Monday 31 January 2022

Assam Newspaper Employees Win Majithia Battle in Gauhati High Court


New Delhi, 31 Jan. Friends, Major Victory for Assam Union of Working Journalists. We are glad to inform you that the Assam Union of Working Journalists has achieved a major victory in the Gauhati High Court in case No. WP (C) 1274/2018 titled ‘Janasadharan Printing and Publishers (P) Ltd and Anr versus Jansadharan Newspaper Employees Union’, the High Court has asked the management to deposit Rs. 25 lakhs in the office of the Labour Commissioner within a period of four weeks to be disbursed among the employees. The High Court also directed Respondent No 1 i.e., State Government represented through the Labour Commissioner to make reference within 15 days from the date of passing of the instant order to Labour Court, which will dispose of the case (with regard to the amount) within four months. 

The role and cooperation of the Jansadharan Newspaper Employees Union leader Mrinal Kanti Misra, AUWJ leaders- Keshab Kalita and Tutomani Phukan and Advocate S Borthakur need to be specially mentioned in achieving this laudable victory. The IFWJ Secretary-General Parmanand Pandey had also discussed this case in detail with Advocate Borthakur at Guwahati before filing the case. IFWJ Secretary-General Parmanand Pandey also met the Labour Commissioner to ensure that the recommendations of the Majithia Wage Boards are implemented across the state.


Press Clubs Reduced to Taverns, Need to be Better Utilised

Press Clubs throughout the country have failed the journalists. They have hardly stood by the journalists in their struggles against exploitative management. As and when any support is sought from them, their office-bearers wring their hands in the air by saying that they keep away from the trade union matters. In many states, these clubs have only become gossip centres and pubs. In many states, the Press Clubs generate good incomes for some office-bearers. They are mostly housed in government buildings. This is the reason that some vested interests make all efforts to grab them.

The recent case is that of the Kashmir Press Club at Srinagar. There has been a tussle between the two rival groups to get possession of the Kashmir Press Club. So much so, the rivalry posed the law-and-order problems. Ultimately, the government had to intervene, which is an undesirable situation. Siding with one group will be unfair and that is the reason, we have requested both groups to amicably resolve the issue among themselves and keep the government away from the tussle. The government will also do well by not meddling in the inter-rivalry of journalist groups. At the same time, the Press Clubs will have to formulate a policy to come forward to help the journalists in the hours of their needs.


Sham Unions Floated by Managements

Floating fake unions to defeat the genuine demands of the workers is an old technique of management. This has been done by the management of the Times of India, Indian Express, Hindustan Times, The Hindu, Anand Bazar Patrika and many others. This time this mischief is being done by the Amar Ujala management. This was the main weapon of the late Lala Ramnath Goenka, who was adept at nurturing the fake unions and dividing the workers. It may sound strange, but it is a fact that some journalists used to be the worst fawns of Lala ji and were to do anything to betray their colleagues. Not long ago, when the case of the Majithia Wage Board was being fought in the Supreme Court, the Times of India management sprung a surprise in the court by presenting an application for the withdrawal of the case by their pocket union. IFWJ requests all its members to be on guard from these spurious unions to effectively safeguard the interest of the working class.


Need for the Corpus to Help Needy Journalists

Pandemic Covid has caused immense hardships for journalists. Many of our friends have left us to their heavenly abodes and a number of them have been rendered jobless. Many of them have been forced to live in abject penury and poverty. This was the reason in the last meeting of the IFWJ, our leaders- Hemant Tiwari,  Siddharth Kalhans, Kappara Prasad Rao suggested creating a corpus to help the needy journalists. It got instant support from our President BV Mallikarjunaih, Secretary South K Asadullah and many others. It is requested to all the State Units come forward with some concrete suggestions and cooperation to form the Corpus.

Parmanand Pandey

Secretary General: IFWJ

 

Friday 28 January 2022

भास्कर मैनेजमेंट के दलालों ने फैलाया भ्रम!

नहीं है हाईकोर्ट का समझौते के संबंध में कोई आदेश।

भास्कर के कोटा के साथियों के मजीठिया मामले के संबंध में भास्कर मैनेजमेंट के कुछ दलाल चार-पांच दिन से यह भ्रम फैला रहे हैं कि राजस्थान हाई कोर्ट ने इस मामले में दोनों पक्षों को समझौता करने का निर्देश दिया है। यह भ्रामक जानकारी इसलिए फैलाई जा रही है क्योंकि भास्कर प्रबंधन इस मामले में बुरी तरह फंस गया है। न निगलते बन रहा है और न उगलते।

मामले को यूं समझिए:—

दरअसल कोटा के लेबर कोर्ट ने 09-04-2019 को अवार्ड जारी कर भास्कर प्रबंधन को करोड़ों रुपए अपने कर्मचारियों को देने का आदेश दिया था। भास्कर प्रबंधन ने लेबर कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट में रिट दायर की और साथ में स्थगन आवेदन पत्र दायर कर लेबर कोर्ट के अवार्ड पर स्टे लगाने की प्रार्थना की। राजस्थान उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने 9 जुलाई 2020 को रिट पर नोटिस जारी करते हुए यह आदेश भी दिया कि यदि प्रबंधन 3 सप्ताह के भीतर 35% रकम कोर्ट में जमा करा देता है तो 9 अप्रैल 2019 के अवार्ड के क्रियान्वयन पर रोक रहेगी।

भास्कर प्रबंधन ने इस समयावधि के भीतर यह राशि जमा नहीं कराई और उच्च न्यायालय की एकल पीठ के आदेश के खिलाफ खंडपीठ में अपील दायर कर दी।

पैसे की ताकत पर प्रबंधन ने वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील मनु अभिषेक सिंघवी को खडा किया और उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 13 अगस्त 2020 को अपील पर नोटिस जारी करते हुए एकल पीठ के आदेश के क्रियान्वयन पर अगले आदेश तक रोक लगा दी।

बाद में सुनवाई के दौरान श्रमिकों के अधिवक्ता धर्मेंद्र जैन की ओर से यह आपत्ति की गई की अंतरिम आदेश के खिलाफ अपील मेंटेनेबल ही नहीं है। अपील को खारिज किया जाए।

आगामी पेशियों पर भी प्रबंधन के वकील किसी न किसी बहाने से तारीखें बढवाते रहे लेकिन प्रबंधन को दिखने लगा कि अब इसे ज्यादा नहीं खींचा जा सकेगा।

24 जनवरी 2022 को सुनवाई के दौरान समझौते का पैंतरा फेंका गया। खण्डपीठ ने श्रमिकों के अधिवक्ता से पूछा तो हमारे अधिवक्ता ने साफ कह दिया कि अदालत को ऐसा लगता है तो वह आदेश जारी कर दे।

अदालत ने आगामी सुनवाई 14 फरवरी 2022 को नियत की है। समझौते सम्बंधी कोई आदेश नहीं दिया। लेकिन भास्कर के दलाल यह अफवाह फैला रहे हैं कि अदालत ने समझौते के आदेश दिए हैं। मामला लम्बा खिंचने से प्रबंधन को लग रहा है कि कर्मचारी मायूस हैं और इस अफवाह के प्रभाव में आकर उससे कम पैसे पर समझौता कर लेंगे। प्रबंधन ऐसा नहीं कर पाया तो खण्डपीठ इस अपील का निस्तारण करेगी जो प्रबंधन के खिलाफ ही होगा क्योंकि अंतरिम आदेश के खिलाफ अपील मेंटेनेबल ही नहीं होती। दो—तीन सुनवाई में ऐसा हो गया तो भास्कर के पास लेबर कोर्ट के आदेश को मानने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा क्योंकि अपील के निस्तारण के बाद लेबर कोर्ट के अवार्ड पर स्टे भी नहीं रहेगा।

Thursday 27 January 2022

मजीठिया: सुप्रीम कोर्ट की सीधी-सीधी अवमानना पर उतरा अमर उजाला



मजीठिया वेजबोर्ड को खारिज कर पॉकेट यूनियन की मिलीभगत से तैयार किया अपना वेजबोर्ड 

साथियों, जो अमर उजाला कभी अपने कर्मचारियों को उनका हक देने में अव्‍वल माना जाता था, आज वो ही संस्‍थान कर्मचारियों के साथ धोखाधड़ी की सारी हदें पार करने को उतारू है। मजीठिया वेजबोर्ड के तहत वेतनमान मांगने वाले कर्मचारियों को तबादलों और अन्‍य तरह से प्रताड़ित करने के बावजूद भी इस संस्‍थान को मजीठिया वेजबोर्ड से बचने का कोई उपाय ना मिला तो इसने अपनी पॉकेट यूनियन के साथ मिलकर एक नया कांड कर डाला है। अमर उजाला प्रबंधन ने मजीठिया वेजबोर्ड के नाम पर अपनी पॉकेट यूनियन के साथ मिल बैठ कर एक अवैध समझौता तैयार करवाया है। इस फर्जी समझौते की करीब सौ पन्‍नों की बुकलेट बनाकर श्रम अधिकारियों के समक्ष पेश किया जा रहा है और न्‍यायालयों में भी पेश करने की तैयारी है, जो कि सीधे-सीधे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना है। 

अमर उजाला और इस तथाकथित पॉकेट यूनियन के बीच 22.11.2021 को हुए इस तथाकथित समझौते को 1 अप्रैल 2021 से लागू होने का दावा किया जा रहा है। यानि जो वेतनमान 11.11.2011 को दिया जाना था, उसे इस तथाकथित समझौते के तहत करीब दस साल बाद देने का झूठा दावा किया जा रहा है। हैरानी की बात है कि इस संस्‍थान के प्रबंधकों ने 11.11.2011 को भारत सरकार द्वारा अधिसूचित और माननीय सुप्रीम कोर्ट के 07.02.2014 के फैसले के तहत संवैधानिक घोषित किए गए जस्टिस मजीठिया के वेजबोर्ड की सिफारिशों को सिरे से खारिज करते हुए अपना ही कोई प्रबंधक जनीत वेजबोर्ड बना कर करीब 100 पेज की इस बुकलेट के जरिये पेश किया है, मानो अब अमर उजाला प्रबंधन को संसद और माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को दरकिनार करने की शक्‍तियां हासिल हो गई हों। ऐसा शायद इस्‍ट इंडिया कंपनी के राज में भी नहीं हुआ होगा, जो अमर उजाला प्रबंधन ने कर दिखाया है। लेकिन सच हमेशा जिंदा रहा है और यही सच है।

इस समझौते में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की सरेआम धज्जियां उड़ा दी गई हैं। हालांकि यह भी तय है कि यह समझौता किसी भी अदालत में टिक नहीं पाएगा, मगर इस नीचता के पीछे एक पूंजीवादी सोच रखने वाले मालिक और जी हजूरी करने वाले चापलूस प्रबंधकों की देश के कानून और कैबिनेट के फैसले को ना मानने की हठधर्मिता साफ झलक रही है। साथ ही पैसे और ताकत के दम पर कर्मचारियों के हकों को पैरों तले रौंदने की व्‍यवस्‍था साफ दिखाई दे रही है। अपने लिए इस समझौते में लाखों का वेतन तय करने वाले मैनेजर व मोटी रकम पर पलने वाले सलाहकार शायद यह बात भूल बैठे हैं कि इस देश में संविधान और कानून का राज चलता है। देश की अदालतों में भले ही देर है, मगर अंधेर कतई नहीं है और मजीठिया वेतनमान को लेकर अब तक कई अदालतों के फैसले इस ओर इशारा कर रहे हैं कि प्रबंधन भले ही जितने चाहे ओछे हथकंडे अपना ले कर्मचारियों के संशोधित वेतनमान और बकाया एरियर को किसी भी कीमत पर दबाया नहीं जा सकता।

वैसे यह भी गौर करने वाली बात है कि यह समझौता सुप्रीम कोर्ट के 7 फरवरी 2014 और 19 जून 2017 के आदेशों के आगे कहीं भी टिक नहीं सकता। फिर भी अमर उजाला उसे यह दर्शाते हुए लागू करने की बात कर रहा है कि यह समझौता मजीठिया वेजबोर्ड से बेहतर वेतन कर्मचारियों को देगा। जोकि सरासर झूठ और मक्‍कारी के अलावा कुछ और नहीं है। इस समझौते को वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 16 और मजीठिया वेजबोर्ड के क्लॉज 20जे की परिधि में रखा गया है, जबकि सभी को मालूम है कि यह विकल्प 11 से 30 नवंबर 2011 के बीच(नोटिफिकेशन के तीन सप्‍ताह के अंदर) लिया जा सकता था और वो भी उन्हीं कर्मियों पर लागू होता जो वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 16 के अनुसार मजीठिया वेतनमान से अधिक वेतन पा रहे होते। माननीय सुप्रीम कोर्ट की 19 जून, 2017 की जजमेंट में यह बात साफ कर दी गई है कि कोई भी अंडरटेकिंग या समझौता जो मजीठिया वेजबोर्ड के तहत तय वेतनमान और भत्‍तों से कम पर किया गया है, वो वैध नहीं माना जाएगा। 

इतना ही नहीं 24 अक्टूबर 2008 की अधिसूचना के अनुसार 30 प्रतिशत अंतरिम दर से भुगतान भी कर्मचारियों के संशोधित वेतनमान में शामिल है और अब तो कोर्ट और केंद्र सरकार के ताजा फैसले के तहत मनीसाना वेजबोर्ड को भी रिनोटिफाई कर दिया गया है। लिहाजा पुराने कर्मचारियों के लिए मजीठिया वेजबोर्ड के तहत जो नया वेतनमान बनेगा, उसमें मनीसाना वेजबोर्ड के तहत बेसिक, डीए और 30 फीसदी अंतरिम राहत को जोड़ना ही होगा। ऐसे में अमर उजाला प्रबंधन की यह करतूत भेले ही उन कर्मचारियों को खुंटे से बांध सकती है, जो मजबूरी में परिवार का पेट पालने को कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की हिम्‍मत नहीं रखते, मगर यह बात भी प्रबंधन और उसके तथाकथित सलाहकारों को पता होगी कि भले ही कर्मचारी आज अपना मुंह नहीं खोल रहे, मगर वे कभी भी अपना हक रिकवरी के जरिये कोर्ट में जाकर हासिल कर सकते हैं और उन्हें कानूनी हक को लेने से कोई भी ताकत या नियम नहीं रोक सकता।  

कहां-कहां कर रहा है अमर उजाला सुप्रीम कोर्ट की अवमानना

नए वेतनमान का गठन: 

अमर उजाला ने इस चालबाजी में अपना ही वेतनमान बना कर पेश किया है। देखने में इनमें बेसिक पे ज्यादा नजर आ रही है, परंतु असल में ऐसा करके वेतन को बढ़ नहीं रहा बल्कि कम हो रहा है, क्योंकि इसमें मजीठिया वेजबोर्ड के फार्मूले के तहत वेरिबल-पे और डीए शामिल नहीं है। वहीं 11 नवंबर, 2011 से पहले के कार्यरत कर्मचारियों के पुनरीक्षित वेतनमान में प्रारंभिक वेतन का निर्धारण कैसे किया गया है, इसका अता पता तक नहीं है। कुल मिलाकर मजीठिया वेजबोर्ड से बचने के लिए यह सारा खेल खेला गया है। वर्तमान में जो वेतनमान अमर उजाला ने 01 अप्रैल 2021 से बनाकर दिखाया है, उससे अधिक तो 11 नवंबर, 2011 को ही बनता है और बीच के दस वर्षों में डीए व बेसिक में बढ़ौतरी के चलते 01 अप्रैल, 2021 को तो यह दोगुने के करीब होना चाहिए था। वहीं इस फर्जी समझौते के तहत जो वेतनमान बनाया है उसमें भी मेरठ में बैठे मैनेजरों के लिए स्‍पैशल मेहनत करके मोटी तनख्‍वाह का प्रबंधन किया गया है। इस फर्जीवाड़े के जरिए मजीठिया वेजबोर्ड के तहत गठित वेतनमान और वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट, 1955 के प्रावधानों के तहत मिलने वाले वैधानिक वेतन लाभों को एक तरह से समाप्‍त करने की चाल चली गई है।  

उदाहरण स्वरूप हम नोएडा यूनिट के एक कार्यरत साथी के वेतनमान से आपको सबकुछ स्पष्ट कर रहे हैं। ये डाटा हमने इस तथाकथित समझौते से लिया है। हमें उस साथी के नाम से कोई मतलब नहीं है। हम केवल उसके वेतन के आंकड़ों को केवल समझाने के उद्देश्य से ले रहे हैं। 

उस साथी की 1 दिसंबर 2010 की ज्वाइनिंग नोएडा में सब एडिटर के पद पर हुई थी। उसका पे स्केल 11 नवंबर 2011 को 1300- ARI (3%) &23500 वाले स्लैब में आता है। कंपनी ने अप्रैल 2021 में उसकी फिटमेंट और प्रमोशन अपने बनाए तथाकथित बेजबोर्ड के अनुसार करके उसे 20500-1050-31000 के पे स्केल में डाल दिया। जिसकी 1 अप्रैल 2021 ग्रोस सैलरी 41500 रुपये बन रही है। जबकि 11 नवंबर 2011 को इसी पद पर भर्ती किसी भी नए कर्मचारी का ग्रोस वेतन जनवरी 2014 में ही इसे पार कर जाएगा यानि 41434 हो जाएगी। हमने यहां 1 दिसंबर 2010 को भर्ती उस कर्मचारी की फिटमेंट व प्रमोशन के आधार पर आपको उसका वेतन इसलिए नहीं दर्शाया, क्योंकि हमें उसका पुराना वेतन नहीं पता है। इसलिए हमने 11 नवंबर 2011 को हुई नई भर्ती का उदाहरण दिया है, जिससे आपको स्पष्ट हो जाए कि नए वाले को इतना वेतन मिलेगा तो पुराने कर्मचारियों का मजीठिया वेजबोर्ड के पैरा नंबर 20 के अनुसार फिटमेंट-प्रमोशन के बाद वेतन कहां जाएगा, ये अंदाजा हो जाएगा। यहां पुराने कर्मियों को पैरा 20 के अनुसार वे भत्ते यहां अन्य लाभ भी मिलते रहेंगे 11 नवंबर 2011 से पहले उन्हें मिल रहे थे। इनमें टेलीफोन बिल, समाचार का बिल, शिक्षा भत्ता आदि अन्य लाभ शामिल हैं।

उदाहरण- जनवरी 2014

बेसिक- 14560 

वेरियवल पे- 5096 

डीए- 7671 

मकान भत्ता- 5897 

परिवहन भत्ता- 3931 

मेडिकल- 1000

कुल- 38155 

पीएफ कंपनी- 3279 

ग्रोस सैलरी- 41434


अब ये अप्रैल 2021 में मजीठिया के अनुसार बढ़ते-बढ़ते इतनी हो जाएगी-

बेसिक- 19926

वेरियवल पे- 6974

डीए- 27062 

मकान भत्ता- 8070 

परिवहन भत्ता- 5380 

मेडिकल- 1000 

कुल- 68412 

पीएफ कंपनी- 6475 

ग्रोस सैलरी-74887


वहीं, 1 अप्रैल 2021 को इसी पद पर भर्ती नए कर्मचारी को भी मजीठिया के अनुसार उससे ज्यादा वेतन मिलेगा। 

बेसिक- 15000 

वेरियवल पे- 5250

डीए- 20371

मकान भत्ता- 6075 

परिवहन भत्ता- 4050

मेडिकल- 1000

कुल- 51746

पीएफ कंपनी- 4875

ग्रोस सैलरी-56621

उपरोक्त उदाहरण से आप समझ सकते हैं कि अमर उजाला कैसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना कर रहा है। इसके साथ ही वह तथाकथित नए वेतनमान से कर्मचारियों के वेतन ही नहीं पीएफ, पेंशन, ग्रेच्युटी आदि पर भी मोटा डाका डाल रहा है। 


संस्‍थान की श्रेणी का निर्धारण: 

अमर उजाला ने संस्‍थान का श्रेणी का निर्धारण भी अपनी सहुलियत के अनुसार फर्जी तरीके से किया है। समझौते के अनुसार लेखावर्ष 2010-11, 2011-12 व 2012-13 को आधार बनाकर संस्‍थान की श्रेणी का पुनर्निधारण करते हुए औसत सकल राजस्‍व 492.31 करोड़ रुपये बताया गया है, जो सरासर गलत है। समझौते में वर्ष 2010-11 का सकल राजस्‍व 407.46 करोड़ रुपये दिखाया गया है जो असल में वर्ष 2009-10 का सकल राजस्‍व है। वहीं वर्ष 2011-12 का 525.45 और 2012-13 का सकल राजस्‍व 544.02 करोड़ बताया गया है, जो सही है। यहां खेला वर्ष 2010-11 के सकल राजस्‍व में किया गया है, क्‍योंकि रजिस्‍ट्रार आफ कंपनिज को दी गई अमर उजाला की बैलेंसशीट के अनुसार अमर उजाला का वर्ष 2010-11 का सकल राजस्‍व 474.42 करोड़ है। इस तरह इन तीनों वर्षों का औसत सकल राजस्‍व 514.36 करोड़ रुपये बनता है, जो क्‍लास-2 में आता है। लिहाजा अमर उजाला प्रबंधन और उसकी पॉकेट यूनियन ने औसत राजस्‍व के आंकड़े में भी फर्जीवाड़ा करने का काम किया है। बहरहाल मजीठिया वेजबोर्ड का निर्धारण आरंभिक तौर पर वित्‍तीय वर्ष 2007-08, 2008-09 व 2009-10 के औसत सकल राजस्‍व के आधार पर होना है, जो 500 करोड़ रुपये से कम बनता है और अमर उजाला कंपनी क्‍लास-3 कैटेगरी में आती है। क्‍योंकि मजीठिया वेजबोर्ड की नोटिफिकेशन 11 नवंबर 2011 में हुई थी इसलिए नया वेतनमान 31 मार्च, 2013 तक पुरानी औसत के आधार पर निर्धारित संस्‍थान की श्रेणी-3 के अनुसार तय होना था। इसके बाद श्रेणी पुनर्निधारण के तहत 01 अप्रैल, 2013 से लेकर अमर उजाला समाचार स्‍थापना की श्रेणी क्‍लास-2 कैटेगरी में निर्धारित होनी थी, मगर इस समझौते में श्रेणी निर्धारण में भी खेला किया गया है। वहीं जैसा के इस समझौते में किया गया है, वैसा करने के लिए भी दूसरी बार श्रेणी का पुनर्निधारण इससे पहले के तीन वर्षों यानि 2018-19, 2019-20 और 2020-21 के औसत सकल राजस्‍व के आधार पर होना चाहिए था, तभी 01 अप्रैल, 2021 का सही श्रेणी निर्धारण माना जाता, जो संभवत: श्रेणी-1  के लिए होता।


अमर उजाला की कोई यूनिट स्‍वतंत्र या अलग नहीं: 

यहां अमर उजाला प्रबंधन की इस चाल को भी समझना होगा, जिसके तहत अमर उजाला अपनी विभिन्‍न ब्रांचों या सेंटरों को अलग यूनिट बताकर उनका श्रेणी निर्धारण गलत तरीके से करता आ रहा है। जबकि सच्‍चाई यह है कि अमर उजाला की कोई भी यूनिट स्‍वतंत्र या अलग नहीं है। हालांकि विभिन्‍न जगहों पर मौजूद प्रिटिंग एंड पब्‍लिकेशन सेंटर असल में अमर उजाला लिमिटेड की ब्रांचेज हैं, जो एक दूसरे के साथ जुड़ी हुई हैं। यह बात इस समझौते के पहले पन्‍ने से ही साबित होती है, जिसमें अमर उजाला नें अपनी इन तथाकथित यूनिटों को सेंटर ही लिखा है। ज्ञात रहे कि इन प्रिंटिंग एवं पब्‍लिशिंग सेंटरों के लिए एक ही पैन नंबर इस्‍तेमाल होता है और सबकी एक ही बैलेंसशीट बनाकर रजिस्‍ट्रार ऑफ कंपनिज में दी जाती है। इतना ही नहीं प्रबंधन में फंक्‍शनल इंटिग्रेलिटी एंड कॉमन कंट्रोल है। कर्मचारियों को एक ब्रांच/सेंटर/कार्यालय से दूसरी ब्रांच/सेंटर/कार्यालय में ट्रांस्‍फर किया जाता है, पीएफ एक ही जगह यानि आगरा(पहले बरेली) में काटा जाता है। आरएनआई में पंजीकरण के दौरान अमर उजाला लिमिटेड(पहले अमर उजाला पब्‍लिकेशंस लिमिटेड) ही समाचारपत्र के विभिन्‍न प्रकाशन केंद्रों का स्‍वामी है। ऐसे में अमर उजाला अपनी ब्रांचों (जिन्‍हें आम बोलचाल में यूनिट कहा जाता है) को स्‍वतंत्र यूनिट दिखा कर अपनी श्रेणी निर्धारण में घपला करता आ रहा है, जो किसी भी कोर्ट में नहीं टिक पाएगा। साथ ही यह श्रमजीवी पत्रकार अधिनयम, 1955 की धारा 2डी का उल्‍लंघन कर रहा है।  


कर्मचारियों की कैटेगरी का निर्धारण: 

इस तथाकथित एवं अवैध समझौते में अमर उजाला प्रबंधन ने श्रमजीवी पत्रकारों और गैर पत्रकार कर्मचारियों की श्रेणियां भी मजीठिया वेजबोर्ड के प्रावधानों को दरकिनार करके खुद से ही तय कर दी हैं और अधिकतर पदनाम प्रबंधकीय या सुपरवाइजरी कैपेसिटी में शामिल कर दिए हैं, ताकि वे कर्मचारी के परिभाषा में ना आ पाएं और कोर्ट व श्रम कार्यालयों में विवाद को उलझाया जा सके। इतना ही नहीं इस अवैध वेतनमान में कर्मचारियों का दायरा भी समिति करते हुए अपनी ही परिभाषा गढ़ी गई है, जो मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों का सीधा-सीधा उल्लंघन है। यह समझौता साफ तौर पर माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय और उच्‍च न्‍यायालयों के उन फैसलों की भी अवमानना करता है, जिनके तहत यह व्‍यवस्‍था दी गई है कि किसी भी कर्मचारी के पदनाम से यह तय नहीं किया जा सकता कि वह प्रबंधकीय या सुपरवाइजरी कैपेसिटी में आता है। इसके लिए संबंधित कर्मचारी का प्रबंधकीय या सुपरवाइजरी कैपेसिटी में काम करना अनिवार्य है। अमर उजाला प्रबंधन द्वारा पहले अधिकतर कर्मचारियों को जारी नियुक्‍ति पत्रों में उनके प्रबंधकीय या सुपरवाइजरी कैपेसिटी में तैनात करने का फर्जी पैराग्राफ डाला और अब यह नई चाल चली गई है। 


डीए का फार्मूला दरकिनार: 

मजीठिया वेजबोर्ड के पैरा 20 के अनुसार डीए की परिभाषा और तय फार्मूले को अमर उजाला ने नए सिरे से अपनी सुविधा अनुसार परिभाषित कर डाला है। ज्ञात रहे कि मजीठिया वेजबोर्ड के फार्मूले के अनुसार 11 नवंबर 2011 से डीए की गणना हर छह माह बाद की जानी है। इसके तहत हर छह माह बाद वेतनमान में खासी बढ़ौतरी होनी थी, जो ना तो अमर उजाला ने आज तक की और ना ही आगे करने वाला है। अब संस्‍थान ने इस तथाकथित एवं अवैध समझौते के तहत अपना ही फार्मूला बना डाला है और मजीठिया वेजबोर्ड के तहत देय डीए को समाप्‍त करके देश के संविधान और न्‍यायपालिका को खुली चुनौती दी है। ज्ञात हो कि मजीठिया वेजबोर्ड के तहत डीए और अन्‍य भत्‍तों का निर्धारण नई बेसिक-पे और वेरिएवल-पे को जोड़ कर होना है।  


बोनस और ग्रेच्‍युटी में भी खेल:  

इस तथाकथित एवं अवैध समझौते के जरिये अमर उजाला प्रबंधन ने ना केवल मजीठिया वेजबोर्ड को दरकिनार किया है, वहीं बोनस और ग्रेच्‍युटी के प्रावधानों को भी अपने फायदे के लिए तोड़मरोड़ कर अपना ही फार्मूला बना डाला है, ताकि कर्मचारियों को उनका वैध हक ना मिलने पाए। संस्‍थान ने बड़ी ही चतुराई से कंपनी की टर्नओवर के तहत बोनस स्‍लैब फिक्‍स कर दिए हैं, ताकी लाला जी की तिजोरी से ज्‍यादा रकम ना निकलने पाए। वहीं श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम की धारा पांच के तहत दी गई ग्रेच्‍युटी की परिभाषा ही बदल दी गई है। इसके अनुसार श्रमजीवी पत्रकार तीन साल बाद ग्रेच्‍युटी के हकदार होते हैं और प्रत्‍येक साल के लिए 15 दिन के वेतन के बराबर ग्रेच्‍युटी निर्धारित होती है, मगर यहां अमर उजाला के प्रबंधकों ने इस धारा के लागू होने से पूर्व में छह या इससे कम श्रमजीवी पत्रकारों वाली स्‍थापनाओं के लिए किए गए प्रावधान को अपने संस्‍थान पर लागू मान कर ग्रेच्‍युटी भुगतान के गलत नियम दर्शाए हैं और प्रत्‍येक वर्ष की सेवा के लिए 15 के बजाय 7 दिन के वेतन के भुगतान की झूठी बात की जा रही है। वहीं गैर पत्रकार कर्मचारियों को भी इन नियमों के दायरे में बताया गया है, जबकि उन पर श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम के विशेष प्रावधान लागू ही नहीं होते हैं। इतना ही नहीं संस्‍थान के खाते से ग्रेच्‍युटी की रकम के भुगतान से बचने के लिए कर्मचारियों के वेतन से ही ग्रेच्‍युटी पॉलिसी लेने की चाल चली गई है। 


पदोन्नति:

अमर उजाला प्रबंधन ने पदोन्नति को वेजबोर्ड के अनुसार 10 साल से घटाते हुए 7 साल में करने का ढोंग करते हुए यहां भी अपनी कुटील चाल चली है और यह शर्त जोड़ दी है कि अगर प्रबंधन चाहे तो किसी भी कर्मचारी की पदोन्नति रोक सकता है, जो कि मजीठिया वेजबोर्ड की पैरा 20 में दी गई पदोन्नति की गारंटी के अधिकार के खिलाफ है। 


सालना वेतन वृद्धि: 

उमर उजाला ने सालाना वेतन वृद्धि को भी अपने हिसाब से तय कर दिया है जो कि मजीठिया वेजबोर्ड के पे-स्‍केल के अनुसार दिए गए सालाना वेतनवृद्धि के स्‍लैब(2.5%, 3% व 4%) के अनुसार नहीं है। 


चल रहे केसों को वापस लेना: 

यहां तक की अमर उजाला ने समझौते में अपनी असल नीयत जाहीर करते हुए यह भी लिखा है कि जो भी केस चल रहे हैं उन्हें इस समझौते के तहत अदालतों से खत्म करने के लिए कहा जाएगा। ऐसा कानून संभव नहीं है, क्योंकि एक तो यह समझौता श्रमजीवी पत्रकार अधिनायम, 1955 की धारा 13 और 16 के अलावा माननीय सुप्रीम कोर्ट के 07.02.2014 और 19.06.2017 के फैसेलों के खिलाफ संस्‍थान के कर्मचारियों को डरा धमका कर बनाई गई पॉकेट यूनियन के जरिये अवैध तरिके से किया गया है। वहीं कोर्ट में पहले से जो केस चल रहे हैं, उसमें मौजूद कर्मचारी इस यूनियन के सदस्‍य नहीं हैं। वहीं इस समझौते के तहत यह भी दावा किया जा रहा है कि इसके चलते कोई भी कर्मचारी वेतनमान के विवाद को कोर्ट में नहीं ले जा सकेगा,जो हर कर्मचारी का वैधानिक अधिकार है। वहीं यह समझौता वैधानिक है ही नहीं। 

ध्यान रहे सुप्रीम कोर्ट के 19 जून 2017 के फैसले के अनुसार कर्मचारी और प्रबंधक के बीच बिना किसी दबाव के हुआ समझौता सिर्फ और सिर्फ अधिकतम लाभ की स्थिति में ही वैध माना जाएगा और मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों का अक्षरक्षः पालन करना सभी समाचार पत्र के लिए अनिवार्य है। ऐसे में यदि कोई भी साथी सुप्रीम कोर्ट या अन्‍य किसी कोर्ट की शरण में जाता है तो अमर उजाला का यह समझौता टीक नहीं पाएगा। इसके जरिए भले ही कोर्ट या श्रम अथारिटी को कुछ समय के लिए उलझाया जा सकता है, मगर सही मायने में इस समझौते की कोई वैधानिक वैधता नहीं है, क्‍योंकि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 07 फरवरी, 2014 के फैसले में साफ आदेश दे दिए थे कि मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के तहत प्रबंधन को 01 अप्रैल 2015 से नया वेतनमान लागू करने के अलावा बकाया एरियर एक साल में चार किश्‍तों में देना था। ऐसे में प्रबंधन मजीठिया के तहत वेतनमान और एरियर देने से किसी भी हालत में नहीं बच सकता, चाहे वह जो भी हथकंडे अपना ले।

उमर उजाला के साथियों को यदि इस मामले में कुछ भी जानकारी चाहिए तो वे मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे अपने अन्य साथियों की मदद ले सकते हैं। अमर उजाला में इस समय कार्यरत या ऐसे साथी जो अमर उजाला से सेवानिवृत्त हो चुके हैं या उसे छोड़ कर किसी अन्य संस्थान में नौकरी कर रहे हैं और उन्होंने अभी तक इसके लिए कोई केस भी दायर नहीं किया है तो वे सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा सकते हैं और वहां अमर उजाला खड़ा नहीं हो पाएगा, क्योंकि 19 जून 2017 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी लीगल इश्यूओं को क्लियर करने के बाद समाचार पत्र संस्थानों को मजीठिया वेजबोर्ड को लागू करने का एक और मौका दिया था। जिसका सभी समाचार पत्र संस्थान आज तक खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं।


Wednesday 26 January 2022

मजीठिया: हाईकोर्ट ने दिए समझौता अधिकारी नियुक्त करने के आदेश, दलाल सक्रिय!


कोटा वाले केस में राजस्थान हाईकोर्ट की डबल बेंच ने समझौता अधिकारी अप्वॉइंट करने के आदेश दिए हैं और 14 फरवरी से पहले दोनों पक्षों को समझौते करने की सलाह दी है। 

इस फैसले के साथ ही दैनिक भास्कर के दलाल और प्रबंधन के लोग सक्रिय हो गए हैं कि इन कर्मचारियों को श्रम न्यायालय कोटा के फैसले का लाभ नहीं मिल पाए। इन दलालों की वजह से ही पहले दैनिक भास्कर के कर्मचारियों को मजीठिया वेतन आयोग का लाभ नहीं मिल पा रहा था। दैनिक भास्कर के दलाल और दैनिक भास्कर का प्रबंधन दोनों इस बात को समझते हैं कि उन्हें श्रम न्यायालय कोटा के फैसले की पालना तो करनी ही होगी। इस कारण अब इस केस को किसी भी तरह से येन केन प्रकारेण लटकाने में लगे हुए है। कर्मचारियों को श्रम न्यायालय कोटा के मजीठिया वेतन आयोग के फैसले का लाभ लेने से वंचित कर रहे हैं दैनिक भास्कर के दलाल हाइकोर्ट के इस फैसले के साथ ही सक्रिय हो गए हैं। इन दलालो में कुछ रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी भी हैं जो इस व्यवस्था को मैनेज करने में लगे हुए हैं।

वह किसी भी तरह से कर्मचारियों के पैसे पर डाका डालकर उन्हें 40 लाख रुपये और नौकरी दोनों को लेने से वंचित करने का प्रयास कर रहे हैं। उनका मानना है कि मात्र 4-5 लाख रुपये देकर ही मामले को रफा-दफा करा दिया जाए और किसी तरह से समझौता करा दिया जाए, जिससे कर्मचारी यह लाभ लेने से वंचित रह जाएं। अब अब दैनिक भास्कर के कर्मचारियों के पास यह विकल्प है कि वे या तो सब न्यायालय के फैसले की पालना कराएं और समझौता अधिकारी जो भी नियुक्त हो उसको साफ तौर पर यह कह दे कि उन्हें सब लेबर कोर्ट कोटा के फैसले की यथावत संपूर्ण पालना कराई जाए।  अन्यथा वह सुप्रीम कोर्ट जाकर कंटेंप्ट पिटिशन के जरिए भी इस फैसले को लागू करा सकते हैं, जिससे उन्हें 40 लाख और नौकरी दोनों ही मिलेगी। थोड़ा सा और संघर्ष करने के बाद ही उन्हें कोटा लेबर कोर्ट के फैसले का पूरा लाभ मिल सकता है। इन कर्मचारियों के पास अब दलालों के फोन भी आएंगे और भास्कर प्रबंधन को भी यह पता है कि अगर कोटा के मामले में कर्मचारी सर्वोच्च न्यायालय चले गए तो उनके पास इस फैसले को लागू कराने के सिवाय कोई विकल्प नहीं रहेगा। अब यह कर्मचारियों को सोचना है कि वह इस फैसले की पालना कराएं और 40 लाख और नौकरी लें या फिर कुछ लाख लेकर घर बैठ जाए।

Thursday 13 January 2022

सरकार, गरीब पत्रकारों पर रहम करो, प्लीज।


- आपके पास यश है, धन है, सामर्थ्य है, इन पत्रकारों के पास प्राइवेट नौकरी है

- इनके जीवन से खिलवाड़ करना बंद करो, बीमार हुए तो लाला वेतन काट लेगा

छह महीने में भाजपा द्वारा बदले गये तीन सीएम और एक पूर्व सीएम की कल देहरादून के एक होटल के छोटे से हॉल में प्रेस कांफ्रेंस थी। अब समझ से परे है कि इन चार सीएम को क्या नया कहना था कि ये प्रेस मीट बुला ली। सब जानते हैं कि निशंक अपनों पर ही बहुत घातक वार करते हैं। त्रिवेंद्र के सभी फैसले तीरथ और सीएम धामी ने बदल डाले। आज भी धामी सख्त भू कानून न होने पर अफसोस जता रहे हैं और त्रिवेंद्र उसे सही ठहरा रहे हैं। फिर काहे की एका। बस चलेगा तो तीनों सीएम मिलकर धामी को खटीमा से चुनाव हरवा देंगे। इसके अलावा भी पिछले पांच साल जो कुछ भी सभी सीएम ने झूठ या सच कहा, गरीब पत्रकारों ने हू-ब-हू छाप दिया। लाला की नौकरी जो करनी थी। परिवार पालने के लिए नौकरी कर रहे हैं। 

क्यों बुलाया पत्रकारों को? क्या नई बात कही? बेफजूल की प्रेस मीट थी और रिस्क इतना बड़ा। देहरादून में 1350 कोरोना मरीज आज ही आए हैं। ऐसे में 12 बाई 12 के हाल में पत्रकारों को कोविड गाइडलाइन के बिना बिठा दिया। या तो उनके लिए अच्छी व्यवस्था करो या वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस की व्यवस्था करो।

सीएम साहब, एक बात बता दूं। पिछले दो साल के दौरान दर्जनों पत्रकारों को कोरोना हुआ। कई मीडिया कर्मियों की मौत हुई। क्या सरकार ने उन्हें चवन्नी भी दी? यह भी बता दूं कि जब कोई पत्रकार बीमार हो जाता है। हास्पिटल में भी होता है तो भी उनका वेतन लाला द्वारा काट लिया जाता है। अधिक दिन बीमार रहने पर नौकरी से हटा दिया जाता है। पिछले दो बार के कोरोना काल में सैकड़ों मीडियाकर्मियों की नौकरियां चली गयी। कुछ चाटुकार और संपादक के मुंहलगे पत्रकार ही  अपना वेतन और नौकरी बचाने में सफल रहते हैं। 

जबकि सीएम साहब आपसे तो यह भी नहीं बना कि कोरोना वारियर्स के तौर पर पत्रकारों को बूस्टर डोज ही लगवा दो। सरकार, पत्रकारों पर रहम करो। बेवजह, पत्रकारों की जान से खिलवाड़ न करो। चुनाव आयोग को इसका संज्ञान लेना चाहिए।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

Tuesday 11 January 2022

बाजार सजा है, बिक रहे पत्रकार और संपादक!



हर खबर के देने होंगे पैसे, जितना दाम उतना काम

पैकेज नहीं लोगे तो खबर तलाशते रह जाओगे


मीडिया अब भांड हो गया है। जो चाहे, खरीद लो। बाजार सजा है। खबरों के बदले पैसे लेने का जन्मदाता पंजाब केसरी है। धीरे-धीरे लगभग सभी अखबारों ने यह ट्रेंड अपना लिया। चैनलों ने भी। विधानसभा चुनाव में पैकेज को लेकर संपादक, पत्रकारों और मार्केटिंग की टीम के बीच बैठकों के दौर चल रहे हैं। अखबारों में कालम के रेट और चैनलों में स्क्राल से लेकर सैकेंड़ों के पैकेज तैयार हो गये हैं। प्रायोजित समाचार होंगे।

ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हो रहा है। पहले भी होता रहा है लेकिन होता यह था कि जो विज्ञापन देते हैं या पैकेज लेते हैं उनकी खबर बड़ी लग जाती थी और जो नहीं देते थे उनको सिंगल या दो कालम में निपटा दिया जाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। जो विज्ञापन देगा उसी की पालिटिकल खबर लगेगी, नहीं तो खबर तलाशते रहो। 

पंजाब केसरी के स्व. अश्विनी मिन्ना प्रायोजित खबरों के जनक माने जाते हैं। इसके बाद नया ट्रेंड शुरू किया हिन्दुस्तान के ग्रुप एडिटर शशि शेखर ने। शशि शेखर अपने अखबार में फुल पेज विज्ञापन देते हैं कि वोट दें। ईमानदारी से हिन्दुस्तान नहीं झुकेगा और फिर चुपके से रिपोर्टरों को टारगेट दे दिया जाता है। दैनिक जागरण का बुरा हाल है। उनका वश चले तो वो प्रेस नोट देने के लिए आने वाले व्यक्ति पर भी टिकट लगा दें। अमर उजाला की पालिसी बहुत खतरनाक है। अमर उजाला पहले कमजोर उम्मीदवार को खूब चढ़ाता है। उसको खूब तवज्जो दी जाएगी। विपक्षी को जोश आएगा और जब उनसे पैकेज मिल जाएगा तो कमजोर समाचारों से गायब हो जाएगा। ऐसा ही क्षेत्रवार भी होगा।

मैं अक्सर कहता हूं कि निर्दलीय उम्मीदवार लोकतंत्र की सौतेली संतान जैसी होती हैं। उनके साथ सभी जगह सौतेला व्यवहार होता है। मीडिया में भी। इसलिए उम्मीदवारों का सलाह है कि जेब भारी है तो मीडिया में छपने या दिखने की सोचना। विचार या ईमानदारी के दम पर तो छपोगे या दिखोगे नहीं।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

DUJ Denounces Use of Apps to Target Journos, Citizens


New Delhi, 11 January. In the controversy surrounding the Prime Minister’s visit to Punjab, an investigation into a secret app that spams and trolls thousands has gone ignored by the big media, notes the Delhi Union of Journalists. Painstaking investigation of the app Tek Fog, by two technical researchers for the Wire, reveals how tech is being used to pursue a political agenda and target people, including journalists.

Tek Fog is designed to “highjack the ‘trending’ section of Twitter and ‘trend’ on Facebook….to ‘auto-retweet’ or ‘auto-share’ the tweets and posts of individuals or groups and spam existing hashtags…” says the Wire expose.  Individual operatives can use the app “ to generate ‘temporary’ email addresses, activate phone numbers and bypass programming limitations, and email and OTP verification set by What’s App Facebook, Twitter and Telegram.”

Dangerously, the app enables operatives to hijack inactive WhatsApp numbers, steal data about their contacts and send them messages. It creates a cloud database that categorises people by religion, language, age, gender and political leanings, so that they can be messaged suitably.

DUJ President S.K.Pande and General Secretary Sujata Madhok says, Women journalists have been prime targets of the app. The Wire investigation lists women journalists who received up to one million abusive tweets between January and May 2021. They include Rana Ayyub, Barkha Dutt, Nidhi Razdan, Rohini Singh, Swati Chaturvedi, Sagarika Ghose, Manisha Pande, Faye D’Souza, Arfa Khanum Sherwani and Smita Prakash.

The Wire has identified two private companies, Persistent Systems and Mohalla Tech Pvt Ltd, that are reportedly responsible for developing  the app. Mohalla Tech is the company behind Sharechat, a leading regional language social media platform which is funded by Twitter. Sharechat works in 24 languages and claims it has 160 million users.  Persistent Systems is based in Nagpur and allegedly has close links with the Bharatiya Janata Party through its current election manager in Maharashtra. The companies are denying involvement with Tek Fog. In a detailed response Sharechat claims it systematically takes down hate speech and misinformation.

However, DUJ also notes with alarm the inadequate response of social media companies to complaints against hate accounts, fake accounts and fake news. Alt News has traced several such accounts on Facebook and Twitter but little action has been taken by tech companies. 

DUJ calls for an urgent inquiry by the Supreme Court into the role of social media and tech companies in amplifying the crime of Hate Speech.


Tuesday 4 January 2022

DUJ Condemns Targeting of Muslim Women

The Delhi Union of Journalists and its Gender Council expresses it shock and anger at the targeting of Muslim women, including several journalists, through the social media. We salute the bold women who filed FIRs against the publication of their photos, auctioning their bodies to bidders on the ‘Bulli Bai’ app.  We urge the police in Mumbai, Delhi and Hyderabad, where women have lodged complaints, to act urgently on the matter. Mumbai Police has detained a suspect from Bangalore but others need to be identified immediately.

This is the second time that such a public ‘auction’ of Muslim women has taken place. Had the police identified the culprits behind the infamous ‘Sulli Deals’ that was online six months ago, this targeting and terrorizing of Muslim women would not have been repeated.  

We note that AltNews had investigated the online threat months ago, going to great lengths to trace and identify some of the fake handles responsible for the outrageous app.  Predictably, no action was taken by the police. 

We congratulate the Wire journalist Ismat Ara for her courage in filing a case with the Delhi Police.  We express our solidarity with all members of the Delhi Union of Journalists who are facing these attacks. 

We share the anguish of all the women who experienced sexual harassment and that of their families.  A young woman lawyer has penned a piece for the Quint whose title speaks, “My Mom’s Photo was Misused on Bulli Bai, No Daughter should be Writing This”.  She writes, “…what Bulli Bai means to me is the willful, well-planned perpetuation of minority oppression, systemic sexism and gender-based violence against a certain community of women.”

An online petition urges the Supreme Court to take suo moto cognizance  and monitor the investigation and prosecution of this matter.  The Delhi Union of Journalists supports this move.

Nearly 100 women have been attacked. Most of them are professionals,  including journalists (some are members of the DUJ) , historians, politicians and  pilots.  We urge more of them to come forward to report and voice their ordeal, so that such hideous experiences are not repeated. The police and the courts must act now.                                                                                            

S.K. Pande, President


Sujata Madhok, General Secretary

मजीठिया पर बड़ी खबर: जागरण ने ग्वालियर हाई कोर्ट में जमा कराए ढाई करोड़


नए साल की शुरुआत में मजीठिया क्रांतिकारी,  पत्रकार व श्रमजीवी पत्रकारों के लिए बड़ी खबर यह है कि मजीठिया मामले में एक अखबार ने कोर्ट में मजीठिया वेतनमान की राशि लगभग ढाई करोड़ की कोर्ट में जमा कराई है। यह मजीठिया मामले में पत्रकार व श्रमजीवी पत्रकारों की सबसे बड़ी जीत है।

ज्ञात रहे कि मजीठिया मामले में ग्वालियर लेबर कोर्ट में जागरण ग्रुप के नई दुनिया के खिलाफ 10 कर्मचारियो ने मजीठिया के बकाया वेतनमान का केस दायर किया था। इस मामले में कोर्ट ने 10 कर्मचारियों के पक्ष में अवार्ड पारित किया था। एक वर्ष का धैर्य रखकर 10 कर्मचारियों ने आरआरसी की रकम का इंतजार किया, नहीं देने पर हाईकोर्ट की शरण ली, जिस पर हाईकोर्ट ने एक माह के अंदर अखबार प्रबंधन को लेबर कोर्ट में राशि जमा कराने के निर्देश दिए थे। इस जागरण प्रबंधन ने कूछ दिन पहले मजबूर होकर प्रकरण व्यय के साथ करीब ढाई करोड़ की रकम एफडी बनाकर जमा कराई है। इस पूरे प्रकरण में जागरण ने 2.39 करोड़ रुपये जमा करने के साथ ही करीब 10 लाख रुपये वकीलों पर खर्च किया, लेकिन अंततः पराजय  मिली और पैसा जमा कराना पड़ा। यह मजीठिया में कर्मचारियों की सबसे बड़ी जीत है। इस जीत से मजीठिया क्रांतिकारियों में नई जान आई है तो वहीं अखबार मालिको में घबराहट है।


फैसला आते ही मिलेगा पैसा

ग्वालियर लेबर कोर्ट में सभी 10 साथियों के नाम से मजीठिया राशि की एफडी जमा कराई वह करीब 2 करोड़ 39 लाख की है। बस अब मैरिट पर हाईकोर्ट का फैसला आते ही ये राशि कर्मचारियों के खातों में आ जाएगी और  नए वर्ष में हमारे 10 साथी लखपति बन जाएंगे।