Friday 27 December 2019

B.V. Mallikarjunaiah Re-elected as the President of the Indian Federation of Working Journalists

New Delhi, December 27; Renowned Kannada journalist B.V. Mallikarjunaiah has the unanimously elected as the President of the Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) for the second consecutive term. His election has been announced today by the Central Returning Officer (CRO) Shankar Dutt Sharma. B.V. Mallikarjunaiah’s name has been proposed and seconded by more than 500 members from ten states. Presently, 27 state units are affiliated to the IFWJ (out of it 23 units are registered with the Registrar of Trade Unions of their respective states).  The IFWJ Working Committee in its meeting held at Raipur on 18th August had decided that the candidature of the contestant should be proposed and seconded by at least 50 members from two states.

Mallikarjunaiah has worked in senior positions in many news organisations. His journalistic experience spans more than five decades. He worked for more than forty years for the Kannada Prabha, a prestigious newspaper of Karnataka. In the year 2009, he was sought by many media organisations to launch or refurbish the newspapers or news channels. However, he preferred to be associated with the Suvarna News, an electronic channel as its News Programmer. For some time, he worked in a senior position with Udayavani, another prestigious newspaper of Bangalore. Although, he has been mainly with print journalism yet his understanding of other modes of journalism like that of the electronic is quite significant. Presently, he is associated with Kannada Prabha in his second stint in the capacity of the Editor, Co-ordination and Special Projects of the newspaper.

Widely travelled in India and abroad Mallikarjunaiah is known for his fierce trade unionism, impeccable integrity and honesty. He is a God-fearing person. He loves reading, writing and travelling. He holds Post-Graduation in Kannada Language and Literature. 

Journalists and non-journalists hold him in high esteem and turn towards him for his advice and guidance, which he offers without any demur. A good Samaritan, that he is, Mallikarjunaiah helps anybody and everybody across all spectrum of the society.  Mallikarjunaiah has also been a member of the Central Press Accreditation Committee (CPAC). He is also the Patron of the Confederation of Asian Journalists Union (CAJU). His first term as the President of the IFWJ has been quite magnificent and glorious in the consolidation of the organisation throughout the country and hopefully, his second term will help the IFWJ to grow from strength to strength so that it can work with more vigour for the welfare of journalists. He has had held the post of the President the Karnataka

Union of Working Journalists for three terms and the credit goes to him for organising a number of successful meetings and conferences of the IFWJ. He was the member Karnataka State Media Academy, TSR Award Selection Committee, P Ramaih Small and Medium Newspapers Advisory Committee, Central Press Accreditation Committee, Railways Consumers Advisory Committee and the Senate member of Bangalore University. It is because of his efforts as the Director of the Journalists Housing Co-operative Society that scores of journalists got residential plots in Bangalore and they are now the proud owners of their houses. Mallikarjunaiah has won many awards from different bodies and organisations.

However, the biggest commendation had come to him from the late S.V. Jayasheela Rao, an iconic journalist, who described ‘Mallikarjunaiah, as a class apart. He is an affable, well behaved, and always ready to help others but above all, he is decent to the core. He has always used journalism as a means to serve society and not to suck it for his personal benefits. These qualities are enough to make him a loveable a tall in the eyes of others.’ The new term of Mallikarjunaiah will start from the Delegate Session to be held soon, where the CRO Shri Sharma with the help of ACRO Shri T.B. Singh will conduct the election of other office-bearers.

Parmanand Pandey
Secretary-General: IFWJ




Wednesday 25 December 2019

पीएफ चोरी पर लगेगा दस गुना जुर्माना, तीन साल तक हो सकती है जेल

नई दिल्‍ली। कर्मचारियों के भविष्‍य निधि (पीएफ) चोरी पर अब कंपनियों से दस गुना जुर्माना वसूला जाएगा। पहले यह रकम दस हजार रुपये थी, लेकिन अब इसे एक लाख रुपये कर दिया गया है। केंद्र सरकार ने कोड ऑफ सोशल सिक्योरिटीज नाम के एक बिल में यह प्रावधान किया है। सरकार को  कर्मचारी संगठनों से शिकायतें मिल रही थीं कि कई कंपनियां कर्मचारियों के वेतन में से पीएफ का पैसा तो काटती हैं, लेकिन उसे जमा नहीं करातीं। इसके चलते ही उसने इस मामले में सख्ती बरतने का फैसला किया है। इसके तहत अब कंपनियों को कर्मचारियों के पीएफ के बारे में अपनी जानकारी दुरुस्‍त रखनी होगी।
नए प्रावधानों के तहत पीएफ न जमा करने या गलत जानकारी देने वाली कंपनियों के खिलाफ लगने वाले जुर्माने को 10 हजार से बढ़ाकर एक लाख रुपये तक कर दिया गया है। जुर्माने के साथ-साथ ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने वाले व्यक्तियों को तीन साल तक की जेल भी हो सकती है।
[साभार हिंदुस्तान]

Tuesday 24 December 2019

मजीठिया पर बड़ी खबर: भास्कर के 13 साथियों ने जीता रिकवरी का केस, मिलेंगे...

राजस्थान में दैनिक भास्कर को एक बार फिर झटका लगा है यहां भीलवाड़ा के 13 साथियों के मामले में आज शाम 5 बजे लेबर कोर्ट ने अपना आर्डर सुनाया। आर्डर में सभी कर्मचारियों को मजीठिया का हकदार मानते हुए जज साहब ने एरियर देने का आदेश दिया। यहां कर्मचारियों को बिना ब्याज के भुगतान करने के आदेश दिए गए हैं उक्त 13 साथियों में सबसे ज्यादा 29 लाख रुपए का एरियर और कम से कम 5 लाख का एरियर देने के आर्डर हुए हैं।

Saturday 21 December 2019

वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट को बरकरार रखने को कहा

नई दिल्ली, 20 दिसंबर। कनफेडरेशन आफ न्यूजपेपर एंड न्यूज एजेंसी एंप्लाइज ने संसदीय स्थाई श्रम समिति के सामने वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट को बरकरार रखे जाने की मांग की। कनफेडरेशन के प्रतिनिधिमंडल ने मांग की कि वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट में व्यापक संशोधन किया जाए और उसमें इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया को भी शामिल किया जाए। श्रम विभाग के अस्थाई संसदीय समिति के अध्यक्ष भर्तृहरि महताब और अन्य सदस्यों ने मीडिया कर्मियों की बात ध्यान से सुनी और आश्वसान दिया कि वे सारी बात भारत सरकार के समक्ष पूरी दृढ़ता से रख देंगे।
उन्होंने आश्वासन दिया कि भारत सरकार ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ और वर्किंग कंडीशन कोड पर निर्णय लेने से पहले मीडिया कर्मियों की बात पर विशेष रूप से ध्यान देगी। करीब 2 माह पहले इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (आईएफडब्लूजे) और कंफेडरेशन के प्रतिनिधिमंडलों को केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार आश्वस्त कर चुके हैं कि कोई भी निर्णय लेने के पहले संसदीय स्थाई समिति के आलोक में ही विधेयक का स्वरूप सुनिश्चित करेंगे। संसदीय समिति के समक्ष आईएफडब्ल्यू की तरफ से उपाध्यक्ष हेमंत तिवारी,

महासचिव परमानंद पांडेय, कोषाध्यक्ष
रिंकू यादव ने इस बैठक में अपनी बातें रखीं। कनफेडरेशन की ओर से महासचिव एमएस यादव, सीएस नायडू और अनिल गुप्ता (प्रधान, द ट्रिब्यून एम्प्लाइज यूनियन, चंडीगढ़) एनयूजे के अशोक मलिक, मनोहर सिंह मनोज मिश्रा, आईजेयू की ओर से श्रीनिवास रेड्डी, एसएन सिन्हा, पीटीआई एम्पलाइज फेडरेशन की ओर से भुवन चौबे आदि ने देश के श्रमजीवी पत्रकारों का पक्ष रखा।

(साभार: ट्रिब्यून)

Friday 20 December 2019

पत्रकार शशिकांत सिंह को पितृ शोक

मुम्बई के यशोभूमि हिंदी दैनिक के उपसंपादक शशिकांत सिंह के पिता रामलोचन सिंह का आज शुक्रवार को  वाराणसी  के शास्त्रीनगर, सिगरा स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। वे 87 साल के थे। रामलोचन सिंह मुम्बई के  भांडुप स्थित सिएट टायर कंपनी में लंबे समय तक मजदूर यूनियन के लीडर थे। और वे समाजसेवी भी थे। वे मूलतः चंदौली के धानापुर के अमरा ग्रांम के रहने वाले थे। वे अपने पीछे पत्नी गुलबास देवी, बेटी शशिकला सिंह, नंदा सिंह, बेटे शशिकांत सिंह, शिवाकांत सिंह, भतीजे कन्हैया सिंह, दरोगा सिंह, पदपंकज सिंह, सुधीर सिंह और नाती शशांक सिंह, चंचल सिंह, संतोष सिंह, सुशील सिंह, बहू इंदु सिंह, रेखा सिंह, नातिन सुमन सिंह, निष्ठा सिंह, सिमरन सिंह  दामाद एसपी सिंह और चंद्रजीत सिंह आदि सहित भरा पूरा परिवार  छोड़ गए हैं। उनके निधन पर मुम्बई और वाराणसी के पत्रकारों में शोक की लहर है।

Tuesday 17 December 2019

मजीठिया: ‘दबंग दुनिया’ के मालिक ने कर्मी को धमकाते हए सुप्रीम कोर्ट को दी गाली, सुनें टेप


भोपाल। इंदौर के गुटका किंग और दबंग दुनिया के मालिक किशोर वाधवानी ने भोपाल में मजीठिया वेजबोर्ड का केस लगाने वाले मीडियाकर्मी संजय राठौर को बुरी तरह धमकाया। इस दौरान गुटका किंग ने सर्वोच्‍च न्‍यायालय के लिए भी अपशब्‍दों का प्रयोग किया। इस पूरे प्रकरण की शिकायत पुलिस से भी की गई है। इस पूरे मामले को अब जल्द ही सुप्रीम कोर्ट और मप्र उच्च न्यायालय के संज्ञान में लाया जाएगा।



संजय राठौर ने भोपाल के एमपी नगर थाने में अखबार के मालिक किशोर वाधवानी और हर्ष जायसवाल के खिलाफ की लिखित शिकायत में आरोप लगाया है कि उसपर मजीठिया का केस वापस लेने का दबाव बनाया गया। जब वह नहीं माना तो उसको धमकियां दी गई और सर्वोच्‍च न्‍यायालच के लिए भी अखबार मालिक द्वारा अपशब्‍दों का प्रयोग किया गया।

संपादक को 40 हजार नहीं मिलते, तेरे को...
आडियो टेप में साफ सुनाई दे रहा है कि किशोर वाधवानी और हर्ष जायसवाल कैसे संजय पर केस वापस लेने का दबाव बना रहे है। इस दौरान अखबार मालिक किशोर वाधवानी संजय से उसकी क्‍लेम राशि और वेतन पूछता है। बताए जाने पर गुस्‍से में किशोर वाधवानी कहता है कि 40 हजार रुपये तो हम संपादक को भी नहीं दे रहे हैं। संजय को उसकी औकात बताने की कोशिश की जाती हैं और उसे केस वापस नहीं लेने की स्थिति में धमकियां भी दी जाती है।
आप भी पूरी रिकार्डिंग सुनने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न path का प्रयोग करें-
https://drive.google.com/file/d/1COCro-yu4wFYUCqiKY60DO1lS_c8PWIO/view?usp=sharing

Monday 16 December 2019

मजीठिया: विजय दिवस पर पत्रिका बुरी तरह हारा, सुचेंद्र मिश्रा सहित छः कर्मचारी ट्रांसफर का केस जीते

मजीठिया के मोर्चे पर आज लंबे समय बाद अच्छी खबर मिली है। मध्य प्रदेश पत्रकार संगठन के अध्यक्ष सुचेन्द्र मिश्रा के रीवा स्थानांतरण को श्रम न्यायालय ने अवैध ठहराया है। उनके साथ ही आशुतोष द्विवेदी, वैभव खत्री, वरुण चौहान, कैलाश नेकाड़ी और पवन के स्थानांतरण को भी कोर्ट ने अवैध मानते हुए उन्हें इंदौर में ही ज्वाइन कराने के निर्देश दिए हैं। इनमें से तीन कर्मचारी पत्रिका के ठेकेदार कंपनी ffpl के हैं। मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता मोहन करपे ने पैरवी की थी। 

Friday 13 December 2019

Patrakar Bhawan be Restored to its Owner the IFWJ

Now that the old building of the Patrakar Bhawan of Bhopal has been razed to the ground on the orders of the Hon’ble High Court of Madhya Pradesh at Jabalpur, the Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) demands that the land should be restored to us, its original owner. The Patrakar Bhawan was given to the Patrakar Bhawan Samiti in 1969, which comprised the top leadership of the Indian Federation of Working Journalists. The veterans of the IFWJ like the Late Surya Narayan Sharma, the Late V. T. Joshi, Lajja Shankar Hardeniya, Dhanna Lal Shah, Nitin Mehta and Prem Babu Shrivastava were the pillars and the pioneers of Patrakar Bhawan Samiti. The office of Madhya Pradesh Working Journalists Union affiliated to the IFWJ was also housed in Patrakar Bhawan. There were many rooms on the first floor of the Patrakar Bhawan from where the offices of many of the newspapers were operating. A hall was also made in the Patrakar Bhawan to hold some meetings of the journalists. This land is located at the prime Malviya Nagar of Bhopal in an area of nearly 28 thousand square feet. There was a sprawling lawn on the land allotted to the Patrakar Bhawan. Unfortunately, in the late 1980s, Patrakar Bhawan came into the hands of a person who first became the President of the Madhya Pradesh Working Journalists Union and later grabbed the entire building for commercial use.  The entire profit was being pocketed by him.

This is not the only place, given to the journalists, which is being grossly misused. There is a Press Club in Lucknow, whose story is more tragic and sad than even the Patrakar Bhawan of Malviya Nagar at Bhopal. The U.P. Press Club is situated in the most sought-after address of Lucknow. It is known as the China Bazar Gate for unknown reasons. This is a heritage building, which should be protected by the Archaeological Survey of India. But the apathy, irresponsibility and indifference of the ASI and the Lucknow Development Authority, is disgusting. No journalist worth name visits the Lucknow Press Club.  To make matters worse it is rented on an hourly basis for holding the meetings and press conferences etc. Both sides of the building are being used for running the restaurant. The persons, who have grabbed the U.P. Press Club have got no sense of shame, which is evident from the neglect of this historical place. They have converted into a making money site. It is all the more, unfortunate that a person who had once been at the helm of the IFWJ is collaborating with the people, who are out to destroy this great building of heritage value. But why the state government is keeping silent over the egregious destruction of this great monument is inexplicable?

Coming to the Patrakar Bhawan of Bhopal it is hoped that the Government of Madhya Pradesh will not only restore to land to the IFWJ, its original owner but will also extend all possible help in building  a state-of-art centre for the use of the journalists from where they can work, learn new things and contribute to the building the atmosphere of the good journalism. There is no need to go into the past, now the time has come to look forward for the better.


Parmanand Pandey
Secretary-General, IFWJ

Saturday 7 December 2019

दैनिक भास्कर को उसके मीडियाकर्मी लेबर कोर्ट में बार-बार दे रहे पटखनी! डाउनलोड करें आर्डर

दैनिक भास्कर, कोटा के कई मीडियाकर्मी ने अवैध तरीके से खुद को नौकरी से हटाए जाने और मजीठिया वेज बोर्ड के तहत सेलरी-बकाया देने की लड़ाई लड़ रहे हैं।  इन लोगों ने अलग अलग ग्रुप बनाकर केस दायर किया हुआ है।

पिछले दिनों दैनिक भास्कर, कोटा के कर्मचारी दिनेश शर्मा, गुमानी शंकर, हेमंत और सुनील मेहेंदले के मामले में फैसला आ गया। इसमें दैनिक भास्कर प्रबंधन की करारी हार हुई है। इससे पूर्व 3 साथी रामविशाल नागर, विष्णु बालोदिया व कुंज बिहारी के मामले में भी आए निर्णय में दैनिक भास्कर को पराजय का सामना करना पड़ा।

ताजा फैसले में जज ने हटाए जाने की अवधि से लेकर अब तक पचास फीसदी सेलरी देने और आगे से नौकरी कांटीन्यू करने का आदेश दैनिक भास्कर प्रबंधन को दिया है। इस आदेश का पालन दो महीने में करने को कहा गया है।

इस फैसले से दैनिक भास्कर तथा उनके वकील की ओर से असत्य व अन्याय की पैरवी किए जाने की बहुत बुरी हार हुई। कर्मचारियों के वकीलों का अनुभव और दूरदर्शिता का फायदा कर्मचारियों को मिला। सिद्ध हुआ कि सत्य और न्याय में देर है लेकिन अंधेर नहीं है।

कोटा से अब तक 7 लोगों का फैसला आ चुका हैं जिसमें भास्कर पराजित हुआ है। इन फैसलों से यह साफ है कि दैनिक भास्कर के अंदर बैठे चापलूस कर्मचारी सेठ जी की साख को तबीयत से बत्ती लगा रहे हैं।

[कोटा से आलोक की रिपोर्ट]

विष्णु बालोदिया मामले में आए आर्डर को डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न Path का प्रयोग करें-
https://docs.google.com/document/d/1a4aW-dawz4tkWHTf_NQftJC6tuhtApGVfqLyVGV-6AY/edit?usp=sharing

दैनिक जागरण में कार्यरत रहे मजीठिया योद्धा सुधांशु श्रीवास्तव का हार्ट अटैक से निधन



उत्तर प्रदेश के जनपद शाहजहांपुर में मजीठिया योद्धा सुधांशु श्रीवास्तव का हार्ट अटैक से निधन हो गया। वे करीब 57 वर्ष के थे। सुधांशु दैनिक जागरण, बरेली में कार्यरत थे और मजीठिया के मुद्दे पर लेबर कोर्ट, बरेली में मुकदमा लड़ रहे थे। उनका मुकदमा बरेली लेबर कोर्ट में लंबित है, जिसमें शुक्रवार 6 दिसम्बर को सुनवाई की तिथि नियत थी। उनका शुद्धि हवन 7 दिसम्बर को उनके खिरनीबाग, शाहजहांपुर स्थित निवास पर हुआ।

बताते हैं कि सुधांशु श्रीवास्तव बुधवार को दोपहर में घर पर अकेले थे, उनकी पत्नी मधुरिमा श्रीवास्तव जोकि आर्य कन्या इंटर कॉलेज शाहजहांपुर में शिक्षिका हैं, वह कॉलेज गई हुई थीं, जब अपराहन तीन बजे वह कालेज से लौटी तो बेल बजाने पर दरवाजा नहीं खुला, तब उन्होंने सुधांशु श्रीवास्तव के मोबाइल पर घंटी की। मोबाइल की घंटी बजती रही लेकिन कॉल रिसीव ना होने पर अनहोनी की आशंका में उनका माथा ठनका। मोहल्ले में रहने वाले एक लड़के को बुलाकर उसे बाउंड्री पार कराकर घर के अंदर प्रवेश कराया, तब किसी तरह अंदर से बंद दरवाजे की कुंडी खुली तो सुधांशु श्रीवास्तव बेड पर पड़े मिले।

आनन-फानन में उनको चिकित्सक के यहां ले जाया गया, लेकिन चिकित्सक ने उनकी कुछ देर पहले ही हार्ट अटैक से मौत हो जाना बताया। सुधांशु श्रीवास्तव ने करीब डेढ़ साल पहले लखनऊ में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के लारी हार्ट सेंटर में हार्ट की बाईपास सर्जरी कराई थी। उनके दो बच्चे हैं। बेटा और बेटी दोनों ही दिल्ली में जॉब करते हैं।

शाहजहांपुर में वह व उनकी पत्नी दो ही लोग रहते थे। सुधांशु श्रीवास्तव बरेली में दैनिक जागरण की यूनिट लगने के समय से ही कार्यरत थे। मजिठिया के चलते उनका प्रबंधन से टकराव हो गया तो प्रबंधन ने उनका स्थानांतरण पंजाब कर दिया तो वह गए नहीं और जागरण पर श्रम न्यायालय में केस ठोंक दिया।

सुधांशु कुछ समय दैनिक जागरण के शाहजहांपुर, पीलीभीत व बदायूं ब्यूरो में भी कार्यरत रहे। वह अधिक समय तक दैनिक जागरण के बरेली यूनिट कार्यालय पर डेस्क पर कई संस्करणों के प्रभारी रहे। वे मूल रूप से लखनऊ के रहने वाले थे लेकिन कई दशकों से शाहजहांपुर में स्थायी रूप से रह रहे थे।

उत्तर प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार यूनियन, बरेली मंडल बरेली के अध्यक्ष निर्मल कान्त शुक्ल ने शोक संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि बहुत ही दुख भरी खबर है। यकीन ही नहीं हो रहा है कि हम सबके प्रिय सुधांशु जी अब हमारे बीच नहीं है। जन्म और मृत्यु इस सृष्टि (प्रकृति) का नियम है। जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है।

कुछ लोग मर तो जाते हैं पर उनके विचार हमेशा जिन्दा रहते हैं और उनके किये कार्य दूसरों के लिए प्रेरणा बना जाता है। होनी को कौन टाल सकता हैं, ईश्वर की इच्छा के सामने इंसान बेबस होता है। मृत्यु सत्य है और शरीर नश्वर हैं, यह जानते हुए भी अपनों के जाने का दुःख होता है।

हम सभी को ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि दिवंगत की आत्मा को शांति और मोक्ष प्रदान करें। अच्छे लोग दिलों में इस तरह उतर जाते हैं कि मरने के बाद भी अमर हो जाते हैं। सुधांशु जी के निधन से पत्रकार जगत को न सिर्फ गहरा दुःख हुआ बल्कि यह हम सभी के लिए एक अपूरणीय क्षति है। वक्त के साथ जख्म तो भर जायेंगे, मगर जो बिछड़े सफर जिन्दगी में फिर ना कभी लौट कर आयेंगे। मजीठिया योद्धा निर्भय सक्सेना, रमेश चंद रॉय, अरुण द्विवेदी ने सुधांशु श्रीवास्तव के निधन पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए उनको श्रद्धांजलि अर्पित की।

बरेली से वरिष्ठ पत्रकार निर्मलकांत शुक्ला की रिपोर्ट...
[साभार: भड़ास4मीडिया.कॉम]

Saturday 30 November 2019

मोदी सरकार ने लोकसभा में पेश किया मजदूर विरोधी बिल, विपक्ष ने किया विरोध

नई दिल्ली। सरकार ने बृहस्‍पतिवार को लोकसभा में 'औद्योगिक संबंध संहिता, 2019' और उससे संबंधित एक विधेयक पेश किया जिसमें श्रमिक संघ, औद्योगिक प्रतिष्ठानों या उपक्रमों में रोजगार की शर्तें, औद्योगिक विवादों की जांच तथा निपटारे एवं उनसे संबंधित विषयों के कानूनों को मिलाने का और संशोधन करने का प्रावधान है। सदन में श्रम और रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने इस संबंध में विधेयक पेश किया।
हालांकि, इससे पहले विधेयक पेश किए जाने का विरोध करते हुए आरएसपी के एन के प्रेमचंद्रन, तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय और कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने उक्त संहिता को कर्मचारी विरोधी बताते हुए सरकार से इसे श्रम पर संसदीय स्थायी समिति को भेजने की मांग की। प्रेमचंद्रन ने कहा कि इसमें राज्यों से जरूरी परामर्श नहीं किया गया है। सौगत राय ने कहा कि किसी मजदूर संगठन ने इस संहिता की मांग नहीं की थी और उद्योग संगठन चाहते थे, इसलिए सरकार इसे लेकर आई है। उन्होंने इसे 'श्रमिक विरोधी' बताते हुए कहा कि इसे श्रम पर स्थाई समिति को भेजा जाना चाहिए। चौधरी ने भी इसे 'श्रमिक विरोधी' बताते हुए स्थाई समिति को भेजने की मांग की।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि सदस्यों ने जो भी कारण बताए हैं, वह विधेयक के विरोध में हैं और चर्चा में रखे जाने चाहिए। विधेयक पेश किए जाने के विरोध में कोई कारण सदस्य नहीं बता रहे। संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि सदस्यों ने एक भी कारण ऐसा नहीं बताया है जिससे साबित हो कि इस सदन को विधेयक लाने का विधायी अधिकार नहीं है।
भाकपा के के. सुब्बारायन और माकपा के अब्दुल मजीद आरिफ तथा एस वेंकटेशन ने भी विधेयक पेश किए जाने के विरोध में बोलने की अनुमति मांगी लेकिन लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि पूर्व में नोटिस नहीं दिया गया। सदस्य चर्चा के दौरान विस्तार से अपनी बात रख सकते हैं। बात रखने की अनुमति नहीं मिलने पर वामदलों के सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया।
संतोष गंगवार ने कहा कि सरकार लंबी चर्चा और श्रम संगठनों तथा सभी राज्य सरकारों से परामर्श के बाद औद्योगिक संबंध संहिता लेकर आई है। इसमें कोई भी प्रावधान मजदूरों के हक के खिलाफ नहीं है। इसके बाद उन्होंने 'औद्योगिक संबंध संहिता, 2019' को सदन में पेश किया।

क्‍या है बिल में
लोकसभा में पेश बिल के विभिन्न प्रावधानों में औद्योगिक संस्थानों में हड़ताल करने को कठिन बनाया गया है, जबकि कर्मचारियों की बर्खास्तगी को आसान बनाया गया इस विधेयक में श्रमिकों की एक नई श्रेणी बनाई गई है फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट, यानी एक नियत अवधि के लिए रोजगार। इस अवधि के समाप्त होने पर कामगार का रोजगार अपने आप खत्म हो जाएगा। इसके जरिए औद्योगिक संस्थान ठेकेदार के जरिए श्रमिकों को रोजगार देने के बजाय अब खुद ही ठेके पर लोगों को रोजगार दे सकेंगे। इस श्रेणी के कामगारों को तनख्वाह और सुविधाएं नियमित कर्मचारियों जैसी ही मिलेंगी। इसी तरह किसी भी संस्थान में श्रमिक संघ को तभी मान्यता मिलेगी जब उस संस्थान के कम से कम 75 प्रतिशत कामगारों का समर्थन उस संघ को हो। इससे पहले यह सीमा 66 प्रतिशत थी। नए विधेयक  के तहत सामूहिक आकस्मिक अवकाश को हड़ताल की संज्ञा दी जाएगी और हड़ताल करने से पहले कम से कम 14 दिन का नोटिस देना होगा।
अब नौकरी जाने की सूरत में किसी भी कर्मचारी को उस संस्थान में किए गए हर वर्ष काम के लिए 15 दिन के वेतन  का ही मुआवजा मिलेगा। इससे पहले के विधेयक में हर वर्ष के काम के बदले 45 दिन के मुआवजे का प्रावधान था। नौकरी से निकाले जा रहे कर्मचारी को नए कौशल अर्जित करने का मौका मिलेगा जिससे उसे दोबारा रोजगार मिल सके। इसका खर्च पुराना संस्थान ही उठाएगा।
इस बिल के कानून बनने पर ट्रेड यूनियन एक्ट 1926, इंडस्ट्रियल एंप्लॉयमेंट एक्ट 1946, और इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट 1947 अपने आप खत्म हो जाएंगे। इस विधेयक को लाने का उद्देश्य भारत में काम करने की सुगमता यानी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की रैंकिंग बेहतर करना है।
श्रम सुधारों को तेज करने के लिए श्रम मंत्रालय ने 44 श्रम कानूनों को चार कोर्ट में बांटने का जिम्मा उठाया था - वेतन औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य, सुरक्षा और काम करने की स्थितियां। इनमें से वेतन संबंधी श्रम कोड को संसद ने अगस्त में ही पारित कर दिया था जबकि स्वास्थ्य सुरक्षा और काम करने की स्थितियां संबंधी विधेयक श्रम संबंधी संसदीय समिति के हवाले है।

Thursday 28 November 2019

IFWJ Mourns the Death of Veteran Journalist Madhu Shetty

Veteran journalist Madhu Shetty passed away this morning at Mumbai at the ripe old age of 89. Shetty was closely associated with Bombay Union of Journalists and Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) in different capacities. He played a significant role in establishing the Mumbai Press Club in 1968 in collaboration with Bombay Union of Journalists.

Shetty fought for the Goa Mukti Sangram along with SB Kolpe, who later became the President of the Indian Federation of Working Journalists. He fought for the implementation of the Palekar Tribunal Award in the newspapers. Shetty started his career from the Free Press Journal and later he became the special correspondent of Patriot and Link weekly in Bombay. Patriot was a left-

leaning newspaper, published from New Delhi and veterans like E. Narayanan and indomitable freedom fighter Aruna Asif Ali were moving spirits for the starting the newspaper.

He also worked for some time for a weekly ‘Clarity’ being published from Mumbai. Shetty was also a social worker of a very good repute and was elected as a Corporator to the Bombay Municipal Corporation. IFWJ President B.V. Mallikarjunaiah and Secretary-General Parmanand Pandey have expressed their deep sorrow over the sad demise of Comrade Shetty, who always for the cause of workers and downtrodden.


Parmanand Pandey
Secretary-General, IFWJ

Saturday 16 November 2019

अब संपादक एक डरा-सहमा, दीन-हीन और दलाल पद है



-मत बांधों हमसे इतनी उम्मीदें, हम अब निष्पक्ष नहीं
समतल नहीं उत्तल और अवतल दर्पण हो गया मीडिया
-अधिकारियों से भी अधिक शिकायतें हैं पत्रकारों के खिलाफ: पीसीआई

आज नेशनल प्रेस डे है। भारतीय प्रेस काउंसिल यानी पीसीआई की स्थापना इसलिए की गई थी कि मीडिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर काम करें। लेकिन विगत कुछ वर्षों से पीसीआई पत्रकारों की शिकायतों की सुनवाई नहीं कर पा रहा है। पीसीआई का उद्देश्य ही भटक गया है। कारण, पत्रकारों की इतनी शिकायतें पीसीआई को मिली हैं कि समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर किस मीडिया संस्थान और किस पत्रकार को पीला, नीला या काला मानें। साफ है कि अब कारपोरेट जनर्लिज्म को दौर है। जनपक्षधरता बची ही नहीं। एक उदाहरण दे रहा हूं, देहरादून में आयुष छात्रों की फीस कई गुणा बढ़ा दी गई। मुख्यधारा के समाचार पत्रों या चैनलों का एक भी जिन्दा दिल पत्रकार या संस्थान ऐसा नहीं है जिसने घटनात्मक रिपोर्टिंग के अलावा समस्या की जड़ तक जाने का प्रयास किया हो। हालांकि 50 दिन से धरने पर बैठे इन बच्चों में पत्रकारों के कई सगे-संबंधी भी हैं, लेकिन उनकी मजबूरी यह है कि वो चाहकर भी सरकार के खिलाफ नहीं जा सके। कारण, सरकार विज्ञापन रोक देगी तो संपादक की कुर्सी हिल जाएगी। संपादक एक डरा हुआ आदमी है, वह संपादक कम दलाल अधिक है। उसे खबरों से अधिक मालिक के काम शासन से कराने होते हैं। संपादक का अर्थ असहाय और चाटुकार है। इसलिए अब कोई सरकार के खिलाफ चूं नहीं करेगा तो लोगो मत बांधों हमसे अधिक उम्मीदें। हम मिशनरी नहीं कारपोरेट पत्रकार हैं। तो बोला, प्रेस डे की जय।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]

Thursday 14 November 2019

डीएनए के 73 कर्मचारियों के टर्मिनेशन और मशीन तीसरी पार्टी को बेचने पर अदालत ने लगाई रोक

मुम्बई से पिछले दिनों अपना कारोबार समेटने वाले जी समूह के अंग्रेजी दैनिक डीएनए के कर्मचारियों के लिए एक अच्छी खबर आ रही है। यहां महाराष्ट्र के ठाणे इंस्ट्रीयल कोर्ट ने  डीएनए के 73 कर्मचारियों के टर्मिनेशन और मशीन तीसरी पार्टी को बेचने पर अंतरिम रोक लगा दी है। आपको बता दें कि डीएनए की कर्मचारी यूनियन डिलिजेंट मीडिया कारपोरेशन कर्मचारी यूनियन वर्सेज मेसर्स डिलिजेंट मीडिया कारपोरेशन लिमिटेड एंड अदर्स के मामले में इंडस्ट्रियल कोर्ट में चल रही सुनवाई के मामले में ठाणे की इंडस्ट्रियल कोर्ट के विद्वान न्यायाधीश एस जी दबाडग़ांवकर ने यह आर्डर 5 नवंबर 2019 को दिया। इस दौरान डीएनए कर्मचारी यूनियन को न्यूज पेपर एम्प्लाइज यूनियन ऑफ इंडिया के नेशनल सेक्रेटरी धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने भी अपना पूरा सहयोग दिया। आप को बता दें की डीएनए आर्थिक घाटे का रोना रोकर लगातार कर्मचारियों का छंटनी कर रहा था। और पिछले दिनों उसने मुम्बई में अपना प्रिंट प्रकाशन बंद कर दिया था।

सर डीएनए वाली जो न्यूज़ थी उसमें डीएनए यूनियन के वकील और कुछ पदाधिकारियों का नाम जोड़ना था।उनके वकील का नाम छूट गया था जबकि बीयूजे के एम जे पांडे का नाम हटाना है।
जो जोड़ना है वो ये है।

डिलिजेन्ट  मिडिया कॉर्पोरेशन एम्प्लॉईज युनियन  के इस मामले में  मीडिया कर्मियों का अदालत में पक्ष रखा
एडवोकेट अरुण निंबालकर ने  और सलाहकार  थे प्रदीप कदम जबकि यूनियन के अध्यक्ष हैं  सागर राठौड़,
सचिव- प्रशांत कदम,कोषाध्यक्ष हैं  क्रांती कुरणे । कार्यकारिणी के सदस्य हैं अभिषेक लोटांकर ,
 बालकृष्ण वालिंबे ,
 सहदेव दलवी  और
 विनोद म्हात्रे ।
आर्डर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न path का प्रयोग करें- https://drive.google.com/file/d/1DY3j0VdLv0CaOunP_1tfgeYohLO6AUl9/view?usp=sharing


शशिकांत सिंह
पत्रकार,आर टी आई एक्सपर्ट और वाइस प्रेसिडेंट, न्यूज़ पेपर एम्प्लाइज यूनियन ऑफ इंडिया
9322411335

उफ! एक दिन यह तो होना ही था मीडिया के साथ


  • जेएनयू के छात्रों ने गोदी मीडिया को दुत्कारा
  • छात्रों के बयान लेने के लिए तरसते रहे मीडियाकर्मी


जब मीडिया बायस हो जाए तो यह दिन तो आने ही थे। हाल में जेएनयू में फीस बढ़ोतरी के खिलाफ जो छात्रों का आंदोलन हुआ उसमें गोदी मीडिया की जो बेइज्जती हुई, वह हम सब पत्रकारों के लिए एक सबक है। जेएनयू के छात्रों ने मीडियाकर्मियों को भगा दिया और उनसे बात नहीं की। छात्रों ने बुरी तरह से पत्रकारों का जलील किया। एक भी छात्र गोदी मीडिया को बाइट देने के लिए तैयार नहीं हुआ। यहां तक छात्राओं ने दो बड़े चैनल के लेडी और जेंट्स पत्रकार को बुरी तरह डांटा। संभवतः यह पहली बार है जब छात्रों का आक्रोश मीडिया पर फूटा।
दरअसल, गोदी मीडिया ने जेएनयू को टुकड़े-टुकड़े गैंग समझ लिया है और बायस मीडिया भी इस धारणा में शामिल हो गया, जबकि देश के सबसे बेस्ट ब्रेन जेएनयू में ही हैं। मीडिया ने जब अपनी हदें पार कर ली हैं और मीडिया साफ बंटा हुआ या बिका हुआ नजर आता है तो ऐसा रिएक्शन मिलना स्वाभाविक है। हमें पत्रकारिता में सिखाया गया था कि जो बात जनसरोकार की हो, न्याय की हो, तर्क संगत हो और उससे समाज को एक संदेश जाता हो तो उस खबर को दिखाना या लिखना चाहिए। लेकिन अब मीडिया का अर्थ हो गया है कि लाला जो कहे, संपादक जिसमें बिके और वेतन-भत्ते जिस समाचार से निकले, वो समाचार परोसे। जब मीडियाकर्मी पूर्व निर्धारित स्थिति में स्टोरी एंगल लेकर जाता है तो वह बायस हो सकता है। घटनात्मक समाचार तो स्‍पॉट पर ही बनता है। जेएनयू की दस रुपये की फीस मीडिया को चुभ रही है, लेकिन उसी कोर्स के लिए जब निजी संस्थान लाखों वसूलते हैं तो उनके खिलाफ चुप्पी इसलिए होती है कि वो विज्ञापन देते हैं। इसके बावजूद उन संस्थानों की स्थिति जेएनयू के पैरों की धूल के बराबर भी नहीं होती। मीडियाकर्मियों को समझना होगा कि जेएनयू से जो मीडिया विरोध के स्वर निकले हैं वो दूर तक जाएंगे और फिर सुधीर चौधरी, अरनब गोस्वामी और अंजना जैसे पत्रकार स्टूडियो में मीडिया पर हमले या विरोध का पैनल बिठाकर बेतुकी बहस कर रहे होंगे। तो संभल जाओ गोदी मीडिया। बुरे दिन आ गए हैं।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]

Monday 11 November 2019

भड़ास एडिटर यशवंत अपने होम टाउन गाजीपुर में सड़क हादसे में बुरी तरह घायल


चोटें इतनी मिली हैं कि इसकी आदत-सी हो गई है। सो, कोई नई चोट आतंकित नहीं करती, हदस पैदा नहीं करती। कल रात स्कूटी को एक कार वाले ने उड़ा दिया। हेलमेट ने 90 फीसदी रक्षा की।

ये जो बाकी चोट तस्वीर में दिख रही है, वह हवा में दो तीन कलाबाजी खाकर लुढ़कते हुए घिसटने से दर्ज हुई। ज्यादा नहीं, पांच छह टांके लगे हैं। शरीर भर में पंद्रह सोलह जख्म हैं।

दुर्घटना के फौरन बाद ऑटो लेकर अकेले ही ग़ाज़ीपुर जिला अस्पताल पहुंचा तो देखा कि दोस्त मित्र भाई सब जमे हुए हैं। फिर मुझे कुछ न कहना- करना पड़ा। केवल आंखें बंद किए रहा। इंजेक्शन, टांके, ड्रेसिंग महसूसता रहा।

पहली तस्वीर दुर्घटना से ठीक 10 मिनट पहले की है।

बिल्कुल नए हेलमेट की हालत देखिए।

आज सुबह से हल्दी दूध, अनार जूस, मूंग खिचड़ी का सेवन कर लिया। एनर्जेटिक फील कर रहा। ना जाने क्यों जख्मों-चोटों से मोहब्बत सी हो गई है। ये होते हैं तो खुद के वजूद का एहसास होता है। वरना लोग जन्मते मरते हैं, पर कभी चैन से जख्मी होकर नहीं जी पाते!

[भड़ास एडिटर यशवंत सिंह की एफबी वॉल से]




Friday 8 November 2019

फरार आरोपी व सैकड़ों पत्रकारों को प्रताडि़त करने वाले को प्रतिष्ठित राजा राम मोहन राय पुरस्कार दिया जाना उचित नहीं....

श्रीमान सचिव महोदय
भारतीय प्रेस परिषद
नई दिल्ली।
विषय: राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक  गुलाब कोठारी को भारतीय प्रेस परिषद की ओर से प्रतिष्ठित राजा राम मोहन राय पुरस्कार देने के विरोध में।
महोदय, निवेदन है कि भारतीय प्रेस परिषद ने प्रतिष्ठित राजा राम मोहन राय पुरस्कार के लिए राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक  गुलाब कोठारी को चयनित किया है। यह पुरस्कार पत्रकारिता के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान के लिए दिया जाता है।
महोदय, परिषद ने  कोठारी को यह पुरस्कार गलत दिया है। वे इसके हकदार नहीं है। राजस्थान पत्रिका समूह के सैकड़ों पत्रकार और कर्मचारियों का आर्थिक, सामाजिक और मानसिक शोषण करने वाले व्यक्ति  गुलाब कोठारी के खिलाफ देश की विभिन्न अदालतों में पत्रकारों व कर्मचारियों की ओर से सैकड़ों मामले लंबित है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी संविधान प्रदत्त जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड पत्रकारों व कर्मचारियों को नहीं दिया। ऐसे व्यक्ति को प्रतिष्ठित राजा राम मोहन राय पुरस्कार देना देश की पत्रकारिता जगत में अचरज से देखा जा रहा है और ये समझ से भी परे है। कोठारी का पत्रकारिता के क्षेत्र में इतना ही योगदान है कि वे राजस्थान पत्रिका के संस्थापक  कर्पूरचन्द्र कुलिश के बेटे है और उनके अखबार के मालिक हैं। देश के संविधान और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाना इनकी आदत में शुमार रहा है। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि मजीठिया वेजबोर्ड के एक मामले में न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी मुरैना  सत्यम पांडे के प्रकरण क्रमांक 1363/2015 श्रम विभाग विरुद्ध डॉ.गुलाब कोठारी फिलिंग नम्बर 2753/2015 सीएनआर नम्बर एमपीजीरो-6010014702015, फिलिंग डेट 30/06/15 में पारित आदेश दिनांक 22/07/2017 को कोर्ट ने फैसले में  गुलाब कोठारी को फरार घोषित कर उनके खिलाफ स्थायी गिरफ्तारी वारंट जारी कर रखा है। (आदेश प्रति संलग्न है) न्यायिक मजिस्ट्रेट क्रम संख्या आठ जयपुर महानगर कोर्ट में श्रम विभाग की ओर से मजीठिया वेजबोर्ड मामले में राजस्थान पत्रिका समूह व उनके मालिकों के खिलाफ मामला लंबित है। 
आश्चर्य तो इस बात का है कि हाल ही मैं भारतीय प्रेस परिषद की पैड न्यूज को लेकर जयपुर में जनसुनवाई कार्यक्रम रखा गया था। राजस्थान पत्रिका के खिलाफ भी पैड न्यूज से संबंधित मामलों की सुनवाई परिषद के माननीय अध्यक्ष व अन्य परिषद सदस्यों ने की थी। उक्त अवसर पर भी पत्रकार संगठनों के पदाधिकारियों ने परिषद चेयरमैन से व्यक्तिगत मिलकर राजस्थान पत्रिका समूह के मालिक व प्रधान संपादक  गुलाब कोठारी की कारगुजारियों की जानकारी दी थी। ऐसे अखबार के प्रधान संपादक व मालिक को प्रतिष्ठित पुरस्कार देना कहां तक उचित है। यहीं नहीं  गुलाब कोठारी व पत्रिका समूह के कई जमीनी मामले भी चर्चित रहे हैं।
महोदय, हमारा अनुरोध है कि अविलम्ब गुलाब कोठारी को दिया जाने वाला पुरस्कार समारोह रोका जाए और कोठारी का पुरस्कार वापस लिया जाए। साथ ही इस पुरस्कार देने के मामले की जांच करवाई जाए। परिषद के कोठारी को पुरस्कार देने के फैसले से देश भर के पत्रकारों व कर्मचारियों में खासा आक्रोश है। अगर गुलाब कोठारी को दिया जाने वाला पुरस्कार की घोषणा वापस नहीं ली गई तो पत्रकार संगठन 16 नवम्बर को आयोजित समारोह में गुलाब कोठारी का विरोध प्रदर्शन करेंगे।
धन्यवाद

भवदीय
देवेन्द्र गर्ग
अध्यक्ष
अमित मिश्रा, राकेश कुमार शर्मा
सचिव
जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड संघर्ष समिति राजस्थान

Thursday 7 November 2019

Representation to the Chairman and the Members of the Parliamentary Standing Committee on Labour

Subject:  Representation to the Chairman and the Members of the Parliamentary Standing Committee on Labour


Dear Comrade,

ञ्‍--We hope that you are aware of the that the Government of India has contemplated to repeal the Working Journalists Act and subsume it with other 11 Acts. All Acts will be the part of the ‘Occupational Safety, Heath and Working Conditions Code’. We have opposed it tooth and nail and have met with the Hon’ble Minister at least two times for retaining the Working Journalists Act. We have also sent a representation to the Chairman and the Members of the Parliamentary Standing Committee on Labour. Presently the committee is headed by Shri Bhartruhari Mahtab, a Member of Parliament from Odisha.

In case you have to express any opinion about it, kindly let us know immediately so that we can discuss the same in the executive body of the Confederation of Newspapers and News Agencies Employees Organisation. As you know that we have also staged a massive demonstration at Jantar on 10 October 2019 for the retention of the Working Journalists Act. We have to be prepared for a long struggle to keep the Act intact.


Thanking you,


Yours sincerely,

Parmanand Pandey

Secretary-General, IFWJ

WJA को बचाने के लिए मैंने भी पत्र भेजा, आप भी भेजें


साथियों जैसा की आपको पता है कि केंद्र सरकार कई श्रम कानूनों के साथ-साथ हमारे हितों के रक्षक श्रमजीवी पत्रकार और अन्‍य समाचारपत्र कर्मचारी (सेवा की शर्तें) और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम,1955 तथा श्रमजीवी पत्रकार (मजदूरी की दरों का निर्धारण) अधिनियम, 1958 को निरस्‍त करने जा रही है। यदि आप इसको बचाना चाहते हैं तो निम्‍न पत्र लोकसभा की स्थायी श्रम समिति को भेजे या फि‍र मेल करें। पता और ईमेल ये है- (माननीय अध्यक्ष एवं सदस्यगण, लोकसभा की स्थायी श्रम समिति, संसद भवन, नई दिल्ली। E-mail : comm.labour-lss@sansad.nic.in)
पत्र के नीचे अपना नाम, पता, संस्‍थान का नाम-यूनिट समेत, मोबाइल नंबर आदि जरूर भरें। पत्र इस प्रकार है...

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सेवा में,                                                                                                    दिनांक- 07-11-2019
       
माननीय अध्यक्ष एवं सदस्यगण
लोकसभा की स्थायी श्रम समिति
संसद भवन, नई दिल्ली
E-mail : comm.labour-lss@sansad.nic.in

विषय :-

श्रमजीवी पत्रकार एवं अन्य समाचार पत्र कर्मचारी(सेवा की शर्तें)और प्रकीर्ण उपबन्ध अधिनियम(वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट)-1955 
                  तथा
श्रमजीवी पत्रकार(मजदूरी दरों का निर्धारण) अधिनियम-1958

को अवक्रमित अथवा समाप्त नहीं किया जाए तथा प्रिंटमीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया, वेब पोर्टल मीडिया आदि को इसके दायरे में लाने हेतु संशोधित किया जाए तथा व्यापक सुधार कर और अधिक प्रभावी किया जाने का निवेदन किये जाने के सम्बन्ध में : -

सम्मानित महोदय,

आपको अवगत कराना है कि तत्कालीन सरकार द्वारा गठित "प्रथम प्रेस आयोग" द्वारा समाज और राष्ट्र की सेवा में कार्यरत पत्रकारों के श्रम की संवेदनशील प्रकृति के कारण अन्य व्यवसायिक श्रमिकों से अलग रखते हुए 1954 में की गई संस्तुति के आधार पर यह श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम बनाया गया था। जो कि श्रमजीवी पत्रकारों को समय-समय पर वेजबोर्ड के गठन नौकरी की सुरक्षा, अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा और उचित वेतनमान व भत्ते प्रदान कर आजीविका के प्रबंध की व्यवस्था करता है। जो कि "वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट"-1955 & 1958 कहलाया।

भारत सरकार द्वारा न्यायमूर्ति जी सी राज्याध्यक्ष की अध्यक्षता में गठित "प्रथम प्रेस आयोग" के सदस्यों में डॉ० जाकिर हुसैन, आर वेंकटरमन ( बाद में दोनों भारत के राष्ट्रपति बने), दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के निदेशक वीकेआरवी राव (बाद में इन्दिरा गांधी की सरकार में केंद्रीय मंत्री बने), त्रिभुवन नारायण सिंह (बाद में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने), जयपाल मुंडा (आदिवासी नेता और संसद सदस्य), एम चेलापति राव (इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स IFWJ के तत्कालीन अध्यक्ष) महत्वपूर्ण हस्तियां शामिल थी।

माननीय सुप्रीम कोर्ट (सर्वोच्च न्यायालय) द्वारा अनेक अवसरों पर वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट को मान्यता दी गई तथा केन्द्रीय कर्मचारियों के समान वेतन देने की सिफारिश की गई।

इतना महत्वपूर्ण होने के बावजूद इसे समाप्त किया जाना न्यायसंगत नही है।

आपको बता दे कि
वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट सहित 13 विभिन्न श्रम कानूनों को समाप्त कर, 23 मार्च 2019 में इसका ड्राफ्ट तथा 4 माह बाद 23 जुलाई को मात्र "व्यवसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता"- 2019 लोकसभा में पेश कर दिया गया, जिसमें पत्रकार हितों की भारी अनदेखी हुई है।

वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट के तहत समय-समय पर वेज बोर्ड के गठन और प्रिंट मीडिया के लिए काम करने वाले पत्रकारों और गैर पत्रकार कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में संशोधन के प्रावधान तथा व्यवसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, कार्य की स्थिति को विनियमित करने वाले कानूनों में संशोधन की व्यवस्था समाप्त हो गई है।

फिलहाल समीक्षा और संशोधन के लिए लोकसभा की स्थायी श्रमसमिति के पास विचाराधीन है।

यदि वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट-1955 +1958 समाप्त कर दिया गया तो इसके परिणामस्वरूप मीडिया संस्थान के मालिक अपनी मनमानी पर उतर आएंगे और लोकतंत्र के सजग प्रहरी पत्रकार बंधुआ और दैनिक मजदूर से भी बदतर स्थिति में सड़क पर आ जाएंगे।

विनम्र निवेदन है कि पत्रकार हितों पर कुठाराघात करने वाली नई श्रमसंहिता-2019 में से वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट को पृथक करके इस हद तक संशोधित किया जाए जिससे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, वेब पोर्टल मीडिया, सोशल मीडिया भी इसके दायरे में आ जाए ताकि उनका संरक्षण और नियमन भी किया जा सके।   

अतः उपरोक्त विषयक मांग पूरी करते हुए इसे और अधिक व्यापक एवं प्रभावी बनाने का कष्ट करें। ताकि लोकतंत्र जिन्दा रह सकें।

पत्रकार जगत आपका आभारी रहेगा।

निवेदक
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Sunday 3 November 2019

वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट बचाना हो तो तीन दिन में भेजें सुझाव, लोकसभा ने गठित कर रखी है स्थायी समिति, डाउनलोड करें मैटर


देश के पत्रकारों और पत्रकार एवं गैर-पत्रकार संगठनों के लिए श्रमजीवी पत्रकार और अन्‍य समाचारपत्र कर्मचारी (सेवा की शर्तें) और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम,1955 तथा श्रमजीवी पत्रकार (मजदूरी की दरों का निर्धारण) अधिनियम, 1958 को निरस्‍त होने से बचाने के लिए अपना विरोध दर्ज करवाने के लिए चार दिन शेष बचे हैं।

देश की संसद ने लोकसभा सचिवालय, नई दिल्‍ली के तहत व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2019 पर विचार के लिए लोकसभा सांसद भर्तृहरि मेहताब की अध्‍यक्षता में एक स्‍थायी समिति का गठन कर रखा है और इस समिति के समक्ष उपरोक्‍त संहिता के संबंध में विचार या सुझाव प्रस्‍तुत करने के लिए लोकसभा सचिवालय ने 21 अक्‍टूबर को प्रेस विज्ञप्‍ति जारी कर रखी थी और इसके तहत प्रेस विज्ञप्‍ति जारी किए जाने के 15 दिनों के भीतर कोई भी व्‍यक्‍ति, संस्‍था, समूह या यूनियन अपना विचार या सुझाव रख सकती है।

ऐसे में अब महज तीन दिन का समय शेष बचा है। लिहाजा उपरोक्‍त पत्रकार अधिनियमों के निरस्‍त किए जाने का विरोध कर रहे समाचारपत्र कर्मचारियों, यूनियनों, संगठनों, क्‍लबों को सलाह दी जाती है कि वे अधिक से अधिक संख्‍या में अपना उपरोक्‍त अधिनियमों को निरस्‍त किए जाने से होने वाले नुकसान से लोकसभा की इस स्‍थायी समिति को अवगत करवाएं।

हालांकि विज्ञप्‍ति के अनुसार सुझाव/विचार लिखित तौर पर दो प्रतियों में मांगे गए हैं, मगर देरी से बचने के लिए इसे ईमेल के माध्‍यम से भी तुरंत भेजा जा सकता है। लिहाजा अपने सुझाव/विचार/विरोध इत्‍यादि लिख कर नीचे दी गई ईमेल आईडी पर तुरंत मेल करें और साथ ही इसका प्रिंट लेकर दो प्रतियां नीचे दिए गए पते पर स्‍पीडपोस्‍ट कर दें। इस संबंध में न्‍यूजपेपर इम्‍प्‍लाइज यूनियन आफ इंडिया द्वारा भेजा गया पत्र भी संलग्‍न किया जा रहा है।

पता- डायरेक्‍टर (एएन-आईआई एंड एल), लोकसभा सचिवालय, कमरा संख्‍या-330, संसद भवन अनेक्‍स, नई दिल्‍ली;110001, फैक्‍स नंबर 23011697,

ADDRESS: DIRECTOR (AN-II&L), LOK SABHA SECRETERIATE, ROOM NO. 330, PARLIAMEN HOUSE ANNEXE, NEW DELHI-110001.

EMAIL: comm.labour-lss@sansad.nic.in

न्‍यूजपेपर इम्‍प्‍लाइज यूनियन आफ इंडिया के अध्‍यक्ष रविंद्र अग्रवाल की रिपोर्ट. संपर्क- 9816103265

Wednesday 30 October 2019

जागरण के 20 जे की निकली हवा, ग्वालियर श्रम न्यायालय ने एक माह में दस कर्मचारियों को 2 करोड़ 39 लाख के भुगतान का दिया आदेश

ग्वालियर श्रम न्यायालय में चल रहे मजीठिया मामले में नईदुनिया जागरण के दस कर्मचारियों के पक्ष में न्यायालय ने 2 करोड 39 लाख रुपए के अवार्ड पारित किए हैं। ये अवार्ड नवंबर 2011 से लेकर सितंबर 2017 तक की अवधि के हैं। माननीय विद्वान न्यायाधीश श्री केसी यादव ने कर्मचारियों को आगे भी निरंतर मजीठिया के तहत वेतन देने के आदेश दिए हैं। आदेश के मुताबिक जागरण को एक माह के अंदर कर्मचारियों को पूरा भुगतान करना है। प्रत्येक कर्मचारी को दो-दो हजार रुपए वाद व्यय के रूप में भी देने के आदेश माननीय विद्वान न्यायाधीश ने दिए हैं। इस पूरे मामले को लंबित करने के उद्देश्य से प्रबंधन ने श्रम न्यायालय में चल रहे मामले की सुनवाई पर रोक लगाने के लिए भरसक प्रयास किए। इसके चलते प्रबंधन दो बार उच्च न्यायालय की शरण में भी पहुंचा लेकिन यहां से भी उसे कोई राहत नहीं मिली।
20 जे की निकली हवा, कोर्ट ने कहा फर्जी दस्तावेज प्रबंधन ने तैयार किए
20 जे के आधार पर मजीठिया वेतनमान लागू करने से बच रहे प्रबंधन को इन मामलों में सबसे तगड़ा झटका 20 जे पर ही लगा है। विद्वान न्यायाधीश्ा ने 20 जे को लेकर प्रबंधन के सभी दावों की अपने आदेश के माध्यम से हवा निकाल दी। जागरण के 20 जे के दस्तावेज को कोर्ट ने फर्जी बता दिया। कोर्ट के सामने प्रबंधन की पोल खुल गई। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि 20 जे का दस्तावेज फर्जी प्रमाणित है और प्रबंधन ने स्वयं तैयार किया है। इसके अलावा विद्वान न्यायाधीश्ा श्री केसी यादव ने एक्ट और न्याय के प्रतिपादित सिद्धांतों की बखूबी व्याख्या की है। साथ ही बताया है कि किस प्रकार न्यूनतम वेतन या केंद्र सरकार द्वारा तय वेतनमान से कम वेतन देने का करार किस प्रकार शून्य है। माननीय न्यायाधीश्ा ने अपने फैसले में स्पष्ट व्याख्या कर बताया है कि 20 जे आखिर क्या है। किस प्रकार अखबार प्रबंधन इसकी गलत व्याख्या कर रहे हैं और किस तरह 20 जे को लेकर कर्मचारियों को कोर्ट में अपना पक्ष रखना है। इस फैसले को पढ़कर विशेषरूप से 20 जे पर जागरण के कर्मचारियों को बड़ी राहत मिलने वाली है।
यूनिट नहीं संस्थान का सकल राजस्व माना जाएगा
जागरण की ओर से कोर्ट को भ्रमित करने के लिए केवल ग्वालिया नईदुनिया की बैलेंस शीट कोर्ट में पेश की गई थी लेकिन न्यायालय ने अपने आदेश में केवल ग्वालियर यूनिट का सकल राजस्व मानने से इंकार कर दिया। विद्वान न्यायाधीश्ा श्री केसी यादव ने बताया कि किस तरह अलग-अलग यूनिट यदि वे किसी एक कंपनी के अधीन हैं तो उनके सकल राजस्व की गणना ही की जाएगी। इसलिए कंपनी के सभी यूनिटों की बैलेंस शीट सकल राजस्व की गणना के लिए आवश्यक है। केवल यूनिट की बैलेंस शीट को कोई औचित्य नहीं है।
कर्मचारियों के गणना पत्रक को सही माना
मामले में कर्मचारियों की ओर से मजीठिया वेतनमान की अनुशंसा के मुताबिक गण्ाना पत्रक न्यायालय में पेश किए गए थे, जबकि प्रबंधन की ओर से कोई गणना पत्रक पेश नहीं किया था। ऐसे में विद्वान न्यायाधीश्ा श्री केसी यादव ने कर्मचारियों के गणना पत्रक की जांच की ओर ब्याज की राशि छोड़कर मजीठिया वेतनमान के बकाया राशि का अवार्ड पारित कर दिया। इस मामले में कर्मचारियों की ओर से श्रम मामलों के जानकार और वरिष्ठ अधिवक्ता श्री जेएस सेंंगर ने पैरवी की। 24 अक्टूबर को खुले न्यायालय में दस अवार्ड सुनाए गए। अब एक माह में प्रबंधन को कर्मचारियों को मजीठिया का बकाया देना है साथ ही आगे भी मजीठिया के मुताबिक वेतन देना होगा।

नीचे देखें किसे कितने लाख मिले।
Anil samadhiya 2754022
Sandip pathak 2608785
Milind bhindwalwe 3116690
Shiromani singh 2423887
Prabhat Bnahtnagar3236160
Subhash DX 720210
Ganesh kulshreshth 2378422
Sarvesh 2645569
Mayaram mishra 1430937
Anamika 2622526

Tuesday 29 October 2019

IFWJ Observes its 70th Foundation Day as the ‘Pledge Day’

The 70th Foundation day of the IFWJ was celebrated all over the country by the journalists and other media employees. In Delhi it was observed as the ‘pledge day’ for securing the new Wage Board, Amendment in the Working Journalists Act and also for introducing the special provisions to ensuring the safety and security of the media persons. The Secretary-General Parmanand Pandey informed that the IFWJ has written to Shri Bhartruhari Mahatab, the Chairman of the Parliamentary Committee on Labour opposing the move of the government to abrogate the Working Journalists Act and integrate it with other 11 existing Acts, which have nothing in common with the Working Journalists Act. It may be noted here that the government is planning to repeal the Working Journalists Act and subsuming the other Acts under the ‘Occupational Safety, Health and the Working Conditions Code 2019’.

Although the it has been proposed to include employees of the electronic and web etc in the Code, yet the Working Journalists Act is to be clubbed with the other Acts like Mines Act, Plantation Act etc. which have no common ground with the Working Journalists Act. It defies all logic to put other Acts having no common denominator with a distinct Working Journalists Act.

IFWJ has reminded the government that the Working Journalists Act was passed by Parliament in 1955 after a great deal of efforts by the Indian Federation of Working Journalists (IFWJ). Among others who spoke on the occasion to make the IFWJ strong were Rinku Yadav, Treasurer IFWJ, AS Negi President of the DUWJ, C.K. Pandey and Ashok Sharma etc.

The IFWJ has decided to launch and awaken the journalists as well as general public about the need to retain the Working Journalists Act and its comprehensive amendment to help benefit the employees of the print, electronic and other digital media.

Parmanand Pandey
Secy-Gen: IFWJ

Monday 28 October 2019

भास्कर ग्रुप के हवाले की गई 61 हजार स्क्वायर फीट जमीन का आवंटन रद्द

दैनिक भास्कर समूह का एक और कांड सामने आया है। सन 2004 में इन्दौर की महापौर परिषद ने तमाम नियमों को दरकिनार करते हुए 61 हज़ार स्क्वायर फ़ीट महंगी जमीन मात्र 81 लाख में भास्कर के नाम कर दी थी। हाईकोर्ट ने उस आदेश को खारिज कर भास्कर को पटखनी मार दी है।
61000 स्क्वेयर फीट की बेशकीमती जमीन का शासकीय लैंड यूज गार्डन और पार्क के लिए था। तत्कालीन महापौर परिषद् ने बिना मध्यप्रदेश नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम 1973 के नियमों-कानूनों का पालन किए और बिना किसी अधिकार के उपरोक्त 61 हजार स्क्वेयर फीट की बेशकीमती जमीन दैनिक भास्कर ग्रुप की उपरोक्त कंपनी के नाम कर दी थी।

[साभार भड़ास4मीडियाडॉटकॉम]

देखें इस संबंध में छपी एक खबर….

Thursday 24 October 2019

मजीठिया: जागरण को दीवाली से पहले बड़ा झटका, लेबर कोर्ट ने 20 जे को बताया फर्जी, पारित किया 2 करोड़ 40 लाख का अवार्ड


ग्‍वालियर। मध्‍यप्रदेश के ग्‍वालियर से मजीठिया मामले में बहुत बड़ी खबर आ रही है। अब तक कर्मचारियों को 20जे की आड़ में वेजबोर्ड देने से बचते रहे जागरण प्रकाशन लिमिटेड को यहां के लेबर कोर्ट ने तगड़ा झटका दिया है। लेबर कोर्ट ने 20जे पर जागरण प्रकाशन लिमिटेट की सभी दलीलों को खारिज करते हुए इसे फर्जी बताया और नई दुनिया के 10 कर्मचारियों के पक्ष में 2,39,37,208 रुपये का अवार्ड पारित किया। लेबर कोर्ट ने ये आदेश 2017 तक के हिसाब से दिया और साथ ही कंपनी को इसी तरह आगे का वेतन भी देने के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही लेबर कोर्ट ने कंपनी को केस पर खर्च के रूप में प्रति कर्मचारी दो-दो हजार रुपये देने का भी आदेश दिया है। लेबर कोर्ट में सुनवाई के दौरान जागरण ने हर ह‍थकड़े अपनाए और इसकी कार्यवाही में बाधा डालने के लिए कई बार हाईकोर्ट भी पहुंचा। परंतु उसे हर बार वहां मुंह की खानी पड़ी। इस आदेश के बाद मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे देशभर के पत्रकारों के बीच खुशी की लहर दौड़ पड़ी है।
नई दुनिया के विजेता साथियों के नाम इस प्रकार है-

Anil samadhiya - 2754022
Sandip pathak - 2608785
Milind bhindwalwe - 3116690
Shiromani singh - 2423887
Prabhat Bnahtnagar - 3236160
Subhash DX - 720210
Ganesh kulshreshth - 2378422
Sarvesh - 2645569
Mayaram mishra - 1430937
Anamika maidam - 2622526


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लो, अमर उजाला प्रबंधन भी कमीना निकला


संवाद न्यूज एजेंसी के नाम से छाप रहा खबरें
राजुल महेश्वरी फेर रहे अतुल जी के सपनों पर पानी
कई जगह अंतिम सांसें गिन रहा है अमर उजाला

अमर उजाला ने पत्रकारिता के मेरे करियर को नया मोड़ देने का काम किया। मैंने दिल्ली और चंडीगढ़ संस्करण में आठ साल अमर उजाला में विभिन्न पदों पर काम किया। मेरी धारणा थी कि अमर उजाला के मालिक दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर के मालिकों की तुलना में कम खराब हैं, लेकिन अब यह धारणा बदल गई है। अमर उजाला का बेड़ा गर्क करने में शशि शेखर का बड़ा हाथ रहा है। अमर उजाला में 2005 तक बहुत अच्छी और काबिल टीम रही। कई दिग्गज नामी पत्रकार अमर उजाला में थे, लेकिन शशि शेखर ने एक-एक करके सभी अच्छे पत्रकारों को संस्थान छोड़ने पर विवश कर दिया। शशि शेखर हिन्दुस्तान अखबार का बेड़ा गर्क कर चुका है। हिन्दुस्तान में आज एक भी पत्रकार नहीं है, सब कर्मचारी हैं। सब गुलाम हैं। अमर उजाला राजुल महेश्वरी के नेतृत्व में काम कर रहा है।

अतुल जी की मौत के बाद राजुल इस ग्रुप को अच्छा प्रबंधन नहीं दे पाए हैं और विफल साबित हो रहे हैं। अमर उजाला के कई एडिशन घाटे में चल रहे हैं और कई प्रसार की होड़ में भी पिछड़ रहे हैं। ऐसे में अमर उजाला ने स्थायी कर्मचारियों पर अधिक दबाव देना शुरू कर दिया था। पहले काम ठेके पर दिया और अब आउटसोर्सिंग होने लगी है। कई संस्करणों में बकायदा पत्रकारों की खबरों को संवाद न्यूज एजेंसी का नाम दिया जा रहा है। जो स्टाफर हैं जो कि अब बहुत कम रह गए हैं, उनके नाम के आगे ही अमर उजाला ब्यूरो दिया जा रहा है। तो भाई लोगों जो भी अमर उजाला में काम कर रहे हैं, अब ठिकाना तलाशना शुरू कर दो।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]

Monday 21 October 2019

मजीठिया: पटियाला में दैनिक जागरण का बैंक खाता अटैच कर बैंक ने 310248 रुपये का ड्राफ्ट बना भेजा collector को



पटियाला (पंजाब)। दैनिक जागरण की ऊल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। पटियाला में दैनिक जागरण में कार्यरत बिजय कुमार ठाकुर जिसे जागरण ने मजीठिया मांगने पर नौकरी से निकाल दिया था तो बिजय कुमार ठाकुर ने लेबर विभाग में नौकरी से निकले जाने का केस फाइल किया। यहां जब बात नहीं बनी तो केस लेबर कोर्ट रेफर हो गया। काफी संघर्ष के बाद बिजय कुमार ठाकुर के फेवर में पटियाला की लेबर कोर्ट ने 26-04-2019 को फैसला सुनाया। जिसमें उसे 50 फीसदी back wages के साथ-साथ नौकरी पर रखने के आदेश लेबर कोर्ट ने दिए थे और साथ ही लेबर कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी लिखा कि यदि जागरण प्रबंधन फैसले की अवेहलना करता है तो उसे जब से अवार्ड पास किया गया है तब से 6% ब्याज देना होगा।

जब बिजय कुमार ठाकुर जागरण प्रबंधन के पास लेबर कोर्ट का हवाला दे नौकरी मांगने गया तो जागरण ने बाहने मारने शुरू कर दिए और नौकरी पर नहीं रखा। उसके बाद बिजय कुमार ठाकुर ने लेबर कमीश्नर के यहां लेबर कोर्ट के फैसले को अमल करवाने के लिए एपलिकेशान लगाई। Assistant Collector Grade-I Patiala ने दैनिक जागरण प्रबंधन को इस बाबत कई बार नेटिस भेजे लेकिन प्रबंधन के कान पर कोई जूं नही रेंगी।

Labour Inspector Grade-I, Patiala ने बिजय कुमार ठाकुर द्वारा उपलब्ध करवाए गए दैनिक जागरण के बैंक अकाऊंट नम्बर और उसकी संपत्ति के ब्यौरे के आधार पर बैंक को जागरण का खाता ATTACH कर बिजय कुमार ठाकुर द्वारा किए गए क्लेम 3,10,248/- रूपये का भुगतान करने के आदेश दिए उसके बाद बैंक ने उपरोक्त राशि का ड्राफ्ट बना collector को भेज दिया। उसके बाद बिजय कुमार ठाकुर ने पैसा Release करवाने की अर्जी लेबर कमीश्नर के यहां लगाई है जिस पर नोटिस जारी कर दैनिक जागरण को पेश हो अपना जबाव देने को कहा है।

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Friday 18 October 2019

मजीठिया: जागरण को पटना हाईकोर्ट से झटका, कहा- 20j बाध्यकारी नहीं, साथ ही दिया रोजाना सुनवाई का आदेश


पटना। जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में पटना हाईकोर्ट ने जागरण प्रबंधन को जोर का झटका दिया है। पटना हाईकोर्ट ने लेबर कोर्ट को निर्देश दिया है कि इस मामले की रोजाना सुनवाई करें। यही नहीं, जागरण प्रबंधन द्वारा वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 20 जे को हाईकोर्ट में संज्ञान में लाते हुए अपने बचाव का प्रयास किया गया जिसे हाईकोर्ट ने ठुकरा दिया। दैनिक जागरण में कार्यरत पंकज कुमार और अन्य के मामले में यह आर्डर पटना हाईकोर्ट ने दिया है।

इस केस में हाईकोर्ट ने कहा है कि 17 (1)में लेबर विभाग के अधिकारियों को अधिकार नहीं है कि वह मजीठिया वेज बोर्ड का बकाया अपने आदेश के तहत दे सकें। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि लेबर विभाग को 17 (2) के अंतर्गत मामला अदालत को प्रेषित कर देना चाहिए यानी कि रिफरेंस बनाकर भेजना चाहिए।

पंकज कुमार का पक्ष पटना के वरिष्ठ अधिवक्ता जे एस अरोड़ा ने अदालत में पक्ष रखा। अरोड़ा के जूनियर गौरव प्रताप और मनोज कुमार अधिवक्ता थे। वहीं, गया के वरिष्ठ अधिवक्ता मदन कुमार तिवारी पटना उच्च न्यायालय में अरोड़ा के साथ हर तारीख पर मजीठिया वेजबोर्ड को लेकर अपडेट कर रहे थे। जहां जरूरत पड़ी मदन तिवारी ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश और वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट से संबंधित आदेश जेएस अरोड़ा के माध्यम से अदालत में पेश किए। दैनिक जागरण की ओर से वरीय अधिवक्ता आलोक कुमार सिन्हा पेश हुए।

20 जे को लेकर पटना जागरण द्वारा किए गए फर्जीवाड़ा को जेएस अरोड़ा ने अदालत में रखा। कैसे एक व्यक्ति का सीरियल नंबर अलग-अलग पृष्ठों पर अलग क्रमांक पर दर्शाया गया था। कुल मिलाकर आदेश 20j को केंद्र में रखकर आया है। जस्टिस शिवाजी पांडेय ने अपने आदेश के पैरा नंबर 33 में दैनिक जागरण द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में आब्जर्वेशन को गलत तरीके से व्याख्या करने पर करारा झटका देते हुए साफ कर दिया है कि आब्जर्वेशन को फैसले से नहीं जोड़ा जा सकता है।

इस संबंध में न्यायमूर्ति शिवाजी पांडेय के आदेश में पैरा 38 में 20j पर सर्वोच्च न्यायालय और स्वयं के आदेश की बहुत ही सटीक व्याख्या करते हुए 20j को मीडियाकर्मियों पर बाध्यकारी नहीं होने को लेकर स्पष्ट आदेश दिया है।

एडवोकेट उमेश शर्मा के मुताबिक पटना हाईकोर्ट ने साफ कहा है कि 20जे लेबर कोर्ट के सामने मान्य नहीं होगा क्योंकि वेजबोर्ड की रिपोर्ट कहती है कि 1 महीने के अंदर ही साइन होना चाहिए। 1986 के जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी कागज पर अगर प्रबंधक ने साइन कराए हैं तो वह मान्य नहीं होगा।

आदेश की कापी देखने-पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- patna highcourt order
https://drive.google.com/file/d/1-OQh_5qFjfPxojXZ7LKbJphVsICbPWFj/view

शशिकांत सिंह
पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी
9322411335


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Monday 14 October 2019

भास्‍कर के साइबर क्रिमिनलों को बचाने में मशगूल हैं उनके आका

मेहनत, ईमानदारी और कुशलता से अपनी ड़यूटी निभाना और उसके एवज में बनती अपनी उचित पगार- मजदूरी की मांग करना दैनिक भास्‍कर चंडीगढ़ में अपराध- क्राइम बन गया है। इसका ताजातरीन उदाहरण एचआर चंडीगढ़ के सीनियर एक्‍जीक्‍यूटिव सुधीर श्रीवास्‍तव हैं। उन्‍होंने मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब से अपनी सेलरी व सुविधाएं क्‍या मांग दीं कि उन पर मुसीबतों का पहाड़ पटक दिया गया एचआर हेड मनोज मेहता और एचआर मैनेजर हरीश कुमार के द़वारा। इन लोगों ने श्रीवास्‍तव का फर्जी इस्‍तीफा डाला ही, उन्‍हें एक अन्‍य फर्जी मामले में फंसाने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं। इन महानुभावों के घोर आपराधिक कारनामों में दैनिक भास्‍कर चंडीगढ़ के एडीटर दीपक धीमान और क्राइम बीट के प्रभारी संजीव महाजन पूरी तरह से मददगार बने हुए हैं। ये दोनों सीनियर पत्रकार पुलिस और प्रशासन में अपनी पहुंच व प्रभाव के जरिए एचआर विभाग के दोनों अपराधियों को बचाने के लिए दिन रात एक किए हुए हैं। अपने एडीटर की शह पर महाजन पुलिस के सभी बड़े अफसरों के समक्ष दंडवत हुए जा रहे हैं। थानेदार और उससे थोड़ा ऊपर के पुलिस अफसरों को येनकेन प्रकारेण अपने फेवर में किए हुए हैं और श्रीवास्‍तव की ओर से दी गई कंपलेंट को निष्‍प्रभावी बनाने की हर जुगत में मशगूल हैं, लेकिन बड़े पुलिस हाकिमों को खुलेआम अपने फेवर में कर पाना महाजन के लिए चुनौती बनी हुई है। महाजन यह सब कर रहे हैं इसकी पुष्टि कई अखबारों के रिपोर्टरों ने की है।

    संजीव महाजन और उनके संरक्षक दीपक धीमान ऐसा क्‍यों कर रहे हैं, ये तो वो ही जानें, लेकिन एक बात, एक हकीकत तो साफ है कि इन लोगों, खासकर महाजन ने, जो किसी अपराध का शिकार हुए पीडि़त की व्‍यथा का निरूपण – चित्रण बेहद संजीदगी व संवेदना से करते हैं, उक्‍त अपराधकर्मियों को बचाकर- संरक्षण देकर अपनी ख्‍याति को मिट़टी में मिला रहे हैं। सबसे अहम यह है कि श्रीवास्‍तव के साथ हुए अपराध को कई महीने हो गए हैं, पर इसके खिलाफ किसी भी तरह की ऐक्‍शन पुलिस ले नहीं रही है। और तो और श्रीवास्‍तव ने जब अपनी ओर से पैरवी थोड़ी तेजी से की तो पुलिस ने फर्जी इस्‍तीफा कांड में अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी। जबकि श्रीवास्‍तव ने उन लोगों को नामजद किया था जिन्‍होंने उनका फर्जी इस्‍तीफा डाला था। जाहिर है कि पुलिस ने किसी दबाव में ही ऐसा किया। नहीं तो आमतौर पर होता है कि कंपलेंट में जिनका नाम होता है उनके खिलाफ नामजद रिपोर्ट- एफआईआर दर्ज होती है। बाद में जांच होती है और जांच में उजागर तथ्‍यों के आधार पर कार्रवाई होती है।

  श्रीवास्‍तव के मामले में तो पुलिस जांच-पड़ताल भी भास्‍कर मैनेजमेंट, भास्‍कर के रुतबेदारों- प्रभावशाली लोगों की सहूलियत के हिसाब से चल रही है। पुलिस निष्‍पक्षता से अगर जांच पड़ताल करती तो इस मामले का अब तक निपटारा हो गया होता। दोषियों- अपराधियों को सजा मिल गई होती। सजा नहीं भी हुई होती तो उसकी प्रक्रिया निर्णायक मुकाम पर पहुंचने को बेताब होती। यह भी ज्ञात हुआ है कि इस दरम्‍यान महाजन अपराधकर्मियों और श्रीवास्‍तव में समझौता कराने की भी कोशिश कर चुके हैं, लेकिन उनका प्रयास सफल नहीं हो पाया। जाहिर है समझौते की कोशिश गलत करने वालों को बचाने के लिए ही हो रही थी। क्‍योकि जो सही- सच्‍चा होता है वह ऐसे बेकार के कार्यों में नहीं उलझता। वह तो आर-पार की लड़ाई करता है।

    सुधीर श्रीवास्‍तव के साथ जो कुछ हुआ है वह घोर अमानवीय है और कायदे कानून के पूरी तरह खिलाफ है। इसके खिलाफ उनकी लड़ाई जारी है। देर सबेर उन्‍हें इंसाफ मिलेगा ही, लेकिन गुनहगारों को सुरक्षा और संरक्षण जो लोग दे रहे हैं उनका क्‍या होगा, इसका जवाब शायद भविष्‍य में छिपा है। जिन लोगों ने गुनाह किया है, उनको तो अंजाम भुगतना ही पड़ेगा, इसकी मिसालों से इतिहास के पन्‍ने भरे पड़े हैं।

Friday 11 October 2019

Massive Demonstration of Media persons for the New-Wage Board





New Delhi, 11 October, A massive demonstration was held here yesterday at Jantar Mantar by all major trade union bodies of the media employees under the banner of Confederation of Newspapers and News agencies Employees Organisation. Hundreds of media workers from all over the country participated in the demonstration which included the far-flung states like; Assam, Tamilnadu, Telangana, Andhra Pradesh, Maharashtra, Jammu and Kashmir. Other states which took part in the demonstration were West Bengal, Bihar, Chhattisgarh, Madhya Pradesh, Uttarakhand, Punjab, Chandigarh, Haryana and Rajasthan.
The main demand of the demonstrators was to save the Working Journalists Act and to include the employees of Audio-visual and Web Portals in its ambit by retaining the beneficial provisions of the existing act. The media employees across the country are agitated over the proposed move of the government to repeal the Working Journalists Act by amalgamating it with other 11 unrelated acts. It has been renamed as the Code on the Occupational Safety, Health and Working Conditions. Strangely, the government has taken this decision unilaterally without consulting or seeking the opinions of the stakeholders.
Although, the Union Labour Minister Santosh Gangwar has assured the delegation of the media employees, which met him last week that their interests  will be well taken care of, yet the apprehensions are still lingering because the Acts, which have been subsumed in the Code, are as different as chalk from cheese.
The media employees also demanded that they must be given the benefits of the ID Act which are available to them under the existing Act. The other demands, which were very vociferously raised were the immediate constitution of the Wage Board and implementation of the Majithia recommendations. The major unions which participated in the demonstrations were All India Newspaper Employees Federation, Indian Federation of Working Journalists, National Federation of Newspaper Employees, All India Federation of PTI Employees Unions, NUJ (I) and IJU. The plant-level unions of the Hindustan Times, Assam Tribune, Tribune Chandigarh, Indian Express, Times of India and Punjab Kesari also took part in the demonstration. Busloads of employees came from Chandigarh under the leadership of Anil Kumar Gupta, who is also the President of the Tribune Employees Union.
Among others who spoke on the occasion were Parmanand Pandey, IFWJ, M S Yadav of the Confederation and PTI, Sabina Interjeet, S.N. Sinha IJU, Ashok Mailk, Pragyanand Chaudhary NUJ (I), Shyam Babu NFNE, Bhuvan Chaube PTI, M.L. Joshi UNI, G Bhopathi AINF, CS Naidu Indian Express and Anil Gupta of the Tribune Employees Union.
The meeting was conducted very successfully by Hemant Tiwari, the Vice President of the IFWJ, who made many important announcements during his address to the gathering. He kept all the protesters spelled bound by his inimitable style. He declared that a big meeting of the Confederation will be held soon either in Shimla or Chandigarh. The meeting was presided over by the Confederation’s General Secretary M.S. Yadav, who outlined the future shape of struggle by the media employees.
A large number of television channels and their employees were also present to express their solidarity with the Confederation. Among the important audio-visual journalists who were present on the occasion were Niraj Pandey, Ashok Tiwari, Ramesh Thakur, Yogesh Soni and Rinku Yadav. This was the first huge demonstration of the media employees in the last decade.

Alkshendra singh Negi
President- DUWJ







Thursday 10 October 2019

हजारों मीडियाकर्मियों का दिल्ली में विशाल प्रदर्शन


नई दिल्ली 10 अक्टूबर: कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ न्यूज़पेपर एंड न्यूज़एजेंसी एम्प्लाइज आर्गेनाईजेशन के आह्वान पर आज यहाँ जंतर मंतर पर मीडियाकर्मियों का विशाल प्रदर्शन हुआ। देशभर से आए लगभग एक हजार मीडियाकर्मियों ने एक स्वर से सरकार से मांग की कि वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट को समाप्त करने के बजाय उसमें व्यापक संशोधन किया जाए। ज्ञातव्य हो कि वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट एक विशिष्ट कानून है, जिसकी तुलना किसी अन्य क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिक कानून से नहीं की जा सकती है। यद्यपि श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने स्पष्ट शब्दों में कॉन्फ़ेडरेशन के प्रतिनिधि मंडल को विगत बताया कि मीडियाकर्मियों को प्राप्त होने वाली सुविधाओं और अधिकारों के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा, तथापि यह आशंका इसलिए बनी हुई है कि वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट को प्रस्तावित कोड के साथ समाहित किया जा रहा है, जिसमें 13 अन्य ऐसे कानूनों को समाहित किया जा रहा है जिनकी कार्यपद्यति मीडियाकर्मियों की कार्यपद्यति  से एकदम भिन्न है। 

सभा का संचालन आई एफ डब्ल्यू जे के उपाध्यक्ष हेमंत तिवारी ने किया। उन्होंने बताया कि प्रदर्शन में असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और दिल्ली से मीडियाकर्मियों ने अद्भुत उत्साह के साथ भाग लिया। उन्होंने घोषणा की कि कॉन्फ़ेडरेशन की अगली बैठक शीघ्र ही शिमला या चंडीगढ़ में आयोजित की जायेगी, जिसमें मीडिया कर्मियों की समस्याओं पर विस्तार से विचार किया जाएगा। 

सभा की अध्यक्षता कॉन्फ़ेडरेशन के महासचिव एम एस यादव ने की।  कॉन्फ़ेडरेशन के सभी घटकों के प्रतिनिधियों ने प्रदर्शनकारी मीडिया कर्मियों को सम्बोधित किया, जिसमें आल इंडिया न्यूज़पेपर एम्प्लाइज फेडरेशन के जी भूपति, इंडियन फेडरेशन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के परमानन्द पाण्डेय ओर रिंकू यादव, नेशनल फेडरेशन ऑफ़ न्यूज़पेपर एम्प्लाइज के श्याम बाबू, आल इंडिया फेडरेशन ऑफ़ पी टी आई एम्प्लाइज यूनियनस के भुवन चौबे, नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स (आई) के प्रज्ञानन्द चौधरी, अशोक मालिक, इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन के एस एन सिन्हा और सबीना इंदरजीत, इंडियन एक्सप्रेस एम्प्लाइज यूनियन के सी एस नायडू और ट्रिब्यून एम्प्लाइज यूनियन के अध्यक्ष अनिल गुप्ता आदि थे।  ट्रिब्यून एम्प्लाइज यूनियन के एक सौ से अधिक साथियों ने अनिल गुप्ता के नेतृत्व में प्रदर्शन में भाग लिया। 

डी यू डब्ल्यू जे के अध्यक्ष ए एस नेगी द्वारा जारी प्रेस नविज्ञप्ति के अनुसार टी वी चैनलों के  भी तमाम मीडियाकर्मी सम्मेलन में उपस्थित रहे जिनमें नीरज पांडेय और अशोक तिवारी की उपस्थिति महत्वपूर्ण रही।

Newspaper Employees organised a massive demonstration at Jantar Mantar


New Delhi, 10 Oct.; The Confederation of Newspaper and News Agency Employees Orgnisations today organised a massive demonstration at Jantar Mantar here to protest against the proposed  abrogation of the Working Journalists Act. Hundreds of media employees asked the government to amend the Working Journalists Act so as to include the employees of electronic and web media.

Media employees are also agitated over the proposed repealing of the Working Journalists Act and subsumimg it with 13 other disparate Acts which are different from the Working Journalists Act as chalk from cheese. All major media trade unions. All India Newspaper Employees Federation, Indian Federation of Working Journalists, National Federation of Newspaper Employees, All India Federation of PTI Employees Unions, National Union of Journalists (I), Indian Journalists Union, UNI Workers Union.

The national  congregation of media persons was addressed by the Confederation's General Secretary M.S. Yadav, Hemant Tiwari, Parmanand Pandey (IFWJ) Ashok Malik, Pragyanand Choudhury (NUJ-I), Sabina Inderjit, S N SINHA (IJU), Shyam Babu (NFNE) and Bhuwan Chaubey (PTI).

All speakers warned the government that if the Working Journalists Act, which has been validated by the Supreme Court  many times, is tampered or tweaked, then the Confederation would be compelled to launch a bigger All-India struggle.


 M S Yadav
General Secretary
Confederation of Newspaper and News Agency Employees' Organisations

Sunday 6 October 2019

पत्रकार सुरक्षा के लिए लोकसभाध्यक्ष की पहल


नई दिल्ली, 5 अक्टूबर; लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने 'इंडियन फेडरेशन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स' (आई.एफ.डब्ल्यू.जे.) के प्रतिनिधि मंडल को आश्वस्त किया कि वे पत्रकारों की सुरक्षा व उनसे जुडी अन्य समस्याओं को दूर करके के लिए सरकार से समुचित कानून बनाने की अनुशंसा करेंगे। श्री बिरला कल शाम अपने आवास पर पत्रकारों के प्रतिनिधि मंडल से कहा कि जीवंत लोकतंत्र के लिए सजग, जागरूक और निर्भीक पत्रकारिता का होना अत्यावश्यक है, जिस पर पूरे देश में मतैक्य है। 

आई.एफ.डब्ल्यू.जे. की तरफ से उन्हें एक ज्ञापन भी दिया गया, जिसमें हाल ही में पत्रकारों के उत्पीड़न और उन पर हुए हमलों के प्रति चिंता व्यक्त की गई है। प्रतिनिधि मंडल के नेता आई.एफ.डब्ल्यू.जे. के उपाध्यक्ष हेमंत तिवारी ने बताया कि बिरला जी जितने सरल और  सहज हैं उतने ही लोगों की समस्यों के प्रति व्यग्र और अपने निर्णयों में कठोर हैं। उन्होंने कहा कि यह उनकी सरलता का ही द्यौतक है कि वे हमारी मात्र एक दिन की सूचना और आग्रह पर 2016 में जयपुर में आयोजित  आई.एफ.डब्ल्यू.जे. के सम्मेलन में शामिल हुए थे।  

आई.एफ.डब्ल्यू.जे. ने अपने ज्ञापन में लोकसभाध्यक्ष से आग्रह किया कि वे अपने प्रभाव का उपयोग करते हुए पत्रकारों के हितों के लिए एक पत्रकार सुरक्षा कानून बनवाएं जिससे उन पर आये दिन होने वाले हमले और धमकियाँ बंद हों। आज यह स्थिति है कि अपराधी, नेता, पुलिस, प्रशासन, माफिया आदि अपने मनमाफिक ख़बरों के दिए जाने के लिए पत्रकारों पर तरह-तरह दवाब डालते हैं और ऐसा न करने पर उन पर हमले करते और करवाते हैं। कई बार तो पत्रकारों को जान से ही मार दिया जाता है। पुलिस ऐसे अपराधी तत्वों को पकड़ने के बजाय उनका साथ देने लगती है।  

 आई.एफ.डब्ल्यू.जे. के कोषाध्यक्ष रिंकू यादव द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार आई.एफ.डब्ल्यू.जे. के ज्ञापन में पत्रकारिता की विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए एक ऐसे कानून को बनाए जाने की भी मांग की गई है, जिससे नकली पत्रकारों द्वारा भयादोहन और पीत पत्रकारिता पर रोक लगाई जा सके।  प्रतिनिधि मंडल में आई.एफ.डब्ल्यू.जे. के महासचिव परमानन्द पाण्डेय, यू.पी.डब्ल्यू .जे.यू. के अध्यक्ष भास्कर दुबे, विधि सलाहकार मोहन बाबू अग्रवाल, वरिष्ठ पत्रकार नीरज पाण्डेय, आलोक तिवारी समेत लगभग पंद्रह पत्रकार शामिल थे। 

Lok Sabha Speaker’s Initiative for Journalists Security Enactment


New Delhi, October 5: The Lok Sabha Speaker Om Birla has assured a delegation of the ‘Indian Federation of Working Journalists’ (IFWJ) that he would certainly ask the government to get the legislation enacted for the safety and security of the journalists. He said that a healthy, fearless and objective journalism was necessary for the vibrant democracy and if the journalists were to live in the atmosphere of fear then it would harm not only the journalism but the democracy as well. Therefore, there could never be two opinions with regard to providing them with the conducive working condition. He was speaking to a delegation of the IFWJ last evening at his house in New Delhi.
The delegation was led by IFWJ Vice-President Hemant Tiwari, who in his brief address said that Shri Om Birla is known for his accessibility and problem-solving attitude, but he is equally determined in taking tough decisions. Shri Tiwari thanked Shri Birla for attending the IFWJ conference at Jaipur in 2016 at very short notice.
The IFWJ also handed over a memorandum to the Lok Sabha Speaker said that, of late, attacks on journalists by  crooked politicians, gundas and mafia dons, police and other anti-social elements  have grown manifold because they do not want anything to be published or shown against their dirty activities He said that since journalists work in the public interests and therefore, it is the bounden duty of the government to ensure that the full protection was provided to them in due discharge of their duties.
The memorandum also requested the Lok Sabha Speaker to ask the government to legislate for the prevention of the yellow journalism and fake news and blackmailing by some irresponsible persons who work in the garb of journalists.
15 member IFWJ delegation also included its Secretary-General Parmanand Pandey, UPWJU President Bhaskar Dube, IFWJ’s Legal Advisor Mohan Babu Aggarwal, senior journalists, Niraj Pandey, and Ashok Tiwari.

Rinku Yadav
Treasurer-IFWJ

Friday 4 October 2019

Interests of Media Employees Would be Fully Safeguarded: Union Labour Minister


New Delhi, 4 October. Union Labour and Employment Minister Santosh Gangwar has categorically stated that the interests of media employees would not be compromised. He  told a delegation of the ‘Confederation of Newspaper and News Agency Employees’ organisations’, comprising the Indian Federation of Working Journalists, All India Federation of PTI Employees’ Unions, National Federation of Newspaper Employees, All Inda Newspaper Employees Federation, Indian Journalists Union, National Union of Journalists (I) and UNI Workers’ Union, that all media employees of electronic and web-portals would be included along with the employees of the print medium in the proposed legislation. He dispelled the fear of the 25-member strong delegation of the apex trade union bodies of the media and that the constitution of the Wage Board would be specifically provided in the rule of the Act. The Minister said in no uncertain terms that it would be ensured that the Wage Board for revising the wages and allowances of the media employees were regularly set up.

A memorandum was submitted to the Minister by M.S. Yadav of the PTI, Hemant Tiwari, IFWJ, Sabina Inderjit of IJU, Manohar Singh of the NUJ(I) and ML Joshi of the UNI. The Minister also advised the trade union bodies of the media organisations to apprise with their views to the Parliamentary Standing Committee of the Labour.

The officials present during the meeting explained to the delegation that the special provisions will be added in the rules of the proposed Code for the Working Journalists. The Minister was informed by the delegation leaders that the media employees all over the country were highly agitated and disturbed with the proposed move of the government to repeal the Working Journalists Act and subsume it with other disparate Acts, which have no commonality with the Working Journalist Act.  Shri Gangwar promised that his government was committed to protecting the freedom of speech and expression and independence of the media, which was so essential for any vibrant democracy and therefore, his government would never even think of diluting the independence and freedom of media.

Among others who included in the delegation were Parmanand Pandey, Mohan Bahu Agarwal, Rinku Yadav, Alkshendra Singh Negi, Ravindra Mishra (IFWJ), Bhuwan Chaubey (PTI), Nanda Kishor Pathak (AINEF), M.L. Joshi (UNI).