


केस-3

विजय सुखदेव चौहान नई दुनिया में ड्राइवर के पद पर कार्यरत थे। उन्होंने दो वर्ष का मजीठिया वेतनमान मांगने के लिए कोर्ट की शरण ली थी। इस मामले में कोर्ट ने 78845 रुपए का अवार्ड पारित किया साथ ही पक्षकार को 3000 रुपए न्यायिक व्यय के साथ ही 1 माह में वेतन नहीं देने पर 2000 रुपए मय ब्याज देने का आदेश जारी किया। 


केस-4

दिव्या नरेश सेंगर एक्टीक्यूटिव के पद पर नई दुनिया में कार्यरत थी। उन्होंने मजीठिया वेतनमान मांगने के लिए कोर्ट की शरण ली थी। इस मामले में कोर्ट ने 9,40,118 रुपए का अवार्ड पारित किया साथ ही पक्षकार को 3000 रुपए न्यायिक व्यय के साथ ही 1 माह में वेतन नहीं देने पर 2000 रुपए मय ब्याज देने का आदेश जारी किया। 


केस 5 

सुरेश विठाराम चौधरी नई दुनिया में ड्राइवर के पद पर कार्यरत थे। उन्होंने दो वर्ष का मजीठिया वेतनमान मांगने के लिए कोर्ट की शरण ली थी। इस मामले में कोर्ट ने सुरेश के पक्ष में अवार्ड पारित किया था। लेकिन किसी त्रुटिवश आदेश में अमाउंट राशि में गड़बड़ी होने से वरिष्ठ अभिभाषक वाडियाजी ने पुनः आवेदन लगाया है।


केस 6

अशोक शर्मा नई दुनिया में कार्यरत थे। उनके पक्ष में भी अवार्ड पारित हुआ है। इसकी कापी अभी हमारे पास उपलब्ध नहीं है। कोर्ट के फैसले की कापी आने के बाद पूरी डिटेल की जानकारी आप तक पहुंचाई जाएगी।


केस 7

सुरेद्र सिंह नई दुनिया (जागरण ग्रुप) में कार्यरत थे। इन्होंने भी मजीठिया वेतनमान के लिए कोर्ट की शरण ली थी। माननीय कोर्ट ने उनके पक्ष में 6,72,460 का अवार्ड पारित करने के साथ न्यायिक व्यय की राशि 3000 व एक माह में पैसा जमा नहीं करने पर 2000 रुपए ब्याज का आदेश दिया है। इस केस की कापी भी अभी उपलब्ध नहीं हुई है। 


वाडियाजी और हाडाजी की मेहनत

साथियों इन सारे केसों में वरिष्ठ अभिभाषक वाडिया और धर्मेन्द्र हाडा की मेहनत रंग लाई है। पूरी लड़ाई में दोनों साथियों ने तन, मन और धन से केस में अपना पूर्ण सहयोग देकर साथियों को विजय दिलाई है। इन दोनों साथियों को साधुवाद। ऐसे साथियों के बल पर ही आज सत्य की लड़ाई में हम विजयश्री प्राप्त कर रहे हैं। दोनों भाइयों का सम्मान होना चाहिए।


प्रमोद दाभाड़े 

इंदौर


Friday 18 December 2020

सुप्रीम कोर्ट ने भी माना, मजीठिया से बचने के लिए पत्रिका ने फर्जी कंपनी बनाई, डाउनलोड करें आर्डर


पत्रिका ने मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ देने से बचने के लिए फोर्ट फोलिएज नाम की एक कंपनी का रातों-रात गठन किया और अपने अधिकांश कर्मचारियों की सेवाओं को उसमें स्थानांतरित कर दिया। 

जब पत्रिका ने मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार कर्मचारियों को वेतन का भुगतान नहीं किया तो तमाम कर्मचारियों ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश अनुसार श्रम न्यायालय में बकाया एवं मजीठिया अनुसार वेतन के भुगतान के लिए अपने दावे प्रस्तुत किए। श्रम न्यायालय में पत्रिका द्वारा कहा गया कि उक्त कर्मचारी उनके नहीं है बल्कि मेन पावर सप्लाई कंपनी फोर्ट फोलिएज प्राइवेट लिमिटेड के कर्मचारी हैं जिन पर मजीठिया वेज बोर्ड की अनुशंसा लागू नहीं होती है। जिसके बाद कर्मचारियों ने न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत किया कि पत्रिका बताए कि कर्मचारी उनके यहां किस पद पर कार्यरत था, क्या कार्य करता था, उस पर किसका सुपरविजन था, सुपरविजन करने वाले अधिकारी कर्मचारी का नाम क्या था, उसकी नियुक्ति प्रक्रिया क्या थी, वेतन का भुगतान किसके द्वारा किस माध्यम से किया जाता था इत्यादि इत्यादि। आवेदन पर माननीय श्रम न्यायालय ने आदेश दिया कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के परिपालन में जल्द निर्णय के लिए इन तथ्यों का न्यायालय के संज्ञान में होना आवश्यक है। अतः पत्रिका संस्थान इन तथ्यों से न्यायालय को अवगत कराए। अवगत न कराने की स्थिति में पत्रिका संस्थान इन बिंदुओं पर कर्मचारी से प्रतिपरीक्षण करने से वंचित रहेगी।



श्रम न्यायालय के आदेश के खिलाफ पत्रिका संस्थान में ग्वालियर उच्च न्यायालय मैं अपील की, जिस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस जीएस आहलूवालिया ने आदेश दिया कि श्रम न्यायाधीश ने जो आदेश दिया है वह बिल्कुल ठीक है। उन्हें पत्रिका के विरुद्ध और कड़ा आदेश करना था। साथ ही उन्होंने अपने आदेश में कहा कि दस्तावेजों को देखने के बाद स्पष्ट होता है कि पत्रिका ने मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ कर्मचारियों को देने से बचने के लिए दस्तावेजों का दुरुपयोग करते हुए एक फर्जी कंपनी फोर्ट फोलिएज गठित की है। 


पत्रिका ने जस्टिस जीएस आहलूवालिया के आदेश को डिविजनल बेंच ग्वालियर हाईकोर्ट में चुनौती दी जहां माननीय उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि सिंगल बेंच का आदेश ठीक है। साथ ही उन्होंने अपने आदेश में कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मजीठिया मामलों को 6 माह में निराकृत करने का आदेश दिया है पर प्रकरण को देखते हुए स्पष्ट होता है कि पत्रिका संस्थान जानबूझकर प्रकरण में विलंब कार्य कर रही है ऐसे में पत्रिका पर माननीय न्यायालय ने ₹10000 का अर्थदंड और ₹25000 न्यायालय में दंड स्वरूप जमा कराने के निर्देश दिए थे।

पत्रिका के षड्यंत्र का माननीय न्यायालय द्वारा पर्दाफाश होने से बौखलाए मालिका ने बचने के लिए माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी दिनांक 17 दिसंबर 2020 को कोर्ट क्रमांक 9 में मामले की सुनवाई हुई जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पत्रिका की याचिका को खारिज कर दिया।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद उच्च न्यायालय ग्वालियर की उस टिप्पणी पर स्थाई मोहर लग गई जिसमें कहा गया था कि पत्रिका ने मजीठिया वेज बोर्ड की अनुशंसाओं का लाभ कर्मचारियों को देने से बचने के लिए पेपर अरेंजमेंट करते हुए एक फर्जी कंपनी का गठन किया है।

Tuesday 1 December 2020

श्रम न्यायालय कोटा ने शेष बचे भास्कर कर्मचारियों का अवार्ड जारी किया

कोटा 1 दिसंबर। श्रम न्यायालय ने दैनिक भास्कर से निलंबित एवं नौकरी से हटाने के मामले में मंगलवार को सभी श्रमिकों को सेवा की निरंतरता मानते हुए  50% बैक वेज सहित लाभ दिलाए जाने काअधि निर्णय पारित किया है। साथ ही श्रम न्यायालय कोटा द्वारा यह भी निर्देश दिए हैं कि उक्त अधि निर्णय की पालना 2 माह में किया जाना सुनिश्चित किया जाए। उक्त मामले में भास्कर कर्मचारियों की ओर से वकील अनिल दाधीच  ने पैरवी की। ।

उल्लेखनीय है कि मंगलवार को शेष बचे भास्कर कर्मचारियों में संतोष श्रीवास्तव देवेंद्र दाधीच सहित छह  भास्कर कर्मचारियों के मामले में उक्त अधि निर्णय पारित किया है।