Thursday 29 August 2019

मजीठिया: जानें क्‍यों जरूरी है प्रबंधन से दस्‍तावेजों की मांग

हममें से बहुतों के मामले इस समय लेबर कोर्ट पहुंच चुके हैं या वहां चल रहे हैं या कई में फैसले भी आ चुके हैं। उनको देख कर लगता है किहमारे द्वारा कई छोटी-छोटी चूकें हो रही हैं, जिसका खामियाजा कहीं ना कहीं भुगतना भी पड़ रहा है। इनमें से एक सबसे बड़ी चूक कंपनीरिकार्ड में मौजूद हमारे या हमारे मामले से जुड़े दस्‍तावेजों की मांग नहीं करना भी शामिल है। रिकवरी के कई मामलों में कर्मचारियों द्वारा कंपनी के टर्नओवर से संबंधित दस्‍तावेजों की मांग ही नहीं कीजा रहीहै। इस वजह से टर्नओवर को लेकर जहां हम यह बात साबित करने का भार अपने ऊपर लेकर चल रहे हैं, तो वहीं कंपनी प्रबंधन को इस बात का भरपूर फायदा हो रहा है। इससे जहांकर्मचारी या दावेदार कापक्ष कहीं न कहीं कमजोर पड़ रहा हैऔर प्रबंधन इस बड़े हथियार की जद में आने से साफ साफ बच रहा है।

इसमें ऐसे अखबारों के कर्मियों को ज्‍यादा दिक्‍कत आती है जो शेयर बाजार में लिस्‍ट नहीं हैं या जो पार्टनरशिप फार्म के कर्मचारी हैं। कुछ कंपनियां तो ऐसी भी हैं जिनकी बैलेंसशीट एमसीए या रजीस्‍ट्रार आफ कंपनिज के पास भी जमा नहीं करवाई गई है। ऐसे में आईडी एक्‍ट की धारा 11(3) और सीपीसी के प्रावधानों के तहत मामले से जुड़ें दस्‍तावेजों की मांग करना आधा केस जीतने के सामान समझा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर कंपनी की जिस बैलेंसशीट को प्रूव करने का भार हम पर हैं, वे दस्‍तावेज मांगने की अर्जी लगाने पर कंपनी की ओर शिफ्ट हो जाएगा। इसी तरह सेलरी स्‍लीप, हाजिरी रजिस्‍टर और इसी तरह मामले से जुड़े वे दस्‍तावेज प्रबंधन से मांगे जा सकते हैं जो कपंनी के रिकार्ड में होते हैं। अगर कंपनी इन्‍हें देने से मुकरती है तो इसका फायदा सीधे तौर पर दावेदार को मिलता है। जिसे कानूनी भाषा में एडवर्स इन्‍फेयरेंस कहा जाता है। 

ये दस्‍तावेज मांगे जाने जरूरी हैं- 
कंपनी के टर्नओवर से जुड़े दस्‍तावेज, क्‍लासीफिकेशन के मामले में कंपनी की आयकर रिटर्न, अगर कंपनी दावा कर रही कि उसकी अलग-अलग यूनिटें हैं तो कंपनी से उसकी इंडिपेंटेंड यूनिट के पंजीकरण, रजीस्‍ट्रार आफ कंपनिज को भेजी गईं बैलेंसशीट और प्राफेट/लॉस अकाउंट की प्रतियां, आरएनआई के नियमानुसार अलग-अलग प्रकाशन केंद्रों के स्‍वामित्‍व की घोषणा का प्रपत्र-4 के तहत अखबार में प्रकाशित सूचना की प्रतियां, सत्‍यापित स्‍टैडिंग आर्डर की प्रतियां, ज्‍वाइंनिग लैटरप्रोबोशन लैटरपरमानेंट लैटरप्रमोशन लैटरसैलरी स्लिपड्यूटी चार्टड्यूटी टाइंमिंग,कर्मचारियों की सूची इत्‍यादि।



अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें-

रविंद्र अग्रवाल
अध्‍यक्ष, न्‍यूजपेपर इम्‍प्‍लाइज यूनियन ऑफ इंडिया
संपर्क: 9816103265

Thursday 22 August 2019

दैनिक जागरण के अधिकारियों ने पार की हैवानियत की सारी हदें, कर्मचारी द्वारा मजीठिया का केस वापस नहीं लेने पर कार्यालय में किया प्राणघातक हमला, चार आरोपियों पर एफआईआर दर्ज





दैनिक जागरण समाचार पत्र कानपुर समूह की भोपाल स्थित यूनिट नवदुनिया में हैवानियत की सारी हदें पार हो गई हैं। मंगलवार 20/08/2019 को दोपहर डेढ़ बजे भोपाल के गोविंदपुरा औद्योगिक क्षेत्र स्थित नवदुनिया के प्लांट ऑफिस पर आईटी विभाग में इंजीनियर के पद पर पदस्थ और स्टेट वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन एमपी के सदस्य बृजेंद्र बघेल पर कानपुर जागरण से भेजे गए ग्रुप के प्रोडक्शन हेड और सीनियर जनरल मैनेजर सर्वेश कुमार सिंह, इंजीनियर मेंटेनेंस संदीप कुमार सिंह, असिस्टेंट इंजीनियर अखंड प्रताप सिंह व सीनियर एक्जीक्यूटिव भोपाल अमित तिवारी ने बृजेंद से मजीठिया का केस लगाने को लेकर गाली-गलौज की। जब  बृजेंद्र ने इसका विरोध किया तो उक्त चारों आरोपियों ने वहां तैनात सुरक्षा गार्ड की मदद से उन्हे घसीटा और लात-घूंसे मारते हुए बृजेंद्र को अंदर केबिन में ले गए।

वहां सीनियर जनरल मैनेजर सर्वेश कुमार सिंह ने राड से बृजेंद्र पर प्राणघातक हमला किया। चारों आरोपियों ने मिलकर बृजेंद्र के साथ काफी देर तक बेरहमी से मारपीट की। घटना में बृजेंद्र का दाहिना हाथ और कंधा टूट गया। हमले में उन्हें गंभीर चोटें आई हैं। मारपीट के बाद उस दौरान वहां मौजूद अन्य साथियों की मदद से जैसे-तैसे कैबिन से बाहर निकालकर डायल-100 को घटना की पूरी जानकारी दी। बाद में उन्हें 108 एम्बुलेंस की मदद से भोपाल के नर्मदा ट्रामा सेंटर में इलाज के लिए पहुंचाया गया। वहां देर रात उनके कंधे और हाथ का ऑपरेशन किया गया। डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें अत्यंत गंभीर चोटें आई हैं। जिसके कारण लंबे समय तक बृजेंद्र को आराम की सलाह दी गई है।

प्रबंधन की मदद से फरार हुए आरोपी, चारों पर एफआईआर दर्ज
कार्यालय परिसर के अंदर हुए इस प्राणघातक हमले से पूरे समूह के कर्मचारियों में बेहद आक्रोश है। वहीं जागरण मैनेजमेंट का रवैया पूरे मामले में शर्मनाक रहा। घटना के तत्काल बाद स्थानीय प्रबंधन के जिम्मेदारों ने चारों आरोपियों को मौके से फरार करने का इंतजाम किया। देर रात तक प्रबंधन इस जुगत में रहा कि मामले की एफआईआर दर्ज नहीं हो। इसके लिए शीर्षस्तर तक दबाव बनाया गया। संस्थान के सभी कर्मचारियों और स्टेट वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन एमपी के द्वारा घटना को लेकर चौतरफा कार्रवाई करने के दबाव के बाद मंगलवार देर रात अशोका गार्डन थाने में चारों आरोपियों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज की गई।

सबसे शर्मनाक बात ये रही कि इतना सब कुछ होने के बाद प्रबंधन ने अब तक आरोपियों पर किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की है। इसके विपरीत घटना के चश्मदीद कर्मचारियों को गवाही देने पर अंजाम भुगतने की धमकी दी जा रही है। साथ ही अन्य कर्मचारियों को धमकी दी जा रही है यदि उन्होंने कोर्ट में चल रहे मजीठिया वेतनमान से संबंधित प्रकरण वापस नहीं लिए तो उनका हश्र भी बृजेंद्र की तरह होगा। इस मामले को लेकर गृहमंत्री, पुलिस महानिदेशक, कलेक्टर व सहायक श्रम आयुक्त सहित अन्य सक्षम अधिकारियों से शिकायत की गई है।

मजीठिया मामले की पेशी से रोकने किया प्राणघातक हमला
गौरतलब है कि नवदुनिया भोपाल में आईटी विभाग में पदस्थ इंजीनियर बृजेंद्र बघेल का भोपाल श्रम न्यायालय क्रमांक 01 में मजीठिया वेतनमान को लेकर प्रकरण चल रहा है, जिस दिन मंगलवार 20/08/2019 को उन पर हमला हुआ, उसी दिन उनकी मजीठिया मामले की पेशी भोपाल श्रम न्यायालय क्रमांक 01 में थी। वे पेशी पर जाने की तैयारी में थे लेकिन इसके पूर्व ही उन्हें फोन कर एमपी नगर कार्यालय से गोविंदपुरा स्थित प्लांट पर तत्काल आने के निर्देश दिए गए। बृजेंद्र के वहां पहुंचने के बाद साजिशन उन पर प्राणघातक हमला किया गया। इस पूरे प्रकरण को माननीय न्यायालय के संज्ञान में लाया गया है, जिस पर पीठासीन अधिकारी ने भी सख्त नाराजगी जाहिर की है।

सुरक्षा को लेकर कर्मचारी आशंकित, पत्रकारों ने की निंदा, भास्कर में प्रकाशित हुई खबर संस्थान के कार्यालय परिसर में हुई इस अमानवीय घटना के बाद पूरे समूह के कर्मचारियों में असुरक्षा की भावना है। नवदुनिया/नईदुनिया के 70 साल के स्वर्णिम इतिहास में इस प्रकार की एक भी घटना सामने नहीं आई लेकिन अब हुई इस घटना से पूरे संस्थान में भय और असुरक्षा का माहौल है। इसे लेकर उच्च प्रबंधन तक कर्मचारियों ने ईमेल के जरिए अपनी चिंताएं जाहिर भी की हैं। वहीं राजधानी भोपाल समेत अन्य क्षेत्रों में कार्यरत पत्रकारों ने भी इस घटना की घोर निंदा की है और दोषियों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई किए जाने की मांग की है। घटना की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अमूमन एक समाचार पत्र में होने वाली किसी घटना या वारदात की खबर किसी दूसरे समाचार पत्र में नहीं छपती है, लेकिन दैनिक भास्कर भोपाल संस्करण में इस घटना की खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया है।

पत्रकार को बुरी तरह परेशान करके फंस गया एचटी प्रबंधन, सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दायर

हिंदुस्तान टाइम्स मुम्बई से एक बड़ी खबर आ रही है। यहां पटना से हाल में ट्रांसफर होकर आए एक पत्रकार को हिंदुस्तान टाइम्स ने इतना परेशान किया कि इस पत्रकार ने हिंदुस्तान टाइम्स प्रबंधन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दायर कर दी है। इस पीआईएल को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार भी कर लिया है। लगभग 33 साल हिंदुस्तान टाइम्स के पटना एडिशन में काम करने के बाद अचानक इस पत्रकार का मुंबई ट्रांसफर कर दिया गया। अब यहीं से हिन्दुस्तान टाइम्स ने इस पत्रकार के साथ जो किया, वह सुनेंगे तो चौक जाएंगे। यह घटनाक्रम हिंदुस्तान टाइम्स के असली चेहरे को उजागर करता है।

मुम्बई पहुंचने पर एचआर डिपार्टमेंट की हेड ने कुछ दिनों बाद उन्हें अपने ऑफिस में बुलाया और बाउंसर के जरिये इनका पटना में दिया गया आईकार्ड छीन लिया। फिर इनसे कहा कि आप रिजाइन दे दीजिए। इस साथी ने रिजाइन नहीं दिया और मुम्बई में न्यूज पेपर एम्पलॉइज यूनियन ऑफ इंडिया के महासचिव धर्मेन्द्र प्रताप सिंह से संपर्क किया। धर्मेन्द्र जी की सलाह पर ये पत्रकार मुम्बई के दादर पुलिस स्टेशन पहुँचे और पुलिस स्टेशन में लिखित शिकायत हिंदुस्तान टाइम्स प्रबंधन के खिलाफ किया।

पुलिस डिपार्टमेंट ने लापरवाही की तो पुलिस महकमे के आला अधिकारियों तथा मंत्रियों को ट्वीट पर ट्वीट और मेल पर मेल किया। प्रधानमंत्री तक को चिट्ठी मेल किया। पुलिस महकमे में हड़कंप मचा तो दादर पुलिस ने हिंदुस्तान टाइम्स की एचआर की महिला अधिकारी को पुलिस स्टेशन बुलाया। महिला अधिकारी ने लिखित बयान दिया कि उन्हें ये पॉवर है कि इस पत्रकार का रिजाइन मांग सकती हैं। यही नहीं, इस महिला अधिकारी ने ये भी माना कि बाउंसर लगाकर नहीं बल्कि अपने पावर का इस्तेमाल करते हुए मैंने इनसे इनका आईकार्ड लिया है।

कहानी में एक नया ट्विस्ट भी आता है। लगभग 33 साल हिंदुस्तान टाइम्स में नौकरी करने के बाद यह पत्रकार जब अपना पीएफ एकाउंट से कुछ पैसा निकालने गया तो पीएफ ऑफिस ने पहले उन्हें मुम्बई और दिल्ली दौड़ाया। फिर पीएफ ऑफिस की तरफ से बताया गया कि आपका पैसे तो हमारे पास पड़े हैं लेकिन हिंदुस्तान टाइम्स ने आपका जॉइनिंग एक साल पहले हिंदुस्तान डिजिटल में दिखाई है और नियमानुसार आप एक साल नौकरी कर के पीएफ एकाउंट से पैसा नहीं निकाल सकते। इसके लिए आप अपनी कंपनी से संपर्क करें।

इस पत्रकार ने जब कंपनी से संपर्क किया तो उसे कहा गया कि आप रिजाइन दे दीजिए फिर आपकी पूरी मदद करेंगे, नहीं तो हम कुछ नहीं करेंगे। धर्मेन्द्र जी की सलाह पर इस पत्रकार ने जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड के तहत अपना क्लेम तैयार कराया और लेबर डिपार्टमेंट में एक करोड़ रुपये के बकाये का क्लेम कर दिया। इसी बीच इस पत्रकार ने माननीय सुप्रीमकोर्ट को पूरा वाक्या लिखित रूप से और ऑनलाइन बताया तथा एक पीआईएल सुप्रीमकोर्ट में ऑनलाइन दायर कर दिया जिसे सुप्रीमकोर्ट ने स्वीकार भी कर लिया है। इस मामले पर जल्द सुनवाई होगी। सुप्रीमकोर्ट ने इस पत्रकार द्वारा भेजे गए स्पीड पोस्ट को भी रिकार्ड में लिया है। श्रम मंत्रालय के लिखे उनके पत्र पर मंत्रालय ने लेबर कमिश्नर महाराष्ट्र को पत्र लिखकर तुरंत इस मामले में एक्शन लेने को भी कहा है। इस पत्रकार ने मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली को भी पत्र लिखकर पूरी स्थिति से अवगत कराया है जिस पर वह भी करवाई कर रहा है।

[मुंबई से पत्रकार और आरटीआई एक्टिविस्ट शशिकांत सिंह की रिपोर्ट. संपर्क : 9322411335]

दैनिक जागरण में मजीठिया मांगने वाले असिस्टेंट मैनेजर का इस्तीफा ‘भूतों’ ने मेल कर दिया!

दैनिक जागरण कानपुर में लगता है भूतप्रेत का साया पड़ गया है। यहां काम करने वाले इस्तीफा खुद नहीं देते। पर जब वे सुबह आफिस आते हैं तो पता चलता है कि उन्होंने तो जो इस्तीफा मेल किया था, उसे कबूल कर लिया गया है और तदोपरांत उन्हें रिलीव किया जा चुका है। जाहिर है ऐसा काम करने वाले भूत खून पीने वाले नार्मल लोग नहीं होंगे। ये भूत हैं उच्च पदों पर काबिज मैनेजर्स। फिलहाल भूत की आत्मा का ताजा प्रवास संजीव अग्निहोत्री के भीतर पाया गया है जो इसी डिपार्टमेंट जागरण रिसर्च सेंटर में प्रोजेक्ट डायरेक्टर के पद पर कार्यरत हैं। 

दैनिक जागरण कानपुर में जागरण रिसर्च सेंटर में बतौर अस्सिस्टेंट मैनेजर (सर्क्युलेशन) कार्यरत आशुतोष मिश्रा ने खुद इस्तीफा मेल नहीं किया पर उनका मेल उनके कंप्यूटर से चला गया और कबूल भी हो गया। आशुतोष मिश्रा बताते हैं- ”विगत 9 अगस्त से मेरा j connect पासवर्ड डालने से नहीं खुल रहा था। पता चला कि इसे एक साजिश के तहत बंद किया गया है। अचानक 16/8/2019 को मेरे पास एक मेल आई जिसमें लिखा था कि आपका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया है, आप को 10 अगस्त से रिलीव किया जाता है। अचानक आई इस मेल से मैं आश्चर्यचकित रह गया। मैंने अपने हेड संजीव अग्निहोत्री से इस बाबत पूछा तो उन्होंने आनाकानी कर दी। सुबह तक कार्ड पंच हो रहा था। उसके बाद शाम को जब मैं वापसी के लिए कार्ड पंच करने लगा तो नहीं हुआ। मैं समझ गया कि मेरे j connect को हैक करके उसमें इस्तीफा लिखा गया और उसको स्वीकार भी कर लिया गया। ताज्जुब इस बात का है कि इतना बड़ा संस्थान होने के बावजूद इस तरह की चारसौबीसी वाली हरकत करता है, वो भी कंपनी के शीर्ष अधिकारियों द्वारा ऐसा किया जाता है, जो कि आश्चर्यजनक है। मेरे डिपार्टमेंट हेड संजीव अग्निहोट्री (प्रोजेक्ट डायरेक्टर) व कम्पनी के एक सबसे बड़े अधिकारी का पूरा हाथ इस मामले में है। इस बड़े अधिकारी के नाम का सिक्का कंपनी में चलता है व मालिकान भी उससे कुछ नहीं कह पाते हैं। ये सब सिर्फ मेरे द्वारा लगभग 6 माह पहले मजीठिया केस करने के कारण हुआ है।”

Respected sir.

Today I have received the following mail that I have resigned and relived from 10 th august 2019 .I am surprised to find this mail because I have never resigned .kindly clarify what is the motive behind this mail.

This is a kind of fraud which is being played against me.

Reagard

Ashutosh mishra(asst. managar)

Jrc

From: donotreply@jagran.com 
Sent: 16 अगस्त 2019 15:37
To: ashutoshmishra@knp.jagran.com
Subject: Resignation Information

Dear Sir/Madam,

Your (ASHUTOSH MISHRA – LC0181)resignation has been approved and your relieve date is 10-Aug-2019.

Please clear your dues, if any.

JConnect v5.0, � I.T. Division, JPL. All rights reserved

[साभार: भड़ास4मीडिया.कॉम]

Sunday 11 August 2019

मजीठिया: भास्कर को तगड़ा झटका, हाईकोर्ट ने दिया दस दिन के भीतर क्लेम की पूरी राशि रजिस्टार के पास जमा कराने के निर्देश

मजीठिया वेज बोर्ड मामले में पंजाब से एक बड़ी खबर आ रही है। पंजाब हाईकोर्ट ने दैनिक भास्कर की प्रबंधन कंपनी डी बी कार्प को निर्देश दिया है कि वह क्लेमकर्ता की पूरी बकाया राशि को रजिस्ट्रार कार्यालय में दस दिनों के अंदर जमा कराए। पूरे देश में ये पहला मामला है जब किसी हाईकोर्ट ने किसी कंपनी को जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में पूरी बकाया राशि अदालत में जमा करने का निर्देश दिया है। मामला डी बी कार्प के समाचार पत्र दैनिक भास्कर के फिरोजपुर के पूर्व ब्यूरो चीफ राजेन्द्र मल्होत्रा से जुड़ा है।

राजेन्द्र मल्होत्रा ने 18 साल तक दैनिक भास्कर में सेवा दी। वे पंजाब के फिरोजपुर में ब्यूरो चीफ भी थे। उन्होंने जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड के तहत अपने बकाये राशि २३ लाख ५२ हजार ९४५ रुपये ९९ पैसे के लिये और ब्याज की राशि मिलाकर ३७ लाख का क्लेम सहायक कामगार आयुक्त के यहां लगाया।



पत्रकार राजेन्द्र मल्होत्रा

इस क्लेम से नाराज दैनिक भास्कर समूह ने उन्हें अगस्त २०१८ में बिना किसी ठोस कारण के टर्मिनेट कर दिया। इस मामले में सहायक कामगार आयुक्त फिरोजपुर ने राजेन्द्र मल्होत्रा के दावे को सही माना और डीबी कार्प को निर्देश दिया कि वह राजेन्द्र मल्होत्रा को उनका बकाया जल्द से जल्द दे।

कंपनी प्रबंधन ने इस बात को अनसुना कर दिया तो सहायक कामगार आयुक्त ने एक नोटिस जारी कर रिकवरी कार्रवाई शुरू कर दी और डीबी कार्प के कार्यालय पर नोटिस भी चस्पा करा दिया। इसी बीच राजेन्द्र मल्होत्रा की पहल पर दैनिक भास्कर समूह की कंपनी डीबी कार्प का चंडीगढ़ का एक बैंक खाता भी सील कर दिया गया।

घबड़ाई कंपनी पंजाब हाईकोर्ट पहुंची जहां दैनिक भास्कर वर्सेज स्टेट आफ पंजाब और अन्य मामले की सुनवाई करते हुये पंजाब हाईकोर्ट ने डीबी कार्प को निर्देश दिया है कि वह इस अवार्ड के तहत निर्धारित की गयी पूरी रकम को १० दिनों के अंदर इस अदालत के रजिस्ट्रार जनरल के पास जमा करे जिसे फिक्स डिपोजिट में रखा जायेगा। साथ में एफिडेविट, कैलकुलेशन सीट भी जमा करने का निर्देश भी दिया है। यह आदेश पंजाब हाईकोर्ट के विद्वान न्यायाधीश राजीव नारायण रैना ने दिया है। इस आदेश से मजीठिया क्रांतिकारियों में खुशी का माहौल है।

Saturday 10 August 2019

एचटी प्रबंधन को झटके पे झटका : हाईकोर्ट ने लेबर कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा



नई दिल्ली। देशभर के पाठकों को खबरों से रू-ब-रू कराने वाला हिन्दुस्तान टाइम्स समूह अपने कर्मचारियों पर पिछले डेढ़ दशक से लगातार अत्याचार करने पर उतारू है, लेकिन कर्मचारियों की हिम्मत देखिए कि तमाम बाधाओं के बीच अपने अधिकारों के लिए पिछले 15 साल से लड़ रहे हैं। नई खबर ये है कि हिन्दुस्तान टाइम्स समूह प्रबंधन को श्रम न्यायालय की ओर से एक और झटका लगा है। इस वर्ष 1 और 2 फरवरी को 14 कर्मचारियों के भिन्न-भिन्न मामलों में उन्हें पिछले 50 प्रतिशत भुगतान के साथ बहाली के आदेश दिए हैं।

इनमें से तीन कर्मचारी भगवती प्रसाद डोभाल, विजय कुमार अरोड़ा और रमेश कुमार नौटियाल रिटायर हो चुके हैं। इन सभी मामलों में हिन्दुस्तान टाइम्स समूह प्रबंधन ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिकाओं पर स्टे करते हुए न्यायालय ने श्रम न्यायालय के आदेश के अनुरूप पिछला बकाया भुगतान 4 सप्ताह के भीतर उच्च न्यायालय रजिस्ट्रार जरनल के पास जमा कराने का आदेश दिया है। इसके परिणामस्वरूप प्रबंधन भारी दबाव में है क्योंकि इन कर्मचारियों की बहाली के साथ ही अब मजीठिया वेजबोर्ड का मुद्दा भी जागृत हो गया है। इससे बचने के लिए हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की मालकिन शोभना भरतिया और उसके बेटों ने हाईकोर्ट जाकर इसे रुकवाने का प्रपंच रचा था जिसका शीघ्र ही पटाक्षेप होगा।

पाठकों की जानकारी के लिए यह बताना जरूरी है कि हिन्दुस्तान टाइम्स समूह प्रबंधन अपने यहां किसी भी कर्मचारी को मजीठिया वेजबोर्ड के अनुरूप वेतन नहीं दे रहा है, जबकि दौलत के बल पर उत्तर प्रदेश सरकार के कई अफसर सुप्रीम कोर्ट में ऐसे दावे कर चुके हैं कि हिन्दुस्तान टाइम्स समूह में मजीठिया वेज बोर्ड लागू है।

फरवरी 2019 में दिल्ली की द्वारका कोर्ट ने भगवती प्रसाद, विजय अरोड़ा, रमेश नौटियाल, दिनेश तिवारी, शशिभूषण, राजेश भारद्वाज, कमलेश शुक्ला, रविन्द्र, राजेश्वर, अजय कुमार, विजय एस., शशि पांडेय, सतीश सागर के फेवर में फैसला सुनाते हुए continuity of service के साथ 50 फीसदी बैक वेजिज देने का अवार्ड पास किया. इसे हिंदुस्तान प्रबंधन ने दिल्ली हाईकोर्ट में चैलेंज किया. 15 और 22 जुलाई को दिल्ली हाईकोर्ट ने केस को स्टे कर चार सप्ताह के भीतर 50 फीसदी back wages रजिस्ट्री में जमा करवाने के आदेश हिंदुस्तान टाइम्स समूह अखबार प्रबंधन को दिए हैं।

ज्ञात हो कि अपने कर्मियों के उत्पीड़न का एचटी ग्रुप का इतिहास बहुत पुराना है। वर्ष 2004 में महात्मा गांधी की जयंती पर एक ही झटके में हिन्दुस्तान टाइम्स समूह ने अपने 476 कर्मचारियों को बिना किसी पूर्व सूचना के अन्यायपूर्ण एवं बलपूर्वक नौकरी से बाहर कर दिया था। इसके बाद कर्मचारियों का मनोबल तोड़ने के लिए कुछ से समझौता करके डरा-धमका कर औने-पौने दाम में निपटा दिया गया लेकिन 272 लोगों ने हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की मालकिन शोभना भरतिया से लड़ने की ठानी और वकीलों की भारी-भरकम फौज के बावजूद वह कर्मचारियों का मनोबल नहीं तोड़ सकी।

जनवरी 2012 में आयता राम एवं अन्य बनाम हिन्दुस्तान टाइम्स लिमिटेड व अन्य मामले में इन कर्मचारियों की जीत हुई और फैसला पक्ष में आया लेकिन शोभना भरतिया और उसके दोनों बेटे कोर्ट के आदेश के बावजूद उन्हें उनका अधिकार और नौकरी न देने पर अडिग थे। जीत के बावजूद इन कर्मचारियों को वकीलों और दौलत के बल पर जिला अदालत से लेकर उच्चतम न्यायालय तक घुमाया, लेकिन अंतत: इस वर्ष 2019 जनवरी में दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश से उन्हें नौकरी पर रखने का आदेश दिया तथा तुरंत पिछला भुगतान देने का आदेश हुआ। उच्चतम न्यायालय तक हार के बाद अंतत: हिन्दुस्तान टाइम्स प्रबंधन ने कर्मचारियों का पिछला भुगतान करीब 14 करोड़ दिया, लेकिन उन्हें यह भुगतान 2004 के हिसाब से दिया गया जबकि उच्च न्यायालय ने सभी की नौकरी को कन्टीन्यू मानते हुए बढ़ते क्रम में देने का आदेश दिया था।

मामला न्यायालय में है और अगले दो माह के भीतर इसपर भी पूरा भुगतान करने का आदेश करने के लिए उच्च न्यायालय आदेश पारित कर चुका है लेकिन हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की मालकिन शोभना भरतिया समूह को गर्त में धकेलने पर उतारू है। उच्चतम न्यायालय तक हार के बावजूद इन कर्मचारियों को बाहरी दिल्ली के कादीपुर गांव स्थित एक खाली प्लॉट में बिना किसी काम के जानवरों की भांति बैठा दिया गया था और तंग करने के उद्देश्य से बिना किसी काम के दो शिफ्टों में ड्यूटी लगाई गई है। कर्मचारियों को वर्ष 2004 के हिसाब से तनख्वाह दी जा रही है और इन कर्मचारियों से गुलामों की तरह व्यवहार किया जा रहा है। जरा-जरा सी बात पर धमकी, मूल सुविधाओं के बिना जानवरों की भांति बाड़े में रखा जा रहा है।

असल में शोभना भरतिया और उसके बेटों को यकीन था कि वह पैसों और मीडिया के दबदबे के कारण न्यायपालिका को भी खरीद लेंगे लेकिन यहां वह मात खा गए। असल में हिन्दुस्तान टाइम्स समूह प्रबंधन व्यवस्था की खामियों से भलीभांति परिचित है जिसके दम पर वह कर्मचारियों से पिछले डेढ़ दशकों से खिलवाड़ करता आ रहा है. दरअसल राजनीतिज्ञों और उनकी औकात से वह भलीभांति परिचित है. इसी दौलत और मीडिया की हनक के कारण कभी के. के. बिरला और शोभना भरतिया राज्यसभा की शोभा बन चुके हैं और राजनेताओं के चरित्र को भलीभांति जानते हैं कि उन्हें कैसे अपने साथ मिलाया जाता है और फिर कैसे गैर कानूनी काम को भी अमली जामा पहनाया जाता है।

जिस पनामा पेपर्स और काले धन को विदेशी रूट से सफेद करने पर दूसरी कंपनियों की खूब चर्चा 2017-2018 में हुई थी उसमें शोभना भरतिया की कम्पनियों के भी नाम आए थे और इंडियन एक्सप्रेस समूह ने उसे छापा था लेकिन मजाल है कि कभी शोभना भरतिया की कम्पनियों की छापेमारी तो दूर उनका ऑडिट भी करवाया गया हो। पनामा पेपर्स में नाम आने के बाद शोभना भरतिया ने पलटी मारते हुए श्री नामधन्य अरूण जेटली (जो हिन्दुस्तान टाइम्स के वकील के तौर पर भी काम करते रहे हैं) के जरिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक सीधी पहुंच बनाई और पनामा पेपर्स धरे के धरे रह गए और वह कम्पनियां भी कहीं खो गईं या मर्ज कर दी गईं और आयकर, कम्पनी कानून और डीआरआई से लेकर एनआईए सब दुबक गए। दो-चार और 10-12 लाख के विदेशी धन के इस्तेमाल और दुरूपयोग के मामले में जहां मोदी सरकार की पूरी मशीनरी दिल्ली से मुम्बई तक खाक छानती है, वह शोभना भरतिया की कम्पनियों के कई सौ करोड़ के मामलों में नोटिस तक जारी नहीं करती, इससे शोभना भरतिया एण्ड कम्पनी के रसूख का पता चलता है। समूह प्रबंधन दावा करता है कि न्यायपालिका में भी उनका दबदबा है और उनका कुछ नहीं बिगड़ने वाला।

निकाले गए कर्मचारियों को लेकर अब दबाव इतना बढ़ गया है कि कभी किसी को चेन्नई, किसी को बंगलूरू, किसी को कलकत्ता को किसी को सिरसा और अमृतसर न्यूज एजेंसियों तथा न्यूज सप्लायरों के यहां ट्रांसफर के लैटर दिए जा रहे हैं, ताकि न जाने वालों के खिलाफ झूठे आरोपों के तहत उन्हें एक-एक कर निकाला जाए। कई कर्मचारी दिए गए पतों पर पहुंचे तो पता चला कि वहां कोई न्यूज या बुक सप्लायर या न्यूज एजेंसी की दुकान है और वहां न तो कोई सूचना है और न जगह और यह सब एक कंट्रैक्ट के तहत कम्पनी से जुड़े हैं और उनका इससे ज्यादा कोई लिंक नहीं है। उन्हें एडवरटाईसिंग और न्यूजपेपर्स सप्लाई के लिए कमीशन मिलता है। इसी प्रकार के शोषण के कारण गत 2 अगस्त को बाहरी दिल्ली में बनाए गए बाड़े में ऱखे गए एक सताए हुए कर्मचारी रमेश कुमार की मौत हो गई, क्योंकि उसे समय पर पीने का पानी तक नहीं मिल सका और न ही प्राथमिक उपचार, जिससे उसके परिवार पर कहर टूट पड़ा। अब परिवार प्रबंधन से लड़ाई लड़ेगा या पालन पोषण की चिंता। मामला अभी एक्सीक्यूशन कोर्ट में है और यह सारा मामला उनके संज्ञान में है और उच्च न्यायालय ने हाल ही में संबंधित न्यायालय के छूट दी है कि यदि कोई वादी या प्रतिवादी उसके आदेश को नहीं मानता है तो उसके खिलाफ आदेश पारित किया जा सकता है।

[साभार: भड़ास4मीडिया.काम]

Thursday 8 August 2019

वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट को बचाने के लिए लिखे राष्‍ट्रपति, प्रधानमंत्री और श्रम मंत्री को पत्र

साथियों जैसा की आप जानते हैं कि केंद्र सरकार श्रम कानूनों में सुधार के नाम पर वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट को समाप्‍त करने जा रही है। इस एक्‍ट की वजह से ही हमारे लिए सरकार वेजबोर्ड का गठन करती है। इसी एक्‍ट की वजह से हमें अन्‍य श्रमिकों से अलग मानते हुए हमारे लिए अलग से प्रावधान किए गए हैं। यदि ये एक्‍ट ही खत्‍म हो जाएगा तो अखबार मालिक और अधिक निरंकुश हो जाएंगे। इसका नतीजा व्‍यापक पैमाने पर शोषण और जब चाहे नौकरी से निकालने के रूप में देखने को मिलेगा। अभी भी समय है कि हम इस एक्‍ट की समाप्ति के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करवाएं। यदि सड़क पर नहीं उतर सकते तो कम से कम ईमेल या डाक से अपनी बात को राष्‍ट्रपति, प्रधानमंत्री और श्रम मंत्री तक पहुंचाएं। धर्मशाला से हमारे साथी रविंद्र अग्रवाल ने एक ऐसा ही विरोध पत्र माननीय राष्‍ट्रपति, पीएम और श्रम मंत्री को लिखा है। रविंद्र अग्रवाल के नाम की जगह अपना नाम, पद, अखबार का नाम और पता लिखकर इस पत्र को भेजे। यदि आप बर्खास्‍त है या तबादले का केस लड़ रहे हैं तो इस का जिक्र भी करें। संभव हो तो अपने प्रभाव वाली अखबार कर्मियों की यूनियनों से भी ऐसा ही पत्र लिखकर भेजने का अनुरोध करें।

आप निम्‍म पते या ईमेल एड्रेस पर इस पत्र को भेजें-
राष्‍ट्रपति का पता और ईमेल
President's Secretariat,
Rashtrapati Bhavan,
New Delhi – 110 004
Email ID: presidentofindia@rb.nic.in

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पता और ईमेल
Office Address: साउथ ब्लॉक, रायसीना हिल, नई दिल्ली -110011, इंडिया
South Block, Raisina Hill, New Delhi-110011, India
घर का पता : 7, रेस कोर्स रोड, नई दिल्ली
7, Race Course Road, New Delhi
email id: narendramodi1234@gmail.com
PMO email id: connect@mygov.nic.in.

श्रम मंत्री का पता और ईमेल
Ministry of Labour & Employment
Govt. of India, Shram Shakti Bhawan
Rafi Marg, New Delhi-110001
India
email id: molegangwar@yahoo.com

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प्रतिष्‍ठा में, 
महामहिम राष्‍ट्रपति महोदय, 
भारत गणराज्‍य, 
नई दिल्‍ली। 

विषय: श्रमजीवी पत्रकार और अन्‍य समाचारपत्र कर्मचारी (सेवा की शर्तें) और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम,1955 तथा श्रमजीवी पत्रकार (मजदूरी की दरों का निर्धारण) अधिनियम, 1958 को निरस्‍त करने का विरोध और चिंताएं।  

मान्‍यवर,

केंद्र सरकार ने 23 जुलाई को लोकसभा में व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति को विनियमित करने वाले कानूनों में संशोधन करने के लिए व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता विधेयक, 2019 प्रस्‍तुत किया है। इसमें श्रमजीवी पत्रकार और अन्‍य समाचारपत्र कर्मचारी (सेवा की शर्तें) और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम,1955 तथा श्रमजीवी पत्रकार (मजदूरी की दरों का निर्धारण) अधिनियम, 1958 को निरस्‍त किए जाने वाले 13 श्रम कानूनों में शामिल किया गया है, जो लोकतंत्र के चौथे स्‍तंभ के साथ कुठराघात है। देश के श्रमजीवी पत्रकारों और समाचारपत्र स्‍थापनाओं में कार्य करने वाले अन्‍य कर्मचारियों के वेतन और सेवाशर्तौं से जुड़े उपरोक्‍त दोनों अधिनियमों के विशेष प्रावधानों के कारण श्रमजीवी पत्रकारों और अन्‍य समाचारपत्र कर्मचारियों को वेजबोर्ड का संरक्षण प्राप्‍त है।

महोदय, उपरोक्‍त दोनों अधिनियम तत्‍कालीन केंद्र सरकार ने प्रेस कमीशन की सिफारिशों और विभिन्‍न जांच समीतियों की रिपोर्टों को ध्‍यान में रखते हुए बनाए थे। वर्ष 1955 में श्रमजीवी पत्रकारों के लिए बनाए गए श्रमजीवी पत्रकार अधिनयम को और मजबूत करते हुए वर्ष 1974 को किए गए संशोधन के तहत इसमें समाचार पत्रों में कार्यरत अन्‍य कर्मचारियों को भी शामिल किया गया था। ये दोनों अधिनियम श्रमजीवी पत्रकारों और अन्‍य अखबार कर्मचारियों को बाकी श्रमिकों से अलग विशेष संरक्षण देते हैं और सही मायने में लोकतंत्र का चौथा स्‍तंभ होने में भूमिका निभा पाने का माहौल मुहैया करवाने में मदद करते हैं। इन अधिनियमों की खास बात यह है कि इनके तहत वेतनमान निर्धारण के लिए वेजबोर्ड का प्रावधान होने के चलते श्रमजीवी पत्रकार और अन्‍य अखबार कर्मचारी लोकतंत्र के बाकी तीन स्‍तंभों के समान ही एक सम्‍मानजनक वेतनमान पाने के हकदार बनते हैं। हालांकि सच्‍चाई यह भी है कि वर्ष 1956 में गठित प्रथम वेजबोर्ड (दिवतिया वेजबोर्ड) से लेकर पिछली बार वर्ष 2007 को गठित वेजबोर्ड ( मजीठिया वेजबोर्ड) को अखबार मालिकों ने कभी भी अपनी मर्जी से लागू नहीं किया और हर बार इन वेजबोर्डों सहित उपरोक्‍त अधिनियमों के प्रावधानों की वैधानिकता को माननीय सुप्रीम कोर्ट में चनौती दी गई। अखबार मालिकों के कुटिल प्रयासों के बावजूद श्रमजीवी पत्रकार और अखबार कर्मचारी अपनी यूनियनों और विभिन्‍न संगठनों के दम पर कानूनी लड़ाई जीतते रहे। यहां खास बात यह है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठों ने वेजबोर्ड और उपरोक्‍त अधिनियमों को संविधान संवत मानते हुए वेजबोर्ड को उचित ठराया है। अब तक किए गए दर्जनों मुकद्दमों में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्ववर्ती निर्णयों को विशेष टिप्‍पणियों के साथ कायम रखा है। ऐसे में इन विशेष अधिनियमों को निरस्‍त करने का निर्णय समझ से परे है। इस संबंध में कुछ महत्‍वपूर्ण तथ्‍य इस प्रकार से हैं:- 

..देश के स्‍वतंत्र होते ही शुरू हुआ था चिंतन
महोदय, देश के आजाद होते ही लोकतंत्र के इस चौथे स्‍तंभ की निष्‍पक्षता और स्‍वतंत्रता को लेकर चिंतन शुरू हो गया था। पहले जहां अखबारों का प्रकाशन और संचालन व्‍यक्‍तिगत तौर पर समाज चिंतक, देश की स्‍वतंत्रता के आंदोलन में शामिल सेनानी और प्रबुध पत्रकार करते थे। आजादी के बाद जैसे ही पूंजीपतियों या औद्योगपतियों ने अखबारों को व्‍यवसाय के तौर पर संचालित करना शुरू किया तभी से पत्रकारों के वेतनमान, काम के घंटों और बाकी श्रमिकों से अलग विशेषाधिकार देने की मांग उठना शुरू हो गई। इसे देखते हुए पहली बार वर्ष 1947 में गठित एक जांच समिति ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी, फिर 27 मार्च 1948 को ब्रिटिश इंडिया के केंद्रीय प्रांत और बेरार ( Central Provinces and Berar) ने समाचारपत्र उद्योग के कामकाज की जांच के लिए गठित जांच समिति ने सुझाव दिए और 14 जुलाई 1954 को भारत सरकार द्वारा गठित प्रेस कमीशन ने अपनी विस्‍तृत रिपोर्ट दी थी। इसके अलावा एक अप्रैल 1948 को जिनेवा प्रेस एसोसिएशन और जिनेवा यूनियन आफ न्‍यूजपेपर पब्‍लिशर्ज ने 01 अप्रैल 1948 को एक संयुक्‍त समझौता किया था। इस तरह एक व्‍यापक जांच और रिपोर्टों के आधार पर तत्‍कालीन भारत सरकार ने श्रमजीवी पत्रकार और अन्‍य समाचारपत्र कर्मचारी (सेवा की शर्तें) और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम,1955 तथा श्रमजीवी पत्रकार (मजदूरी की दरों का निर्धारण) अधिनियम, 1958 को लागू किया था। इतना ही नहीं भारत के संविधान के अनुच्‍छेद 43 ( राज्‍य की नीति के निदेशक तत्‍व) के तहत भी उपरोक्‍त दोनों अधिनयम संवैधानिक वैधता रखते हैं। 

...अधिनियमों को और अधिक मजबूत करने की जरूरत
महोदय, मौजूदा परिस्‍थितियों में जबकि प्रिंट मीडिया को चुनौती देने के लिए इलेक्‍ट्रानिक मीडिया और वेब मीडिया दस्‍तक दे चुका है, तो ऐसे में उपरोक्‍त अधिनयमों को और सशक्‍त बनाने की जरूरत है। श्रमजीवी पत्रकार और गैर-पत्रकार अखबार कर्मचारियों के संगठन लंबे अर्से से इन अधिनियमों में इलेक्‍ट्रानिक मीडिया और वेब मीडिया में काम करने वाले श्रमजीवी पत्रकारों और गैरपत्रकार कर्मचारियों को भी शामिल करने की मांग करते आ रहे हैं। वहीं इन अधिनियमों के उल्‍लंघन पर सख्‍त प्रावधान करने की भी जरूरत है। महज सौ या दो सौ रुपये जुर्माना करने के प्रावधन के बजाय भारी जुर्माना राशि, करावास की सजा और पीड़ित कामगार को हर्जाने की व्‍यवस्‍था करना जरूरी माना जा रहा था। वहीं श्रमजीवी पत्रकारों की ठेके पर नियुक्‍तियों पर रोकना भी जरूरी समझा जा रहा था। ऐसे में अधिनियमों को सशक्‍त बनाने के बजाय समाप्‍त करने का निर्णय केंद्र सरकार के खिलाफ रोष और चिंता उत्‍पन्‍न कर रहा है।

...आम मजदूर से अलग है अखबार कर्मचारी
महोदय, अखबारों में कार्यरत श्रमजीवी पत्रकार और अन्‍य कमर्चारी आम मजदूरों से अलग परिस्‍थितियों में कम करते हैं। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 07 फरवरी, 2014 को अखबार मालिकों की याचिकाओं पर सुनाए गए अपने फैसले में भी इस बात का स्‍पष्‍ट उल्‍लेख किया है कि अखबार कर्मचारियों को आम श्रमिकों से अलग परिस्‍थितियों, खास विशेषज्ञता और उच्‍च दर्जें के प्रशिक्षण के साथ काम करना पड़ता है। ऐसे में उन्‍हें वेजबोर्ड की सुरक्षा के साथ ही इस बात का भी ख्‍याल रखना जरूरी है कि समाज की दिशा और दशा तय करने वाले पत्रकारिता के व्‍यवसाय से जुड़े श्रमजीवी पत्रकारों और अन्‍य अखबार कर्मचारियों की जीवन शैली कम वेतनमान के कारण प्रभावित ना होने पाए।

...मजीठिया वेजबोर्ड के हजारों मामले श्रम न्‍यायालयों में विचाराधीन
महोदय, केंद्र सरकार द्वारा 11 नंवबर, 2011 को अधिसूचित मजीठिया वेजबोर्ड को लागू करवाने के लिए देशभर के हजारों श्रमजीवी पत्रकार और गैरपत्रकार अखबार कर्मचारी संघर्षरत हैं। इस वेजबोर्ड और उपरोक्‍त अधिनियमों को भी अखबार मालिकों ने (एबीपी प्राइवेट लिमिटेड व अन्‍य बनाम भारत सरकार व अन्‍य मामले में) संगठित तरीके से चुनौती दी थी, मगर वे इसमें कामयाब नहीं हो पाए। इस मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 07 फरवरी, 2014 को सुनाए गए अपने फैसले में मजीठिया वेजबोर्ड को लागू करने और 01 अप्रैल, 2014 से एक साल के भीतर चार किश्‍तों में देय एरियर का भुगतान करने के आदेश दिए थे। अखबार मालिकों ने ऐसा करने के बजाय सभी कर्मचारियों से वेतनमान ना लेने के बारे में जबरन हस्‍ताक्षर करवाना शुरू कर दिए और जिन कर्मचारियों ने हस्‍ताक्षर करने से इनकार किया उन्‍हें नौकरी से हटा दिया गया। हजारों की नौकरी चली गई और उन्‍होंने माननीय सुप्रीम कोर्ट में (अविशेक गुप्‍ता व अन्‍य बनाम संजय गुप्‍ता मामले में) अवमानना याचिकाएं दाखिल कीं। इस मामले में कोर्ट ने 19 जून 2017 को फैसला सुनाते हुए अखबार मालिकों को अवमानना से तो बरी कर दिया, मगर कुछ दिशानिर्देश जारी करते हुए श्रम न्‍यायालयों को बकाया वेतन की रिकवरी के मामलों पर छह माह में निर्णय लेने को कहा है। हजारों मामले अभी भी श्रम न्‍यायालयों में लंबित चल रहे हैं। वहीं राज्‍य सरकारें अभी तक मजीठिया वेजबोर्ड को लागू करवाने के मामले में नकारा साबित हुई हैं। केंद्रीय श्रम विभाग महज बैठकें करने और दिशानिर्देंश देने तक सीमित है। फिलहाल बेरोजगार हो चुके हजारों अखबार कर्मचारी निरस्‍त किए जा रहे उपरोक्‍त अधिनियमों के सहारे ही अपनी अपनी लड़ाई जारी रखे हुए हैं। वर्ष 1955 में बने इस अधिनियम का इतने व्‍यापक स्‍तर पर पहली बार न्‍याय निर्णय के लिए उपयोग हो रहा है तो ऐसे में इसे निरस्‍त करने का प्रयास श्रमजीवी पत्रकारों और अन्‍य अखबार कर्मचारियों के अधिकारों पर जबरदस्‍त कुठाराघात होगा।

...ऐसे तो ध्‍वस्‍त हो जाएगा चौथ स्‍तंभ
महोदय, उपरोक्‍त दोनों अधिनियमों को निरस्‍त करके श्रमिकों के लिए बनाए गए नए अधिनियम के ड्राफ्ट में सिर्फ तीन धाराएं शामिल करने से श्रमजीवी पत्रकारों और अन्‍य अखबार कर्मचारियों की हालत और दयनीय हो जाएगी। न्‍यूजपेपर इंडस्‍ट्री अब मिशन पत्रकारिता को रौंद कर टारगेट आधारित इंडस्‍ट्री में तब्‍दील हो चुकी है। समाचारपत्रों में मालिकों और पत्रकारों के बीच की मजबूत दीवार कही जाने वाले संपादकों की संस्‍था पहले ही ध्‍वस्‍त हो चुकी है। अखबार कर्मचारियों विशेषकर श्रमजीवी पत्रकारों की पैरवी करने वाला कोई नहीं रहा है। संपादक अब कांटेंट से हटकर कांट्रेक्‍ट के काम में व्‍यस्‍त हैं और मालिकों के मैनेजर का काम करने लगे हैं।

अखबार कार्यालयों में लाभ-हानि के आंकड़े जुटाने वाले मैनेजरों का कब्‍जा होता जा रहा है। अधिकतर अखबार मालिक अब सीधे खबरों को विज्ञापन के साथ तौल कर प्‍लानिंग करने लगे हैं। हाल ही के चुनावों में बड़े-बड़े अखबारों के मालिकों को राजनीतिक दलों से पेड न्‍यूज प्‍लान करते कैमरे पर पकड़े जाने की खबरें अगर केंद्र सरकार के नीति निर्धारकों तक नहीं पहुंच पा रही हैं तो भारत की पत्रकारिता गंभीर संकट में है। वहीं प्रेस की स्‍वतंत्रता को और भी ज्‍यादा खतरा है, क्‍योंकि प्रेस की आजादी अखबार मालिकों के मुनाफा कमाने की आजादी से कहीं उस पत्रकार की आजादी से है, जो उचित वेतनमान और कानूनी तौर पर संरक्षित माहौल मिलने पर ही स्‍वतंत्र और निष्‍पक्ष होकर सही जानकारी आम जनता तक परोस सकता है। ऐसे में लोकतंत्र का चौथा स्‍तंभ ध्‍वस्‍त होने से तभी बचेगा, जब उपरोक्‍त कानूनों को निरस्‍त करने के बजाय इन्‍हें और मजबूती प्रदान की जाएगी।

...अखबार मालिकों की चाल में ना आए सरकार
महोदय, उपरोक्‍त निर्णय से अखबार कर्मचारियों में आशंका है कि अखबार मालिक संगठित होकर सरकार को गुमराह कर रहे हैं और कहीं ना कहीं उपरोक्‍त अधिनियमों को निरस्‍त करवाने में इनकी चाल हो सकती है। निवेदन है कि इस मामले में अपने स्‍तर पर जांच करवा कर इस तरह की कोशिश पर विराम लगाया जाए और पत्रकार और गैरपत्रकार अखबार कर्मचारियों के संगठनों की मांगों के अनुरूप इन अधिनियमों में उपयुक्‍त संशोधन करके इन्‍हें और सशक्‍त बनाया जाए।

आदर सहित
भवदीय

रविंद्र अग्रवाल अध्‍यक्ष,
(न्‍यूजपेपर इम्‍प्‍लाइज यूनियन ऑफ इंडिया)

प्रतिलिपि-
आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
आदरणीय श्रम मंत्री, भारत सरकार

Tuesday 6 August 2019

Warning Letter to Employee - अगर आपको Warning Letter मिले तो क्या करें?

Warning Letter to Employee

किसी भी Employee के लिए Life में उनके Company/Factory/Organization का बहुत ही Important होता है. इसका कारण यह है कि इसी रोजी-रोजगार से उनका Family का पेट पलता है. कोई भी Employee कभी भी जानबूझ कर अपनी Job खोना नहीं चाहता है. वह हर संभव प्रयास करता है कि उसकी Job बनी रहे. इसके वावजूद भी कभी-कभी कुछ ऐसी नौबत आ जाता है कि उनसे जाने-अनजाने में कुछ Mistake हुई नहीं की उनको Company के द्वारा Warning Letter मिल जाता है. कभी-कभी प्रबंधन द्वारा किसी साजिश के तहत भी Warning Letter Issue किया जाता हैं. आज हम इसी Warning Letter to Employee बारे में Information चर्चा कर रहें हैं.

अगर आपको काम के दौरान Management द्वारा Warning Letter दिया गया है तो घबराहट स्वभाविक बात है. मगर इसमें ज्यादा घबराने वाली कोई भी बात नहीं है. आज हम इसके हर पहलु पर गौर करेंगे.

Warning Letter to Employee Kya hai?

सबसे पहले हमारे मन में यह Question उठता है कि Warning Letter क्या हैं? तो Information के लिए बता दूं कि Warning Letter एक चेतावनी पत्र है, जो किसी Employee को उसके अनुचित या अन्यथा नकारात्मक आचरण के खिलाफ Company Management द्वारा जारी Formal Letter है.

Warning Letter to Employee Kab diya jata hai?

एक Warning Letter का उपयोग कई स्थितियों में किसी गलती के लिए दी जाती है. किसी भी Employee को Company के Rules, Contract etc के उल्लंघन के करने के लिए Warning Letter  दिया जाता है. इन सभी परिस्थितियों में Warning Letter किसी भी Employee के ऊपर Disciplinary Action का First Stage हैं.

या यूं कह लीजिये की जब Company को  आपको Job से निकालना होता है तब इसके लिए Management आपको Warning Letter देकर Record Maintain करती है, ताकि आपको Wrong ठहरा सके और Job से Terminate कर सके.
Work या Professional Sector में, अपने Customers और Employees को सुरक्षित, स्थिर और कुशल कार्य वातावरण बनाए रखने की ज़िम्मेदारी Employer की है. ऐसी कोई भी परिस्थिति जो इस वांछित माहौल को खतरे में डालती है, Employer से लिखित Warning के रूप में तत्काल प्रतिक्रिया प्राप्त होती हैं. अक्सर देखा गया है कि आमतौर पर लिखित Waring Letter किसी भी Employee को तब दिया जाता है जब Employer या Supervisor द्वारा दी गई किसी भी Oral Waring का पालन नहीं किया जाता है. किसी भी अनुचित, गैर-व्यावसायिक या अवांछित आचरण होने के स्थिति में कोई भी नियोक्ता समस्या को Formally Resolve करने के लिए Employee को Warning Letter जारी करेगा.

एक Warning Letter एक Company के कार्य नैतिकता में एक अपराध की औपचारिक स्वीकृति के रूप में Poor या अक्षम नौकरी प्रदर्शन ( Inefficient Job Performance), सहकर्मियों (Colleagues) के बीच Work Place  में अनुचित आचरण, कंपनी नीति के लिए उपेक्षा और कंपनी संसाधनों के प्रबंधन के कारण जारी किया जाता है. 

यह Company के Policy के उलंघन के  Base पर, कंपनी के भीतर महत्वपूर्ण Authority वाले किसी व्यक्ति द्वारा एक Warning Letter जारी किया जाता है. यह किसी व्यक्ति, एक टीम या पूरे विभाग के खिलाफ जारी किया जा सकता है. एक Employer और Employee के बीच सभी Formal Correspondence के साथ Warning Letter, भविष्य के संदर्भ के लिए पॉलिसी के उलंघन के Formal Records  के रूप में कार्य करता है. 

Warning Letter to Employee Format

Professional संदर्भ में, एक Warning Letter Format, Simple, Short और To the Point होना चाहिए. Warning Letter में Bad Conduct (विशिष्ट बुरे आचरण) को शुरुआत से स्पष्ट किया जाना चाहिए ताकि गलत व्याख्या के लिए कोई मौका न हो. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह एक Warning Letter (चेतावनी पत्र) हैं. इसको कभी भी Disciplinary Action नहीं माना जाता है.

हालांकि यह Employee को उन परिणामों के बारे में स्पष्ट कर सकता है जो कार्रवाई को दोहराए जाने पर आने वाले परिणाम हो सकते हैं. Warning Letter  स्वर विनम्र हो सकता है क्योंकि, इसके नकारात्मक अर्थ के बावजूद, किसी कर्मचारी को एक चेतावनी पत्र हमेशा Professional और Personally उस Employee की मदद करने के इरादे से जारी किया जाता है, और इसका काम Company के सुचारु कार्य सुनिश्चित करना है.

Warning Letter to Employee Sample/Format

Warning Letter to Employee

To,

Sh. ---------------
 -----------------(Name and Address of Employee)

Sub. – Warning Letter

Dear Mr./Miss/Mrs. …………,

It has been observed that since your joining you are not performing up to the level that been expected, resulting to put you in the list of poor performers, which is directly resulting in willful insubordination and gross negligence of duties, in your capacity as Operator.

Performing below the level is making yourself liable for necessary action. 

You are hereby warned to develop your performance; failure to do so shall invoke appropriate action.

You are further advised to submit a written explanation on your poor performance as soon as you receive this letter.

Hope to see you complying with the company rules.

For' -----------------------
Name:
Designation
Date:

Warning Letter to Employee - अगर आपको Warning Letter मिले तो क्या करें? 



अगर आपको Warning Letter मिले तो क्या करें?

  • अगर आपको Company द्वारा Warning Letter मिले तो धैर्य से काम लें, और इसको अनुशासन पूर्वक Receive करें. 
  • अगर आपको साजिश के तहत Warning Letter दिया जा रहा हो और अगर आपने इस तरह की Mistake नहीं की है तो अपने Signature के साथ “With Objection” (विरोध सहित) लिखकर Signature करें.
  • Warning Letter चाहे Email पर मिले या Paper पर, उसको हमेशा संभाल कर रखें. 
  • Waring Letter का जबाब नहीं देना होता है, यह आपको आपके Mistake को Inform करने के लिए होता है, ताकि अगर आपने उस तरह की Mistake की है तो उससे बचें.
  • हमने देखा है कि आजकल Employer अपने Employee को Email के द्वारा Warning Letter  जारी करते हैं. जिसके बाद Employee जल्दबाजी में माफ़ीनामा लिखकर Reply कर देता है. 
  • इतना ही नहीं बल्कि उसकी Mistake हो या न हो, मगर English में आसानी से लिख देता है, "Sir/Madam, Please give me a chance”.जबकि उसकी इस तरह की Mistake आने वाले समय में गंभीर Problem उत्पन्न करती है.
  • अगर आपसे Mistake भी जाए तो Written में स्वीकार करने से बचें. आपकी कोशिश यह होनी चाहिए की सबकुछ मौखिक रूप से निपट जाए. 
  • जैसा की ऊपर भी बताया है कि Warning Letter केवल आपको आपके द्वारा किये गए गलती का चेतावनी देने के लिए है. इसलिए घबराने की जरुरत नहीं है. हां, यह कोशिश जरूर करना है कि इस तरह की गलती भविष्य में दुहराई नहीं जाए. अगर ऐसा होता है तो आगे बात So-Cause, Charge-Sheet से Termination तक पहुंच सकती है. 

[workervoice.in से साभार]

नैतिकता खोता नईदुनिया… स्वतंत्रता दिवस हर अखबार के लिए व्यवसाय बना!

संपादक बने मार्केटिंग मैनेजर दे रहे व्यवसाय और प्रसार के लिए टारगेट…. खबरें सबसे अच्छी दो, साथ ही स्टूल और वाशिंग पाउडर भी रोज बेचो…. मध्य प्रदेश का सबसे पहला अखबार नईदुनिया फिलहाल जैसे अपनी आखिरी वक्त में है। जो अखबार कभी नैतिकता का परिचायक था, आज उसमें नैतिक मूल्यों के अलावा सब कुछ है। दैनिक जागरण के द्वारा अधिग्रहण किए जाने के बाद अब नईदुनिया टीम को भी पूरी तरह व्यवसाय पर ही फोकस करवाया जा रहा है। अखबार की व्यवसायिक और प्रसार विभाग की टीम के साथ संपादकीय टीम को भी खड़ा कर दिया गया है।

मजेदार बात यह है कि प्रदेश संपादकीय टीम पर व्यवसाय करने और अख़बार की प्रसार संख्या बढ़ाने की जिम्मेदारी दोनों टीमों के प्रमुख अधिकारियों से भी ज्यादा है। दरअसल यहां अख़बार के संपादक ही राग दरबारी गा रहे हैं। नईदुनिया के संपादक काफी पहले इस व्यवस्था के आगे अपने घुटने टेक चुके हैं और अब वे अख़बार के सभी प्रमुख कार्यालयों में अपने अलग-अलग जिले के ब्यूरो प्रमुख को टारगेट बांटने की जिम्मेदारी में हैं। संपादक महोदय यहां भी जागरण प्रबंधन की उम्मीदों पर खरे उतर रहे बताए जाते हैं, क्योंकि रिपोर्टरों और ब्यूरो प्रमुखों को उनके द्वारा दिए गए टारगेट तो प्रबंधन द्वारा तय किए गए लक्ष्यों से भी ज्यादा हैं।

बताया जाता है कि संपादक महोदय का यह रोल दैनिक जागरण प्रबंधन को काफी पसंद आया है और संभवतः जल्दी ही उन्हें नई तरक्की दी जाएगी। यहां बात नईदुनिया के रिपोर्टरों और ब्यूरो प्रमुखों की भी होनी चाहिए जो फिलहाल यहां एक अलग तरह के डर में जी रहे हैं। डर इस बात का है कि जब संपादक ही उन्हें टारगेट दे रहा है तो अब अख़बार के साथ अच्छे भविष्य की संभावना कम है। अख़बारों में खबर लिखने के लिए जागरण एक ओर तो नैतिक नियम बताता है और दूसरी ओर संपादक महोदय आने वाले प्रमुख त्यौहार से पहले विज्ञापन के टारगेट पूरे करने के लिए दबाव बना रहे हैं। जो बड़े विज्ञापन देंगे उनकी खबर लिखना नैतिकता में नहीं आएगा और जिनके बारे में लिखना नैतिकता है वे विज्ञापन नहीं दे सकते।

एक नजर इन समाचार कर्मियों की परेशानियों पर….
सीईओ और प्रदेश के प्रसार प्रमुख ने अखबार की प्रसार संख्या बढ़ाने के लिए एक योजना बनाई है। यहां उन्होंने दूसरे सभी अखबारों से आगे निकलने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए वे संपादक के साथ मिलकर सभी जिलों के ब्यूरो प्रमुख पर दबाव बना रहे हैं कि प्रसार संख्या को यह कहकर प्रचारित करें कि नईदुनिया इपोलिन वाशिंग पाउडर की छह महीने तक सप्लाई देगा। इससे वे बाकी सभी अखबारों से मीलों आगे हो जाएंगे और अख़बार नंबर एक बन जाएगा। अब मैदानी टीम की समस्या है अलग है। दरअसल जिन अख़बारों से उन्हें मीलों आगे होना है, उनकी शीर्ष टीम नईदुनिया की सीईओ शुक्ला टीम से कुछ ज्यादा ही होशियार है।

दैनिक भास्कर जहां अख़बार पढ़ने वालों को पच्चीस करोड़ के ईनाम दे रहा है तो पत्रिका का मामला भी करोड़ों में ही है। अब बेचारे जिला ब्यूरो प्रमुख कैसे लोगों को छह महीने की सप्लाई करें! इसके इसके लिए सभी ब्यूरो प्रमुखों से हर हफ्ते एक नया टारगेट मांगा जा रहा है, जिसमें उन्हें ही निर्णय लेना है कि वे अपने मातहत आने वाली कौन सी एजेंसी की कितनी कॉपियां बढ़ाएंगे। ऐसा इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि पहले ही काफी संख्या में कॉपियां बढ़ाई गईं हैं और अब अखबार के शीर्ष अधिकारी इन एजेंटों के सामने जाने की हिम्मत फिलहाल नहीं जुटा पा रहे हैं। संभव है कि आने वाले कुछ दिनों में नईदुनिया अखबार की प्रसार एजेंसियों में से काफी अख़बार से अपना नाता तोड़ भी लें।

स्वतंत्रता दिवस व्यवसाय, लेकिन दाम दो गुना…
सभी जिलों के ब्यूरो प्रमुख लगभग सदमे में हैं, क्योंकि उन्हें अस्सी हजार रु प्रति पेज के हिसाब से करीब 5-10 पेज के विज्ञापन लाने हैं। यह दाम पहले 30-40 हजार रु प्रति पेज के होते थे। वहीं दैनिक भास्कर और पत्रिका के ज्यादातर संस्करणों में प्रति पेज विज्ञापन का दाम अभी भी 20 से 40 हजार रु तक ही है। ऐसे में नईदुनिया के ब्यूरो प्रमुख की जिम्मेदारी है कि वे प्रत्येक विज्ञापनदाता से न्यूनतम दो हजार रुपये का विज्ञापन लें और उन्हें प्लास्टिक के स्टूल वितरित करें। अपने एजेंटों और बाजार से अस्सी लाने के लिए ब्यूरो प्रमुखों को प्रति पेज एक ग्राम सोना देने का लालच दिया गया है। हालांकि प्रबंधन के इस वादे पर ब्यूरो प्रमुखों को ही संशय है, क्योंकि मौजूदा प्रबंधन ने दो वर्ष पहले दीपावली पर उन्हें जो मिठाई के पैकेट दिए थे, उन पर वजन तो पांच सौ ग्राम लिखा था लेकिन तौल साढ़े तीन से चार सौ ग्राम का ही था।

बहरहाल रिपोर्टरों पर अच्छी से अच्छी खबर लिखने से पहले ज्यादा से ज्यादा कॉपी बढ़ाने और लोगों से दिए गए टारगेट के मुताबिक विज्ञापन लेकर उन्हें स्टूल देने की जिम्मेदारी है। रिपोर्टर बताते हैं कि यदि इनमें से एक काम में भी कसर रही तो उनकी नौकरी जाना या अनचाहा तबादला होना तय है। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि आने वाले दिनों में नईदुनिया में कई पत्रकार अपने संपादकों के इन दबावों के आगे ही नौकरी छोड़ भी सकते हैं या संस्थान भी उन्हें हटा सकता है।

जुलाई महीने में इस व्यवसायिक रणनीति पर संपादक और सभी मैनेजरों और उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने पहले भोपाल फिर इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर आदि के कार्यालयों में जाकर बैठक ली है। इसके बाद अब आंचलिक टीमों को भी यह जिम्मेदारी दी गई है। सबसे ज्यादा दबाव नईदुनिया के सबसे मजबूत गढ़ मालवा निमाड़ इलाके में है, जहां से अख़बार को सबसे ज्यादा रेवेन्यू मिलता है। एक और बात जागरण और नईदुनिया ने अपने कर्मचारियों को अप्रैल में दी जाने वाली वेतन वृद्धि भी अब तक नहीं दी है। यहां प्रतिवर्ष औसतन तीन से पांच प्रतिशत की वेतन वृद्धि दी जाती है। कुछ कर्मचारियों की वेतन वेतन बढ़ोत्तरी पिछले कुछ वर्षों में कुछ दो तीन सौ रुपये तक ही हुई है।

[मध्‍यप्रदेश के एक साथी से प्राप्‍त जानकारी के आधार पर]

Friday 2 August 2019

मजीठिया: सुप्रीम कोर्ट के फैसले में 20 जे को लेकर क्या है निष्कर्ष, इस भावार्थ से समझें



साथियों हममें से बहुतों के मामले में 20जे का मुद्दा कंपनियां श्रम कार्यालयों या लेबर कोर्ट में लेकर आ रही हैं। ऐसे में हमारे कई साथी या उनके प्रति‍निधि या वकील सुप्रीम कोर्ट के 19 जून के आदेश को सुनवाई के दौरान सही ढंग से पेश नहीं कर पा रहे हैं। 19 जून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा 20 जे पर पैरा 24 और 25 में दिए गए आदेश के संदर्भ मध्‍यप्रदेश हाईकोर्ट की मजीठिया पर बनी विशेष खंडपीठ के समक्ष कर्मचारी पक्ष द्वारा जबरदस्‍त दलीलें रखी गई थी। जिसके बाद मध्‍यप्रदेश हाईकोर्ट ने 20जे पर सुप्रीम कोर्ट के मर्म की व्‍याख्‍या करते हुए ऐतिहासिक फैसला कर्मचारियों के पक्ष में दिया था। इन दलीलों का आधार क्‍या था इसकी जानकारी हम मध्‍यप्रदेश के साथियों की मदद से आपतक पहुंचा रहे हैं। जिससे आप भी इस मुद्दे पर सुनवाई के दौरान अपना पक्ष मजबूती से रख सकें। इसलिए नीचे लिखे एक-एक शब्‍द को ध्‍यान से पढ़े...

जहां तक सबसे ज़्यादा विवादास्पद मुद्दे 20J का प्रश्न है, जिसे अधिनियम के प्रावधानों के साथ पढ़ा जाए, यह स्पष्ट है कि अधिनियम इस बात की गारंटी देता है कि धारा 2 (C) में परिभाषित प्रत्येक “समाचारपत्र कर्मचारी” को अधिनियम की धारा 12 के अंतर्गत वेतन बोर्ड की अनुसंशित और केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित  और अधिसूचित वेतन मिलने की पात्रता है।

इस तरह अधिसूचित वेतन मौजूदा प्रचलित सभी वेतन को तय करने वाली सभी संविदाओं के ऊपर है उन्हें विस्थापित करता है। तथापि विधायिका ने अधिनियम की धारा 16 के प्रावधानों को समाहित करते हुए यह स्पष्ट किया है कि, वेतन भले ही कुछ भी तय और अधिसूचित किया गया हो, संबंधित कर्मचारी के लिए अपने नियोक्ता से धारा 12 के अधीन अधिसूचित वेतन से ज़्यादा बेहतर लाभ लेने का विकल्प सदैव खुला है।

इसलिए मजीठिया वेतनबोर्ड के अवार्ड के उपबंध 20J को इसी संदर्भ में पढ़ा और समझा जाना चाहिए। अधिनियम के अंतर्गत जो वेतन तय होता है उससे कम वेतन लेने के विकल्प की उपलब्धिता पर अधिनियम मौन है/ अधिनियम में कुछ नहीं लिखा है।

यह विकल्प स्वैच्छा से परित्याग (DOCTRINE OF WAIVER) के सिद्धांत में उपलब्ध है, जिसका इन प्रकरणों में उपलब्ध होने का प्रश्न ही इसलिए नहीं है क्योंकि उन्होंने (कर्मचारियों) ने, जैसा कि आरोप लगा है, जो लिख कर दिया (UNDERTAKING) है वह स्वेच्छा से त्याग की प्रकृति का नहीं है/अनिच्छा से दिया गया प्रकृति का है।

इसीलिए जो भी विवाद हो, उसे यहां दिए गए अधिनियम की धारा 17 के अधीन तथ्य से निष्कर्ष निकालने वाले प्राधिकारी द्वारा सुलझाया जाना चाहिए।

25. समाचार पत्र कर्मचारी को यदि उचित नहीं तो कम से कम न्यूनतम वेतन देने के उद्देश्य की प्राप्ति लिए इस अधिनियम के लाए जाने से संबंधित यदि किसी घटना का विधायिका के इतिहास में उल्लेख है तो बिजॉय कॉटन मिल्स लिमिटेड एवं अन्य बनाम अजमेर राज्य के मामले में दिया गया फैसला है जिसमें ठीक ऐसे ही न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948 के अधीन अधिसूचित वेतन को समझौते की परिधि से बाहर रखा गया है, ठीक वैसे ही जैसे इस अधिनियम में अधिसूचित वेतन को रखा गया है।

बिजॉय कॉटन मिल्स लिमिटेड के फैसले के पैरा 4 उपरोक्त मामले की व्याख्या करता है जो इस प्रकार है:

"4. इस बात पर विवाद हो ही नहीं सकता कि यह आम जनता के हित में है कि मजदूर को वह वेतन प्राप्त के अधिकार है केवल उनके ज़िंदा रहने ही नहीं बल्कि उनके स्वास्थ्य और बेहतर जीवन स्तर को बनाए रखने के लिए ज़रूरी है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 में दिए गए राज्य का एक नीति निर्देशक तत्व भी है। यह सभी जानते हैं कि सन 1928 में जिनेवा में आयोजित में न्यूनतम वेतन तय करने की पद्धति पर एक सम्मलेन हुआ था जिसके निष्कर्ष अंतरराष्ट्रीय श्रम संहिता में दिए गए थे।

न्यूनतम वेतन अधिनियम भी इन्ही निष्कर्षों को प्रभावी बनाने के लिए पारित किया गया था। (देखें साऊथ इंडिया एस्टेट लेबर रिलेशन ओर्गनइजेशन बनाम स्टेट ऑफ़ मद्रास) यदि मजदूरों को न्यूनतम वेतन का लाभ देना है और उसके नियोक्ता से शोषण के विरुद्ध उसे संरक्षण देना है तो यह नितांत आवश्यक है कि इस तरह के समझौतों की स्वतंत्रता पर रोक लगाईं जाए और इस तरह की रोक को एकदम जायज ठहराया जाए। दूसरी ओर नियोक्ताओं की न्यूनतम मजदूरी देने की विवशता की शिकायतों को बिलकुल नहीं सुना जाना चाहिए भले ही मजदूर मजबूरीवश कम वेतन पर काम करने को क्यों न तैयार हो।”
(इस पर जोर दिया गया है)। 

अधिनियम के प्रावधानों में या वेतन आयोग के अवार्ड में यह कहीं नहीं लिखा है कि इसका लाभ केवल नियमित कर्मचारियों को दिया जाए संविदा कर्मचारियों को नहीं दिया जाए।

मध्‍यप्रदेश उच्‍च न्‍यायालय की मजीठिया पर बनी विशेष खंडपीठ के इस महत्‍वपूर्ण फैसले को डाउनालोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न Path का प्रयोग करें- https://drive.google.com/file/d/1QdXzA_J7O0I6tEiKEOj_BHvtZEss8a9z/view?usp=sharing


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मजीठिया: एक्ट बड़ा ना कि वेजबोर्ड की सिफारिशें http://patrakarkiawaaz.blogspot.com/2016/07/blog-post_90.html





मजीठिया: 20जे के विवाद को लेकर इस तरह बनाएं अपना जवाब - http://patrakarkiawaaz.blogspot.com/2018/10/20.html



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मजीठिया मांगा तो भास्‍कर खुलेआम साइबर क्राइम पर उतर आया

मजीठिया वेजबोर्ड अवार्ड मांगने वाले कर्मचारियों का जानी दुश्‍मन बन गया है दैनिक भास्‍कर। कर्मचारियों के उत्‍पीड़न - परेशान करने के तमाम उपक्रमों-तिकड़मों में ताजा कारनामा आपराधिक कार्यों का भी जुड़ गया है। भास्‍कर खुद को अपने जन्‍मकाल से ही कानून कायदे से ऊपर मानता रहा है, लेकिन अब तो सरेआम क्राइम करने पर उतर आया है। एकदम नया मामला चंडीगढ़ एडीशन में साइबर क्राइम का है। और इसे आजमाया है एचआर डिपार्टमेंट के सबसे दानिशमंद- संजीदे- कर्मठ- कुशल कर्मचारी सुधीर श्रीवास्‍तव के ऊपर। उनका कुसूर महज इतना है कि उन्‍होंने अपनी पगार मजीठिया वेजबोर्ड की संस्‍तुतियों के हिसाब से करवाने के लिए आवाज उठा दी। पहले तो उन्‍होंने अपने हाकिमों के समक्ष अपना वेतन बढ़ाने की डिमांड रखी। जब हाकिमों ने उनकी मांग को अनसुना कर दिया और साथ ही अनेक बेबुनियाद आरोपों का पिटारा उनके सिर पर पटक दिया तो उन्‍होंने इंसाफ के लिए वर्किंग जर्नलिस्‍ट एवं नॉन जर्नलिस्‍ट एक्‍ट के दफा 17 का सहारा लेते हुए लेबर कमिश्‍नर और लेबर कोर्ट का रुख कर लिया।

मैनेजमेंट, खासकर एचआर के मुखिया मनोज मेहता को जब पता चला कि सुधीर श्रीवास्‍तव ने इंसाफ के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा दिया है तो उन्‍होंने आनन-फानन में अपने एक विभागीय अधिेकारी हरीश कुमार और एक कर्मचारी विजय कुमार की मदद से सुधीर का फर्जी इस्‍तीफा उनके ऑ‍फशियल मेल से भास्‍कर के आला अधिकारियों को भेज दिया। दरअसल सुधीर के सिस्‍टम और ऑफशियल मेल का पासवर्ड एक ही है, जिसकी जानकारी उनके साथ काम करने वाले सभी लोगों को थी। सुधीर ने लोकल से लेकर हेड ऑफि‍स तक के आईटी सेल को अनगिनत बार शिकायत की कि उनके सिस्‍टम और मेल का पासवर्ड अलग अलग दिया जाए, लेकिन इसकी कहीं भी और कभी भी सुनवाई नहीं हुई। सुधीर के ही सिस्‍टम से प्रिंटर व स्‍कैनर भी अटैच थे, इसीलिए सभी सहकर्मी उनके सिस्‍टम का बहुत ही अधिकार से खुला इस्‍तेमाल करते थे।

बहरहाल, इस साइबर फर्जीवाड़े के दिन यानी 20 जून को सुधीर शाम साढ़े 8 बजे हमेशा की तरह बॉयोमेटरिक यंत्र पर अंगूठा लगाकर घर के लिए निकल गए। उसके बाद एचआर प्रधान मनोज मेहता, हरीश कुमार और विजय कुमार ने अपनी क्रिमिनल करतूत को अंजाम देते हुए सुधीर का मेल खोलकर उनका फर्जी इस्‍तीफा लिखकर अपने भोपाल व दिल्‍ली के आकाओं की खिदमत में पेश कर दिया। अगले दिन 21 जून को सुधीर जब ड्यूटी के लिए भास्‍कर पहुंचे तो सिक्‍योरिटी गार्ड ने उन्‍हें गेट पर रोक लिया। कहने लगा कि आपको अंदर जाने की मनाही है। बाद में मनोज मेहता और हरीश कुमार बाहर गेस्‍ट रूम में आकर मातमपुर्सी के अंदाज में सुधीर से मिले। सहानुभूति का नाटक करते हुए कहने लगे, ‘अरे, तुमने तो इस्‍तीफा दे दिया है।‘ इतना सुनते ही सुधीर का माथा ठनका और कहा, ‘मैंने इस्‍तीफा कहां दिया है‘, अच्‍छा तो तुम लोगों ने मेरा मेल खोलकर इस्‍तीफा डाल दिया। ठीक है, कोई बात नहीं।

कहासुनी, नोक झोंक के बाद सुधीर खिन्‍न मन से घर चले गए और बाद में पुलिस केस कर दिया। मतलब दैनिक भास्‍कर के रहनुमाओं पर साइबर क्राइम का केस। पुलिस ने पिछले दिनों कई बार दैनिक भास्‍कर के चंडीगढ़ कार्यालय में सबूत खंगालने के लिए धावा बोला और छापेमारी की। पुलिस ने फुटेज मांगा तो मनोज मेहता, हरीश कुमार और विजय कुमार ने घटना की फुटेज न होने की बात कही। साथ ही बोल दिया कि घटना की फुटेज हेड ऑफि‍स भोपाल भेज दी गई है। पुलिस ने मनोज मेहता और हरीश कुमार को साइबर क्राइम थाने तलब किया। मेहता तो भागता-छिपता फि‍रता रहा लेकिन हरीश साइबर क्राइम थाने पहुंचा, जहां पुलिस ने तगड़ी पूछताछ की। फि‍र भी हरीश अपराध कबूल करने में ना-नुकुर करता रहा। हालांकि अभी तक की जानकारी के मुताबिक मेहता और हरीश का सूरत-ए-हाल अपराधी-क्रिमिनल का ही है। इसका प्रमाण है दैनिक भास्‍कर चंडीगढ़ के संपादक दीपक धीमान और भास्‍कर की क्राइम बीट देखने वाले संजीव महाजन की मनोज मेहता और हरीश कुमार को बचाने– महफूज रखने में गहरी रुचि और संलिप्‍तता-संलग्‍नता। संपादक धीमान के निर्देश पर महाजन ने मेहता व हरीश की हिफाजत में पूरी ताकत लगा दी है। महाजन ने एसएसपी से लेकर साइबर क्राइम थाने के इंचार्ज के चौखट के न जाने कितने चक्‍कर लगा डाले हैं। इस क्रम में महाजन ने अपने अखबारी रसूख-रुतबे-धौंस का बेहिसाब इस्‍तेमाल किया है और कर रहे हैं।

मतलब, जिस महाजन ने कभी खुद का मोबाइल चोरी होने पर एक तथाकथित चोर को पुलिस से बेरहमी से पिटवाया था, भास्‍कर कार्यालय का एक एसी चोरी हो जाने पर भास्‍कर के ही एक संबंधित कर्मचारी को पुलिस के डंडे खिलवाये थे, वही महाजन आज साइबर अपराधियों को बचाने में अपनी सारी ऊर्जा खपाए जा रहे हैं।  और उनके संरक्षक धीमान साहब, जो खुद को अखबार की सत्‍यता व विश्‍वसनीयता की प्रतिमूर्ति प्रदर्शित करते नहीं थकते, भास्‍कर के ही साइबर अपराधियों के पोषक-संरक्षक बने हुए हैं। धीमान के व्‍यक्तित्‍व से परिचित लोग हैरान इस मौजूदा घटनाक्रम से हैं।

साइबर पुलिस का डंडा चलना शुरू होते ही मनोज मेहता ने एचआर के एक नवधा मैनेजर पवन त्रिपाठी के दस्‍तखत से सुधीर श्रीवास्‍तव के खिलाफ पुलिस में एक कंप्‍लेंट दे दी। इस कंप्‍लेंट में बे सिर पैर के, बेबुनियाद आरोप लगाए गए, जिसकी ताईद पुलिस ने भी की। पुलिस ने साफ कहा कि ऐसे मामले का निपटारा पुलिस नहीं करती। यह मसला ऑफिस का है, वहीं निपटा लिया जाना चाहिए। खुद को फंसता देख पवन त्रिपाठी ज्‍वाइनिंग के 4–5 दिन बाद ही इस्‍तीफा देकर चलता बन गया। पुलिस त्रिपाठी को पूछताछ के लिए बुलाने की जुगत में लगी हुई है।

मौजूदा तस्‍वीर ये है कि टीकाधारी हरीश कुमार, संजीव महाजन का पैर छूकर थरथराते-डगमगाते पांव अपने आसन (कुर्सी) पर विराजमान होने का प्रयास कर रहे हैं। मनोज मेहता, धीमान साहब को साष्‍टांग करके अपना आशियाना बनाए- बचाए रखने का यत्‍न कर रहे हैं। लेकिन वरदहस्‍त, छत्रछाया, आशीष वचन अपराध का संजाल काट देगी, जानकार लोग इस पर यकीन नहीं करते। उनका यकीन यह है कि मानवद्रोही काम करने का परिणाम अंतत: बुरा ही होता है। और भास्‍कर में ऊंची कुर्सी पर बैठने वालों द्वारा किया गया साइबर अपराध कभी भी क्षम्‍य नहीं हो सकता। सजा तो मिलेगी ही। क्‍यों ठीक कह रहा हूं न।

इस्‍तीफे का फर्जीवाड़ा और साइबर क्राइम का उपरोक्‍त मामला मेसेज यह देता है कि मजीठिया पाने के लिए हमें ऐसे न जाने कितने गंभीर मोर्चों पर लड़ना जूझना पड़ेगा। लेकिन जब ठान लिया है कि मजीठिया लेना है, तो ऐसी कितनी भी बाधाएं, रुकावटे आएं, मालिकान व उनके कारिंदे चाहे कितनी भी बदमाशियां करें, मजीठिया लेकर रहेंगे। सुधीर श्रीवास्‍तव सरीखे लोग एक मिसाल हैं, एक प्रेरणा हैं।

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Thursday 1 August 2019

मजीठिया: 20 जे पर राजस्थान पत्रिका के 2 साथियों को मिली जीत, आर्डर करें डाउनलोड


दैनिक भास्‍कर और दैनिक जागरण के बाद राजस्‍थान पत्रिका को भी मप्र हाईकोर्ट में हार का मुंह देखना पड़ा है। मध्‍यप्रदेश उच्‍च न्‍यायालय में मजीठिया पर बनी विशेष खंडपीठ ने 18 जुलाई को सुनाए गए अपने ऐतिहासिक फैसले में WJA की धारा 17 (1) में कौशल किशोर चतुर्वेदी और जूही गुप्ता के पक्ष में उप श्रमायुक्‍त (DLC) द्वारा जारी RCC को सही माना है। डीएलसी ने इन दोनों कर्मियों के मामले में 20जे का निपटारा करते हुए विवादित राशि पर कोई विवाद नहीं होने पर 2016 आरसीसी जारी कर दी थी। जिस पर पत्रिका का प्रबंधन ने उच्‍च न्‍यायालय का रूख किया था। लगभग तीन साल तक चली कार्रवाई के दौरान यह मामला मजीठिया पर बनी विशेष खंडपीठ के पास आ गया। प्रबंधन की याचिका पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने 20जे पर सुप्रीम कोर्ट की मंशा स्‍पष्‍ट करते हुए इस आदर्श स्थिति में काटी आरआरसी मानते हुए कर्मचारी के पक्ष में फैसला सुनाया था। सुनवाई के दौरान माननीय विद्वान न्यायाधीश श्री सुजय पॉल की बेंच ने स्पष्ट किया था कि 19 जून 2017 को माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मंशा कतई ये नहीं है कि कर्मचारियों के कम वेतन पर 20 जे लागू होगा। 20जे केवल अधिक वेतन के मामले में वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए।

मालूम हो कि प्रबंधन और कर्मचारी पक्ष में 20 जे को लेकर अदालत में जबरदस्‍त बहस हुई थी। प्रबंधन का सारा जोर 20जे के आधार पर डीएलसी द्वारा आरआरसी को खारिज करवाने का था। जिसपर कर्मचारी के वकील ने अदालत के समक्ष जबरदस्‍त दलीलें पेश की थी। अदालत ने साथ इस आरसीसी को आदर्श स्थिति में जारी हुआ माना। यानि इस पर राशि या अन्‍य मुद्दों पर कोई विवाद की स्थिति नहीं थी। तभी डीएलसी ने इसे जारी किया था।

मध्‍यप्रदेश उच्‍च न्‍यायालय की मजीठिया पर बनी विशेष खंडपीठ का यह फैसला उन साथियों के लिए बेहद काम का है, जिनके मामले में कंपनी अदालत में 20जे का हवाला दे रही है। इसके अलावा अदालत ने नईदुनिया का एक मामला और भास्कर के अन्य करीब 22 मामलों को लेकर उपश्रमायुक्त को 17 (2) में भेजने के निर्देश दिए हैं। इन मामलों में राशि पर विवाद था, जिसका निर्धारण अब श्रम न्यायालय से होगा।

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