Thursday 27 January 2022

मजीठिया: सुप्रीम कोर्ट की सीधी-सीधी अवमानना पर उतरा अमर उजाला



मजीठिया वेजबोर्ड को खारिज कर पॉकेट यूनियन की मिलीभगत से तैयार किया अपना वेजबोर्ड 

साथियों, जो अमर उजाला कभी अपने कर्मचारियों को उनका हक देने में अव्‍वल माना जाता था, आज वो ही संस्‍थान कर्मचारियों के साथ धोखाधड़ी की सारी हदें पार करने को उतारू है। मजीठिया वेजबोर्ड के तहत वेतनमान मांगने वाले कर्मचारियों को तबादलों और अन्‍य तरह से प्रताड़ित करने के बावजूद भी इस संस्‍थान को मजीठिया वेजबोर्ड से बचने का कोई उपाय ना मिला तो इसने अपनी पॉकेट यूनियन के साथ मिलकर एक नया कांड कर डाला है। अमर उजाला प्रबंधन ने मजीठिया वेजबोर्ड के नाम पर अपनी पॉकेट यूनियन के साथ मिल बैठ कर एक अवैध समझौता तैयार करवाया है। इस फर्जी समझौते की करीब सौ पन्‍नों की बुकलेट बनाकर श्रम अधिकारियों के समक्ष पेश किया जा रहा है और न्‍यायालयों में भी पेश करने की तैयारी है, जो कि सीधे-सीधे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना है। 

अमर उजाला और इस तथाकथित पॉकेट यूनियन के बीच 22.11.2021 को हुए इस तथाकथित समझौते को 1 अप्रैल 2021 से लागू होने का दावा किया जा रहा है। यानि जो वेतनमान 11.11.2011 को दिया जाना था, उसे इस तथाकथित समझौते के तहत करीब दस साल बाद देने का झूठा दावा किया जा रहा है। हैरानी की बात है कि इस संस्‍थान के प्रबंधकों ने 11.11.2011 को भारत सरकार द्वारा अधिसूचित और माननीय सुप्रीम कोर्ट के 07.02.2014 के फैसले के तहत संवैधानिक घोषित किए गए जस्टिस मजीठिया के वेजबोर्ड की सिफारिशों को सिरे से खारिज करते हुए अपना ही कोई प्रबंधक जनीत वेजबोर्ड बना कर करीब 100 पेज की इस बुकलेट के जरिये पेश किया है, मानो अब अमर उजाला प्रबंधन को संसद और माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को दरकिनार करने की शक्‍तियां हासिल हो गई हों। ऐसा शायद इस्‍ट इंडिया कंपनी के राज में भी नहीं हुआ होगा, जो अमर उजाला प्रबंधन ने कर दिखाया है। लेकिन सच हमेशा जिंदा रहा है और यही सच है।

इस समझौते में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की सरेआम धज्जियां उड़ा दी गई हैं। हालांकि यह भी तय है कि यह समझौता किसी भी अदालत में टिक नहीं पाएगा, मगर इस नीचता के पीछे एक पूंजीवादी सोच रखने वाले मालिक और जी हजूरी करने वाले चापलूस प्रबंधकों की देश के कानून और कैबिनेट के फैसले को ना मानने की हठधर्मिता साफ झलक रही है। साथ ही पैसे और ताकत के दम पर कर्मचारियों के हकों को पैरों तले रौंदने की व्‍यवस्‍था साफ दिखाई दे रही है। अपने लिए इस समझौते में लाखों का वेतन तय करने वाले मैनेजर व मोटी रकम पर पलने वाले सलाहकार शायद यह बात भूल बैठे हैं कि इस देश में संविधान और कानून का राज चलता है। देश की अदालतों में भले ही देर है, मगर अंधेर कतई नहीं है और मजीठिया वेतनमान को लेकर अब तक कई अदालतों के फैसले इस ओर इशारा कर रहे हैं कि प्रबंधन भले ही जितने चाहे ओछे हथकंडे अपना ले कर्मचारियों के संशोधित वेतनमान और बकाया एरियर को किसी भी कीमत पर दबाया नहीं जा सकता।

वैसे यह भी गौर करने वाली बात है कि यह समझौता सुप्रीम कोर्ट के 7 फरवरी 2014 और 19 जून 2017 के आदेशों के आगे कहीं भी टिक नहीं सकता। फिर भी अमर उजाला उसे यह दर्शाते हुए लागू करने की बात कर रहा है कि यह समझौता मजीठिया वेजबोर्ड से बेहतर वेतन कर्मचारियों को देगा। जोकि सरासर झूठ और मक्‍कारी के अलावा कुछ और नहीं है। इस समझौते को वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 16 और मजीठिया वेजबोर्ड के क्लॉज 20जे की परिधि में रखा गया है, जबकि सभी को मालूम है कि यह विकल्प 11 से 30 नवंबर 2011 के बीच(नोटिफिकेशन के तीन सप्‍ताह के अंदर) लिया जा सकता था और वो भी उन्हीं कर्मियों पर लागू होता जो वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 16 के अनुसार मजीठिया वेतनमान से अधिक वेतन पा रहे होते। माननीय सुप्रीम कोर्ट की 19 जून, 2017 की जजमेंट में यह बात साफ कर दी गई है कि कोई भी अंडरटेकिंग या समझौता जो मजीठिया वेजबोर्ड के तहत तय वेतनमान और भत्‍तों से कम पर किया गया है, वो वैध नहीं माना जाएगा। 

इतना ही नहीं 24 अक्टूबर 2008 की अधिसूचना के अनुसार 30 प्रतिशत अंतरिम दर से भुगतान भी कर्मचारियों के संशोधित वेतनमान में शामिल है और अब तो कोर्ट और केंद्र सरकार के ताजा फैसले के तहत मनीसाना वेजबोर्ड को भी रिनोटिफाई कर दिया गया है। लिहाजा पुराने कर्मचारियों के लिए मजीठिया वेजबोर्ड के तहत जो नया वेतनमान बनेगा, उसमें मनीसाना वेजबोर्ड के तहत बेसिक, डीए और 30 फीसदी अंतरिम राहत को जोड़ना ही होगा। ऐसे में अमर उजाला प्रबंधन की यह करतूत भेले ही उन कर्मचारियों को खुंटे से बांध सकती है, जो मजबूरी में परिवार का पेट पालने को कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की हिम्‍मत नहीं रखते, मगर यह बात भी प्रबंधन और उसके तथाकथित सलाहकारों को पता होगी कि भले ही कर्मचारी आज अपना मुंह नहीं खोल रहे, मगर वे कभी भी अपना हक रिकवरी के जरिये कोर्ट में जाकर हासिल कर सकते हैं और उन्हें कानूनी हक को लेने से कोई भी ताकत या नियम नहीं रोक सकता।  

कहां-कहां कर रहा है अमर उजाला सुप्रीम कोर्ट की अवमानना

नए वेतनमान का गठन: 

अमर उजाला ने इस चालबाजी में अपना ही वेतनमान बना कर पेश किया है। देखने में इनमें बेसिक पे ज्यादा नजर आ रही है, परंतु असल में ऐसा करके वेतन को बढ़ नहीं रहा बल्कि कम हो रहा है, क्योंकि इसमें मजीठिया वेजबोर्ड के फार्मूले के तहत वेरिबल-पे और डीए शामिल नहीं है। वहीं 11 नवंबर, 2011 से पहले के कार्यरत कर्मचारियों के पुनरीक्षित वेतनमान में प्रारंभिक वेतन का निर्धारण कैसे किया गया है, इसका अता पता तक नहीं है। कुल मिलाकर मजीठिया वेजबोर्ड से बचने के लिए यह सारा खेल खेला गया है। वर्तमान में जो वेतनमान अमर उजाला ने 01 अप्रैल 2021 से बनाकर दिखाया है, उससे अधिक तो 11 नवंबर, 2011 को ही बनता है और बीच के दस वर्षों में डीए व बेसिक में बढ़ौतरी के चलते 01 अप्रैल, 2021 को तो यह दोगुने के करीब होना चाहिए था। वहीं इस फर्जी समझौते के तहत जो वेतनमान बनाया है उसमें भी मेरठ में बैठे मैनेजरों के लिए स्‍पैशल मेहनत करके मोटी तनख्‍वाह का प्रबंधन किया गया है। इस फर्जीवाड़े के जरिए मजीठिया वेजबोर्ड के तहत गठित वेतनमान और वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट, 1955 के प्रावधानों के तहत मिलने वाले वैधानिक वेतन लाभों को एक तरह से समाप्‍त करने की चाल चली गई है।  

उदाहरण स्वरूप हम नोएडा यूनिट के एक कार्यरत साथी के वेतनमान से आपको सबकुछ स्पष्ट कर रहे हैं। ये डाटा हमने इस तथाकथित समझौते से लिया है। हमें उस साथी के नाम से कोई मतलब नहीं है। हम केवल उसके वेतन के आंकड़ों को केवल समझाने के उद्देश्य से ले रहे हैं। 

उस साथी की 1 दिसंबर 2010 की ज्वाइनिंग नोएडा में सब एडिटर के पद पर हुई थी। उसका पे स्केल 11 नवंबर 2011 को 1300- ARI (3%) &23500 वाले स्लैब में आता है। कंपनी ने अप्रैल 2021 में उसकी फिटमेंट और प्रमोशन अपने बनाए तथाकथित बेजबोर्ड के अनुसार करके उसे 20500-1050-31000 के पे स्केल में डाल दिया। जिसकी 1 अप्रैल 2021 ग्रोस सैलरी 41500 रुपये बन रही है। जबकि 11 नवंबर 2011 को इसी पद पर भर्ती किसी भी नए कर्मचारी का ग्रोस वेतन जनवरी 2014 में ही इसे पार कर जाएगा यानि 41434 हो जाएगी। हमने यहां 1 दिसंबर 2010 को भर्ती उस कर्मचारी की फिटमेंट व प्रमोशन के आधार पर आपको उसका वेतन इसलिए नहीं दर्शाया, क्योंकि हमें उसका पुराना वेतन नहीं पता है। इसलिए हमने 11 नवंबर 2011 को हुई नई भर्ती का उदाहरण दिया है, जिससे आपको स्पष्ट हो जाए कि नए वाले को इतना वेतन मिलेगा तो पुराने कर्मचारियों का मजीठिया वेजबोर्ड के पैरा नंबर 20 के अनुसार फिटमेंट-प्रमोशन के बाद वेतन कहां जाएगा, ये अंदाजा हो जाएगा। यहां पुराने कर्मियों को पैरा 20 के अनुसार वे भत्ते यहां अन्य लाभ भी मिलते रहेंगे 11 नवंबर 2011 से पहले उन्हें मिल रहे थे। इनमें टेलीफोन बिल, समाचार का बिल, शिक्षा भत्ता आदि अन्य लाभ शामिल हैं।

उदाहरण- जनवरी 2014

बेसिक- 14560 

वेरियवल पे- 5096 

डीए- 7671 

मकान भत्ता- 5897 

परिवहन भत्ता- 3931 

मेडिकल- 1000

कुल- 38155 

पीएफ कंपनी- 3279 

ग्रोस सैलरी- 41434


अब ये अप्रैल 2021 में मजीठिया के अनुसार बढ़ते-बढ़ते इतनी हो जाएगी-

बेसिक- 19926

वेरियवल पे- 6974

डीए- 27062 

मकान भत्ता- 8070 

परिवहन भत्ता- 5380 

मेडिकल- 1000 

कुल- 68412 

पीएफ कंपनी- 6475 

ग्रोस सैलरी-74887


वहीं, 1 अप्रैल 2021 को इसी पद पर भर्ती नए कर्मचारी को भी मजीठिया के अनुसार उससे ज्यादा वेतन मिलेगा। 

बेसिक- 15000 

वेरियवल पे- 5250

डीए- 20371

मकान भत्ता- 6075 

परिवहन भत्ता- 4050

मेडिकल- 1000

कुल- 51746

पीएफ कंपनी- 4875

ग्रोस सैलरी-56621

उपरोक्त उदाहरण से आप समझ सकते हैं कि अमर उजाला कैसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना कर रहा है। इसके साथ ही वह तथाकथित नए वेतनमान से कर्मचारियों के वेतन ही नहीं पीएफ, पेंशन, ग्रेच्युटी आदि पर भी मोटा डाका डाल रहा है। 


संस्‍थान की श्रेणी का निर्धारण: 

अमर उजाला ने संस्‍थान का श्रेणी का निर्धारण भी अपनी सहुलियत के अनुसार फर्जी तरीके से किया है। समझौते के अनुसार लेखावर्ष 2010-11, 2011-12 व 2012-13 को आधार बनाकर संस्‍थान की श्रेणी का पुनर्निधारण करते हुए औसत सकल राजस्‍व 492.31 करोड़ रुपये बताया गया है, जो सरासर गलत है। समझौते में वर्ष 2010-11 का सकल राजस्‍व 407.46 करोड़ रुपये दिखाया गया है जो असल में वर्ष 2009-10 का सकल राजस्‍व है। वहीं वर्ष 2011-12 का 525.45 और 2012-13 का सकल राजस्‍व 544.02 करोड़ बताया गया है, जो सही है। यहां खेला वर्ष 2010-11 के सकल राजस्‍व में किया गया है, क्‍योंकि रजिस्‍ट्रार आफ कंपनिज को दी गई अमर उजाला की बैलेंसशीट के अनुसार अमर उजाला का वर्ष 2010-11 का सकल राजस्‍व 474.42 करोड़ है। इस तरह इन तीनों वर्षों का औसत सकल राजस्‍व 514.36 करोड़ रुपये बनता है, जो क्‍लास-2 में आता है। लिहाजा अमर उजाला प्रबंधन और उसकी पॉकेट यूनियन ने औसत राजस्‍व के आंकड़े में भी फर्जीवाड़ा करने का काम किया है। बहरहाल मजीठिया वेजबोर्ड का निर्धारण आरंभिक तौर पर वित्‍तीय वर्ष 2007-08, 2008-09 व 2009-10 के औसत सकल राजस्‍व के आधार पर होना है, जो 500 करोड़ रुपये से कम बनता है और अमर उजाला कंपनी क्‍लास-3 कैटेगरी में आती है। क्‍योंकि मजीठिया वेजबोर्ड की नोटिफिकेशन 11 नवंबर 2011 में हुई थी इसलिए नया वेतनमान 31 मार्च, 2013 तक पुरानी औसत के आधार पर निर्धारित संस्‍थान की श्रेणी-3 के अनुसार तय होना था। इसके बाद श्रेणी पुनर्निधारण के तहत 01 अप्रैल, 2013 से लेकर अमर उजाला समाचार स्‍थापना की श्रेणी क्‍लास-2 कैटेगरी में निर्धारित होनी थी, मगर इस समझौते में श्रेणी निर्धारण में भी खेला किया गया है। वहीं जैसा के इस समझौते में किया गया है, वैसा करने के लिए भी दूसरी बार श्रेणी का पुनर्निधारण इससे पहले के तीन वर्षों यानि 2018-19, 2019-20 और 2020-21 के औसत सकल राजस्‍व के आधार पर होना चाहिए था, तभी 01 अप्रैल, 2021 का सही श्रेणी निर्धारण माना जाता, जो संभवत: श्रेणी-1  के लिए होता।


अमर उजाला की कोई यूनिट स्‍वतंत्र या अलग नहीं: 

यहां अमर उजाला प्रबंधन की इस चाल को भी समझना होगा, जिसके तहत अमर उजाला अपनी विभिन्‍न ब्रांचों या सेंटरों को अलग यूनिट बताकर उनका श्रेणी निर्धारण गलत तरीके से करता आ रहा है। जबकि सच्‍चाई यह है कि अमर उजाला की कोई भी यूनिट स्‍वतंत्र या अलग नहीं है। हालांकि विभिन्‍न जगहों पर मौजूद प्रिटिंग एंड पब्‍लिकेशन सेंटर असल में अमर उजाला लिमिटेड की ब्रांचेज हैं, जो एक दूसरे के साथ जुड़ी हुई हैं। यह बात इस समझौते के पहले पन्‍ने से ही साबित होती है, जिसमें अमर उजाला नें अपनी इन तथाकथित यूनिटों को सेंटर ही लिखा है। ज्ञात रहे कि इन प्रिंटिंग एवं पब्‍लिशिंग सेंटरों के लिए एक ही पैन नंबर इस्‍तेमाल होता है और सबकी एक ही बैलेंसशीट बनाकर रजिस्‍ट्रार ऑफ कंपनिज में दी जाती है। इतना ही नहीं प्रबंधन में फंक्‍शनल इंटिग्रेलिटी एंड कॉमन कंट्रोल है। कर्मचारियों को एक ब्रांच/सेंटर/कार्यालय से दूसरी ब्रांच/सेंटर/कार्यालय में ट्रांस्‍फर किया जाता है, पीएफ एक ही जगह यानि आगरा(पहले बरेली) में काटा जाता है। आरएनआई में पंजीकरण के दौरान अमर उजाला लिमिटेड(पहले अमर उजाला पब्‍लिकेशंस लिमिटेड) ही समाचारपत्र के विभिन्‍न प्रकाशन केंद्रों का स्‍वामी है। ऐसे में अमर उजाला अपनी ब्रांचों (जिन्‍हें आम बोलचाल में यूनिट कहा जाता है) को स्‍वतंत्र यूनिट दिखा कर अपनी श्रेणी निर्धारण में घपला करता आ रहा है, जो किसी भी कोर्ट में नहीं टिक पाएगा। साथ ही यह श्रमजीवी पत्रकार अधिनयम, 1955 की धारा 2डी का उल्‍लंघन कर रहा है।  


कर्मचारियों की कैटेगरी का निर्धारण: 

इस तथाकथित एवं अवैध समझौते में अमर उजाला प्रबंधन ने श्रमजीवी पत्रकारों और गैर पत्रकार कर्मचारियों की श्रेणियां भी मजीठिया वेजबोर्ड के प्रावधानों को दरकिनार करके खुद से ही तय कर दी हैं और अधिकतर पदनाम प्रबंधकीय या सुपरवाइजरी कैपेसिटी में शामिल कर दिए हैं, ताकि वे कर्मचारी के परिभाषा में ना आ पाएं और कोर्ट व श्रम कार्यालयों में विवाद को उलझाया जा सके। इतना ही नहीं इस अवैध वेतनमान में कर्मचारियों का दायरा भी समिति करते हुए अपनी ही परिभाषा गढ़ी गई है, जो मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों का सीधा-सीधा उल्लंघन है। यह समझौता साफ तौर पर माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय और उच्‍च न्‍यायालयों के उन फैसलों की भी अवमानना करता है, जिनके तहत यह व्‍यवस्‍था दी गई है कि किसी भी कर्मचारी के पदनाम से यह तय नहीं किया जा सकता कि वह प्रबंधकीय या सुपरवाइजरी कैपेसिटी में आता है। इसके लिए संबंधित कर्मचारी का प्रबंधकीय या सुपरवाइजरी कैपेसिटी में काम करना अनिवार्य है। अमर उजाला प्रबंधन द्वारा पहले अधिकतर कर्मचारियों को जारी नियुक्‍ति पत्रों में उनके प्रबंधकीय या सुपरवाइजरी कैपेसिटी में तैनात करने का फर्जी पैराग्राफ डाला और अब यह नई चाल चली गई है। 


डीए का फार्मूला दरकिनार: 

मजीठिया वेजबोर्ड के पैरा 20 के अनुसार डीए की परिभाषा और तय फार्मूले को अमर उजाला ने नए सिरे से अपनी सुविधा अनुसार परिभाषित कर डाला है। ज्ञात रहे कि मजीठिया वेजबोर्ड के फार्मूले के अनुसार 11 नवंबर 2011 से डीए की गणना हर छह माह बाद की जानी है। इसके तहत हर छह माह बाद वेतनमान में खासी बढ़ौतरी होनी थी, जो ना तो अमर उजाला ने आज तक की और ना ही आगे करने वाला है। अब संस्‍थान ने इस तथाकथित एवं अवैध समझौते के तहत अपना ही फार्मूला बना डाला है और मजीठिया वेजबोर्ड के तहत देय डीए को समाप्‍त करके देश के संविधान और न्‍यायपालिका को खुली चुनौती दी है। ज्ञात हो कि मजीठिया वेजबोर्ड के तहत डीए और अन्‍य भत्‍तों का निर्धारण नई बेसिक-पे और वेरिएवल-पे को जोड़ कर होना है।  


बोनस और ग्रेच्‍युटी में भी खेल:  

इस तथाकथित एवं अवैध समझौते के जरिये अमर उजाला प्रबंधन ने ना केवल मजीठिया वेजबोर्ड को दरकिनार किया है, वहीं बोनस और ग्रेच्‍युटी के प्रावधानों को भी अपने फायदे के लिए तोड़मरोड़ कर अपना ही फार्मूला बना डाला है, ताकि कर्मचारियों को उनका वैध हक ना मिलने पाए। संस्‍थान ने बड़ी ही चतुराई से कंपनी की टर्नओवर के तहत बोनस स्‍लैब फिक्‍स कर दिए हैं, ताकी लाला जी की तिजोरी से ज्‍यादा रकम ना निकलने पाए। वहीं श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम की धारा पांच के तहत दी गई ग्रेच्‍युटी की परिभाषा ही बदल दी गई है। इसके अनुसार श्रमजीवी पत्रकार तीन साल बाद ग्रेच्‍युटी के हकदार होते हैं और प्रत्‍येक साल के लिए 15 दिन के वेतन के बराबर ग्रेच्‍युटी निर्धारित होती है, मगर यहां अमर उजाला के प्रबंधकों ने इस धारा के लागू होने से पूर्व में छह या इससे कम श्रमजीवी पत्रकारों वाली स्‍थापनाओं के लिए किए गए प्रावधान को अपने संस्‍थान पर लागू मान कर ग्रेच्‍युटी भुगतान के गलत नियम दर्शाए हैं और प्रत्‍येक वर्ष की सेवा के लिए 15 के बजाय 7 दिन के वेतन के भुगतान की झूठी बात की जा रही है। वहीं गैर पत्रकार कर्मचारियों को भी इन नियमों के दायरे में बताया गया है, जबकि उन पर श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम के विशेष प्रावधान लागू ही नहीं होते हैं। इतना ही नहीं संस्‍थान के खाते से ग्रेच्‍युटी की रकम के भुगतान से बचने के लिए कर्मचारियों के वेतन से ही ग्रेच्‍युटी पॉलिसी लेने की चाल चली गई है। 


पदोन्नति:

अमर उजाला प्रबंधन ने पदोन्नति को वेजबोर्ड के अनुसार 10 साल से घटाते हुए 7 साल में करने का ढोंग करते हुए यहां भी अपनी कुटील चाल चली है और यह शर्त जोड़ दी है कि अगर प्रबंधन चाहे तो किसी भी कर्मचारी की पदोन्नति रोक सकता है, जो कि मजीठिया वेजबोर्ड की पैरा 20 में दी गई पदोन्नति की गारंटी के अधिकार के खिलाफ है। 


सालना वेतन वृद्धि: 

उमर उजाला ने सालाना वेतन वृद्धि को भी अपने हिसाब से तय कर दिया है जो कि मजीठिया वेजबोर्ड के पे-स्‍केल के अनुसार दिए गए सालाना वेतनवृद्धि के स्‍लैब(2.5%, 3% व 4%) के अनुसार नहीं है। 


चल रहे केसों को वापस लेना: 

यहां तक की अमर उजाला ने समझौते में अपनी असल नीयत जाहीर करते हुए यह भी लिखा है कि जो भी केस चल रहे हैं उन्हें इस समझौते के तहत अदालतों से खत्म करने के लिए कहा जाएगा। ऐसा कानून संभव नहीं है, क्योंकि एक तो यह समझौता श्रमजीवी पत्रकार अधिनायम, 1955 की धारा 13 और 16 के अलावा माननीय सुप्रीम कोर्ट के 07.02.2014 और 19.06.2017 के फैसेलों के खिलाफ संस्‍थान के कर्मचारियों को डरा धमका कर बनाई गई पॉकेट यूनियन के जरिये अवैध तरिके से किया गया है। वहीं कोर्ट में पहले से जो केस चल रहे हैं, उसमें मौजूद कर्मचारी इस यूनियन के सदस्‍य नहीं हैं। वहीं इस समझौते के तहत यह भी दावा किया जा रहा है कि इसके चलते कोई भी कर्मचारी वेतनमान के विवाद को कोर्ट में नहीं ले जा सकेगा,जो हर कर्मचारी का वैधानिक अधिकार है। वहीं यह समझौता वैधानिक है ही नहीं। 

ध्यान रहे सुप्रीम कोर्ट के 19 जून 2017 के फैसले के अनुसार कर्मचारी और प्रबंधक के बीच बिना किसी दबाव के हुआ समझौता सिर्फ और सिर्फ अधिकतम लाभ की स्थिति में ही वैध माना जाएगा और मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों का अक्षरक्षः पालन करना सभी समाचार पत्र के लिए अनिवार्य है। ऐसे में यदि कोई भी साथी सुप्रीम कोर्ट या अन्‍य किसी कोर्ट की शरण में जाता है तो अमर उजाला का यह समझौता टीक नहीं पाएगा। इसके जरिए भले ही कोर्ट या श्रम अथारिटी को कुछ समय के लिए उलझाया जा सकता है, मगर सही मायने में इस समझौते की कोई वैधानिक वैधता नहीं है, क्‍योंकि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 07 फरवरी, 2014 के फैसले में साफ आदेश दे दिए थे कि मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के तहत प्रबंधन को 01 अप्रैल 2015 से नया वेतनमान लागू करने के अलावा बकाया एरियर एक साल में चार किश्‍तों में देना था। ऐसे में प्रबंधन मजीठिया के तहत वेतनमान और एरियर देने से किसी भी हालत में नहीं बच सकता, चाहे वह जो भी हथकंडे अपना ले।

उमर उजाला के साथियों को यदि इस मामले में कुछ भी जानकारी चाहिए तो वे मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे अपने अन्य साथियों की मदद ले सकते हैं। अमर उजाला में इस समय कार्यरत या ऐसे साथी जो अमर उजाला से सेवानिवृत्त हो चुके हैं या उसे छोड़ कर किसी अन्य संस्थान में नौकरी कर रहे हैं और उन्होंने अभी तक इसके लिए कोई केस भी दायर नहीं किया है तो वे सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा सकते हैं और वहां अमर उजाला खड़ा नहीं हो पाएगा, क्योंकि 19 जून 2017 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी लीगल इश्यूओं को क्लियर करने के बाद समाचार पत्र संस्थानों को मजीठिया वेजबोर्ड को लागू करने का एक और मौका दिया था। जिसका सभी समाचार पत्र संस्थान आज तक खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं।


1 comment:

  1. अमर उजाला द्वारा फ़र्ज़ी असेंडिंग आर्डर का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। मेरे केस में ऐसा ही किया गया है
    मैं लखनऊ में प्रोडक्शन विभाग में कार्यरत था जहाँ से मुझे बरेली ट्रांसफर कर दिया गया था।
    लखनऊ में चल रहे मेरे केस मे अमर उजाला ने जो असेंडिंग आर्डर प्रस्तुत किया वो ऑल इंडिया के लिए था और जिस पर मोहर उत्तर प्रदेश की थी अस्सिस्टेंट commissinor ने एच आर राम किशन यादव जी से पूछा कि यह किस अथॉरिटी ने पास किया तो उनके पास कोई जवाब नहीं था। कृपया यदि किसी को पता चले कि आल इंडिया का असेंडिंग आर्डर उत्तर प्रदेश में पास करने की अथॉरिटी किसके पास है तो मुझे जरूर बताए।
    विवेक मिश्रा
    9794717346

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