Saturday 15 September 2018

आदरणीय प्रधानमंत्री जी एक बार संजय गुप्‍ता से जागरण कर्मियों का हाल भी पूछ लीजिए



आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी आपने 'स्‍वच्‍छता ही सेवा अभियान' की आज से शुरुआत की। आपने इस दौरान वीडियो  कांफ्रेंसिंग के माध्‍यम से स्‍कूली बच्‍चों, बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्‍चन, उद्योगपति रतन टाटा आदि से बात की और देश को उनके योगदान से रू-ब-रू कराया और इसके माध्‍यम से स्‍वच्‍छता की अलख जागने का काम किया। आपने इस दौरान एक मीडिया घराने के मालिक संजय गुप्‍ता से भी वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्‍यम से बात की। ये आपका और सरकार का निर्णय है कि आप किस को इस अभियान के लिए बेहतर मानते हैं, इस पर हम कोई टिप्‍पणी भी नहीं कर सकते। आपसे बातचीत के दौरान संजय गुप्‍ता ने बड़े-बड़े वायदे किए और आपने उनकी सराहना की।

हम पत्रकार साथी बस आपसे एक ही बात पूछना चाहते हैं कि क्‍या आपने दैनिक जागरण के मालिक संजय गुप्‍ता और अन्‍य मीडिया घरानों के मालिकों से कभी ये पूछा है कि आपके यहां कर्मचारियों की क्‍या दशा है, क्‍या आप अपने यहां कर्मचारियों को कानून के हिसाब से वेतन देते हो। क्‍या आप उन्‍हें वह सब सुविधाएं देते हो जो उन्‍हें कानूनन मिलनी चाहिए। वे सरकार की महत्‍वाकांक्षी योजना सबको रोजगार में कितना योगदान दे रहे हैं।

जागरण के वरिष्‍ठ संवाददाता प्रशांत मिश्र का वीडियो कांफ्रेंसिंग के दौरान गिरना और आपका उनको नाम लेकर चिंता प्रकट करना आपके मानवीय पहलू को दिखाता हैं। हम आपसे विनीत करते हैं आप इसके आगे भी देखें। आपको प्रशांत मिश्रा जैसे बड़े-बड़े नामी पत्रकारों के नाम याद हैं। आपको इन जैसे बड़े-बड़े नामी पत्रकारों को देखकर लगता है कि मीडिया में सबकुछ अच्‍छा है। एक बार आप इसमें काम कर रहे बहुसंख्‍यक वर्ग की भी सुध लेकर देखें। तब आपको दिखेगा कि वे कैसा मुश्किल भरा जीवन जी रहे हैं और उनका किस हद तक शोषण हो रहा है। विशेषतौर पर उनके परिवारों की दशा देख लीजिए जिन्‍होंने मजीठिया बेजबोर्ड की मांग की। उनकी इस जायज मांग के बाद  उन्‍हें या तो नौकरी से निकाल दिया गया या फिर दूरदराज तबादला कर दिया गया। जिससे उनके ऊपर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। कितनों के बच्‍चों की पढ़ाई छूट गई और  कितनों ने अपने परिजनों को बेहतर इलाज के अभाव में खो दिया। आज देशभर में मजीठिया वेजबोर्ड की मांग करने वाले 20 हजार से ज्‍यादा पत्रकार-गैर पत्रकार  रोजी-रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

इसके अलावा केंद्र और राज्‍य सरकारें जो भी सुविधाएं मीडिया को देती है ये सोच कर देती है कि इसका फायदा कर्मचारियों को भी पहुंचेगा। लेकिन उनतक तो ये फायदा पहुंचता ही नहीं। अखबार मालिकों का एक बहुत बड़ा तबका उस फायदे को कर्मचारियों तक पहुंचने ही नहीं देता। आज मीडिया घरानों का सालाना कारोबार हजार करोड़ से ऊपर लांघ गया है। वहीं, मीडिया में काम कर रहा कर्मचारी मुश्किल से अपना भरण पोषण कर पा रहा है। इसके बाद भी वे हिम्‍मत करके केस लगा रहे हैं तो उन्‍हें देशभर में फैली लालफीताशाही का सामना करना पड़ रहा है। ज्‍यादातर श्रम विभाग अखबार मालिकों के दबाव में काम करते हुए नजर आ रहे हैं। ऐसे में अच्‍छी शिक्षा, स्‍वस्‍थ्‍य भारत, भ्रष्‍टाचार मुक्‍त भारत जैसी योजनाएं कहां परवान चढ़ पाएगी। अंत में आपसे एक छोटा-सा निवेदन है अखबार मालिकों की तरह हम भी इसी देश के ही नागरिक हैं। कभी हमारी भी सुध ले लीजिए, पत्रकार जगत आपको दिल की गहराइयों से याद करेगा।

धन्‍यवाद।
पीड़ित पत्रकार 


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