Wednesday 21 July 2021

जागरण अखबार न ज्वाइन करने पर पछतावा नहीं



जागरण अखबार न ज्वाइन करने पर पछतावा नहीं

धीरे-धीरे मौत के आगोश में जा रहा अमर उजाला!

एक डरपोक और जनविरोधी अखबार की नौकरी से बेरोजगारी भली

अमर उजाला की नौकरी की लेकिन तब यह अखबार ऐसा डरपोक न था!

जनता से अपील, ऐसे डरपोक और जनविरोधी अखबारों को न पढ़ें 


इन दिनों पेगासस स्पाईवेयर को लेकर पूरे देश में हंगामा है। लोकतंत्र का कोई भी खंभा ऐसा नहीं है जिसकी जासूसी न की गयी हो। निजी जानकारियों के आधार पर बड़े-बड़े लोगों को ब्लैकमेल किया गया होगा। क्या ये खबर पेज वन की नहीं है, लेकिन दैनिक जागरण के देहरादून एडिशन में यह खबर पेज 12 पर है। अमर उजाला का भी बुरा हाल है। संपादक दलाल हो गये और गुलामी की जंजीर उन्हें बदतर जीवन दे रही है। भले ही वो रिवाल्विंग सीट पर बैठे हों, लेकिन जब भी आईना देखते होंगे तो उन्हें शर्म महसूस होती होगी कि वो किस कदर अपने जमीर की हत्या कर रहे हैं। पता नहीं ये संपादक अपने बच्चों से नजर कैसे मिलाते होंगे? अपने बच्चों को क्या संस्कार देते होंगे? मैं इसका विरोध नहीं कर रहा कि सरकार की गुलामी या चाटुकारिता न करो। यह व्यवसायिक मजबूरी हो सकती है। लेकिन पेगासस जैसा कांड की खबर पेज एक पर नहीं है तो फिर आप जनता को झूठ परोस रहे हैं। बकवास परोस रहे हैं। 

दैनिक जागरण देख कर क्षोभ हो रहा है। आज मैं बहुत खुश हूं कि मैंने दैनिक जागरण की नौकरी ठुकरा दी। दिल्ली में उन दिनों राजेंद्र त्यागी जी संपादक थे। मेरा चयन उन्होंने किया लेकिन मैंने अमर उजाला में ही रहना मुनासिब समझा। तब उन दिनों 2001-02 में राजेश रपरिया जी अमर उजाला के समूह संपादक थे और मैं गुड़गांव में तैनात था और मारुति में आंदोलन चल रहा था। मैं मारुति प्रबंधन की नजरों में खटक रहा था। हमने मारूति आंदोलन को जमकर कवरेज दी थी। जनहित की बात थी। प्रबंधन राजेश रपरिया जी के पास पहुंचा। लालच दिये लेकिन वो नहीं झुके। कहा, जो सड़क पर हो रहा है तो उसे कैसे न छापें। और आज अमर उजाला की धीमे जहर से मौत हो रही है। यह अखबार धीरे-धीरे मौत की ओर जा रहा है। जागरण को ज्वाइन न करने का आत्मसंतोष आज भी है और अमर उजाला में आ रहे बदलाव से दुखी हूं। एक अच्छे अखबार की मौत हो रही है।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार] 

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