Wednesday 29 November 2017

मजीठिया: ‘दैनिक भास्कर’ के सुनील कुकरेती ने भी लगाया क्लेम

“डी बी कॉर्प लि.” द्वारा संचालित ‘दैनिक भास्कर’ समाचार-पत्र के प्रिंसिपल करेस्पॉन्डेंट धर्मेन्द्र प्रताप सिंह द्वारा मजीठिया वेज बोर्ड मामले में कंपनी को धूल चटाए जाने के बाद ‘भास्कर’ के मुंबई ब्यूरो में बागियों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। अपने बकाए की वसूली के लिए श्रम विभाग पहुंचने वालों में अब नया नाम जुड़ा है सुनील कुकरेती का, जो इस संस्थान में बतौर सीनियर रिपोर्टर कार्यरत हैं।
आपको बता दें कि धर्मेन्द्र प्रताप सिंह के बाद रिसेप्शनिस्ट लतिका चव्हाण और आलिया शेख ने भी बगावत का बिगुल बजाया था, जिसके परिणाम स्वरूप श्रम विभाग से कटी आरसी पर स्टे लेने के लिए ‘भास्कर’ प्रबंधन बॉम्बे हाई कोर्ट गया। इस पर न्यायालय ने जब आदेश दिया कि आरसी में उल्लेख की गई रकम की आधी धनराशि पहले कोर्ट में जमा की जाए, तब प्रबंधन ने माननीय सुप्रीम कोर्ट में जाकर हाई कोर्ट के इस आदेश को चुनौती दी। यह बात और है कि सुप्रीम कोर्ट से इन्हें बैरंग लौटना पड़ा… आखिर हाई कोर्ट के आदेश के मुताबिक, प्रबंधन ने सिंह और चव्हाण के साथ ही आलिया की आरसी का आधा पैसा माननीय अदालत में जमा करवा दिया है।
‘भास्कर’ प्रबंधन की हुई इस फजीहत का नतीजा यह हुआ है कि पहले जहां सिस्टम इंजीनियर ऐस्बर्ट गोंजाल्विस और ब्यूरो चीफ अनिल राही ने क्लेम लगाया, वहीं हालिया डेवलपमेंट को देखते हुए अब हिम्मत का परिचय सुनील कुकरेती ने दिया है… कुकरेती ने भी कंपनी के खिलाफ बगावत का झंडा उठा लिया है! जी हां, सुनील कुकरेती ने मुंबई के श्रम आयुक्त कार्यालय में 7 नवंबर, 2017 को 35 लाख रुपए का क्लेम लगा कर अपने बकाया की मांग की है, जिसके तहत कंपनी को नोटिस जारी हुआ और विगत 27 नवंबर से सुनवाई भी शुरू हो चुकी है। इस मामले की सुनवाई की अगली तारीख 15 दिसंबर है। यहां बताना आवश्यक है कि मजीठिया क्रांतिकारियों के संपर्क में ‘भास्कर’ के दो और कर्मचारी हैं, जो जल्द ही क्लेम लगाने जा रहे हैं। जाहिर है कि ‘भास्कर’ संस्थान में बागियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है तो देश के सबसे बड़े और विश्वसनीय अखबार में इन दिनों हड़कंप का माहौल है!

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्टिविस्ट
एनयूजे मजीठिया सेल समन्वयक
9322411335

Tuesday 28 November 2017

ठेका कर्मचारियों को भी मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ देना जरूरी


महाराष्ट्र के लेबर कमिश्नर ने अखबार मालिकों को दिया सख्‍त निर्देश

सभी अखबारों की होगी फिर से जांच


महाराष्ट्र के लेबर कमिश्नर द्वारा बुलाई गई त्रिपक्षीय समिति की बैठक में लेबर कमिश्नर यशवंत केरुरे ने अखबार मालिकों के प्रतिनिधियों को स्‍पष्‍ट निर्देश दिया कि आपको माननीय सुप्रिमकोर्ट के आदेश का पालन करना ही पड़ेगा। केरुरे ने कहा कि वेजबोर्ड का लाभ ठेका कर्मचारियों को भी देना अनिवार्य है। मुम्बई के बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्श के लेबर कमिश्नर कार्यालय में बुलाई गई इस बैठक में राज्यभर के विभागीय अधिकारियों को भी आमंत्रित किया गया था। इस बैठक में सवाल उठाया गया कि जस्टिस मजिठिया वेजबोर्ड के अनुसार अपने बकाये का क्लेम लगाने में मीडिया कर्मियों में डर का माहौल है। अखबार मालिक लोगों को परेशान कर रहे हैं। ट्रांसफर टर्मिनेशन कर रहे हैं। नौकरी से निकालने या पेपर बन्द करने की धमकी देकर सादे कागज पर साइन कराया जा रहा है। कई अखबार मालिक अपने समाचार पत्र के कर्मचारियों से त्यागपत्र लेकर नई कंपनी में ठेके पर ज्वाइन करा रहे हैं। कई अखबार मालिक अपने कर्मचारियों को डिजिटल में ज्वाइन करा रहे हैं। ये मुद्दा नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट महाराष्ट्र की पत्रकार प्रतिनिधि शीतल करंदेकर ने उठाया ।
इसपर लेबर कमिश्नर ने कहा कि मीडियाकर्मियों को घबराने की कोई जरूरत नही है। इसमे कोई संदेह नही होना चाहिए कि मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ मीडियाकर्मियों को नही मिलेगा। उन्हें इसका लाभ जरूर मिलेगा। माननीय सर्वोच्च न्यायालय का आदेश न मानने वालों के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना का मामला चलेगा। और जहां भी मीडियकर्मियोंको परेशान किया जा रहा है वे शिकायत करें। उन्होंने सभी अधिकारियों को निर्देश दिया कि ऐसे मामलों का तीन महीने में निस्तारण किया जाए।

एनयूजे महाराष्ट्र ने सभी अखबारों के फिर से सर्वे करने की मांग की जिसपर सहमति बनी। इसपर अखबार मालिकों के प्रतिनिधियों ने एतराज जताया और कहा कि फिर से जांच की कोई जरूरत नही है। इस दौरान ये मुद्दा भी उठा कि सखबार मालिक सरकारी विज्ञापन लेते समय खुद को नंबर वन का ग्रेड बताकर विज्ञापन लेते हैं जबकि मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिश लागू करते समय खुद का निचला ग्रेड बताते हैं। आयुक्त ने जनवरी तक सभी समाचार पत्रों की जॉच करने का आदेश दिया। इस जॉच की डेट सभी पत्रकार प्रतिनिधियों को भी बताने की मांग की गई जिसे आयुक्त ने मान्य कर लिया। इस अवसर पर बीयूजे के इन्दरजैंन ने फिक्सेशन सार्टिफिकेट प्रत्येक कर्मचारी को देने का निवेदन किया। इस अवसर पर एनयूजे महाराष्ट्र ने मांग की कि समिति के कई सदस्य बैठक में नही आते उनकी जगह मजीठिया के जानकार लोगों को सदस्य बनाया जाए।इस दौरान शीतल करंदेकर ने ये भी मुद्दा उठाया कि लेबर विभाग ने सुप्रीमकोर्ट को जो रिपोर्ट भेजी है उसमें कई अखबारों में दिखाया है कि इन अखबारों में मानिसना वेजबोर्ड की सिफारिश लागू है इसकी भी जांच कराई जाए। इस बैठक में लेबर डिपार्टमेंट के उपसचिव कार्णिक भी मौजूद थे।बैठक का संचालन ड्यूपीटी लेबर कमिश्नर बुआ ने किया।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आर टी आई एक्सपर्ट
एनयूजे महाराष्ट्र मजीठिया वेज बोर्ड समन्यवयक
9322411335

मजीठिया: सुप्रीम कोर्ट ने अखबार मालिकों को राहत देने से किया इनकार

आप भी देखिए सुप्रीम कोर्ट का नया ऑर्डर 



जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट अखबार मालिकों के खिलाफ सख्त होता जा रहा है। जी हां, सुप्रीम कोर्ट ने अखबार मालिकों के लिए दो सख्त आदेश दिए हैं… पहला तो यह कि उन्हें अपने कर्मचारियों को जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ देना ही पड़ेगा, भले ही उनका अखबार घाटे में हो। दूसरा, अखबार मालिकों को उन कर्मचारियों को भी मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक लाभ देना पड़ेगा, जो ठेके पर हैं। सुप्रीम कोर्ट के रुख से यह भी स्पष्ट हो चुका है कि जिन मीडियाकर्मियों को मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ चाहिए, उन्हें क्लेम लगाना ही होगा।
आपको बता दें कि मीडियाकर्मियों ने माननीय सुप्रीम कोर्ट का ध्यान जब इस ओर दिलाया कि लेबर कोर्ट में जाने पर बहुत टाइम लगेगा… वहां इस तरह के मामले में कई-कई साल लग जाते हैं, तब माननीय सु्प्रीम कोर्ट ने उन्हें एक और राहत दी। यह राहत थी लेबर कोर्ट को टाइम बाउंड करने की। सुप्रीम कोर्ट ने लेबर कोर्ट को स्पष्ट आदेश दे दिया कि वह 17 (2) से जुड़े सभी मामलों को वरीयता के आधार पर 6 माह में पूरा करे। इसके बाद कुछ मीडियाकर्मी फिर सुप्रीम कोर्ट की शरण में पहुंच गए और वहां गुहार लगाई कि मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार, अपना बकाया मांगने पर संस्थान उन्हें नौकरी से निकाल दे रहा है! इस पर सुप्रीम कोर्ट के विद्वान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने मीडियाकर्मियों का दर्द एक बार फिर समझा और आदेश दिया कि जिन लोगों का भी मजीठिया मांगने के चलते ट्रांसफर या टर्मिनेशन हो रहा है, ऐसे मामलों का भी निचली अदालत 6 माह में निस्तारण करे। इससे अखबार मालिकों ने मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार, बकाया मांगने वालों के ट्रांसफर / टर्मिनेशन की गति जहां धीमी कर दी, वहीं सुप्रीम कोर्ट द्वारा मीडियाकर्मियों का दर्द समझे जाने का असर यह हुआ कि अब निचली अदालतें भी नए ट्रांसफर / टर्मिनेशन के मामलों में मीडियाकर्मियों को फौरन राहत दे रही हैं।

यहां बताना यह भी आवश्यक है कि पिछले दिनों मुंबई में ‘दैनिक भास्कर’ की प्रबंधन कंपनी “डी बी कॉर्प लि.” के प्रिंसिपल करेस्पॉन्डेंट धर्मेन्द्र प्रताप सिंह, रिसेप्शनिस्ट लतिका चव्हाण और आलिया शेख के पक्ष में लेबर डिपार्टमेंट ने रिकवरी सर्टिफिकेट (आरसी) जारी किया था… कलेक्टर द्वारा वसूली की कार्यवाही भी तेजी से शुरू हो गई थी। हालांकि “डी बी कॉर्प लि.” ने इस पर बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंच कर आरसी पर रोक लगाने की मांग की, मगर हाई कोर्ट ने उनकी एक न सुनी और साफ शब्दों में कह दिया कि कर्मचारियों की जो बकाया धनराशि है, पहले उसका 50 फीसदी हिस्सा कोर्ट में जमा किया जाए। यह बात अलग है कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद “डी बी कॉर्प लि.” ने माननीय सु्प्रीम कोर्ट में पहुंच कर विद्वान न्यायाधीश रंजन गोगोई से गुहार लगाई कि हुजूर, हाई कोर्ट का पैसा जमा कराने का आदेश गलत है और इस पर तत्काल रोक लगाई जाए। लेकिन वहां इनका दांव उल्टा पड़ गया… गोगोई साहब और जस्टिस नवीन सिन्हा का नया आदेश एक बार फिर मीडियाकर्मियों के पक्ष में ‘ब्रह्मास्त्र’ बन गया है। असल में “डी बी कॉर्प लि.” को राहत देने से इनकार करते हुए उन्होंने ऑर्डर दिया कि हमें नहीं लगता कि हाई कोर्ट के निर्णय पर हमें दखल देना चाहिए। स्वाभाविक है कि इसके बाद मरता, क्या न करता? सो, जानकारी मिल रही है कि “डी बी कॉर्प लि.’ प्रबंधन ने बॉम्बे हाई कोर्ट में तीनों कर्मचारियों की आधी-आधी बकाया राशि जमा करवा दी है।

इससे साफ हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने यहां अखबार मालिकों के आने का रास्ता लगभग बंद कर दिया है। अब कोई भी मीडियाकर्मी अगर क्लेम लगाता है तो उसका निस्तारण भी जल्द होगा।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्टिविस्ट
एनयूजे मजीठिया सेल समन्वयक
9322411335

Tuesday 21 November 2017

IFWJ strongly condemns killing of Tripura journalist by policeman

New Delhi, 21st November: Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) has expressed shock and serious concern over the brutal killing of a senior journalist Sudip Dutta Bhowmik today near Agartala. He was a crime reporter of ‘Syandan Patrika’, a widely circulated Bengali daily of Agartala (Tripura). This is the second gruesome murder of a journalist in Tripura within two months. Last time on 20thSeptember a young TV journalist Shantanu Bhaumik was killed by some hoodlums in the presence of police force but this time a policeman himself went berserk and ripped the body of the journalist Sudip Dutta Bhowmik by pumping bullets from his  AK47 from his service gun.

With the murder of 54 year old Sudip Dutta Bhomik, the entire journalist community is horrified. According to the reports available from Debasish Majumder, the former Secretary of ‘Tripura Working Journalists Association’ (TWJA) and colleague of Sudip Dutta Bhowmik, he was killed 15 kms away from Agartala in the residential campus of Tripura State Rifles, where he had gone to meet Tapan Dev Barman, the Commandant of the Tripura State Rifles (STF).

IFWJ President B.V. Mallikarjunaiah and Secretary General Parmanand Pandey have asked the government to order an inquiry by the CBI into the unprovoked killing of the senior journalist. Any inquiry by the state government will not be acceptable because that is bound to be tainted and biased. IFWJ has also demanded that a monetary help of Rs. 50 lakh must be immediately given by the Chief Minister Manik Sarkar to the bereaved family members of the late journalist.

Parmanand Pandey
Secretary General-IFWJ

मजीठिया: ग्वालियर में पत्रिका को फिर झटका, दीपक यदुवंशी के ट्रांसफर पर कोर्ट ने लगाई रोक




राजस्थान पत्रिका को एक और तगड़ा झटका लगा है। जितेंद्र जाट के बाद दीपक यदुवंशी को लेबर कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। लेबर कोर्ट ने दीपक के ट्रांसफर पर रोक लगा दी है। दीपक ने प्रबंधन से मजीठिया वेजबोर्ड के तहत अपने हक का वेतन मांगा था, लेकिन अपनी आदत के तहत पत्रिका प्रबंधन दमन पर उतर आया। लेकिन, इस बार भी ग्वालियर के वकील नवनिधि पढ़रया देवदूत बनकर आए। नवनिधि जितेंद्र जाट के वकील भी हैं।

दीपक यदुवंशी की नियुक्ति राजस्थान पत्रिका प्रा. लि. में हुई थी। कुछ समय बाद उसे बिना बताए फोर्ट फोलियो (यह कंपनी पत्रिका ने कर्मचारियों को वेतनमान से महरूम रखने के लिए बनाई हुई है) में डाल दिया। जब दीपक ने कोर्ट में मजीठिया के लिए आवेदन लगाया तो प्रबंधन बौखला गया। दीपक का यह कहते हुए नागौर (राजस्थान) ट्रांसफर किया गया कि ग्वालियर में पत्रिका को फोर्ट फोलियो कंपनी के कर्मचारी दीपक की जरूरत नहीं है। नागौर में जरूर काम है, वहां चले जाओ। यानी सीधे-सीधे दमन।

प्रबंधन के ट्रांसफर को दीपक ने वकील नवनिधि के माध्यम से लेबर कोर्ट में चैलेंज किया। माननीय न्यायाधीश ने दीपक के ट्रांसफर पर रोक लगा दी है। दीपक को पुनः ज्वाइन कराने के आदेश दिए हैं।

डेढ़ माह पहले जितेंद्र जाट को भी प्रबंधन को पुनः ज्वाइनिंग देनी पड़ी थी (जितेंद्र को बिना कारण डेढ़ साल पहले बर्खास्त कर दिया गया था, जबकि वो ग्वालियर में चीफ रिपोर्टर के पद पर कार्यरत थे और वो मजीठिया वेतनमान के लिए सुप्रीम कोर्ट गए थे)। हद तो यह है कि जितेंद्र को ज्वाइनिंग के बाद संपादकीय कार्यालय के बजाय मशीन में एक छोटे से कमरे में बैठाया गया है। पहले दिन उन्हें समीक्षा के लिए कंप्यूटर दिया गया, जब जितेंद्र ने अच्छी समीक्षा कर दी तो दूसरे दिन कंप्यूटर हटा लिया गया।

जितेंद्र के बाद दीपक को कोर्ट से राहत मजीठिया वेतनमान के लिए लड़ रहे पत्रकारों और गैर पत्रकारों की बड़ी जीत है। प्रबंधन का शोषण उनके लिए चेतावनी भी है, जो आज चुप हैं और सहन कर रहे हैं। हो सकता है अगला नंबर आपका हो। शोषण के खिलाफ आवाज उठाएं, आज शांत रह गए तो आगे आने वाली पीढ़ियां आपको माफ नहीं करेंगी।

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मजीठिया: जाट की जीत से पत्रिका प्रबन्धन में जबरदस्त बौखलाहट, CCTV से रखी जा रही नजर 

http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/10/blog-post_10.html?m=1


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प्रिंट मीडिया कर्मी खफा, मीडिया में भाजपा का ग्राफ गिरा



पत्रकार बोले, मूडीज की रेटिंग सिर्फ छलावा

पत्रकारों पर अन्याय देख लोग बीजेपी से खफा


लखनऊ। उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में पत्रकारों ने एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ बिगुल फूंक दिया है, उन्होंने मोहल्लों और वार्डों में लोगों से मुलाक़ात कर मूडीज को बीजेपी का प्रोपेगेंडा बताया। कहा अगर सब कुछ सही है तो आपके व्यापार में बढ़त क्यों नहीं। लोगों ने स्वीकारा कि बीजेपी लोगों को छल रही है। असर अब दिखने लगा है। जनमानस बीजेपी के खिलाफ अब अपनी बात रख रहा है। लोगों ने पत्रकारों पर हो रहे अन्याय के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया। पत्रकारों की अपील पर लोग बीजेपी के खिलाफ वोट करने के मूड में है। लोग सपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों को समर्थन कर रही है। 

भाजपा की मीडिया कवरेज घटी

लगातार प्रिंट मीडिया कर्मियों पर हो रहे अत्याचार का असर अब साफ देखा जा सकता है। मीडिया कवरेज के नाम पर कांग्रेस, सपा को बीजेपी से ज्यादा स्थान मिल रहा है। प्रिंट मीडिया में काम करने वाले पत्रकारों की नाराजगी से प्रिंट, डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बीजेपी को काफी कम स्थान मिल रहा है। क़रीब 5 हजार पत्रकार मजीठिया वेज बोर्ड की मांग के चलते प्रिंट मीडिया से निकाले जा चुके हैं। और उनमें से ज्यादातर पत्रकार अब इलेट्रॉनिक मीडिया की ओर रुख कर चुके है।

कैसे हो रहा विरोध

उत्तर प्रदेश के पत्रकारों ने ‘भाजपा हराओ, मजीठिया पाओ’ नामक व्हाट्सएप ग्रुप तैयार किया है। लगातार 24 घंटे सक्रिय होकर इस ग्रुप में भाजपा को हराने की रणनीति तैयार की जा रही है। इस ग्रुप में दैनिक जागरण, अमर उजाला,  टाइम्स ऑफ इंडिया, हिन्दुस्तान और हिन्दुतान टाइम्स समेत कई बड़े अखबार के पत्रकार सदस्य हैं।

क्या है मामला

प्रिंट मीडिया में देश भर के पत्रकारों को मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वर्ष 2011 से वेतन मिलना था। देश भर के पत्रकार अपना वाजिब मेहनताना मांगते रहे लेकिन कंपनी मालिकों का दिल आज तक नहीं पसीजा। इसमें श्रम विभाग भी पूरी तरह अखबार मालिकों के साथ खड़ा दिखा। जिस पत्रकार ने मजीठिया वेज बोर्ड की मांग की उसे या तो नौकरी से निकल दिया गया या फिर इतना परेशान किया गया कि वह स्वतः नौकरी छोड़ने को मजबूर हो गया। उत्तर प्रदेश के करीब 50 हजार पत्रकारों ने अब अपनी मजीठिया वेज बोर्ड की मांग को लेकर भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

(साभार: http://shagunnewsindia.com)

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Saturday 18 November 2017

लोकमत को लगा तगड़ा झटका, नौकरी से निकाले गए 24 कर्मियों को वापस काम पर रखने का आदेश

महाराष्ट्र से प्रकाशित मराठी दैनिक लोकमत को तगड़ा झटका लगा है। 7 नवंबर को  नागपुर की इंडस्ट्रीयल कोर्ट नंबर 4 ने एक आदेश जारी कर लोकमत से निकाले गए 24 स्थायी कर्मचारियों को वापस काम पर रखने का निर्देश दिया है।

इस बारे में जानकारी देते हुए लोकमत श्रमिक संगठन के संजय येवले पाटिल ने बताया कि इंडस्ट्रीयल कोर्ट ने सभी 24 स्थायी कर्मचारियों को 4 सप्ताह के अंदर काम पर रखने का निर्देश कंपनी प्रबंधन को दिया है। बताते हैं कि लोकमत प्रबंधन ने 12 नवंबर 2013 को यूनियन की गोवा के एक पदाधिकारी को काम से निकाल दिया था जिसके बाद यूनियन के सदस्यों ने असहयोग आंदोलन शुरु कर दिया था और प्रबंधन के सामने शर्त रख दी कि या तो निकाले गए कर्मचारी को काम पर रखें, नहीं तो असहयोग आंदोलन जारी रहेगा। 

इसके बाद कंपनी प्रबंधन ने 15 नवंबर से 21 नवंबर 2013 के बीच यूनियन के कुल 61 लोगों को काम से निकाल दिया था। जिसमें 30 स्थायी कर्मचारी थे और बाकी 31 ठेका कर्मी थे। इन 30 स्थायी कर्मचारियों में से 24 ने इंडस्ट्रीयल कोर्ट की शरण ली।  कंपनी ने 21 नवंबर 2013 को ही एक दिन में 24 कर्मचारियों को निकाला  था। जिन लोगों को काम से निकाला गया था उसमें लोकमत श्रमिक संगठन के अध्यक्ष संजय येवले पाटिल, महासचिव चंद्रशेखर माहुले सहित  लगभग सारे पदाधिकारियों को निकाल दिया गया था। संजय येवले पाटिल के मुताबिक कंपनी ने 21 नवंबर 2013 को ही एक  प्रस्ताव लाकर पाॅकेट यूनियन बनाई। जिसमें सिटी संपादक गजानन जानभोर को अध्यक्ष बनाया गया। उसके बाद मशीन के सुपरवाईजर  प्रदीप कावलकर को जनरल सेक्रेटरी बनाया। और बाकी मैनेजरियल लोगो को पदाधिकारी बना दिया। उसके बाद इस यूनियन को इंडस्ट्रीयल कोर्ट में चैलेंज किया गया। जिसमें इंडस्ट्रीयल कोर्ट ने नई यूनियन को अवैध माना और पुरानी युनियन को मान्यता दी। ये युनियन आज भी बरकरार है।

लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने वाली कर्मचारियों की यूनियन ने अदालत से गुहार लगाई कि जिन लोगो को काम से निकाला गया है उनको वापस काम पर रखा जाए और बकाया वेतन दिलाया जाए, जिसके बाद  7 नवंबर को  नागपुर की इंडस्ट्रीयल कोर्ट नंबर 4 के विद्वान न्यायाधीश श्रीकांत के देशपांडे ने  लोकमत से निकाले गए 24 स्थायी कर्मचारियों को वापस काम पर रखने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा है या तो इन 24 लोगो को वापस नौकरी पर रखा जाए, नहीं तो जब से इनको काम से निकाला गया है तब से  मामले के निस्तारण तक उनको इनके वेतन का 75 प्रतिशत प्रत्येक माह वेतन दिया जाए।

फिलहाल कंपनी को कर्मचारियों ने 8 नवंबर को कंपनी में ज्वाइनिंग कराने के लिए पत्र तो दे दिया है, लेकिन लोकमत प्रबंधन के पास अभी चार सप्ताह का समय है कि वह क्या करेगी। इन कर्मचारियोे को ज्वाईन कराएगी या घर बैठे जबतक मामले का निस्तारण नहीं होता तब तक 75 प्रतिशत हर माह वेतन देगी। फिलहाल इस मुद्दे पर लोकमत श्रमिक यूनियन मुंबई उच्च न्यायालय की शरण में भी जा रही है कि या तो हमें ज्वाईन कराया जाए, नहीं तो केस के निस्तारण तक हमें पूरा वेतन दिया जाए। क्योकि हम 21,11,2013 से काम पर ही है और ऐसे में हमें पूरा वेतन पाने का अधिकार है। इसमें पत्रकार,ग़ैरपत्रकार शामिल हैं। 

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न path का प्रयोग करें  https://goo.gl/tJASjq


शशिकांत सिंह  
पत्रकार और आरटीआई एक्सपर्ट  
९३२२४११३३५

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HAIL THE HEROES ! 

http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/11/all-india-newspaper-employees.html


पेंशन इजाफे के लिए पीएफ कमिश्‍नर के समक्ष दावा वक्‍त का तकाजा

सुप्रीम कोर्ट ने सिविल अपील 10013-10014 ऑफ 2016 पर 4 अक्‍टूबर 2016 को दिया है आदेश
मजीठिया की मारामारी के इस दौर में यदि कोई मीडिया कर्मी पेंशन की बात करने लगे तो मीडिया सर्कल का बहुतायत आंखें तरेरने से गुरेज नहीं करेगा। वह सवालिया लहजे में तानेबाजी पर भी उतर जाए तो कोई असहज बात नहीं होगी। क्‍योंकि मजीठिया वेजबोर्ड की सिफरिशों पर किसी भी रूप में अमल नहीं हुआ हैमैनेजमेंट से इसके लिए जारी जंग अभी तक किसी मुकाम पर नहीं पहुंची हैऔर इसी दरम्‍यान कुछ लोग पेंशन का राग अलापने लगे हैं। निश्चित ही, यह प्रतिक्रिया स्‍वाभाविक होगी। वह क्‍यों पेंशन की मगजमारी में फंसेगा जिसे अब तक या इससे पहले कभी भी इतनी सेलरी-वेतन-पगार-मजदूरी नहीं मिली जिससे वह एक निश्चिंत जीवनयापन की कल्‍पना भी कर सके। वह तो ऐसे हालात में जीता है कि मिले-अर्जित मेहनताने से किसी तरह जीने की अनिवार्य वस्‍तुओं को हासिल कर पाता है। वह इसी उधेड़बुन में रहता है कि कब पगार की तिथि आए और सांसों को सहज ढंग से चलाने का सामान जुटा पाए। सेलरी राशि कब फुर्र हो जाती हैपता ही नहीं चलता।

बिल्‍कुल ठीक बात है, पेंशन की उम्‍मीद में मीडिया की जॉब करने नहीं कोई आता। चंद लोग मिशन के तहत और ज्‍यादातर चकाचौंध में उलझकर मीडिया की नौकरी में आते हैं। आने पर पता चलता है कि यहां कितनी अनिश्चितता हैकितनी उहापोह हैकितना शोषण हैकितना उत्‍पीड़न हैऔर कितना सीनियर्स-मैनेजमेंट-मालिकान की दादागिरी-गुडागर्दी है। बावजूद इसकेअनंतर में मीडिया जॉब एक चस्‍केएक आदतएक उन्‍माद की तरह हावभाव-व्‍यवहारयहां तक कि सोच में समा जाता है। इसकी परिणति क्‍या होती हैमीडिया कर्मीया कहें टंकणकार-कलमकार बखूबी जानते हैं। क्षमा याचना के साथ कहना चाहूंगा कि वे सबको उनके कर्तव्‍यअधिकार की सीख-नसीहत देते हैंपर खुद के अधिकारों-कर्तव्‍य से तकरीबन अनजान रहते हैं। या इस जानकारी को गंभीरता से लेने में अपनी तौहीन सकझते हैं।  हो सकता है पेंशन की चर्चाइसी वजह से उन्‍हें यहां अनुपयुक्‍त लगे। लेकिन है यह एक परम सत्‍य।

पेंशन स्‍कीम 1995 में अस्तित्‍व में आई थी जिसका नाम है इम्‍प्‍लाईज पेंशन स्‍कीम 1995। पब्लिक सेक्‍टर में पेंशन स्‍कीम बहुत पहले ही आ गई थी। जिसका सुख उन समस्‍त कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद मिलने लगता था जो सरकारी जॉब में थे ( सरकारी क्षेत्र में पेंशन अभी भी है लेकिन ढलान पर है। पेंशन को समाप्‍त कर देने की प्रक्रिया सरकार ने नियोजित रूप से शुरू कर दी है )। लेकिन निजी क्षेत्र में यह योजना लंबी जद़दोजहद के बाद 1995 में अस्तित्‍व में आई। मीडिया भी निजी क्षेत्र का एक अहम हिस्‍सा है इसलिए इसमें पेंशन स्‍कीम लागू है। इसका लाभ उन मीडिया संस्‍थानों के तमाम कर्मचारी उठा रहे हैं जो लंबी सेवा के बाद रिटायर हो चुके हैं। चूंकि ढेरों मीडिया संस्‍थान ऐसे हैं जहां कोई नियम-कायदालेबर एक्‍ट- जर्नलिस्‍ट एवं नॉन जर्नलिस्‍ट इम्‍प्‍लाई एक्‍ट अमल में ही नहीं हैया लागू ही नहीं किया गया हैया मालिकान-मैनेजमेंट इन्‍हें फालतू की चीज मानता है और मीडिया कर्मचारियों को उस संस्‍थान के खुद के बनाए नियम-कानूनों से संचालित किया जाता है और मनमाने ढंग से पगार दी जाती है, इसलिए पेंशन सरीखी अहम चीज कर्मचारियों के जहन में कभी आती ही नहीं। इन संस्‍थानों में तकरीबन यूज एंड थ्रो पॉलिसी चलती है और कर्मचारियों का सारा वक्‍त जीविकोपार्जन का आधार बचाए रखने व नया ठांव ढूंढते रहने में ही निकल जाता है।

लेकिन जिन मीडिया संस्‍थानों में कुछ हद तक कायदे से कामकाज चलता हैपहले के वेज बोड़र्स की संस्‍तुतियां लागू होती रही हैं और नए वेजबोर्ड मजीठिया वेजबोर्ड की संस्‍तुतियों को लेकर जागरूकता पूवर्वत हैवहां पेंशन को लेकर भी अवेयरनेस में कोई कमी नहीं आई है। कहें कि इस जागरूकता में पहले के मुकाबले कई गुना ज्‍यादा इजाफा हुआ है। प्रमाण है इंडियन एक्‍सप्रेस इंप्‍लाईज यूनियन चंडीगढ़ की ओर से रीजनल प्रॉविडेंट फंड कमिश्‍नरचंडीगढ़ को 30 जून 2017 को ज्ञापन सौंपा जाना और माननीय सुप्रीम कोर्ट के 4 अक्‍टूबर 2016 के आदेश के मुताबिक पेंशन राशि में इजाफा किए जाने की मांग उठाना। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि प्रॉविडेंट फंड कमिश्‍नर को सीलिंग के दायरे से बाहर निकल कर कर्मचारियों को मिल रही तात्‍कालिक बेसिक सेलरी के आधार पर पेंशन फंड में धनराशि उपलब्‍ध होने व रिटायर्ड कर्मचारियों को उसी के अनुसार पेंशन मुहैया होना सुनिश्चित कराने का बंदोबस्‍त करना चाहिए। बता दें कि इस बाबत प्रॉविडेंट फंड महकमे ने कार्य्रवाही प्रारंभ कर दी है। उसने 23 मार्च 2017 को अपने समस्‍त रीजनल पीएफ कमिश्‍नरों को आंतरिक सर्कुलर जारी कर दिया है।

इस सर्कुलर के मुताबिक पीएफ कमिश्‍नर्स को निर्देश है कि सीलिंग (बेसिक सेलरी रु 5000 या रु 6500) से ऊपर उठकर उस बेसिक सेलरी से पेंशन फंड में धनराशि (मैनेजमेंट एवं कर्मचारी दोनों का शेयर) जमा कराने का बंदोबस्‍त करें जो मौजूदा समय में मिल रही हैया मिलने वाली है (मजीठिया वेजबोर्ड अवॉर्ड के संदर्भ में)। निजी क्षेत्र में बहुत सी कंपनियां है जहां मोटी सेलरी मिलती हैलेकिन वहां भी पेंशन की बाबत सीलिंग की सीमा रेखा यथावत है। यहां भी पेंशन का निर्धारण सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार होना चाहिए। इसकी डिमांड उसी तरह उठनी चाहिएउसी तरह प्रयास होना चाहिएजैसा इंडियन एक्‍सप्रेस इंप्‍लाईज यूनियन ने किया है। खासकर मीडिया कर्मचारियों को इस दिशा में भी सक्रिय प्रयास करना चाहिए और भरपूर जानकारी भी हासिल करनी चाहिए। मजीठिया वेजबोर्ड की संस्‍तुतियों के अनुसार सेलरी व अन्‍य सुविधाएं पाने की जंग सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट-आदेश के आलोक में वैसे ही अंतिम पड़ाव पर पहुंचने की ओर अग्रसर है और इसी के साथ पेंशन राशि में इजाफे का बंदोबस्‍त भी होता चले बहुत अच्‍छा होगा। क्‍योंकि ऐसे मीडिया कर्मियों की कमी नहीं है जो या तो रिटायर हो गए हैंया रिटायर होने की कगार पर हैं।

यह हकीकत अर्सा पहले नुमायां हो चुकी है कि मजीठिया की जंग पहली बार पूरा मीडियाखासकर प्रिंट मीडिया जगत लड़ रहा है। इसमें ज्‍यादा तादाद उन कर्मचारियों की है जो पहली बार इतनी सेलरी पाएंगे जिससे जीवनयापन विकटता से तकरीबन मुक्‍त हो सकेगा। इसमें नियमित कर्मचारी शामिल हैं ही, ठेके और अंशकालिक कर्मी भी शामिल हैं। आउटसोर्सिंग कर्मचारी भी इस परिधि से बाहर नहीं हैं। ऐसे में बहुत ही सचेत ढंग से पेंशन फंड में अपने एवं मैनेजमेंट के कंट्रीब्‍यूशन में बढ़ोत्‍तरी करनी-करवानी होगी ताकि बढ़ी उम्र में जीवनयापन के लिए भटकने से निजात मिल सके। इतनी पेंशन मिले जिससे दाल रोटी आसानी से मिल सके। हांमजीठिया वेजबोर्ड रिपोर्ट में दर्ज क्‍लासिि‍फकेशनउसके हिसाब से बनती बेसिक सेलरी के प्रति ध्‍यान रखना जरूरी है हीवैरिएबल पे पर भी नजर गड़ाए रखना अनिवार्य है। अन्‍यथा उसी तरह की मुश्किल से दो-चार होना पड़ सकता है जिससे इंडियन एक्‍सप्रेस कर्मचारी हो रहे हैं। एक्‍सप्रेस मैनेजमेंट वैरिएबल पे को बेसिक का पार्ट मान ही नहीं रहाजबकि 19 जून 2017 के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि वैरिएबल पे बेसिक सेलरी का हिस्‍सा है। इस बाबत कोर्ट ने छठे पे कमीशन रिपोर्टमें किए गए ग्रेड पे प्रावधान का हवाला दिया है। मतलबवैरिएबल पे ग्रेड पे की मानिंद बेसिक का पार्ट है।

इसलिए मजीठिया रिकमेंडेशन के आधार पर सेलरी मांगने-लेने के साथ ही बढ़ी हुई पेंशन का प्रावधान करने-करवाने के लिए पीएफ कमिश्‍नर के समक्ष दावा पेश करना वक्‍त का तकाजा है।
(भूपेंद्र प्रतिबद्ध)
चंडीगढ़
9417556066  

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Tuesday 14 November 2017

मजीठिया: सुप्रीम कोर्ट ने दैनिक भास्कर प्रबंधन को राहत देने से किया इनकार

धर्मेन्द्र प्रताप सिंह, लतिका चव्हाण और आलिया शेख के मामले में भास्कर प्रबंधन को लगा झटका

जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में मुंबई उच्च न्यायालय के एक आदेश के विरुद्ध माननीय सुप्रीम कोर्ट गए दैनिक भास्कर (डी बी कॉर्प लि.) अखबार के प्रबंधन को सुप्रीम कोर्ट ने राहत देने से इनकार करते हुए उसे वापस मुंबई उच्च न्यायालय की शरण में जाने के लिए मजबूर कर दिया है। यह पूरा मामला मुंबई में कार्यरत दैनिक भास्कर के प्रिंसिपल करेस्पॉन्डेंट धर्मेन्द्र प्रताप सिंह संग मुंबई के उसी कार्यालय की रिसेप्शनिस्ट लतिका आत्माराम चव्हाण और आलिया इम्तियाज़ शेख की मजीठिया वेज बोर्ड मामले में जारी रिकवरी सर्टीफिकेट (आरसी) से जुड़ा हुआ है… पत्रकार सिंह और रिसेप्शनिस्ट चव्हाण व शेख ने मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट उमेश शर्मा के मार्गदर्शन एवं उन्हीं के दिशा-निर्देश में कामगार आयुक्त के समक्ष 17 (1) के तहत क्लेम लगाया था।
कामगार आयुक्त कार्यालय में यह सुनवाई पूरे एक साल तक चली, जब कंपनी की एचआर टीम ने अपने वकील के जरिए वहां तरह-तरह के दांव-पेंचों का इस्तेमाल किया… यहां तक कि धर्मेन्द्र प्रताप सिंह का सीकर (राजस्थान) और लतिका चव्हाण का मुंबई से काफी दूर सोलापुर (महाराष्ट्र) ट्रांसफर भी कर दिया गया था! इसके विरुद्ध सिंह को इंडस्ट्रियल कोर्ट से स्टे मिल गया, तब भी कंपनी ने उन्हें दफ्तर में लेने में आनाकानी की तो उन्होंने लेबर कोर्ट में अवमानना का मुकदमा दायर कर दिया… दैनिक भास्कर ने अब उन्हें पुन: दफ्तर में एंट्री दे दी है। बहरहाल, लेबर ऑफिस में बकाए के मामले की चली लंबी सुनवाई के बाद सहायक कामगार आयुक्त नीलांबरी भोसले ने 6 जून को ऑर्डर और 1 जुलाई, 2017 को डी बी कॉर्प लि. के खिलाफ आरसी जारी करते हुए वसूली का आदेश मुंबई के जिलाधिकारी को निर्गत कर दिया था।
इस आदेश के बाद डी बी कॉर्प ने मुंबई उच्च न्यायालय में फरियाद लगाई तो उच्च न्यायालय ने 7 सितंबर, 2017 को आदेश जारी किया कि डी बी कॉर्प प्रबंधन सर्वप्रथम वसूली आदेश की 50-50 फीसदी रकम कोर्ट में जमा करे। मुंबई उच्च न्यायालय के इसी आदेश के खिलाफ डी बी कॉर्प प्रबंधन सुप्रीम कोर्ट गया था, जहां उसे मुंह की खानी पड़ी है… सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी प्रबंधन को राहत देने से इनकार करते हुए वापस मुंबई हाई कोर्ट जाने को विवश कर दिया। इसके बाद कंपनी की ओर से 25 अक्टूबर को मुंबई उच्च न्यायालय को सूचित कर प्रार्थना की गई है कि वह धर्मेन्द्र प्रताप सिंह, लतिका चव्हाण और आलिया शेख के बकाए की 50-50 फीसदी राशि आगामी 6 सप्ताह के अंदर जमा कर देगी… यह राशि क्रमश: 9 लाख, 7 लाख और 5 लाख है। ज्ञात रहे कि आरसी मामले में जिलाधिकारी द्वारा वसूली की प्रक्रिया बिल्कुल उसी तरह की जाती है, जैसे जमीन के बकाए की वसूली की जाती है… इसमें कुर्की तक की कार्यवाही शामिल है! मुंबई उच्च न्यायालय में इस मामले की सुनवाई जस्टिस एस जे काथावाला के समक्ष चल रही है, जबकि उनके समक्ष इन तीनों का पक्ष वरिष्ठ वकील एस पी पांडे रख रहे हैं।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्टिविस्ट
9322411335


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यूपी निकाय चुनाव में भाजपा को हरवाने में जुटे पत्रकार

पत्रकारों ने चलाया अभियान, मजीठिया नहीं तो भाजपा को वोट नहीं

कांग्रेस औऱ सपा के समर्थन में खड़े हुए कलम के सिपाही


लखनऊ। उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में इस बार पत्रकारों की नाराजगी भाजपा के लिए भारी पड़ सकती है। पत्रकारों के मजीठिया वेज बोर्ड के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 6 माह के टाइम बाउंड फैसला आने के बाद भी उत्तर प्रदेश का श्रम विभाग और श्रम न्यायालय पत्रकारों के प्रति सौतेला व्यवहार कर रहा है। अपनी जायज मांगों को पूरा न होता देख पत्रकारों ने भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
वर्तमान में उत्तर प्रदेश में करीब 50 हजार पत्रकार मजीठिया वेज बोर्ड की मांग कर रहे हैं। जिनमे क़रीब 5 हजार पत्रकार मजीठिया वेज बोर्ड की मांग के चलते प्रिंट मीडिया से निकाले जा चुके हैं। और उनमें से ज्यादातर पत्रकार अब इलेट्रॉनिक मीडिया की ओर रुख कर चुके है।

कैसे हो रहा विरोध
उत्तर प्रदेश के पत्रकारों ने ' भाजपा हराओ, मजीठिया पाओ' नामक व्हाट्सएप ग्रुप तैयार किया है। लगातार 24 घंटे सक्रिय होकर इस ग्रुप में भाजपा हराने की रणनीति तैयार की जा रही है। इस ग्रुप में दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिन्दुतान, टाइम्स ऑफ इंडिया, हिन्दुस्तान और हिन्दुतान टाइम्स समेत कई बड़े अखबार के  पत्रकार सदस्य हैं।

क्या है मामला
प्रिंट मीडिया में देश भर के पत्रकारों को मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वर्ष 2011 से वेतन मिलना था। देश भर के पत्रकार अपना वाजिब मेहनताना मांगते रहे लेकिन कंपनी मालिकों का दिल आज तक नहीं पसीजा। इसमें श्रम विभाग भी पूरी तरह अखबार मालिकों के साथ खड़ा दिखा। जिस पत्रकार ने मजीठिया वेज बोर्ड की मांग की उसे या तो नौकरी से निकल दिया गया या फिर इतना परेशान किया गया कि वह स्वतः नौकरी छोड़ने को मजबूर हो गया। उत्तर प्रदेश के करीब 50 हजार पत्रकारों ने अब अपनी मजीठिया वेज बोर्ड की मांग को लेकर भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

वरिष्ठ पत्रकारों ने सराहा
लखनऊ समेत पूरे प्रदेश भर के पत्रकारों ने पत्रकारों की इस पहल की सराहना की है। पत्रकारों के संगठन यूपी प्रेस क्लब, जर्नलिस्ट एसोसिएशन, उपजा, मानवाधिकार प्रेस संगठन,  मजीठिया समिति आदि सभी ने एक सुर में भाजपा के इस सौतेले व्यवहार की निंदा की है।

(मजीठिया क्रांतिकारी ग्रुप से)

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मजीठिया: एचटी मैनेजमेंट को झटका, उप सचिव ने लेबर कोर्ट रेफर किया क्लेम

एचटी मैनेजमेंट को सोमवार को जोर का झटका लगा। मजीठिया  मामले मे  उप सचिव श्रम के यहां चल रही सुनवाई मे उपस्थित नही  होने वाले प्रबंधन के वकील तब कोर्ट पहुंचे जब उप सचिव श्रम विभाग  ने मामले को लेबर कोर्ट  रेफर कर दिया था। लगभग आठ महीने से चल रही सुनवाई मे कोई कंपलायन्स नही देने वाले प्रबंधन की बेचैनी देखने लायक थी।

एचटी ग्रुप के  एचआर डायरेक्टर राकेश गौतम दो बार खुद उपस्थित हुए और दोनो ही बार उनके तेवर ऑथॉरिटी के अधिकार को चुनौती जैसे ही रहे।
पटना से दिनेश सिंह

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HAIL THE HEROES !

Fight against oral termination of a contract worker
Leads to dismissal of 65 permanent employees including eight journalists !

65 employees in Maharashtra sacked for two days mass leave in “Lokmat”and “Lokmat Samachar”and “Lokmat Times!!
In Four years continuing complex legal battle Industrial Tribunal orders reinstatement of 24 employees failing which monthly payment @ 75%  of the last salary drawn !!

ALL ATTEMPTS TO CRUSH THE UNION FOILED !!!

The premier trade union of newspaper employees in Nagpur has membership in the leading chain of newspapers “Lokmat”(Marathi), “Lokmat Samachar” (Hindi) and “Lokmat Times” (English) spread throughout Maharashtra.  It is significant to note that even journalists are members of the Union.  It has a branch of the union at Goa too.  One Shri        who is working on contract basis was elected President of the Goa Unit.

Immediately after the Unit was formed at Goa, the Vice President (HR) Shri Balaji Mule visited Goa and asked Shri Manoj Ingulwar  to immediately resign from the union failing which his contract will not be renewed and he will be removed from service.  Shri Ingulwar refused to resign from the union and hence he was dismissed from service on 12.11.2013.

The office bearers of the union at Head Office Nagpur took up the issue with the top management of the Lokmat and requested for immediate reinstatement of Shri Ingulwar   the President of Goa Unit of the Union but the management refused.  It put the condition that all the industrial disputes filed by the union should be withdrawn unconditionally and only then the workman will be taken back.  Further the management also wanted the union to give an undertaking that it will not file any industrial disputes against the management in future.  That because of this adamancy and anti-labour attitude of the management the employees throughout Maharashtra went on two days mass leave which resulted in dismissal of 65 employees, including eight journalists, on 21.11.2013 throughout the State of Maharashtra.

That as demands of the Union regarding reclassification of the newspaper establishment under Palekar Award and under Bachawat Award  along with seven other demands regarding leave etc., were pending before the Industrial Tribunal, Nagpur, the management was required to take approval of the Industrial Tribunal for the impugned dismissal of the employees.  The application for approval was made by the management on the same day viz., 21.11.2013.

​In order to crush the Union, the management with the help of its cronies called a general meeting of all the employees – who are not members of the union – and elected new set of office bearers and on the basis of such a fraud filed a fraudulent agreement before the Industrial Tribunal stating that in pursuance of the said agreement all the pending References filed by the Union have been withdrawn as settled.  That a request was made to the Tribunal for passing an Award in terms of such settlement.

​The Union challenged the alleged “bogus” election and got a stay on the same.  The matter went to the High Court and the matter was decided in favour of the Union and its present office bearers.  That as a result of the same, the approval proceedings initiated by the management before the Industrial Tribunal were saved and were required to be continued.

​In order to delay the proceedings, the management examined 118 witnesses and the union examined 24 witnesses.  A large number of documents were filed, detailed arguments, both written and oral, were advanced.  However, the Industrial Tribunal on a technical ground refused to pass order on merit as according to it the employer employee relationship was disputed. Both the parties took the matter to the High Court and the High Court remanded the matter for being decided by the Industrial Tribunal within six months.  The matter was again argued and when the it was fixed for judgment, again, in order to frustrate the decision, the management now withdrew its original application seeking approval of dismissal.

​Thus the net result of the withdrawal of application for grant of approval to the impugned dismissal dated 21.11.2013, is the dismissal is without approval of the Industrial Tribual.  Therefore, the Union filed proceedings under Sectin 33A of the Industrial Disputes Act, 1947 and also sought interim relief of being reinstated or alternately being paid full wages pending final decision in the matter of application under Section 33A of the Industrial Disputes Act, 1947.  The Industrial Tribunal, Nagpur, by its interim order dated 7.11.2017 directed the management to reinstate the 24 employees, most of whom are principal office bearers of the Union, or alternately pay them 75% of the last drawn wages, pending final decision in the matter.

​Shri S.D. Thakur, Advocate, Legal Advisor of the Union who also happens to be the President of the AINEF, conducted the matter throughout and will be dealing with the same hence forth too.



COMING SHORTLY
ANOTHER GOOD NEWS
FOR EMPLOYEES OF “LOKMAT’’
GROUP OF NEWSPAPERS

The Lokmat Shramik Sanghatana, Nagpur, had raised demand on 13.6.1997 for reclassification of Lokmat Group of Newspapers as under :

W.E.F.  ​Class​Gross Revenue (Palekar Award)

1.10.1979​III​Gross revenue was more than one Crore ​
But less than two Crores.

1.10.1982​ II​Gross revenue was more than two Crores
​But less than four Crores.

1.10.1985  I​Gross revenue was more than four Crores
But less than 10 Croes.

Gross Revenue (Bachawat Award)

1.1.1988​III​Gross revenue was more than 10 Crores
​But less than 20 Crores.

1.1.1991​ II​Gross revenue was more than 20 Crores
​But less than 50 Crores.

1.1.1994​  I​Gross revenue was more than 50 Crores
1.1.1997​ IA​Gross revenue was more than 100 Crores
Though the conciliation proceedings in regard to the same failed on 27.5.1999 the State Government refused to make reference of the same to the Industrial Tribunal for adjudication.  The said decision of the State Government was then challenged by the Union in the High Court and in the High Court, the State Government agreed to make reference of the demand for adjudication and accordingly on 6.2.2000 the matter came before the Industrial Tribunal, Nagpur, for adjudication.

That after prolonged litigation wherein management filed 366 affidavits of employees to the effect that they have received all the benefits of Palekar Award and Bachawat Award and Majithia Award and hence they have no claims about the same against the management to demonstrate that every body has been paid correctly as per the Awards.

In the evidence led by the management it was clear that nobody was able to show and demonstrate that the newspapers have been correctly classified to show that the employees have been paid correct wages as per the Awards.

The management was directed by the Industrial Tribunal to file its Balance Sheets which order of the Tribunal was challenged by the Management in the High Court.  The High court by order dated 1.12.2006 dismissed the Writ Petition of the management and directed it to file the balance sheets within four weeks which it did not do till today.

The matter was argued on merits on 9.11.2017 by the Counsel of the Union and the management’s arguments will be heard on the 16.11.2017.  As the things stand, before the end of 2017 we should have an affirmative award in our favour.  Wait for the good news!

S.D. Thakur, Advocate​ 
President
advthakursd@gmail.com
(M) 094221 46995. ​​

V. Balagopalan
General Secretary
​​balagopalanv1@gmail.com
(M) 095441 81188.
ALL INDIA NEWSPAPER EMPLOYEES FEDERATION
(A composite union of Journalists & Non-journalist employees)
Flat No.29, Shankar Market, Connought Circus, New Delhi 110 001.



Friday 10 November 2017

मजीठिया मांगने पर विधायक जी ने क्राइम रिपोर्टर को अखबार के ऑफिस में घुसने से रोका


मामला पहुंचा पुलिस स्टेशन

खुद को उत्तर भारतीयों का रहनुमा समझने वाले भाजपा विधायक और हमारा महानगर अखबार के मालिक आर एन सिंह के अखबार में उत्तर भारतीय कर्मचारियों का सबसे ज्यादा शोषण किया जा रहा है। इस अखबार के सीनियर रिपोर्टर (क्राइम) के के मिश्रा को विधायक जी के पालतू गार्ड हमारा महानगर के दफ्तर में पिछले कुछ दिनों से नही घुसने दे रहे है। कृष्णकांत सभापति मिश्रा उर्फ के के मिश्रा की गलती सिर्फ इतनी है कि उन्होंने विधायक जी से माननीय सुप्रीमकोर्ट के आदेशानुसार मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार अपने वेतन वृद्धि की मांग कर ली। हमारा महानगर के अखबार मालिक और भाजपा विधायक आर एन सिंह को ये बात इतनी नागवार गुजरी की उन्होंने अपनी निजी सुरक्षा कंपनी के गार्डो को हिदायत दे दी कि के के मिश्रा को  किसी भी तरह से ऑफिस में घुसने मत दो। के के मिश्रा इस अखबार में कुछ समय तक काम करने के बाद त्यागपत्र थमाकर दूसरे अखबार में चले गए थे। मगर 2015  में अखबार मालिक आर एन सिंह ने फोन कर के के मिश्रा को वापस बुलाया और भरोसा दिया था कि अच्छा भुगतान किया जाएगा। मगर हुआ उल्टा। फिलहाल के के मिश्रा को विधायक जी के आदेश पर ऑफिस में नही आने दिया जा रहा है। जिसके बाद के के मिश्रा ने  9 नवंबर 2017 को पुलिस स्टेशन में और कामगार विभाग में विधायक जी के खिलाफ शिकायत की है। के के मिश्रा के इस कदम से हमारा महानगर प्रबंधन में हड़कम्प का माहौल है।


शशिकांत सिंह

पत्रकार और आर टी आई एक्सपर्ट

9322411335

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मजीठिया: सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सुनामी असर

तीन महीने के अंदर ट्रांसफार्मर मामले में सुनवाई करने का निर्देश
श्रम विभाग ने लेबर कोर्ट को दिया निर्देश
मामला दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार पंकज कुमार के गया से जम्मू तबादला का
सुप्रीम कोर्ट ने छह महीने के अंदर ट्रांसफार्मर और टर्मिनेशन के मामले को निष्पादित करने का दे रखा है आदेश

गया। बिहार सरकार ने राज्यपाल की शक्तियों का प्रयोग करते हुए आद्यौगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा- 10 की उप धारा( 2-ए ) के तहत प्रबंधन, मेसर्स जागरण प्रकाशन लिमिटेड, c -5, c -6 & 15 इंडस्ट्रीयल एरिया, पाटलिपुत्र, पटना एवं उनके कामगार पंकज कुमार पिता स्व. गिरिनदर मोहन प्रसाद, मुहलला पितामहेशवर थाना सिविल लाइन, के जिला गया के बीच विवाद को न्याय निर्णायाथ निर्देशित करना वांछित मानते हुए श्रम न्यायालय डालमिया नगर को न्याय निरणायरथ करने का निर्देश दिया है।

पंकज कुमार दैनिक जागरण के गया यूनिट के वरिष्ठ पत्रकार हैं। पंकज कुमार को प्रबंधन ने पिछले साल पहले मौखिक आदेश से 1 march को पटना ट्रान्सफर कर दिया। फिर जम्मू। पंकज कुमार जागरण के बिहार में स्थापना काल से जुड़े हुए हैं। पिछले साल पंकज कुमार गम्भीर रूप से बीमार हो गए। हर्ट और प्रोस्टेट ग्रंथि के सर्जरी से पीड़ित थे। पंकज कुमार ने अपनी गम्भीर बीमारी एवं आर्थिक स्थिति के मद्देनजर प्रबंधन से मजीठिया वेजबोर्ड की अनुशंसा के आलोक में वेतन और अन्य सुविधाएं देने की मांग की। जिसके कारण पहले पटना और फिर जम्मू तबादला कर दिया गया। प्रबंधन ने प्रताड़ित करने के लिए पंकज कुमार के October और November महीने के वेतन में 21 दिनों की कटौती कर दी। जबकि पंकज कुमार का 92 दिनों का उपार्जित अवकाश देय था।

पंकज कुमार ने श्रमायुक्त के समक्ष पिछले साल 20 march को अपने ट्रान्सफर और मजीठिया वेजबोर्ड की अनुशंसा के आलोक में एरियर भुगतान की मांग की। प्रबंधन के तुगलकी फरमान के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर और एरियर भुगतान की मांग को लेकर दो रिट याचिका दायर की। पटना हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य कार्यकारी न्यायाधीश नागेन्द्र राय साहब ने पंकज कुमार को न्याय दिलाने के लिए  सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखा।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रंजन गोगोई एवं नवीन सिन्हा की खंडपीठ ने रिट याचिका 330/17की सुनवाई करते हुए ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ट्रान्सफर और टर्मीनेशन के मामले को छह महीने के अंदर श्रम आयुक्त और श्रम न्यायालय निष्पादित करे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बिहार सरकार का श्रम विभाग लम्बित मजीठिया वेजबोर्ड से सम्बंधित सभी वादो को प्राथमिकता के साथ अन्तिम रूप देने में लग गया है। पंकज कुमार के ट्रान्सफर मामले में तीन महीने के अंदर लेबर कोर्ट को निर्णय सुनाने की समय सीमा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के सुनामी असर के रूप में देखा जा सकता है।

नहीं ली फीस
पूर्व मुख्य न्यायाधीश (कार्यकारी ) नागेन्द्र राय ने पंकज कुमार का सु्प्रीम कोर्ट में पक्ष रखने के लिए एक रुपया फीस नहीं ली।

लेबर कोर्ट को भेजे गए निर्देश में दो point है। अनुबंध क के तहत है
1 क्या जस्टिस मजीठिया वेतन आयोग की अनुशंसा के अनुरूप वेतन वृद्धि की मांग करने के कारण श्री पंकज कुमार का स्थानांतरण किया जाना न्यायोचित है?
2 यदि नहीं तो श्री कुमार किस सहायय के हकदार हैं?

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Thursday 9 November 2017

मजीठिया: समय-सीमा तय करने का असर शुरु, लेबर कोर्ट में भास्कर चारों खाने चित

भास्कर के वकील ने लेबर कोर्ट के रीडर से लगवा ली थी जनवरी की तारीख, जज ने की निरस्त
मैनेजमेंट सात माह से ले रहा था तारीख पर तारीख
कोर्ट ने दिया अंतिम अवसर,  22 नवंबर को होगी अगली सुनवाई
मजीठिया क्रांतिकारियों की आपत्ति पर जज ने रीडर विश्वकर्मा को दिया नोटिस, मांगा लिखित स्पष्टीकरण

भोपाल। मजीठिया वेजबोर्ड के मामले में मप्र से बड़ी खबर आई है। जिससे न केवल कर्मचारियों के चेहरों से खोई हुई मुस्कान लौट आई है बल्कि उनके हौसले चट्टान की तरह मजबूत हो गए हैं। दैनिक भास्कर के खिलाफ अपने हक की लड़ाई लड़ रहे होशंगाबाद के मजीठिया क्रांतिकारियों ने बुधवार को भास्कर प्रबंधन को चारों खाने चित कर दिया। लेबर कोर्ट में सैटिंग कर तारीखें बढ़वाकर कर्मचारियों का हैरासमेंट करने की प्रबंधन की चाल कर्मचारियों ने नाकामयाब कर दी और भास्कर का वकील हाथ मलते रह गया। वहीं, जज ने इस नापाक खेल में शामिल कोर्ट के रीडर को नोटिस देकर लिखित स्पष्टीकरण मांग लिया है।

भोपाल लेबर कोर्ट में बुधवार का दिन गहमागहमी से भरा रहा। मजीठिया क्रांतिकारी हर बार की तरह सुनवाई के लिए अपने वकील के साथ लेबर कोर्ट पहुंच चुके थे। वे कोर्ट रुम में दाखिल हुए और जज साहब के रीडर से अपने केस की जानकारी ली। रीडर विश्वकर्मा ने बताया कि भास्कर के वकील कुछ देर पहले ही आकर अगली तारीख ले गए हैं, अब आप 9 जनवरी को आना। यह सुनते ही मजीठिया क्रांतिकारी और उनके वकील सन्न रह गए। उन्होंने अपनी गैर-मौजूदगी में इस तरह तारीख बढ़ाए जाने पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई।वकील ने जज साहब के समक्ष यह मामला उठाते हुए कड़ा विरोध जताया। मजीठिया वेजबोर्ड के लंबित मामलों को श्रम न्यायालयों द्वारा छह माह में निराकृत करने के सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश का हवाला भी दिया। काफी देर बहस के बाद जज साहब ने स्टाफ को भास्कर के वकील गुप्ता को बुलवाने के लिए कहा। वकील गुप्ता ने साढ़े 12 बजे तक आने का कहा। आखिरकार लंच के बाद मामले में सुनवाई शुरु हुई। तकरीबन घंटेभर तीखी तकरार चली। इसके बावजूद भास्कर के वकील गुप्ता ने जवाब पेश करने के लिए एक माह का समय दिए जाने की मांग की, लेकिन मजीठिया क्रांतिकारियों के वकील द्वारा तगड़ा विरोध दर्ज कराए जाने पर जज साहब ने वकील गुप्ता की मांग ठुकरा दी। उन्होंने दैनिक भास्कर को जवाब पेश करने के लिए अंतिम अवसर देते हुए अगली सुनवाई के लिए 22 नवंबर की तारीख मुकर्रर करते हुए वकील गुप्ता को कह दिया कि उस दिन जवाब लेकर ही आना। कोई भी बहाना नहीं चलेगा। यही नहीं, दैनिक भास्कर के वकील से मिली-भगत कर गुपचुप तरीके से केस को 9 जनवरी 2018 लगाए जाने के मामले में कोर्ट के रीडर विश्वकर्मा को कारण बताओ नोटिस देकर लिखित स्पष्टीकरण भी मांग लिया है।

मामले में कोर्ट के सख्त रवैये से एक ओर जहां मजीठिया क्रांतिकारियों में जबर्दस्त खुशी का माहौल है, उन्होंने उम्मीद जताई है कि इसी महीने के अंत या दिसंबर में केस का फैसला हो सकता है. वहीं, कोर्ट में हुई दुर्गति से दैनिक भास्कर के वकील गुप्ता की हालत देखने लायक थी। अब देखना यह है कि 22 नवंबर को दैनिक भास्कर कोर्ट में क्या जवाब पेश करता है।

(मजीठिया क्रांतिकारी ग्रुप से)

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Wednesday 8 November 2017

पत्रकारों को श्रम कानून के तहत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए पहल करेंगे केन्द्रीय राज्यमंत्री गिरिराज सिंह

गया के पत्रकारों को दिया आश्वासन
कहा, श्रम मंत्री को समस्या से कराएंगे अवगत

केन्द्रीय राज्यमंत्री गिरिराज सिंह ने आज गया में पत्रकारों के हक की लडाई में पहल करने की घोषणा की है। केन्द्रीय मंत्री सिंह को जब पत्रकारों ने बताया कि जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड की अनुशंसा के आलोक में वेतन और अन्य सुविधाएं नहीं मिल रही है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड की अनुशंसा को लागू करने के लिए फैसला सुना दिया है।

केन्द्रीय मंत्री सिंह ने कहा कि श्रम कानून के तहत ईपीएफ, ईएसआई, सर्विस बुक सहित जो भी सुविधाएं देय है। उसे दिलाने के लिए केन्द्रीय श्रम मंत्री से बात करेंगे। उन्होंने कहा कि यह जानकर तकलीफ हुई कि बड़ी संख्या में  लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के मित्रों को प्रतिदिन तय दैनिक मजदूरी भी नहीं मिल रही है। औरंगाबाद के सांसद सुशील कुमार सिंह ने भी पत्रकारों से सम्बंधित ज्ञापन की मांग कर आश्वासन दिया कि इस सम्बन्ध में वे पीएमओ और श्रम मंत्री तक पत्रकारों की बात पहुंचाने का प्रयास करेंगे।

(गया से पंकज कुमार)

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Tuesday 7 November 2017

मजीठिया: वेजबोर्ड की अनुशंसा और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का होगा अनुपालन

केन्द्रीय मंत्री और भाजपा प्रवक्ता ने पत्रकारों को दिया आश्वासन

केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे और बिहार भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने मंगलवार को मीडियाकर्मियों को आश्वासन दिया कि जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड की अनुशंसा और सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में वे पत्रकारों की भावना को सक्षम स्थान व नेतृत्व के समक्ष अवश्य रखेंगे।

केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे आज गया में पत्रकारों के समक्ष दावा करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश में किसी को भी दवा के अभाव में मरने नहीं देने को लक्षय रखा है। केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे के इस दावे पर मीडियाकर्मियों ने सवाल किया कि केन्द्र सरकार जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड की अनुशंसा के आलोक में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को क्रियान्वित कयो नही करा रही है। बिहार में कई  मीडिया हाउस प्रखंड और अनुमंडल के पत्रकारों को क्रमशः दो और पांच सौ रुपए प्रति माह देता है। ऐसे में पत्रकार अपने परिवार का पालन कैसे करेगा। श्रम कानून के तहत ईपीएफ ईएसआई, सर्विस बुक आदि की सुविधा से 95 प्रतिशत पत्रकार वंचित है। केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे और प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने बताया कि वे यह सुनिश्चित कराने का प्रयास करेंगे कि उन्हें श्रम कानून के तहत उपलब्ध सभी सुविधाएं मिले। केन्द्रीय मंत्री और भाजपा प्रवक्ता के बयान के बाद पत्रकारों के बीच उम्मीद जगी कि शायद सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन निकट भविष्य में केन्द्र सरकार करा सकती है।

(गया से पंकज कुमार)

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Monday 6 November 2017

मजीठिया: हक के लिए एकजुट हो रहे उत्तराखंड के पत्रकार

देहरादून। मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों के अनुसार वेतन एरियर को लेकर देहरादून में भी पत्रकारों ने हक की लड़ाई शुरू कर दी है। देहरादून स्थित सहायक श्रमायुक्त के समक्ष आवेदन करने वाले पत्रकारों की संख्या बढ़ रही है। 6 नवंबर को हिन्दुस्तान के तीन पूर्व पत्रकारों के मामलों में सुनवाई हुई। वहीं अमर उजाला के तीन पूर्व पत्रकारों ने मजीठिया वेतन बोर्ड के अनुसार एरियर के लिए आवेदन किया।
अधिवक्ता शरद ने हिन्दुस्तान के पूर्व पत्रकार बीबी जोशी, प्रेम पुनेठा, राजेश पांडेय की ओर से वकालतनामा दाखिल किया। सुनवाई के दौरान हिन्दुस्तान के प्रतिनिधि अपने जवाब के साथ उपस्थित हुए। जवाब में हिन्दुस्तान (हिन्दुस्तान मीडिया वेंचर्स लिमिटेड) ने टर्नओवर के अनुसार खुद को पांचवी श्रेणी में बताते हुए कहा कि इन पूर्व कर्मचारियों की कोई धनराशि बकाया नहीं है।

अधिवक्ता ने एएलसी के समक्ष आपत्ति दर्ज करते हुए एचएमवीएल से पांचवी श्रेणी में होने का साक्ष्य उपलब्ध कराने तथा टर्नओवर की पुष्ट सूचना उपलब्ध कराने पर जोर दिया। एएलसी ने एचएमवीएल की ओर से सभी जवाब देने में सक्षम प्रतिनिधि की ही उपस्थिति के निर्देश दिए।  (मालूम हो कि हिंदुस्तान मीडिया पहली श्रेणी का ग्रुप है।)

वहीं, अमर उजाला के पूर्व पत्रकारों विपनेश गौतम, भुवन उपाध्याय व केदार रावत और दैनिक जागरण की पूर्व पत्रकार श्रीमती गीता मिश्रा ने मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के अनुसार वेतन एरियर को लेकर आवेदन किया। वहीं उत्तराखंड में मजीठिया वेतन बोर्ड के अनुसार वेतन एरियर को लेकर संघर्ष कर रहे पत्रकारों ने अन्य सभी पत्रकारों से एकजुट होने की अपील की है। उन्होंने कहा कि यदि राज्यभर में किसी पत्रकार को आवेदन या सलाह लेनी है तो उनसे संपर्क कर सकते हैं।

(साभर: newslive24x7.com)

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पत्रकार है तो इसको शेयर जरूर कीजिए, शायद जग जाए सरकार!

वह पीड़ा पीछा छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही जो उस दिन एक रिटायर्ड पत्रकार साथी ने एक समारोह में अपने संबोधन के दौरान व्यपक्त  की थी। उनका कहना था कि जिन्दगी की ताकत और ताजगी वाला वक्त  तो कठोर श्रम से जीविका कमाने, अखबार को नई-नई, अलग तरह की, सबके पक्ष की, सबकी रुचियों की स्टोरियों से सजाने-संवारने में गुजार दिया। तब इलहम ही नहीं था कि एक वक्त वह भी आएगा जब रिटारमेंट हो जाएगी। संगी सहकर्मी फेयरवेल पार्टी दे देंगे और मैनेजमेंट हिसाब-किताब करके अपने रजिस्टतर से मेरा नाम उड़ा देगा। फिर सताएगी शेष जीवन की गाड़ी को चलाने की चिंता। जीना कब तक है यह कोई नहीं जानता, लेकिन सांस चलाने-चलते रहने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है जो भोजन से मिलती है। इस भोजन का प्रबंध करने के लिए ही पेंशन की दरकार होती है, जो पत्रकारों को आमतौर पर उपलब्ध नहीं होती। जिन थोड़े लोगों को उपलब्ध होती भी है तो वह ऊंट के मुंह में जीरे से भी कम होती है।

मेरे सरीखे तमाम पत्रकार हैं जो उम्र की उस दहलीज पर हैं जहां से जीविकोपार्जन की ढलान शुरू होती है। जीविका कमाने की अनेक शर्तों को पूरा करने की क्षमता जवाब देने को उतावली हो गई है। किसी पर आश्रितता बढ़ती जा रही है। जीवन की गारंटी देने वाली इनकम ने बॉय-बॉय कर दिया है। स्वालंबन परिहास करने लगा है। अपनी सीमित जरूरतें पूरी करने के लिए किसी के आगे हाथ फैलाना, किसी अपराध से कम नहीं लगता है। इससे मुक्ति के लिए पेंशन ही सबसे प्रभावी, कारगर जरिया है। पेंशन ही वह एकमुश्त धनराशि है जिससे भोजन के अलावा दूसरे दुख-संकट-समस्या  के निदान में मदद मिलती है।

उत्त‍र भारत में हरियाणा एकमात्र राज्य  है जहां की सरकार ने पत्रकारों के लिए पेंशन स्कीम शुरू की है। चंद दिनों पहले आरंभ हुई इस योजना के तहत उन रिटायर्ड पत्रकारों को 10 हजार रुपए मासिक पेंशन मिलेगी जो राज्य सरकार में मान्यता प्राप्त हैं या कम से कम पांच साल तक मान्यता प्राप्त रहे हैं। इसके लिए उम्र सीमा 60 वर्ष और इससे ऊपर है। साथ ही एलिजबल पत्रकारों को अपने प्रोफेशन में 20 साल पूरा कर लिया होना चाहिए। इसके अलावा ऐसे पत्रकारों को 10 लाख रुपए का इंश्योरेंस कवर, 5 लाख रुपए कैशलेस मेडिक्लेम पॉलिसी भी मुहैया होगी।

हरियाणा सरकार की यह स्कीम बेहद सराहनीय है। इससे उम्रदराज पत्रकारों को बहुत सहारा मिलेगा। इस पेंशन धनराशि से जीवन की गाड़ी आराम से चलती रहेगी और शारीरिक कष्ट के उपचार के लिए मेडिक्लेम रामबाण साबित होगा। लेकिन इस स्कीम में केवल मान्यता प्राप्त पत्रकारों या कहें रिपोर्टरों को ही शामिल किया गया है और उन पत्रकारों को नहीं जिन्हे सरकार से मान्य‍ता नहीं मिली है। ऐसे पत्रकारों में रिपोर्टर तो हैं ही, बहुत बड़ी तादाद में ऐसे भी हैं जो सार्वजनिक रहे बगैर अखबार को निकालने, उसको पठनीय, सम्प्रेमषणीय बनाने में अनुपम भूमिका निभाते हैं। इन पत्रकारों को डेस्क का पत्रकार कहा जाता है, जिनके समक्ष रिपोर्टर अपनी संग्रहीत सामग्री-खबरों का ढेर लगा देते हैं। उन खबरों को छपने-प्रकाशन लायक बनाने का मेहनती काम डेस्क के पत्रकार ही करते हैं। इन पत्रकारों का भी कार्य- विभाजन होता है और उनको दी गई जिम्मेदारी के हिसाब से उनका डेजिग्नेतशन होता है। ये पत्रकार एक तरह से गुमनामी में रहते हैं। अखबार कार्यालय से बाहर उनकी पहचान न के बराबर होती है, पर अखबार को आकार देने में उनका योगदान नीले गगन से भी ऊंचा-ज्यादा होता है।

ऐसे में सरकार से इनकी भी अपेक्षा होती है कि सरकार उन्हें  भी मान्यता प्राप्ता पत्रकारों को मिलने वाली, प्रदान की जानी वाली सुविधाओं के दायरे में लाए। उन्हें भी रिटायरमेंट के बाद पेंशन, इंश्योररेंस, मेडिक्लम आदि की सुविधा प्रदान करे जिससे बढ़ती उम्र में गुजर-बसर करने का एक सहारा मिल जाए। हरियाणा सरकार की ताजा घोषित स्कीम ने डेस्क के पत्रकारों की उम्मीदों को पंख लगा दिए हैं। वे भी हरियाणा सरकार की ओर हसरत भरी निगाहों से देखने लगे हैं। वे भी चाहते हैं कि हरियाणा सरकार उनके प्रति भी दयावान हो, उदार हो। ढेरों रिटायर्ड डेस्क के पत्रकारों ने हरियाणा सरकार से गुजारिश की है कि सरकार उन पर भी मेहरबान हो, उन्हें  भी पेंशन की सुविधा मुहैया कराने का कष्ट करे जिससे कष्टों  भरा उनका जीवन थोड़ा सहज हो सके।

बता दें कि देश के कई प्रदेशों मसलन केरल, कर्नाटक, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, गोवा, अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश आदि में पत्रकारों के लिए पेंशन स्कीम लागू की गई। पर पेंच वही है कि इस योजना का लाभ केवल मान्यता प्राप्त  पत्रकारों को मुहैया होती है। पत्रकारों को पेंशन देने की मांग केंद्र सरकार के समक्ष भी उठाई गई है। ‘द प्रेस एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ और ‘इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट’ ने अतीत में केंद्र सरकार से मांग की थी कि मान्यता प्राप्त  पत्रकारों को पेंशन देने की पॉलिसी बनाई जाए। साफ है, इन नेशनल पत्रकार संगठनों ने भी डेस्क के पत्रकारों को इस मांग के दायरे में नहीं रखा। समय आ गया है कि देश भर के डेस्‍क जर्नलिस्ट आगे आएं और अवकाश प्राप्ति के बाद पेंशन के लिए अपनी मांगों को बुलंद करें।  

भूपेंद्र प्रतिबद्ध
(चंडीगढ़)
94 17 556066
84 47 175239

Friday 3 November 2017

मजीठिया: SC के आदेश का असर, लेबर कोर्ट ने दी छोटी डेट



सुप्रीम कोर्ट का 13 और 27 अक्टूबर के आदेश का असर अब लेबर कोर्ट में चल रहे मजीठिया के केसों में दिखना शुरू हो गया है। लेबर कोर्ट प्रबंधन की लंबी डेट की मांग को अनसुना कर अब छोटी डेट दे रहे हैं। इससे रिकवरी, ट्रांसफर, टर्मिनेशन आदि के केस लड़ने वाले कर्मचारियों के अंदर उत्साह का संचार दौड़ पड़ा है।

30 अक्‍टूबर को होशांगाबाद लेबर कोर्ट में दैनिक भास्‍कर के 5 कर्मियों के ट्रांसफर और टर्मिनेशन में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की 13 और 27 अक्‍टूबर के आदेश की प्रतियां लगाई गईं। जिसके बाद माननीय जज साहब ने 13 नवंबर की तारीख दी। भास्‍कर के वकील ने अपनी तरफ से लंबी डेट मांगने का पूरा प्रयास किया। परंतु माननीय जज साहब ने बोला कि 13 दिन का समय बहुत होता है। जिसके बाद भास्‍कर का वकील कुछ नहीं बोल सका और उसके चेहरे का रंग उड़ गया, वहीं कर्मियों के चेहरे पर मुस्‍कान खिल गई। सुनवाई के दौरान 5 में से 4 कर्मियों ने अपनी गवाही पूरी की।
(मजीठिया क्रांतिकारी ग्रुप से प्राप्‍त तथ्‍यों के आधार पर)

इन्‍हें भी पढ़े-

 

मजीठिया: 6 माह में करना होगा रिकवरी केस का फैसला: सुप्रीम कोर्ट http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/10/blog-post_25.html

 

ट्रांस्फर/टर्मिनेशन के मामले भी छह माह में निपटाने होंगे: सुप्रीम कोर्ट http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/10/blog-post_27.html

 

 

मजीठिया: जागरण प्रबंधन के वकील ने कहा, 'फैसले में कर्मचारियों की चिंताओं को दूर किया गया है'  http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/06/blog-post_13.html


मजीठिया: रिकवरी लगाने वालों के लिए सुरक्षा कवच है 16A http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/06/16a.html


मजीठिया: बर्खास्‍तगी, तबादले की धमकी से ना डरे, ना दे जबरन इस्‍तीफा http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/05/blog-post_29.html

 

लोकमत प्रबंधन को मात देने वाले महेश साकुरे के पक्ष में आए विभिन्‍न अदालतों के आदेशों को करें डाउनलोड http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/07/blog-post.html


मजीठिया: ठेका कर्मियों को निकालने से बचेंगे अखबार मालिक http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/06/blog-post_22.html


मजीठिया: दैनिक जागरण के दो पत्रकारों के तबादले पर रोक

http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/06/blog-post_2.html


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Thursday 2 November 2017

मजीठिया: श्रम विभाग SC के आदेश को क्रियान्वित कराने को लेकर गंभीर

करीब तीन दर्जन से अधिक पत्रकारों के क्लेम पर हुईं सुनवाई

चिंगारी के विस्फोटक रूप लेने की बनी सम्भावना

पटना। मजीठिया क्रान्तिकारियो के लिए अच्छी खबर है। मजीठिया वेजबोर्ड की अनुशंसा के आलोक में वेतन की मांग और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन के लिए आगे आने वाले मीडियाकर्मियों के अब अच्छे दिन जल्द आने वाला है। कल पटना में उप आयुक्त अमरेन्द्र नारायण मिश्र, श्रम संसाधन विभाग के समक्ष करीब तीन दर्जन से अधिक मीडियाकर्मियों की सुनवाई हुई। दैनिक जागरण, कौमी तंजीम सहित कई हाउस के मीडियाकर्मियों ने अपनी उपस्थिति उप श्रमायुक्त मिश्र के समक्ष कराई।

दैनिक जागरण के पत्रकार पंकज कुमार ने उप श्रमायुक्त मिश्र से कहा कि वे 17 a और 17 b के तहत क्रमशः दैनिक जागरण प्रबंधन और लेबर सेक्रेटरी को पूर्व में नोटिस भेज चुके हैं। ऐसे में उनके मामले में अब सुनवाई के लिए श्रम अदालत में सम्बंधित कागजात भेज दिया जाए। उप श्रमायुक्त मिश्र ने दैनिक जागरण की तरफ से आए एजीएम बिनोद शुक्ला से जबाव मांगा। शुक्ला ने कम्पनी की ओर से उपस्थिति दर्ज कराई। उप श्रमायुक्त मिश्र ने 16 नवम्बर को अगली तारीख निर्धारित करते हुए कहा कि यदि दोनो पक्षों के बीच समझौता नहीं होता है तब मामले को लेबर कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया जाएगा।

लेबर आफिस में हो रही चर्चा में अनुसार अब विभाग सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद अपनी ओर से कोई कोताही बरतने के मूड में नहीं है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 13 October के आदेश में स्पष्ट कर दिया है कि छह महीने के भीतर मजीठिया की मांग को लेकर श्रम अदालत को
प्राथमिकता के आधार पर क्लेम का निष्पादन करना होगा।
वहीं 27 October को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पंकज कुमार वर्सेज यूनियन आफ इंडिया के रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया है कि ट्रान्सफर और टर्मीनेशन के मामले में भी छह महीने के भीतर श्रम अदालत को प्राथमिकता के आधार पर निष्पादित करने है।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय के 13 और 27 October के आदेश के बाद पत्रकारों के बीच वेज बोर्ड की अनुशंसा के आलोक में वेतन और अन्य सुविधाओं की मांग को लेकर गंभीर चर्चा और बहस शुरू हो गई है। इसका असर बुधवार को पटना में उप श्रमायुक्त कार्यालय के बाहर मीडियाकर्मियों की भारी भीड़ से अंदाजा लगाया जा सकता है। कम्पनी की ओर से श्रम  श्रमायुक्त मिश्र के समक्ष पहुंचे अधिकारी मीडियाकर्मियों को सफ़ाई देते दिखे कि वे उनकी मांग के साथ है। लेकिन नौकरी के कारण खुलकर सामने नहीं आ सकते।

(पटना से पंकज कुमार)

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राजस्थान पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी जी, पहले खुद की गिरेबान में झांक लें....

जयपुर, 1 नम्बवर, 2017। राजस्थान पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी आजकल राजस्थान सरकार को कोसते हुए खूब संपादकीय लिख रहे हैं। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को टारगेट करते हुए उनके लेख में भ्रष्ट लोकसेवकों के बचाने के संबंध में लाए गए विधेयक, मास्टर प्लान में छेड़छाड़, भ्रष्टाचार को लेकर खूब टीका-टिप्पणी होती है। इन लेखों में वे सुप्रीम कोर्ट, राजस्थान हाईकोर्ट के फैसलों का खूब हवाला देते हैं। आज के लेख में भी गुलाब कोठारी ने भ्रष्ट लोकसेवकों के बचाने वाले काले कानून में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया है। साथ ही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को लपेटते हुए यह फैसला किया है कि जब तक काले कानून को सरकार वापस नहीं लेती है, तब तक पत्रिका सीएम राजे व उनसे संबंधित समाचार को प्रकाशित नहीं करेंगी।

गुलाब कोठारी के दोगलेपन के साथ हम नहीं है। आज उनके मन-मुताबिक काम नहीं हो रहे हैं तो वे सरकार और सीएम राजे के खिलाफ है। कल उनकी पटरी बैठ जाएगी तो गुणगान करने से नहीं चूकेंगे। वे बार-बार सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट के आदेशों का हवाला देते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड में राजस्थान पत्रिका व अन्य मीडिया संस्थानों को अपने पत्रकारों व गैर पत्रकारों के वेजबोर्ड, एरियर देने के आदेश दे रखे हैं। कोर्ट में मुंह की खाने के बाद भी वे कोर्ट के आदेश की पालना नहीं कर रहे हैं। बेजवोर्ड के लिए संघर्षरत तीन सौ से अधिक पत्रिका कर्मियों को गुलाब कोठारी और उनके संस नीहार कोठारी व सिद्धार्थ कोठारी ने नौकरी से बर्खास्त करके, दूसरे राज्यों में तबादले और निलंबित करके प्रताड़ित किया। प्रताड़ना का यह दौर आज भी चल रहा है। खैर यह प्रताड़ना ज्यादा नहीं चलेगी। जल्द ही गुलाब कोठारी एण्ड संस को मुंह की खानी पड़ेगी इस मामले में।

मास्टर प्लान और भ्रष्टाचार पर खूब जोशीले संपादकीय लिखते हैं, लेकिन खुद के कारनामे उन्हें नहीं दिखते। हां राजस्थान के बिल्डर, नेता, अफसर और जागरुक लोग इनके जमीनी और विज्ञापन प्रेम के बारे में खूब जानते हैं और भुगतभोगी भी। इनके भी जमीनी कारनामों कम नहीं है। चाहे दिल्ली रोड का हो या सेज का, किसी से छुपा नहीं।

पत्रिका में रहते हुए मेरी कितनी ही खबरें इनकी सौदेबाजी की भेंट चढ़ी। दूसरे पत्रकार साथियों की खबरों के साथ भी ऐसा होता रहा है। हां, जलमहल झील मामले में इनकी चलने नहीं दी। वो कल भी मेरे व मेरी टीम के हाथ में था और आज भी... यह जरुर है इसकी कीमत नौकरी देकर चुकानी पड़ी।

गुलाब कोठारी जी, दूसरों को कानून का पाठ पढ़ाते समय, पहले खुद के गिरेबां में झांक लेना चाहिए। पहले अपने कर्मचारियों को सम्मानजनक वेतन-भत्ते दे, जिसके बारे में सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है। श्रम कानूनों की पालना पहले खुद करें।  पत्रकारो के लिए 6 घण्टे और अन्य कर्मचारियों के लिए आठ घंटे तय हैं, लेकिन बारह से पन्द्रह घंटे तक काम लिया जा रहा है। कुछ महीनों से तो पत्रिकाकर्मियों को प्रिंट के साथ टीवी चैनल, वेबसाइट में भी झोंक रखा है। पत्रिका ने एक कारनामा किया है। 50 से 70 रुपए रोज के हिसाब से पत्रकार तैयार कर रही है। बेकारी के इस युग में युवा इस कीमत में पत्रकारिता करने को मजबूर हो रहे हैं। ऐसी बहुत सी बातें है, जो पत्रिका और पत्रिका के मालिकों के थोथे आदर्शों को उजागर करती है। वो समय-समय पर की जाएगी और सामने भी लाई जाएगी।

सीएम वसुंधरा राजे, गाहे-बगाहे गुलाब कोठारी और उनके संपादकीय मण्डल के भुवनेश जैन, राजीव तिवाडी, गोविन्द चतुर्वेदी आपको और आपकी सरकार के बारे में अपने लेखों में सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट का हवाला देकर कानून का पाठ पढ़ाते रहते हैं। पत्रिका प्रबंधन कितना कानून की पालना करते हैं, किसी से छुपा नहीं है। हम पत्रकारों ने आपके श्रम विभाग और मुख्य सचिव को मजीठिया बेजबोर्ड मामले में सैकड़ों परिवाद दे रखे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दे रखे हैं। सरकार की एक इच्छा शक्ति इन्हें घुटने टिका सकती है। इनके जमीनी कारनामें कम नहीं है। आप भी इनके कारनामों की जांच करवाकर उनकी पोल जनता के सामने ला सकते हैं। ताकि जनता के बीच इनकी हकीकत व सच्चाई सामने आ सके।

आपका अपना
राकेश कुमार शर्मा
एक्स चीफ रिपोर्टर, राजस्थान पत्रिका जयपुर

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