Tuesday 29 January 2019

मजीठिया व टर्मिनेशन के लंबित मामले तय समयसीमा में निपटाने के सुप्रीम कोर्ट ने दिए आदेश






\देशभर के सभी हाईकोर्ट की रजिस्ट्री को नोटिस जारी किए गए 

नए साल के साथ ही देशभर में मजीठिया वेतनमान के लिए संघर्ष कर रहे साथियों के लिए देश की सबसे बड़ी अदालत ने बड़ी राहत भरी खबर दी है। मजीठिया को लेकर दायर एक मिसलेनियस एप्लीकेशन पर सोमवार 28 जनवरी को प्रधान न्यायाधीश माननीय रंजन गोगोई व माननीय संजीव खन्ना की बेंच ने सुनवाई कर कर्मचारियों के हक में फैसला सुनाया है। कर्मचारियों की ओर से देश के जाने-माने वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण व उनके सहयोगी अधिवक्ता गोविंद जी ने पैरवी की। श्री भूषण ने कर्मचारियों के पक्ष में जोरदार दलीलें दीं। भूषण जी ने माननीय अदालत के सामने कई साल से लंबित पड़े मामले व साथ ही termination के लंबित पड़े मामलो को रखा।इसके बाद माननीय न्यायालय ने आदेश दिया कि देशभर में मजीठिया के मामलों का निराकरण श्रम न्यायालय निश्चित तय अवधि में करें। इस दौरान हाईकोर्ट के स्टे का मामला भी उठाया गया। इस पर भी कोर्ट ने आदेश दिए कि हाईकोर्ट मजीठिया के मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करे और स्टे देने से बचे। साथ ही वर्तमान में हाईकोर्ट में जो मामले लंबित हैं, उन्हें जल्द से जल्द निपटाया जाए। इसके अलावा सालों से चल रहे बर्खास्तगी और ट्रांसफर के मामलों में भी कर्मचारियों को राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि इन मामलों को भी श्रम न्यायालयों को निर्धारित समय सीमा में ही निपटाना होगा। सर्वोच्च न्यायालय का आदेश कर्मचारियों की बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है। पूर्व के कटू अनुभवों से सीख लेते हुए इस बार बिलकुल तय रणनीति के मुताबिक माननीय सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले को लड़ा गया। इससे सफलता मिली है। इस मामले में दिल्ली से महेश कुमार मजीठिया क्रांतिकारी ने मुख्य भूमिका निभाई, नोएडा से विवेक त्यागी, रतनभूषण प्रसाद, राजेश निरंजन, मध्यप्रदेश से राजेंद्र मेहता संयोजक स्टेट वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन एमपी, मौ फैजान खान महासचिव स्टेट वर्किग जर्नलिस्ट एमपी, हिमाचल प्रदेश से राजेश गोस्वामी, राजेश शर्मा, पंजाब जालंधर से मानसिंह, सुनील कुमार, विकास सिंह लुधियाना से धीरज सिंह साथियों का विशेष सहयोग रहा। यहां के सभी साथी बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने पूरे मामले के लिए न केवल धन बल्कि दस्तावेज और अन्य माध्यमों से केस में अपना सहयोग किया।

प्रभावी रणनीति से मिली सफलता 
ज्ञात हो कि देशभर के श्रम न्यायालयों में करीब दो साल से मजीठिया के प्रकरण विभिन्न् कारणों से लंबित हैं। अखबार प्रबंधन श्रम न्यायालयों के अंतरिम आदेशों को लेकर हाईकोर्ट जाकर मामले में स्टे लेकर लंबित करने का प्रयास कर रहा है। इससे मामलों में अनावश्यक देरी हो रही है। इसके अलावा प्रबंधन की मंशा थी कि किसी भी श्रम न्यायालय से कोई अवार्ड पारित न हो सके। अखबार मालिकों की इस रणनीति से निपटने के लिए दिल्ली, नोएडा , पंजाब, से लेकर भोपाल के साथियों ने पूरी व्यूह रचना तैयार की। इसके बाद अधिवक्ता गोविंद जी के माधयम से प्रख्यात अधिवक्ता प्रशांत भूषण जी को सारे मामले से अवगत कराया और उनसे अनुरोध किया गया कि वे इस मामले को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष रखें, जिसके बाद नवंबर माह में एक आईए दाखिल हुई। अवमानना मामलों की गलतियों से सबक लेते हुए इस बार पूरा प्लान तैयार किया गया था ताकि कोर्ट में इस बार कानूनी रूप से किसी तरह की कोई कमी न रह जाए। सभी के साझा प्रयासों और सहयोग से इस बार कर्मचारियों को सुप्रीम कोर्ट से जीत मिली है। सभी साथियों को सुप्रीम कोर्ट के इस ताजा आदेश के अनुसार ही अपनी आगे की रणनीति तैयार करनी चाहिए। देशभर के साथियों को पुन: जीत पर बधाई।
Note:- सुप्रीम कोर्ट का order आने पर और विस्तृत जानकारी दी जाएगी

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Saturday 19 January 2019

मजीठिया: कोर्ट में पत्रिका की लुटिया डुबो दी मालिकों के इस चहेते कारिंदे ने

मजीठिया वेजबोर्ड की अनुशंसाओं को लागू करने के झूठे कागजात तैयार करने वाले इस कारिंदे की एक खामी ने कोर्ट में पूरे मामले का रुख बदल दिया है। जयपुर में चल रहे 190 कर्मचारियों के मामले में एक ऐसा कागज तैयार कर पेश कर दिया है, जो स्वयं ही अपने झूठे होने के प्रमाण दे रहा है। यह कागज ही स्वयं को झूठा सिद्ध कर रहा है। कर्मचारियों ने अपने शपथ पत्रों में इस कागज का उल्लेख करते हुए जब लिखा 'कागज बोल रहा है', तो अदालती लड़ाई की मोनिटरिंग कर रहे इस चहेते कारिंदे को अपनी गलती समझ में आ गई, लेकिन है तो यह पुराना बाजीगर। आत्ममुग्ध मालिक और युवराजों की नब्ज भी अच्छी तरह पहचानता है। अच्छी तरह पता है कि इनको आत्ममुग्धता की अंधता में घेरे रखो, इनका कमियों पर ध्यान जाएगा ही नहीं। सो आज तक मालिक और मालिक पुत्रों को नहीं बताया कि उस कागज के कारण मुकदमा बिगड़ गया है। ऐसा भी नहीं कि मालिक फीडबैक नहीं लेते हों। लेते हैं, लेकिन केसरगढ़ स्थित एक बड़े कमरे में बैठने वाले इसी कारिंदे से। रोज बात करते हैं और वह रोज इन्हें समझा देता है सब सेट कर लिया है।

पत्रिका के वकीलों को पता है कि मामला फंस गया है, लेकिन वे बताएं किसे? अहंकार के मद में चूर मालिक या युवराज की शान के खिलाफ है, ऐसे छोटे वकीलों से मिलना। प्रबंधन की ओर से रोज कोर्ट में आने वाले पी.के गुप्ता को वे कई बार कह चुके, लेकिन वह है तो इस प्रमुख कारिंदे का चहेता छुटभैय्या कारिंदा ही। उसने सुना और बता दिया प्रमुख कारिंदे को।

केसरगढ़ बैठे इस कारिंदे को अब डर सता रहा है कि एक न एक दिन यह बात खुलेगी और फिर ढूंढा जाएगा कि यह 16 नवम्बर 2011 का नोटिस किसने बनाया है। किसने चेक किया था और किसने अप्रूव किया था। कोई कनिष्ठ कर्मचारी यह गलती कर देता तो समझ में आता है, लेकिन प्रबंधन के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति के हाथों ऐसा हो जाए, तो क्षमा कैसे मिलेगी। गलती भी ऐसे व्यक्ति के द्वारा जो स्वयं विधि स्नातक हो। खैर, अब यह कारिंदा संस्थान के भीतर धड़ेबाजी की अफवाह को हवा देकर मालिकों को दूसरी तरफ उलझाने का प्रयास कर रहा है। उड़ाया जा रहा है कि संपादकीय विभाग में शीर्ष पर बैठे लोगों की शह पर लोग इतनी संख्या में केस में गए हैं और केस वापसी के सारे प्रयास भी इसी कारण विफल हो रहे हैं।

स्थिति ज्यादा नहीं बिगड़े, इसलिए अब इस कारिंदे ने अपने मातहतों को निर्देश दिए हैं कि भविष्य में जिन भी केसों में कागजात जमा करवाने हैं, वहां 16 नवंबर 2011 को नोटिस जमा नहीं करवाया जाए। पिछले सप्ताह पत्रिका ने ग्यालियर में कुछ कर्मचारियों के मामलों में दस्तावेज जमा करवाए। इस नोटिस के उल्लेख वाला एक पत्र तो जमा करवाया, लेकिन नोटिस कोर्ट में दाखिल नहीं किया। यह अलग बात है कि अब हम वह नोटिस जमा करवाएंगे और उसी के आधार पर सिद्ध कर देंगे कि संस्थान की 20-जे की अंडरटेकिंग लेने सम्बन्धी पूरी कवायद ही कैसे झूठी है।

आप भी सोच रहे होंगे कि क्या है यह कागज, तो जानिए...
पत्रिका ने जून 2014 में सभी कर्मचारियों से एक प्री टाइप्ड कागज पर साइन करवाए। इन्हें नवंबर 2011 में 20-जे के तहत दी गई अंडरटेकिंग सिद्ध करने के लिए झूठे दस्तावेज तैयार किए गए। पत्रिका के इस लॉ ग्रेज्युएट कारिंदे ने 16 नवंबर 2011 का एक नोटिस तैयार किया। बताया गया कि यह नोटिस लगाया गया और विकल्प मांगे गए। सभी कर्मचारी स्वेच्छा से 20-जे की अंडरटेकिंग 30 नवंबर तक जमा करवा गए। लॉ ग्रेज्युएट की सामान्य बुद्धि यहां मात खा गई। मजीठिया वेजबोर्ड की अनुसंशाएं लागू करने का केंद्र सरकार का नोटिफिकेशन जारी हुआ था 11 नवंबर 2011 को, लेकिन इन्होंने गूगल पर ढूंढकर नोटिस में लिख दिया कि 25 अक्टूबर 2011 को नोटिफिकेशन जारी हुआ है। केंद्र सरकार की अधिसूचना में लिखा था कि हित लाभ एक जुलाई 2010 से दिए जाएंगे। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 7 फरवरी 2014 को आदेश में कहा कि हित लाभ 11 नवंबर 2011 से दिए जाएंगे। इन्होंने नोटिस 2015-2016 में बनाया था, इसलिए इन्होंने भी नोटिस में लिख डाला कि नोटिफिकेशन के अनुसार हित लाभ 11 नवंबर 2011 से दिए जाएंगे। ये कैसे सिद्ध कर पाएंगे कि इन्हें सुप्रीम कोर्ट के जजों ने नवंबर 2011 में ही बता दिया था कि वे 07 फरवरी 2014 को जब प्रबंधनों की याचिकाओं का निपटारा करेंगे, तब आदेश में हित लाभ देने की तिथि को एक जुलाई 2010 की जगह 11 नवंबर 2011 कर देंगे।
आखिर युवराजों को कौन समझाए, बाबू तो बाबू ही रहेगा, किसी बाबू को महाप्रबंधक बना देने से वो प्रोफेशनल नहीं हो जाता है।

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Friday 18 January 2019

WJI ने‌ 'वेजबोर्ड नहीं, तो विज्ञापन नहीं' समेत 28 सूत्रीय मांगपत्र PMO को सौंपा



WJI ने सदस्य पत्रकारों के हित में 3 लाख के दुर्घटना बीमा की घोषणा की
नई दिल्ली। वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया ने 16 जनवरी को अपने स्थापना दिवस के अवसर पर मीडिया महाधरने का आयोजन किया। पिछले कुछ समय से पत्रकारों की मांगों को लेकर वर्किंग जर्नलिस्ट आफ इंडिया संबद्ध भारतीय मजदूर संघ काफी सक्रिय रहा है। ये देश में पत्रकारों का शीर्ष संगठनों में से एक है। यह संगठन पत्रकारों के कल्याणार्थ समय-समय पर रचनात्मक और प्ररेणादायक कार्यक्रम और आंदोलन चलाता रहा है। इसको देश के विभिन्न राज्यों से आए पत्रकार संगठन समर्थन दे रहे हैं। वर्किंग जर्नलिस्ट्स ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनूप चौधरी और राष्ट्रीय महासचिव नरेंद्र भंडारी द्वारा आहूत महाधरने में पत्रकार एकजुटता का दृश्य देखने को मिला। देश के 12 राज्यों के पत्रकारों और कई पत्रकार संगठनों धरने में आकर केंद्र व राज्‍य सरकारों के प्रति आक्रोश व्यक्त किया। महाधरने के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष अनूप चौधरी के नेतृत्व में WJI प्रतिनिधिमंडल pmo पहुंचा और वहां पर पत्रकारों की 28 मांगों का ज्ञापन सौंपा।

इस बीच, WJI ने अपने स्थापना दिवस पर अपने सदस्य पत्रकारों के हित में 3 लाख के दुर्घटना बीमा की घोषणा की। महाधरने में भारतीय मजदूर संघ के क्षेत्रीय संगठन मंत्री पवन कुमार, संगठन महामंत्री अनीश मिश्रा और संगठन मंत्री ब्रजेश कुमार भी पहुंचे। उन्होंने पत्रकारों की मांगों को अपना समर्थन दिया। WJI प्रवक्ता उदय मन्ना ने बताया कि पत्रकारों में जो आक्रोश भरा है वो कोई भी दिशा ले सकता है। मीडियाकर्मी RJS स्टार सुरेंद्र आनंद के गीत ने माहौल में जोश भर दिया।

वर्किंग जर्नलिस्टस ऑफ इंडिया का मांगपत्र-


  • वर्तमान समय की मांगों पर ध्यान में रखते हुए वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट में संशोधन किया जाए। 
  • इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया, वेब मीडिया, ई-मीडिया और अन्य सभी मीडिया कार्यकारी पत्रकार अधिनियम के अधिकार क्षेत्र में लाया जाए। 
  • भारत की प्रेस काउंसिल के स्थान पर मीडिया काउंसिल बनाई जाए। जिससे पीसीआई के दायरे और क्षेत्राधिकार को बढ़ाया जाए।
  • भारत के सभी पत्रकारों को भारत सरकार के साथ पंजीकृत किया जाए और वास्तविक मीडिया कर्मियों को पहचान पत्र जारी किया जाएं। 
  • जिन अखबारों ने वेजबोर्ड की सिफारिशों को लागू नहीं किया उन पर सरकारी विज्ञापन देने पर कोई अनुशासत्मक प्रतिबंध हो।
  • केंद्र सरकार लघु व मध्यम समाचार पत्रों को ज्यादा से ज्यादा विज्ञापन जारी करने के अपने नियमों को जल्द से जल्द परिवर्तित करे।
  • देश में पत्रकार सुरक्षा कानून तैयार किया जाए। 
  • तहसील और जिला स्तर के संवाददाताओं एवं मीडिया कर्मियों के लिए 24 घंटे की हेल्पलाइन उपलब्ध कराई जाएं। 
  • भारत में सभी मीडिया संस्थानों को वेजबोर्ड की सिफारिशों को सख्ती से लागू करवाने के नियम बनाए जाए। 
  • ड्यूटी के दौरान अथवा किसी मिशन पर काम करते हुए पत्रकार एवं मीडियाकर्मी की मृत्यु होने पर उसके परिजन को 15 लाख का मुआवजा और परिजनों को नौकरी दी जाए।
  • सभी पत्रकारों को सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन की सुविधा और सेवानिवृत्ति की उम्र 64 वर्ष की जाए। 
  • सभी पत्रकारों को राज्य एवं केंद्र सरकारों की तरफ से चिकित्सा सुविधा और बीमा सुविधा दी जाए। 
  • मीडिया में नौकरियों में अनुबंध प्रणाली का उन्मूलन किया जाए। 
  • कैमरामैन समेत सभी पत्रकारों को सरकारी कार्यक्रमों को कवर करने के लिए कोई पांबदी नहीं होनी चाहिए।
  • बेहतर पारस्परिक सहयोग के लिए जिला स्तर पुलिस-पत्रकार समितियां गठित की जाएं। 
  • शुरूआती चरणों में वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी द्वारा पत्रकारों से संबंधित सभी मामलों की समीक्षा की जाए और पत्रकारों से जुड़े मामलों को जल्द से जल्द निपटारे के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाई जाए। 
  • मीड़िया कर्मियों को देशभर में उनकी संस्थान के पहचान पत्र के आधार पर सड़क टोल पर भुगतान करने से मुक्त किया जाए। 
  • पत्रकारों को बस और रेल किराये में कुछ रियायत प्रदान की जाए। 
  • केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा PIB-DIP पत्रकारों की मान्यता प्राप्त करने की प्रक्रिया को एकरूपता व सरल बनाया जाए।
  • समाचार पत्रों से GST खत्म किया जाए।
  • विदेशी मीडिया के लिए भारतीय मीडिया संस्थानों में विनिवेश की अनुमति ना दी जाए।
  • आनलाइन मीडिया को मान्यता दी जाए, उन्हें सरकारी विज्ञापन दिए जाएं व उनका सरकारी एक्रीडेशन किया जाए।

Thursday 17 January 2019

दैनिक भास्कर की भ्रष्ट प्रसार नीति ने ली अखबार वितरक की जान!

राजस्थान कोटा के अखबार वितरक राठौर ने दैनिक भास्कर के झूठे दिखावे के आगे 10 जनवरी 2019 को अपनी जान गंवा दी। भास्कर खुद को नंबर वन सिद्ध करने के लिये अब किसी की जान लेने में भी पीछे नहीं हटता। दैनिक भास्कर अपनी झूठी ग्राहक संख्या बताने के लिये वितरकों पर अपनी अखबार की प्रतियां थोपता है और उसके पैसे गुंडे भेजकर वसूलता है। राठौर पर भास्कर का लगभग 1.5 से 2 लाख का कर्जा था।

अपने मीडिया के नाम पर दादागिरी करने का ये कोई पहला मामला नहीं है। कोटा के चौपाटी काउंटर के वितरक राठौर भी मीडिया की इस गुंडागर्दी का शिकार हुआ और अपना प्राण त्याग कर ही मुक्ति का रास्ता निकाला। सूत्रों से खबर है कि दैनिक भास्कर ने उसकी ग्राहक संख्या से अधिक उसको अखबार की प्रतियां थोपी जिसका भुगतान करने में वो असमर्थ था। उसके घर पर रद्दी बढ़ती गई। उसके घर मे क्लेश होना शुरू हो गया। कर्जे तले वो दबता चला गया। अखबार के इस कर्जे ने उसके परिवार की खुशियां में जहर घोल दिया।

विवाद आए दिन की बात हो गई। विवादों के चलते उनकी धर्मपत्नी उनको छोड़ कर चली गई। उनकी इस दशा पर भी दैनिक भास्कर को रहम नहीं आया। वो निरंतर उसको परेशान करते रहे। घर मे घुसकर उसको धमकाते रहे और उन प्रतियों का पैसा मांगते रहे जो उसने कभी खरीदी ही नहीं बल्की उस पर थोपी गई और जो बिकी नहीं, सिर्फ रद्दी हुई है।

दरअसल होता ये है कि अखबार एक्सीक्यूटिव स्कीम का प्रलोभन देकर अंटशंट प्रतियां बढ़ा देते हैं और मजे की बात ये है कि उसका लाभ वितरक तक नहीं पहुँचता, वो ही सारा पैसा खा जाते हैं। तभी तो 12-13 हज़ार कमाने वाले एक्सीक्यूटिव कार मेन्टेन कर के चलते हैं। इस नीति से वितरकों को तो साफ साफ नुकसान है और अखबार मालिकों को भी घाटा है।

ताज्जुब की बात है भास्कर से परेशान होकर एक वितरक आत्महत्या कर रहा है लेकिन दूसरे वितरकों के कान पर जूं तक नही रेंगती। राजू भाई, सत्तार भाई, अटवाल, नरेंद्र, गर्ग, खान, डीके, बादल, मालिया ये सिर्फ फोकट के नेता हैं जिन्हें अपने साथी के मरने पर भी कुछ एक्शन नहीं लेना आता। कुछ तो ऐसे हैं जो सिर्फ चाटने का काम करते हैं। वितरक भाइयों को सोचना चाहिए आज किसी के साथ हुआ है, कल उनके साथ भी हो सकता है। इस पूरी घटना पर कोटा दैनिक भास्कर सर्कुलेशन इंचार्ज इंसाफ मोहम्मद ने कोई प्रतिकिया नहीं दी है। सूत्रों से खबर है कि वितरक राठौर ने एक सुसाइड नोट छोड़ा था जिसमें दैनिक भास्कर के एक एक्सीक्यूटिव का नाम दर्ज है।

[साभार: भड़ास4मीडिया]

अदालत से बहाल सैकड़ों मीडियाकर्मियों को एचटी प्रबंधन ने खाली मैदान व गोदाम में कराया ज्‍वाइन


हिंदुस्तान टाइम्स कर्मचारियों के साथ एक और बड़ा धोखा… सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार 272 कर्मचारियों को हिंदुस्तान टाइम्स ने विदाउट प्रोड्यूस अप्वाइंटमेंट लेटर जारी किए हैं जिसमें कर्मचारी को 14 जनवरी से नौकरी पर रखने के लिए जिस स्थान का ऐड्रस (खसरा नंबर 629 कादीपुर विलेज दिल्ली) लिखा है, वहां गोदाम और खाली मैदान है.

नीचे दिया गया वीडियो खसरा नंबर 629 का ही है जहां मीडियाकर्मियों को ज्वाइन कराया गया. हिंदुस्तान टाइम्स लिमिटेड ने कर्मचारियों को गलत जगह का एड्रेस दिया है. अगर ये खाली मैदान हिंदुस्तान टाइम्स लिमिटेड का है तो यहां न कोई फैक्ट्री है और ना ही कर्मचारियों के लिए काम करने के लिए कोई इक्विपमेंट। 272 कर्मचारी इस जगह ज्वाइन करके क्या कार्य करेंगे?


हिन्दुस्तान टाईम्स दिल्ली से निकाले गये 272 कर्मचारियों में ज्यादातर को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर हिन्दुस्तान टाईम्स प्रबंधन ने 14 जनवरी को फिर से ज्वाईन करा दिया। मगर इन कर्मचारियों को ज्वाइन कहां कराया गया, यह पढ़ेंगे तो हिन्दुस्तान टाईम्स प्रबंधन की कार्यशैली पर आप चौक जायेंगे। इन कर्मचारियों को हिन्दुस्तान टाईम्स प्रबंधन ने दिल्ली के एक खाली पड़े मैदान और गोदाम में बुलाया व उन्हें ज्वाईन करा दिया।

अब ये कर्मचारी बेचारे डटे हुये हैं मैदान में, कुर्सी लगाकर। यहां ना तो शौचालय की समूचित व्यवस्था है और ना ही सुरक्षा का इंतजाम है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार २७२ कर्मचारियों को हिंदुस्तान टाइम्स ने विदाउट प्रोड्यूस अप्वाइंटमेंट लेटर जारी किया। इसमें कर्मचारियों को १४ जनवरी से नौकरी पर रखने के लिए जिस स्थान का एड्रेस (खसरा नंबर ६२९ कादीपुर विलेज दिल्ली) लिखा है वहां न तो कोई फैक्ट्री है और ना ही कर्मचारियों के लिए काम करने के इक्विपमेंट। ये २७२ कर्मचारी इस जगह जाकर क्या कार्य करेंगे, यह सोचने का सवाल है। यहां खाली पड़ा मैदान है और एक तरफ एक पुराना गोदाम है।

गौरतलब है कि वर्ष २००४ में हिंदुस्तान टाइम्स ने ३६२ कर्मचरियों को अवैध ढंग से नौकरी से निकाल दिया था। इसके खिलाफ श्रम अदालत का दरवाजा खटखटाया गया। फैसला कर्मचारियों के पक्ष में हुआ। इसके बाद कड़कड़डूमा कोर्ट में लड़ाई चलती रही। कोर्ट ने २३ जनवरी २०१२ को कर्मचरियों के हक में फैसला दिया। लेकिन इस फैसले को हाईकोर्ट में हिंदुस्तान प्रबंधन ने चुनौती दे दी। हाईकोर्ट ने उसे वापस निचली अदालत में भेज दिया।

चूँकि हिंदुस्तान की संपत्तियों का परिक्षेत्र पटियाला कोर्ट है, इसलिए मामला वहाँ पहुँचा और उसने पिछले साल १४ मई को चार हफ्ते के अंदर संघर्ष करने वाले सभी २७२ कर्मचारियों की बहाली का आदेश जारी कर दिया। बाकी लोगों ने इस बीच प्रबंधन से समझौता कर लिया था। मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा जिसके बाद हिन्दुस्तान प्रबंधन के सामने इन कर्मचारियों को ज्वाईन कराने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था। इन कर्मचारियों को खाली मैदान में ज्वाईन तो करा दिया गया मगर अब काम क्या ये कर्मचारी करेंगे यह देखना बाकी है। आप भी देखिये यह वीडियो। ज्वाइन कराये गये हिन्दुस्तान टाईम्स के कर्मचारियों की क्या स्थिति है।


शशिकांत सिंह
पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी
९३२२४११३३५

Saturday 12 January 2019

भास्कर के संपादक ने चुनाव में पांच लाख डकारे तो आजन्म निकाल दिया

प्रशांत कालीधर और हेमंत शर्मा


  • दूसरे अखबार ने बेईमान संपादक को तुंरत गले लगा लिया
  • मालिकों ने चुनाव में पेड न्यूज से कितना डकारा, कोई हिसाब नहीं?
  • एथिक्स, ईमानदारी और मिशनरी पत्रकारिता छोटे पत्रकारों के लिए


पत्रकारिता अब अजीब पहेली है। संपादक अब खबरों के लिए कम और मालिकों के लिए ज्यादा काम करते हैं। अधिकांश अखबारों व चैनलों के संपादक विवादित हैं। स्वच्छ छवि के संपादक अब नजर नहीं आते हैं। मसलन हर अखबार का एडिशन निकालने के पीछे मालिकों का अलग ध्येय है। हर एक एडिशन का संपादक मोल-भाव कर रखा जाता है। जैसे उत्तराखंड में खनन और यूनिवर्सिटी खोलने के लिए अखबार और चैनल शुरू होते रहे हैं और बंद भी। इसलिए अधिकांश अखबार सरकार के भौंपू की तर्ज पर काम करते हैं।

मीडिया में अब खबरों को लेकर संग्राम नहीं होता बल्कि सरकार के नजदीकी को लेकर होता है। हाल में मेरा देहरादून के सचिवालय में एक अधिकारी से महज इसलिए झगड़ा हो गया कि वह सत्ता के पक्षधर पत्रकार को आधे घंटे से अपने पास बिठाए हुए था और मैं बाहर लॉबी में इंतजार कर रहा था। जब मैं दरवाजा खोल कर अंदर धमका तो साहब मुझ पर बरस पड़े, कि बिना पूछे आ गया। मैंने जवाब दिया कि यदि निजी काम से आऊं तो धकिया कर बाहर भगा देना, जनता के काम से आया हूं तो जवाब तो देना ही होगा। मैंने जब अधिकारी से पूछा ये भी पत्रकार हैं, इनको क्या स्पेशल खबर दे रहे हो तो वो झेंप गये। कारण, अब पत्रकारिता मिशनरी तो छाड़िए, सामाजिक पैरोकारी की भी नहीं रही। सब गोलमाल है।

एक उदाहरण और दे रहा हूं। भास्कर के रतलाम एडिशन के संपादक प्रशांत कालीधर को मालिक सुधीर अग्रवाल ने आजन्म भास्कर से निकाल दिया कि उसने हाल में हुए चुनाव में एक नेता से खबरों के बदले में पांच लाख रुपये ले लिए थे। इसके लिए सुधीर अग्रवाल जी ने बकायदा सभी ब्यूरो चीफ को मेल भी की। सबसे हैरत वाली बात यह है कि इधर भास्कर ने प्रशांत कालीधर को निकाला, उधर, प्रजातंत्र के हेमंत शर्मा ने प्रशांत को गले लगा लिया और नौकरी दे दी। अब मेरे जेहन में दो सवाल हैं कि संपादकों व बड़े पत्रकारों को एक मिनट या एक दिन में नौकरी मिल जाती है, लेकिन साधारण पत्रकार को अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने पर ब्लैकलिस्ट कर दिया जाता है। क्या प्रशांत कालीधर को नौकरी दी जानी चाहिए थी जबकि उन्होंने अपना गुनाह भी स्वीकार कर लिया था? दूसरे प्रशांत कालीधर ने तो महज पांच लाख हड़पे। भास्कर ने पेड न्यूज से कितने डकारे, ये बात सुधीर अग्रवाल नहीं बताएंगे।

दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान चुनाव से पहले पूरे पेज के विज्ञापन देते हैं कि हम निष्पक्ष समाचार छापेंगे। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते हैं, नेताओं से पैकेज की बात होती है और पेड न्यूज छापे जाते हैं? लेकिन इस नक्कारखाने में किसकी तूती बोलती है। सारे नियम-कायदे, बेरोजगारी -शोषण हम जैसे छोटे पत्रकारों के लिए होते हैं। एथिक्स और कुछ हद तक मिशनरी पत्रकारिता भी। बाकी तो सिर्फ दलाली और विशुद्ध व्यवसायी हैं।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]

Wednesday 9 January 2019

मजीठिया: मैं भी भेजूंगा, आप भी जरूर भेजिए राहुल गांधी को पत्र


सभी के लिए आवश्यक

साथियों, गुरुवार 10 जनवरी को देशभर में मजीटिया की एक मुहिम चलेगी। इसमें आपकी भागीदारी भी अनिवार्य``` है।

आपको ये करना है।

नीचे कांग्रेस अध्य्क्ष राहुल गान्धी के 2 मेल आईडी और मेल का टेक्स्ट दिया जा रहा है। हरेक साथी को इसमें अपना नाम, जगह का नाम और संस्थान का नाम आदि लिखकर इन दो मेल आईडी पर सेंड करना है। आपके ज्यादा से ज्यादा मेल हमारी मुहिम को प्रभावी बनाएंगे। इसलिए फैसला आपकी आत्मा पर छोड़ रहे हैं कल इन आईडी पर मेल जरूर करे।
aiccmediasecy@gmail.com
office@rahulgandhi.in

मेल के subject में लिखे ..... मजीठिया वेतन आयोग की अनुशंसाओं के संबंध में

..…....….........,
सेवा में,

माननीय श्री राहुल गांधी जी
अध्यक्ष, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी एवं संसद सदस्य, नई दिल्ली

विषय: श्रमजीवी पत्रकार एवं गैर पत्रकारों के लिए यूपीए सरकार द्वारा लागू मजीठिया वेतन आयोग की अनुशंसाओं के संबंध में।

महोदय,
    विगत दिनों आपने राफैल घोटाले को लेकर संसद से लेकर सड़क तक जिस तरह से जनता की आवाज को उठाया है, निश्चित रूप से यह साहसिक और प्रेरणादायी कदम है। हमें यह कहते हुए बड़ा खेद हो रहा है कि देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी आम जनता के प्रति जिम्मेदार न होकर अपने चंद उद्योगपति दोस्तों के हित साधने में लगे हुए हैं। दुर्भाग्य से श्रमजीवी पत्रकार एवं गैर पत्रकारों के लिए नवंबर साल 2011 में यूपीए सरकार द्वारा लागू मजीठिया वेतन आयोग की अनुशंसाओं का मामला भी श्री नरेंद्र मोदी और उनके उद्योगपति मित्रों की सांठगांठ का शिकार हो गया है। दुखद बात यह है कि अखबार मालिकान कानून को ताख पर रखे हुए हैं और अपने यहां न्यूनतम वेतन का कानून भी नहीं मान रहे हैं। सरकार भी मौन है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी अपने अखबार मालिक मित्रों के हितों को साधने के लिए हजारों श्रमजीवी पत्रकार एवं गैर पत्रकारों का हक छीन रहे हैं। केंद्र और विभिन्न् राज्यों में शासित भाजपा सरकार मालिकों के हितों की रक्षा के लिए कवच बनकर खड़ी हो गई है।
महोदय हम आपको अवगत कराना चाहेंगे कि अखबार मालिकों और उद्योगपतियों के भारी दबाव के बाद भी कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने लम्बे समय से शोषण का शिकार होते आ रहे श्रमजीवी पत्रकारों और गैर पत्रकारों के लिए 11 नवम्बर 2011 को मजीठिया वेतन आयोग की अनुशंसाओं को लागू किया था। इसमें तत्कालीन यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने भी विशेष रूचि लेकर इन अनुशंसाओं को लागू कराया था। अखबार मालिकों ने इस लोक कल्याणी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार ने दृढतापूर्वक माननीय सुप्रीमकोर्ट में अपना पक्ष रखा,जिससे फैसला पत्रकारों और गैर पत्रकारों के हक में आया। सुप्रीम कोर्ट ने 7 फरवरी 2014 को अपने फैसले में अखबार मालिकों को पूर्ण रूप से मजीठिया वेतन आयोग की अनुशंसाएं लागू करने का आदेश दिया। दुर्भाग्य से इस फैसले के बाद केन्द्र और अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकार होने से अब तक इस फैसले पर अमल नहीं हो सका है। ज्ञात हो कि मजीठिया वेतनमान की अनुशंसाओं को लागू कराने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। राज्य सरकार को ही इस फैसले का क्रियान्वयन कराना है। सौभाग्य से मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार को जनादेश मिला है और तीनों राज्यों में वर्तमान में कांग्रेस की सरकार काबिज है। आपके विचार में एक महत्वपूर्ण तथ्य लाना चाहते हैं कि मजीठिया वेतनमान की अनुशंसाएं अखबार प्रबंधन को लागू करना है। इसमें राज्य सरकार के वित्तीय बजट पर कोई भार नहीं आएगा। अत: आपसे विनम्र आग्रह है कि यूपीए सरकार के इस ऐतिहासिक फैसले को लागू कराने में आप अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हुए निम्नलिखित मांगों को पूरा कराने का कष्ट करेंगे।

1 कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को मजीठिया वेतनमान लागू कराने के लिए निर्देशित करें।

2  केंद्र की एनडीए सरकार पर दबाव बनाकर देश के सभी अखबार और न्यूज एजेंसियों में वेतनमान लागू कराया जाए।

संसद के अगले सत्र में कांग्रेस की ओर से इस मुद्दे को हजारों श्रमजीवी पत्रकारों और गैर पत्रकारों की ओर से आप स्वयं उठाएं।

4  साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के घोषणापत्र में मजीठिया वेतनमान की अनुशंसाएं लागू कराने का मुद्दा भी शामिल किया जाए।

नाम-
पद-
स्थान-
संस्थान का नाम-
मोबाइल नम्बर-
निवास का पता-

यदि आप किसी यूनियन से जड़े है तो नीचे लिखी जानकारी भी भरे नहीं तो इसे हटा दें

यूनियन का नाम-
पद-
स्थान-
यदि पदाधिकारी नहीं हैं तो पद की जगह सदस्य लिख दें।



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चुनाव से पहले सरकार ने प्रिंट मीडिया की विज्ञापन दरें 25 फीसदी बढ़ाई

नई दिल्‍ली। केंद्र सरकार के ब्यूरो ऑफ आउटरीच एंड कम्यूनिकेशन ने प्रिंट मीडिया को दिए जाने वाले विज्ञापनों की दरों में 25 प्रतिशत का इजाफा किया है। एक सरकारी बयान में कहा गया कि इस फैसले से क्षेत्रीय और भाषाई अखबारों सहित मझोले और छोटे अखबारों को बड़ा फायदा होगा। इससे पहले 2013 में दरों में इजाफा हुआ था. वर्ष 2010 की तुलना में उस समय 19 प्रतिशत की वृद्धि की गई थी।

मंगलवार को सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने ब्यूरो ऑफ आउटरीच एंड कम्यूनिकेशन के द्वारा प्रिंट मीडिया के लिए मौजूदा दर ढांचे से अलग प्रिंट मीडिया के लिए विज्ञापन दर में 25 प्रतिशत इजाफा करने का फैसला किया है।

यह फैसला मंगलवार से ही प्रभावी हो गया है और तीन साल तक के लिए मान्य होगा. सरकार के मुताबिक ये फैसला सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा गठित आठवीं दर संरचना समिति की सिफारिशों के आधार पर यह फैसला किया गया। समिति ने न्यूज प्रिंट मूल्यों में वृद्धि, प्रोसेसिंग चार्ज और अन्य पहलुओं पर विचार करते हुए ये सिफारिशें की है।

सरकार के इस फैसले पर प्रतिक्रिया में कांग्रेस की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा,‘साल 2014 से ही हमने देखा है कि भाजपा ने मीडिया को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है, मीडिया को चुप कराने की कोशिश की है और वे ऐसा मानते हैं कि वे मीडिया को खरीद सकते हैं क्योंकि उनके पास सत्ता है और क्योंकि उनके पास धनबल है।

कांग्रेस प्रवक्ता ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि, ‘लेकिन उन्हें (भाजपा को) इस बात का जरा भी अहसास नहीं है कि पत्रकारिता को चुप नहीं कराया जा सकता, उसे खरीदा नहीं जा सकता और आज नहीं तो कल उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।’’

[साभार: hindi.thequint.com]

मजीठिया: हाथी को भारी पड़ी होशियारी, चींटी से खाई फिर मात

पैसे और पाखंड के मद में चूर हाथी को एक बार फिर चींटी ने चित्त कर दिया। ना तो फर्जी कागजात के आधार पर कब्जाए गढ़ के ऊपरी हिस्से पर बैठे कारिंदों की होशियारी काम आई और न ही भारी पैसा खर्च कर खड़े किए गए महंगे एवं नामचीन वकील। मध्यप्रदेश हाइकोर्ट की इंदौर बैंच के सामने झूठे तर्क नहीं चले और हाईकोर्ट ने पत्रिका की याचिका खारिज कर दी। साथ ही अपने फैसले को रिपोर्टेबल भी बना दिया ताकि कानून की मासिक पत्रिकाओं में फैसला छपकर ज्यादा से ज्यादा प्रचारित भी हो।

मामला वही है, मीडिया मुगल और स्वयंभू पत्रकारिता शिरोमणी के समाचार पत्र में काम करने वाली छोटी सी चींटी 'जितेंद्र सिंह जाट' का। जितेंद को पत्रिका में प्रथम नियुक्ति 01.11.2012 को मिली थी। जब स्वयंभू पत्रकारिता शिरोमणी के कारिंदों ने मजीठिया से बचने के लिए जून 2014 में सभी कर्मचारियों से जबरन एक प्री टाइप्ड कागज पर हस्ताक्षर करवाए तो जितेंद्र से भी करवाए गए। चींटियों की क्या बिसात। हाथी और उसके कारिंदे इन कागजों पर चींटियों के हस्ताक्षर पाकर मस्त हो गए। इतने मस्त कि होश ही नहीं रहा कि यही कागज बाद में चल कर उनके पस्त होने का कारण बनेगा। कागज तो कागज होता है, इसलिए कहा जाता है कि कागज बोलता है।

मजीठिया वेजबोर्ड संबंधी अधिसूचना के अनुसार किसी भी कर्मचारी से 20-जे की अंरटेकिंग 2 दिसंबर 2011 तक ही (यानी अधिसूचना 11.11.2011 से तीन सप्ताह के भीतर) ली जा सकती थी। पत्रिका ने सभी चींटियों से जिस कागज पर जून 2014 में जबरन साइन करवाए थे, उन्हें ही 20-जे की अंडरटेकिंग बताया। ग्वालियर जितेंद्र ने लेबर कमीश्नर के यहां मजीठिया के लिए 17(1) का आवेदन लगाया तो पत्रिका ने जवाब में कह दिया कि जितेंद्र ने 20-जे के तहत विकल्प दे रखा है इसलिए वे मजीठिया के तहत वेतनमान पाने के हकदार नहीं हैं।

जितेंद्र ने अपने आवेदन के साथ 22 लाख रुपये बकाया होने का ड्यू-ड्रॉन भी लगाया था। मदमस्त हाथी के डेढ़ सयाने कारिंदे अपने जवाबों में 20-जे का झुंझुना बजाते रहे लेकिन उन्हें बकाया पर आपत्ति का होश ही नहीं आया। हाथी और हाथीपुत्र को यह समझाते रहे कि मामला 20-जे के आधार पर ही खारिज हो जाएगा।  सयाने कारिंदे जून 2014 में लिए गए जिस कागज को दिखाकर फूले नहीं समा रहे थे, उसी कागज पर हमारी समझदार चींटी की नजरें टिकी थीं। चींटी ने इसी कागज को अपना हथियार बनाया और लेबर कमिश्नर के यहां हाथी को इसी कागज के आधार पर चित्त कर दिया।

दरअसल, जितेंद्र कंपनी में भर्ती ही उस समय हुए थे जब 20-जे के तहत विकल्प देने की तीन सप्ताह की अवधि समाप्त हो गई थी। लेबर कमीश्नर ने माना कि जितेंद्र से तो 20-जे का विकल्प लिया ही नहीं जा सकता था। जितेंद्र द्वारा बकाया मांगे गए 22 लाख रुपये के संबंध में पत्रिका ने कुछ कहा नहीं था इसलिए लेबर कमीश्नर ने पत्रिका पर बकाया माना और रिकवरी सर्टिफिकेट जारी कर दिया। पत्रिका ने इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी और अब हाईकोर्ट में कहा कि बकाया को लेकर भी विवाद था। 20-जे का झुंझुना भी बजाया।

उच्च न्यायालय ने भी सुनवाई के बाद माना कि 20-जे के तहत विकल्प देने की निर्धारित तीन सप्ताह की अवधि समाप्त होने के बाद किसी कर्मचारी से अंडरटेकिंग ली ही नहीं जा सकती। यदि ली गई है तो वह निरर्थक है। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि जब लेबर कमीश्नर के सामने बकाया राशि को लेकर आपत्ति नहीं की तो अब ऐसी आपत्ति को स्वीकार नहीं किया जा सकता।


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बीमार पिता की सेवा के लिए छुट्टी मांगने पर नौकरी से ही छुट्टी कर दी!


(देखें व्‍हाट्सऐप पर जारी आदेश)
खबर हिन्दुस्तान अखबार के मुरादाबाद संस्करण से है जहां अपने वरिष्ठ मार्केटिंग अधिकारी को इसलिए निकाल दिया, क्योंकि उसने बीमार पिता की सेवा के लिए छुट्टी मांगी थी। हिंदुस्तान मुरादाबाद के मार्केटिंग (विज्ञापन विभाग) में बतौर अपकंट्री हेड काम करने वाले वरिष्ठ अधिकारी बिमल कुमार अग्रवाल को उनके पिता की तबियत खराब होने पर छुटटी माँगने पर बुरी तरह से खरी खोटी सुनाया गया।

साथ ही कहा गया कि कम्पनी की गिरती हुई आर्थिक हालात के कारण और त्यौहारी सीजन के मद्देनजर दो माह तक किसी भी प्रकार की छुट्टी नहीं दी जाएगी। इसके बाद सभी कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए एक तुगलकी फरमान व्‍हाट्सऐप के द्वारा जारी कर दिया गया कि दो माह तक किसी को छुट्टी नहीं मिलेगी। इसके बावजूद अगर किसी ने छुट्टी लेने की कोशिश की तो उसे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा।

इसी कड़ी में जब बिमल कुमार के पिता की तबियत बिगड़ी और उन्होंने अपनी छुट्टी का आवेदन लगाया तो उनकी कंपनी से परमानेंट छुट्टी कर दी गई। बताया यह जाता है कि यह तो केवल एक बहाना था। आजकल हिंदुस्तान कंपनी पर मजीठिया वेजबोर्ड के बढ़ते हुए केसों के कारण कंपनी किसी न किसी बहाने से पुराने कर्मचारियों एवं अधिकारियों को निपटाने में लगी हुई है।


[साभार: भड़ास4मीडिया]

Tuesday 8 January 2019

मजीठिया: महाराष्‍ट्र में समाचार पत्रों की फिर से होगी जांच

मुंबई। पत्रकारों और समाचारपत्र कर्मियों के लिए गठित जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिश को माननीय सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बाद भी अमल में नहीं लाया जा सका है। महाराष्ट्र के कामगार आयुक्त की अध्यक्षता में आयोजित त्रिपक्षीय समिति की बैठक में इस पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कामगार आयुक्त राजीव जाधव ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिश को अमल में लाया गया या नहीं, इसकी जांच के लिए 15 दिनों के अंदर 6 टीमें बनाई जाएंगी। ये टीमें सभी वर्तमान समाचार पत्रों की फिर से जांच करेंगी और फील्ड आफिसर पूरी जांच रिपोर्ट कामगार आयुक्त को देंगे।

महाराष्ट्र में जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिश को किसी भी समाचार पत्र प्रतिष्ठान द्वारा सही तरीके से लागू नहीं किया गया है। पत्रकारों और मीडियाकर्मियों पर विविध प्रकार के दबाव डाले जा रहे हैं। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी मीडियाकर्मी और पत्रकार जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिश के अनुसार अपना बकाया वेतन और एरियर ना मांगे इसके लिए उन्हें डराया जा रहा है। इस बारे में एनयूजे की महाराष्ट्र अध्यक्ष शीतल करदेकर ने कामगार आयुक्त का ध्यान दिलाया और कहा कि बार बार सर्वोच्च न्यायालय और श्रम मंत्रालय को फर्जी रिपोर्ट कामगार विभाग द्वारा भेजी जा रही है। इसके लिए सभी वर्तमान समाचार पत्रों की फिर से और स्पष्ट जांच कराई जाए।

इसका बीयूजे के इंदर कुमार जैन ने भी समर्थन किया। इस बैठक में ध्यान दिलाया गया कि समाचार पत्र प्रतिष्ठानों द्वारा जान बूझकर अपने प्रतिष्ठानों की गलत बैलेंसिट देकर ग्रेडेशन पर मतभेद पैदा किया जा रहा है। सबसे ज्यादा मतभेद समाचार पत्र प्रतिष्ठानों के ग्रेडेशन को लेकर होता है। इसके लिए जरुरी है कि वर्तमान सभी समाचार पत्रों की बैलेंसशीट आयकर विभाग से मंगाई जाए या दिल्ली स्थित डीएवीपी, कंपनी रजिस्ट्रार कार्यालय से मंगवाया जाए। इससे समाचार पत्रों का ग्रेडेशन तय हो सकेगा। यह मुद्दा भी शीतल करदेकर ने उठाया।

आठ महीने बाद मजीठिया वेतन आयोग को अमल में लाने के लिए पक्षीय समिति की बैठक महाराष्ट्र के कामगार आयुक्त के मुंबई स्थित कार्यालय में बुलाई गई थी। इसकी अध्यक्षता खुद नए कामगार आयुक्त राजीव जाधव ने किया। इस बैठक में मालिकों के प्रतिनिधि के रूप में सकाल के मेदनेकर उपस्थित थे जबकि मीडियाकर्मियों और पत्रकारों के प्रतिनिधि के रुप में एनयूजे महाराष्ट्र की शीतल करदेकर, बीयूजे के मंत्रराज पांडे, इंदर जैन आदि उपस्थित थे।

कामगार आयुक्त राजीव जाधव ने सबसे पहले वर्तमान 129 समाचार पत्रों की जिनके बारे में दावा किया गया है कि इन्होंने जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिश को लागू नहीं किया है, उनकी जांच कर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है। इसके लिए 15 दिनों में 6 जांच टीमें भी बनाने का निर्देश दिया गया है। दो महीने में यह जांच पूरी करने का भी नये कामगार आयुक्त ने निर्देश दिया है। साथ ही कामगार आयुक्त ने कहा कि समाचार पत्र कर्मियों को डरने की कोई जरूरत नहीं है। नए कामगार आयुक्त ने यह भी कहा कि अगर किसी भी समाचार पत्र प्रबंधन ने अपने मीडियाकर्मियों से यह लिखवाकर लिया है कि उसे मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ नहीं चाहिए और अगर वह पात्र है तब भी उसे माननीय सुप्रीमकोर्ट के आदेश के अनुसार मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ मिलेगा।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी
९३२२४११३३५


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Monday 7 January 2019

बड़ी खबर: अब अंशकालिक संवाददाताओं को भी मिलेगा मजीठिया का लाभ




देशभर के समाचार पत्रों में कार्यरत उन अंशकालिक संवाददाताओं के लिए जो समाचार पत्रों में समाचार भेजने के बदले नाम मात्र भुगतान पाते थे के लिए एक अच्छी खबर आई है। अब अंशकालिक संवादताताओं को भी समाचार पत्र कर्मचारी मानते हुए जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ देने का आदेश मेरठ की एक श्रम न्यायालय ने दिया है। इस श्रम न्यायालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश को संज्ञान में लेते हुए यह आदेश सुनाया है।

श्रम न्यायालय ने हिन्दुस्तान के अंशकालिक संवाददाता संदीप नागर द्वारा दायर एक याचिका पर यह निर्णय सुनाया है। हालांकि यह भी स्पष्ट कर दूं कि यह जरुरी नहीं है कि एक श्रम न्यायालय दुसरे श्रम न्यायालय के दिए गए फैसले को अपने यहां लागू करे ही। लेकिन इससे एक रास्ता जरुर अंशकालिक संवाददाताओं के लिए खुल गया है।

बताते हैं कि मेरठ के रहने वाले संदीप नागर हिन्दुस्तान समाचार पत्र में अंशकालिक संवाददाता थे। उन्होंने जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार अपना बकाया पाने के लिए श्रम विभाग में आवेदन किया था। इस पर हिन्दुस्तान प्रबंधन ने यह दावा किया कि संदीप नागर पेशे से एक अध्यापक है और वह श्रमिक की परिभाषा में नहीं आता है। श्रम विभाग ने इस मामले को श्रम न्यायालय में भेज दिया। इसी बीच कंपनी इलाहाबाद उच्च न्यायालय गई और दावा किया कि श्रमायुक्त मेरठ को श्रम न्यायालय में इस मामले को भेजने का अधिकार नहीं है। संदीप नागर के एडवोकेट ने दावा किया कि शासन द्वारा मेरठ के उपश्रमायुक्त को इसके लिए अधिगृहित किया गया है और यह कारवाई वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 17(2) के तहत सही और वैधानिक है। साथ ही यह भी कहा गया कि माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा पारित निर्णय से यह स्पष्ट है कि श्रम न्यायालय मेरठ को वाद सुनने और निर्धारित करने का पूरा अधिकार प्राप्त है। इस मामले की सुनवाई करते हुए श्रम न्यायालय मेरठ ने पाया कि वादी संदीप नागर के मुख्य व्यवसाय टीचिंग का उल्लेख करते हुए भी हिन्दुस्तान प्रबंधन ने दी गई शर्तों के अनुसार समाचार प्रेषित करने और उसके बदले पांच हजार रुपये भुगतान किए जाने का उल्लेख है।
श्रम न्यायालय ने माना कि इससे स्पष्ट है कि श्रमिक और सेवायोजक के मध्य एक संबंध था और सेवायोजक द्वारा लिए गए कार्यों का भुगतान भी वादी को किया जाता है। श्रम न्यायालय ने साफ आदेश दिया है कि उक्त विवेचना के आधार पर सेवायोजक द्वारा उठाई गई सभी आपत्तियों का निस्तारण उनके विरुद्ध व श्रमिक के पक्ष में लिया जाता है। इस मामले की अगली सुनवाई की तिथि 23 जनवरी को रखी गई है। यह आदेश पीठासीन अधिकारी श्रीराम सिंह ने दिया है। फिलहाल संदीप नागर के पक्ष में आए इस निर्णय से देश भर के समाचार पत्रों में कार्यरत अंशकालिक संवाददाताओं के लिए जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ पाने का एक रास्ता खुला है।

शशिकांत सिंह 
पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी
९३२२४११३३५

एक मार्मिक अपील... इस मिशन को बचा लीजिए



आज से लगभग दस वर्ष पहले जब स्व. भवानी शंकर ने मुझसे संपर्क कर “रीजनल रिपोर्टर” मासिक पत्रिका निकालने का इरादा इजहार किया तो मेरी ठंडी प्रतिक्रया का शायद उसे पहले से ही अंदाजा था। हालांकि उसके दृढ़ निश्चय और मेरी कायम आशंका के बाबजूद मैंने साथ देने का वायदा कर दिया था। मुझे उम्मीद थी कि कुछ महीने बाद इसका भूत उतर जाएगा और बाजार के दबावों के कारण जल्दी ही “मिशन”कुरुकुरु स्वाहा हो जाएगा। क्योंकि कुछ एक पत्रिकाओं का हम हश्र देख चुके थे जिनसे हम जुड़े थे। दूसरी आशंका मुझे यह भी थी कि यदि येनकेन प्रकारेण पत्रिका जारी भी रही तो भी सामग्री की गुणवत्ता की निरंतरता बनाए रखना बेहद चुनौती पूर्ण होता है। अच्छे लेखकों से निरंतर लिखाते रहना उस समय असंभव सा प्रतीत हो रहा था। परन्तु जब पत्रिका निकली फिर एक के बाद एक निकलती चली गई... बीच में थोड़ा बहुत इधर...उधर के अतिरिक्त पत्रिका की निरंतरता और सामग्री की उत्क्रिस्टता लगातार बनी रही। भवानी का सपना इसे सदस्यता आधारित पत्रिका बनाने का था... ताकि विज्ञापनों पर निर्भरता और उसके कारण समझौतों से बचा जा सके।

साढ़े छह सात साल तक भवानी ने तमाम दबावों के बाबजूद अपना मिशन जारी ही नहीं रखा उसको लगभग आंदोलन का रूप भी दिया... इन्हीं दबावों के कारण उसने स्वस्थ्य से समझौता भी किया और अंततः उनकी मृत्यु का कारण भी यह दबाव बहुत हद तक रहा। उनके शोक में उनके पिता श्री उमाशंकर भी उसी दिन चल बसे। इसके बाद पत्रिका का सम्पूर्ण जिम्मा भवानी की पत्नी गंगा अस्नोड़ा थपलियाल, जोकि पेशे से पत्रकार थी और कुछ साल से सम्पूर्णता में पत्रिका के लिए काम कर रही थे, के कन्धों पर आ गया। सारे परिवार, बूढ़ी सास, दो बच्चों की जिम्मेदारी के साथ इस पत्रिका को चलाने में गंगा असनोडा थपलियाल ने खुद को झोंक दिया। इस दौर में हम जैसे लोग चाह कर भी कुछ ज्यादा कर नहीं पाए इस पत्रिका और गंगा की मदद की दृष्टि से देखें तो। अक्‍टूबर में भवानी शंकर के जन्मदिवस पर पत्रिका के दसवीं वर्षगांठ पूरी होने पर एक कार्यक्रम था। (उसमें भी श्रीनगर ना जा पाया)। इस दौरान पत्रिका पर एक और कुठाराघात हुआ। भाई ललित मोहन कोठियां जोकि एक मूर्धन्य पत्रकार और एक सोने जैसे आदमी थे, पत्रिका के वरिष्ठ सहयोगी थे, भी चल बसे। 
दसवीं वर्षगांठ के अवसर पर पिछले दस साल में पत्रिका में प्रकाशित कुछ चुनिन्दा लेखों के पुनर्प्रकाशन का एक संकलन निकाला गया जोकि एक सुन्दर कलेवर में उपलब्ध है।

इस दौरान गंगा की तबियत भी खराब हो गई। लंबे समय बाद गंगा से कल मुलाक़ात हुई। गंगा को पहली बार मैंने चिंतित देखा। इतने गंभीर झंझावातों को झेलने के बाबजूद यह आयरन लेडी विचलित नहीं हुई थी।

इस दौरान कुछ लोगों ने संपर्क कर पत्रिका के अधिकार खरीदने की मुहिम भी चलाई। परंतु गंगा का इरादा इस पत्रिका को बेचने का इसलिए नहीं है क्योंकि स्व. भवानी शंकर के सपने को वाह हरगिज नहीं तोड़ना चाहती। जो लोग रीजनल रिपोर्टर को जानते हैं उन्हें भी लगता है कि यह पत्रिका प्रकाशनों के मरुस्थल में एक नखलिस्तान की तरह है।

आइए इस मिशन को बचाने में हमारा सहयोग करें। अपने सामर्थ्य से पत्रिका को सहयोग करें और कमसे कम इसे आर्थिक दबावों से बचाइए।

गंगा का फ़ोन नंबर है: 8126921909 and 9412079290
Account Number :
34956580402..SBI Srinagar Garhwal..
IFASC: SBIN0003181

[सहयोगाकांक्षी : एस. पी. सती]

उत्तरजन टुडे ग्रामीण पत्रकारिता पुरस्कार


प्रदेश के समस्त ग्रामीण पत्रकारों से आवेदन आमंत्रित

उत्तरजन टुडे पत्रिका प्रदेश के सामाजिक सरोकारों को समर्पित है। हमारा प्रयास रहा है कि हम अपनी पत्रिका को कुछ हटकर समाज के सामने लाएं जो निष्पक्ष हो, सकारात्मक हो, रचनात्मक हो और अपनी भावी पीढ़ी के मार्गदर्शन करने में सहायक हो। इस पत्रिका के तीन वर्ष फरवरी में पूर्ण हो रहे हैं। पत्रिका के संपादक पीसी थपलियाल के अनुसार इस मौके पर हमने यह तय किया है कि विषम परिस्थितियों में कार्य करने वाले 3 ग्रामीण पत्रकारों को पुरस्कृत किया जाए। पहले चरण में हमने प्रिंट मीडिया को लिया है। यह प्रयोग है और जल्द ही हम इसमें न्यूज चैनल, फोटोग्राफर और सोशल मीडिया को भी शामिल करेंगे। ग्रामीण पत्रकारों से जनसरोकारों, महिला विमर्श और उत्पादकता के सवाल पर की गई रिर्पोटिंग व लेख आमत्रित हैं। ग्रामीण पत्रकारों से अनुरोध है कि वे अपने पिछले एक साल की अवधि के दौरान रचनात्मक लेखों के अलावा उत्पादकता, पर्यावरण संबंधी समाचारों की छाया प्रति हमें 9410960088, 9412052338 पर या हमारी मेल uttarjan.today@gmail.com भेज सकते हैं। अधिकतम पांच प्रकाशित लेख भेजे जा सकते हैं। पुरस्कार का निर्णय पूर्व आईएएस कमिश्नर एसएस पागती की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति द्वारा किया जाएगा। समिति के सदस्य समाज के विभिन्न क्षेत्रों के दिग्गज हैं। आवेदन की अंतिम तिथि 3 फरवरी है। इसके बाद कोई भी दावेदारी स्वीकार नहीं की जाएगी। समिति का फैसला ही अंतिम होगा।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]