Tuesday 12 May 2020

कोरोना: मजदूरों का खून चूसने से लेकर खाल नोचने की तैयारी


file photo source: social media

- यूपी, हरियाणा समेत छह राज्यों ने श्रम कानून बदले
- 12 घंटे की पाली में करना होगा काम, वेतन की गारंटी नहीं

मई दिवस के पखवाड़े में भारत के मजदूरों के शोषण से भी गंभीर उनके अस्तित्व को मिटाने की पहल हो गई है। देश के कई राज्यों ने श्रम कानूनों को अगले तीन साल के लिए स्थगित कर दिया है। हालांकि अभी यह उत्तराखंड में लागू नहीं हुआ है लेकिन नकलची बंदर के तौर पर कुख्यात त्रिवेंद्र सरकार देर-सबेर यही काम करेगी। उत्तर प्रदेश समेत छह राज्यों ने श्रम कानूनों में गुपचुप बदलाव कर लागू कर दिए हैं। कहा जा रहा है कि निवेशकों को आकर्षित करने के लिए यह कानून आया गया है। अब नए कानून के मुताबिक मजदूर को आठ घंटे की बजाए 12 घंटे काम करना होगा। यूपी के अलावा एमपी, हरियाणा, पंजाब में भी यह कानून लागू होगा। मालिकों को यह छूट होगी कि वो श्रमिकों के हितों की अनदेखी कर सकते हैं। यानी श्रमिकों को मालिकों की दया पर छोड दिया गया है। मध्यप्रदेश सरकार ने तो औद्योगिक विवाद अधिनियम और इंडस्ट्रियल रिलेशन एक्ट ही एक हजार दिनों के लिए निरस्त कर दिया है। यही नहीं मालिक जब चाहेगा तो श्रमिकों को निकाल सकता है। यानी मजदूर को मालिक की दया पर ही रहना होगा।

इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट ने भी सरकार को कहा है कि इन प्रावधानों को जल्द वापस लिया जाए। संगठन के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार बीवी मल्लिकार्जुन ने कहा है कि मध्यप्रदेश, गुजरात, उड़ीसा, गोवा, महाराष्ट्र और यूपी में तो 12 घंटे कार्य को आवश्यक बनाया गया है वह मानवता के खिलाफ भी है। क्योंकि रोजाना आने जाने में मजदूर को तीन घंटे का समय भी लगता है यानी उसे रोजाना 15 से 16 घंटे काम करना होगा। यदि केंद्र सरकार ने इन प्र्रस्तावों को सहमति दे दी तो ये लागू हो जाएंगे।

कहने का अर्थ यह है कि प्रदेश सरकारें अब अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मजूदरों के खून चूसने के साथ ही उसकी खाल में भी निकालने की तैयारी में है। यह यूरोप की औद्योगिक क्रांति से पहले जैसे हालात हो गए हैं।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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