Tuesday 6 August 2019

नैतिकता खोता नईदुनिया… स्वतंत्रता दिवस हर अखबार के लिए व्यवसाय बना!

संपादक बने मार्केटिंग मैनेजर दे रहे व्यवसाय और प्रसार के लिए टारगेट…. खबरें सबसे अच्छी दो, साथ ही स्टूल और वाशिंग पाउडर भी रोज बेचो…. मध्य प्रदेश का सबसे पहला अखबार नईदुनिया फिलहाल जैसे अपनी आखिरी वक्त में है। जो अखबार कभी नैतिकता का परिचायक था, आज उसमें नैतिक मूल्यों के अलावा सब कुछ है। दैनिक जागरण के द्वारा अधिग्रहण किए जाने के बाद अब नईदुनिया टीम को भी पूरी तरह व्यवसाय पर ही फोकस करवाया जा रहा है। अखबार की व्यवसायिक और प्रसार विभाग की टीम के साथ संपादकीय टीम को भी खड़ा कर दिया गया है।

मजेदार बात यह है कि प्रदेश संपादकीय टीम पर व्यवसाय करने और अख़बार की प्रसार संख्या बढ़ाने की जिम्मेदारी दोनों टीमों के प्रमुख अधिकारियों से भी ज्यादा है। दरअसल यहां अख़बार के संपादक ही राग दरबारी गा रहे हैं। नईदुनिया के संपादक काफी पहले इस व्यवस्था के आगे अपने घुटने टेक चुके हैं और अब वे अख़बार के सभी प्रमुख कार्यालयों में अपने अलग-अलग जिले के ब्यूरो प्रमुख को टारगेट बांटने की जिम्मेदारी में हैं। संपादक महोदय यहां भी जागरण प्रबंधन की उम्मीदों पर खरे उतर रहे बताए जाते हैं, क्योंकि रिपोर्टरों और ब्यूरो प्रमुखों को उनके द्वारा दिए गए टारगेट तो प्रबंधन द्वारा तय किए गए लक्ष्यों से भी ज्यादा हैं।

बताया जाता है कि संपादक महोदय का यह रोल दैनिक जागरण प्रबंधन को काफी पसंद आया है और संभवतः जल्दी ही उन्हें नई तरक्की दी जाएगी। यहां बात नईदुनिया के रिपोर्टरों और ब्यूरो प्रमुखों की भी होनी चाहिए जो फिलहाल यहां एक अलग तरह के डर में जी रहे हैं। डर इस बात का है कि जब संपादक ही उन्हें टारगेट दे रहा है तो अब अख़बार के साथ अच्छे भविष्य की संभावना कम है। अख़बारों में खबर लिखने के लिए जागरण एक ओर तो नैतिक नियम बताता है और दूसरी ओर संपादक महोदय आने वाले प्रमुख त्यौहार से पहले विज्ञापन के टारगेट पूरे करने के लिए दबाव बना रहे हैं। जो बड़े विज्ञापन देंगे उनकी खबर लिखना नैतिकता में नहीं आएगा और जिनके बारे में लिखना नैतिकता है वे विज्ञापन नहीं दे सकते।

एक नजर इन समाचार कर्मियों की परेशानियों पर….
सीईओ और प्रदेश के प्रसार प्रमुख ने अखबार की प्रसार संख्या बढ़ाने के लिए एक योजना बनाई है। यहां उन्होंने दूसरे सभी अखबारों से आगे निकलने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए वे संपादक के साथ मिलकर सभी जिलों के ब्यूरो प्रमुख पर दबाव बना रहे हैं कि प्रसार संख्या को यह कहकर प्रचारित करें कि नईदुनिया इपोलिन वाशिंग पाउडर की छह महीने तक सप्लाई देगा। इससे वे बाकी सभी अखबारों से मीलों आगे हो जाएंगे और अख़बार नंबर एक बन जाएगा। अब मैदानी टीम की समस्या है अलग है। दरअसल जिन अख़बारों से उन्हें मीलों आगे होना है, उनकी शीर्ष टीम नईदुनिया की सीईओ शुक्ला टीम से कुछ ज्यादा ही होशियार है।

दैनिक भास्कर जहां अख़बार पढ़ने वालों को पच्चीस करोड़ के ईनाम दे रहा है तो पत्रिका का मामला भी करोड़ों में ही है। अब बेचारे जिला ब्यूरो प्रमुख कैसे लोगों को छह महीने की सप्लाई करें! इसके इसके लिए सभी ब्यूरो प्रमुखों से हर हफ्ते एक नया टारगेट मांगा जा रहा है, जिसमें उन्हें ही निर्णय लेना है कि वे अपने मातहत आने वाली कौन सी एजेंसी की कितनी कॉपियां बढ़ाएंगे। ऐसा इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि पहले ही काफी संख्या में कॉपियां बढ़ाई गईं हैं और अब अखबार के शीर्ष अधिकारी इन एजेंटों के सामने जाने की हिम्मत फिलहाल नहीं जुटा पा रहे हैं। संभव है कि आने वाले कुछ दिनों में नईदुनिया अखबार की प्रसार एजेंसियों में से काफी अख़बार से अपना नाता तोड़ भी लें।

स्वतंत्रता दिवस व्यवसाय, लेकिन दाम दो गुना…
सभी जिलों के ब्यूरो प्रमुख लगभग सदमे में हैं, क्योंकि उन्हें अस्सी हजार रु प्रति पेज के हिसाब से करीब 5-10 पेज के विज्ञापन लाने हैं। यह दाम पहले 30-40 हजार रु प्रति पेज के होते थे। वहीं दैनिक भास्कर और पत्रिका के ज्यादातर संस्करणों में प्रति पेज विज्ञापन का दाम अभी भी 20 से 40 हजार रु तक ही है। ऐसे में नईदुनिया के ब्यूरो प्रमुख की जिम्मेदारी है कि वे प्रत्येक विज्ञापनदाता से न्यूनतम दो हजार रुपये का विज्ञापन लें और उन्हें प्लास्टिक के स्टूल वितरित करें। अपने एजेंटों और बाजार से अस्सी लाने के लिए ब्यूरो प्रमुखों को प्रति पेज एक ग्राम सोना देने का लालच दिया गया है। हालांकि प्रबंधन के इस वादे पर ब्यूरो प्रमुखों को ही संशय है, क्योंकि मौजूदा प्रबंधन ने दो वर्ष पहले दीपावली पर उन्हें जो मिठाई के पैकेट दिए थे, उन पर वजन तो पांच सौ ग्राम लिखा था लेकिन तौल साढ़े तीन से चार सौ ग्राम का ही था।

बहरहाल रिपोर्टरों पर अच्छी से अच्छी खबर लिखने से पहले ज्यादा से ज्यादा कॉपी बढ़ाने और लोगों से दिए गए टारगेट के मुताबिक विज्ञापन लेकर उन्हें स्टूल देने की जिम्मेदारी है। रिपोर्टर बताते हैं कि यदि इनमें से एक काम में भी कसर रही तो उनकी नौकरी जाना या अनचाहा तबादला होना तय है। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि आने वाले दिनों में नईदुनिया में कई पत्रकार अपने संपादकों के इन दबावों के आगे ही नौकरी छोड़ भी सकते हैं या संस्थान भी उन्हें हटा सकता है।

जुलाई महीने में इस व्यवसायिक रणनीति पर संपादक और सभी मैनेजरों और उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने पहले भोपाल फिर इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर आदि के कार्यालयों में जाकर बैठक ली है। इसके बाद अब आंचलिक टीमों को भी यह जिम्मेदारी दी गई है। सबसे ज्यादा दबाव नईदुनिया के सबसे मजबूत गढ़ मालवा निमाड़ इलाके में है, जहां से अख़बार को सबसे ज्यादा रेवेन्यू मिलता है। एक और बात जागरण और नईदुनिया ने अपने कर्मचारियों को अप्रैल में दी जाने वाली वेतन वृद्धि भी अब तक नहीं दी है। यहां प्रतिवर्ष औसतन तीन से पांच प्रतिशत की वेतन वृद्धि दी जाती है। कुछ कर्मचारियों की वेतन वेतन बढ़ोत्तरी पिछले कुछ वर्षों में कुछ दो तीन सौ रुपये तक ही हुई है।

[मध्‍यप्रदेश के एक साथी से प्राप्‍त जानकारी के आधार पर]

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