Monday 27 June 2016

मजीठिया: हिंदुस्‍तान के बाकि बचे सा‍थी न करें ऐसा 80 फीसदी नुकसान वाला समझौता!

साथियों, जैसा कि हम पहले भी आपको बता चुके हैं कि मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार अपने हक की मांग करने वाले हिंदुस्‍तान के 16 कर्मचारियों ने काफी बड़ी रकम का नुकसान उठा कर संस्‍थान के साथ समझौता किया है। इस खबर की उस समय पूर्ण रुप से पुष्टि नहीं हो पाई थी। अब हमारे पास कुछ और सूचना आई है जिसके अनुसार इन कर्मियों की संख्‍या 16 नहीं 12 है और इनमें से 6 ने यह समझौता किया है। बाकि बचे कर्मियों से प्रबंधन लगातार संपर्क में है और आजकल में उनका भी समझौता सिरे चढ़ सकता है।

समझौता करने से पहले वे सा‍थी  इन प्रश्‍नों पर जरुर गौर करें।

1. अवमानना के झेमले से बाहर निकलने के लिए छटपटा रही कंपनी के साथ 80 फीसदी से अधिक की राशि का नुकसान झेल कर यह समझौता करना क्‍या ठीक होगा?

2. क्‍या सुप्रीम कोर्ट की फाइनल हियरिंग तक इंतजार नहीं किया जा सकता है, जिसके बाद वेजबोर्ड की सिफारिशों के अनुसार आपका जायज हक अपने-आप संस्‍थान को देना पड़ेगा?

3. बर्खास्‍त कर्मियों का वेजबोर्ड की सिफारिशों के अनुसार वेतनमान और नौकरी पर वापसी की शर्त लगाना क्‍या उचित नहीं होगा?

4. यदि बर्खास्‍त कर्मी वापस नौकरी नहीं करना चाहते तो क्‍या वे अपने बचे हुए कार्यकाल के आधार पर वीआरएस आदि की मांग नहीं कर सकते?

हमें एक अपुष्‍ट जानकारी और मिली है कि कंपनी ने जिन छह लोगों से समझौता किया है उन्‍हें कुछ रकम चेक से दी है और बाकि नकद। ऐसे ही कंपनी अब बाकि बचे कर्मियों से अलग-अलग वार्ता कर समझौते का दवाब बना रही है। हमारा इन साथियों से अनुरोध है कि समझौते में यदि आपका जायज हक आपका मिल रहा है तो ठीक है। नहीं तो सुप्रीम कोर्ट के निर्णय आने तक इंतजार करने में कोई बुराई नहीं है क्‍योंकि अब इसके लिए ज्‍यादा लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। यदि कंपनी कुछ ज्‍यादा ही दवाब बनाने की कोशिश कर रही है तो वार्ता एकसाथ करें नाकि अलग-अलग। एकजुटता आपको कई फायदे दिलावा सकती है। यदि ऐसा न संभव हो तो सुप्रीम कोर्ट की 19 जुलाई को होने वाली सुनवाई से पहले इनसे हो रही वार्ता के क्रम को तोड़ दें या कुछ समय के लिए उनकी पहुंच से दूर हो जाएं।

हमारा मानना है जब पका पकाया फल आपको मिलने वाला है तो उसे कच्‍चे में ही तोड़ लेना किसी भी तरीके से फायदे का सौदा नहीं है।

(हिंदुस्‍तान के कुछ साथियों से बातचीत के आधार पर)


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Friday 24 June 2016

प्रभात खबर के एमडी केके गोयनका समेत कई निदेशकों के खिलाफ 7.50 करोड़ के मजीठिया वेज बोर्ड बकाए का केस दर्ज


एक बड़ी खबर झारखंड के देवघर से आ रही है। देवघर के श्रम अधीक्षक राजेश कुमार सिंह ने प्रभात खबर देवघर यूनिट के तत्कालीन यूनिट मैनेजर पंकज कुमार, अखबार मैनेजिंग डायरेक्टर के. के. गोयनका सहित अन्य पांच निदेशकों के खिलाफ सर्टिफिकेट केस देवघर में दर्ज कराया है। झारखण्ड में अब तक का यह मजीठिया वेज बोर्ड का पहला और बड़ा मामला है, ऐसा श्री सिंह का कहना है। श्रम आयुक्त के निर्देशानुसार की गई यह कार्यवाही पूरी तरह से क़ानूनी पक्षों को ध्यान में रख कर किया गया है।

लगभग 56 कर्मचारियों के द्वारा फॉर्म सी भरे गए थे। उन सभी लोगों के वेतन की गणना कर के लगभग 7.50 करोड़ का एरियर का दावा किया गया है। ज्ञात हो कि इस मामले में प्रभात खबर, देवघर यूनिट में काफी हलचल मची हुई है। इसमें यूनिट प्रबंधक का तबादला और बाद में जबरन इस्तीफा भी लिया जा चुका है। कई अन्य कर्मियों को मानसिक रूप से परेशान किया जा रहा है।

यह विदित हो कि प्रभात खबर, देवघर के सभी 74 कर्मियों ने एक साथ फॉर्म सी श्रम कार्यालय में जमा किया था। इसका विज्ञापन प्रभात खबर में ही प्रकाशित किया गया था। कर्मचारियों की इस पहल को झारखण्ड सरकार में मौजूदा श्रम मंत्री राज पलिवार का पूर्ण सहयोग रहा। वे खुद देवघर में ही रहते हैं और सभी मीडिया कर्मी उनसे लगातार मजीठिया वेज बोर्ड की अनुशंसा लागू करने के बाबत मिलते रहे हैं।
(साभार: भड़ास4मीडिया)


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Tuesday 21 June 2016

मजीठिया: आप भी जानिए हिंदुस्‍तान के 16 कर्मचारियों ने समझौते में क्‍या खोया!

साथियों, हिंदुस्‍तान से एक खबर आ रही है जिसकी पुष्टि अभी पूरी तरह से नहीं हो पाई है, परंतु इसे जनहित में साझा किया जाना जरुरी लगा, जिसमें कंपनी, प्रबंधक और बिचौलिये फायदे में रहे!  खबर यह है कि मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार अपना एरियर मांगने वाले दिल्‍ली व एनसीआर में कार्यरत हिंदुस्‍तान के लगभग 16 साथियों ने प्रबंधन के साथ मात्र 7-8 लाख रुपये में समझौता कर लिया है।

साथियों, यहां हमने 7-8 लाख रुपये के साथ मात्र लिखा है, वो इसलिए कि उन साथियों ने 14-15 लाख रुपये का दावा किया था। यानि लगभग 2 करोड़ रुपये की रकम का। ऐसे में समझौता मात्र 1 करोड़ रुपये के आसपास ही कर लिया गया।
आप भी जानना चाहेंगे कि यदि ऐसा कोई भी समझौता हुआ है तो इसमें नुकसान किसको हुआ और फायदा किसे हुआ। हमारा मानना है हिंदुस्‍तान प्रबंधन की इस समझौते में पूरी पौ बारह रही और कर्मचारियों को लगभग 1 करोड़ नहीं उससे भी कहीं बड़ा नुकसान हुआ है, जिसे वह समझ नहीं पाए। वहीं, इसमें हिंदुस्‍तान के प्रबंधकों और बिचलौलियों ने भी जरुर मोटी मलाई काटी होगी।

इस समझौते के प्रारुप की हमें कोई जानकारी नहीं है। फि‍र भी हम क्रम से इस समझौते या होने जा रहे समझौते की उन बारिकियों पर रोशनी डालने की कोशिश करेंगे, जिससे कर्मचारियों का नुकसान हुआ है या होने जा रहा है। हो सकता है समझौते का प्रारुप ऐसा हो कि उन कर्मचारियों का नुकसान और बड़ा हो।

1. एरियर राशि के रुप में सीधे-सीधे 7-8 लाख रुपये (यानि 50 प्रतिशत) का नुकसान।

2. हमारे अनुमान के अनुसार यह नुकसान कहीं और ज्‍यादा है क्‍योंकि उपरोक्‍त कर्मचारियों के एरियर की गणना में कुछ त्रुटियां है जिससे उनका एरियर पहले ही बहुत कम बना है।

3. प्रत्‍येक कर्मचारी को ग्रेच्‍युटी के रुप में एक बहुत बड़ा नुकसान। कैसे- क्‍योंकि गेच्‍युटी हमेशा अंतिम वेतनमान पर निकाली जाती है। जब मूल वेतनमान से कम पर समझौता किया जाता है तो यह नुकसान होना वाजिब है।

4. पीएफ में भी मोटी रकम का नुकसान। कैसे- मजीठिया के अनुसार सही-सही वेतनमान बनने पर पीएफ की राशि का अंतर ही लाख रुपये से ऊपर हो जाता है।

5. मजीठिया लागू होने के बाद यदि EL कैश करवाई हों तो उसके अंतर का नुकसान।

6. यदि कोई ओवर टाइम हो तो उसके अं‍तर का नुकसान।

7. अन्‍य भत्‍ते यदि कोई हैं तो उनका नुकसान।
 
8. दो साल में एक बार मिलने वाले LTA की रकम का नुकसान।

9. यदि उनमें से किसी को अंतरिम राहत नहीं मिली हो तो उसके रुप में भी कई लाख का नुकसान।

10. यदि किसी साथी का रात्रि पाली भत्‍ता बनता है तो उसमें औसत 2500 रुपये प्रतिमाह का नुकसान।

11. ब्‍याज के रुप में मोटी रकम का नुकसान।


साथियों, अवमानना मामले की 19 जुलाई को होने वाली फाइनल हियरिंग से पहले ही सुप्रीम कोर्ट के रुख से डरे हुए हिंदुस्‍तान प्रबंधन से कर्मचारियों द्वारा समझौते की जल्‍दी समझ से परे है। हां, प्रबंधन की जल्‍दी तो समझ में आती है क्‍योंकि वह अवमानना के झेमले से जल्‍द से जल्‍द बाहर निकलना चाहता है। ऐसे में यदि यह कर्मचारी कुछ समय और इंतजार कर लेते तो उन्‍हें 7-8 लाख रुपये की जगह उनकी जायज लाखों रुपये की रकम मिल जाती। यदि उन्‍होंने समझौता करना ही था अपने एरियर की राशि का सही आंकलन लगवाते और उसको लेने पर ही अड़े रहते। अवमानना के झेमले से बाहर निकलने के लिए छटपटा रही कंपनी झकमारकर आपका जायज हक आपको देने पर मजबूर हो जाती और जरुरत पड़ने पर कुछ और मेहरबानी भी कर देती। यदि अभी समझौता पूरी तरह से सिरे नहीं चढ़ा है तो उपरोक्‍त साथियों से निवेदन है कि वह इन तथ्‍यों पर जरुर गौर।

इसके अलावा एक बात और कहना चाहेंगे कि वेजबोर्ड से संबंधित कोई भी समझौता कर्मचारियों के लिए अधिकतम लाभ की ही बात कहता है। वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट 1955 की धारा 13 में स्‍पष्‍ट उल्‍लेख है कि किसी भी कर्मचारी का वेतन वेजबोर्ड द्वारा तय न्‍यूनतम वेतनमान से किसी भी दशा में कम नहीं होगा। धारा 13 को पढ़कर आप खुद इस बात को समझ जाएंगे।

[Sec. 13- Working journalists entitled to wages at rates not less than those specified in the order - On the coming into operation of an order of the Central Government under section 12, every working journalist shall be entitled to be paid by his employer wages at the rate which shall in no case be less than the rate of wages specified in the order.]

[धारा 13 श्रमजीवी पत्रकारों का आदेश में विनिर्दिष्‍ट दरों से अन्‍यून दरों पर मजदूरी का हकदार होना-- धारा 12 के अधीन केंद्रीय सरकार के आदेश के प्रवर्तन में आने पर, प्रत्‍येक श्रमजीवी पत्रकार इस बात का हकदार होगा कि उसे उसके नियोजक द्वारा उस दर पर मजदूरी दी जाए जो आदेश में विनिर्दिष्‍ट मजदूरी की दर से किसी भी दशा में कम न होगी।]।

वहीं, धारा 16 स्‍पष्‍ट करती है कि यदि आप किसी भी वेजबोर्ड में निर्धारित न्‍यूनतम वेतनमान से ज्‍यादा वेतन प्राप्‍त कर रहे हैं तो यह आपके उस ज्‍यादा वेतन को प्राप्‍त करने के अधिकार की रक्षा करता है। यानि कोई भी करार आपको ज्‍यादा से ज्‍यादा फायदा देने के लिए हो सकता है, नाकि आपको न्‍यूनतम वेतनमान से वंचित करने के लिए।

Sec 16. Effect of laws and agreements inconsistent with this Act.-- (1) The provisions of this Act shall have effect notwithstanding anything inconsistent therewith contained in any other law or in the terms of any award, agreement or contract of service, whether made before or after the commencement of this Act:
Provided that where under any such award, agreement, contract of service or otherwise, a newspaper employee is entitled to benefits in respect of any matter which are more favourable to him than those to which he would be entitled under this Act, the newspaper employee shall continue to be entitled to the more favourable benefits in respect of that matter, notwithstanding that he receives benefits in respect of other matters under this Act.

(2) Nothing contained in this Act shall be construed to preclude any newspaper employee from entering into an agreement with an employer for granting him rights or privileges in respect of any matter which are more favourable to him than those to which he would be entitled under this Act.

धारा 16- इस अधिनियम से असंगत विधियों और करारों का प्रभाव-- (1) इस अधिनियम के उपबन्‍ध, किसी अन्‍य विधि में या इस अधिनियम के प्रारम्‍भ से पूर्व या पश्‍चात् किए गए किसी अधिनिर्णय, करार या सेवा संविदा के निबंधनों में अन्‍तर्विष्‍ट उससे असंगत किसी बात के होते हुए भी, प्रभावी होंगे :
परन्‍तु जहां समाचारपत्र कर्मचारी ऐसे किसी अधिनिर्णय, करार या सेवा संविदा के अधीन या अन्‍यथा, किसी विषय के संबंध में ऐसे फायदों का हकदार है जो उसके लिए उनसे अधिक अनुकूल है जिनका वह इस अधिनियम के अधीन हकदार है तो वह समाचारपत्र कर्मचारी उस विषय के संबंध में उन अधिक अनुकूल फायदों का इस बात के होते हुए भी हकदार बना रहेगा कि वह अन्‍य विषयों के संबंध में फायदे इस अधिनियम के अधीन प्राप्‍त करता है।

(2) इस अधिनियम की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह किसी समाचारपत्र कर्मचारी को किसी विषय के संबंध में उसके ऐसे अधिकार या विशेषाधिकार जो उसके लिए उनसे अधिक अनुकूल है जिनका वह इस अधिनियम के अधीन हकदार है, अनुदत्‍त कराने के लिए किसी नियोजक के साथ कोई करार करने से रोकती है।


उपरोक्‍त धाराओं को पढ़कर आप यह तो जान ही गए होंगे कि वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट आपके हितों की रक्षा के लिए बना है और कोई भी ऐसा समझौता जिसमें आपको वेजबोर्ड की सिफारिशों से कम लाभ मिलता है गैरकानूनी है। हम आपसे इतना ही कहना चाहेंगे आप जानकार वकील से जरुर सलाह लें, शायद कोई रास्‍ता निकल आए।

नोट- इस जानकारी को देने का हमारा मकसद मात्र इ‍तना ही है कि यदि आप कभी भी किन्‍हीं भी कारणों से समझौता करने जा रहे हों तो उपरोक्‍त तथ्‍यों को जरुर ध्‍यान में रखें।

हिंदुस्‍तान समेत सभी अखबारों के बर्खास्‍त, निलंबित, सेवानिवत्‍त या नौकरी बदल चुके साथियों से अनुरोध है कि वे आगे आए और 14 मार्च 2016 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में श्रम कार्यालयों में अपनी रिकवरी लगाएं। क्‍योंकि राज्‍यों के श्रम आयुक्‍तों को जल्‍द ही अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा करवानी है।

(हिंदुस्‍तान के कुछ साथियों से बातचीत के आधार पर)


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Saturday 18 June 2016

मजीठिया: केस लड़ रहे सभी साथी ध्‍यान दें

साथियों, जैसा कि आप सभी को पता है कि 14 मार्च 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने मजीठिया वेजबोर्ड के लाभ प्राप्‍त करने की अभिलाषा रखने वालों और उनके उत्‍पीड़न व बर्खास्‍तगी के मामलों में सभी राज्‍यों के श्रमायुक्‍तों से रिपोर्ट मांगी है। और हममें से कइयों ने मजीठिया को लेकर रिकवरी लगा रखी है या अपनी बर्खास्‍तगी या उत्‍पीड़न को लेकर उपश्रमायुक्‍त से लेकर विभिन्‍न अदालतों में लड़ाई लड़ रहे हैं।

ऐसे में सभी पत्रकार साथियों से अनुरोध है कि जिनके मामले उप श्रमायुक्‍त के यहां से रेफर होकर इंडिस्‍ट्रयल टि्ब्‍यूनल, नेशनल टि्ब्‍यूनल या श्रम अदालत में चले गए हैं या जिन्‍होंने सिविल अदालत या विभिन्‍न हाईकोर्टों में अपने मामले लगा रखे हैं वे अपने वकील के माध्‍यम से 14 मार्च 2016 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में अपने राज्‍य के श्रम आयुक्‍त को सीधे या फि‍र उप श्रमायुक्‍त कार्यालय के माध्‍यम से अपने केस के बारे में लिखित जानकारी दें और उसकी प्राप्ति की कापी जरुर लें। 
जिससे सुप्रीम कोर्ट में जमा करवाने के लिए अपनी-अपनी रिपोर्ट तैयार करते समय श्रमायुक्‍तों द्वारा आपके केसों के तथ्‍यों का भी ध्‍यान रखा जाए। इसका मुख्‍य कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने राज्‍यों के श्रमायुक्‍तों को रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है ना कि निचली अदालतों को। ऐसे में आपको खुद ही यह जानकारी श्रमायुक्‍तों तक पहुंचानी होगी।

ऐसे ही विभिन्‍न राज्‍यों में कार्यरत बहुत सारे साथियों ने फार्म सी तो भरा था, परंतु उन्‍होंने किसी भी उपश्रमायुक्‍त कार्यालय में रिकवरी नहीं डाली थी। उनसे अनुरोध है वे इस मामले में उपश्रमायुक्‍त को 14 मार्च 2016 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए जानकारी मांगें और उनसे अपनी रिपोर्ट भेजने के दौरान इन तथ्‍यों का भी ध्‍यान रखने का अनुरोध करें। यदि आप ऐसा खुद नहीं कर पा रहे हैं तो अपने जिले या राज्‍य में मौजूद पत्रकार संगठनों के माध्‍यम से भी यह कर सकते हैं।
आप सबसे से अनुरोध है कि आप इस मामले में ज्‍यादा ढिलाई न बरतें क्‍योंकि राज्‍यों के श्रमायुक्‍तों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रिपोर्ट सौंपने की अंतिम तिथि नजदीक आ रही है।
(मप्र के एक पत्रकार साथी की रिपोर्ट पर आधारित)

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Monday 13 June 2016

भारत सरकार ने हिंदुस्थान समाचार को दिया यूएनआई व पीटीआई के बराबर का दर्जा

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी नई विज्ञापन नीति में कहा गया है कि इस नीति में पहली बार ऐसे समाचार पत्रों को बढ़ावा देने के लिए नई अंकीय व्यवस्था पेश की गई हैजो बेहतर व्यावसायिक मानकों का पालन करते हैं और उनकी प्रसार संख्या की पुष्टि एबीसी/आरएनआई द्वारा की गई हो। इससे डीएवीपी द्वारा विज्ञापन जारी करने में पारदर्शिता और विश्वसनीयता भी सुनिश्चित होगी। अंकीय व्यवस्था छह विभिन्न मानदंडों पर दिए गए अंकों पर आधारित है।

इसके मानदंडों में एबीसी/आरएनआई द्वारा प्रमाणित प्रसार संख्या (25 अंक)कर्मचारियों के लिए ईपीएफ अंशदान (20 अंक)पृष्ठों की संख्या (20अंक)यूएनआई / पीटीआई / हिंदुस्तान समाचार की वायर सेवाओं की सदस्यता (15 अंक)अपनी प्रिंटिंग प्रेस (10 अंक)पीसीआई को सालाना सदस्यता भुगतान (10 अंक) शामिल हैं। हर समाचार पत्र को मिले अंकों के आधार डीएवीपी द्वारा विज्ञापन जारी किए जाएंगे। यानि अब देश में तीन न्यूज एजेंसी हो गयी है जिनकी सदस्यता लिए बगैर नहीं मिलेंगे सरकारी विज्ञापन। पूरी पालिसी इस प्रकार है--

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने बनाई नई प्रकाशन मीडिया विज्ञापन नीति : सरकारी विज्ञापन जारी करने में पारदर्शिता और समानता सुनिश्चित करने पर जोर

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने प्रकाशन मीडिया में विज्ञापन जारी करने में पारदर्शिता और विश्वसनीयता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) के लिए एक नई प्रकाशन मीडिया विज्ञापन नीति बनाई है। नीति में सरकारी विज्ञापन जारी करने को आसान बनाने और समाचार पत्रों/पत्रिकाओं की विभिन्न श्रेणियों के बीच समानता और निष्पक्षता को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। नीति की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं:

पारदर्शिता और विश्वसनीयता को बढ़ावा देना

इस नीति में पहली बार ऐसे समाचार पत्रों को बढ़ावा देने के लिए नई अंकीय व्यवस्था पेश की गई हैजो बेहतर व्यावसायिक मानकों का पालन करते हैं और उनकी प्रसार संख्या की पुष्टि एबीसी/आरएनआई द्वारा की गई हो। इससे डीएवीपी द्वारा विज्ञापन जारी करने में पारदर्शिता और विश्वसनीयता भी सुनिश्चित होगी। अंकीय व्यवस्था छह विभिन्न मानदंडों पर दिए गए अंकों पर आधारित है। इसके मानदंडों में एबीसी/आरएनआई द्वारा प्रमाणित प्रसार संख्या (25 अंक)कर्मचारियों के लिए ईपीएफ अंशदान (20 अंक)पृष्ठों की संख्या (20अंक)यूएनआई/पीटीआई/हिंदुस्तान समाचार की वायर सेवाओं की सदस्यता (15 अंक)अपनी प्रिंटिंग प्रेस (10 अंक)पीसीआई को सालाना सदस्यता भुगतान (10 अंक) शामिल हैं। हर समाचार पत्र को मिले अंकों के आधार डीएवीपी द्वारा विज्ञापन जारी किए जाएंगे।

नीति में डीएवीपी के पैनल में शामिल होने के लिए प्रसार की पुष्टि की प्रक्रिया के बारे में भी बताया गया है। प्रतिदिन की प्रसार संख्या 45,000 प्रतियों से ज्यादा होने की स्थिति में आरएनआई/एबीसी द्वारा इसके सत्यापन की प्रक्रिया का भी नीति में उल्लेख है;  प्रतिदिन प्रसार संख्या 45,000 प्रतियों से ज्यादा होने की स्थिति में कॉस्ट/चार्टर्ड अकाउंटैंट/स्टैच्युअरी ऑडिटर सर्टिफिकेट/एबीसी से मिला प्रमाण पत्र अनिवार्य है। नीति कहती है कि आरएनआई प्रसार प्रमाण पत्र जारी होने की तारीख से दो साल तक के लिए वैध होगामौजूदा प्रमाण पत्र को प्रसार प्रमाण पत्र के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा। नीति में कहा गया कि डीजी डीएवीपी को प्रसार के आंकड़ों की आरएनआई या उसके प्रतिनिधि के माध्यम जांच करने का अधिकार सुरक्षित है।

नीति एक समाचार पत्र के बहु-संस्करणों के लिए सूचीबद्धता की प्रक्रिया भी बताती है। यह कहती है कि पीआरबी कानून के मुताबिक जब भी एक समाचार पत्र के एक संस्करण की प्रतियां एक से ज्यादा केंद्र पर छपती हैं और यदि समाचार पत्र की सामग्री अलग-अलग है तो उसे अलग संस्करण माना जाएगा। समाचार पत्र के हर संस्करण के लिए एक अलग आरएनआई पंजीकरण संख्या की जरूरत है और आरएनआई को प्रसार के सत्यापन के साथ हर संस्करण के लिए अलग इकाई माना जाएगा। हालांकि नीति के दिशानिर्देशों में उल्लेख है कि यदि एक समाचार पत्र अपनी सुविधा के लिए एक संस्करण को एक से ज्यादा प्रिंटिंग प्रेस में छापता है तो उस संस्करण को अंक देते समय इस बात को ध्यान में रखा जा सकता है।

बिलों के भुगतान और समायोजन के लिए नीति में यह अनिवार्य बनाया गया है कि डीएवीपी को अनिवार्य तौर पर ईसीएस या एनईएफटी के माध्यम से विज्ञापन बिलों का भुगतान सीधे समाचार पत्र/कंपनी के खाते में सीधे जमा करना होगा। यह भी उल्लेख किया गया है कि समाचार पत्र डीएवीपी द्वारा जारी रिलीज ऑर्डर मिलने के बाद ही डीएवीपी विज्ञापनों का प्रकाशन करेंगे।



सभी श्रेणियों के समाचार पत्रों को प्रोत्साहन

नीति में इस बात का भी उल्लेख है कि डीएवीपी द्वारा जारी विज्ञापनों के एवज में भुगतान के लिए दर संरचना का निर्धारण दर संरचना समिति की सिफारिशों के आधार पर किया जाएगा। नीति में उन समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में विज्ञापनों को प्रमुखता से प्रकाशित किए जाने पर प्रीमियम की व्यवस्था भी की गई हैजिनकी प्रसार संख्या एबीसी/आरएनआई द्वारा प्रमाणित है। डीएवीपी पहले पृष्ठ पर रंगीन/काला-सफेद के लिए डीएवीपी दरों से 50 प्रतिशत ज्यादातीसरे पृष्ठ के लिए 20 प्रतिशत ज्यादापाचवें पृष्ठ के लिए 10प्रतिशत ज्यादा और अंतिम पृष्ठ के लिए 30 प्रतिशत ज्यादा प्रीमियम का भुगतान करेगाजो उन्हीं समाचार पत्रों को मिलेगाजिनकी प्रसार संख्या एबीसी/आरएनआई द्वारा मान्यता प्राप्त है।

यह नीति बड़ी श्रेणी के ऐसे समाचार पत्रों को प्रोत्साहन देने वाली है जो डीएवीपी की दरों पर शैक्षणिक संस्थानों के ज्यादा विज्ञापनों के प्रकाशन के इच्छुक होंउन्होंने दूसरे समाचार पत्रों की तुलना में वॉल्यूम के लिहाज से 50 प्रतिशत अतिरिक्त कारोबार देने का प्रावधान है। नीति में समाचार पत्रों/पत्रिकाओं को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया हैजो छोटी (प्रतिदिन 25,000 प्रतियों से कम)मध्यम (25,001-75,000 प्रतियां प्रतिदिन) और बड़ी (प्रतिदिन 75,000 प्रतियों से ज्यादा) हैं।

सरकारी विज्ञापनों को जारी करने में समानता और निष्पक्षता सुनिश्चित करना

नई नीति के क्रम में समचार पत्रों/पत्रिकाओं की विभिन्न श्रेणियों के बीच निष्पक्षता सुनिश्चित करने की प्रक्रिया में बोर्ड ने सरकार के सामाजिक उद्देश्यों को भी शामिल किया है। नीति में क्षेत्रीय भाषाओं/बोलियों के छोटे औ मझोले समाचार पत्रोंव्यापक प्रसार वाले समाचार पत्रों (प्रसार 1 लाख से ज्यादा)पूर्वोत्तर राज्योंजम्मू एवं कश्मीर और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूहों के समाचार पत्रों को विशेष प्रोत्साहन देने के लिए पैनल की प्रक्रिया में लचीलापन देने का उल्लेख भी किया गया है। नीति में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि डीएवीपी सामाजिक संदेशों और संबंधित विज्ञापनों को ज्यादा संख्या में जारी करने का प्रयास करेगाजो पत्रिकाओं के लिहाज से किसी विशेष तारीख के लिए न हों।

समान क्षेत्रीय पहुंच को बढ़ावा देने के लिए नीति में जोर दिया गया है कि पूरे भारत के लिए निर्धारित विज्ञापन बजट को सभी राज्यों के बीच हर राज्य/भाषा में समाचार पत्रों की प्रसार संख्या के आधा पर बांटा जाएगा। नीति में इस बात का भी उल्लेख है कि पीएसयू और स्वायत्त संस्थाएं डीएवीपी के पैनल में शामिल समाचार पत्रों को सीधे डीएवीपी दरों पर विज्ञापन जारी कर सकती हैं। हालांकिउन सभी को सभी वर्गीकृत जारी करने और सभी छोटीमझोली व बड़ी श्रेणियों के विज्ञापनों के प्रकाशन के लिए डीएवीपी द्वारा तय प्रक्रियाओं का पालन करना होगा।

ग्राहक मंत्रालयों द्वारा डीएवीपी को जल्दी और समयबद्ध भुगतान सुनिश्चित करना

नीति में डीएवीपी के सभी ग्राहकों को नए वित्त वर्ष के पहले महीने के भीतर डीएवीपी को बीते साल के वास्तविक खर्च का 50 प्रतिशत भुगतान अधिकार पत्र / चेक / डीडी / एनईएफटी / आरटीजीएस के माध्यम से करने के लिए निर्देशित किया गया है। साथ ही वित्त वर्ष की 28 फरवरी से पहले बाकी भुगतान करने के भी निर्देश दिए गए हैं। वैकल्पिक तौर पर ग्राहक मंत्रालयों को विज्ञापनों पर अनुमानित खर्च का 85 प्रतिशत तक अग्रिम भुगतान भी करना पड़ सकता है। डीएवीपी विभिन्न मंत्रालयों / विभागों / पीएसयू / स्वायत्त संगठनों की तरफ से विज्ञापन जारी करने के लिए भारत सरकार की नोडल एजेंसी हैजिन्हें भारत सरकार से वित्त मिलता है।
(साभार: भड़ास4मीडिया)

Saturday 11 June 2016

मजीठिया: आई-नेक्‍स्‍ट, कंचन प्रभा, पंजाबी जागरण, सिटी प्‍लस, शब्‍द-शिखर समेत जागरण से जुड़े सभी साथी ध्‍यान दें

साथियों, जैसा कि आपको पता है कि 14 मार्च 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के अनुसार वेतनमान नहीं मिलने वाले सभी समाचार-पत्र व पत्रिकाओं के कर्मचारियों को संबंधित राज्‍यों के श्रम कार्यालयों में क्‍लेम करने का निर्देश दिया है।

ऐसे में जागरण प्रकाशन लिमिटेड की विभिन्‍न कंपनियों में कार्यरत हमारे कई साथियों को अब तक नहीं पता कि वे मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के अनुसार वेतनमान पाने के हकदार है। यदि आप इन कंपनियों में, अखबारों में या बेवसाइटों में कार्यरत हैं या कार्य कर चुके हैं तो अपना एरियर बना कर जल्‍द ही उपश्रमायुक्‍त कार्यालय में क्‍लेम करें ताकि आप मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के अनुसार अपना हक प्राप्‍त कर सकें।

मिडडे इंफोमीडिया लिमिटेड (मिडडे- अंग्रेजी, गुजराती और इंकलाब की प्रकाशक), सुवी इंफो मैनेजमेंट (इंदौर) प्राइवेट लिमिटेड और नई दुनिया मीडिया लिमिटेड (नई दुनिया और नवदुनिया)

मैसर्स शब्‍द-शिखर प्रकाशन (ए पार्टनरशिप फर्म), जागरण पब्लिकेशन प्राइवेट लिमिटेड (JPPL), Jagran Prakashan (MPC) Private Limited (JPMPC), M/s Jagran Publication (a patnership firm)-kanpur, Jagran Media Network Investment Private Limited, Naidunia Media Limited, Mid Day Multimedia Limited

आई-नेक्‍स्‍ट, सिटी प्‍लस, पंजाबी जागरण, सखी, जोश, डेली एक्‍शन-कानपुर (Daily Action-kanpur), कंचन प्रभा-कानपुर,

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एचटी मीडिया को धूल चटाने वाले 315 कर्मियों की जीत से संबंधित कोर्ट आर्डर की कापी DOWNLOAD करें

हिंदुस्तान टाइम्स वालों ने अपने यहां सन 1970 से परमानेंट बेसिस पर काम कर रहे करीब 362 मीडिया कर्मियों को 2 अक्टूबर 2004 को बिना किसी वजह एकाएक बर्खास्त कर दिया था। 362 में से कई कर्मियों ने तो प्रबंधन के साथ सुलह कर ली, लेकिन 315 कर्मियों ने इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल कड़कड़डूमा में केस कर दिया ट्रिब्यूनल ने 8 मार्च 2007 को एक अंतरिम आदेश पारित किया कि सभी 315 कर्मियों को मुकदमे के निपटारे तक एचटी मीडिया पचास फीसदी तनख्वाह गुजारे भत्ते के लिए दे इसके खिलाफ एचटी वाले हाईकोर्ट चले गए

बाद में यह मामला पटियाला हाउस कोर्ट ट्रांसफर किया गया जहां सभी कर्मियों की बहाली और बकाया भत्ते देने के आदेश पारित हुए इसके खिलाफ एचटी मीडिया हाईकोर्ट गया तो हाईकोर्ट ने निचली आदेश के फैसले को सही ठहराया और मामला सेटल करने को वहीं जाने के लिए कहा अब इस मामले में फाइनल फैसला आ गया है जिसमें एचटी मीडिया को अपने इन सैकड़ों कर्मियों को बहाल करने से लेकर सभी बकाया देने के आदेश हैं और ऐसा न करने पर एचटी मीडिया की संपत्ति जब्त करने के निर्देश है इस प्रकरण से संबंधित खबर पहले ही छप चुकी है अब कोर्ट आर्डर की कापी भी आप डाउनलोड कर पढ़ सकते हैं नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर कोर्ट आर्डर की कापी डाउनलोड करें: 

Court Order Copy Download


(साभार: भड़ास4मीडिया)