Sunday 30 June 2019

मजीठिया: शिमला लेबर कोर्ट ने भास्‍कर के तीन कर्मियों के तबादले पर लगाई रोक


शिमला। माननीय लेबर कोर्ट शिमला ने दैनिक भास्कर सोलन के तीन मजीठिया क्रांतिकारियों की ट्रांसफर पर स्टे लगा दिया है। बीते  23 मार्च को सोलन से सब एडिटर यशपाल कपूर और रिपोर्टर मोहन चौहान की ट्रांसफर सूरत गुजरात कर दी थी, जबकि डिजाइनर जयचंद शर्मा को 23 मार्च को बिहार के भागलपुर ट्रांसफर कर दिया गया था। 18 जून को लेबर कोर्ट के माननीय न्यायाधीश ने इनकी ट्रांसफर को गलत ठहराते हुए इस पर स्टे लगाया और कोर्ट ने इन्हें पहले की तरह सोलन में ही ज्वाइन करने के आदेश दिए। इन तीनों ने मजीठिया का केस किया हुआ है। लगभग तीन माह तक चले इस केस में आखिर जीत कर्मचारियों की ही हुई। इससे अन्य कर्मियों का भी हौसला बढ़ा है, क्यूंकि आजकल भास्कर में तबादलों ओ छंटनी हो रही है। कोर्ट के इन आदेशों से भास्कर को करारा झटका लगा है।














Sunday 23 June 2019

मजीठिया पर बड़ी खबर: दिल्‍ली हाईकोर्ट ने दिया RC पर कर्मी के पक्ष में फैसला, मिलेंगे रजिस्‍ट्री के पास जमा 11.67 लाख रुपये



नई‍ दिल्‍ली। दिल्‍ली हाईकोर्ट ने डीएलसी द्वारा 12.04.2016 को LIVING MEDIA INDIA LIMITED के कर्मचारी के पक्ष जारी Rs.11,92,121/- की रिकवरी को सही मानते हुए इसका भुगतान रजिस्‍ट्री से प्राप्‍त करने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने ये राशि 29.09.2016 को अपने एक आदेश के द्वारा कंपनी को जमा करवाने का आदेश दिया था। कंपनी ने इस राशि को हाईकोर्ट की रजिस्‍ट्री में जमा करवा दिया था। इसमें से 25 हजार रुपये की राशि कर्मचारी को कानूनी खर्च के रूप में 20.01.2017 के आदेश के बाद जारी की गई थी। कर्मचारी को बाकी की 11,67,121/- की राशि रजिस्‍ट्री को अपनी पहचान के प्रमाण सौंपने के बाद जारी की जाएगी।

इस आदेश में दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय ने अखबारों की कैटेगरी यानि वर्गीकरण के मुद्दे पर स्‍पष्‍ट निर्णय दिया है। अदालत ने LIVING MEDIA INDIA LIMITED को भी इंडिया टूडे और मेल टूडे ग्रुप का हिस्‍सा मानते हुए मजी‍ठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के अनुसार Classification of Newspaper establishment में वित्‍तीय वर्ष 2007-08, 2008-09 और 2009-10 में लगभग 356.59 करोड़ रुपये के सकल राजस्‍व के आधार पर क्‍लास 3 का माना है।

इसके अलावा अदालत ने मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के अनुसार 11 नवंबर 2011 में कर्मचारी द्वारा फिक्‍स किए गए नए बेसिक को भी सही माना। कर्मचारी का नवंबर 2011 में बेसिक 22494 रुपये था। जिसमें 30 प्रतिशत अंतरिम राहत यानि 6748 रुपये बनती है। इसको जोड़कर उसका मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार नया बेसिक 22494+6748=29242/- बनता है। जबकि Scales of Pay for Group of Employees के अनुसार उसका पद 16000 से 28900 के बेसिक में आता है। उसके द्वारा वेज बोर्ड की सिफारिशों के पैरा 20 डी के अनुसार अपने को अगले पे स्‍केल (ग्रुप 2) यानि 18000 से 32600 के बेसिक में अपने को फिक्‍स किया।
कर्मचारी ने अपना ये चार्ट प्रबंधन को भी सौंपा था। वहीं, प्रबंधन ने एक चार्ट पेश करते हुए वेज बोर्ड की सिफारिशों के अनुसार केवल 37284 रुपये का एरियर बकाया बताया था। प्रबंधन ने ये एरियर कैसे निकला इसका कोई विवरण पेश नहीं किया था कि उसने कैसे कर्मचारी की फिटमैन 21400 के बेसिक पर की थी। जबकि कर्मचारी का नवंबर 2011 में बेसिक ही 22494 था।

इसके साथ ही अदालत ने मामले में विवाद होने की प्रबंधन की दलीलों को व्‍यर्थ माना। अदालत ने माना कि उप श्रमायुक्‍त के यहां हुई सुनवाई के दौरान क्‍लेम को लेकर सभी कुछ फैक्‍ट क्‍ली‍यर हो गए थे। इसलिए कंपनी इसमें व्‍यर्थ विवाद पैदा करने का प्रयास कर रही है। इस मामले में कर्मचारियों की तरफ वरिष्‍ठ वकील Colin Gonsalves और N.A. Sebastian अदालत के समक्ष पेश हुए थे। अदालत ने यह फैसला 28 मई 2019 का है।

(नोट- यहां पर ये विशेष ध्‍यान देने वाली बात है कि इस कर्मचारी के मामले में डीएलसी (उप श्रमायुक्‍त) के सामने आरसी जारी करने के लिए एक आदर्श स्थिति थी। इसलिए उसने आरसी जारी की और उसपर उच्‍च न्‍यायालय ने मोहर लगा दी। परंतु जहां विवाद की स्थिति उत्‍पन्‍न हो वहां आरसी जारी करने के आदर्श स्थिति नहीं होती। वहां केस को 17-2 में लेबर कोर्ट में रेफर किया जाना कर्मचारी के हित में होता है। नहीं तो प्रबंधन द्वारा उच्‍च न्‍यायालय की शरण में जाने पर उसे लेबर कोर्ट को भेजे जाने की ज्‍यादा संभावना बनी रहती है। इसलिए जहां न्‍यायिक क्षेत्र, 20जे, पद, कैटेगरी आदि जैसे विवाद उत्‍पन्‍न हो रखे हो वहां वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट और सुप्रीम कोर्ट के 19 जून 2017 के आदेश के अनुसार केस को लेबर कोर्ट भेजा जाना ही उचित होगा।) 

इस आदेश को डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न path का प्रयोग करें- https://drive.google.com/file/d/1CyGFKjFnYTe1oOswoLA_Ugf9vmcUc4Q6/view?usp=sharing


Tuesday 18 June 2019

हैरतअंगेज! सहारा ग्रुप ने पहली बार इतिहास रचा, एक कर्मचारी को हिसाब से 55 हजार अधिक दिए


  • अब वापसी के लिए कर्मचारी को धमका रहे


है न अजीब बात। देश के तीन करोड़ लोगों का पैसा हजम करने वाला सहारा ग्रुप का पैसा एक अदना-सा कर्मचारी हड़प कर जाए, यह बात हजम नहीं होती। लेकिन दोस्तों, ऐसा हुआ है। राष्ट्रीय सहारा देहरादून का एचआर और एकाउंट डिपार्टमेंट इन दिनों बहुत परेशान है। कारण, सेफ एग्जिट पालिसी के तहत नौकरी छोड़ चुके डिप्टी न्यूज एडिटर सुरेश कुमार को सहारा ने नौकरी छोड़ने के डेढ़ साल बाद हिसाब दिया तो गलती से 55 हजार रुपये अधिक दे दिए।

मजेदार बात यह है कि सहारा में काम करने वाले लोगों को प्रबंधन कभी भी यह नहीं बताता है कि उनका हिसाब क्या बन रहा है और क्या दे रहा है। जो मर्जी आए, वही देता है। मुझ गरीब समेत लाखों कर्मचारियों को नौकरी छोड़ने के तीन साल बाद भी हिसाब नहीं मिला। खैर, बात सुरेश कुमार की हो रही है। सुरेश कुमार इन दिनों बेरोजगार हैं। स्वाभाविक है कि ऐसे में पैसे खर्च तो होंगे ही। अब एचआर और एकाउंट डिपार्टमेंट उनको धमकाने में जुटे हैं कि पैसा वापस करो, सहारा लेना जानता है। मैंने सुरेश कुमार जी को सुझाव दिया है कि जिस तरह से सहारा ने हमें महीने की सेलरी टुकड़ों में दी है उसी तरह से सौ-सौ रुपये कर लौटा दो, या फिर अदालत की शरण लो कि मजीठिया के तहत जो उनका 35 लाख रुपये का भुगतान कंपनी पर बकाया है, उसमें से काट कर शेष 34 लाख 45 हजार भुगतान करने का कष्ट करें। अब देखे सुरेश बाबू क्या कदम उठाते हैं? आप मित्रों के सुझाव भी आमंत्रित हैं कि सुरेश जी को क्या करना चाहिए।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]