Monday 30 October 2023

मुंबई के हिंदी भाषी पाठकों का दुर्भाग्य

 लांचिंग के दिन से ही विवादों में दैनिक भास्कर

5 साल पहले राजस्थान का मशहूर अखबार ”राजस्थान पत्रिका” मुंबई में कब लॉन्च हुआ और कब बंद हो गया किसी को पता ही नहीं चला। इस अखबार की गुपचुप विदाई के बाद जब काफी जोर-शोर से मायानगरी मुंबई में "दैनिक भास्कर" लांच किया गया तो हिंदी भाषी पाठकों के मन में दिलचस्पी बनी थी कि यह अखबार कुछ नया करेगा और उस गैप को भरने की कोशिश करेगा जिसे अब तक दो प्रमुख अखबार ”नवभारत टाइम्स” और ”नवभारत” नहीं भर पाए हैं। पर हिंदी न्यूज वर्ल्ड की विडंबना देखिए कि इस अखबार की लांचिंग के दिन से ही यह विवादों में रहा है और नाम कमाने से पहले ही बदनाम हो रहा है। जिस दिन दैनिक भास्कर की लांचिंग हुई उसी दिन इस अखबार के इंफ्रा और रेलवे कवर करने वाले रिपोर्टर की रेल टिकट दलाली के मामले में गिरफ्तारी हो गई। उसके कुछ दिन ही बाद इस अखबार के क्राइम रिपोर्टर को पुलिस स्टेशन के चक्कर लगाने पड़े, जब उसने अपनी पत्रकारिता का धौंस दिखाते हुए ट्रैफिक हवलदार के साथ गाली गलौज कर दी। हालांकि इस क्राइम रिपोर्टर को बाद में एडिटर से मतभेदों के चलते नौकरी छोड़ देने के लिए बोला गया, जबकि इंफ्रा और रेलवे कर करने वाला रिपोर्टर आज भी जमानत पर है। अबकी बार इस अखबार की बदनामी में नया चैप्टर जोड़ा है, खुद इसके स्थानीय संपादक ने, जो फिलहाल बड़े-बड़े स्पॉन्सरों के बलबूते पिछले एक पखवाड़े से पूरे यूरोप की यात्रा कर रहे हैं। मुंबई में आम पत्रकारों में यह सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है कि आखिर इन लोगों की नैतिकता कहां गई है जो नेताओं और दलालों के स्पॉन्सरशिप पर विदेश की सैर कर रहे हैं। खासकर दैनिक भास्कर के स्थानीय संपादक की बात तो और भी गंभीर हो जाती है।  मीडिया जगत में विदेश सैर की टाइमिंग पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि फिलहाल तो संपादक महोदय को अपनी टीम को नए-नए अखबार की लांचिंग में पूरा तन मन झोंक देना चाहिए। सप्ताहिक अवकाश भी नहीं लेना चाहिए। पर वे साहब तो रोज फेसबुक पर कभी स्पेन कभी नीदरलैंड के समुद्र तटों पर फोटो खींच कर अपनी तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं।यूरोप की सैर करने वाले पत्रकारों की इसी टोली में नवभारत टाइम्स के भी पत्रकार हैं जिन्होंने कुछ दिन पहले ही अभी फ्लैट खरीदा है और वह ईएमआई अदा कर रहे हैं। कुछ तो यह भी कह रहे हैं कि यह "नवभारत टाइम्स" और "नवभारत" अखबार के मालिकों का षड्यंत्र है कि "दैनिक भास्कर" जैसे नए नवेले समाचार पत्र को मुंबई में सेटल होने का मौका ही न दिया जाए और उनके रिपोर्टर और संपादकों को उलझाए रखा जाए। "दैनिक भास्कर" मुंबई के लिए एक बड़ी चुनौती यह भी बन रही है कि "नवभारत टाइम्स" से लाए गए एक्जीक्यूटिव एडिटर की रिपोर्टिंग टीम पर कोई पकड़ नहीं हैं। उन्होंने हमेशा से डेस्क पर काम किया है और उनका शांत सौम्य व्यक्तित्व उनके आड़े आ रहा है। इसके अलावा, दैनिक भास्कर की पूरी टीम में एक भी ऐसा पत्रकार नहीं है, जिसे अगर किसी अंग्रेजी बोलने वाले के सामने खड़ा कर दिया जाए तो वे इसकी एक लाइन भी रिपोर्टिंग नहीं कर पाएंगे। 

दूसरे संपादक भी कम नहीं

यह मुंबई के अखबार जगत का दुर्भाग्य है कि किसी भी अखबार को ढंग का संपादक नहीं मिला। नवभारत टाइम्स के संपादक की बात करें तो उनका बैकग्राउंड मिलिट्री का रहा है और उन्हें पत्रकारिता की एबीसीडी भी नहीं मालूम। जब से भास्कर लांच हुआ है तब से उन्होंने जिम जाकर अपने डोले शोले को फेसबुक पर अपलोड करने का अभियान तेज कर लिया है। जबसे मिलिट्री मैन के हाथ में एनबीटी की कमान आई है, तब से इस ब्रांड को काफी धक्का लगा है। अब इसकी गिरती साख को बचाने के लिए दूसरे सीनियर पत्रकार को लाया गया है, पर मुंबई और महाराष्ट्र के बारे में उनकी नासमझी समूचे ब्रांड पर भारी पड़ रही है। अब नवभारत की भी कर लें। इस अखबार के संपादक की कला पर किताब लिखी जाए तो भी कम पड़ जाए। पैसे के पीछे भागने वाले और सेटिंग करने में महारत हासिल कर चुके इस सज्जन को रिटायरमेंट के बाद भी नागपुर वाले धनकुबेर मालिकों ने सेवा विस्तार दिया। मीडिया सर्कल में उन्हें न जाने कितने नामों से पुकारा जाता है, जिसमें एक नाम कालीचरण है। उनके रिटायरमेंट की राह तक रहे नवभारत के उस पत्रकार को गहरा धक्का लगा है जो नवभारत टाइम्स और पीटीआई जैसे संस्थानों में काम कर चुका है और संपादक बनने राह तक रहा है। कुल जमा कहें तो मुंबई में हिंदी प्रिंट मीडिया की दुर्गति पहले भी थी और आज भी है और कल भी रहने वाली है। अगर इनके मालिक समय पर चेत जाते हैं तो शायद बात बन जाए।

(वरिष्ठ पत्रकार की कलम से)

No comments:

Post a Comment