Tuesday 23 January 2018

मजीठिया: फिरोजपुर से भास्कर कर्मी के पक्ष में जारी हुई साढ़े बाईस लाख की आरसी

पंजाब के फिरोजपुर से एक बड़ी खबर आ रही है। यहां दैनिक भास्कर में कार्यरत ब्यूरो चीफ राजेन्द्र मल्होत्रा के आवेदन को सही मानते हुये फिरोजपुर के सहायक कामगार आयुक्त सुनील कुमार भोरीवाल ने दैनिक भास्कर प्रबंधन के खिलाफ २२ लाख ५२ हजार ९४५ रुपये की वसूली के लिये रिकवरी सार्टिफिकेट जारी की है। राजेन्द्र मल्होत्रा ने जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में अपने बकाये की रकम के लिये सुप्रीम कोर्ट के वकील उमेश शर्मा की देख-रेख में फिरोजपुर के सहायक कामगार आयुक्त के समक्ष १७ (१) का क्लेम लगाया था।
इसके बाद कंपनी को नोटिस मिली तो दैनिक भास्कर की प्रबंधन कंपनी डीबी कार्प ने राजेन्द्र मल्होत्रा का ट्रांसफर बिहार के दरभंगा में कर दिया। उसके बाद राजेन्द्र मल्होत्रा ने एडवोकेट उमेश शर्मा के बताये रास्ते पर चलते हुये फिरोजपुर के इंडस्ट्रीयल कोर्ट में केस लगाया और ट्रांसफर पर स्टे की मांग की। इंडस्ट्रीयल कोर्ट के स्थानीय एडवोकेट ने राजेन्द्र मल्होत्रा का मजबूती से पक्ष रखा और इंडस्ट्रीयल कोर्ट ने राजेन्द्र के ट्रांसफर पर रोक लगा दी।
इसके बाद राजेन्द्र कंपनी में ज्वाईन करने गये तो उन्हे कंपनी ने ज्वाईन नहीं कराया। इसके बाद भी राजेन्द्र मल्होत्रा ने हिम्मत नहीं हारी तथा डीबी कार्प के मैनेजिंग डायरेक्टर सुधीर अग्रवाल, स्टेट हेड बलदेव शर्मा, कार्मिक विभाग के हेड मनोज धवन, एडिटर नरेन्द्र शर्मा और रोहित चौधरी सहित पांच लोगों के खिलाफ अदालत की अवमानना का केस फाईल किया। इसकी सुनवाई चल रही है।
उधर राजेन्द्र मल्होत्रा के मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार मांगे गये दावे को सही मानते हुये फिरोजपुर के सहायक कामगार आयुक्त सुनील कुमार भोरीवाल ने दैनिक प्रबंधन के खिलाफ २२ लाख ५२ हजार ९४५ रुपये की वसूली के लिये रिकवरी सार्टिफिकेट जारी कर दी है। राजेन्द्र मल्होत्रा दैनिक भास्कर में पहले स्ट्रिंगर थे। बाद में उन्हें रिपोर्टर बनाया गया। उसके बाद उन्हें चीफ रिपोर्टर बनाया गया। चीफ रिपोर्टर बनने के बाद उन्हें ब्यूरो चीफ बना दिया गया। मगर जैसे ही उन्होंने प्रबंधन से मजीठिया वेज बोर्ड की मांग की, उनका ट्रांसफर बिहार के दरभंगा में कर दिया गया। मगर अब कंपनी के पास बकाया देने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है।
शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्टीविस्ट
९३२२४११३३५

मजीठिया: SC के आदेश के बाद भी महाराष्ट्र में 84 अखबारों ने अब तक नहीं लागू की सिफारिशें

आरटीआई से हुआ खुलासा

माननीय सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बावजूद महाराष्ट्र के ८४ अखबार मालिकों ने अबतक जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिश अपने यहां लागू नहीं किया है। यह खुलासा हुआ है आरटीआई के जरिये। महाराष्ट के कामगार आयुक्त यशवंत केरुरे द्वारा डिप्टी डायरेक्टर जनरल, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय, भारत सरकार को १६ दिसंबर २०१७ को भेजी अपनी रिर्पोट में यह दावा किया गया है। इन ८४ अखबारों में ६१ अखबार मालिक ऐसे हैं जिन्होने अपने यहां जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश पूरी तरह लागू नहीं किया है जबकि २३ अखबार मालिक ऐसे हैं जिन्होने आशिंक रुप से अपने यहां मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश लागूू किया है। यह रिर्पोट जुलाई २०१७ से सितंबर २०१७ के बीच की मजीठिया वेज बोर्ड की क्रियान्यवयन रिर्पोट पर आधारित है। इस रिर्पोट में दावा किया गया है कि जुलाई २०१७ से सितंबर २०१७ के बीच महाराष्ट में टोटल २७३० समाचार पत्रों का प्रकाशन किया गया है जिसमें २६०१ समाचार पत्र ऐसे हैं जिसमें एक या दो लोग काम करते हैं जबकि १२९ समाचार पत्र ऐसे हैं जिसमें २ से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं । इन १२९ समाचार पत्रो में ४५ समाचार पत्र ऐसे हैं जिन्होने जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश पूरी तरह लागू कर दी है जबकि २३ समाचार पत्रो ंने सिफारिश आंशिक रुप से लागू किया है। ६१ समाचार पत्र मालिकों ने माननीय सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बाद भी मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश अपने यहां लागू नहीं किया। इस जानकारी में बताया गया है कि इन समाचार पत्रों के १४८ कर्मचारियों ने केस फाईल उनके कार्यालय में किया था जिसमें ९१ मामलों का निस्तारण कर दिया गया जबकि ५७ शिकायतों पर कारवाई प्रगति पर है। यानी इस रिपोर्ट से साफ हो गया कि अखबार मालिक सुप्रीमकोर्ट से भी खुद को बड़े समझते हैं।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्टीविस्ट
९३२२४११३३५

Friday 12 January 2018

मजीठिया: भास्कर को मिली करारी हार, लेबर कोर्ट ने नहीं माना आब्जेक्शन

लेबर कोर्ट ने मजीठिया मामले को लेकर चल रही सुनवाई के दौरान दैनिक भास्कर प्रबंधन की ओर से दायर आपत्तियों को खारिज कर दिया। भास्कर प्रबंधन का कहना था कि राजस्थान हाईकोर्ट ने एक मामले में रेफरेंस को वापस राज्य सरकार को भेजने का आदेश दिया है। ऐसे में लेबर कोर्ट में चल रहे सभी मामलों को खारिज करते हुए राज्य सरकार के पास भेज दिया जाए। कर्मचारियों के वकील रिषभचंद ने इसके जवाब में दलीलें देते हुए इस प्रकरण में मजीठिया को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसलो का हवाला देते हुए भास्कर की आपत्तियों को खारिज करने का अनुरोध किया। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और तथ्यों का निरीक्षण करने के बाद लेबर कोर्ट जज राजकुमार रोहिला ने भास्कर की आपत्तियों को खारिज कर दिया। साथ ही प्रबंधन को बहस के लिए अगली तारीख दे दी।

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मजीठिया: अखबार मालिकों को चार दिन से अधिक की राहत नहीं

मजीठिया मामले में सुप्रीम कोर्ट का डंडा होने के बाद अब लेबर कोर्ट भी प्रेस मालिकों को राहत देने के मुड़ में नहीं है। इंदौर लेबर कोर्ट में मजीठिया मामले में चल रही सुनवाई के दौरान लेबर कोर्ट चार दिन  से लंबी तारीख देने को तैयार नहीं है, जिससे मालिकों के वकीलों की चेहरे को नूर उड़ा हुआ है। मंगलवार को पाउच अखबार सहित नई दुनिया की तारीख में माननीय जज साहब ने साफ कह दिया है कि मजीठिया मामले में चार दिन और अधिक से अधिक 8 दिन का समय जवाब और वकील पत्र प्रस्तुत करने के दिया जा सकता है। इससे अधिक समय नहीं दिया जा सकता है। प्रेस मालिकों के वकीलों को माननीय जज साहब ने समझाइश देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन आपके पक्षकार द्वारा सन् 2011 से अभी तक नहीं किया गया है, इससे साफ है कि वे मामले में बेवजह लेतलतीफी कर रहे हैं। मुझे 6 माह के निर्देश मिले हैं उसका पालन मुझे कराना है। आप तो अपने पक्षकार से लिखित में यह लेकर आए कि उन्हें मजीठिया का बकाया वेतन देना या नहीं। इस पर वकीलों ने अपना पक्ष रखते हुए समय मांगा, लेकिन जज साहब के सामने उनकी एक न चली।
मजीठिया मामले में जिस तरह से कोर्ट में कार्रवाई चल रही है, उससे साफ हो गया है कि चार माह में मजीठिया मामले में सार्थक परिणाम आने लगेंगे और कई पत्रकार और प्रेस कर्मचारियों को अपनी मेहनत का बकाया पैसा मिलने लगेगा।


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Wednesday 10 January 2018

मजीठिया: दैनिक भास्कर के खिलाफ एक और आरसी जारी

मुंबई से खबर आ रही है कि यहां दैनिक भास्कर की प्रबंधन कंपनी डी. बी. कॉर्प लि. में कार्यरत सिस्टम इंजीनियर अस्बर्ट गोंजाल्विस के भी पक्ष में जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड मामले में 26 लाख 38 हजार 203 रुपए 98 पैसे का रिकवरी सर्टीफिकेट (आरसी) जारी किया गया है। इस आरसी को मुंबई (उपनगर) के कलेक्टर को भेज कर आदेश दिया गया है कि वह आवेदक के पक्ष में कंपनी से भू-राजस्व की भांति वसूली करें और आवेदक अस्बर्ट गोंजाल्विस को यह धनराशि प्रदान कराएं। आपको बता दें कि इस मामले में अस्बर्ट गोंजाल्विस ने अपने एडवोकेट एस. पी. पांडे के जरिए मुंबई उच्च न्यायालय में कैविएट भी लगवा दी है।

डी. बी. कॉर्प लि. के मुंबई स्थित बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स वाले कार्यालय में कार्यरत सिस्टम इंजीनियर अस्बर्ट गोंजाल्विस का कंपनी ने अन्यत्र ट्रांसफर कर दिया था। इसके बाद अस्बर्ट गोंजाल्विस ने अदालत की शरण ली और उधर जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार, अपने बकाये की रकम और वेतन-वृद्धि के लिए उन्होंने माननीय सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट उमेश शर्मा के दिशा-निर्देश पर चलते हुए मुंबई के कामगार विभाग में क्लेम भी लगा दिया था। करीब एक साल तक चली सुनवाई के बाद लेबर विभाग ने अस्बर्ट गोंजाल्विस के पक्ष को सही पाया तथा कंपनी को नोटिस जारी कर साफ कहा कि वह आवेदक को उसका बकाया 26 लाख 38 हजार 203 रुपए 98 पैसे जमा कराए, परंतु दुनिया के चौथे सबसे बड़े अखबार होने के घमंड में चूर दैनिक भास्कर की प्रबंधन कंपनी डी. बी. कॉर्प लि. ने जब यह पैसा नहीं जमा किया तो सहायक कामगार आयुक्त वी. आर. जाधव ने अस्बर्ट गोंजाल्विस के पक्ष में आरसी जारी कर दी और कलेक्टर को आदेश दिया कि वह डी. बी. कॉर्प लि. से भू-राजस्व नियम के तहत उक्त राशि की वसूली करके अस्बर्ट गोंजाल्विस को दिलाएं।

गौरतलब है कि इसके पहले डी. बी. कॉर्प लि. के समाचार-पत्र दैनिक भास्कर के प्रिंसिपल करेस्पॉन्डेंट धर्मेन्द्र प्रताप सिंह के साथ रिसेप्शनिस्ट लतिका चव्हाण और आलिया शेख के पक्ष में भी कामगार विभाग ने आरसी जारी की थी... यह संपूर्ण महाराष्ट्र राज्य में जारी हुई पहली आरसी थी, मगर आरसी का विरोध करने के लिए संबंधित कंपनी जब मुंबई उच्च न्यायालय गई तो माननीय उच्च न्यायालय ने डी. बी. कॉर्प लि. को निर्देश दिया कि वह तीनोें आवेदकों के बकाये रकम में से सर्वप्रथम 50 प्रतिशत रकम कोर्ट में जमा करे। मुंबई उच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद डी. बी. कॉर्प लि. सर्वोच्च न्यायालय चली गई, जहां सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कह दिया कि मुंंबई उच्च न्यायालय के इस आदेश पर उसे दखल देने की आवश्यकता नहीं है, अत: डी. बी. कॉर्प लि. के अनुरोध को खारिज किया जाता है। ऐसे में इस कंपनी के पास और कोई विकल्प नहीं बचा था, लिहाजा डी. बी. कॉर्प लि. पुन: मुंबई उच्च न्यायालय आई और धर्मेन्द्र प्रताप सिंह, लतिका चव्हाण और आलिया शेख के बकाये में से 50 फीसदी की राशि वहां जमा करा दिया। सो, माना जा रहा है कि अस्बर्ट गोंजाल्विस के मामले में भी अब डी. बी. कॉर्प लि. को जल्दी ही उनके बकाये की 50 प्रतिशत रकम मुंबई उच्च न्यायालय में जमा करानी होगी।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्सपर्ट
9322411335


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SC ने दी मीडिया को खुली छूट देेने की सलाह, कहा- लोकतंत्र में बर्दाश्त करना सीखें

नई दिल्ली, 9 जनवरी, 2018। सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया को खुली छूट देते हुए कहा कि किसी गलत रिपोर्टिग के लिए प्रेस को मानहानि के मामलों में नहीं घसीटना चाहिए। अभिव्यक्ति की आजादी और मीडिया के भाव को पूर्ण अनुमति होनी चाहिए। साथ ही दलील दी कि लोकतंत्र में बर्दाश्त करना सीखना चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पटना हाईकोर्ट के एक पत्रकार और मीडिया हाउस के मानहानि के मामले को खारिज करके खिलाफ अपील को खारिज कर दिया।

जस्टिस एएम खानविल्कर और डीवाई चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने कहा कि लोकतंत्र में आप को (याचिकाकर्ता) सहन करना सीखना चाहिए। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि किसी घोटाले के आरोप की रिपोर्टिंग में थोड़ी गलती या उत्सुकता दिखाई जा सकती है। लेकिन हमें अभिव्यक्ति की आजादी देनी चाहिए। प्रेस को अपनी भावना व्यक्ति करने का पूरा मौका मिलना चाहिए। कुछ गलत रिपोर्टिग की गुंजाइश रहती है लेकिन इसके लिए उन्हें मानहानि के मामलों में नहीं घसीटना चाहिए।

अपने पूर्ववर्ती फैसले को उचित ठहराते हुए मानहानि के मामले पीनल लॉ के लिए वैध हैं। इसके प्रावधान संवैधानिक हैं। लेकिन किसी घोटाले के बारे में कोई गलत रिपोर्ट मानहानि का मामला नहीं बनता है।

गौरतलब है कि पटना हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका में बिहार की पूर्व महिला विधायक रहमत फातिमा अमानुल्लाह ने कहा था कि उनके पिता वरिष्ठ ब्यूरोक्रेट अफजल अमानुल्लाह और मां परवीन बिहार सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। लेकिन हिंदी न्यूज चैनल आईबीएनकी गलत खबर से पूरे परिवार की बदनामी हुई है। अवमानना का मामला अप्रैल 2010 में बिहिया इंडस्ट्रियल एरिया में जमीन आवंटन में कथित धांधली की खबर से जुड़ा है। याचिका के मुताबिक हिंदी न्यूज चैनल ने उनके और परिवार खिलाफ अपमानित करने वाली टिप्पणियां की थीं। इसलिए याचिकाकर्ता ने सरदेसाईचैनल व इससे जुड़े अन्य पत्रकार को आरोपी बनाया थालेकिन पटना हाईकोर्ट ने अवमानना का मामला खारिज कर दिया था तो इस महिला नेता ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई।  

(साभार: pti/एजेंसियां)