Sunday 30 September 2018

पीटीआई से 300 से ज्यादा कर्मियों की छंटनी की खबर किसी अखबार में छपी?


यह संयोग ही है कि सारी खबरें एक ही दिन हैं… पीटीआई ने कल अचानक अपने करीब 300 कर्मचारियों को नौकरी से निकल दिया। उनका हिसाब उनके घर भिजवा दिए और पैसे खातों में ट्रांसफर कर दिए। साथ में लिख दिया कि कंपनी की तरफ कुछ बकाया हुआ तो ग्रेच्युटी में समायोजित कर लिया जाएगा। ग्रेच्युटी के लिए फॉर्म भरकर जमा कराएं और पीएफ के पैसे निकालने हों तो उसके लिए भी आवेदन करें आदि आदि। आज यह खबर अखबारों में छपी कि नहीं पता नहीं। मैंने देखा भी नहीं क्योंकि पीटीआई की साइट पर जाकर मैंने कल ही पूरी खबर पढ़ ली थी।

लेकिन यह संयोग ही है कि आज ही अखबारों में पीटीआई की एक और खबर छपी है। खबर यह है कि हिन्दू समाचारपत्र समूह के प्रकाशक एन रवि और पंजाब केसरी अखबार समूह के सीएमडी विजय कुमार चोपड़ा को (शनिवार को ही) सर्वसम्मति से देश की सबसे बड़ी समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया (पीटीआई) का क्रम से अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुन लिया गया। एन रवि एक्सप्रेस समूह के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक विवेक गोयनका की जगह लेंगे। पंजाब केसरी समूह के अखबार नवोदय टाइम्स में आज पहले पेज पर विज्ञापन भरा हुआ है फिर भी यह खबर पहले पेज पर है और यही नहीं, समूह ने प्रधानमंत्री राहत कोष (केरल) की तीसरी किस्त के एक करोड़ रुपए का चेक कल प्रधानमंत्री को दिया तो उसकी फोटो भी पहले पेज पर है।

जहां तक खबरों की बात है, बाकी बची जगह में नवोदय टाइम्स ने लखनऊ में ऐप्पल के प्रबंधक की हत्या की खबर को लीड बनाया है और शुक्रवार रात की यह खबर अखबार ने इतवार के अंक में एसेंजी से छापी है। इतना बड़ा समूह संवाददाता नहीं? और इसके साथ केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के ट्वीट को प्रमुखता से छापा है और बताया है कि राजनाथ सिंह लखनऊ के सांसद भी हैं। अखबार ने दूसरे पेज पर इस घटना से संबंधित और भी खबरें छापी हैं पर सब एजेंसी की हैं या उनमें स्रोत नहीं लिखा है।

एक खबर गाजियाबाद डेटलाइन से है, शीर्षक है, सेल्फ डिफेंस में जान नहीं ले सकती पुलिस : डीजीपी। लखनऊ की यह खबर संजीव शर्मा की बाईलाइन से गाजियाबाद डेटलाइन से क्यों है समझ में नहीं आया। अखबार ने मृतक की एसयूवी और पुलिस कर्मी की क्षतिग्रस्त मोटरसाइकिल की फोटो भी इसी खबर के साथ छापी है। सबसे दिलचस्प यह है कि अखबार ने गोरखपुर डेटलाइन से एजेंसी की ही एक खबर छापी है, घटना मुठभेड़ नहीं थी योगी। अखबार ने मूल खबर को पहले पेज पर यूपी-बिहार में डर लगता है शीर्षक से छापा है। इसके साथ पटना डेटलाइन से एक खबर है, पटना में डॉक्टर के बेटे को अगवा कर मार डाला। इन दो खबरों के साथ अगर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की स्वीकारोक्ति भी छपती तो खबर का प्रभाव अलग होता। याद कीजिए बिहार का जंगल राज और अबका राम राज। पर संपादक भी क्या करे – मालिक की खबर जानी थी।

पीटीआई बोर्ड के सदस्यों में अब एन रवि, विजय चोपड़ा और विवेक गोयंका के अलावा महेंद्र मोहन गुप्त (दैनिक जागरण), केएन शांत कुमार (डेक्कन हेराल्ड), विनीत जैन (टाइम्स ऑफ इंडिया), अवीक कुमार सरकार (आनंद बाजार पत्रिका), एमपी वीरेंद्र कुमार (मातृभूमि), आर लक्ष्मीपति (दिनामलार), एचएन कामा (बॉम्बे समाचार), न्यायमर्ति आरसी लाहोटी, प्रो. दीपक नैयर, श्याम सरन और जेएफ पोचखानवाला भी शामिल हैं।

एक और 56 ईंची लिजलिजापन… पीटीआई एक स्वायत्त संस्थान है। पैसे वाला और वेजबोर्ड देने वाला। वहां ठीक-ठाक यूनियन भी है और तब एक झटके में 300 लोगों की नौकरी गई। फार्मूला यह रहा कि सितंबर की तनख्वाह, नोटिस पीरियड (एक महीने) की तनख्वाह और पीटीआई में जितनी नौकरी की (जितनी बाकी है, नहीं) उसकी आधी तनख्वाह। यानी नौकरी ज्यादा की थी तो छोड़ने के ज्यादा पैसे मिले जबकि कायदे से जिसकी नौकरी ज्यादा बाकी थी उसे ज्यादा मिलने चाहिए।

पीटीआई को अखबारों के लाला लोग ही चलाते हैं और ऐसे में लाला लोग इसे आदर्श फार्मूला बताएंगे। जिस हिसाब से इंजीनियर से लेकर तकनीशियन को निकाला गया है उससे लगता है टेक्नालॉजी बेहतर होने से जिन लोगों की जरूरत नहीं रही, उन्हें निकाला गया है। पर इस तरह नौकरी लेना और बगैर यूनियन से चर्चा किए बर्खास्तगी का फार्मूला बनाना सरकार पर संस्थान का भरोसा भी बताता है। आने वाले दिनों में मीडिया में और क्या होता है, देखने लायक होगा। कर्मचारी यूनियन ने प्रबंधन के इस फैसले की निन्दा की है और इसे वापस लेने की मांग करते हुए एक अक्तूबर से हरेक केंद्र पर रोज सुबह से शाम तक धरना देने और गेट मीटिंग करने की घोषणा की है।

[वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से]

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