Tuesday 11 July 2017

जिंदादिली की मिसाल राकेश पठानिया की मौत की मनहूस खबर

etv वाले मृत्युंजय की फेसबुक पोस्ट ने आज मझे सुबह सवेरे बुरी तरह झटक दिया था। पोस्ट में कांगड़ा जिले में पत्रकारिता के सूरमा और जिंदादिली की मिसाल राकेश पठानिया की मौत की मनहूस खबर मिल गयी। मृत्युंजय ने पत्रकार समाज को हुयी इस बड़ी क्षति की सूचना देकर अपना धर्म निभाया लेकिन राकेश पठानिया जैसे पत्रकारिता के 'वीर पुरुष' को मौत यूँ घेरकर निगल लेगी यह सब यकीं करना मुश्किल हो रहा था। तब फेसबुक पर कई पोस्टों ने तेज़ी पकड़ी तो बीसियों बार पढ़ पढ़कर भी दिल को दिन भर दिलासे देने जुटा रहा क़ि नहीं यह कैसे हो सकता है! लेकिन यह सच था क़ि शान ए धर्मशाला हमारे बड़े भाई राकेश पठानिया अब नहीं रहे थे। फट से जागरण में फोन घुमाया तो पुराने मित्रों ने बताया क़ि हाँ यह सही है लेकिन सब अचानक।हुआ है। पिछली शाम तक ठीक थे। दिनेश कटोच ने ही इन मेरे जागरण वाले मित्र को भी बताया था क़ि पठानिया अब ठीक हैं। शुक्रवार को तो पठानिया ने जागरण में भी खुद ही बताया था क़ि अब उन्हें लग रहा है क़ि वह ठीक हो जाएंगे। मतलब सब सामान्य था। मगर शनिवार की रात पठानिया के जीवन के लिए एक ऐसी घुप अँधेरी रात साबित हो गयी थी क़ि जिसका कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता था। बताया गया क़ि टांडा मेडिकल कॉलेज में केमोथेरापि के बाद शनिवार को उनकी तबियत आधी रात के बाद एकाएक ऐसी बिगड़ी क़ि थामी नहीं जा सकी। दिन भर मित्रों से चर्चा करता रहा पठानिया की। कइयों ने अपने अपने अनुभव बांटे।

अभी रात सामने आ गयी। अब सोने की कोशिश कर रहा था लेकिन आँखों के आगे से भाई पठानिया की सूरत-सीरत हटने का नाम नहीं ले रही थी तो सोचा क़ि क्यों न श्र्द्धांजलि के कुछ शब्द उन्हें मैं भी समर्पित कर दूँ। राकेश पठानिया सचमुच पूरी तरह।से पत्रकारिता को ही समर्पित थे। पहले कभी जनसत्ता तो फिर उसके बाद दैनिक जागरण। जागरण के लिए उन्होंने बतौर पत्रकार ही नही बल्कि एक अभिभावक की भूमिका भी निभायी। प्रेस स्थापित करने से लेकर अखबार के हर खरे बुरे के चिंतक और किसी भी संकट के दौर में बेहतरीन व्यवस्थापक। यूँ तो वह बड़े अंतर्मुखी थे।लेकिन कभी कभी घुटन से बचने के लिए दिल की बातें साझी भी कर लिया करते थे। वह एक सरल सकारत्मक व्यक्तितव के धनि थे। बुरा करने से बचते थे और ऐसी ही सलाह भी दूसरों को दिया करते थे। पत्रकारिता में भिड़न्त और सींगबाज़ी इन्हें पसंद नहीं थी।

उन्हें मैंने ऐसे महसूस किया कई बार क़ि वह समाज में सभी पक्षों के पैरोकार थे। पत्रकारिता से वह सब नहीं जिससे किसी भी पक्ष को क्षति हो। खिलाफ खबर भी लिखेंगे लेकिन शब्द शिष्टता और शब्द संयम पर पूरा जोर। मैंने उन्हें एक टीम लीडर के रूप में कई बार बढ़िया काम करते हुए देखा। वह किसी को नाराज करने के पक्ष में कभी नहीं रहते। टीम में सभी को प्यार से और कम संसाधनों की स्थिति में अपना बेहतर देने की सदा प्रेरणा देने की उनके प्रयासों को हम कई बार देखते और महसूस करते थे। यह उनके व्यक्तितव का ही करिश्मा था क़ि जागरण के संजय गुप्ता इन्हें व्यक्तिगत तौर पर जानते थे और इन पर हर मामले में भरोषा करते थे। तात्कालिक मुख्य महा प्रबन्धक निशिकांत ठाकुर हिमाचल के तमाम बड़े निर्णय पठानिया से ही मशविरे के बाद लेते थे। उनसे जुडी कई स्मृतियाँ जेहन में उछल कूद-भागमभाग कर रही है और दिल-दिमाग को बेचैन कर रही हैं। भाई आपको हमेशा याद रखेंगे और आपका वो फोन उठाते ही जुबां से निकलने वाला 'जय देया महाराज'।

(वरिष्ठ पत्रकार राजेश्वर ठाकुर की फेसबुक वॉल से)



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