Thursday 27 August 2020

कोरोना काल में अखबार मालिकों की करोड़ों की कमाई का गोरखधंधा

आज जो समाचार पत्र प्रकाशित हो रहा है उसका एबीसी (आडिट व्यूरो) की अगले तीन महीने के बाद रिपोर्ट आती है और उसी के आधार पर डीएवीपी द्वारा रेट निर्धारित होता है। अभी जो इन्हें कागज का कोटा और सरकारी  विज्ञापनों का दर निर्धारित है वह पीछे के आडिट रिपोर्ट के आधार पर है। कोरोना के डर से न तो लोग अखबार खरीद रहे हैं और न ही बांटने वाला हाकर अखबार उठा रहा है। जगह जगह अखबारों का पहुंचना पूरी तरह वाहनों के परिचालन रुके होने के चलते बंद है। इस दौर में रद्दी अखबार भी नहीं डिस्पोजल हो सकता। अखबार पांच लाख के जगह पर पांच हजार छप रहा है और विज्ञापन पांच लाख के एवज में मिल रहा है। अखबारों में 80 फीसदी कर्मचारी आउट सोर्सिंग वाले हैं। उन्हें घर बैठा दिया है और कहा कोरोना का लाक डाउन जब हटेगा तब आना। नो वर्क नो पे।वह अलग से नेट सेविंग है।

इधर धरल्ले से सरकार द्वारा मिला रियायती कागज अखबारों के मालिक और मैनेजर ब्लैक में बेच दे रहे हैं और उस राशि का एक छोटा-सा हिस्सा अखवार प्रबंधन अपने बड़े बड़े एजेंटों के नाम से जमा करा रहा है और दावा यह कर रहा है कि अखबार उसके छप और बिक रहे हैं। कागज़ों के इस उलटफेर से केवल 25 करोड़  से अधिक का कारोबार पटना एच‌एमवीएल में होने की खबर है। एच‌एमवीएल के सर्कुलेशन से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि यदि कोरोना की लाक डाउन महीने भर रहा तो मालकीन मैडम का लक्ष्य 50 करोड़ का है जो उन्हें नोटबंदी के समय नुकसान हुआ था, वह भरपाई इससे पूरी हो जाएगी।

अब आपको इस थ्योरी को दूसरे तरह से समझता हूं। अखबार के बिजनेस शुरू करने में कहा जाता है कि अगले दो साल अखबार को स्टेबुल करने में होने वाले घाटे को उसके आरंभिक पूंजी में शामिल करना होता है। आपने अखबार का प्रकाशन शुरू किया। तीन महीने छपे। उसके बाद आडिट रिपोर्ट को अआपने जमा किया।आपका उसके आधार पर डीएवीपी की रिपोर्ट बनी। फिर विज्ञापन की दर तय हुई। उसके अगले तीन में आपका सर्कुलेशन बढ़कर तीन गुना हुआ लेकिन आपका विज्ञापन का रेट वह होगा जो पुराना है। फिर आपका नया आडिट होगा तब दस हजार के आधार पर आप विज्ञापन लेंगे और तीस हजार छापेंगे। इस तरह नए अखबार को अगले दो साल तक जब-तक उसका सर्कुलेशन स्टेबल नहीं हो जाय,घाटे का क्रम चलता है। इसी तरफ जब सर्कुलेशन घटने लगता है तब अखबार जाकर भले बैठ जाएं,तात्कालीक मुनाफे बढ़ जाते हैं।

यहां तो दस हजार अखबार छापकर पांच लाख अखबार का कागज और विज्ञापन दोनों का खेल है। 

अब यह बात उठनी चाहिए कि कोरोना के पीरियड में विज्ञापन और कागज के कोटे और विज्ञापन के दर में कटौती हो।

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