Friday 26 February 2021

आरटीआई से हुआ खुलासा,महाराष्ट्र में अखबार मालिक और निजी कंपनियां कोविड 19 के नाम पर कर रहीं हैं कर्मचारियों का दोहन

कामगार आयुक्त कार्यालय ने नहीं दिया है वेतन कटौती और 50 प्रतिशत  कर्मचारियों  से काम लेने का आदेश



महाराष्ट्र में  पिछले एक साल से कोविड 19 और लॉक डाउन की गाइडलाइन के नाम पर अधिकांश अखबार मालिक और निजी कंपनियां तथा फैक्ट्री संचालक अपने -अपने कर्मचारियों का वेतन कटौती कर रहै हैं और कर्मचारियों को 15 दिन ही काम पर बुलाया जा रहा है।अधिकांश जगह कर्मचारियों को पिछले एक साल से ना के बराबर वेतन दिया जा रहा है या 15 दिन का वेतन दिया जा रहा है।अधिकांश अखबारों में मीडियाकर्मी परेशान हैं ।इस बारे में अखबार मालिक,फैक्ट्री संचालक या निजी संस्थान मालिकों से जब भी कोई वर्कर कुछ पूछने जाता है तो वे कहते हैं उनके पास सरकार का  आदेश है कि लॉक डाउन के दौरान सिर्फ 50 प्रतिशत कर्मचारियों से ही काम लेना है और उन कर्मचारियों को जितने  दिन वे काम करेंगे उतने दिन का ही वेतन उनको देना है ऐसा सरकारी आदेश है।  मगर प्रबंधन द्वारा आदेश की कॉपी किसी कर्मचारी को दिखाई नहीं जाती है।  महाराष्ट्र में निजी संस्थानों  और अखबारों के अधिकांश कर्मचारियों के हो रहे आर्थिक शोषण पर मुम्बई के पत्रकार और आरटीआई एक्सपर्ट शशिकान्त सिंह ने महाराष्ट्र के कामगार आयुक्त कार्यालय (बांद्रा पूर्व ,मुम्बई) में एक आर टी आई लगाकर  6  जनवरी 2021 को एक जानकारी मांगी कि क्या महाराष्ट्र सरकार या केंद्र सरकार ने ऐसा कोई जीआर या आदेश  जारी किया है जिसमे निजी कंपनियों के कर्मचारियों को महीने में सिर्फ 15 दिन ही कार्य करना है और 15 दिन का वेतन ही कर्मचारियों को दिया जाएगा। अगर ऐसा कोई जीआर या आदेश हो तो उसकी प्रमाणित प्रति दें ।

आरटीआई से मांगी गई इस सूचना पर 3 फरवरी 2021 को महाराष्ट्र शासन के कामगार आयुक्त कार्यालय की राज्य जन माहिती अधिकारी तथा सरकारी कामगार अधिकारी (औ.स.),मुम्बई .श्रीमती सविता रा. धोत्रे ने  लिखित रूप से सूचना उपलब्ध कराई है कि  आपकी उक्त मांगी गई सूचना अधिकार के आवेदन के बाद इस कार्यासन में उपलब्ध अभिलेखों की पड़ताल की गई।आप द्वारा मांगी गई जानकारी से संबंधित कोई भी अभिलेख हमें नहीं मिला है। इसलिए हम आप द्वारा मांगी गई जानकारी नहीं दे रहे हैं ।हमारे पास ऐसा कोई अभिलेख नहीं है। 


श्रीमती धोत्रे ने  इस सूचना के बाद 12 फरवरी 2021 को  शशिकान्त सिंह द्वारा लगाई गई एक अन्य आरटीआई के जवाब में जानकारी उपलब्ध कराई है कि आप द्वारा लॉक डाउन की अवधि में निजी संस्थानों में कर्मचारियों की 50 प्रतिशत उपस्थिति के बारे में शासन के निर्णय की प्रति देने का निवेदन किया गया है इस बारे में यह कहना है कि लॉक डाउन में केंद्र सरकार के गृह विभाग के माध्यम से लॉक डाउन के संबंध में अलग अलग आदेश निर्गमित किए गए हैं ।इस आदेश के आधार पर मुख्य सचिव उन -उन राज्यों को आदेश निर्गमित करते हैं। उसके बाद संबंधित जिलाधिकारी आपत्ति व्यवस्थापन कानून 2005 के तहत आदेश निर्गमित करते हैं। कामगार विभाग के माध्यम से कोविड 19 प्रादुर्भाव काल मे कारखानों के कामगारों की 50 प्रतिशत उपस्थिति बावत कोई भी शासन निर्णय/आदेश निर्गमित नहीं किया गया है। महाराष्ट्र शासन के कामगार आयुक्त कार्यालय की राज्य जन माहिती अधिकारी तथा सरकारी कामगार अधिकारी (औ.स.),मुम्बई .श्रीमती सविता रा. धोत्रे ने  यह दूसरी सूचना लिखित रूप से 23 फरवरी 2021 को उपलब्ध कराई है।




शशिकान्त सिंह

पत्रकार और आरटीआई एक्सपर्ट 


9322411335

Thursday 25 February 2021

मजीठियाः 20जे व तकनीकी मुद्दों पर क्रांतिकारियों की सुप्रीम जीत, देशभर की अदालतों में होगा मान्य, डाउनलोड करें सभी आर्डर


अन्य के लिए रास्ता हुआ साफ

लेबर कोर्ट और हाईकोर्ट में अब प्रबंधन के पास नहीं बची कोई काट

अब 20-जे मान्य नहीं

जयपुर। मजीठिया लड़ाकों ने 20-जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जीत हासिल कर ली है। राजस्थान पत्रिका प्रा लि की कर्मचारी जूही गुप्ता के मामले में पत्रिका को मुंह की खानी पड़ी है। अब उस 20-जे की डिक्लरेशन/अंडरटेकिंग का कोई महत्व नहीं बचा है, जिसके आधार पर मीडिया संस्थान पत्रकारों का हक दाबे बैठे थे।


वर्ष 2017 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश से यह तय हो गया था कि 20जे या विवादित मुद्दों को लेकर पत्रकारों को एक बार फिर लेबर कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक का सफर तय करना पड़ेगा। इसके बाद भी कर्मचारियों ने हिम्मत नहीं छोड़ी। विभिन्न प्रदेशों के पत्रकार साथियों ने आपसी सामंजस्य के साथ फिर से लड़ाई शुरू की और सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट तक का रास्ता तय कर लिया। ग्वालियर के हमारे वरिष्ठ साथी जितेंद्र जाट की सक्रियता और अथक प्रयास से जूही गुप्ता के मामले को सुप्रीम कोर्ट तक हरी झंडी मिल गई है। उनके मजीठिया के हिसाब से छह लाख रुपये बनते थे जो अब पत्रिका प्रबंधन को देने पड़ेंगे।


मजीठिया की लड़ाई कर रहे देशभर के अन्य पत्रकारों के लिए भी यह हर्ष और उत्साह की बात है क्योंकि अब जूही गुप्ता के मामले में दिए गए आदेश उनके मामलों में भी नजीर की तरह काम करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने जूही गुप्ता के मामले में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा दिए गए आदेश को सही मानते हुए उसमें दखल से इंकार कर दिया और संस्थान की विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी है।


मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 19 जून 2017 को जारी आदेश की व्याख्या करते हुए 20जे के आधार पर कम वेतन को गलत माना था। आदेश में लिखा था- सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि मजीठिया वेजबोर्ड की अनुशंसा के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना 11- 11-2011 में बताए गए वेतनमान से कम किसी भी रूप में नहीं दिया जा सकता। 20जे को भी इसी आलोक में देखा जाना चाहिए।



SC order

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की जबलपुर खंडपीठ ने सुनवाई के बाद माना कि उच्चतम न्यायालय द्वारा अभिषेक राजा के मामले में दिए गए निर्णय के पैरा 26 को पढ़ने के बाद शंका की कोई गुंजाइश ही नहीं है। वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 2(ई), धारा 12 और धारा 16 को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से तय किया है कि धारा 12 के तहत जारी आदेश में बताए गए वेतनमान से कम वेतनमान नहीं दिया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी तय किया था कि 20-जे को इसी के आलोक में पढ़ना चाहिए।


मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में आगे जाकर फिर दोहराया है कि संस्थान ने सिर्फ क्लोज 20जे के आधार पर आपत्ति की थी, और हमारे मत में 20 जे के आधार पर कम वेतन नहीं दिया जा सकता। ऐसे में संस्थान की यह आपत्ति, कानून की नजर में कोई आपत्ति नहीं है।


मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की जबलपुर पीठ में वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक अर्जरिया और नवनिधि पढरया ने जोरदार ढंग से कर्मचारियों की पैरवी की। ग्वालियर में अधिवक्ता जे एस सेंगर कर्मचारियों की पैरवी कर रहे हैं।


मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 18 जुलाई 2019 को पत्रिका की याचिका खारिज की थी। इसी आदेश में कोर्ट ने 20-जे की हवा निकाली थी। आदेश का प्रभाव सभी संस्थानों पर पड़ने वाला था, इसलिए इस आदेश के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका दायर की गई। दिल्ली से बड़े-बड़े वकील बुलाए गए लेकिन दाल नहीं गली और पुनरीक्षण याचिका भी 18 दिसंबर 2020 को खारिज हो गई। इसके खिलाफ पत्रिका सुप्रीम कोर्ट गई, जहां भी उसकी विशेष अनुमति याचिका खारिज हो गई।


व्यापक है असर

जूही गुप्ता केस मामले में उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के आदेशों का असर अब सभी मामलों पर होगा। लेबर कोर्ट और उच्च न्यायालयों को अब 20-जे को लेकर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की खंडपीठ के आदेश दिनांक 18 जुलाई 2020 की व्याख्या को स्वीकार करना पड़ेगा। 


मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश यहां से डाउनलोड करें-

मजीठियाः 20जे और तकनीकी बिंदुओं पर इन आदेशों को रखे संभालकर, दें अपने वकील को

http://patrakarkiawaaz.blogspot.com/2021/02/20.html





Wednesday 10 February 2021

मजीठियाः 20जे और तकनीकी बिंदुओं पर इन आदेशों को रखे संभालकर, दें अपने वकील को



उप श्रमायुक्त से लेकर लेबर कोर्ट या अन्य अदालतों में  मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे कई साथियों के सामने 20जे जैसा महत्वपूर्ण मुद्दा भी है। इन साथियों को 20जे को लेकर चिंतित होने की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट पहले ही 19 जून 2017 को अपने फैसले में इसे स्पष्ट कर चुका है। अब पटना  और मध्यप्रदेश के उच्च न्यायालयों ने भी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की व्याख्या कर दी है। जोकि 20जे मामले में श्रम कार्यालयों से लेकर अदालतों में काफी महत्वपूर्ण साबित होगी। 

मध्यप्रदेश में उच्च न्यायालय की दो सदस्यीय खंडपीठ के फैसले के खिलाफ कंपनी रिव्यू में गई थी, जहां पर उसकी रिव्यू याचिका को खारिज कर दिया गया। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने रिकवरी के आवेदन और तकनीकी बिंदुओं पर कर्मियों के पक्ष में भी उल्लेखनीय फैसला दिया है। इसलिए सभी साथी इन आदेशों को संभाल कर रखे लें और अपने वकीलों को भी उपलब्ध करवा दें।


पटना उच्च न्यायालय का आदेश डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्न path का प्रयोग करें

https://drive.google.com/file/d/1GxpcJT0ukXMXwKog-_378GEcAVDbkgcA/view?usp=sharing


मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय का आदेश डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्न path का प्रयोग करें

https://drive.google.com/file/d/13jgwNIyUEYYtM3wSgPNenCsgNFlKk2Uv/view?usp=sharing


रिव्यू याचिका पर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय का आदेश डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्न path का प्रयोग करें

https://drive.google.com/file/d/1vdUafo2KdjteBrktNUkpBDY9JGwr2Bs9/view?usp=sharing


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अति महत्वपूर्ण फैसलाः निर्धारित वेतनमान से कम वेतन लेने का घोषणा पत्र मान्य नहीं, डाउनलोड करें पूरा आदेश



Thursday 4 February 2021

मजीठिया केस में पत्रिका प्रबंधन को देना होगा 35 लाख रुपये!



एक सप्‍ताह के भीतर भुगतान कर श्रम विभाग जगदलपुर को सूचित करने को भी कहा गया


मजीठिया के लिए लड़ार्इ लड़ रहे कर्मचारियों के लिए एक खुशी की खबर छत्तीसगढ़ के जगदलपुर (बस्‍तर) से आई है जहां पिछले 90 दिनों लगातार चल रहे प्रकरण में श्रम पदाधिकारी ने आवेदक की मांग को उचित मानकर पत्रिका प्रबंधन को मजीठिया के अनुसार बकाया राशि को एक सप्ताह के भीतर आवेदक को भुगतान कर इस कार्यालय को सूचित करने का आदेश जारी कर दिया। पूर्ण जीत न सही लेकिन मजीठीया क्रांतिकारियों ने इसे एक बड़ी जीत माना है।

कोरोना काल में राजस्थान पत्रिका ने कर्मचारियों निकाल दिया, मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ भी नहीं दिया। पत्रिका प्रबंधन में कार्यरत पूनम चंद बनपेला ने अकारण सेवा से बर्खास्तगी और मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार वेतन न देने को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय में शिकायत की थी। इसके फलस्वरूप प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश पर सुनवाई जगदलपुर श्रम पदाधिकारी कार्यालय में हुई। 3 माह में कुल 11 पेशियों के बाद फैसला आया है।

पत्रिका प्रबंधन को कहा गया है कि पूनम चंद बनपेला के आवेदन के अनुसार लगभग 35 लाख रुपए बकाया का भुगतान उन्हें किया जाए। साथ ही रकम को एक सप्ताह के भीतर भुगतान कर इस कार्यालय को सूचित किया जाए।

अब तक की पेशियों में पत्रिका प्रबंधन की तरफ से कभी प्रबंधन ही अनुपस्थित रहता है तो कभी उपस्थित अधिकारी निर्णय लेने में सक्षम नहीं होता है। इन हरकतों से ये साफ ज़ाहिर होता है कि पत्रिका प्रबंधन न्यायालयीन प्रक्रिया को हल्के में ले रहा है। पत्रिका के इस रवैये को देखते हुए श्रम पदाधिकारी ने पत्रिका के डायरेक्टर को भी समन जारी किया था लेकिन हमेशा की तरह पत्रिका प्रबंधन के सक्षम अधिकारी उपस्थित ही नहीं हुए। अंतिम पेशी 28 जनवरी को हुई जिसमें पत्रिका प्रबंधन की तरफ से शब्द कुमार सोलंकी और फोर्ट फोलिएज की तरफ से विनोद प्रधान उपस्थित हुए।

वैसे तो शब्द कुमार ने स्वयं को जगदलपुर का शाखा प्रबन्धक और जगदलपुर का यूनिट हेड बताया और खुद के पद को लेकर भी वो असमंजस मे थे लेकिन साथ ही ये भी कहा कि वो किसी भी तरह के निर्णय लेने में सक्षम नहीं हैं। तो सवाल ये उठता है कि क्या पत्रिका प्रबंधन ने जो अधिकारी नियुक्त किए हैं उन्हें निर्णय लेने से संबन्धित कोई अधिकार ही नहीं दिया गया है या फिर कोई भी पत्रिका का कर्मचारी मुंह उठा कर पेशियों मे चला आता है और खुद को अधिकारी बताने लगता है। जब उसे किसी तरह का अधिकार ही प्राप्त नहीं है तो वो अधिकारी कैसे हुआ।


फोर्ट फोलिएज के कर्मचारी को अपना पदनाम भी नहीं पता

28 जनवरी को नियत पेशी मे फोर्ट फोलिएज की तरफ से उपस्थित विनोद प्रधान को जब उसका पदनाम पूछा गया तो उसे अपना पदनाम ही नहीं पता था। उसने शब्द कुमार से पूछ कर अपना पदनाम अकाउंटेंट बताया। तो इससे ये साफ ज़ाहिर होता है की फोर्ट फोलिएज को भी पत्रिका प्रबंधन का ही आदेश मानना होता है जिस बात से पत्रिका प्रबंधन हमेशा इंकार करती है। पत्रिका प्रबंधन का कहना है कि फोर्ट फोलिएज पत्रिका के लिए मात्र एक प्लेसमेंट कंपनी है।


पत्रिका के निर्णयकर्ता नहीं आ सकते पेशी में

28 जनवरी को नियत पेशी मे उपस्थित खुद को जगदलपुर का शाखा प्रबन्धक बताने वाले शब्द कुमार को जब कहा गया कि पेशी के लिए समन तो पत्रिका के डाइरेक्टर को भेजा गया है तो वो क्यों नहीं आए? इस पर शब्द कुमार का जवाब आया कि मालिक या डाइरेक्टर नहीं आ सकते।


पत्रिका के शब्द कुमार सोलंकी पर कंटेम्प्ट का केस भी बनता, लेकिन श्रम पदाधिकारी ने माफ कर दिया

6 जनवरी 2020 को हुए पेशी मे आवेदक समय पर आकार अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता है किन्तु पत्रिका प्रबंधन के शब्द कुमार सोलंकी नियत समय से 1 घंटा लेट आकर श्रम पदाधिकारी की अनुपस्थिति मे अपनी उपस्थिति दर्ज करवा लेता है जिसकी सूचना शब्द कुमार ने श्रम पदाधिकारी को मोबाइल के माध्यम से दी। साथ ही प्रकरण के दस्तावेज़ मे टिप्पणी/टीप लिख देता है जो की नियम विरुद्ध है इस पर भी श्रम पदाधिकारी ने शब्द कुमार के खिलाफ कार्रवाई नहीं की उल्टा पहली गलती है इसीलिए छोड़ रहा हूँ कह दिया। इतने उच्च पद पर आसीन दोनों ही अधिकारियों की आपसी जुगलबंदी भी श्रम पदाधिकारी के कर्तव्यों पर सवाल खड़ी करती है।


फर्जी कंपनी फोर्ट फोलिएज मजीठिया से बचने की तरकीब

आपको बता दें की मजीठिया वेज बोर्ड की अनुसंशा के बाद जब पत्रकार और अन्य समाचार कर्मचारी को मजीठिया के अनुसार वेतन देने का आदेश जारी हुआ तो पत्रिका ने एक फोर्ट फोलिएज नाम की कंपनी का गठन कर अपने समस्त कर्मचारियों का स्थानांतरण नई कंपनी फोर्ट फोलिएज मे कर दिया और बाद मे होने वाले कर्मचारियों की भर्ती भी इसी कंपनी मे करने लगे ताकि उन पर मजीठिया वेजबोर्ड का वेतनमान लागू न हो सके। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद उच्च न्यायालय की उस टिप्पणी पर स्थायी मुहर लग गई जिसमे कहा गया है की पत्रिका ने मजीठिया वेजबोर्ड की अनुसंशाओं का लाभ कर्मचारियों को देने से बचने के लिए पेपर अरेंजमेंट करते हुए एक फर्जी कंपनी का गठन किया है।

आवेदक के आवेदन और पत्रिका प्रबंधन के बचाव के बहस को सुनने के बाद सभी मुद्दों को ध्यान मे रख कर श्रम पदाधिकारी जगदलपुर ने पत्रिका प्रबंधन को मजीठिया के अनुसार आवेदक पूनम चंद बनपेला को लगभग 35 लाख रुपए का भुगतान कर कार्यालय को सूचित करने का आदेश जारी किया। और जब पत्रिका प्रबंधन ने इस आदेश को मानने से इंकार कर दिया तो श्रम पदाधिकारी ने आगे की कार्यवाही के लिए श्रम न्यायालय की अनुसंशा कर प्रकरण को श्रमायुक्त छत्तीसगढ़ के समक्ष प्रेषित कर दिया।

(साभारः भड़ास)

Tuesday 2 February 2021

जागरण को एक ओर झटका, नई दुनिया में मजीठिया का श्रगणेश करने वाले हाडा भी विजयी


नई दुनिया में मजीठिया की लड़ाई का श्रीगणेश करने वाले धर्मेंद्र हाड़ा ने भी मजीठिया के केस में विजयश्री प्राप्त कर जागरण ग्रुप को एक ओर झटका दिया है।

वरिष्ठ अभिभाषक सूरज आर. वाडिया ने बताया कि नई दुनिया इंदौर के सरक्युलेशन विभाग में कार्यरत धर्मेंद्र हाडा के पक्ष में श्रम न्यायालय इंदौर के विव्दान न्यायाधीश ने 11-11-2011 से जुलाई 2016 तक का बकाया वेतन अंतर राशि 7,55,286 रुपये का अवार्ड पारित किया है। 

फैसले में माननीय न्यायालय ने अंतरिम राहत राशि 2008 से 2011 तक तक की 30 प्रतिशत राशि वसूली अधिकारी के समक्ष दस्तावेज प्रस्तुत करने पर वसूल करने के निर्देश जारी किए हैं तथा  अगस्त 2016 से आज तक की वेतन अंतर राशि भी देने के आदेश भी दिए हैं।