Friday 2 August 2019

मजीठिया: सुप्रीम कोर्ट के फैसले में 20 जे को लेकर क्या है निष्कर्ष, इस भावार्थ से समझें



साथियों हममें से बहुतों के मामले में 20जे का मुद्दा कंपनियां श्रम कार्यालयों या लेबर कोर्ट में लेकर आ रही हैं। ऐसे में हमारे कई साथी या उनके प्रति‍निधि या वकील सुप्रीम कोर्ट के 19 जून के आदेश को सुनवाई के दौरान सही ढंग से पेश नहीं कर पा रहे हैं। 19 जून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा 20 जे पर पैरा 24 और 25 में दिए गए आदेश के संदर्भ मध्‍यप्रदेश हाईकोर्ट की मजीठिया पर बनी विशेष खंडपीठ के समक्ष कर्मचारी पक्ष द्वारा जबरदस्‍त दलीलें रखी गई थी। जिसके बाद मध्‍यप्रदेश हाईकोर्ट ने 20जे पर सुप्रीम कोर्ट के मर्म की व्‍याख्‍या करते हुए ऐतिहासिक फैसला कर्मचारियों के पक्ष में दिया था। इन दलीलों का आधार क्‍या था इसकी जानकारी हम मध्‍यप्रदेश के साथियों की मदद से आपतक पहुंचा रहे हैं। जिससे आप भी इस मुद्दे पर सुनवाई के दौरान अपना पक्ष मजबूती से रख सकें। इसलिए नीचे लिखे एक-एक शब्‍द को ध्‍यान से पढ़े...

जहां तक सबसे ज़्यादा विवादास्पद मुद्दे 20J का प्रश्न है, जिसे अधिनियम के प्रावधानों के साथ पढ़ा जाए, यह स्पष्ट है कि अधिनियम इस बात की गारंटी देता है कि धारा 2 (C) में परिभाषित प्रत्येक “समाचारपत्र कर्मचारी” को अधिनियम की धारा 12 के अंतर्गत वेतन बोर्ड की अनुसंशित और केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित  और अधिसूचित वेतन मिलने की पात्रता है।

इस तरह अधिसूचित वेतन मौजूदा प्रचलित सभी वेतन को तय करने वाली सभी संविदाओं के ऊपर है उन्हें विस्थापित करता है। तथापि विधायिका ने अधिनियम की धारा 16 के प्रावधानों को समाहित करते हुए यह स्पष्ट किया है कि, वेतन भले ही कुछ भी तय और अधिसूचित किया गया हो, संबंधित कर्मचारी के लिए अपने नियोक्ता से धारा 12 के अधीन अधिसूचित वेतन से ज़्यादा बेहतर लाभ लेने का विकल्प सदैव खुला है।

इसलिए मजीठिया वेतनबोर्ड के अवार्ड के उपबंध 20J को इसी संदर्भ में पढ़ा और समझा जाना चाहिए। अधिनियम के अंतर्गत जो वेतन तय होता है उससे कम वेतन लेने के विकल्प की उपलब्धिता पर अधिनियम मौन है/ अधिनियम में कुछ नहीं लिखा है।

यह विकल्प स्वैच्छा से परित्याग (DOCTRINE OF WAIVER) के सिद्धांत में उपलब्ध है, जिसका इन प्रकरणों में उपलब्ध होने का प्रश्न ही इसलिए नहीं है क्योंकि उन्होंने (कर्मचारियों) ने, जैसा कि आरोप लगा है, जो लिख कर दिया (UNDERTAKING) है वह स्वेच्छा से त्याग की प्रकृति का नहीं है/अनिच्छा से दिया गया प्रकृति का है।

इसीलिए जो भी विवाद हो, उसे यहां दिए गए अधिनियम की धारा 17 के अधीन तथ्य से निष्कर्ष निकालने वाले प्राधिकारी द्वारा सुलझाया जाना चाहिए।

25. समाचार पत्र कर्मचारी को यदि उचित नहीं तो कम से कम न्यूनतम वेतन देने के उद्देश्य की प्राप्ति लिए इस अधिनियम के लाए जाने से संबंधित यदि किसी घटना का विधायिका के इतिहास में उल्लेख है तो बिजॉय कॉटन मिल्स लिमिटेड एवं अन्य बनाम अजमेर राज्य के मामले में दिया गया फैसला है जिसमें ठीक ऐसे ही न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948 के अधीन अधिसूचित वेतन को समझौते की परिधि से बाहर रखा गया है, ठीक वैसे ही जैसे इस अधिनियम में अधिसूचित वेतन को रखा गया है।

बिजॉय कॉटन मिल्स लिमिटेड के फैसले के पैरा 4 उपरोक्त मामले की व्याख्या करता है जो इस प्रकार है:

"4. इस बात पर विवाद हो ही नहीं सकता कि यह आम जनता के हित में है कि मजदूर को वह वेतन प्राप्त के अधिकार है केवल उनके ज़िंदा रहने ही नहीं बल्कि उनके स्वास्थ्य और बेहतर जीवन स्तर को बनाए रखने के लिए ज़रूरी है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 में दिए गए राज्य का एक नीति निर्देशक तत्व भी है। यह सभी जानते हैं कि सन 1928 में जिनेवा में आयोजित में न्यूनतम वेतन तय करने की पद्धति पर एक सम्मलेन हुआ था जिसके निष्कर्ष अंतरराष्ट्रीय श्रम संहिता में दिए गए थे।

न्यूनतम वेतन अधिनियम भी इन्ही निष्कर्षों को प्रभावी बनाने के लिए पारित किया गया था। (देखें साऊथ इंडिया एस्टेट लेबर रिलेशन ओर्गनइजेशन बनाम स्टेट ऑफ़ मद्रास) यदि मजदूरों को न्यूनतम वेतन का लाभ देना है और उसके नियोक्ता से शोषण के विरुद्ध उसे संरक्षण देना है तो यह नितांत आवश्यक है कि इस तरह के समझौतों की स्वतंत्रता पर रोक लगाईं जाए और इस तरह की रोक को एकदम जायज ठहराया जाए। दूसरी ओर नियोक्ताओं की न्यूनतम मजदूरी देने की विवशता की शिकायतों को बिलकुल नहीं सुना जाना चाहिए भले ही मजदूर मजबूरीवश कम वेतन पर काम करने को क्यों न तैयार हो।”
(इस पर जोर दिया गया है)। 

अधिनियम के प्रावधानों में या वेतन आयोग के अवार्ड में यह कहीं नहीं लिखा है कि इसका लाभ केवल नियमित कर्मचारियों को दिया जाए संविदा कर्मचारियों को नहीं दिया जाए।

मध्‍यप्रदेश उच्‍च न्‍यायालय की मजीठिया पर बनी विशेष खंडपीठ के इस महत्‍वपूर्ण फैसले को डाउनालोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न Path का प्रयोग करें- https://drive.google.com/file/d/1QdXzA_J7O0I6tEiKEOj_BHvtZEss8a9z/view?usp=sharing


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मजीठिया: एक्ट बड़ा ना कि वेजबोर्ड की सिफारिशें http://patrakarkiawaaz.blogspot.com/2016/07/blog-post_90.html





मजीठिया: 20जे के विवाद को लेकर इस तरह बनाएं अपना जवाब - http://patrakarkiawaaz.blogspot.com/2018/10/20.html



सुप्रीम कोर्ट के आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न Path का प्रयोग करें-https://goo.gl/x3aVK2

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