Friday 30 September 2022

Circulation fraud of Navabharat !

Journalists treated like daily wage earners

Navbharat takes everyone for a ride


The newspaper owners earn crores of rupees on the sweat of the journalists, but they are treated like daily wage earners by some of the newspapers, the Special Investigation Team of the Sprouts has learnt.

The inflation has gone up and salaries of most of the employees have been increased. But the journalists and media employees continue to toil on a meagre salary. To give justice to the scribes and bring their salary on par with others, the Union Government had set up the Majithia Commission.

The Majithia Commission fixed the salary grades of DTP Operators, Artists, Editor, Executive Editor, Sub Editor and others. However “Navabharat” daily newspaper has bypassed all these recommendations and has been irregular in paying salaries to the staff.

The journalists working in Navabharat revolted against the adamant attitude of the Navabharat management and approached the Thane labour commissioner. But they faced disappointment and could not get justice. Now they have filed a writ petition in the Bombay High Court seeking justice. Besides, the labour commissioner has forwarded this matter to the labour court. Now since the issue is expected to boomerang, the agents of the Navabharat management have begun implicating the journalists and other employees in false cases.

 

Readers, advertisers, Govt were taken for a ride

“Navabharat” is published in Mumbai, Nashik and Pune. 38373 copies of the Mumbai edition, 2263 copies of the Nashik edition and 11206 copies of the Pune edition are printed per day.  However, the Registrar for Newspapers in India (RNI) is cheated by presenting inflated figures by the management. The print order of the Mumbai edition is shown as 200,9500,  the Nashik edition is shown as 100544 and that of the Pune edition is shown as 204804. These figures are as of April 14, 2018 (before lockdown).

▪︎ The circulation of most newspapers has come down by 60 per cent after the lockdown. The circulation of all three editions of Navabharat is not more than 18, 000. However, the same old figures are submitted to the RNI. This is pure cheating of the readers, advertisers and the Government. The management collects crores of rupees by hoodwinking the advertisers. The complaint has already been lodged with the Mumbai police Commissioner about this fishy affair.

 

Sprouts Exclusive

Unmesh Gujarathi

Editor in Chief

sproutsnews.com 

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(9322 755098)

नवभारत का सर्कुलेशन स्कैंडल!

नवभारत मैनेजमेंट की मनमानी से सैकड़ों कर्मचारी परेशान

आवाज दबाने के लिए अपना रहा तरह-तरह के हथकंडे


पत्रकारों और गैर पत्रकारों की मेहनत पर हर महीने करोड़ों रुपये विज्ञापन के जरिए कमाने वाला मुंबई से प्रकाशित नवभारत का मैनेजमेंट कर्मचारियों का लगातार शोषण कर रहा है। कोरोना काल के पहले दर्जनों कर्मचारी मैनेजमेंट के शोषण का शिकार हुए। कोरोना काल के दौरान मानो मैनेजमेंट की लॉटरी लग गई हो। इस दौरान मैनेजमेंट ने कई कर्मचारियों से जबरन इस्तीफे लिए और उन्हें कान्ट्रैक्ट पर रखा, जिन कर्मचारियों ने कान्ट्रैक्ट स्वीकार नहीं किया उनसे जबरन इस्तीफे लेकर उनके मेहनत की कमाई मसलन ग्रेज्युटी के पैसे मात्र पांच-पांच हजार रुपये महीने का ही दिया। यह खुलासा स्प्राउट्स की स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम ने किया है। 

टीम के सदस्यों से कई कर्मचारियों ने मिलकर अपनी आपबीती सुनाई। इनमें कुछ कर्मचारी वर्षों से परमानेंट और सैलरी के लिए कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं। इस उम्मीद से कि एक दिन न्याय मिलेगा। नवभारत प्रबंधन की मनमानी यहीं समाप्त नहीं हुई। कर्मचारियों ने पीएफ डिपार्टमेंट से भी शिकायत की है, जिसमें कहा है कि अक्टूबर 1997 से शुरू हुआ अखबार 2005 तक करीब आधा दर्जन कर्मचारियों का डिडेक्शन नहीं किया। वहीं जिन लोगों का किया वह भी पीएफ के नियम के अनुसार नहीं कर रहा है। 

कर्मचारी पीएफ वाशी कार्यालय से आर्डर निकालने में सफल हुए, लेकिन मामला ट्रिब्यूनल कोर्ट में अटका हुआ है। उधर कुछ कर्मचारी ठाणे लेबर कमिश्नर के पास न्याय की उम्मीद लेकर गए, लेकिन उन्हें लेबर कोर्ट भेज दिया गया। यहां भी तारीख मिल रही है। इस बीच नवभारत मैनेजमेंट पुलिस का सहारा लेना शुरू किया है और कर्मचारियों को छूठे केस में फंसाने की कोशिश कर रहा है।

रीडर, विज्ञापनदाता व सरकार की आंखों में झोक रहा धूल

शातिर दिमाग नवभारत मैनेजमेंट यहीं तक नहीं रुका है, उसने आरएनआई अधिकारियों की मिलीभगत से लाखों प्रतियां छापने का सर्टिफिकेट लेकर हर महीने डीएवीपी और डीजीआईपीआर के अलावा प्राइवेट विज्ञापन के जरिए करोड़ों कमा रहा है।

वास्तविकता सामने यह है कि कोरोना काल के पहले नवभारत मुंबई की 30 से 40 हजार के बीच में प्रतियां छपती थीं, जबकि कोराना के बाद यह घटकर 10 से 12 हजार के बीच में आ गई हैं।

इसके बावजूद आरएनआई अधिकारियों की मिलीभगत से मैनेजमेंट ने मुंबई एडीशन 2 लाख 95 हजार, नाशिक एडीशन का 1 लाख 544 हजार और पुणे एडीशन का 2 लाख 4 हजार 804 प्रतियां प्रतिदिन छापने का सर्टिफिकेट लिया है, जबकि स्प्राउट्स की स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम की छानबीन में पता चला कि 11 अप्रैल 2018 को मुंबई के लिए 38 हजार 373, नाशिक के लिए 2 हजार 263, पुणे के लिए 11 हजार 206 प्रतियां ही नवभारत की छापी गई हैं।

 इस संबंध में 26 मई 2022 को तत्कालीन मुंबई पुलिस कमिश्नर संजय पांडेय से जांच की मांग करते हुए एक एविडेंस के साथ पत्र लिखा गया, लेकिन पुलिस की ओर से अभी तक छानबीन किए जाने की जानकारी नहीं मिली है।

Sprouts Exclusive  .

Unmesh Gujarathi

Editor in Chief

sproutsnews.com 




Thursday 29 September 2022

पीटीआई से निकाले गए 297 मीडियाकर्मियों की तुरंत वापसी के लिए मुख्यालय पर जमावड़ा

फेडरेशन ऑफ पीटीआई इम्प्लाईज यूनियन्स ने विरोध दिवस मनाया


नई दिल्ली, 29 सितंबर। फेडरेशन ऑफ पीटीआई इम्प्लाईज यूनियन्स ने चार वर्ष पूर्व आज के ही दिन अवैध ढंग से अपने 297 साथियों को पीटीआई की नियमित सेवा से निकाले जाने के खिलाफ यहां संसद मार्ग पर पीटीआई बिल्डिंग स्थित पीटीआई मुख्यालय पर विरोध दिवस मनाया और प्रबन्धन से चार वर्ष पूर्व अवैध ढंग से निकाले गये अपने सभी नियमित कर्मचारियों को ड्यूटी पर वापस लेने की आज मांग दोहरायी।

फेडरेशन ऑफ पीटीआई इम्प्लाईज यूनियन्स के महासचिव बलराम सिंह दहिया ने पीटीआई प्रबन्धन की चार वर्ष पूर्व 297 नियमित कर्मचारियों के खिलाफ की गयी रिट्रेंचमेंट की इस कार्रवाई को पूरी तरह अवैधानिक एवं अमानवीय बताया। उन्होंने कहा कि वर्ष 1948 में अपनी स्थापना के समय से ही पीटीआई के सभी पत्रकार एवं गैर पत्रकार एक परिवार की तरह मिलजुल कर देशहित को सामने रख कर काम करते थे लेकिन पिछले कुछ वर्षों में पीटीआई प्रबन्धन बिलकुल मनमाना व्यवहार किया है और उसी का परिणाम है कि आज 297 नियमित कर्मचारी सड़क पर हैं। इन्हीं कर्मचारियों के खून पसीने की मेहनत से पीटीआई ने देश के समाचार की दुनिया में अपना सर्वोच्च स्थान बनाया था और आज उन्हीं को एक झटके में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

इससे पूर्व बड़ी संख्या में एकत्रित पीटीआई के कर्मचारियों एवं छंटनी किये गये कर्मचारियों ने आज संसद मार्ग पर स्थित पीटीआई बिल्डिंग में पीटीआई बोर्ड के अध्यक्ष अवीक सरकार एवं आधा दर्जन अन्य निदेशकों तथा शीर्ष प्रबंधन की उपस्थिति में जमकर नारेबाजी की और विरोध प्रदर्शन किया। पीटीआई मुख्यालय पर आज पीटीआई बोर्ड की वार्षिक आम सभा :एजीएमः भी आयोजित थी जिसमें बोर्ड के अध्यक्ष एबीपी समूह के अवीक सरकार, उपाध्यक्ष डेक्कन हेराल्ड समूह के केएन शान्त कुमार, बोर्ड के नये निदेशक दक्षिण भारत के दिनमलार समूह के एल आदिमूलम् समेत 16 सदस्यों में से सात सदस्य उपस्थित थे।

पीटीआई की सेवा से रिट्रेंच किये गये कर्मचारियों के विरोध दिवस के कार्यक्रम में रांची से आये नेशनल कान्फेडरेशन ऑफ न्यूज पेपर्स एंड न्यूज एजेंसीज इंप्लाईज ऑर्गनाइजेशन्स के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा पीटीआई फेडरेशन के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य डा. इन्दुकान्त दीक्षित ने कर्मचारियों को अपना संघर्ष जारी रखने के लिए उत्साहित किया और बताया कि कर्मचारियों का मामला दिल्ली उच्च न्यायालय से होता हुआ अब मुंबई स्थित राष्ट्रीय न्यायाधिकरण :नेशनल ट्रिब्यूनलः में है जहां अब 20 अक्टूबर को निकाले गये कर्मचारियों को अंतरिम राहत देने के मुद्दे पर बहस होनी है। उन्होंने कर्मचारियों से धैर्य के साथ न्यायिक लड़ाई लड़ने की अपील की और कहा कि देश के मीडिया के इतिहास में यह पहला मामला है जो फेडरेशन ऑफ पीटीआई इंप्लाईज यूनियन्स के प्रयास से राष्ट्रीय न्यायाधिकरण में पहुंचा है और वहां कर्मचारियों को शीघ्र न्याय मिलने की पूरी संभावना है।

फेडरेशन के अनुरोध पर सक्रियता से कार्रवाई करते हुए केन्द्रीय श्रम मंत्रालय ने पिछले माह ही देश के अधिकतर सीजीआईटी एवं मुंबई एवं कोलकाता स्थित एनआईटी में पीठासनी पदाधिकारियों :प्रिसाइडिंग आफीसर्सः की नियुक्ति कर दी थी जिसके बाद वहां लंबित मामलों पर सुनवाई पुनः प्रारंभ हो गयी है।

पीटीआई फेडरेशन के इस विरोध दिवस का समर्थन नेशनल कान्फेडरेशन ऑफ न्यूज पेपर्स एंड न्यूज एजेंसीज इंप्लाईज ऑर्गनाइजेशन्स, दिल्ली यूनियन आफ जर्नलिस्ट, आईएफडब्लूजे, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया समेत तमाम संगठनों ने भी किया और पीटीआई प्रबन्धन से मांग की कि वह अपने इस अवैध कदम को तुरत वापस ले जिससे चार वर्ष पूर्व संस्था से अवैध ढंग से निकाले गये कर्मचारियों एवं उनके परिजनों को राहत मिल सके।

विरोध दिवस के पूरे कार्यक्रम की मेजबानी पीटीआई वर्कर्स यूनियन दिल्ली ने की जिसकी अध्यक्ष रेणू सिन्हा एवं महासचिव सीएल गुप्ता विरोध दिवस के इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सभी ट्रेड यूनियन्स एवं कर्मचारियों का धन्यवाद किया तथा कर्मचारियों की शंकाओं एवं प्रश्नों का समाधान किया।

(source: https://www.bhadas4media.com/pti-se-nikale-gaye-karmiyo-ka-virodh-diwas/)

Friday 16 September 2022

भास्कर ग्रुप की गजब बेइज्जती, ऑफिस सील करने आ गए सरकारी कर्मचारी, काट दी बिजली, मचा हड़कंप

 



मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ न देने पर  दिव्य मराठी के कार्यालय की आधे घंटे लाइट काटी गई 


कर्मचारियो की पहल से डीबी कॉर्प  प्रबंधन को दिखे दिन में तारे


कंपनी को करना होगा हाईकोर्ट में 21 सितंबर को कर्मचारियों का  आधा पैसा जमा


 जस्टिस मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिश के अनुसार   अपने कई कर्मचारियों की वेतन वृद्धि न करने एवं उनका एरियर नहीं देने पर दैनिक भास्कर समूह (डीबी कॉर्प लिमिटेड) के   दैनिक दिव्य मराठी के औरंगाबाद कार्यालय को गुरुवार को सरकारी महकमे ने दिन में ही तारे दिखा दिए जिसके बाद कंपनी प्रबंधन को भागकर पहले सरकारी विभाग फिर अंत मे  हाईकोर्ट की शरण मे जाना पड़ा तब जाकर उन्हें इस आश्वासन पर राहत मिली कि वे 21 तारीख को कर्मचारियों का बकाया आधा पैसा  हाईकोर्ट में जमा करेंगे। सरकारी महकमे द्वारा दिव्य मराठी ऑफिस सील करने की प्रक्रिया लगभग पांच घंटे चली।

   


बताते हैं कि दैनिक  दिव्य मराठी का प्रकाशन करने वाली कंपनी डीबी कॉर्प के डिप्युटी न्यूज़ एडिटर सुधीर जगदाले सहित अन्य कई कर्मचारियों ने जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में  अपने बकाए एरियर का मामला माननीय श्रम श्रम न्यायालय से जीता था।श्रम न्यायालय से कर्मचारियों के पक्ष में फैसला आने के बाद डीबी कॉर्प बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ गयी जहां हाईकोर्ट ने डीबी कॉर्प को निर्देश दिया कि पहले निर्धारित अवार्ड का 50 परसेंट रकम कोर्ट में जमा करें।मगर डीबी कॉर्प ने ये रकम नहीं जमा की। इसके बाद इन कर्मचारियों के पक्ष में आये अवार्ड को लेकर डीबी कॉर्प  को सरकारी महकमे द्वारा कर्मचारियों को पैसा देने के लिए चार नोटिस भेजी गई मगर डीबी कॉर्प ने फिर भी कर्मचारियों को पैसा नहीं दिया।जिसके बाद सरकारी महकमा जिसमे तहसील ऑफिस के लोग और बिजली विभाग के लोग  दिव्य मराठी के औरंगाबाद स्थित ऑफिस में उसे सील करने लाव लश्कर के साथ गुरुवार को  आधमके और ऑफिस में कार्यरत सभी कर्मचारियों को थोड़ी देर के लिए बाहर कर दिया गया ।ऑफिस सील करने की प्रक्रिया शुरू होते ही भास्कर प्रबंधन में हड़कंप मच गया। उन्होंने तुरंत अपनी टीम को इस ऑफिस सील प्रक्रिया को रुकवाने के लिए सरकारी ऑफिसों में दौड़ाया । इस दौरान सरकारी अधिकारियों को फोन पर फोन किये गए।उधर दिव्य मराठी गयी सरकारी टीम ऑफिस सील करने पर अड़ी थी। मगर डीबी कॉर्प प्रबंधन को हर जगह निराशा हाथ लगी  जिसके बाद निराश प्रबंधन तुरंत हाईकोर्ट भागा।इस दौरान दिव्य मराठी ऑफिस का लाइट कनेक्शन काट दिया गया।जिससे पूरा ऑफिस अंधेरे में डूब गया।सूत्र बताते हैं कि डीबी कॉर्प में हाईकोर्ट को बताया  है कि 21सितंबर को  वह कर्मचारियों का बकाया आधा पैसा जमा कर रहा है तब तक ऑफिस सील करने की कारवाई रोकी जाए।जिसके बाद हाईकोर्ट ने कारवाई रोकने का आदेश दिया।अब डीबी कॉर्प को दिव्य मराठी के इन कर्मचारियों का अवार्ड के हिसाब से आधा पैसा 21 सितंबर को हाईकोर्ट  में जमा करना पड़ेगा।फिलहाल इस पूरी कारवाई के बाद भास्कर प्रबंधन को दिन में तारे नजर आरहे हैं।और कर्मचारियों में खुशी की लहर है।



शशिकान्त सिंह

पत्रकार और आरटीआई एक्सपर्ट तथा उपाध्यक्ष न्यूज़ पेपर एम्प्लॉयज यूनियन ऑफ इंडिया 

9322411335

Sunday 4 September 2022

प्रेस क्लब आफ इंडिया के खिलाफ केस जीत गए ये तीन कर्मचारी


प्रेस क्लब आफ इंडिया के प्रबंधन ने अपने तीन कर्मचारियों को तानाशाही तरीके से निकाल दिया था. ये मामला दस साल पुराना है।

इन कर्मचारियों श्याम कनौजिया, राकेश पंत और नरेश कुमार ने अपने टर्मिनेशन के खिलाफ लेबर कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया।

कई बरस तक चली सुनवाई के बाद अब तीनों कर्मचारियों के पक्ष में फैसला आया है. क्लब को अपने इन तीनों कर्मियों को लाखों रुपये की पिछली तनख्वाह देनी होगी और इन्हें नौकरी पर भी रखना होगा।

इस फैसले से प्रेस क्लब आफ इंडिया में कार्यरत कर्मचारियों में खुशी की लहर है।

(source: https://www.bhadas4media.com/press-club-of-india-case-shyam-rakesh-naresh/)


मुजफ्फरपुर के कुणाल बने ‘मजीठिया’ का ब्याज समेत पूरा एरियर पाने वाले पहले क्रांतिकारी


कुणाल प्रियदर्शी का फोटो उनके फेसबुक वॉल से साभार

-    57 महीने की लंबी लड़ाई के बाद हासिल की उपलब्धि

-    सिविल कोर्ट के आदेश पर बैंक ने कंपनी के खाते से काटी राशि, कुणाल के खाते में किया   स्थानांतरित

-    30 अगस्त से न्यूट्रल पब्लिशिंग हाउस लिमिटेड का बैंक अकाउंट था अटैच

-     आठ प्रतिशत ब्याज के साथ हुआ बकाया राशि का भुगतान

मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई लड़ रहे क्रांतिकारियों के लिए शनिवार का दिन ऐतिहासिक रहा।

देश में पहली बार एक क्रांतिकारी को न सिर्फ वेजबोर्ड के अनुसार बकाया वेतन का पूरा भुगतान हुआ, बल्कि उस राशि पर आठ प्रतिशत की दर से ब्याज भी मिला।मामला ‘गणतंत्र की जननी’ बिहार की धरती से जुड़ा है। यह उपलब्धि हासिल की है मुजफ्फरपुर जिला निवासी कुणाल प्रियदर्शी ने.। वे बीते 57 महीने से प्रभात खबर अखबार प्रबंधन (न्यूट्रल पब्लिशिंग हाउस लिमिटेड) के खिलाफ मजीठिया वेजबोर्ड की लड़ाई लड़ रहे थे।

शनिवार को सिविल कोर्ट मुजफ्फरपुर के आदेश पर आइसीआइसीआइ बैंक प्रबंधन ने कंपनी के खाते से लगभग 24 लाख रुपये की राशि काट कर न सिर्फ कुणाल के बैंक अकाउंट में स्थानांतरित किया, बल्कि इसकी सूचना लिखित रूप से कोर्ट को भी दी है।बीते 30 अगस्त को ही कोर्ट के आदेश से बैंक प्रबंधन ने न्यूट्रल पब्लिशिंग हाउस लिमिटेड के बैंक अकाउंट को अटैच कर दिया था।

प्रभात खबर मुजफ्फरपुर यूनिट में न्यूज राइटर के रूप में काम करने वाले कुणाल ने 3 दिसंबर 2017 को मजीठिया वेजबोर्ड की आधिकारिक लड़ाई शुरू की थी। जून 2019 में मामला मुजफ्फरपुर लेबर कोर्ट में स्थानांतरित हुआ। कुणाल ने शुरूआत से ही अपने केस की पैरवी खुद करने का फैसला लिया। करीब एक साल तक चली लंबी लड़ाई के बाद लेबर कोर्ट मुजफ्फरपुर ने जून 2020 में कुणाल के पक्ष में अवार्ड पारित किया। इसमें कंपनी को बकाया वेतन के साथ-साथ उस पर 3 दिसंबर 2017 से अंतिम भुगतान की तिथि तक आठ प्रतिशत ब्याज देने का आदेश भी दिया गया।कंपनी की ओर से जब भुगतान नहीं किया गया तो कुणाल ने आइडी एक्ट के सेक्शन 11(10) के तहत लेबर कोर्ट में अवार्ड एग्जीक्यूशन के लिए आवेदन दिया। मामला सिविल कोर्ट मुजफ्फरपुर रेफर हुआ, जहां सब जज-1 पूर्वी, मुजफ्फरपुर में 7 फरवरी 2021 से सुनवाई शुरू हुई।यहां भी कुणाल ने खुद अपने केस की पैरवी करने का फैसला लिया। सुनवाई के दौरान कंपनी की ओर से एग्जीक्यूशन की प्रक्रिया पर सवाल उठाये गये. पर, कोर्ट ने कुणाल की दलील को सही मानते हुए 23 जुलाई, 2022 को एग्जीक्यूशन के आवेदन को स्वीकार करते हुए अवार्ड की राशि की वसूली प्रक्रिया शुरू करने का फैसला लिया। 30 अगस्त 2022 को कोर्ट ने बैंक प्रबंधन को कंपनी का अकाउंट अटैच कर अवार्ड की राशि कुणाल के खाते में ब्याज सहित भुगतान का लिखित आदेश दिया था।

एग्जीक्यूशन केस में कई ऐतिहासिक क्षण भी आये।देश में पहली बार कोर्ट ने स्वीकार किया कि वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट के सेक्शन 17(2) के तहत पारित अवार्ड का एग्जीक्यूशन कोर्ट के माध्यम से हो सकता है।शुरुआत में कोर्ट नोटिस के बावजूद जब अखबार प्रबंधन हाजिर नहीं हुआ, तो कोर्ट के आदेश पर हिन्दुस्तान अखबार के रांची संस्करण में उन्हें हाजिर होने का नोटिस छपा। यह पहला मौका था, जब मजीठिया वेजबोर्ड की लड़ाई में एक अखबार के प्रबंधन के खिलाफ दूसरे अखबार में इस तरह का नोटिस छपा।वेजबोर्ड के अनुसार बकाया राशि की वसूली के लिए दूसरी बार कोर्ट के आदेश पर किसी अखबार का बैंक अकाउंट अटैच हुआ। 


शशिकान्त सिंह

पत्रकार,मजीठिया क्रांतिकारी और उपाध्यक्ष न्यूज़ पेपर एम्प्लॉयज यूनियन ऑफ इंडिया (एन इ यू)j

9322411335

गौरतलब है इससे पहले स्टेटसमैन के साथी मजीठिया के अनुसार एरियर की आधी राशि दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बाद पा चुके हैं।

गौरतलब है कुणाल ने अदालत में खुद अपनी पैरवरी की थी और इस दौरान कुणाल मजदूरों के मसीहा वकील स्वर्गीय हरीश शर्मा जी से भी संपर्क में आए थे और उनसे समय-समय पर कानूनी राय भी लेते रहे थे। 

Saturday 3 September 2022

मजीठिया पर सबसे बड़ी खबर: कुणाल को मिला 24 लाख, साथियों में खुशी की लहर

 


दोस्तों  गुड न्यूज


अपने एक साथी और मजीठिया क्रांतिकारी प्रभात खबर अर्थात न्यूट्रल पब्लिसिग हाउस प्राईवेट लिमिटेड से केस जितने के बाद कंपनी ने मजीठिया मामले में  एरियर का बकाया बड़ा एमाउंट (23 लाख 75 हजार रुपए) कल शनिवार (3 सितंबर 2022) को उनके खाते में ट्रांसफर कर दिया। इस तरह हम सबका एक साथी बना मजीठिया का पहला विजेता जिसके खाते में पैसा आगया है।इस साथी ने खुद इस बात की जानकारी दी।इस साथी का नाम कुणाल प्रियदर्शी है जो मुजफ्फरपुर के प्रभात खबर यूनिट में कार्यरत थे।

 कुणाल प्रियदर्शी ने अपने दावे के लिए राज्य सरकार के समक्ष आवेदन दिया था। जो राज्य सरकार के प्रतिनिधि संयुक्त श्रमायुक्त के समक्ष वाद संख्या 76/2017 के नाम से दर्ज था। जिसमें उन्होंने 37,32,137 रुपया का दावा व नौकरी पुनः बहाली की मांग की थी। 

राज्य सरकार ने संयुक्त के रिपोर्टर पर अपने आदेश से मामले को 18/06/2019 को न्याय निर्णयारथ श्रम न्यायालय को भेज दिया।

 जहां वाद संख्या 01/2019 के तहत श्रम न्यायालय ने दिनांक 8 फरबरी 2020 को कामगार के पक्ष में अपना आदेश पारित किया है। न्यायालय ने अपने आदेश में कुणाल प्रियदर्शी को 8 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से दावे की राशि को भुगतान की वास्तविक तारीख तक के सूद के साथ अदा करने को कहा। 

प्रबंधन ने जब इसका भुगतान नहीं किया तो कामगार ने पुनः श्रम न्यायालय मुजफ्फरपुर को इस सूचना से अवगत कराते हुए आदेश के पालन कराने को वाद को व्यवहार न्यायालय मुजफ्फरपुर को हस्तांतरित करने का आग्रह किया। जिसे न्यायालय ने स्वीकार करते हुए आदेश के अनुपालन कराने को भेज दिया गया। श्रम न्यायालय मुजफ्फरपुर से पीठासीन पादाधिकारी के आदेश से जारी पत्रांक 162/2020 दिनांक 8 फरबरी 2020 को सब जज प्रथम (पूर्वी) मुजफ्फरपुर के न्यायालय में भेज दिया। जो Execution Case No. 10/2020 (Arising Out of 01/2019) के नाम से दर्ज हुआ। 

प्रबंधन ने इसके विरोध में पटना उच्च न्यायालय में CWJC 3584/2019 दर्ज किया लेकिन न्यायालय से कोई राहत नहीं मिला जो अभी भी पेंडिंग हैं। जिसका कोई मतलब नहीं है। हाई कोर्ट में इस केस के फाइलिंग के बाद एक दो बार सुनबाई भी हुआ लेकिन प्रबंधन को कोई राहत नहीं मिला। मात्र इतना फायदा हुआ हाईकोर्ट में केस फाइलिंग के नाम पर मुजफ्फरपुर व्यवहार न्यायालय दो तीन तारीख बढ़गया। इस दौरान मुजफ्फरपुर व्यवहार न्यायालय के जज का स्थानान्तरण भी हुआ लेकिन केस के परिणाम में कोई अंतर नहीं रहा। अंततः कामगार के पक्ष में निर्णय रहा। 23 जुलाई 2022 को व्यवहार न्यायालय ने 16/8/2022 तक कामगार को बकाया अदा करने का आदेश दिया और नहीं अदा करने पर अकाउंट अटैच करने का आदेश दिया। और अंततः 16 तक जब प्रबंधन ने भुगतान नहीं किया तो एकाउंट अटैच हुआ जिसके परिणामस्वरूप कल यानी 3 सितंबर 2022 शनिवार को मजीठिया क्रांतिकारी कुणाल प्रियदर्शी जी‌ को दावे के विरुद्ध 25 लाख 75 हजार रुपए की राशि खाता में जमा किया गया। अभी करीब 2 लाख 75 हजार रुपए भविष्य निधि में भी प्रबंधन को जमा करना है।

यह लड़ाई में 2017 से 2022 तक चला। जिसमें दो साल करोना के कारण भी प्रभावित रहा लेकिन सब परेशानी के वावजूद भी कुणाल प्रियदर्शी ने हार नहीं मानी और वे सफल रहे। इस लड़ाई को खुद लड़ी है कभी भी इनके केस में इनकी तरफ से कोई अधिवक्ता नहीं था जबकि की तरफ से बड़े-बड़े अधिवक्ता पैरवी करते रहें। 

इस लड़ाई में कुणाल के साहस व धैर्य के लिए उन्हें बधाई।

मेरी पोस्ट से जिन साथियों की भावनाओं को ठेस पहुंची है, इसके लिए खेद है!

दो सितम्बर में मैंने ‘क्या भ्रष्टाचार की गंगा में पत्रकारों ने लगाईं डुबकियां‘, पोस्ट लिखी थी। इस पोस्ट में त्रुटि वश दीपक उपाध्याय का नाम उल्लेखित किया था, जबकि इस प्रकरण से दीपक का कोई लेना-देना नहीं है। इनका इस प्रकरण से कोई सरोकार नहीं है। इसके लिए मुझे खेद है। वहीं, वरिष्ठ पत्रकार चंद्रशेखर बुड़ोकोटी ने अपनी वॉल पर लिखा है उनकी पत्नी 2016 में योग्यता के आधार पर शिक्षिका चयनित हुई हैं। पत्रकार फईम तन्हा ने स्पष्ट किया है कि उनकी पत्नी को विधानसभा सचिवालय में नौकरी नहीं मिली। पत्रकार साथियों ने सोशल मीडिया के माध्यम से यह बात रखी है।

अपनी पोस्ट के माध्यम से मैंने भी यही कहने का प्रयास किया था कि सभी को अपनी बात रखनी चाहिए। चूंकि मैंने पहले ही कहा था कि जिनका भी नाम मेरे द्वारा लिया जा रहा है, वह सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों पर बात उठ रही थी। मुझे खुशी है कि पत्रकार साथियों ने सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी देकर स्पष्ट किया है कि उनका इन कथित भर्तियों में किसी तरह की संलिप्तता नहीं है। मैंने अपनी पोस्ट में पहले ही उल्लेख कर दिया था कि यदि इनमें से किसी का नाम गलत हुआ तो मैं सार्वजनिक तौर पर अपनी गलती मानते हुए खेद प्रकट करूंगा। मेरी पोस्ट से जिन साथियों की भावनाओं को ठेस पहुंची है, इसके लिए खेद है। 

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

Friday 2 September 2022

क्या भ्रष्टाचार की गंगा में पत्रकारों ने भी लगाईं डुबकियां?

भर्ती प्रकरण में पांच पत्रकारों के नाम भी आ रहे सामने 
आरोपों के घेरे में प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष विकास धूलिया, रवि नेगी, चंद्रशेखर बुडाकोटी

प्रख्यात पत्रकार अरुण शौरी ने कहा था कि सफल पत्रकार वह है जिसके पास सबसे अधिक संपर्क सूत्र हैं, भाई लोगों ने संपर्क सूत्र बढ़ाए लेकिन न्यूज के लिए नहीं, निजी हित के लिए। आखिर अब पत्रकार भी व्यवस्था के अंग हैं। कारपोरेट युग के दौर में अधिकांश पत्रकारों की मजबूरी होती है कि वह संस्थान के लिए लाइजिनिंग करे या उन मुद्दों पर चुप्पी साध ले, जिनसे सत्ता या संस्थान को नुकसान पहुंच रहा हो। कोरपोरेट जर्नलिज्म का एक और नुकसान हुआ है कि अधिकांश पत्रकार स्वार्थी हो गये। संस्थान हित के साथ ही साथ स्वहित भी साधने लगे हैं। ऐसे में मिशनरी पत्रकारिता का दावा करना बेमानी है। विधानसभा भर्ती प्रकरण में पांच पत्रकारों के नाम सामने आ रहे हैं। हालांकि मैं यह भी बता देना चाहता हूं कि इस प्रकरण में कुछ भी नहीं होगा। सब यथावत रहेगा। क्योंकि भाजपा और कांग्रेस के हर प्रभावी नेता की इस घोटाले में संलिप्तता है। ऐसे में जब सब नंगे हो रहे हैं तो पत्रकार बिरादरी घूंघट ओढ़े क्यों रहे? लाज-शर्म और नैतिकता का युग बीत चुका है। हालांकि यदि इन पत्रकारों के रिश्तेदारों का चयन नियमानुसार हुआ है या यह बात झूठ है कि उनके रिश्तेदार विधानसभा में बैक डोर से भर्ती किये गये हैं तो मैं इन पत्रकारों के समर्थन में अडिग खड़ा हूं।

मुख्यधारा के अखबार इतने बड़े प्रकरण को फ्रंट पेज की बजाए अंदर धकेल रहे हैं। यानी राजू या बड़ोनी का निलंबन उनके लिए फ्रंट पेज की न्यूज है लेकिन विधानसभा भर्ती घोटाले को दबाने की पुरजोर कोशिश हो रही है। इसका राज इस बात में भी छिपा हो सकता है कि कुछ हमारे पत्रकार साथी भी भ्रष्टाचार की गंगा में डुबकियां लगा चुके हैं। पत्रकारों में एक बड़ा नाम विकास धूलिया का सामने आ रहा है। दैनिक जागरण में कार्यरत विकास पर अपने भाई को विधानसभा में नौकरी दिलाने का आरोप है। हिन्दुस्तान से रवि नेगी की पत्नी, पर्वतजन के शिव प्रसाद सेमवाल की पत्नी, इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुड़े फईम तन्हा भी विधानसभा में नौकरी मिलने के आरोप हैं। इसके अलावा कई अन्य पत्रकार भी हैं। हिन्दुस्तान के पत्रकार चंद्रशेखर बुडाकोटी का नाम भी पूर्व शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे द्वारा अशासकीय स्कूलों में की गयी भर्तियों में उछल रहा है। आरोप है कि उनकी पत्नी को पांडे ने नियुक्ति दी है।

मुझे लगता है कि इन पत्रकारों को सामने आकर यह तथ्य झुठलाने चाहिए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। कुछ पत्रकारों की आड़ में सब पत्रकार क्यों गाली खाएं? उम्मीद है कि पत्रकारों की संलिप्तता के मामले में स्पष्टीकरण आएगा। दीपक उपाध्याय अपना नाम इस प्रकरण में आने से व्यथित है। उसका कहना है कि उसका कोई परिजन इस प्रकरण में शामिल नहीं है उसकी भावनाओं को मैंने ठेस पहुंचाई है। इसके लिए मुझे खेद है। मैंने पोस्ट में स्पष्ट कहा है कि यदि और भी पत्रकार साथी इस प्रकरण में नहीं हैं। तो मैं उनके बयान को पोस्ट पर लिखूंगा और खेद प्रकट करूंगा। इसमें मुझे आत्मिक संतोष होगा कि मेरे साथी साफ छवि के हैं। 

क्या भ्रष्टाचार की गंगा में पत्रकारों ने भी लगाईं डुबकियां? 

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]