Friday 15 March 2024

मजीठिया: बॉम्बे हाई कोर्ट में 'डी. बी. कॉर्प लि.' की करारी हार




मजीठिया अवॉर्ड की लड़ाई लड़ रहे पत्रकारों के लिए मुंबई से एक बड़ी खबर है... खबर के मुताबिक, मुंबई के श्रम न्यायालय ने 'डी. बी. कॉर्प लि.' के लिए आदेश दिया था कि उसने अपने जिस कर्मचारी अस्बर्ट गोंजाल्विस को सात साल पहले नौकरी से निकाल दिया है, उसे न केवल नौकरी पर पुनः बहाल करे, अपितु अस्बर्ट गोंजाल्विस को इस समयावधि का पूरा बकाया वेतन भी अदा करे। ज्ञातव्य है कि 'डी. बी. कॉर्प लि.' वही संस्थान है, जो स्वयं को भारत का सबसे बड़ा अखबार समूह बताता है... यह कंपनी हिंदी में 'दैनिक भास्कर', गुजराती में 'दिव्य भास्कर' और मराठी में 'दैनिक दिव्य मराठी' नामक अखबारों का प्रकाशन करती है।

श्रम न्यायालय का आदेश लागू करवाने के लिए आदेश की प्रति जब मुंबई के श्रम कार्यालय में आई, तब भी कंपनी और कर्मचारी के बीच लगभग आठ महीने तक सुनवाई हुई। इस दौरान कंपनी ने अस्बर्ट गोंजाल्विस को मेल के माध्यम से सूचित किया कि हम आपकी सैलरी तो आगामी महीने से देना शुरू कर देंगे, किंतु एरियर्स के लिए कैलकुलेशन किया जा रहा है और उसे भी आपको कुछ दिनों में दे दिया जाएगा। हालांकि अस्बर्ट गोंजाल्विस को सैलरी मिलने भी लगी, लेकिन एरियर्स देने के नाम पर कंपनी लगातार आनाकानी करती रही... कभी समझौते की पहल के बहाने तो कभी बॉम्बे हाई कोर्ट जाने की बात कह कर 'डी. बी. कॉर्प लि.' ने टाइमपास करना जारी रखा। 

इसके बाद अस्बर्ट गोंजाल्विस की तरफ से यहां उनका पक्ष रख रहे 'न्यूजपेपर एंप्लॉईज यूनियन ऑफ इंडिया' के महासचिव धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने सहायक श्रम अधिकारी निलेश देठे का ध्यान जब इस बिंदु की ओर आकर्षित किया कि आपको श्र्म न्यायालय का आदेश लागू करवाना है, न कि कंपनी द्वारा टाइमपास करने की योजना में उलझना ! इस मामले में यूनियन के उपाध्यक्ष शशिकांत सिंह ने भी अस्बर्ट गोंजाल्विस की खूब पैरवी की, तब कहीं जाकर देठे ने 1 फरवरी, 2024 को 'डी. बी. कॉर्प लि.' के विरुद्ध अस्बर्ट गोंजाल्विस का रिकवरी सर्टिफिकेट जारी करते हुए वसूली के लिए उसे मुंबई उपनगर के जिलाधिकारी के पास भेज दिया।

बहरहाल, इस बीच श्रम न्यायालय के आदेश को चुनौती देने के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंची 'डी. बी. कॉर्प लि.' को कल अदालत में मुंह की खानी पड़ी... मुंबई उच्च न्यायालय के माननीय जज अमित बोरकर ने श्रम न्यायालय के आदेश को न केवल पूर्णतः सही माना, बल्कि 'डी. बी. कॉर्प लि.' की रिट पिटीशन (3145/2024) को सिरे से ख़ारिज भी कर दिया। इस दौरान संबंधित कंपनी का पक्ष जहां आर. वी. परांजपे और टी. आर. यादव ने रखा, वहीं अस्बर्ट गोंजाल्विस की वकालत विनोद संजीव शेट्टी ने की।

अपने आदेश में विद्वान न्यायाधीश अमित बोरकर ने कहा है कि प्रतिवादी (अस्बर्ट गोंजाल्विस) की बर्खास्तगी से पहले न तो उससे कोई पूछताछ की गई और न ही वादी द्वारा उसकी बर्खास्तगी को उचित ठहराने के लिए श्रम न्यायालय के समक्ष कोई सबूत प्रस्तुत किया गया... अदालत ने पाया कि कंपनी की एच. आर. मैनेजर ने प्रतिवादी पर यह कहते हुए इस्तीफा देने का दबाव बनाया कि उसकी परफार्मेंस कमजोर है, लेकिन सिस्टम इंजीनियर अस्बर्ट गोंजाल्विस ने इस्तीफा नहीं दिया तो 31 अगस्त 2016 को उसकी सेवा समाप्त कर दी गई... 1 सितंबर 2016 को दफ्तर में उसके प्रवेश पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया।

इसलिए प्रतिवादी ने श्रम न्यायालय का रुख किया और नौकरी पर अपनी पुनः बहाली के लिए प्रार्थना करते हुए अवगत कराया कि उसकी सेवा-समाप्ति अवैध है... यह कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना किया गया है, इसलिए सेवा बहाली सहित उसको 1 सितंबर 2016 से पूर्ण बकाया वेतन भी मिलना चाहिए। अदालत ने याचिकाकर्ता के इस आरोप को मानने से इनकार कर दिया कि नोटिस पीरियड में प्रतिवादी ठीक से काम करने में विफल रहा अथवा उसने अनुमति के बिना छुट्टी का लाभ उठाया या फिर कई चेतावनियों के बावजूद उसके रवैए में कोई सुधार नहीं हुआ।

यहां बताना आवश्यक है कि अस्बर्ट गोंजाल्विस को नौकरी से तब निकाल दिया गया था, जब उसने 'डी. बी. कॉर्प लि.' से भारत सरकार द्वारा अधिसूचित मजीठिया अवॉर्ड की मांग की थी। बहरहाल, इस मुकदमे की सुनवाई के दौरान कंपनी का प्रयास था कि अस्बर्ट गोंजाल्विस को नौकरी पर पुनः रखने का आदेश ख़ारिज कर दिया जाए, परंतु मुंबई उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी के शपथ-पत्र में किए गए दावे के आधार पर कंपनी के वकील की मांग सिरे से ख़ारिज कर दी, जैसे- प्रतिवादी ने नौकरी ढूंढने की कोशिश की, लेकिन कलंकपूर्ण सेवा-समाप्ति के कारण उसे कहीं नौकरी नहीं मिली। इसलिए श्रम न्यायालय का यह आदेश उचित है कि कंपनी में साढ़े आठ साल तक की नौकरी कर चुके प्रतिवादी को बहाल करने सहित उसे उसका पिछला बकाया मिलना ही चाहिए। यही नहीं, माननीय जज अमित बोरकर ने पर्याप्त कानून न होने का हवाला देते हुए एरियर्स की राशि में संशोधन करने से भी इनकार कर दिया... और अपने आदेश की अंतिम पंक्तियों में कहा- 'श्रम न्यायालय द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों में कोई विकृति नहीं है, इसलिए याचिका में कोई दम नहीं है... रिट याचिका खारिज की जाती है।'