Saturday 29 July 2017

मजीठिया: बनारस में फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह होगी मुकदमों की सुनवाई

डीएम करेंगे निगरानी



देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी से एक बड़ी खबर आरही है।यहां जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन और एरियर को लेकर पत्रकारों व गैर पत्रकारो की लड़ाईं लड़ रहे समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन व काशी पत्रकार संघ की पहल पर अब डीएलसी स्तर तक के सभी तरह के मुकदमों की सुनवाई निर्धारित समय के भीतर पूरी होगी। इस आशय का आदेश जिलाधिकारी योगेश्वर राम मिश्र ने शनिवार को समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन व काशी पत्रकार संघ के संयुक्त प्रतिनिधि मण्डल की बातों को सुनने के बाद दी।
           प्रतिनिधि मण्डल में शामिल पत्रकारों ने डीएलसी स्तर पर मुकदमों की सुनवाई में अत्यधिक विलम्ब पर नाराजगी जतायी । डीएम ने वार्ता के दौरान मौजूद डीएलसी के प्रतिनिधि से साफ तौर पर कहा कि पत्रकारों से सम्वन्धित मुकदमों की सूची तैयार कर उनमें हो रही कार्यवाही का पूरा विवरण उन्हें उपलब्ध करायें । उन्होंने कहा कि इसकी हर हफ्ते वे समीक्षा करेंगें । इस क्रम में डीएम ने कहा कि आठ अगस्त को वे खुद डीएलसी कार्यालय में एक घंटे बैठकर मुकदमों के प्रगति की समीक्षा करेंगे।
डीएम ने यह भी निर्देश दिया कि मुकदमों में तीन दिन से ज्यादा की डेट न दी जाए। तीन से चार डेट में मुकदमों का निस्तारण हर हाल में सुनिश्चित किया जाय।
प्रतिनिधिमण्डल ने श्रम न्यायालयों में सम्बन्धित मुकदमों की जल्द सुनवाई के लिए "फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन की प्रदेश सरकार से मांग से सम्बन्धित ज्ञापन डीएम के माध्यम से सीएम योगी आदित्यनाथ को भेजा'। इस सम्बन्ध मे पत्रकारों का प्रतिनिधिमण्डल मुख्यमंत्री से मिलने के लिए लखनऊ जाने वाला है।
प्रतिनिधिमण्डल में समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन के मंत्री अजय मुखर्जी . काशी पत्रकार संघ अध्यक्ष सुमाष सिंह. महामंत्री अत्रि भारद्वाज , पूर्व अध्यक्ष विकास पाठक, पूर्व महामंत्री राजेन्द्र रंगप्पा के अलावा एके लारी ,  रमेश राय, मनोज श्रीवास्तव, लक्ष्मी कांत द्विवेदी, जगाधारी, सुधीर गरोडकर, संजय से ठ  आदि शामिल थे।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आर टी आई एक्टिविस्ट
9322411335

Saturday 22 July 2017

मजीठिया: हिमाचल प्रदेश वर्किंग जर्नलिस्‍टस यूनियन गठित, निर्णायक जंग की तैयारी



मजीठिया वेजबोर्ड अवार्ड को लागू करवाने और प्रबंधन के उत्‍पीड़न के खिलाफ पिछले दिन वर्षों से लड़ाई लड़ रहे वरिष्‍ठ पत्रकार रविंद्र अग्रवाल के प्रयासों से हिमाचल प्रदेश में पहली बार पत्रकार एवं गैर-पत्रकार अखबार कर्मियों की यूनियन का गठन कर लिया गया है। हिमाचल के कई पत्रकार और गैरपत्रकार साथी इस यूनियन के सदस्‍य बन चुके हैं और अभी भी सदस्‍यता अभियान जारी है। एक जून को इस हिमाचल प्रदेश वर्किंग जर्नलिस्‍टस यूनियन(एचपीडब्‍ल्‍यूजेयू) के नाम से गठित इस कर्मचारी यूनियन में पत्रकार और गैरपत्रकार दोनों ही श्रेणियों के अखबार कर्मियों को शामिल किया जाएगा। नियमित और संविदा/अनुबंध कर्मी भी यूनियन के सदस्‍य बन सकते हैं, बशर्ते इनका पेशा सिर्फ अखबार के कार्य से ही जुड़ा होना चाहिए।

इस यूनियन का प्रदेश अध्‍यक्ष सर्वसम्‍मति से रविंद्र अग्रवाल को बनाया गया है। महासचिव की जिम्‍मेवारी कपिल देव को दी गई है। अन्‍य पदाधिकारियों में मुरारी शर्मा को वरिष्‍ठ उपाध्‍यक्ष, उदयवीर पठानिया व वासूदेव नंदन को उपाध्‍यक्ष, टीना ठाकुर व नवनीत बत्‍ता को सचिव और रामकेवल सिंह को कोषाध्‍यक्ष चुना गया है।

इस यूनियन की संबद्धता इंडियन फैडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्‍ट्स(आईएफडब्‍ल्‍यूजे), नई दिल्‍ली से ली गई है। एचपीडब्‍ल्‍यूजे के अध्‍यक्ष रविंद्र अग्रवाल व सचिव कपिल देव ने एक संयुक्‍त बयान में बताया कि इस यू‍नियन के गठन का मकसद हिमाचल प्रदेश के श्रमजीवी पत्रकार और गैरपत्रकार अखबार कर्मियों को मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार वेतनमान व एरियर दिलवाने के साथ ही इनकी समस्‍याओं को सरकारी व कानूनी स्‍तर पर सुलझाना रहेगा। इन्‍होंने कहा कि मजीठिया वेजबोर्ड को लागू करवाने के लिए प्रदेश सरकार और श्रम विभाग अब तक ढुलमुल नीति अपनाए हुए हैं। यूनियन जल्‍द ही इस संबंध में मुख्‍यमंत्री वीरभद्र सिंह, श्रम मंत्री मुकेश अग्निहोत्री और श्रम विभाग के आयुक्‍त हिमांशु शेखर चौधरी को ज्ञापन भेज कर अखबार कर्मियों की चिंताओं से अवगत करवाएगी। साथ ही मजीठिया वेजबोर्ड की मांग करने वाले पत्रकारों के तबादलों और जबरन इस्‍तीफे लिए जाने की अखबार प्रबंधनों की कार्रवाई की भी यूनियन कड़े शब्‍दों में नींदा करती है। एचपीडब्‍ल्‍यूजे के अध्‍यक्ष रविंद्र अग्रवाल ने कहा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और रूख से एक बात तो स्‍पष्‍ट हो चुकी है कि अखबार प्रबंधन अपने कर्मचयारियों को मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार वेतनमान और एरियर देने से नहीं बच सकते। भेले ही अब वे दमनकारी नीतियों के चलते अखबार कर्मियों की आवाज को दबाए हुए हैं, मगर जल्‍द ही हिमाचल प्रदेश के समस्‍त कर्मी एचपीडब्‍ल्‍यूजेयू के बैनर तले एकत्रित होकर निर्णायक लड़ाई शुरू कर देंगे। उन्‍होंने स्‍पष्‍ट किया कि यह लड़ाई किसी समाचार स्‍थापना में प्रबंधन विरोधी गतिविधियों से जुड़ी कतई नहीं होगी, बल्कि कानूनी तौर पर अखबार कर्मियों के संवैधानिक हकों हो प्राप्‍त करने के तौर पर होगी। इस संबंध में जल्‍द ही यूनियन की वर्किंग कमेटी की बैठक बुलाई जाएगी।

उन्‍होंने कहा कि अखबार कर्मियों के हितों के लिए यूनियन कानूनी जंग लड़ने को तैयार है। इससे पहले प्रदेश सरकार और श्रम विभाग को वर्किंग जर्नलिस्‍टस एक्‍ट,1955 के प्रावधानों सहित मजीठिया वेजबोर्ड अवार्ड को लागू करवाने के लिए अनुरोध किया जाएगा, अगर अब भी प्रदेश सरकार और श्रम विभाग अखबार प्रबंधन के दबाव में आकर कार्रवाई से परहेज करते हैं तो इनके खिलाफ माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायलय के आदेश लागू न करवाने पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। रविंद्र अग्रवाल ने कहा कि प्रदेश के श्रमजीवी पत्रकार एवं गैर पत्रकार अखबार कर्मी मोबाइल नंबर 9418394382(wattsapp) या मेल आईडीhpwjunion@gmail.com पर अपनी समस्‍या या सुझाव भेज सकते हैं। रविंद्र अग्रवाल ने एचपीडब्‍ल्‍यूजेयू को संबद्धता देने के लिए आईएफडब्‍ल्‍यूजे के महासचिव एवं परमानंद पांडेय का आभार भी व्यक्‍त किया है।  

Friday 21 July 2017

मजीठिया: सिफारिशों को लागू करना ही होगा अखबार मालिकों को

त्रिपक्षीय समिति की बैठक में महाराष्ट   कामगार आयुक्त यशवंत केरुरे ने साफ कहा कि बचने का कोई रास्ता नहीं

मुंबई, 21 जुलाई। जस्टिस  मजीठिया वेज बोर्ड  की सिफारिश महाराष्ट्र में कराने के लिये बनायी गयी त्रिपक्षीय समिति की बैठक में  शुक्रवार २१ जुलाई को महाराष्टÑ के कामगार आयुक्त यशवंत केरुरे ने अखबार मालिकों के प्रतिनिधियों को स्पष्ट तौर पर कह दिया कि १९ जून २०१७ को माननीय सुप्रीमकोर्ट के आये फैसले के बाद अखबार मालिकोें को बचने का कोई रास्ता नहीं बचा है। अखबार मालिकों को हर हाल में जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड  की सिफारिश लागू करनी ही पड़ेगी। श्री केरुरे ने कहा कि माननीय सुप्रीमकोर्ट ने जो आदेश जारी किया है उसको लागू कराना हमारी जिम्मेदारी है और अखबार मालिकों को इसको लागू करना ही पड़ेगा। इस बैठक की अध्यक्षता करते हुये कामगार आयुक्त ने कहा कि अवमानना क्रमांक ४११/२०१४ की सुनवाई के बाद माननीय सुप्रीमकोर्ट ने १९ जून २०१७ को आदेश जारी किया है उसमें चार मुख्य मुद्दे सामने आये हैं जिसमं वर्किंग जर्नलिस्ट की उपधारा २०(जे) , ठेका कर्मचारी, वेरियेबल पे हैवी  कैश लॉश की संकल्पना  मुख्य थी।
कामगार आयुक्त ने कहा कि  अखबार मालिक २० (जे) की आड़ में बचते रहे हैं जबकि १९ जून २०१७ के आदेश में सुप्रीमकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि सभी श्रमिक पत्रकार और पत्रकारेत्तर कर्मचारी आयोग की तरह वेतन पाने के पात्र हैं। सुप्रीमकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इस आयोग का अधिक लाभ यदि एकाद कर्मचारी को मिल रहा हो तो भी अधिक से अधिक कर्मचारी इसके लाभ के पात्र हैं।

ठेका कर्मचारी के मुद्दे पर उन्होने कहा कि सुप्रीमकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि उक्त अधिनियम की धारा २(सी), २ (एफ) और २(डीडी ) में दिये गये वर्किंग जर्नलिस्ट एंड नान जर्नलिस्ट न्यूज पेपर इम्पलाईज की व्याख्या के अनुसार तथा मजीठिया वेतन आयोग की शिफारिश के अनुसार स्थायी और ठेका कामगार में फर्क नहीं है।  सुप्रीमकोर्ट का मानना है कि सभी ठेका कर्मचारी  को मजीठिया वेतन आयोग की शिफारिश के अनुसार वेतन देने की सीमा में शामिल नहीं किया गया है।  वेरियेबल पेय के मुद्दे पर उन्होने कहा कि माननीय सुप्रीमकोर्ट ने इस मुद्दे पर स्पष्ट किया है कि केन्द्र शासन ने केन्द्र शासन के कर्मचारियोें के लिये ६ वें वेतन आयोेग की तर्ज पर मजीठिया वेतन आयोग ने देश के श्रमिक पत्रकार और पत्रकारेत्तर कर्मचारियों के लिये वेरियेबल पे की संकल्पना की है।
भारी वित्तीय घाटे के मुद्दे पर श्री केरुरे ने माननीय सुप्रीमकोर्ट द्वारा लिये गये निर्णय को त्रिपक्षीय समिति को बताया। इस दौैरान नेशनल यूनियन आप जर्नलिस्ट (एनयूजे) महाराष्टÑ की महासचिव शीतल करंदेकर ने अध्यक्ष यशवंत केरुरे का ध्यान दिलाया कि अखबार मालिक फर्जी एफीडेविट दे रहे हैं। साथ ही लोकमत और सकाल अखबारों में अखबार मालिक मजीठिया वेज बोर्ड  मांगने वालों की छटनी कर रहे हैं इसपर यशवंत केरुरे ने तीखी नाराजगी जतायी और कहा कि अखबार मालिक ऐसा नहीं कर सकते । मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन हर मीडियाकर्मी का अधिकार है और ये अधिकार उन्हे सुप्रीमकोर्ट ने दिया है। उन्होने कहा कि कई अखबार मालिकों की ऐसी शिकायतें आरही है कि वे मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन मांगने वाले कर्मचारियों को शोषण किया जारहा है। इसे बर्दास्त नहीं किया जायेगा। इस बैठक मेंं कामगार आयुक्त ने कहा कि किसी भी मीडियाकर्मी को मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन मागने पर अगर तबादला या परेशान किया गया वे इस मामले को निजी तौर पर भी गंभीरता से लेंगे। शीतल करंदेकर ने इस दौरान एक अन्य मुद भी उठाया जिसमें अखबार मालिकों द्वारा जानबूझ कर मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश लागू ना करना शामिल है।  कामगार आयुक्त ने इस दौरान मालिकों के प्रतिनिधियों की बातों को भी समझा और आदेश दिया कि वे प्रेस रीलिज जारी करने जारहे हैं ताकि हर अखबार मालिक मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश लागू करें। इस बैठक में बृहन्मुंबई जर्नलिस्ट यूनियन (बीयूजे) के एम जे पांडे, इंदर जैन आदि के अलावा वरिष्ठ लेबर अधिकारी श्री बुआ और सहायक कामगार आयुक्त शिरिन लोखंडे आदि भी मौजूद थीं। कामगार आयुक्त ने इस दौरान यह भी कहा कि अखबार मालिक अपनी अलग अलग यूनिट दिखा रहे हैं और बचने का रास्ता खोज रहे हैं तथा २ डी एक्ट का उलंघन कर रहे हैं। यह नहीं चलेगा। सुप्रीमकोर्ट ने इसपर भी व्याख्या कर दी है।   बीयूजे के एम जे पांडे ने कहा कि आज अखबार मालिक क्लासिफिकेशन के नाम पर बचते आरहे हैं और उनकी आयकर विभाग से  बैलेंससीट मंगाने की जरुरत है इस पर उन्होने कहा कि हम इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। इंदर जैन ने भी मीडियाकर्मियों का पक्ष रखा।

शशिकांत सिंह
नेशनल यूनियन आॅफ जर्नलिस्ट (एनयूजे) महाराष्ट् के मजीठिया सेल समन्वयक और आरटीआई एक्सपर्ट
९३२२४११३३५

Majithia: Dattatreya review the status of implementation of the recommendations

New delhi, 21 july. Bandaru Dattatreya,  Minister of State (Independent Charge), Labour and Employment took a meeting with the representatives of the State Governments today to review the status of implementation of the recommendations of the Majithia Wage Board.
The Central Government constituted wage boards for working journalists and non-journalists newspaper employees, as and when required, as per the provisions contained in   section 9 and section 13C respectively of the Working Journalists Act, 1955.
The last such Wage Boards, Viz. the Majithia Wage Boards were constituted by the Ministry of Labour and Employment on 24.5.2007. The Board submitted the recommendations to the Government on 31.12.2010.
Ministry of Labour and Employment notified the recommendations of the Majithia Wage Boards, under section 12 of the said Act, on 11.11.2011 subject to the outcome of the W.P. (C) No. 246 of 2011. The Hon’ble Supreme Court, in its judgment dated 07.02.2014 upheld the Majithia Wage Boards recommendations.
As the said order was not complied by some newspaper establishments, contempt petitionswere filed in the Hon’ble Supreme Court.
The Hon’ble Supreme Court, in its judgement dated 19.7.2017held that  theMajithia Wage Board Award has to be implemented in full. The Hon’ble Court also    clarified on   four important issues like payment of   wages as per  Majithia Wage Board Awards, Clause 20(j), admissibility of Variable pay, applicability to Contractual employees and financial capacity of the newspaper establishments to pay arrears.
As a sequel to the above judgment of the Hon’ble Supreme Court, a  meeting was held  under the Chairmanship of   Hon’ble  Minister of State (I/C) for Labour and Employment to  discuss the issues relating to implementation of the recommendations of the  Majithia Wage Board Awards with the representative of the State Governments. As per the said Act, the implementation of the recommendations of the Wage Boards lies with the State Governments.
During the meeting, the State Governments/UT Administrations were impressed upon to implement the   Wage Board Awards in letter and spirit.Discussions were alsoheld to bring the journalists of electronic & digital media under the ambit of the Working Journalists Act, 1955. State Governments were requested to tender their considered opinion in this regard.
As thelast Wage Board was constituted in 2007,   the issue regarding constitution of a new Wage Board was also discussed in the meeting. 

मजीठिया: दत्तात्रेय ने की मजीठिया की सिफारिशों पर अमल की स्थिति की समीक्षा

नई दिल्ली, 21 जुलाई।  श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बंडारू दत्तात्रेय ने मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों पर अमल की स्थिति की समीक्षा के लिए आज यहां राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की।

केन्द्र सरकार वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट, 1955 की क्रमशः धारा 9 और धारा 13सी में निहित प्रावधानों के अनुसार आवश्यकता पड़ने पर कार्यरत पत्रकारों और गैर-पत्रकार समाचारपत्र कर्मचारियों के लिए वेतन बोर्डों का गठन करती रही है।

इस तरह के पिछले वेतन बोर्ड अर्थात मजीठिया वेतन बोर्ड का गठन श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा 24 मई, 2007 को किया गया था। बोर्ड ने 31 दिसम्बर, 2010 को सरकार को अपनी सिफारिशें पेश कर दी थीं।

श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने उपर्युक्त अधिनियम की धारा 12 के तहत मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को 11 नवम्बर, 2011 को अधिसूचित किया था, जिसके लिए 2011 की डब्ल्यू.पी. (सी) संख्या 246 पर फैसले को ध्यान में रखा जाना था। माननीय उच्चतम न्यायालय ने 7 फरवरी, 2014 को मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को सही ठहराया।

चूंकि उपर्युक्त ऑर्डर का अनुपालन कुछ समाचार पत्र संस्थानों ने नहीं किया था, इसलिए इसे ध्यान में रखते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय में अवमानना याचिकाएं दाखिल की गई थीं।

माननीय उच्चतम न्यायालय ने 19 जून, 2017 को सुनाए गए अपने फैसले में कहा कि मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को पूर्ण रूप से लागू किया जाना है। माननीय न्यायालय ने चार महत्वपूर्ण मुद्दों पर स्थिति साफ की। इनमें मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों के मुताबिक वेतन का भुगतान, अनुच्छेद 20(जे), परिवर्तनीय वेतन की स्वीकार्यता और ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों के लिए भी इन सिफारिशों को लागू मानने के साथ-साथ बकाया रकम की अदायगी के लिए समाचार पत्र संस्थानों की वित्तीय क्षमता शामिल हैं।

माननीय उच्चतम न्यायालय के उपर्युक्त फैसले को ध्यान में रखते हुए मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों पर अमल से संबंधित मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए श्री बंडारू दत्तात्रेय की अध्यक्षता में एक बैठक राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों के साथ की गई। उपर्युक्त अधिनियम के मुताबिक मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों पर अमल की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाली गई है।

बैठक के दौरान राज्य सरकारों/केन्द्र शासित प्रदेशों के प्रशासन से मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को पूर्ण रूप से लागू करने को कहा गया। इस बैठक के दौरान इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया के पत्रकारों को भी वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट, 1955 के दायरे में लाने पर चर्चाएं हुईं। राज्य सरकारों से अनुरोध किया गया कि वे इस बारे में अपनी राय पेश करें।

चूंकि पिछले वेतन बोर्ड का गठन वर्ष 2007 में किया गया था, इसलिए इस बैठक के दौरान एक नए वेतन बोर्ड के गठन के मुद्दे पर भी विचार-विमर्श किया गया।

Wednesday 19 July 2017

मजीठिया: हिन्दुस्तान टाइम्स मैनेजमेंट को महंगी पड़ी नयी चाल

डीएलसी ने चेतावनी के साथ अंतिम बार 3 अगस्त को समय दिया।

पटना। एचटी ग्रुप मे  मजीठिया वेज बोर्ड लागू नही करने के सवाल पर चल रही  सुनवाई की चौथी तारीख पर भी मैनेजमेंट ने कोई कंपलायन्स उपलब्ध नही कराया। आज एचटी मैनेजमेंट ने मामले को अटकाने के लिए अपने  एडवोकेट के जरिए नया और घिनौना खेल खेला। मैनेजमेंट के एडवोकेट  आलोक सिन्हा   सुनवाई के दो घंटा पहले डीएलसी कार्यालय मे एक पिटिशन दाखिल कराया जिसमे यह आरोप लगाया गया  कि  शिकायतकर्ता दिनेश कुमार सिंह ने 12 जुलाई को  सुनवाई के दौरान उनको धमकाया । डीएलसी ने सुनवाई मे मौजूद एचटी के एचआर हेड से पूछा की आप उस दिन भी एडवोकेट के साथ  आए थे ऐसी कोई बात तो यहां हुई नही । सुनवाई के प्रोसिडिंग पर एडवोकेट ने हस्ताक्षर किए  और अगली तारीख  और समय तय करने मे उनकी उपलब्धता का ख्याल रखा गया फिर यह गलत आरोप कैसे लगा सकते हैं। एचआर हेड ने कहा कि  एडवोकेट से नीचे कुछ कहा सुनी हुई । जब एचआर हेड को यह मालूम हुआ कि जिस लिफ्ट मे मै दिनेश कुमार सिंह सुनवाई के बाद नीचे लिफ्ट मे उतर रहे थे वह नीचे तल्ले मे लगभग 40 मिनट तक फंसी रह गई थी। सिक्यूरिटीज ने काफी मशक्कत के बाद बाहर निकाल पाया था जहां कमोवेश सारे आला अधिकारी मौजूद थे।
झूठी और गढ़ी हुई कथानक के आधार पर गंदा खेल के महारथ एटी मैनेजमेंट ने तत्काल झूठे आरोप को वापस लिया। साथ ही यह स्वीकार किया की दिनेश कुमार सिंह इस एपिसोड मे कही नही थे। एचआर हेड रविशंकर सिंह  ने दिल्ली के एचआर डायरेक्टर से बात की और एडवोकेट द्वारा लगाए गए आरोप तत्काल वापस लिया
झूठ मे फंसी मैनेजमेंट ने मांग की कि सबके हिसाब देने  के लिए दो सप्ताह का समय चाहिए। मेरी ओर से मेरे एडवोकेट ने कहा यह स्वीकार है मगर इसके समय की मांग स्वीकार नही होगी।  इस तरह सुनवाई की  अगली तारीख 3 अगस्त होगी।

(दिनेश कुमार सिंह)

Wednesday 12 July 2017

मजीठिया त्रिपक्षीय समिति की 20 को मुम्बई में बैठक


अखबार मालिकों द्वारा दिये गए फर्जी एफिडेविट का मामला सामने लाएगा एन यू जे

देश भर के मीडिया कर्मियों के वेतन और प्रमोशन से जुड़े जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड  की सिफारिश को अमल में लाने के लिए गठित महाराष्ट्र की
त्रिपक्षीय समिती की बैठक मुंबई में कामगार आयुक्त कार्यालय के समिती कक्ष में 20 जुलाई को दोपहर में  आयोजित की जा रही है ।माननीय सुप्रीमकोर्ट के 19 जून को आये आदेश के बाद महाराष्ट्र में ये पहली त्रिपक्षीय समिति की बैठक होगी।

इस बैठक में पत्रकारों की तरफ से पांच प्रतिनिधि नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट की महाराष्ट्र महासचिव शीतल हरीश करदेकर, बृहन मुंबई यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट के मन्त्रराज जयराज पांडे, रवींद्र राघवेंन्द्र देशमुख, इंदर जैन कन्वेनर ज्वाइन्ट एक्शन कमेटी ठाणे और किरण शेलार शामिल हैं। मालिकों की तरफ से जो पांच लोग शामिल हैं उनमें जयश्री खाडिलकर पांडे, वासुदेव मेदनकर, विवेक घोड़ वैद्य, राजेंद्र कृष्ण रॉव सोनावड़े और बालाजी अन्नाराव मुले हैं। इस समिति में लोकमत की तरफ से दो प्रतिनिधि शामिल किये गए हैं जिनके नाम बालाजी अन्ना रॉव मुले और विवेक घोड़ वैद्य हैं जबकि रोहिणी खाडिलकर नवाकाल की हैं। इसी तरह राजेंद्र सोनावड़े दैनिक देशदूत नासिक से हैं। वादुदेव मेदनकर सकाल मराठी पेपर से हैं।बैठक की अध्यक्षता   कामगार आयुक्त महाराष्ट्र श्री यशवंत केरुरे करेंगे।श्री केरुरे ने साफ कहा कि वे माननीय सुप्रीमकोर्ट के आदेश का पालन कराने के लिये कटिबद्ध हैं। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के सभी अखबार मालिकों से ३०० रुपये के स्टांप पेपर पर एफिडेविट मंगाया था और जिन अखबार मालिकों ने एफिडेविड नहीं दिया है उनके खिलाफ कठोर कारवाई की जारही है। इस त्रिपक्षीय समिति की बैठक में  नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट की महाराष्ट्र महासचिव शीतल करंदेकर  कामगार आयुक्त को एक ज्ञापन भी देंगी और मांग करेंगी की अखबार मालिको द्वारा दिये गए  फर्जी एफिडेविट की जांच कराकर दोषी अखबार मॉलिकों के खिलाफ एफ़ आई आर दर्ज कराई जाए।साथ ही यह मांग भी करेंगी कि समिति में उन नए सदस्यों को भी शामिल किया जाए जिन्हें जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड की अच्छी समझ हो।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आर टी आई एक्सपर्ट तथा एन यू जे महाराष्ट्र मजीठिया सेल समन्यवयक
9322411335

Tuesday 11 July 2017

मजीठिया: जागरण को लगाई कड़ी फटकार, अब रोजाना होगी सुनवाई

कानपुर से मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई लड़ रहे मीडियाकर्मियों के लिए एक अच्छी खबर आ रही है. आज कानपुर लेबर कोर्ट ने दैनिक जागरण समूह की कंपनी जागरण प्रकाशन लिमिटेड को कड़ी फटकार लगाई. आज मजीठिया वेज बोर्ड मामले की सुनवाई थी. सुनवाई के दौरान जब जागरण प्रकाशन का नंबर आया तो जागरण प्रकाशन की तरफ से कोई मौजूद नहीं था. वकील ने कोर्ट से अगली तारीख देने की अप्लीकेशन लगा दी.

इस पर मीडियाकर्मियों और उनके वकील ने आपत्ति जताई. मीडियाकर्मियों के वकील ने कहा कि जागरण के लोग लगातार कोर्ट को गुमराह कर समय नष्ट कर रहे हैं. ये लोग लगातार हीलाहवाली कर रहे हैं ताकि कोर्ट का समय बर्बाद हो और क्लेम करने वाले थक हार कर घर बैठ जाएं. मजिस्टेट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद जागरण प्रकाशन के वकील को फटकार लगाई.

मजिस्ट्रेट ने जागरण के रवैये पर आपत्ति जताते हुए कहा कि अगर इन लोगों को समय चाहिये तो हम बस एक दिन का समय देते हैं. कल यानी 12 जुलाई को आइए. अब मजीठिया की प्रतिदिन तारीख लगेगी और प्रतिदिन सुनवायी होगी. इतना सुनते ही मीडिया कर्मियों के चेहरे खुशी से खिल गये और जागरण का वकील मुंह लटकाए खड़ा रहा।

भास्कर को पट्टे पर दी भूमि पर कब्जे का आदेश

दैनिक भास्‍कर, रायपुर को 1985 में कांग्रेस द्वारा प्रेस लगाने के लिए (अविभाजित मध्‍य प्रदेश में) पट्टे पर दी गई ज़मीन को छत्‍तीसगढ़ प्रशासन ने शुक्रवार 7 जुलाई के एक शासनादेश के माध्‍यम से रद्द कर के उस पर प्रशासनिक कब्‍ज़े का आदेश दे दिया है। ज़मीन का कुल आकार 45725 वर्गफुट और अतिरिक्‍त 9212 वर्ग फुट है यानी कुल करीब 5000 वर्ग मीटर है। नजूल की यह ज़मीन रायपुर भास्‍कर को प्रेस लगाने के लिए इस शर्त पर कांग्रेस शासन द्वारा दी गई थी कि संस्‍थान अगर प्रेस लगाने के विशिष्‍ट प्रयोजन से मिली ज़मीन को किसी और प्रयोजन के लिए इस्‍तेमाल करेगा तो शासन उसे वापस ले लेगा। इस ज़मीन का पट्टा 31 मार्च 2015 को समाप्‍त हो चुका था और दैनिक भास्‍कर ने इसके नवीनीकरण के लिए अग्रिम आवेदन किया था।
छत्‍तीसगढ़ सरकार के राजस्‍व एवं आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा 7 जुलाई को जारी आदेश कहता है कि कलेक्‍टर रायपुर से प्राप्‍त स्‍थल निरीक्षण प्रतिवेदन में पाया गया है कि ”उक्‍त भूमि पर 7 मंजिला पक्‍का व्‍यावसायिक कांपलेक्‍स बनाया गया है तथा प्रत्‍येक मंजिल पर प्रेस स्‍थापना से भिन्‍न अन्‍य व्‍यावसायिक प्रयोजन के लिए भूमि का उपयोग किया जा रहा है।” इसके बाद शासन ने कई बार अख़बार से इस संबंध में जवाब मांगा लेकिन अखबार प्रबंधन ने जवाब देने के लिए लगातार वक्‍त मांगा और जवाब दाखिल नहीं किया।
आदेश कहता है, ”तदनुसार उक्‍त भूमियों पर निर्मित परिसंपत्तियों को निर्माण सहित नियमानुसार राजसात कर बेदखली की कार्यवाही करने हेतु कलेक्‍टर, रायपुर को आदेशित किया जाता है।” आदेश की प्रति प्रधान संपादक, दैनिक भास्‍कर, रायपुर को भी भेजी गई है।
(मजीठिया क्रांतिकारी ग्रुप से) 

बड़का चली आ...

मैं जागरण आफिस छोटे पाउ नवनीत  कन्ने मिलना गया तां ओहथु बड़का ओरां दुस्सी पे। मैं पैरीं हत्थ लाये तां बड़के गले ने लाई ल्या। पूछ्या अज कतां?  मैं ल्या अज तुहां सोगी मिलना आई गया, बड़का बड़ा खुस, शीशे पार नवनीत हल्की स्माइल दई ने दुरे ते हाल चाल पुछि ल्या। बड़के चा मंगाई लई,गप्प छप चली,बड़के कताबा ताई कई सुझाब दई पाए। कुछ ईजा करना कुछ उंझा। मिंझो पता हा बड़का ठीक नी ए, पर बड़के कुछ बी शो नी होना दित्ता, फेस पर से नेचुरल रौनक नी थी पर बड़का पूरा जोर लाये की कुछ भी शो न होय। जेलु में एचपीसीए दे भ्रष्टाचार दे खिलाफ मामला चकया तां बड़के बड़ी मदद कित्ती। प्रेस क्लब दे पचां धूप्पा च कुर्सी लाई ने बड़के ते सलाह लेनी। बड़के वाल बड्डा आरी एक्सपीरियंस था।

बड़का गर्मजोशी ने मिलदा था पर सलाई दिन्दी बारी बड़ा गंभीर। ए मत करदे,से करी लेना। मैं तिन की साल पहले शिमले आई रया तां मुलाकात घटी गई। विच पाकिस्तान दे मैचे खिलाफ जेलु मैं मुहिम चलाई तां बड़का बड़ा खुस पर बमारिया दी बजा ने बेशक बड़का डोन होना शुरू होई आ था पर खबर से दई कड़क इ लिखनी। मैं पूछ्या बड़का अजकल सुझदे नी, बोल्या अजकल यरा मेरे ते दौड़ पज्ज नी हुंदी तां एथि डेस्क पर ठीक रहन्दा। नवनीत कन्ने मिलला तां नवनीते गलाया बड़के दा जिंदगी भर दा एक्सपीरियंस अजकल अहाँ दे कम्मे ओ दा। एथि बड़के जो कोई टेंशन ब नी ए। बमारी ते तंग होई बड़के रिजाइन करना लाया हा तां नवनीते रिक्वेस्ट कित्ती तुहां टेंशन मत ल्या।

जागरण आफिस आई ने जे दिल करे से करा, जेलु दिल करे तेलु आ कन्ने जा। भाई, इन्हा दे ओने ने सांझो सबनी जो बड़ा कुछ सिखने जो मिलदा, नवनीत दी सेंसटिविटी मिंझो कॉलज टेमे ते पता थी हुन तां वैसे बी नवनीत काफी मैच्योर है उन्नी इकी तीरे ने दो निशाने लाये। बड़का बी अडजस्ट कन्ने बड़के दे एक्सपीरियंस दा फायदा उपरे ते बड़के दा दिल भी ओर ओई जाँदा। कल पता लग्गा बड़का अपना एक्सपीरियंस जागरण आफिस बंडी ने पता नी कतां जाई रया। हुन बड़के दी सकल नी सुजनी बस,ख़बरां च बड़के दी झलक सुजनी जेडी बड़के वाकियों जो बंडी। बड़के दी कमी कदी पूरी नी ओई सकदी। भगवान बड़के दी आत्मा जो शांति दें। जय हिंद

-विनय शर्मा
डिप्टी एडवोकेट जनरल
हिमाचल सरकार

जिंदादिली की मिसाल राकेश पठानिया की मौत की मनहूस खबर

etv वाले मृत्युंजय की फेसबुक पोस्ट ने आज मझे सुबह सवेरे बुरी तरह झटक दिया था। पोस्ट में कांगड़ा जिले में पत्रकारिता के सूरमा और जिंदादिली की मिसाल राकेश पठानिया की मौत की मनहूस खबर मिल गयी। मृत्युंजय ने पत्रकार समाज को हुयी इस बड़ी क्षति की सूचना देकर अपना धर्म निभाया लेकिन राकेश पठानिया जैसे पत्रकारिता के 'वीर पुरुष' को मौत यूँ घेरकर निगल लेगी यह सब यकीं करना मुश्किल हो रहा था। तब फेसबुक पर कई पोस्टों ने तेज़ी पकड़ी तो बीसियों बार पढ़ पढ़कर भी दिल को दिन भर दिलासे देने जुटा रहा क़ि नहीं यह कैसे हो सकता है! लेकिन यह सच था क़ि शान ए धर्मशाला हमारे बड़े भाई राकेश पठानिया अब नहीं रहे थे। फट से जागरण में फोन घुमाया तो पुराने मित्रों ने बताया क़ि हाँ यह सही है लेकिन सब अचानक।हुआ है। पिछली शाम तक ठीक थे। दिनेश कटोच ने ही इन मेरे जागरण वाले मित्र को भी बताया था क़ि पठानिया अब ठीक हैं। शुक्रवार को तो पठानिया ने जागरण में भी खुद ही बताया था क़ि अब उन्हें लग रहा है क़ि वह ठीक हो जाएंगे। मतलब सब सामान्य था। मगर शनिवार की रात पठानिया के जीवन के लिए एक ऐसी घुप अँधेरी रात साबित हो गयी थी क़ि जिसका कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता था। बताया गया क़ि टांडा मेडिकल कॉलेज में केमोथेरापि के बाद शनिवार को उनकी तबियत आधी रात के बाद एकाएक ऐसी बिगड़ी क़ि थामी नहीं जा सकी। दिन भर मित्रों से चर्चा करता रहा पठानिया की। कइयों ने अपने अपने अनुभव बांटे।

अभी रात सामने आ गयी। अब सोने की कोशिश कर रहा था लेकिन आँखों के आगे से भाई पठानिया की सूरत-सीरत हटने का नाम नहीं ले रही थी तो सोचा क़ि क्यों न श्र्द्धांजलि के कुछ शब्द उन्हें मैं भी समर्पित कर दूँ। राकेश पठानिया सचमुच पूरी तरह।से पत्रकारिता को ही समर्पित थे। पहले कभी जनसत्ता तो फिर उसके बाद दैनिक जागरण। जागरण के लिए उन्होंने बतौर पत्रकार ही नही बल्कि एक अभिभावक की भूमिका भी निभायी। प्रेस स्थापित करने से लेकर अखबार के हर खरे बुरे के चिंतक और किसी भी संकट के दौर में बेहतरीन व्यवस्थापक। यूँ तो वह बड़े अंतर्मुखी थे।लेकिन कभी कभी घुटन से बचने के लिए दिल की बातें साझी भी कर लिया करते थे। वह एक सरल सकारत्मक व्यक्तितव के धनि थे। बुरा करने से बचते थे और ऐसी ही सलाह भी दूसरों को दिया करते थे। पत्रकारिता में भिड़न्त और सींगबाज़ी इन्हें पसंद नहीं थी।

उन्हें मैंने ऐसे महसूस किया कई बार क़ि वह समाज में सभी पक्षों के पैरोकार थे। पत्रकारिता से वह सब नहीं जिससे किसी भी पक्ष को क्षति हो। खिलाफ खबर भी लिखेंगे लेकिन शब्द शिष्टता और शब्द संयम पर पूरा जोर। मैंने उन्हें एक टीम लीडर के रूप में कई बार बढ़िया काम करते हुए देखा। वह किसी को नाराज करने के पक्ष में कभी नहीं रहते। टीम में सभी को प्यार से और कम संसाधनों की स्थिति में अपना बेहतर देने की सदा प्रेरणा देने की उनके प्रयासों को हम कई बार देखते और महसूस करते थे। यह उनके व्यक्तितव का ही करिश्मा था क़ि जागरण के संजय गुप्ता इन्हें व्यक्तिगत तौर पर जानते थे और इन पर हर मामले में भरोषा करते थे। तात्कालिक मुख्य महा प्रबन्धक निशिकांत ठाकुर हिमाचल के तमाम बड़े निर्णय पठानिया से ही मशविरे के बाद लेते थे। उनसे जुडी कई स्मृतियाँ जेहन में उछल कूद-भागमभाग कर रही है और दिल-दिमाग को बेचैन कर रही हैं। भाई आपको हमेशा याद रखेंगे और आपका वो फोन उठाते ही जुबां से निकलने वाला 'जय देया महाराज'।

(वरिष्ठ पत्रकार राजेश्वर ठाकुर की फेसबुक वॉल से)



पठानिया जी का अंतिम संदेश- ''जिंदगी बहुत खूबसूरत है, लेकिन अपनों के बिना तू अच्छी नहीं लगती''

भला ऐसे भी कोई जाता है... : जिंदगी बहुत खूबसूरत है, लेकिन अपनों के बिना तू अच्छी नहीं लगती। मेरे व्हाट्सएप पर वरिष्ठ पत्रकार पठानिया जी का अंतिम संदेश यही था। पत्रकारिता में अपना जीवन खपा देने वाले बड़े भाई समान मित्र राकेश पठानिया अंतिम समय में मुझे याद करते रहे। (जैसा पारिवारिक सदस्यों ने आज अल सुबह बताया)। पता नहीं दोस्ती के कई कर्ज चुकाने बाकी रह गए।

जीवन सच में अनमोल है। आपके लिए खुद की जि़ंदगी न जाने क्या महत्व रखती है, लेकिन परिवार के लिए आप ही जि़ंदगी हो। यह वक्त न तो किसी तरह के वाद-विवाद का है और न ही इस असमय मृत्यु के कारणों की पड़ताल का। हम सबका फर्ज यह है कि हम पठानिया जी के परिवार की ऐसी क्या मदद करें कि उनका आगे का जीवन आसानी से कट सके। दोस्तों! पठानिया जी की पहचान एक कर्मठ पत्रकार के रूप में रही। पत्रकारिता के अलावा उनका कोई अतिरिक्त व्यवसाय नहीं रहा। धर्मपत्नी गृहिणी हैं, जबकि दो बच्चे अभी छोटी कक्षाओं में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

मैं दिल से आभारी हूँ धर्मशाला के प्रतिष्ठित व्यवसायी एवम दिवंगत पठानिया जी के मित्र श्री मुन्नू ठाकुर जी का जो संकट की इस घड़ी में पांच लाख की आर्थिक सहायता के साथ सामने आए हैं। वहीं नूरपुर के पूर्व विधायक श्री राकेश पठानिया ने दिवंगत पत्रकार राकेश पठानिया जी के एक बच्चे की शिक्षा का पूरा खर्च वहन करने की बात कही है। उम्मीद है दैनिक जागरण संस्थान उन्हें समुचित मुआवज़ा प्रदान करेगा। हमसे जो हर संभव मदद होगी, उसके लिए हम तैयार हैं।

(पत्रकार शशिभूषण पुरोहित की फेसबुक वॉल से)


एक कलमकार की मौत और सौ सवाल

कहने को तो अब हिमाचल प्रदेश का शहर धर्मशाला प्रदेश की दूसरी राजधानी है और स्मार्ट सिटी भी बनने जा रही है, मगर आज से दो दशक पहले भी धर्मशाला की प्रदेश की राजनीति में काफी अहमियत थी। तब की पत्रकारिता आज के दौर से कहीं अलग और काफी मुश्किल भरा टास्क थी। कुछ गिनी चुनीं अखबारें प्रदेश के बाहर से छपकर आती थीं और इनके पत्रकारों के तौर पर घाघ लोगों का कब्जा था। किसी नए खबरनवीस के लिए अखबार में जगह तलाशना कोयले के खान में हीरा तलाशने जैसा मुश्किल काम था। सीनियर भी ऐसे थे, जो उस समय के दौर में मिलने वाली तबज्जों और आवभगत के चलते किसी को करीब फटकने नहीं देते थे, और शागिर्द की बात करें तो ऐसा सांप सुघ जाता था कि मानो वह एकलव्य बनकर उनके लक्ष्य को भेदने को तैयार हो।

ऐसे ही दौर में कुछ अच्छे लोगों की अंगुली पकड़ कर एक दुबले पतले लड़के ने भी कलम को हथियार बनाकर एक लक्ष्य निर्धारित किया। तब पत्रकार बनने के लिए तनख्वाह की सोचना तो दूर की बात खबर भेजने तक के लिए जेब ढिली करनी पड़ती थी। वो समय ऐसा था जब पत्रकारिता का जुनून जिसके सिर पर चढ़ता, वो वेतन की परवाह किए बिना खुद की जेब से भी खर्चा करके पत्रकार बनना चाहता था। पत्रकार भी वही बनते जो फक्कड़पन की परवाह किए बिना अपनी खबर के प्रकाशित होने पर अपना सीना चौड़ा किए संतोष के साथ शान से जीते थे। तब जनसत्ता जैसी व्यवस्था से लडऩे वाली अखबार का साथ मिलना किसी सपने के साकार होने जैसा ही था।

ऐसे ही दौर में कलम थामने वाला यह पतला दुबला युवक था राकेश पठानिया। पत्रकारिता के शोक या कहें जुनून ने उसके सामान्य से व्यक्तित्व को तराशने के साथ-साथ कुछ ऐब भी दे दिए। लगातार धूम्रपान करना और जमकर शराब पीने की लत एक दाग की तरह थी। शायद यही लत इस कलमकार को हम सब से दूर ले जाने वाली थी। या कहें कि उसका शांत स्वभाव और गुस्से व रोष को अंदर ही दबाए रखने की कला उसे अंदर से खोखला कर सकती थी। ये सब बातें इसलिए कर रहा हूं कि रविवार को गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह-सुबह उठते ही राकेश पठानिया की असमय मृत्यु का दहलाने वाला समाचार मिला। सिर्फ मैं ही नहीं उन्हें जानने व उनके साथ उठने बैठने वाला हर इनसान सकते में था। यह बात तो हर कोई जानता था कि राकेश पठानिया की तबीयत ठीक नहीं चल रही है और काफी समय से उनका ईलाज चल रहा है। इसकी बीमारी के चलते उन्हें सीटी आफिस से हटाकर बनोई स्थित प्रकाशन कार्यालय के डैस्क में भेज दिया गया है। दो दशक से जो जगह जिसकी कर्मस्थली रही हो और अचानक बूरा समय आते ही उस जगह से बेदर करना भी किसी सदमे से कम नहीं रहा होगा। डैस्क में काम के साथ-साथ ईलाज भी चलता रहा, मगर दुबले शरीर में काम व चिंता के बोझ के अलावा भ_ी की तरह जलते सिगरेट के धूंए से बेदम हो चुके फेफड़े साथ छोड़ चुके थे। चरमरा चुकी चिकित्सा व्यवस्था भला किसी पत्रकार को छोड़ती भी कैसे। बीमारी कुछ और ईलाज कुछ। जब असल बीमारी को पता चला तब तक मौत का केंकड़ा फेफड़ों को कुतर चुका था। शांत स्वभाव भला बदलता भी कैसे। दर्द व रोष को अंदर ही दबाने की कला अब धीरे-धीरे इस खबरनवीस को किसी ओर ही दुनिया में ले जाने को आतूर थी। किसी को इसकी भनक तक नहीं चली थी, नहीं तो बाद में अफसोस करने वाले भला इस तरह उसे तिल-तिल मरता नहीं देखते।

महज 54-55 वर्ष की उम्र में राकेश पठानिया की मौत से पत्रकार समाज सकते में है। पगार से ज्यादा बेगार की चीज बन चुकी पत्रकारिता के चलते राकेश पठानिया की शादी भी काफी अधिक उम्र में हुई थी। एक बेटा महज सात साल का और बेटी 12 वर्ष की है। छोटे-छोटे बच्चों के सिर पर से बाप का साया उठना और भी चिंता का विषय है। घर-परिवार की बात करें तो वर्षों से किराए के मकान में रहने वाला परिवार आज भी वहीं पर है। ऐसे में परिवार की  चिंता भी हर किसी के जहन में है। दैनिक जागरण में सीनियर चीफ रिपोर्टर की पोस्ट पर नियमित कर्मी होने के चलते अब सबका ध्यान कंपनी से मिलने वाली आर्थिक सहायता पर टिका है। सभी मदद को तैयार हैं, मगर कितनी मदद होगी इस पर स्वत: सोचा जा सकता है। आखिर आज दिन तक एक पत्रकार की मौत पर परिवार को मिला भी क्या है। अफसोस और जीवन में किए कार्यों की प्रशंसा के चंद शब्दों से ज्यादा कोई दे भी क्या सकता है। आर्थिक मदद भी कर देंगे तो क्या इतने छोटे बच्चों के लंबे पड़े भविष्य की सफलता के लिए इनके साथ टिके रहना हर किसी के बस में है। पत्रकारों की हालत तो यह है कि दूसरों के दुखों को बखान तो कर सकते हैं, मगर खुद पर मुसीबत आती है तो अपने ही कन्नी काटे जाते हैं। कुल मिलाकर पत्रकारिता संकट के दौर में है। वेतन के लिए पत्रकार नौकरियां खोए बैठे हैं। अधिकार मिल नहीं पा रहा, ऊपर से एक पत्रकार का इस तरह जाना पत्रकारिता के भविष्य की तस्वीर नहीं तो ओर क्या है।

Monday 10 July 2017

मजीठिया: पत्रिका के गाल पर जितेंद्र जाट का तमाचा, 6 माह में ही लेबर कोर्ट में जीते टर्मिनेशन का केस

आज 10 जुलाई यानि सावन के पहले सोमवार को एक शुभ समाचार आ रहा है। आज पत्रिका के मालिक गुलाब कोठारी और उनके ख़ास सिपहसालारों की हार की शुरूआत हो गई है।
पत्रिका के मालिकों के खिलाफ जब कर्मचारियों ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना के केस लगाये तो पत्रिका प्रबन्धन ने उन कर्मचारियों को टर्मिनेट-ट्रान्सफर करना शुरू कर दिया। टर्मिनेशन-ट्रान्सफर के खिलाफ कर्मचारी लेबर कोर्ट गए। उन टर्मिनेट कर्मचारियों में से मेरे एक साथी जितेंद्र जाट भी थे जिन्होंने ग्वालियर लेबर कोर्ट में टर्मिनेशन को चुनौती दी जिसका फैसला आज आ गया जिसमें जितेंद्र जाट की जीत और पत्रिका मालिकों की करारी हार हुई। लेबर कोर्ट ने पत्रकार जितेंद्र जाट को बहाल करने के आदेश पत्रिका को दिए।
यह पत्रिका के हार की शुरुआत है।
(विजय शर्मा के fb वॉल से साभार)

Sunday 9 July 2017

कुछ तो सीख ले मीडिया कंपनियां आनंद महिन्द्रा से

आनंद महिन्द्रा भद्र पुरुष हैं। वे जब बोलते हैं तो उसे सुना जाता है। रंगकर्मी भी रहे हैं। खरबों रुपये कमाने के बाद भी वे इंसान बने हुए हैं। उनके महिंद्रा समूह की कंपनी टेक महिन्द्रा में एचआऱ डिपार्टमेंट का एक अफसर अपने एक पेशेवर को बुलाकर उससे इस्तीफा मांगता है। दोनों के बीच हुई बातचीत का ऑडियो वायरल होने के बाद आनंद महिन्द्रा व्यक्तिगत रूप से सार्वजनिक तौर पर क्षमा मांगते हैं। इस ऑडियो में एच आर का बंदा अपने कर्मचारी से अगली सुबह तक इस्तीफा देने के लिए कह रहा है क्योंकि यह कंपनी के प्रबंधन का निर्णय है। क्या आनंद महिन्द्रा जैसा उदाहरण मीडिया समूह का कोई मालिक पेश करेगा... संपादक से उम्मीद करना तो बेमानी होगा क्योंकि वो तो इस सारे खेल का हिस्सा होता है। हम मीडिया वालों का इस तरह के एचआर के लोगों से पाला पड़ता रहा है। बेशक, इस घटना पर आनंद महिन्द्रा का रिएक्ट करना उनकी पर्सनेल्टी को भी दिखाता है।  उनसे कम से दो बार मुझे भी मुलाकात करने का मौका मिला। एक बार हिन्दुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट में और दूसरी बार सीआईआई के वार्षिक सम्मेलन में। मेरी उनसे बातचीत उनके पिता हरीश महिन्द्रा और महिन्द्र एंड मोहम्मद ग्रुप के महिन्द्र एंड महिन्द्रा बनने पर हुई थी। यादगार थी वो मुलाकात।

(वरिष्ठ पत्रकार विवेक शुक्ल की f b वॉल से साभार।)

Saturday 8 July 2017

मजीठिया: सुप्रीमकोर्ट के नए आदेश से लोकमत प्रबंधन की जान सांसत में

लगभग 2400 ठेका कर्मचारियों का  30 जून से नही हुआ कांट्रेक्ट रिनुअल

माननीय सुप्रीमकोर्ट के 19 जून 2017 को आये नए आदेश के बाद महाराष्ट्र में सबसे बड़ा झटका लोकमत अखबार को लगा है । सूत्रों के मुताबिक महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा लोकमत समुह में ठेका कर्मचारी हैं और सुप्रीमकोर्ट ने अपने 19 जून के आदेश में साफ कर दिया है कि ठेका कर्मचारियों को भी मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ मिलेगा।अब लोकमत प्रबंधन  सुप्रीमकोर्ट के इस आदेश के बाद सबसे ज्यादा सांसत में फंस गया है। लोकमत श्रमिक संगठना के अध्यक्ष संजय पाटिल येवले ने इस खबर की पुष्टि करते हुए एक नई जानकारी दिया है कि लोकमत समूह में लगभग 3000 कर्मचारी काम करते हैं जिनमे सिर्फ 20 प्रतिशत परमानेंट हैं बाकी 80  परसेंट कांट्रेक्ट पर हैं।सुप्रीमकोर्ट के नए आदेश के बाद कंपनी ने अधिकांश कांट्रेक्ट कर्मचारियों का कांट्रेक्ट नवीनिकरण नही किया है।संजय पाटिल येवले के मुताबिक इन कांट्रेक्ट कर्मचारियों का कांट्रेक्ट 30 जून को खत्म हो गया मगर कंपनी एक सप्ताह बाद तक किसी का कांट्रेक्ट रिनुअल नही कर रही है बल्कि मजीठिया का लाभ देने से कैसे बचा जाए और नया कांट्रेक्ट किस तरीके का हो इसपर कानूनी विशेषज्ञ से सलाह ले रही है ।उसके बाद ही नया कांट्रेक्ट किया जाएगा।लोकमत समुह से उड़ती खबर ये भी आरही है कि लोकमत ने कई कर्मचारियों को नए आदेश के बाद छुट्टी भी कर दिया है और अब इनमें से कई कर्मचारी मजीठिया की जंग में कूदने की तैयारी कर रहे हैं ताकि उनको उनका अधिकार मिले।आपको बतादें कि संजय पाटील येवले
लोकमत श्रमिक संघटना के अध्यक्ष हैं और पिछले
तीन साल से यह बाहर हैं।
युनीयन का लेबर, इंडस्ट्रीयल, हाइकोर्ट मे मैटर चल रहा है।संजय पाटिल जब लोकमत में काम पर थे तो उन्होंने सिर्फ एक कर्मचारी को निकाले जाने पर दो दिन का असहयोग आंदोलन किया था।आपको बतादें कि लोकमत समूह मराठी दैनिक लोकमत ,हिंदी दैनिक लोकमत समाचार और अंग्रेजी दैनिक लोकमत टाइम्स का प्रकाशन करता है।लोकमत समूह की यूनियन लोकमत श्रमिक संगठना ने एक्चुअल वर्क एक्चुअल पे की मांग को लेकर प्रबंधन के खिलाफ मुकदमा भी कर रखा है।फिलहाल सुप्रीमकोर्ट के नए आदेश के बाद प्रबंधन की सांस गले मे अटक गई है।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आर टी आई एक्सपर्ट
9322411335

Friday 7 July 2017

मजीठिया: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद महाराष्ट्र में कटी देश की पहली आरसी

डी बी कॉर्प लि. के माहिम और बीकेसी कार्यालय को नीलाम कर कर्मचारियों को देना होगा पैसा



जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट के 19 जून को आए फैसले के बाद एक बड़ी खबर आ रही है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश में पहला रिकवरी सर्टिफिकेट (आरसी) महाराष्ट्र में जारी कर दिया गया। अपने आप को देश का नंबर वन अखबार बताने वाले ह्यदैनिक भास्करह्ण की प्रबंधन कंपनी ह्लडी बी कॉर्प लि.ह्व के खिलाफ महाराष्ट्र में पहला रिकवरी सर्टिफिकेट (आरसी) यहां के लेबर विभाग ने जारी किया है। इस रिकवरी सर्टिफिकेट में मुंबई के जिलाधिकारी को निर्देश दिया गया है कि ह्लडी बी कॉर्पह्व की संपत्ति को नीलाम कर वह बकायेदारों का बकाया दिलाएं। यह रिकवरी सर्टिफिकेट ह्यदैनिक भास्करह्ण के मुंबई ब्यूरो में कार्यरत प्रिंसिपल करेस्पॉन्डेंट (एंटरटेनमेंट) धर्मेन्द्र प्रताप सिंह, इसी अखबार की रिसेप्शनिस्ट लतिका आत्माराम चव्हाण और आलिया इम्तियाज शेख के मामले में जारी किया गया है, जिसे मुंबई शहर की सहायक कामगार आयुक्त नीलांबरी भोसले ने 1 जुलाई, 2017 को जारी किया है।

आपको बता दें कि धर्मेन्द्र प्रताप सिंह सहित लतिका चव्हाण और आलिया शेख ने ह्यदैनिक भास्करह्ण की प्रबंधन कंपनी ह्लडी बी कॉर्प लि.ह्व से जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के अनुसार, अपने बकाए की मांग करते हुए स्थानीय श्रम विभाग में वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 17 (1) के तहत क्लेम किया था। महाराष्ट्र के कामगार आयुक्त कार्यालय की सहायक कामगार आयुक्त नीलांबरी भोसले ने इस मामले में लंबी सुनवाई की और दोनों पक्षों को गंभीरता से सुनने के बाद पाया कि धर्मेन्द्र प्रताप सिंह और लतिका चव्हाण तथा आलिया शेख द्वारा मांग किया गया बकाए का दावा सही है। इसके बाद सुश्री भोसले ने पहले आॅर्डर (नोटिस) जारी किया कि ह्लडी बी कॉर्पह्व इन कर्मचारियों का बकाया पैसा फौरन अदा करे, मगर 20-25 दिन गुजर जाने के बाद भी जब उक्त प्रबंधन के कानों पर जूं नहीं रेंगी तो उन्होंने जुलाई महीने की पहली तारीख को ह्लडी बी कॉर्पह्व के विरुद्ध बकाए की वसूली के लिए रिकवरी सर्टिफिकेट जारी कर दिया है।

इस रिकवरी सर्टिफिकेट में धर्मेन्द्र प्रताप सिंह की बकाया राशि 18 लाख 70 हजार 68 रुपए, जबकि लतिका आत्माराम चव्हाण का 14 लाख 25 हजार 988 रुपए और आलिया शेख का 7 लाख 60 हजार 922 रुपए बकाया की आरसी जारी की गई है। इस आरसी के मुताबिक, इसमें 30% (अंतरिम राहत) की राशि को जोड़ना शेष है, किंतु संपूर्ण धनराशि पर 18% की दर से मांगी गई ब्याज की रकम का जिक्र नहीं है! वैसे इन तीनों रिकवरी सर्टिफिकेट से एक नया रिकॉर्ड तो बन ही गया हैङ्घ दरअसल, जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट के आए 19 जून, 2017 के फैसले के बाद देश की यह पहली आरसी है। महाराष्ट्र में तो यह अभी तक की पहली आरसी है ! जी हां, इसके पहले मजीठिया वेज बोर्ड मामले में महाराष्ट्र राज्य में किसी भी अखबार प्रबंधन के खिलाफ आरसी जारी नहीं की गई थी। इसलिए यहां बताना उचित होगा कि धर्मेन्द्र प्रताप सिंह और लतिका चव्हाण तथा आलिया शेख का बकाया पैसा दिलाने के लिये आरसी में ह्लडी बी कॉर्पह्व की उन अचल संपत्तियों का विवरण भी दिया गया है, जरूरत पड़े तो जिसको नीलाम कर तीनों मांगकतार्ओं को यह पैसा दिया जाना है। इसमें मुंबई स्थित माहिम कार्यालय के अतिरिक्त ह्लडी बी कॉर्पह्व का बीकेसी (बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स) स्थित नमन चैंबर्स वाला कार्यालय भी शामिल है।

बहरहाल, धर्मेन्द्र प्रताप सिंह के अलावा लतिका चव्हाण और आलिया शेख ने यह क्लेम सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने अधिवक्ता और मजीठिया वेज बोर्ड मामले में देश भर के मीडियाकर्मियों के पक्ष में लड़ाई लड़ रहे एडवोकेट उमेश शर्मा के दिशा-निर्देश पर किया था। सो, माननीय सुप्रीम कोर्ट का आॅर्डर आने के बाद कटी इस पहली आरसी से उन अखबार मालिकों का अहंकार जरूर टूटेगा, जो अब तक यही सोच रहे थे कि मीडियाकर्मी मुकदमा हार गये हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया है कि अखबार मालिकों को मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशें लागू करनी ही पड़ेंगी।



शशिकांत सिंह

पत्रकार और आरटीआई एक्सपर्ट

9322411335

Sunday 2 July 2017

मजीठिया: सुप्रीम कोर्ट के आदेश को हिंदी में पढ़े, दूर करें गल‍तफहमियां- अंतिम भाग

साथियों, हमारे हिमाचल प्रदेश से सा‍थी रविंद्र अग्रवाल ने आपके लिए सुप्रीम कोर्ट के 19 जुलाई 2017 के फैसले का हिंदी में किए अनुवाद का अंतिम भाग जारी किया है।
इन सभी भागों को पढ़कर अब आप फैसले को ढंग से समझ सकते हैं। फैसले के कुछ छूटे हुए अंशों का अनुवाद बाद में जारी किया जाएगा।


आप रविंद्र अग्रवाल जी से इस नंबर पर भी संपर्क कर सकते हैं-
9816103265
ravi76agg@gmail.com


हिंदी में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पहले भाग को डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न path का प्रयोग करें- https://goo.gl/AEB3c1

हिंदी में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दूसरे भाग को डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न path का प्रयोग करें-https://goo.gl/Ajuxpf

हिंदी में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तीसरे भाग को डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न path का प्रयोग करें-https://goo.gl/CeioUd

हिंदी में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के चौथे भाग को डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न path का प्रयोग करें- https://goo.gl/hDPq3Q

हिंदी में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अंतिम भाग को डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न path का प्रयोग करें- https://goo.gl/1XWFhp

अंग्रेजी में सुप्रीम कोर्ट के पूरे फैसले को डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न path का प्रयोग करें-  https://goo.gl/69NLej




इन्‍हें भी पढ़े-

 

मजीठिया: जागरण प्रबंधन के वकील ने कहा, 'फैसले में कर्मचारियों की चिंताओं को दूर किया गया है'  http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/06/blog-post_13.html


 

मजीठिया: रिकवरी लगाने वालों के लिए सुरक्षा कवच है 16A http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/06/16a.html



मजीठिया: बर्खास्‍तगी, तबादले की धमकी से ना डरे, ना दे जबरन इस्‍तीफा http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/05/blog-post_29.html

 

लोकमत प्रबंधन को मात देने वाले महेश साकुरे के पक्ष में आए विभिन्‍न अदालतों के आदेशों को करें डाउनलोड http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/07/blog-post.html






#MajithiaWageBoardsSalary, MajithiaWageBoardsSalary, Majithia Wage Boards Salary