साथियों, आखिरकार 20जे का खौफ टूट ही गया। 23 अगस्त 2016 का दिन मजीठिया चाहने वाले साथियों के
लिए राहत भरी खबर लेकर आया। सुप्रीम कोर्ट के माननीय जज रंजन गोगोई की पीठ ने सख्त
चेतावनी देते हुए मजीठिया वेजबोर्ड की संस्तुतियों को अक्षरश: लागू करने के लिए कहा। यह संस्तुतियों सभी कर्मचारियों पर चाहे वे
स्थायी हो या ठेके पर या अंशकालिक संवाददता या छायाकार हो पर भी लागू होंगी।
हमें क्यों चाहिए
मजीठिया भाग-3A: इकरारनामा
वर्किंग जर्नलिस्ट (फिक्शेशन आफ रेट्स आफ वेजेज) एक्ट 1958 का उल्लंघन... http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2015/07/3a-1958.html
हमें क्यों चाहिए
मजीठिया भाग-16F: 20जे
की आड़ में अवमानना से नहीं बच सकते http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/01/16f-20.html
महेश जी का लेख
मजीठिया:
एक्ट बड़ा ना कि वेजबोर्ड की सिफारिशें http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/07/blog-post_90.html
मजीठिया: 20जे तो याद, परंतु नई भर्ती को भूले, अवमानना तो हुई है http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/07/20_17.html
विशेष एक्ट पर ही बहस
20जे पर केवल और केवल विशेष एक्ट यानि
वर्किंग वर्किंग जनलिस्ट एक्ट 1955 के तहत ही बहस हुई। बहस
के दौरान वरिष्ठ वकील कोलिन ने भी एक्ट की धारा 13 और धारा 16 का ही जिक्र किया। उन्होंने कोर्ट को
बताया कि धारा 13 वेजबोर्ड के तहत न्यूनतम वेतनमान
प्राप्त करने का कर्मचारियों को हक देती है और वहीं, धारा 16 उन कर्मचारियों के लिए है जो वेजबोर्ड
से ज्यादा वेतन प्राप्त कर रहे हैं। यानि 20जे उनके अधिक वेतन को प्राप्त करने के अधिकार की रक्षा करती है।
जिसके बाद माननीय जज रंजन गोर्गाई जी ने स्पष्ट तौर पर कहा कि 20जे उन कर्मियों के लिए है जो वेजबोर्ड से ज्यादा वेतन पा रहे हैं, वहीं इससे कम वेतनमान पाने वाले कर्मियों के साथ किया गया किसी
प्रकार का समझौता अमान्य होगा।
Rejoinder में कर दिया था विशेष
एक्ट का जिक्र
अवमानना को लेकर दायर 411/2014 की याचिका के जवाबी शपथ पत्र में जागरण प्रबंधन ने 20जे पर किए गए कर्मचारियों के साइनों का उल्लेख किया था। जिसके बाद
वकील परमानंद पांडेय ने अपने rejoinder में विशेष एक्ट का जिक्र किया था।
वकील परमानंद पांडेय ने अपने rejoinder में विशेष एक्ट का जिक्र किया था।
एक्ट से बड़ा नहीं वेजबोर्ड
23 अगस्त की बहस से इस बात पर मोहर लगी
कि एक्ट ही बड़ा होता है नाकि उसके तहत बनने वाले बेजवोर्ड। इस जानकारी को यहां
देने का मकसद यह है कि अभी कई अखबारों में यूनिटों में कैटेगरी का मामला भी उठेगा
और वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट सभी यूनिटों को एक मानता है और इसपर सुप्रीम कोर्ट ने
2014 के अपने फैसले में भी स्पष्ट कर रखा
है, जिसपर महेश जी ने एक लेख (मजीठिया:
फरवरी 2014 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अखबार
की सभी यूनिटों के आधार पर कंपनी को माना है एक... http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/08/2014.html)
भी लिखा था।
सोशल मीडिया पर 20जे पर समय-समय पर आते रहे हैं लेख
20जे पर प्रबंधन के गुर्गों और उनके हित
चिंतकों द्वारा किए जा रहे दुष्प्रचारों के बीच समय-समय ऐसे लेख भी सोशल मीडिया
पर आए जिनमें इसके डर को दूर किया गया। वरिष्ठ वकील परमानंद पांडेय ने बहुत पहले
ही अपने फेसबुक वॉल पर इस पर जानकारी दी थी। हां यह अवश्य है कि वह जानकारी
अंग्रेजी में होने की वजह से हिंदी बहुल क्षेत्र के हमारे साथियों के बीच नहीं
पहुंच पाई। धर्मशाला से रविंद्र अग्रवाल ने भी इस पर भी दो बार लिखा। पढ़े उनका 3 जुलाई का 2015 का लेख –
हमें क्यों चाहिए
मजीठिया भाग-3A: इकरारनामा
वर्किंग जर्नलिस्ट (फिक्शेशन आफ रेट्स आफ वेजेज) एक्ट 1958 का उल्लंघन... http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2015/07/3a-1958.html
अन्य लेख इस प्रकार है –
हमें क्यों चाहिए
मजीठिया भाग-16F: 20जे
की आड़ में अवमानना से नहीं बच सकते http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/01/16f-20.html
महेश जी का लेख
मजीठिया:
एक्ट बड़ा ना कि वेजबोर्ड की सिफारिशें http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/07/blog-post_90.html
मजीठिया:
समझौतों को फरवरी 2014 के
फैसले में खारिज चुका है सुप्रीम कोर्टhttp://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/07/2014.html)
20जे पर सभी की जीत
20जे पर यह सभी साथियों की जीत है। चाहें
वे किसी भी अखबार के हों या किसी भी राज्य के। क्योंकि पहली सुनवाई में उत्तर
प्रदेश, उत्तराखंड की जगह राजस्थान या मध्यप्रदेश
होते तो भी 20जे पर यह ही फैसला आता है। इसका कारण आप
अब तक समझ ही चुके होंगे, जी हां, एक्ट बड़ा होता है नाकि वेजबोर्ड। इसलिए यह बेमानी है कि यह किसी एक
अखबार या किसी एक राज्य की जीत है।
28जुलाई 2015 के आदेश के थे व्यापक मायने
सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई 2015 को जब सभी राज्यों को बेजवोर्ड के
संदर्भ में निर्देश दिए तो हमारे कई साथी परेशान हो गए कि मामला वेवजबह लंबा खींचा
जा रहा है। परंतु वे इस बात की गहराई को नहीं समझ पाए कि इसमें वे संस्थान भी में
जद में आ गए हैं जिनका कोई कर्मचारी सुप्रीम कोर्ट नहीं पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट
ने यदि चंद अखबारों पर ही सुनवाई करनी होती है तो इसका फैसला कब का आ चुका होता। सुप्रीम
कोर्ट फरवरी 2014 को दिए अपने फैसले की अवमानना पर
सुनवाई कर रहा है। इसलिए उसने यह जानने के लिए कौन-कौन से संस्थानों ने उसके आदेश
का उल्लंधन किया है 28जुलाई 2015 को यह आदेश दिया था। टि्ब्यून के पदाधिकारी विनोद कोहली का कहना है
कि सुप्रीम कोर्ट का 28 जुलाई 2015 का आदेश बिल्कुल सही था और यह सभी कर्मचारियों के हित में था।
फैसले सभी पर लागू होते हैं एक समान
सामूहिक हित पर सुप्रीम कोर्ट का कोई भी
फैसला पूरे देश में सभी पर एक समान लागू होता है। यही बात मजीठिया मामले में भी
आती है चाहे 20जे का मामला हो या कैटेगरी का या फिटमैन
प्रमोशन का राज्यवार या अखबारवार जैसे यह मुद़दा हल होता जाएगा वैसे यह सभी पर एक
समान लागू होगा।
आगे आए मांगे अपना हक
साथियों अब तो 20जे का डर सुप्रीम कोर्ट ने निकाल दिया। अब किसी बात की देर कर रहे
हो। विशेष तौर पर वे साथी जो रिटायर्ड हो गए हैं या नौकरी बदल चुके हैं या जिनका
तबादला कर दिया गया है वे बेहिचक अपने हक के लिए सामने आए और डीएलएसी में अपने
एरियर के क्लेम लगाए।
(23 अगस्त को सुनवाई के
दौरान सुप्रीम कोर्ट में उपस्थित पत्रकार साथियों से प्राप्त तथ्यों पर आधारित)
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